NIOS Class 12 Political Science Chapter 7 राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांत तथा मौलिक कर्तव्य

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NIOS Class 12 Political Science Chapter 7 राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांत तथा मौलिक कर्तव्य

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Chapter: 7

मॉड्यूल – 2 भारतीय संविधान के मुख्य तत्व

पाठगत प्रश्न 7.1

1. निम्नलिखित में से गांधीवादी, आर्थिक तथा सामाजिक और विविध प्रकार के नीति-निर्देशक सिद्धांतों को अलग-अलग छाँटिए।

(i) कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना।

उत्तर: गांधीवादी।

(ii) महिलाओं और पुरुषों के लिए आजीविका के प्रर्याप्त साधन जुटाना।

उत्तर: आर्थिक तथा सामाजिक।

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(iii) कामगारों के लिए उचित पारिश्रमिक की व्यवस्था।

उत्तर: आर्थिक तथा सामाजिक।

(iv) छः साल तक के सभी बच्चों को बाल्यकाल की सुविधाएं एवं शिक्षा की व्यवस्था करना।

उत्तर: आर्थिक तथा सामाजिक।

(v) ऐतिहासिक इमारतों का संरक्षण।

उत्तर: विविध।

(vi) पर्यावरण को प्रदूषण रहित बनाना एवं वन्य जीवन का संरक्षण।

उत्तर: विविध।

पाठगत प्रश्न 7.2

1. रिक्त स्थान भरिए-

(क) स्वतंत्रता के समय भारत में शिक्षित लोगों की संख्या ________________ थी।

(i) 12%

(ii) 14%

(iii) 16%

(iv) 18%

उत्तर: (ii) 14%

(ख) राष्ट्रीय शिक्षा नीति का आरंभ _______________ में किया गया।

(i) 1984

(ii) 1986

(iii) 1988

(iv) 1989

उत्तर: (ii) 1986

(ग) बच्चों के शोषण के विरुद्ध प्रावधान ______________ के अंतर्गत किया गया।

(i) मौलिक अधिकारों।

(ii) नीति-निर्देशक सिद्धांतों।

(iii) मौलिक कर्त्तव्यों।

उत्तर: (i) मौलिक अधिकारों।

(घ) महिला-पुरुष के लिए समान कार्य के लिए समान वेतन दिए जाने का प्रबंध _______________ के अंतर्गत किया गया है।

(i) मौलिक अधिकारों।

(ii) मौलिक कर्तव्यों।

(iii) नीति-निर्देशक सिद्धांतों।

उत्तर: (iii) नीति-निर्देशक सिद्धांतों।

पाठगत प्रश्न 7.3

1. रिक्त स्थान भरिए-

(i) एक ______________ राज्य समाज के कमजोर वर्ग के लोगों के कल्याण के लिए अपनी सेवाएं देने की जिम्मेदारी लेता है। (समाजवादी/कल्याणकारी/धर्मार्थ)

उत्तर: एक कल्याणकारी राज्य समाज के कमजोर वर्ग के लोगों के कल्याण के लिए अपनी सेवाएं देने की जिम्मेदारी लेता है।

(ii) सरकार ने संपत्ति का _______________ बंटवारा करने का प्रयत्न किया है। (समान/असमान/सम्माननीय)

उत्तर: सरकार ने संपत्ति का सम्माननीय बंटवारा करने का प्रयत्न किया है।

(iii) भारत में ______________ प्रणाली का उन्मूलन कर दिया गया है। (पूंजीवादी/जमींदारी/जातिवाद)

उत्तर: भारत में जमींदारी प्रणाली का उन्मूलन कर दिया गया है।

(iv) खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड की स्थापना ______________ उद्योग को प्रोत्साहन देने के लिए किया गया है। (लघु/मध्यम/कुटीर)

उत्तर: खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड की स्थापना लघु उद्योग को प्रोत्साहन देने के लिए किया गया है।

