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NCERT Class 12 Biology Chapter 10 जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग
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जैव प्रौद्योगिकी एवं उसके उपयोग
Chapter: 10
अभ्यास
1. विषाणु मुक्त पादप तैयार करने के लिए पादप का कौन सा भाग सबसे अधिक उपयुक्त है तथा क्यो?
उत्तर: पौधे के शीर्षस्थ व कक्षस्थ विभज्योतक विषाणुरहित होते हैं। अतः पौधों का शीर्षस्थ भाग विषाणुमुक्त पादप तैयार करने के लिए उपयुक्त है।
2. सूक्ष्मप्रवर्धन द्वारा पादपों के उत्पादन के मुख्य लाभ क्या हैं?
उत्तर: सूक्ष्मप्रवर्धन विधि द्वारा अत्यन्त ही अल्प अवधि में कई पौधे तैयार किए जा सकते हैं। इस विधि का अन्य महत्त्वपूर्ण उपयोग रोगग्रसित पादपों से स्वस्थ पादपों को प्राप्त करना है। इस प्रकार बने पौधे विषाणु रहित व स्वस्थ होते हैं।
3. पत्ती में कत्तोंतक पादप के प्रवर्धन में जिस माध्यम का प्रयोग किया गया है, उसमें विभिन्न घटकों का पता लगाओ।
उत्तर: इन विट्रो में कृत्रिम रूप से पादप ऊतकों के प्रसार हेतु उपयोग किए जाने वाले संवर्धन माध्यम में आवश्यक पोषक तत्व शामिल होते हैं, जैसे अकार्बनिक लवण, विटामिन, 2–4% सुक्रोज, अमीनो अम्ल (जैसे ग्लाइसिन), तथा वृद्धि नियंत्रक जैसे ऑक्सिन और साइटोकाइनिन। इन माध्यमों में खमीर अर्क, नारियल दूध या केले के गूदे जैसे प्राकृतिक पूरकों का भी प्रयोग किया जा सकता है, परंतु ये अनिवार्य नहीं होते। संवर्धन माध्यम को तरल रूप में रखा जा सकता है, अर्ध-ठोस बनाने के लिए इसमें जिलेटिन मिलाया जा सकता है, अथवा ठोस रूप के लिए अगर का उपयोग किया जा सकता है। इन सभी पोषक तत्वों की उपस्थिति कृत्रिम रूप से उगाए गए ऊतकों की वृद्धि और विकास के लिए अत्यंत आवश्यक होती है।
4. बीटी (Bt) आविष के रवे कुछ जीवाणुओं द्वारा बनाए जाते हैं लेकिन जीवाणु स्वयं को नहीं मारते हैं; क्योंकि-
(क) जीवाणु आविष के प्रति प्रतिरोधी है।
(ख) आविष अपरिपक्व है।
(ग) आविष निष्क्रिय होता है।
(घ) आविष जीवाणु की विशेष थैली में मिलता है।
उत्तर: (ग) आविष निष्क्रिय होता है।
5. पारजीवी जीवाणु क्या है? किसी एक उदाहरण द्वारा सचित्र वर्णन करो।
उत्तर: जब किसी वांच्छित लक्षण वाली जीन को जीवाणु के जीनोम में प्रवेश कराकर कोई उत्पादन प्राप्त किया जाता है तो बाहरी जीन युक्त जीवाणु को पारजीनी जीवाणु कहते हैं।
मानव इंसुलीन को आनुवंशिक प्रौद्योगिकी की सहायता से कृत्रिम रूप से तैयार किया गया है। इंसुलीन एक प्रोटीन है जो दो छोटी पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाओं श्रृंखला ‘ए’ और श्रृंखला ‘बी’ से मिलकर बना होता है, जिन्हें डाईसल्फाइड बंधों द्वारा जोड़ा गया है। प्राकृतिक रूप से, मानव शरीर में इंसुलीन एक प्राक्-हॉर्मोन के रूप में बनता है, जिसमें ‘सी-पेप्टाइड’ भी उपस्थित होता है। परिपक्व इंसुलीन बनने की प्रक्रिया में यह ‘सी-पेप्टाइड’ हट जाता है और अंतिम सक्रिय इंसुलीन केवल श्रृंखला ‘ए’ और ‘बी’ को शामिल करता है।
