NCERT Class 12 Biology Chapter 1 पुष्पी पादपों में लैंगिक प्रजनन

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NCERT Class 12 Biology Chapter 1 पुष्पी पादपों में लैंगिक प्रजनन

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Chapter: 1

अभ्यास

1. एक आवृतबीजी पुष्प के उन अंगों के नाम बताएँ; जहाँ नर एवं मादा युग्मकोद्भिद का विकास होता है?

उत्तर: एक आवृतबीजी पुष्प में नर युग्मकोद्भिद का विकास परागकोश के परागपुटी में होता है तथा मादा युग्मकोद्भिद का विकास बीजांड के बीजांडकायं में होता है।

2. लघुबीजाणुधानी तथा गुरूबीजाणुधानी के बीच अंतर स्पष्ट करें? इन घटनाओं के दौरान किस प्रकार का कोशिका विभाजन संपन्न होता है? इन दोनों घटनाओं के अंत में बनने वाली संरचनाओं के नाम बताएँ?

उत्तर: 

लघुबीजाणुधानीगुरूबीजाणुधानी
(i) यह लघुबीजाणु मादा कोशिका से लघुबीजाणुओं के निर्माण की प्रक्रिया है।(i) यह गुरुबीजाणु मादा कोशिका से गुरुबीजाणुओं के निर्माण की प्रक्रिया है।
(ii) यह परागकोश के परागपुटी के अंदर होता है।(ii) यह बीजांड के बीजांडकाय भाग के अंदर होता है।

इन घटनाओं के दौरान अर्धसूत्री कोशिका विभाजन संपन्न होता है। लघुबीजाणुधानी के अंत में बनने वाली संरचना परागकण (नर युग्मकोद्भव) तथा गुरुबीजाणुधानी के अंत में बनने वाली संरचना भ्रूणकोश (मादा युग्मकोद्भव) है।

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3. निम्नलिखित शब्दावलियों को सही विकासीय क्रम में व्यवस्थित करें-

परागकण, बीजाणुजन ऊतक, लघुवीजाणुचतुष्क, परागमातृ कोशिका, नर युग्मक।

उत्तर: बीजाणुजन उत्तक →परागमातृ कोशिका  → लघुबीजाणुचतुष्क → परागकण → एवं  → नर युग्मक।

4. एक प्ररूपी आवृतबीजी बीजांड के भागों का विवरण दिखाते हुए एक स्पष्ट एवं साफ सुथरा नामांकित चित्र बनाएँ।

उत्तर: 

बीजांड के विभिन्न भाग:

(i) बीजांडवृत (Funiculus): यह एक डंठलनुमा संरचना होती है जो बीजांड को अंडाशय की भीतरी दीवार (अपरा) से जोड़ती है। यह पोषण और सहारा प्रदान करता है।

(ii) नाभिका (Hilum): यह वह बिंदु होता है जहाँ बीजांडवृत, बीजांड से जुड़ता है। यह बीजांड का जुड़ाव स्थल होता है।

(iii) अध्यावरण (Integuments): ये बीजांड को घेरे हुए बाहरी आवरण होते हैं, जो भीतर स्थित भ्रूण थैली को सुरक्षा प्रदान करते हैं। ये बाद में बीज के आवरण में परिवर्तित हो जाते हैं।

(iv) बीजांडद्वार (Micropyle): यह अध्यावरणों के बीच बना एक सूक्ष्म छिद्र होता है, जिससे परागनलिका निषेचन के समय भीतर प्रवेश करती है।

(v) बीजांडकाय (Nucellus): यह पैरेन्काइमेटस ऊतक का एक ठोस द्रव्यमान होता है, जो भ्रूण थैली को पोषण देता है। यह बीजांड का मुख्य भाग होता है, जो अध्यावरणों से घिरा होता है।

(vi) निभागीय सिरे (Chalaza): यह बीजांडकाय का आधारीय, थोड़ा फूला हुआ भाग होता है, जहाँ से अध्यावरण उत्पन्न होते हैं और पोषक तत्त्वों का संचरण होता है।

5. आप मादा युग्मकोद्भिद् के एकबीजाणुज विकास से क्या समझते हैं?