(v) संविधान के ______________ संशोधन द्वारा पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा दिया गया है। (71वां/72वां/73वां)

उत्तर: संविधान के 73वां संशोधन द्वारा पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा दिया गया है।

पाठगत प्रश्न 7.4

1. रिक्त स्थान भरिए-

(क) मौलिक अधिकारों का उद्देश्य हर ______________ का विकास करना है। (परिवार, गुट, व्यक्ति)

उत्तर: मौलिक अधिकारों का उद्देश्य हर व्यक्ति का विकास करना है।

(ख) नीति-निर्देशक सिद्धांतों की प्रकृति _______________ है। (नकारात्मक, सकारात्मक, तटस्थ)

उत्तर: नीति-निर्देशक सिद्धांतों की प्रकृति सकारात्मक है।

(ग) निर्देशक तत्वों का उद्देश्य _________________ लोकतंत्र की स्थापना है। (राजनीतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक-आर्थिक)

उत्तर: निर्देशक तत्वों का उद्देश्य सामाजिक-आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना है।

(घ) मौलिक अधिकार और नीति-निर्देशक तत्वों के बीच ________________ संबंध है। (घनिष्ठ, अप्रत्यक्ष)

उत्तर: मौलिक अधिकार और नीति-निर्देशक तत्वों के बीच घनिष्ठ संबंध है।

पाठगत प्रश्न 7.5

1. हर प्रश्न का उत्तर उसके सामने (हां) या (नहीं) में दीजिए।

(i) अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।

उत्तर: हां।

(ii) मौलिक कर्तव्य मौलिक संविधान में थे।

उत्तर: नहीं।

(iii) मौलिक कर्तव्यों का मौलिक अधिकारों के साथ उल्लेख किया गया है।

उत्तर: नहीं।

(iv) अब कुल दस मौलिक कर्तव्य हैं।

उत्तर: नहीं।

पाठगत प्रश्न 7.6

1. सही शब्द चुनकर लिखिए:

(i) मौलिक कर्तव्य न्याययोग्य/न्यायअयोग्य हैं।

उत्तर: मौलिक कर्तव्य न्यायअयोग्य हैं।

(ii) ये कर्तव्य बहुत ही स्पष्ट/अस्पष्ट हैं।

उत्तर: ये कर्तव्य बहुत ही अस्पष्ट हैं।

पाठांत प्रश्न

1. राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांतों की प्रकृति का मूल्याकंन कीजिए। इनके पीछे क्या शक्ति है?

उत्तर: राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांतों की प्रकृति अन्याययोग्य (non-justiciable) होने के बावजूद अत्यंत महत्वपूर्ण है। ये सिद्धांत केंद्र और राज्य सरकारों को प्रशासन चलाने के लिए दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं। इनका मुख्य उद्देश्य देश में आर्थिक न्याय की स्थापना, धन के अत्यधिक संचय को रोकना, तथा कल्याणकारी राज्य (Welfare State) की स्थापना करना है।

हालाँकि अदालत में इन सिद्धांतों को लागू करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, फिर भी इनके पीछे एक नैतिक शक्ति (Moral Force) कार्य करती है। यही नैतिक शक्ति सरकारों को बाध्य करती है कि वे किसी भी नीति या निर्णय लेते समय इन सिद्धांतों को ध्यान में रखें और उनकी अवहेलना न करें।

इस प्रकार, नीति-निर्देशक सिद्धांतों की प्रकृति मार्गदर्शक, कल्याणकारी, तथा नैतिक बल से युक्त है, जो वर्तमान और भावी सरकारों को देशहित में नीति निर्माण के लिए प्रेरित करती है।

2. राज्यों के नीति-निर्देशक सिद्धांतों के वर्गीकरण की विवेचना कीजिए।

उत्तर: राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांतों का वर्गीकरण संविधान में उनके उद्देश्य और प्रकृति के अनुसार चार प्रमुख श्रेणियों में किया गया है। प्रत्येक वर्ग समाज के अलग-अलग क्षेत्रों में राज्य की जिम्मेदारियाँ निर्धारित करता है।