सन् 1983 में वैज्ञानिकों ने मानव इंसुलीन की श्रृंखला ‘ए’ और ‘बी’ से मेल खाते दो डीएनए अनुक्रमों का कृत्रिम निर्माण किया। इन अनुक्रमों को ई. कोलाई (Escherichia coli) नामक जीवाणु के प्लाज्मिड में प्रविष्ट कराकर, अलग-अलग श्रृंखलाओं का उत्पादन कराया गया। बाद में इन दोनों श्रृंखलाओं को शुद्ध कर आपस में डाईसल्फाइड बंधों द्वारा जोड़कर पूर्ण मानव इंसुलीन का निर्माण किया गया।
इंसुलीन मधुमेह (डायबिटीज़) रोग के उपचार में एक अत्यंत प्रभावशाली और आवश्यक औषधि है। मानव इंसुलीन के जीन की क्लोनिंग करने का श्रेय भारतीय मूल के वैज्ञानिक डॉ. शरण नारंग को जाता है, जिन्होंने यह महत्वपूर्ण शोध कनाडा के ओटावा में किया था।
6. आनुवंशिक रूपांतरित फसलों के उत्पादन के लाभ व हानि का तुलनात्मक विभेद किजिए।
उत्तर: आनुवांशिक रूपांतरित फसलों के उत्पादन के निम्नलिखित लाभ हैं:
(i) फसली पौधे आनुवंशिक रूपांतरित के द्वारा उत्पादकता की दर को बढ़ाते हैं।
(ii) फसली पौधों में आनुवंशिक रूपांतरण करके खनिज लवण को अवशोषित करने व प्रयुक्त करने के लिए पौधे विकसित किये गये है।
(iii) आनुवंशिक रूप से रूपांतरित पौधों की रासायनिक पीड़कनाशी पर निर्भरता कम होती है।
(iv) आनुवंशिक रूप से रूपांतरित पौधे प्रतिकूल परिस्थितियों; जैसे- सूखे, अत्यधिक ठंड को सहने की क्षमता विकसित करते हैं।
(v) आनुवंशिक रूपांतरित फसलें कटाई के पश्चात् होने वाले नुकसान को कम करने में सहायक होती हैं ।
आनुवांशिक रूपांतरित फसलों के उत्पादन के निम्नलिखित हानि हैं:
(a) अपतृणनाशी जीन पौधों में प्रवेश कराये जाते हैं, इनसे फसली पौधों में से कोई भी स्वयं उत्तम अपतृण बन सकती है।
(b) आनुवंशिक रूपांतरित फसलें लोगों में प्रत्यूर्जा उत्पन्न कर सकती हैं।
(c) आनुवंशिक रूपांतरित फसलें बहुत महँगी पड़ती हैं।
(d) ऐसी फसलें काटने की प्रक्रिया में बहुत-से पौधों के अवशेष भूमि में छोड़ दिये जाते हैं, जो जैविक वायुमंडल को नुकसान पहुंचाते हैं।
(e) इस विधि द्वारा उत्पादित कुछ फसलें बीज उत्पादन करने की क्षमता का हानि हो सकती है।
7. क्राई प्रोटीस क्या है? उस जीव का नाम बताओ जो इसे पैदा करता है। मनुष्य इस प्रोटीन को अपने फायदे के लिए कैसे उपयोग में लाता है।
उत्तर: क्राई प्रोटींस एक विषाक्त प्रोटीन है जो क्राई जीन द्वारा कूटबद्ध की जाती है। क्राई प्रोटींस कई प्रकार के होते हैं, जैसे- जो प्रोटींस जीन क्राई 1 ऐसी व क्राई 2 एबी द्वारा कूटबद्ध होते हैं, वे कपास के कलिका कीड़े य होता है को नियंत्रित करते हैं, जबकि क्राई । एबी मक्का छेदक को नियंत्रित करता है।
