NIOS Class 12 Political Science Chapter 36 लोक शिकायत तथा निवारण तंत्र

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NIOS Class 12 Political Science Chapter 36 लोक शिकायत तथा निवारण तंत्र

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Chapter: 36

वैकल्पिक मॉड्यूल – 2 भारत की प्रशासनिक व्यवस्था

पाठगत प्रश्न 36.1

1. रिक्त स्थान भरिए-

(क) नागरिकों द्वारा सरकारी तंत्र के खिलाफ दर्ज शिकायतों को सुनना तथा उसका _________________ शिकायत फोरमों द्वारा किया जाता है। (निवारण/परीक्षण)

उत्तर: नागरिकों द्वारा सरकारी तंत्र के खिलाफ दर्ज शिकायतों को सुनना तथा उसका निवारण शिकायत फोरमों द्वारा किया जाता है।

(ख) हर _________________ में लोक शिकायतों को सुनने तथा उनके निवारण के लिए एक उपयुक्त तंत्र का गठन किया जाता है। (तानाशाही/लोकतंत्र)

उत्तर: हर लोकतंत्र में लोक शिकायतों को सुनने तथा उनके निवारण के लिए एक उपयुक्त तंत्र का गठन किया जाता है।

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(ग) _________________ संगठन स्कैंडेनेविया ने स्थापित किया था। (लोकपाल/ओम्बड्समैन)

उत्तर: ओम्बड्समैन संगठन स्कैंडेनेविया ने स्थापित किया था।

(घ) भारत का कोई भी नागरिक किसी सरकारी कर्मचारी द्वारा किए गए दुर्व्यवहार के खिलाफ अपनी शिकायत _________________ में दर्ज करा सकता है। (राष्ट्रपति/अदालत)

उत्तर: भारत का कोई भी नागरिक किसी सरकारी कर्मचारी द्वारा किए गए दुर्व्यवहार के खिलाफ अपनी शिकायत अदालत में दर्ज करा सकता है।

(ङ) अपने निर्वाचन क्षेत्र से संबंधित किसी शिकायत को कोई भी सांसद _________________ में उठा सकता है। (अदालत/संसद)

उत्तर: अपने निर्वाचन क्षेत्र से संबंधित किसी शिकायत को कोई भी सांसद संसद में उठा सकता है।

(च) लोक शिकायतों के निबटारे के लिए शिकायत _________________ की व्यवस्था भी की गई है। (सेल/फोरम)

उत्तर: लोक शिकायतों के निबटारे के लिए शिकायत फोरम की व्यवस्था भी की गई है।

पाठगत प्रश्न 36.2

1. रिक्त स्थान भरिए-

(क) मंत्रियों तथा सचिवों के खिलाफ दर्ज शिकायतों के निबटारे के लिए प्रशासनिक सुधार आयोग ने _________________ तथा _________________ के गठन की सिफारिश की थी। (लोकपाल/ओम्बड्समैन/लोकायुक्त/संसदीय समितियां)

उत्तर: मंत्रियों तथा सचिवों के खिलाफ दर्ज शिकायतों के निबटारे के लिए प्रशासनिक सुधार आयोग ने लोकपाल तथा लोकायुक्त के गठन की सिफारिश की थी।

(ख) _________________ में लोक आयुक्त का गठन किया जा चुका है। (महाराष्ट्र/तमिलनाडु)

उत्तर: महाराष्ट्र में लोक आयुक्त का गठन किया जा चुका है।

(ग) _________________ समिति ने केन्द्रीय सतर्कता आयोग के गठन का सुझाव किया था। (संथानम/राधाकृष्णन)

उत्तर: संथानम समिति ने केन्द्रीय सतर्कता आयोग के गठन का सुझाव किया था।

(घ) केन्द्रीय सतर्कता आयोग की भूमिका _________________ है। (विस्तृत/सीमित)

उत्तर: केन्द्रीय सतर्कता आयोग की भूमिका विस्तृत है।

पाठांत प्रश्न

1. जनतंत्र में लोक शिकायतों का निवारण बहुत महत्वपूर्ण क्यों है?

