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NCERT Class 12 Biology Chapter 4 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत
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वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत
Chapter: 4
अभ्यास
1. मॅडल द्वारा प्रयोगों के लिए मटर के पौधे चुनने से क्या लाभ हुए?
उत्तर: मेंडल द्वारा प्रयोगों के लिए मटर के पौधे को चुनने से निम्नलिखित लाभ हुए:
(i) यह एकवर्षीय पौधा है वे इसे आसानी से बगीचे में उगाया जा सकता था।
(ii) इसमें विभिन्न लक्षणों के वैकल्पिक रूप देखने को मिले।
(iii) इसके स्व-परागित होने के कारण कोई भी अवांछित जटिलता नहीं आ पायी।
(iv) नर व मादा एक ही पौधे में मिल गए।
(v) यह पौधा आनुवंशिक रूप से शुद्ध था व पीढ़ी-दर-पीढ़ी इसके पौधे शुद्ध बने रहे।
(vi) इस पौधे की एक ही पीढ़ी में अनेक बीज उत्पन्न होते हैं अतः निष्कर्ष निकालने में आसानी रही।
2. निम्न में भेद करो –
(क) प्रभाविता और अप्रभाविता।
उत्तर:
प्रभाविता | अप्रभाविता। |
(i) प्रभावी युग्म विकल्पी अप्रभावी जीन की उपस्थिति में भी स्वयं को प्रकट कर सकता है। | (i) एक अप्रभावी युग्म विकल्पी या कारक प्रभावी युग्म विकल्पी की उपस्थिति में अपना प्रभाव व्यक्त नहीं कर सकता है। |
(ii) समलक्षणी पर प्रभाव डालने के लिए किसी अन्य समान युग्म विकल्पी की आवश्यकता नहीं होती है; उदाहरण के लिए, Tt लंबा है। | (ii) इसका समलक्षणीय प्रभाव केवल समतुल्य युग्म विकल्पी की उपस्थिति में होता है, जैसे कि tt, जो कि बौना होता है। |
(iii) प्रभावी युग्म विकल्पी या कारक अपने प्रभाव को व्यक्त करने के लिए पूर्ण पॉलीपेप्टाइड्स या एंजाइम बना सकते हैं, जैसे मटर के फूल का लाल रंग। | (iii) अप्रभावी युग्म विकल्पी अपूर्ण या दोषपूर्ण पॉलीपेप्टाइड या एंजाइम का उत्पादन करता है, जिसके परिणामस्वरूप प्रभावी युग्म विकल्पी का प्रभाव अनुपस्थित हो जाता है, जैसे मटर के फूल का रंग सफेद होना। |
(ख) समयुग्मजी और विषमयुग्मजी।
उत्तर:
समयुग्मजी | विषमयुग्मजी। |
(i) यह एक विशेषक के लिए शुद्ध होता है तथा तद्रूप प्रजनन होता है अर्थात् समयुग्मजी व्यक्ति उत्पन्न होता है। | (i) यह कभी-कभी शुद्ध होता है तथा स्वपरागण से ही विभिन्न जीनोटाइप (जीन प्ररूप) के साथ संतति उत्पन्न करता है। जैसे- TT |
(ii) समयुग्मी व्यक्ति या तो प्रभावी या अप्रभावी युग्म विकल्पी ले जा सकते हैं, लेकिन दोनों नहीं। | (ii) एक विषमयुग्मी व्यक्ति में प्रभावी और अप्रभावी दोनों प्रकार के युग्म विकल्पी होते हैं। |
(iii) यह अत्यधिक उत्साह प्रदर्शित नहीं करता है। | (iii) व्यक्तियों में संकर शक्ति प्रदर्शित हो सकती है, जिसे संकरण उत्क्रमण कहा जाता है। |
(ग) एकसंकर और द्विसंकर।
उत्तर:
एकसंकर | द्विसंकर |
(i) दो शुद्ध जीवों के बीच क्रॉस का उपयोग विशिष्ट युग्म विकल्पी की वंशागति का पता लगाने के लिए किया जाता है। | (i) एक ही प्रजाति के दो शुद्ध जीवों के बीच क्रॉस का उपयोग युग्म विकल्पी युग्मों की वंशागति का पता लगाने के लिए किया जाता है। |
(ii) F2 पीढ़ी 3 : 1 का फेनोटाइपिक एकसंकर अनुपात उत्पन्न करती है। | (ii) F₂ पीढ़ी 9:3:3:1 का फेनोटाइपिक द्विसंकर अनुपात उत्पन्न करती है। |
(iii) यह F₂ में 1:2:1 का जीनोटाइप अनुपात उत्पन्न करता है। | (iii) यह F2 में 1:2:1:2:4:2:1:2:1 का जीनोटाइप अनुपात उत्पन्न करता है। |
3. कोई द्विगुणित जीन 6 स्थलों के लिए विषमयुग्मजी हैं, कितने प्रकार के युग्मकों का उत्पादन संभव है?
