NIOS Class 12 Political Science Chapter 35 राजनीतिक कार्यकारिणी तथा नोकरशाही

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Chapter: 35

वैकल्पिक मॉड्यूल – 2 भारत की प्रशासनिक व्यवस्था

पाठगत प्रश्न 35.1

1. रिक्त स्थान भरिए-

(क) संसदीय व्यवस्था _______________ और _______________ कार्यकारिणी के दो खंभों पर टिका है। (सामाजिक/राजनैतिक/आर्थिक/प्रशासनिक)

उत्तर: संसदीय व्यवस्था राजनैतिक और प्रशासनिक कार्यकारिणी के दो खंभों पर टिका है।

(ख) प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद ________________ कोटि में आते हैं। (सामाजिक/आर्थिक/राजनैतिक)

उत्तर: प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद राजनैतिक कोटि में आते हैं।

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(ग) राजनैतिक कार्यकारिणी का मुख्य काम ________________ है। (निर्णय लेना/फिल्म बनाना)

उत्तर: राजनैतिक कार्यकारिणी का मुख्य काम निर्णय लेना है।

(घ) प्रशासनिक कार्यकारिणी का मुख्य काम _______________ है। (नितियों को लागू करना/चुनाव प्रचार करना)

उत्तर: प्रशासनिक कार्यकारिणी का मुख्य काम नितियों को लागू करना है।

(ङ) नौकरशाही के प्रत्यय का विकास सर्वप्रथम जर्मन दार्शनिक ________________ ने किया था। (कार्ल मार्क्स/मैक्स वेबर)

उत्तर: नौकरशाही के प्रत्यय का विकास सर्वप्रथम जर्मन दार्शनिक मैक्स वेबर ने किया था।

(च) मैक्स वेबर ने नौकरशाही को सरकार के सबसे _________________ और _________________ के रूप से व्याख्यायित किया हैं। (सड़ा/कार्यकुशल/धीरे/विवेकसंगत)

उत्तर: मैक्स वेबर ने नौकरशाही को सरकार के सबसे कार्यकुशल और विवेकसंगत के रूप से व्याख्यायित किया हैं।

पाठगत प्रश्न 35.2

1. रिक्त स्थान भरिए-

(क) ________________ ही वह मुख्य व्यवस्था है जिसके द्वारा राज्य अपने विकास कार्यक्रमों को लागू करता है।

उत्तर: नौकरशाही ही वह मुख्य व्यवस्था है जिसके द्वारा राज्य अपने विकास कार्यक्रमों को लागू करता है।

(ख) नौकरशाही सिर्फ ________________ क्रियाकलाप ही नहीं करती है। वह _______________ गतिवियिां भी करती है।

उत्तर: नौकरशाही सिर्फ नियामक क्रियाकलाप ही नहीं करती है। वह कल्याणकारी गतिवियिां भी करती है।

पाठगत प्रश्न 35.3

1. रिक्त स्थान भरिए-

(क) सरकारी प्रशासन का परम्परागत विचार ________________ और _________________ के द्विभाजन पर आधारित है।

उत्तर: सरकारी प्रशासन का परम्परागत विचार प्रशासन और राजनीति के द्विभाजन पर आधारित है।

(ख) _______________ का सिद्धांत सरकारी सेवा को किसी भी प्रकार के ________________ से अलग करता है।

उत्तर: तटस्थता का सिद्धांत सरकारी सेवा को किसी भी प्रकार के राजनीतिकरण से अलग करता है।

(ग) भारत में सरकारी सेवाओं के नियमों में सरकारी कर्मचारियों के लिए राजनीति में भाग लेना _______________ है।

उत्तर: भारत में सरकारी सेवाओं के नियमों में सरकारी कर्मचारियों के लिए राजनीति में भाग लेना प्रतिबंधित है।

(घ) अब यह स्वीकृत तथ्य है कि नौकरशाही नीतियां _______________ और नीतियां ________________ दोनों में अपना योगदान करती है।

उत्तर: अब यह स्वीकृत तथ्य है कि नौकरशाही नीतियां बनाना और नीतियां लागू करना दोनों में अपना योगदान करती है।

(ङ) ऐसा कम ही होता है कि मंत्री अपने काम/क्षेत्र के विशेषज्ञ हों, अतः तथ्यों व सलाहों के लिए वे _______________ पर भरोसा करने को विवश होते हैं।

उत्तर: ऐसा कम ही होता है कि मंत्री अपने काम/क्षेत्र के विशेषज्ञ हों, अतः तथ्यों व सलाहों के लिए वे नौकरशाही पर भरोसा करने को विवश होते हैं।