उत्तर: गुरुबीजाणुजनन की प्रक्रिया में गुरुबीजाणु चतुष्क (tetrad) का निर्माण होता है, जिसमें से तीन गुरुबीजाणु नष्ट हो जाते हैं और केवल एक गुरुबीजाणु ही सक्रिय रहता है। यही सक्रिय गुरुबीजाणु मादा युग्मकोद्भिद् (female gametophyte) के विकास का आधार बनता है।गुरुबीजाणु का केन्द्रक तीन, सूत्री विभाजनों द्वारा आठ केन्द्रक बनाता है। प्रत्येक ध्रुव पर चार-चार केंद्रक व्यवस्थित हो जाते हैं। भ्रूणकोष के बीजाण्डद्वारी ध्रुव पर स्थित चारों केंद्रक में से तीन केंद्रक कोशिकाएँ।दोनों ध्रुवों से आए एक-एक केंद्रक बीच में स्थित होकर संयोजन करते हैं, जिससे एक द्विकेंद्रकीय केन्द्रीय कोशिका (polar nuclei) का निर्माण होता है।

चूंकि मादा युग्मकोद्भिद् का विकास केवल एक ही गुरुबीजाणु से होता है, इसलिए इसे एकबीजाणुज विकास (monosporic development) कहा जाता है।

6. एक स्पष्ट एवं साफ सुथरे चित्र के द्वारा परिपक्व मादा युग्मकोर्भिद के 7 कोशीय, 8 – न्युकिलयेट (केंद्रक) प्रकृति की व्याख्या करें।

उत्तर: 

मादा युग्मकोद्भिद (भ्रूणकोष) एकल कार्यात्मक गुरुबीजाणु से विकसित होती है। यह सक्रिय गुरुबीजाणु तीन क्रमिक समसूत्री विभाजनों से गुजरता है, जिसके परिणामस्वरूप आठ नाभिकीय भ्रूणकोष का निर्माण होता है।

गुरुबीजाणु का पहला समसूत्री विभाजन दो केंद्रक उत्पन्न करता है। इनमें से एक केंद्रक बीजाण्डद्वार छोर की ओर बढ़ता है, जबकि दूसरा केंद्रक कैलाजल छोर की ओर अग्रसर होता है। इसके बाद, ये दोनों केंद्रक अपने-अपने छोरों पर पुनः विभाजित होते हैं और अंतिम बार विभाजित होकर आठ नाभिकीय अवस्था का निर्माण करते हैं। परिणामस्वरूप, भ्रूणकोष में दोनों छोरों पर (बीजाण्डद्वार और कैलाजल छोर) चार-चार नाभिक स्थित होते हैं। बीजाण्डद्वार छोर पर स्थित चार केंद्रकों में से तीन केंद्रक दो सहायक कोशिकाएँ और एक अंडकोशिका बनाते हैं, जिन्हें सामूहिक रूप से अंड उपकरण (Egg Apparatus) कहा जाता है। इसी प्रकार, कैलाजल छोर पर स्थित चार केंद्रकों में से तीन केंद्रक प्रतिव्यासांत कोशिकाओं (Antipodal Cells) के रूप में विभेदित होते हैं। बीजाण्डद्वार और कैलाजल छोर से एक-एक केंद्रक केंद्र की ओर बढ़ते हैं और मिलकर ध्रुवीय केंद्रक का निर्माण करते हैं, जो एक बड़ी केंद्रीय कोशिका में स्थित होते हैं। इस प्रकार, परिपक्व मादा युग्मकोद्भिद में 7-कोशिका और 8-नाभिकीय संरचना होती है।

7. उन्मील परागणी पुष्यों से क्या तात्पर्य है? क्या अनुन्मीलिय पुष्पों में परपरागण संपन्न होता है? अपने उत्तर की सतर्क व्याख्या करें?