उत्तर: जब कोई पौधा द्विगुणित (डिप्लॉइड) जीव में 6 जीन स्थलों के लिए विषमयुग्मजी (हेटेरोजाइगस) होता है, तो इसका अर्थ है कि उसमें तीन लक्षणों के लिए जीन के तीन-तीन जोड़े मौजूद हैं। यदि ये लक्षण स्वतंत्रता से वि-संयोजित (independently assort) होते हैं, तो प्रत्येक जीन जोड़ा दूसरे से स्वतंत्र रूप से व्यवहार करेगा। उदाहरण के लिए, यदि लम्बे (T), पीले (Y) और गोल (R) बीज वाले शुद्ध पौधों का संकरण नाटे (t), हरे (y) और झुरींदार (r) बीज वाले शुद्ध पौधों से किया जाए, तो इनसे प्राप्त संकर (F₁ पीढ़ी) पौधे लम्बे, पीले और गोल बीज वाले होंगे, जिनकी जीन संरचना Tt Yy Rr होगी।
यह F₁ संकर पौधा प्रत्येक जीन स्थान के लिए विषमयुग्मजी होता है और ये जीन स्वतंत्रता से वि-संयोजित होते हैं। परिणामस्वरूप, F₁ पीढ़ी से आठ प्रकार के युग्मक बन सकते हैं: TRY, TRy, TrY, Try, tRY, tRy, trY, try। जब ये युग्मक आपस में संयोग करते हैं, तो अगली पीढ़ी (F₂) में विभिन्न लक्षणों के नए-नए संयोजन देखने को मिलते हैं। यह स्वतंत्र वि-संयोजन के मेन्डल के नियम का एक उदाहरण है।
4. एकसंकर क्रॉस का प्रयोग करते हुए, प्रभाविता नियम की व्याख्या करो।
उत्तर: जब एक ही लक्षण के लिए विपरीत लक्षणों वाले पौधों के बीच संकरण किया जाता है, तो उसे एक-संकर क्रॉस (Monohybrid Cross) कहा जाता है। उदाहरणस्वरूप, मटर के लम्बे (T) तथा बौने (t) पौधों के बीच संकरण करने पर F₁ पीढ़ी के सभी पौधे लम्बे होते हैं, परंतु उनकी जीन संरचना विषमयुग्मजी (Tt) होती है।
इस संकरण में लम्बेपन के लिए उत्तरदायी कारक T प्रभावी (Dominant) होता है, जबकि बौनेपन के लिए जिम्मेदार कारक t अप्रभावी (Recessive) होता है। इसलिए, F₁ पीढ़ी में t कारक उपस्थित होते हुए भी अपने प्रभाव को व्यक्त नहीं कर पाता, और सभी पौधे लम्बे दिखाई देते हैं।
इस प्रकार, जब किसी एक लक्षण को नियंत्रित करने वाले जीन युग्म में एक जीन दूसरे पर प्रभाव डालता है और उसके लक्षण को दबा देता है, तो इस घटना को प्रभाविता का नियम (Law of Dominance) कहा जाता है।
5. परीक्षार्थ संकरण की परिभाषा लिखो और चित्र बनाओ।
उत्तर: परीक्षार्थी संकरण में अनजाने प्रभावी फीनोटाइप का अप्रभावी पौधे से संकरण किया जाता है| इसका उपयोग यह निर्धारित करने के लिए किया जाता है कि एक व्यक्ति लक्षण के लिए समयुग्मजी है या विषमयुग्मजी| यदि अनजाना पौधा समयुग्मजी लंबा (TT) है तो अप्रभावी बौने प्रजाति (tt) के साथ संकरण कराने पर भी इसके संतति लंबे (Tt) होते हैं| यदि अनजाना पौधा विषमयुग्मजी लंबा है तो बौने के साथ संकरण कराने पर 50% लंबे (Tt) तथा 50% बौने (tt) संतति प्राप्त होते हैं|