(च) _______________ ने भारतीय नौकरशाही को एक बड़ा अवरोध बताया और _______________ नौकरशाही की शुरुआत करने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया।

उत्तर: इंदिरा गांधी ने भारतीय नौकरशाही को एक बड़ा अवरोध बताया और प्रतिबद्ध नौकरशाही की शुरुआत करने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया।

(छ) विकास की आवश्यकताओं और कार्यक्रमों के निष्पादन में पर्याप्त न कर पाने की वजह से नहीं बल्कि _______________ की वजह से नौकरशाही की आलोचना हुई।

उत्तर: विकास की आवश्यकताओं और कार्यक्रमों के निष्पादन में पर्याप्त न कर पाने की वजह से नहीं बल्कि प्रतिबद्धता की वजह से नौकरशाही की आलोचना हुई।

पाठांत प्रश्न

1. नौकरशाही की क्या परिभाषा है?

उत्तर: नौकरशाही एक विशिष्ट प्रकार की सामाजिक संगठन है, जिसमें प्रशासनिक कार्य शामिल होते हैं। यह सरकार को चलाने के लिए आवश्यक एक तंत्र है और आधुनिक शासन का मुख्य उपकरण माना जाता है। नौकरशाही वह व्यवस्था है जिसके माध्यम से बड़ी और जटिल सरकारी मशीनरी को संगठित अधिकारियों के समूह द्वारा चलाया जाता है। कई विद्वानों ने इसे सरकार का चौथा अंग भी कहा है।

जर्मन समाज विज्ञानी मैक्स वेबर के अनुसार नौकरशाही संगठन का सबसे बुद्धिमान, दक्ष और तकनीकी रूप से श्रेष्ठ स्वरूप है, जिसमें निश्चित अधिकार-क्षेत्र, अधिक्रमिक व्यवस्था, लिखित नियम, तटस्थता और सभी पर समान रूप से लागू होने वाले नियम शामिल होते हैं।

2. विकास में नौकरशाही की भूमिका को परिभाषित करें?

उत्तर: नौकरशाही विकास प्रक्रिया की मुख्य एजेंसी है, जो राष्ट्र-निर्माण और सामाजिक-आर्थिक उन्नति में केन्द्रीय भूमिका निभाती है। विकासशील देशों में स्वास्थ्य, शिक्षा, आधारभूत संरचना, सड़क, बिजली, उद्योग और कृषि जैसे बड़े व जटिल कार्यों को संचालित करना सरकार की जिम्मेदारी है, और इन सभी को प्रभावी रूप से लागू करने में नौकरशाही की निर्णायक भूमिका होती है।

नौकरशाही विकास में सलाहकार, निर्माता और निर्णायक मंडल की तरह कार्य करती है। यह समाज में उपयुक्त वातावरण तैयार करती है, प्रोत्साहन देती है, स्वस्थ प्रतिस्पर्धा और आत्म-विकास को बढ़ावा देती है तथा योग्य नेतृत्व के माध्यम से संस्थागत प्रबंधन को सुदृढ़ बनाती है। साथ ही यह नीचे के स्तर तक अधिकार सौंपकर प्रशासन को सक्रिय और जीवंत बनाती है।

नौकरशाही वह उपकरण और प्रक्रियाएँ तैयार करती है जिनके माध्यम से राज्य अपने विकास लक्ष्यों को पहचानता और पूरा करता है। कोई भी योजना तभी सफल हो सकती है जब उसे प्रशासनिक स्तर पर सही तरीके से लागू किया जाए और इसके लिए सक्षम व उच्चस्तरीय नौकरशाही आवश्यक है।

3. वेबर के नौकरशाही मॉडल के मुख्य लक्षण क्या हैं?

उत्तर: वेबर द्वारा बताए गए नौकरशाही के आदर्श मॉडल के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं—

(i) निश्चित अधिकार-क्षेत्र: सरकारी अधिकारियों का कार्य स्पष्ट रूप से निर्धारित अधिकार-क्षेत्र में बँधा होता है।

(ii) अधिक्रमिक व्यवस्था: कार्यालयों की एक पिरामिडनुमा व्यवस्था होती है, जहाँ हर कनिष्ठ अधिकारी किसी वरिष्ठ के नियंत्रण में होता है।

(iii) लिखित दस्तावेज़ों का उपयोग: कामकाज लिखित नियमों और फाइलों के आधार पर किया जाता है, ताकि हर परिस्थिति में एक समान नियम लागू हों।