(i) आर्थिक और सामाजिक सिद्धांत: इन सिद्धांतों का उद्देश्य नागरिकों के सामाजिक एवं आर्थिक कल्याण को सुनिश्चित करना है। इसमें सभी के लिए आजीविका के साधन जुटाना, समान कार्य के लिए समान वेतन देना, आर्थिक असमानता को रोकना, कामगारों को सुरक्षित और मानवीय कार्य-परिस्थिति देना, बच्चों को शोषण से बचाना, सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार की व्यवस्था और कामगारों के हितों को बढ़ावा देना शामिल है।

(ii) गांधीवादी सिद्धांत: ये सिद्धांत महात्मा गांधी के आदर्शों पर आधारित हैं। इनमें गाँवों में पंचायतों की स्थापना, कुटीर उद्योगों को बढ़ावा, नशे और शराब पर प्रतिबंध, तथा दुधारू पशुओं की नस्ल-सुधार और उनके वध पर रोक जैसे उपाय शामिल हैं।

(iii) अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा से संबंधित सिद्धांत: इस वर्ग में भारत को वैश्विक शांति, सुरक्षा और न्याय को बढ़ावा देने के लिए निर्देश दिए गए हैं। इसमें अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में सम्मानजनक व्यवहार, संधियों और अंतर्राष्ट्रीय कानून का पालन तथा विवादों को आपसी समझौते से सुलझाने का प्रावधान है।

(iv) विविध सिद्धांत: इस श्रेणी में राज्य को समान नागरिक संहिता लागू करने, ऐतिहासिक धरोहरों और पर्यावरण का संरक्षण करने, वन्य जीवन की रक्षा करने तथा गरीबों और जरूरतमंदों को निःशुल्क कानूनी सहायता प्रदान करने जैसे निर्देश दिए गए हैं।

3. शिक्षा की सार्वभौमिकता के नीति-निर्देशक सिद्धांत को किस तरह लागू किया गया है?

उत्तर: शिक्षा की सार्वभौमिकता से संबंधित नीति-निर्देशक सिद्धांत को लागू करने के लिए सरकार ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। संविधान ने राज्य को निर्देश दिया था कि 14 वर्ष की आयु तक के बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराई जाए। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए सरकार ने प्राथमिक शिक्षा के विस्तार पर विशेष जोर दिया।

1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अंतर्गत राष्ट्रीय साक्षरता अभियान और ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड जैसी योजनाएँ शुरू की गईं, ताकि साधारण लोगों तक प्राथमिक शिक्षा पहुँच सके। जो लोग बचपन में शिक्षा से वंचित रह गए, उनके लिए रात्रि पाठशालाएँ और वयस्क शिक्षा केन्द्र खोले गए। इसके साथ ही शिक्षा की व्यापकता सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (NIOS) और कई मुक्त विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई, ताकि सभी आयु वर्ग के लोग शिक्षा प्राप्त कर सकें।

सबसे महत्वपूर्ण कदम 2002 में उठाया गया, जब छियासठवाँ संविधान संशोधन (86th Amendment) द्वारा 14 वर्ष तक के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने को धारा 21A के अंतर्गत मौलिक अधिकार बना दिया गया। इस प्रकार शिक्षा की सार्वभौमिकता का सिद्धांत प्रभावी रूप से लागू किया गया।

4. निम्नलिखित नीति-निर्देशक सिद्धांतों पर संक्षिप्त टिप्पणी दीजिए:

(क) बाल मज़दूरी का उन्मूलन।

उत्तर: नीति-निर्देशक सिद्धांतों के अनुसार बच्चों को स्वस्थ वातावरण, विकास के अवसर और शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार दिया गया है। इसी उद्देश्य से संविधान ने 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को किसी भी प्रकार के रोजगार में नियुक्त करने पर प्रतिबंध लगाया है।