उत्तर: उन्मील परागणी पुष्प अन्य प्रजाति के पुष्पों के समान ही होते हैं, जिसके परागकोश और वर्तिकाग्र अनावृत होते हैं| अनुन्मीलिय पुष्पों में परपरागण संपन्न नहीं होता है क्योंकि ये कभी भी अनावृत नहीं होते हैं, जिसके कारण उनके परागकोश एवं वर्तिकाग्र एक दूसरे के संपर्क में नहीं आ पाते हैं।

8. पुष्पों द्वारा स्व परागण रोकने के लिए विकसित की गई दो कार्यनीति का विवरण दें।

उत्तर: निरंतर स्व-परागण किसी प्रजाति की आनुवंशिक विविधता, शक्ति और जीवन शक्ति को कम कर सकता है। इस कारण, फूल वाले पौधों ने स्व-परागण को रोकने और पर-परागण को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न जैविक युक्तियाँ विकसित की हैं।

(i) भिन्न काल पक्वता (Dichogamy): उभयलिंगी फूलों में परागकोष (एन्थर) और वर्तिकाग्र (स्टिग्मा) के परिपक्व होने का समय अलग-अलग होता है, जिससे स्व-परागण की संभावना कम हो जाती है।

(ii) स्व-बांझपन (Self-sterility या Self-incompatibility): कुछ पौधों में ऐसी आनुवंशिक व्यवस्था होती है कि उनका पराग उन्हीं के वर्तिकाग्र पर अंकुरित नहीं हो पाता। उदाहरण: तम्बाकू, आलू।

(iii) हर्कोगैमी (Herkogamy): फूल की रचना इस प्रकार होती है कि परागकोष और वर्तिकाग्र स्थानिक रूप से अलग-अलग होते हैं या उनके बीच यांत्रिक बाधा होती है, जिससे स्व-परागण रुक जाता है। उदाहरण: हिबिस्कस, ग्लोरियोसा।

(iv) विषमयुग्मन (Heterostyly): एक ही प्रजाति के फूलों में वर्तिकाग्र और परागकोष अलग-अलग ऊँचाई पर स्थित होते हैं, जिससे पर-परागण की संभावना बढ़ती है।

(v) नर-बांझपन (Male sterility): कुछ पौधों में परागकण कार्यात्मक नहीं होते, इसलिए वे केवल पर-परागण से ही बीज उत्पन्न कर सकते हैं।

9. स्व अयोग्यता क्या है? स्व अयोग्यता वाली प्रजातियों में स्व-परागण प्रक्रिया बीज की रचना तक क्यों नहीं पहुँच पाती है?

उत्तर: स्व-अयोग्यता स्व-परागण को रोकने का एक वंशागत प्रक्रम है, जिसमें उसी पुष्प या उसी पादप के अन्य पुष्प से पराग अंकुरण या स्त्रीकेसर में परागनालिका वृद्धि को रोक दिया जाता है। पराग के रसायन और वर्तिकाग्र के बीच संपर्क के कारण स्व-अयोग्यता वाली प्रजातियों में स्व-परागण की प्रक्रिया बीज निर्माण तक नहीं पहुँच पाती है। इस प्रक्रिया से यह सुनिश्चित होता है कि परागण केवल अन्य पादपों से ही हो, जिससे संकरण (cross-pollination) बढ़ता है और जीन विविधता में सुधार होता है।

10. बैगिंग (बोरावस्त्रावरण) या थैली लगाना तकनीक क्या है? पादप जनन कार्यक्रम में यह कैसे उपयोगी है?

उत्तर: विभिन्न फसल सुधार कार्यक्रमों के तहत प्रयुक्त कृत्रिम संकरण तकनीकों में, द्विलिंगी पुष्पों से परागकोष को सावधानीपूर्वक हटाया जाता है, ताकि मादा प्रजनन अंग (स्त्रीकेसर) को कोई क्षति न पहुँचे। इस परागकोष हटाने की प्रक्रिया को विपुंसन (emasculation) कहा जाता है। इसके पश्चात, इन विपुंसित पुष्पों को बेगिंग (bagging) की प्रक्रिया के तहत थैलों में लपेट दिया जाता है, जिससे अवांछित परागकणों द्वारा परागण को रोका जा सके। यह प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि बाद में केवल वांछित नर अभिभावक के पराग से कृत्रिम परागण किया जाए।

11. त्रि-संलयन क्या है? यह कहाँ और कैसे संपन्न होता है? त्रि-संलयन में सम्मिलित न्युक्लीआई का नाम बताएँ।