(iv) अस्पष्ट लेकिन संरचित व्यवस्था: यह एक ऐसी प्रणाली है जिसकी संपूर्ण कार्यप्रणाली स्पष्ट नहीं होती, लेकिन उसका ढाँचा व्यवस्थित होता है।

(v) समान रूप से लागू होने वाले नियम: सभी नियम सभी व्यक्तियों पर समान रूप से लागू होते हैं; किसी विशेष व्यक्ति के लिए अलग नियम नहीं होते।

(vi) राजनीतिक तटस्थता: नौकरशाही पूरी तरह से राजनीतिक रूप से निष्पक्ष और तटस्थ मानी जाती है।

4. राजनीति-नौकरशाही द्विभाजन के सिद्धांत के विषय में बताएं।

उत्तर: राजनीति–नौकरशाही द्विभाजन का सिद्धांत यह मानता है कि राजनीति और प्रशासन के कार्यों को स्पष्ट रूप से अलग रखा जाना चाहिए। राजनीति और नीति-निर्माण का कार्य निर्वाचित वैधानिक निकायों का होता है, जबकि प्रशासन का कार्य उन नीतियों को ईमानदारी और तटस्थता से लागू करना है।

इस सिद्धांत के अनुसार— राजनीतिज्ञ नीतियां बनाते हैं और नौकरशाह या प्रशासक उन नीतियों को लागू करते हैं। नौकरशाह अपने राजनीतिक प्रमुख का सलाहकार होता है; वह तथ्यों को प्रस्तुत करता है, विकल्प बताता है, और विभिन्न नीतियों के क्रियान्वयन के रास्ते सुझाता है। लेकिन अंतिम निर्णय राजनेताओं का विशेषाधिकार होता है।

वेबर के नौकरशाही मॉडल में तटस्थता, गुमनामी और पेशेवर निष्पक्षता मूलभूत सिद्धांत हैं। इसी कारण भारत सहित कई देशों में सरकारी कर्मचारियों को राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने की अनुमति नहीं होती। वे किसी दल में शामिल नहीं हो सकते, चुनाव प्रचार या आंदोलन में हिस्सा नहीं ले सकते, और न ही राजनीतिक विचार सार्वजनिक रूप से व्यक्त कर सकते हैं।

5. तटस्था की अवधारणा को कम करने वाले का कारकों को बताएं।

उत्तर: तटस्थता की अवधारणा को कम करने वाले मुख्य कारक है—

(i) नीति निर्माण में नौकरशाही की बढ़ती भूमिका: कानून अस्पष्ट होते हैं और मंत्री विशेषज्ञ नहीं होते, इसलिए नौकरशाह ही नीतियाँ बनाने में अहम भूमिका निभाने लगे। इससे उनकी तटस्थता कम हुई।

(ii) गठबंधन राजनीति का प्रभाव: गठबंधन सरकारों में मंत्री राजनीतिक सौदों में व्यस्त रहते हैं, दिशा नहीं दे पाते और निर्णय नौकरशाहों को लेने पड़ते हैं। इससे नौकरशाही का राजनीतिकरण बढ़ा।

(iii) समाज की विविधता और विकास की आवश्यकताएँ: भारत जैसे विविध समाज में तटस्थ रहना मुश्किल है। बड़े विकास कार्यक्रमों में नौकरशाहों को मूल्य-आधारित निर्णय लेने पड़ते हैं, जिससे तटस्थता घटती है।

6. प्रतिबद्ध नौकरशाही से आपका क्या आशय है? क्या यह भारत के लिए आवश्यक है?

उत्तर: प्रतिबद्ध नौकरशाही से आशय ऐसी प्रशासनिक सेवा से है जो केवल तटस्थ, गुमनाम और नियम-प्रधान न होकर राष्ट्रीय लक्ष्यों, सामाजिक जरूरतों और देश के विकास के प्रति समर्पित हो। इंदिरा गांधी के अनुसार पारम्परिक वेबरियन तटस्थ नौकरशाही भारत जैसे विकासशील देश में आवश्यक सामाजिक-आर्थिक बदलाव लाने में सक्षम नहीं है, इसलिए प्रशासन का राष्ट्रहित के प्रति प्रतिबद्ध होना जरूरी है।

हाँ प्रतिबद्ध नौकरशाही भारत के लिए आवश्यक मानी गई है क्योंकि—

(i) तटस्थ नौकरशाही विकास की तीव्र आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पाती।