इसके बावजूद बाल मज़दूरी पूरी तरह समाप्त नहीं हो पाई, क्योंकि निर्धनता, सामाजिक कलंक और माता-पिता की गलत सोच इस समस्या को बढ़ावा देती है। कई माता-पिता बच्चों को परिवार की आय बढ़ाने के लिए काम करने पर मजबूर करते हैं। जब तक समाज में जागरूकता और बाल संरक्षण के प्रति मजबूत इच्छा शक्ति विकसित नहीं होती, सरकारी प्रयास पर्याप्त नहीं होंगे। बच्चों को शोषण से मुक्त कर, उन्हें शिक्षा और आनंदमय बचपन देना अनिवार्य है, ताकि देश का भविष्य सुरक्षित और सशक्त हो सके।

(ख) महिलाओं के स्तर में सुधार।

उत्तर: नीति-निर्देशक सिद्धांतों के अंतर्गत राज्य को महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए विशेष प्रयास करने का निर्देश दिया गया है। भारतीय समाज पारंपरिक रूप से पुरुष प्रधान रहा है, जिसके कारण सामाजिक प्रथाएँ जैसे पर्दा, दहेज और धार्मिक मान्यताएँ महिलाओं की स्थिति को कमजोर करती रही हैं। संविधान ने महिलाओं को समान अधिकार, शिक्षा, आजीविका के अवसर तथा समान कार्य के लिए समान वेतन का अधिकार प्रदान किया है। महिला कामगारों के लिए स्वास्थ्य सुविधाएँ और प्रसूति अवकाश की व्यवस्था भी की गई है।

महिलाओं के सम्मान और सुरक्षा के लिए कानून बनाए गए हैं— जैसे दहेज प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या, कन्यावध, बाल विवाह, सती प्रथा और घरेलू हिंसा पर रोक। साथ ही संपत्ति में महिलाओं का हिस्सा सुनिश्चित किया गया है। महिला सशक्तीकरण को मजबूत बनाने के लिए 73वें और 74वें संविधान संशोधन के द्वारा पंचायतों और नगरपालिकाओं में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटों का आरक्षण किया गया।

इन सभी उपायों से महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ है, हालांकि पूर्ण समानता और कल्याणकारी राज्य की स्थापना के लिए अभी भी अधिक कदम उठाना आवश्यक है।

5. नीति-निर्देशक सिद्धांतों को क्रियान्वित करने में राज्य की क्या भूमिका है?

उत्तर: नीति-निर्देशक सिद्धांतों को क्रियान्वित करने में राज्य की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। यद्यपि ये सिद्धांत न्यायालय द्वारा लागू नहीं कराए जा सकते, फिर भी राज्य इनका पालन करने के लिए नैतिक रूप से बाध्य है, क्योंकि ये जनमत का दर्पण हैं और संविधान की प्रस्तावना की आत्मा माने जाते हैं। राज्य का मुख्य दायित्व है कि सीमित संसाधनों के बावजूद सामाजिक और आर्थिक न्याय स्थापित करने के लिए निरंतर प्रयास करता रहे।