उत्तर: त्रि-संलयन की प्रक्रिया में भ्रूणकोष के भीतर स्थित तीन अगुणितक केंद्रिकियाँ (न्युक्ली) भाग लेती हैं। परागनलिका, जिसमें दो नर युग्मक होते हैं, बीजांडद्वार (micropyle) के माध्यम से बीजांड में प्रवेश करती है। इन दो नर युग्मकों में से एक अंड कोशिका के साथ संगलित होकर एक द्विगुणित युग्मनज (zygote) बनाता है, जो बाद में भ्रूण का विकास करता है। दूसरा नर युग्मक केंद्रीय कोशिका में उपस्थित दो ध्रुवीय केंद्रिकियों से संगलित होकर एक त्रिगुणित (3n) प्राथमिक भ्रूणकोश केंद्रक बनाता है, जो आगे चलकर भ्रूणपोषी (endosperm) के रूप में विकसित होता है। यही अद्वितीय प्रक्रिया द्वि-युग्मनन (double fertilization) कहलाती है, जो केवल आवृतबीजी पौधों (angiosperms) में पाई जाती है।

12. एक निषेचित बीजांड में; युग्मनज प्रसुप्ति के बारे में आप क्या सोचते हैं?

उत्तर: निषेचन के बाद बीजांड में युग्मनज (जाइगोट) का विकास प्रारंभ होता है। बीजांड के आवरण कठोर होकर बीज आवरण का निर्माण करते हैं। बाहरी आवरण से बाह्य बीज आवरण तथा भीतरी आवरण से आंतरिक बीज आवरण बनता है। भ्रूणपोष में पोषक तत्व एकत्रित होने लगते हैं और जल की मात्रा धीरे-धीरे घटने लगती है, जिससे बीजांड कठोर व शुष्क हो जाता है। इस प्रक्रिया में बीजांड की आंतरिक क्रियाएँ रुकने लगती हैं और युग्मनज से बना भ्रूण निष्क्रिय अवस्था में पहुँच जाता है, जिसे युग्मनज प्रसुप्ति कहते हैं। इस प्रकार, बीज आवरण से घिरी, पोषक तत्वों से युक्त और प्रसुप्त भ्रूण वाली संरचना बीज कहलाती है।

13. इनमें विभेद करें-

(क) बीजपत्राधार और बीजपत्रोपरिक।

उत्तर: 

बीजपत्राधारबीजपत्राधार
(i) यह बीजपत्र ग्रंथि और मूलांकुर के बीचं भ्रूणीय अक्ष का भाग है।(i) यह प्रांकुर और बीजपत्र ग्रंथि के बीच भ्रूणीय अक्ष का भाग है।
(ii) उपरी सतह अंकुरण में, बीजपत्राधार लंबा हो जाता है जिससे बीजपत्र मिट्टी से बाहर आ जाते हैं।(ii) अधोगशयी अंकुरण में, बीजपत्रोपरिक लंबा हो जाता है, जिससे बीजपत्र मिट्टी में ही रह जाते हैं।
(iii) बीजपत्राधार का अंतिम सिरा मूलांकुर होता है(iii) बीजपत्रोपरिक का अंतिम सिरा प्रांकुर होता है।

(ख) प्राँकुर चोल तथा मूलाँकुर चोल।

उत्तर: 

प्राँकुर चोलमूलाँकुर चोल
(i) बीजपत्रोपरिक में प्ररोह शीर्ष तथा कुछ आदि कालिक (आद्य) पर्ण होते हैं, जो एक खोखला-पणीर्य संरचना को घेरते हैं, जिसे प्राँकुर चोल कहते हैं।(i) मूल आवरण एक बिना विभेदित पर्त से आवृत्त होता है। जिसे (कोलियोराइजा) मूलाँकुर चोल कहते हैं।
(ii) बीज को बाहरी आक्रमण से सुरक्षा प्रदान करना और इसे सूखा या नमी से बचाना।(ii) पौधे के प्रारंभिक विकास में पोषण प्रदान करना और जड़ तथा अंकुर की शुरुआत को सहारा देना।
(iii) यह बाहरी, कठोर और मजबूत होती है, जिसमें विभिन्न प्रकार की परतें हो सकती हैं जैसे कि एण्डोस्पर्म, टेगम आदि।(iii) यह पौधे की पहली पत्तियों जैसी संरचना होती है, जो पहले भोजन को संग्रहीत करने के लिए कार्य करती है।
(iv) यह अनाज से कहीं अधिक बढ़ता है।(iv) दाने से निकलने के बाद इसकी वृद्धि रुक जाती है।
(v)  प्रांकुर चोल, अंकुरण के दौरान मिट्टी से बाहर आने के बाद हरा ही जाता है ओर प्रकाश संश्लेषण करता है।(v) मूलाँकुर चोल मिट्टी से बाहर नहीं निकलता है। यह हरा नहीं रहता है।