(ii) भारत को ऐसी प्रशासनिक व्यवस्था चाहिए जो देश के विकास, सामाजिक संवेदनशीलता और जनता की जरूरतों के प्रति उत्तरदायी हो।

(iii) प्रतिबद्धता का अर्थ राजनीतिक दल से जुड़ाव नहीं, बल्कि राष्ट्रहित और विकासात्मक लक्ष्यों के प्रति समर्पण है।

यदि नौकरशाही राजनीतिक रूप से नहीं, बल्कि सामाजिक रूप से संवेदनशील बने, तो यह तटस्थ और संवेदनहीन मॉडल से अधिक उपयोगी है।

7. मंत्री और सरकारी कर्मचारियों के संबंधों में दबावों के कारण बताएं।

उत्तर: मंत्री और सरकारी कर्मचारियों (नौकरशाही) के संबंधों में दबाव कई कारणों से उत्पन्न होते हैं—

(i) राजनीतिक दखलंदाजी: प्रशासनिक कार्यों में लगातार राजनीतिक हस्तक्षेप होने से नौकरशाह स्वतंत्र रूप से निर्णय नहीं ले पाते। निष्पक्ष प्रशासन और राजनीतिक दखलंदाजी साथ-साथ नहीं चल सकते।

(ii) नौकरशाहों पर आज्ञाकारी बनने का दबाव: राजनेता स्वयं को जनता का वास्तविक प्रतिनिधि मानते हैं और अपनी वरिष्ठता के कारण नौकरशाहों पर अपनी शर्तें लागू करते हैं।

(iii) असहयोग करने वाले अधिकारियों के लिए दंड: जो अधिकारी राजनीतिक निर्देशों के अनुरूप नहीं काम करते, वे स्थानांतरण, पदोन्नति रोक दिए जाने, दमनात्मक कार्रवाइयों या अनिवार्य सेवानिवृत्ति जैसी परेशानियों का सामना करते हैं।

(iv) राजनेताओं द्वारा प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष दबाव: राजनेताओं के पास नौकरशाहों पर नियंत्रण रखने के अनेक साधन होते हैं, इसलिए अधिकारी स्वतंत्र सलाह देने से बचते हैं।

(v) कुछ अधिकारियों द्वारा राजनीतिक संरक्षण की खोज: कई प्रशासक अपना कैरियर आगे बढ़ाने के लिए राजनेताओं से संबंध बनाते हैं, जिससे राजनीतिकरण बढ़ता है और प्रशासनिक निर्भरता गहरी होती है।

(vi) राजनीतिक अस्थिरता और कमजोर नेतृत्व का फायदा उठाना: अस्थिर राजनीतिक स्थितियों में नौकरशाह कभी-कभी राजनेताओं की कमजोरियों का लाभ उठाकर स्वेच्छाचारी हो जाते हैं, जिससे दोनों पक्षों में अविश्वास पैदा होता है।

8. नौकरशाही का राजनीतिकरण किस प्रकार से राजनैतिक व्यवस्था को प्रभावित करता है?

उत्तर: नौकरशाही का राजनीतिकरण इस प्रकार से राजनीतिक व्यवस्था को प्रभावित करता है—

(i) निष्पक्ष प्रशासन खत्म होता है: राजनीतिक दखलंदाजी के कारण नौकरशाह स्वतंत्र रूप से निर्णय नहीं ले पाते और हर मुद्दे पर राजनीतिक इच्छा के अनुसार प्रतिक्रिया देते हैं।

(ii) राजनेताओं का अनुचित दबाव बढ़ जाता है: मंत्री अपने ‘प्रतिनिधि होने’ के अधिकार का उपयोग करके नौकरशाहों पर शर्तें और निर्देश थोपते हैं। विरोध करने पर स्थानांतरण, पदोन्नति रोकना या दमन जैसे हथियार इस्तेमाल किए जाते हैं।

(iii) नौकरशाही की स्वतंत्र भूमिका कमजोर होती है: शासन की वैधानिक शक्तियाँ होते हुए भी नौकरशाही पर राजनीतिक हस्तक्षेप स्थायी रहता है, जिससे उनकी पेशेवर क्षमता प्रभावित होती है।

(iv) दोनों पक्षों में संघर्ष पैदा होता है: नौकरशाही और राजनीतिक कार्यकारिणी के बीच अविश्वास और टकराव बढ़ते हैं, जिससे संस्थागत संतुलन बिगड़ता है।

(v) भ्रष्ट और चापलूसी-प्रधान संस्कृति बनती है: कुछ प्रशासक अपने कैरियर के लिए राजनीतिक ताकतों का इस्तेमाल करने लगते हैं, जिससे स्वेच्छाचार, गैर-जिम्मेदारी और राजनीतिक लाभ के लिए काम करने की प्रवृत्ति बढ़ती है।

(vi) अंततः शासन तंत्र को नुकसान होता है: लगातार हस्तक्षेप, दबाव, असंतुलन और चापलूसी के कारण प्रशासनिक दक्षता घटती है और राजनीतिक व्यवस्था कमजोर होती है।

9. मंत्री और सरकारी कर्मचारियों के संबंधों को बेहतर बनाने के लिए प्रशासनिक सुधार आयोग ने क्या सुझाव व सिफारिशें दी हैं?