क्राय प्रोटीन बैसिलस थूरीन्जिएन्सिस (Bt) नामक जीवाणु द्वारा उत्पादित एक एंडोटॉक्सिन होता है, जो कीटों के विरुद्ध प्रभावी होता है। इस प्रोटीन के निर्माण को नियंत्रित करने वाले जीन को क्राय (Cry) जीन कहा जाता है, जैसे: क्राय1एबी, क्राय1एसी, क्राय11एबी आदि। यह जीवाणु इस प्रोटीन को प्रोटॉक्सिन के रूप में क्रिस्टलीय स्वरूप में उत्पन्न करता है।
जेनेटिक इंजीनियरिंग की सहायता से दो क्राय जीन को कपास (Bt कॉटन) में प्रविष्ट किया गया है, जिससे यह पौधा बॉलवर्म (bollworm) के प्रति प्रतिरोधक बन जाता है। वहीं, केवल एक क्राय जीन को मक्का (Bt कॉर्न) में डाला गया है, जिससे यह कॉर्न बोरर (corn borer) के प्रति प्रतिरोधकता विकसित करता है।
8. जीन चिकित्सा क्या है? एडीनोसीन डिएमीनेज (ए डी ए) की कमी का उदाहरण देते हुए इसका सचित्र वर्णन करें।
उत्तर: जीन चिकित्सा एक चिकित्सा पद्धति है जिसमें आनुवंशिक दोषों को ठीक करने के लिए व्यक्ति के कोशिकाओं या ऊतकों में सही जीन को प्रवेश कराया जाता है। इसका उद्देश्य दोषपूर्ण जीन की क्षतिपूर्ति करना और रोग के उपचार के लिए आवश्यक जीन का कार्य सही रूप से करना है।
एडीए की कमी के उपचार के लिए कई विधियाँ हैं। कुछ बच्चों में इस कमी का इलाज अस्थिमज्जा के प्रत्यारोपण से किया जाता है, जबकि दूसरों में एंजाइम प्रतिस्थापन चिकित्सा द्वारा सक्रिय एडीए का उपचार किया जाता है। हालांकि, ये उपचार पूर्णतया रोग नाशक नहीं होते। जीन चिकित्सा में सबसे पहले रोगी के रक्त से लसीकाणु (लसीका कोशिकाएँ) निकाले जाते हैं। फिर, इन कोशिकाओं में सी डीएनए (पश्च विषाणु संवाहक का उपयोग करके) के माध्यम से सक्रिय एडीए का प्रवेश कराया जाता है और इन कोशिकाओं को रोगी के शरीर में वापस कर दिया जाता है।
यदि मज्जा कोशिकाओं से अच्छे जीनों को भ्रूणीय अवस्था की कोशिकाओं में प्रवेश कराकर उत्पादित एडीए दिया जाए, तो यह उपचार स्थायी हो सकता है। इस प्रकार, जीन चिकित्सा एडीए जैसी आनुवंशिक कमी को स्थायी रूप से ठीक करने का एक संभावित उपाय हो सकती है।
9. ई. कोलाई जैसे जीवाणु में मानव जीन की क्लोनिंग एवं अभिव्यक्ति के प्रायोगिक चरणों का आरेखीय निरूपण प्रस्तुत करें।
उत्तर:
10. तेल के रसायन शास्त्र तथा आरडीएनए जिसके बारे में आपको जितना भी ज्ञान प्राप्त है. उसमें आधार बीजों तेल हाइड्रोकार्बन हटाने की कोई एक विधि सुझाओ।
उत्तर: ग्लिसरॉल के एक अणु के साथ तीन वसीय अम्लों के संघनन द्वारा तेल बनता है। वसीय अम्ल एक एंजाइम संकर द्वारा बनते हैं जिसे वसीय अम्ल सिंथेटेज कहते हैं। एक या ज्यादा जीन बनाने वाले वसीय अम्ल की निष्क्रियता वसीय अम्लों का संश्लेषण रोक सकती है। प्लेवट् टोमेटो में एंजाइम पॉलीग्लेक्टोमूटेनेज की निष्क्रियता से जुड़ा होता है। यह बिना तेल वाले बीज उत्पन्न करेगा।
11. इंटरनेट से पता लगाओ कि गोल्डन राइस (गोल्डन धान) क्या है?