6. एक ही जीन स्थल वाले समयुग्मजी मादा और विषमयुग्मजी नर के संकरण से प्राप्त प्रथम संतति पीढ़ी के फीनोटाइप वितरण का पनेट वर्ग बनाकर प्रदर्शन करो।
उत्तर: गुणसूत्रों पर विभिन्न लक्षणों से संबंधित जीन एक निश्चित स्थल (locus) पर स्थित होते हैं। जब किसी जीन स्थल पर मादा समयुग्मजी (homozygous) होती है जैसे शुद्ध बौना पौधा (tt) और नर विषमयुग्मजी (heterozygous) होता है जैसे संकर लम्बा पौधा (Tt), तो इनके मध्य संकरण कराने पर प्राप्त प्रथम पीढ़ी (F₁) की संतति में दो प्रकार के पौधे उत्पन्न होते हैं। इनमें से 50% पौधे विषमयुग्मजी (Tt) होते हैं, जो प्रभावी लक्षण यानी लम्बेपन को दर्शाते हैं, जबकि शेष 50% पौधे समयुग्मजी (tt) होते हैं, जो अप्रभावी लक्षण यानी बौनेपन को व्यक्त करते हैं।
7. पीले बीज वाले लंबे पौधों (Yy Tt) का संकरण हरे बीज वाले लंबे (yy Tt) पौधे से करने पर निम्न में से किस प्रकार के फीनोटाइप संतति की आशा की जा सकती है।
(क) लंबे-हरे।
उत्तर: लंबे हरे के फीनोटाइप संतति 6 हैं।
(ख) बौने हरे।
उत्तर: बौने हरे के फीनोटाइप संतति 2 हैं।
8. दो विषमयुग्मजी जनकों का क्रॉस और किया गया। मान लें दो स्थल (loci) सहलग्न है. तो द्विसंकर क्रॉस में F, पीढ़ी के फीनोटाइप के लक्षणों का वितरण क्या होगा?
उत्तर: जब दो या अधिक जीन्स एक ही गुणसूत्र (क्रोमोसोम) पर पास-पास स्थित होते हैं, तो वे आमतौर पर एक साथ ही संतति में वंशानुगत होते हैं। इस गुण को जीन सहलग्नता कहते हैं, और ऐसे जीन्स को सहलग्न जीन्स कहा जाता है। इन जीन्स द्वारा नियंत्रित लक्षण सहलग्न लक्षण कहलाते हैं।
जीन सहलग्नता का अध्ययन सबसे पहले वैज्ञानिक थॉमस हंट मॉर्गन ने किया। उन्होंने अपने प्रयोग ड्रोसोफिला (फलों की मक्खी) पर किए, जो मेंडल के द्विसंकर संकरण (dihybrid cross) जैसे थे। उन्होंने पीले शरीर और श्वेत नेत्रों वाली मादा ड्रोसोफिला का संकरण भूरे शरीर और लाल नेत्रों वाले नर ड्रोसोफिला से कराया।
जब पहली पीढ़ी (F₁) की संतानों में परस्पर क्रॉस कराया गया, तो पाया गया कि जीन स्वतन्त्र रूप से पृथक नहीं हो रहे थे। परिणामस्वरूप दूसरी पीढ़ी (F₂) में लक्षणों का अनुपात मेंडल के 9:3:3:1 के अपेक्षित अनुपात से काफी भिन्न था। इसका कारण यही था कि संबंधित जीन्स एक ही गुणसूत्र पर स्थित होकर सहलग्न थे और साथ में ही वंशानुगत हो रहे थे।