उत्तर: प्रशासनिक सुधार आयोग ने मंत्रियों और सरकारी कर्मचारियों के संबंधों को बेहतर बनाने के लिए निम्नलिखित सुझावों और सिफारिशों पर ज़ोर दिया—

(क) मंत्रियों और सरकारी कर्मचारियों के संबंधों को बेहतर बनाने के लिए सुझाव: ​प्रशासनिक सुधार आयोग ने इस बात पर ज़ोर दिया कि राजनीतिक कार्यकारिणी (मंत्री) और नौकरशाही (सरकारी कर्मचारी) के बीच एक उचित संबंध होना बहुत ज़रूरी है, क्योंकि यह सरकार के बेहतर प्रशासनिक कार्य के लिए अनिवार्य है।

(ख) ​राजनीतिक कार्यकारिणी (मंत्रियों) के लिए सुझाव: ​प्रशासनिक सुधार आयोग के अनुसार, राजनीतिक कार्यकारिणी को निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए—

​(i) पेशेवरता को पहचानना: प्रशासनिक कार्यों को पूरी समझ और व्यावसायिकता स्वभाव की पूरी पहचान होनी चाहिए।

(ii) ​कम से कम हस्तक्षेप: सेवाओं से संबंधित मामलों, जैसे- पदस्थापन, स्थानान्तरण, प्रोन्नति आदि में यथासंभव कम से कम दखल देना चाहिए।

(iii) ​नीतियों का पालन: किसी भी व्यक्ति विशेष के पक्ष में निर्धारित और स्वीकृत नीतियों से हटकर काम करने का आग्रह नहीं करना चाहिए।

(iv) ​राजनीतिकरण रोकना: इन सेवाओं में राजनीतिकरण न हो इस पर ज़ोर दिया।

(ग) सरकारी कर्मचारियों (नौकरशाहों) के लिए सुझाव: ठीक उसी तरह, सरकारी कर्मचारियों को भी इन बातों का पालन करना चाहिए—

(i) ​लक्ष्यों को पाने का प्रयास: उन लक्ष्यों को पाने/ कामों को करने का गंभीर और ईमानदार प्रयास करना चाहिए जो उनके राजनैतिक प्रमुख चाहते हैं।

(ii) ​सामंजस्य स्थापित करना: अपने राजनीतिक प्रमुख की इच्छा के अनुसार नीतियों व प्रक्रियाओं के साथ ज़रूरी सामंजस्य बनाना चाहिए।

(iii) ​प्रमुख के अनुसार चलना: जब तक मतभेद का कोई बड़ा आधार न हो तब तक सभी मामलों में अपने राजनैतिक प्रमुख के अनुसार चलने को तैयार रहना चाहिए।

(iv) ​मानसिक और भावनात्मक स्वीकृति: इसका अर्थ है कि नौकरशाही को सरकारी नीतियों और उसकी विचारधारा और उस पर काम करने वालों के साथ एक मानसिक और भावनात्मक स्वीकृति होनी चाहिए।

(घ) सामान्य सिफारिशें: ​एक ऐसे प्रशासन का माहौल और संस्कृति बनाए जाने की ज़रूरत है जो मंत्रियों और सरकारी कर्मचारियों के बीच के अस्वस्थ संबंधों के विकसित होने का दृढ़ता से विरोध करेगा।

(i) आक्रामक भूमिका को रोकना: राजनीति में नौकरशाही की आक्रामक भूमिका को रोका जाए और इस बात पर नज़र रखी जाए कि प्रशासनिक मामलों में राजनेताओं का दखल न हो।

(ii) ​एक-दूसरे के काम की सराहना: सरकारी कर्मचारियों और राजनेता एक दूसरे के काम की सराहना करें बजाय इसके कि वे एक-दूसरे को हेय दृष्टि से देखें, और एक-दूसरे के विचारों को यथासंभव अपनाये।

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