(ग) अध्यावरण तथा बीजचोल।

उत्तर: 

अध्यावरणबीजचोल
(i) अध्यारण बीज के अंकुर से जुड़ा वह भाग है जो बीज के नीचे स्थित होता है और इसे जड़ और तने के बीच की संरचना माना जाता है।(i)बीजचोल वह बाहरी संरचना है जो बीज को सुरक्षा प्रदान करती है और इसे बाहरी आक्रमण से बचाती है।
(ii) यह पतला, एक या दो परत वाला होता है।(ii) यह काफी फूली हुई और एक परत वाला होता है।
(iii) यह अंकुरण के समय बीज को समर्थन प्रदान करता है और बाद में जड़ और तने को जोड़ने का कार्य करता है।(iii) यह बीज को सुरक्षा प्रदान करता है, इसे सूखा या नमी से बचाता है, और आक्रमणकारी जीवों से बचाता है।
(iv) इसमें स्केलेरिड अनुपस्थित होते हैं।(iv) कोशिकाएँ स्केलेरिड से भरपूर होती हैं।
(v) यह पूर्व-निषेचित संरचना है।(v) यह निषेचन के बाद की संरचना है।

(घ) परिभ्रूण पोष एवं फल भित्ति।

उत्तर: 

परिभ्रूणफल भित्ति
(i) यह बीज में अप्रयुक्त बीजांडकाय है।(i)यह फल का आवरण है जो अंडाशय की दीवार से विकसित होता है।
(ii) यह बीज को सुरक्षा प्रदान करती है और बीज के आसपास का पोषण देने का काम करती है।(ii) यह फल को संरक्षित करती है, इसे प्रोटेक्ट करती है और बीज के लिए पोषक तत्वों की आपूर्ति करती है।
(iii) यह अक्सर बीज के लिए अक्रियाशील होता है।(iii) यह सुरक्षात्मक आवरण है और फैलाव और पोषण में भी मदद करता है।
(iv) परिभ्रूण केवल कुछ बीजों में मौजूद होता है।(iv) यह सभी फलों में पाया जाता है।
(v) यह बीज का एक भाग है।(v) यह फल का एक भाग है।

14. एक सेव को आभासी फल क्यों कहते हैं? पुष्प का कौन सा भाग फल की रचना करता है।

उत्तर: वनस्पति विज्ञान में पूर्ण विकसित अंडाशय को वास्तविक फल कहा जाता है। जिन फलों में अंडाशय के साथ पुष्पासन और अन्य पुष्प भाग विकसित होते हैं, उन्हें आभासी फल कहा जाता है। उदाहरण के लिए, सेब, स्ट्रॉबेरी, काजू, आदि। सेब में, फल का मुख्य खाद्य भाग गूदेदार पुष्पासन होता है। अंडाशय निषेचन के बाद या अनिषेक फलन में निषेचन के बिना फल बनाता है।

15. विपुंसन से क्या तात्पर्य है? एक पादप प्रजनक कब और क्यों इस तकनीक का प्रयोग करता है?

उत्तर: पराग के प्रस्फुटन से पहले पुष्प कलिका से पराग कोश का निष्कासन विपुंसन (Emasculation) कहलाता है। एक पादप प्रजनक इसका उपयोग वर्तिकाग्र (stigma) को अवांछित परागों से बचाने के लिए करता है। यह प्रक्रिया विशेष रूप से कृत्रिम संकरीकरण (Artificial Cross-pollination) में उपयोगी होती है, जहाँ पादप प्रजनक को केवल अपेक्षित परागों की आवश्यकता होती है, ताकि पादप के गुणसूत्रों का मिलाजुला और नियंत्रित संकरण हो सके।

16. यदि कोई व्यक्ति वृद्धिकारकों का प्रयोग करते हुए अनिषेकजनन को प्रेरित करता है तो आप प्रेरित अनिषेक जनन के लिए कौन सा फल चुनते और क्यों?