9. आनुवंशिकी में टी. एच मौरगन के योगदान का संक्षेप में उल्लेख करें।
उत्तर: आनुवंशिकी में टी.एच मौरगन का योगदान :
(i) मौरगन ने लिंग-सहलग्न लक्षणों को समझने में योगदान दिया।
(ii) उन्होंने फल-मक्खियों का संकरण भूरे शरीर और लाल आँखों मक्खियों वाली के साथ किया और फिर
F1 संततियों को आपस में द्विसंकर क्रॉस करवाने पर दो जीन जोड़ी एक दूसरे से स्वतंत्र विसंयोजित नहीं हुई और F2 का अनुपात 9:3:3:1 से काफी भिन्न मिला।
(iii) उन्होंने यह भी जान लिया कि जब द्विसंकर क्रॉस में दो जीन जोड़ी एक ही क्रोमोसोम में स्थित होती हैं तो जनकीय जीन संयोजनों का अनुपात अजनकीय प्रकार से काफी ऊँचा रहता है।
(iv) उन्होंने संकरण सहलग्नता संबंधों तथा वंशागति लिंग-सहलग्न के सिद्धांत की व्याख्या की तथा संबंधों की खोज की।
(v) उन्होंने क्रोमोसोम मानचित्र के तकनीक की स्थापना की।
(vi) उन्होंने उत्परिवर्तन को देखस तथा उस पर काम किया।
10. वंशावली विश्लेषण क्या है? यह विश्लेषण किस प्रकार उपयोगी है?
उत्तर: किसी परिवार के पीढ़ी दर पीढ़ी विशेष लक्षणों का अध्ययन वंशावली विश्लेषण कहलाता है। यह कुछ परिवारों में विशेष लक्षणों के वंशबद्ध रहने की अवधारणा पर आधारित है।
यह विश्लेषण इस प्रकार उपयोगी है:
(i) आनुवंशिक परामर्शदाताओं के लिए यह उपयोगी है कि वे भावी दंपतियों को हीमोफीलिया, वर्णांधता, एल्काप्टोन्यूरिया, फीनाइल कीटोन्यूरिया, थैलेसीमिया, दात्र कोशिका अरक्तता (अप्रभावी लक्षण), ब्रेकिडेक्टली और सिंडेक्टली (प्रभावी लक्षण) जैसे आनुवंशिक दोषों वाले बच्चे होने की संभावना के बारे में सलाह देना लाभदायक है।
(ii) वंशावली विश्लेषण से पता चलता है कि मेंडल के सिद्धांत मानव आनुवंशिकी पर भी लागू होते हैं, जिनमें बाद में कुछ संशोधन पाए गए जैसे परिमाणात्मक वंशागति, लिंग से सहलग्न लक्षण और अन्य संबंध।
(iii) यह पूर्वजों में किसी विशेषता की उत्पत्ति का संकेत दे सकता है, उदाहरण के लिए, हीमोफीलिया रोग महारानी विक्टोरिया में दिखाई दिया और विवाह के माध्यम से यूरोप के शाही परिवारों में फैल गया।
(iv) इससे अप्रभावी युग्म विकल्पी द्वारा संतति में थैलेसीमिया, मांसपेशीय दुष्पोषण, हीमोफीलिया जैसे विकार उत्पन्न करने की संभावना जानने में सहायता मिलती है।
(v) इससे यह संकेत मिल सकता है कि निकट रिश्तेदारों के बीच विवाह से संभावित नुकसान हो सकता है।
11. मानव में लिंग निर्धारण कैसे होता है?