राज्य ने कई कदम उठाकर इन सिद्धांतों को व्यवहार में उतारा है, जैसे—

(i) भूमि सुधार, जागीरदारी और जमींदारी का उन्मूलन।

(ii) औद्योगीकरण तथा हरित क्रांति के द्वारा कृषि उत्पादन बढ़ाना।

(iii) महिलाओं के कल्याण के लिए राष्ट्रीय आयोग की स्थापना।

(iv) भू-हदबंदी, प्रिवी पर्स का उन्मूलन, बीमा और बैंकों का राष्ट्रीयकरण।

(v) संपत्ति का अधिकार मौलिक अधिकारों की सूची से हटाकर आर्थिक विषमता कम करना।

(vi) जन वितरण प्रणाली द्वारा निर्धनों की सहायता।

(vii) समान कार्य के लिए समान वेतन लागू करना।

(viii) छूआछूत का उन्मूलन और SC/ST/OBC के उत्थान के लिए उपाय।

(ix) पंचायतों को संवैधानिक दर्जा देकर स्थानीय स्वशासन को सशक्त करना।

(x) ग्रामीण उद्योगों को बढ़ावा देना।

(xi) अंतर्राष्ट्रीय शांति के लिए संयुक्त राष्ट्र के साथ सहयोग।

इन सब प्रयासों से स्पष्ट होता है कि राज्य नीति-निर्देशक सिद्धांतों को लागू करने की दिशा में निरंतर कार्यरत है। हालांकि राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी, जनता में जागरूकता का अभाव और सीमित संसाधन जैसी बाधाएँ अभी भी मौजूद हैं, फिर भी राज्य का दायित्व है कि वह इन सिद्धांतों के अनुरूप लोक-कल्याणकारी राज्य की स्थापना में अपनी भूमिका निभाता रहे।

6. मौलिक अधिकारों और राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांतों के पारस्परिक संबंध का संक्षेप में वर्णन कीजिए।

उत्तर: मौलिक अधिकार और राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांत एक-दूसरे के पूरक हैं। मौलिक अधिकार जहाँ राजनीतिक लोकतंत्र को स्थापित करते हैं, वहीं नीति-निर्देशक सिद्धांत देश में सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र की नींव रखते हैं। यद्यपि नीति-निर्देशक सिद्धांत न्यायालय द्वारा लागू नहीं कराए जा सकते, फिर भी सरकार इनके बिना नीति-निर्माण नहीं कर सकती, क्योंकि यह सिद्धांत जनमत की अंतिम स्वीकृति का प्रतिनिधित्व करते हैं। यदि कोई सरकार इन सिद्धांतों की उपेक्षा करती है तो जनता उसे पुनः सत्ता में आने से रोक सकती है।

इस प्रकार संविधान ने मौलिक अधिकारों और नीति-निर्देशक सिद्धांतों के बीच एक संतुलन और समन्वय स्थापित किया है। दोनों मिलकर भारतीय संविधान की मूल भावना का निर्माण करते हैं और राष्ट्र को संपूर्ण, न्यायपूर्ण तथा कल्याणकारी बनाने में योगदान देते हैं।

7. हमारे संविधान में वर्णित मौलिक कर्तव्यों को सूचीबद्ध करें।

उत्तर: हमारे संविधान में निम्नलिखित मौलिक कर्तव्यों का वर्णन किया गया है—

(i) संविधान का पालन करें तथा राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का आदर करें।

(ii) ऐसे आदशों का अनुसरण करें, जिनसे स्वतंत्रता आंदोलन को प्रोत्साहन मिलता था।

(iii) भारत की एकता और अखंडता की रक्षा करें।

(iv) जब भी आवश्यकता पड़े तो देश की रक्षा करें।

(v) सभी वर्गों के लोगों में भ्रातृत्व और समरसता की भावना बढ़ाएं और स्त्रियों की प्रतिष्ठा का आदर करें।

(vi) अपनी गौरवशाली परंपरा और समरस संस्कृति को बनाए रखें।

(vii) प्राकृतिक पर्यावरण जिसमें वन, नदियां, झील और जगत के जीव-जंतु शामिल हैं, का संरक्षण एवं सुधार करना।

(viii) मानववाद और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास।

(ix) सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना और हिंसा का प्रयोग न करना।

(x) व्यक्तिगत और सामूहिक कार्यकलाप के हर क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए प्रयास करना।

(xi) 6 से 14 वर्ष की आयु तक के बच्चों को उनके माता-पिता या अभिभावक द्वारा शिक्षा का अवसर प्रदान करना (86 संविधान संशोधन, 2002, धारा 51 A अनुभाग (K)]।

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