उत्तर: अनिषेकजनन (Parthenocarpy) से उत्पन्न फल बीज रहित होते हैं, क्योंकि ये अंडाशय से निषेचन के बिना विकसित होते हैं। इस प्रक्रिया के माध्यम से ऐसे फलों का उत्पादन किया जाता है जो उपभोग के लिए अधिक उपयुक्त होते हैं, विशेषकर जब बीजों की अनुपस्थिति वांछनीय होती है। केला, अंगूर, संतरा, अनानास, अमरूद, तरबूज और नींबू जैसे फल अनिषेकजनन के लिए उपयुक्त माने जाते हैं क्योंकि इनकी बीज रहित किस्मों का उच्च आर्थिक मूल्य होता है। इसके विपरीत, वे फल जिनमें बीज या उनके भाग खाने योग्य होते हैं (जैसे कि अनार), अनिषेकजनन प्रेरित करने के लिए उपयुक्त नहीं माने जाते।

17. परागकण भित्ति रचना में टेपीटम की भूमिका की व्याख्या करें।

उत्तर: टेपीटम परागकोश (एन्थर) की सबसे अंदरूनी परत होती है, जिसकी कोशिकाएँ बड़े नाभिक और घने कोशिकाद्रव्य से युक्त होती हैं। यह परत अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि यह बाहर से पोषण प्राप्त करके उसे अंदर विकसित हो रहे लघुबीजाणुओं (परागकणों) तक पहुँचाती है। जैसे-जैसे पराग विकसित होते हैं, टेपीटम की कोशिकाएँ विघटित हो जाती हैं और पराग को आवश्यक पोषण, हार्मोन और एंजाइम प्रदान करती हैं।

टेपीटम की मुख्य भूमिका परागकणों को पोषक तत्वों की आपूर्ति करना है, लेकिन यह कुछ विशिष्ट रसायनों का भी स्राव करता है, जो पराग विकास में अत्यंत सहायक होते हैं:

(i) केलाज एंजाइम: टेपीटम द्वारा स्रावित यह एंजाइम ‘कैलोज़’ नामक पदार्थ को घोलता है, जो पराग चतुष्क (टेट्रैड) के चारों परागकणों को एक साथ बाँधे रहता है। इस एंजाइम की मदद से ये कण स्वतंत्र होकर अलग-अलग परागकण बन जाते हैं।

(ii) यूबिश बॉडीज: ये वसा-आधारित गोलाकार संरचनाएँ होती हैं, जो स्पोरोपोलेनिन नामक अत्यंत मजबूत पदार्थ से ढकी होती हैं। यूबिश बॉडीज परागकण की बाहरी दीवार (एक्साइन) को मजबूत और संरक्षित बनाती हैं। इनका निर्माण विशेष रूप से ग्रंथि-सदृश टेपीटम द्वारा किया जाता है।

(iii) परागकण पदार्थ (पोलिनकिट): यह एक तेलीय, चिपचिपा और इलेक्ट्रॉन-घना पदार्थ होता है, जो टेपीटम से स्रावित होता है। यह विशेष रूप से कीट-परागण वाले पौधों में परागकण की सबसे बाहरी परत बनाता है, जिससे परागकण कीटों के शरीर से आसानी से चिपक जाते हैं और परागण की प्रक्रिया सुगम होती है।

18. असंगजनन क्या है और इसका क्या महत्त्व है?

उत्तर: असंगजनन बिना निषेचन के बीज के अलैंगिक उत्पादन की प्रक्रिया है।

महत्व:

(i) यह बीज उत्पादन की एक कम लागत वाली और प्रभावी विधि होती है।

(ii) संगजनन से तैयार किए गए संकर बीजों का उपयोग किसी भी समय किया जा सकता है, क्योंकि ये लक्षणों में स्थिर होते हैं।

(iii) पौधों के प्रजनन में इसका बहुत अच्छा उपयोग होता है, विशेष रूप से जब किसी पादप के विशिष्ट लक्षणों को संरक्षित करना होता है। यह विधि कृषि में उन पौधों को बनाने में सहायक होती है जिनकी विशेषताएँ एक जैसे रहती हैं, जिससे उत्पादन में स्थिरता आती है।

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