उत्तर: मानव में लिंग निर्धारण क्रोमोसोम द्वारा नियंत्रित होता है। मानव में कुल 23 जोड़े क्रोमोसोम होते हैं, जिनमें से 22 जोड़े ऑटोसोम (अलिंग क्रोमोसोम) होते हैं, जो नर और मादा में समान होते हैं। 23वां जोड़ा लिंग-निर्धारक क्रोमोसोम कहलाता है। मादा में दो समान X क्रोमोसोम (XX) का एक जोड़ा होता है, जबकि नर में एक X और एक Y क्रोमोसोम (XY) होता है। Y क्रोमोसोम ही नर लक्षणों का निर्धारण करता है।
शुक्रजनन की प्रक्रिया में नर दो प्रकार के युग्मक (स्पर्म) उत्पन्न करता है। उत्पन्न कुल शुक्राणुओं में लगभग 50 प्रतिशत में X क्रोमोसोम होता है और शेष 50 प्रतिशत में Y क्रोमोसोम होता है। इन युग्मकों के साथ ऑटोसोम भी जुड़े होते हैं। दूसरी ओर, मादा में केवल एक ही प्रकार के अंडाणु उत्पन्न होते हैं, जिनमें हमेशा X क्रोमोसोम उपस्थित होता है।
निषेचन के समय, यदि अंडाणु का मिलन X क्रोमोसोम युक्त शुक्राणु से होता है, तो युग्मनज (XX) का निर्माण होता है, जो आगे चलकर मादा संतति में परिवर्तित होता है। इसके विपरीत, यदि अंडाणु का मिलन Y क्रोमोसोम युक्त शुक्राणु से होता है, तो युग्मनज (XY) बनता है, जिससे नर संतति का जन्म होता है।
12. शिशु का रुधिर वर्ग है। पिता का रुधिर वर्ग A और माता का B है। जनकों के जीनोटाइप मालूम करें और अन्य संतति में प्रत्याशित जीनोटाइपों की जानकारी प्राप्त करें।
उत्तर: मनुष्यों में लिंग निर्धारण XX-XY क्रोमोसोम संरचना द्वारा होता है। प्रत्येक व्यक्ति में 22 जोड़ी ऑटोसोम और एक जोड़ी लिंग क्रोमोसोम पाए जाते हैं। महिलाओं में दो समान लिंग क्रोमोसोम होते हैं, जिन्हें XX कहा जाता है। पुरुषों में एक X और एक Y लिंग क्रोमोसोम होता है, जो कि विषम होते हैं। महिला की अंडाणु कोशिकाओं में क्रोमोसोम संख्या (22 + X) होती है, जिससे वे समयुग्मकी होती हैं। पुरुष दो प्रकार के शुक्राणु बनाते हैं गाइनोस्पर्म (22 + X) और एंड्रोस्पर्म (22 + Y), इसलिए पुरुषों को विषमयुग्मकी कहा जाता है। संतान का लिंग निषेचन के समय तय होता है। यदि गाइनोस्पर्म अंडाणु (22 + X) से निषेचित होता है, तो मादा संतान (44 + XX) बनती है, जबकि एंड्रोस्पर्म से निषेचन होने पर नर संतान (44 + XY) होती है। चूँकि दोनों प्रकार के शुक्राणु समान संख्या में बनते हैं, इसलिए किसी दंपति को पुत्र या पुत्री होने की संभावना बराबर होती है। Y-क्रोमोसोम, जो नर लिंग निर्धारण करता है, को एंड्रोसोम भी कहा जाता है।
13. निम्न शब्दों को उदाहरण समेत समझाएँ:
(अ) सह प्रभाविता।
उत्तर: सह-प्रभाविता: जब किसी गुणसूत्र पर स्थित दो युग्मविकल्पी जीन में से कोई भी पूर्णतः प्रभावी या अप्रभावी न होकर, एक साथ मिलकर मिश्रित रूप से प्रभाव डालते हैं, तो इस स्थिति को सह-प्रभाविता कहा जाता है। इस प्रकार, F₁ पीढ़ी में व्यक्त लक्षण दोनों जनकों की विशेषताओं का सम्मिलित रूप होता है।