उत्तर: गोल्डन राइस (या सुनहरा धान) एक आनुवंशिक रूप से बदला गया चावल है जिसमें बीटा-कैरोटीन होता है। यह शरीर में जाकर विटामिन A में बदलता है। इसे खासकर उन जगहों के लिए बनाया गया है जहां लोगों में विटामिन A की कमी होती है।
इस चावल का रंग हल्का पीला या सुनहरा होता है, इसलिए इसे “गोल्डन” कहा जाता है। इसका उद्देश्य है बच्चों में रतौंधी और प्रतिरक्षा की कमजोरी जैसी बीमारियों को रोकना। यह चावल कुछ देशों में स्वीकृत है, लेकिन कई जगहों पर इसके उपयोग को लेकर विवाद और कानूनी रोक भी लगी हुई है।
12. क्या हमारे रक्त में प्रोटीओजेज तथा न्यूक्लीऐजिज हैं?
उत्तर: प्रोटीओजेज सभी जीवों में प्राकृतिक रूप से पाए जाते हैं और ये कई शारीरिक प्रक्रियाओं में भाग लेते हैं, जैसे प्रोटीन पाचन, रक्त के थक्के बनना, और प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया। रक्त सीरम में थ्रोम्बिन, प्लास्मिन जैसे प्रोटीओजेज थक्का जमाने और प्रतिरक्षा में मदद करते हैं। ल्यूकोसाइट्स में इलास्टेज और कैथेप्सिन जी जैसे एंजाइम उपापचय को नियंत्रित करते हैं। इसके अलावा, रक्त में डीएनए और आरएनए को तोड़ने वाले न्यूक्लीएज़ भी मौजूद होते हैं।
13. इंटरनेट से पता लगाओ कि मुखीय सक्रिय औषध प्रोटीन को किस प्रकार बनाएँगे। इस कार्य में आने वाली मुख्य समस्याओं का वर्णन करें।
उत्तर: मुख्य रूप से सक्रिय प्रोटीन या पेप्टाइड आधारित भेषजों में जैविक रूप से सक्रिय तत्व जैसे पेप्टाइड, प्रोटीन, प्रतिरक्षी या पॉलीमेरिक बीड्स शामिल होते हैं। इन्हें शरीर में मुखीय रूप से विभिन्न सूत्रीकरण विधियों के माध्यम से पहुँचाया जाता है, जैसे लिपोसोम या पेप्टाइड को अवशोषण बढ़ाने वाले एजेंट्स के साथ एनकैप्सुलेशन। ये प्रोटीन/पेप्टाइड विभिन्न रोगों के इलाज और टीकों के रूप में उपयोग किए जाते हैं।
हालाँकि, मुखीय प्रशासन में एक चुनौती होती है पेट के रस में मौजूद प्रोटीओजेज़ इन प्रोटीनों को तोड़ देते हैं, जिससे उनका चिकित्सीय प्रभाव खत्म हो जाता है। इसलिए, इन्हें पाचन एंजाइमों से सुरक्षित रखना आवश्यक होता है। इसी कारण, कई बार इन प्रोटीनों को सीधे लक्ष्य स्थान पर इंजेक्शन के माध्यम से पहुँचाया जाता है ताकि उनका प्रभावी उपयोग सुनिश्चित किया जा सके।

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