उदाहरण: मनुष्य में रुधिर वर्ग (A, B, और O) का निर्धारण लाल रक्त कोशिकाओं की सतह पर पाए जाने वाले विशिष्ट एंटीजन द्वारा होता है। इन रुधिर वर्गों का नियंत्रण एक जीन द्वारा होता है, जिसके तीन युग्मविकल्पी होते हैं – Iᴬ, Iᴮ, और i। इनमें Iᴬ और Iᴮ युग्मविकल्पी जब साथ उपस्थित होते हैं, तो वे सह-प्रभावी होकर AB रक्त वर्ग उत्पन्न करते हैं, जिसमें दोनों प्रकार के एंटीजन पाए जाते हैं।
(ब) अपूर्ण प्रभाविता।
उत्तर: अपूर्ण प्रभाविताः विपर्यासी लक्षणों के युग्म में, एक लक्षण दूसरे पर अपूर्ण रूप से प्रभावी होता है। यह घटना अपूर्ण प्रभाविता कहलाती है।
उदाहरण: मिराबिलिस जलापा या गुल गुलाबाँस के पौधे में लाल पुष्प व सफेद पुष्प युक्त पौधों के मध्य संकरण कराने पर, F, पीढ़ी में सभी फूल लाल सफेद न होकर, गुलाबी रंग के होते हैं। F₂ पीढ़ी में 1 लाल, 2 गुलाबी व । सफेद पुष्प (1:2:1) युक्त पौधे प्राप्त होते हैं।
14. बिंदु-उत्परिवर्तन क्या है? एक उदाहरण दें।
उत्तर: डीएनए के एकल क्षार युग्म में परिवर्तन को बिंदु उत्परिवर्तन कहा जाता है। इसका एक प्रमुख उदाहरण है दात्र कोशिका अरक्तता रोग। इस रोग का मुख्य कारण हीमोग्लोबिन अणु की बीटा-ग्लोबिन श्रृंखला की छठी स्थिति में अमीनो अम्ल ग्लूटैमिक अम्ल का वैलीन द्वारा प्रतिस्थापन होना है। निम्न ऑक्सीजन तनाव की स्थिति में, उत्परिवर्तित हीमोग्लोबिन अणु बहुलकृत हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप RBC का आकार सामान्य द्वि-अवतल बिंब से बदलकर दात्राकार जैसा हो जाता है।
15. वंशागति के क्रोमोसोम वाद को किसने प्रस्तावित किया?
उत्तर: वंशागति के क्रोमोसोम वाद को वाल्टर सटन तथा थियोडर बोमेरी ने प्रस्तावित किया।
16. किन्हीं दो अलिंग सूत्री आनुवंशिक विकारों का उनके लक्षणों सहित उल्लेख करो।
उत्तर: दात्र कोशिका: अरक्तता (सिकल सेल एनीमिया)- यह अलिंग क्रोमोसोम लग्न अप्रभावी लक्षण है जो जनकों से संतति में तभी प्रवेश करता है जबकि दोनों जनक जीन के वाहक होते हैं।
लक्षण: हाथ,पैरों या पेट में सूजन, दृष्टिहीनता, अल्सर, विकास या यौवन में देरी, जोड़ों में दर्द, संक्रमन, बुखार आदि दात्र कोशिका- अरक्तता (सिकल सेल एनीमिया) रोग के लक्षण हैं।
डाउन सिंड्रोम: इस आनुवांशिक विकार का कारण 21 वें क्रोमोसोम की एक अतिरिक्त प्रति का आ जाना (21 की त्रिसूत्रता) है।
लक्षण: रोगी व्यक्ति छोटे कद और छोटे गोल सिर का होता है, जीभ में खाँच होता है और मुँह आंशिक रूप से खुला रहता है, चौड़ी हथेली में अभिलाक्षणिक पॉल्म कीज होती है| शारीरिक, मनःप्रेरक और मानसिक विकास अवरूद्ध रहता है।

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