उत्तर: (i) सरकारी सेवाओं पर जनता की निर्भरता: बैंक, अस्पताल, पोस्ट ऑफिस, राशन कार्ड जैसी अधिकांश सुविधाएँ सरकार पर निर्भर हैं, इसलिए समस्याएँ होने पर उनका समाधान आवश्यक होता है।

(ii) सेवाओं की खराब गुणवत्ता: कई सरकारी सुविधाएँ असंतोषजनक होती हैं, जिससे जनता को बार-बार परेशान होना पड़ता है।

(iii) सरकारी विभागों में कठिनाइयाँ: नियम होने के बावजूद उनका पालन ठीक से नहीं होता; देरी, लापरवाही और असहयोग के कारण जनता को नुकसान उठाना पड़ता है।

(iv) गरीबों पर सबसे ज्यादा असर: सरकारी सहायता की सबसे ज्यादा जरूरत गरीबों को होती है, इसलिए शिकायतों का निवारण न होना उनके अधिकारों का हनन है।

(v) जनतांत्रिक मूल्यों की रक्षा: लोकतंत्र में जनता की समस्याओं की जांच और समाधान जरूरी है ताकि नागरिकों का विश्वास बना रहे।

(vi) सरकार की छवि सुधारने के लिए: विभागों की लापरवाही से सरकार की बदनामी होती है, इसलिए शिकायत निवारण से प्रशासन की विश्वसनीयता बढ़ती है।

(vii) तेज़ और सस्ते न्याय की आवश्यकता: लोकतंत्र में नागरिकों को कम खर्चे में समय पर समाधान मिलना आवश्यक है, ताकि लोगों में व्यवस्था के प्रति आस्था बनी रहे।

2. लोक शिकायत के कौन-कौन से विविध निवारक उपकरण हैं?

उत्तर: लोक शिकायत के विविध निवारक उपकरण इस प्रकार है—

(i) ओम्बड्समैन: प्रशासन और न्याय संबंधी शिकायतों की जाँच करने वाली पहली संस्था। यह स्वीडन (1809), फिनलैंड, डेनमार्क, नार्वे, न्यूजीलैंड और इंग्लैंड सहित कई देशों में कार्यरत है। शिकायतें सीधे ओम्बड्समैन को भेजी जाती हैं, और यह तेज, सरल और सस्ता निवारक साधन है।

(ii) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986: यदि किसी नागरिक को वस्तु या सेवा उचित रूप में नहीं मिलती, तो वह इस कानून के तहत उपभोक्ता फोरम में शिकायत कर सकता है।

(iii) सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI), 2005: इस कानून के माध्यम से नागरिक यह जान सकते हैं कि उनकी शिकायत पर क्या कार्रवाई हुई, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित होती है।

(iv) विभिन्न कानून और प्रक्रियाएँ: प्रशासनिक भ्रष्टाचार रोकने और शिकायतों के निवारण हेतु सरकार द्वारा समय-समय पर कई कानून, नियम और प्रक्रियाएँ बनाई गई हैं।

(v) अलग-अलग देशों में बने नए संगठन: विश्व के अनेक देशों ने लोक शिकायतों की जाँच और समाधान के लिए विशेष संस्थान और आयोग स्थापित किए हैं।

3. लोकपाल तथा लोकायुक्त की क्या भूमिका होती है?

उत्तर: लोकपाल और लोकायुक्त ऐसी संस्थाएँ हैं जिनका उद्देश्य जनता द्वारा सरकार, मंत्रियों, सचिवों और अन्य उच्च प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ की गई शिकायतों की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच करना है। प्रशासनिक सुधार आयोग के अनुसार, लोकपाल केंद्र स्तर पर उच्च पदाधिकारियों के विरुद्ध दायर शिकायतों को देखता है, जबकि लोकायुक्त राज्य स्तर पर मंत्रियों, सचिवों और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ की गई शिकायतों की जांच करता है।

इन संस्थाओं का मुख्य कार्य भ्रष्टाचार, कुप्रशासन और सरकारी कर्मचारियों द्वारा जनता के साथ किए गए अन्याय की जांच करना होता है। जांच पूरी होने के बाद लोकपाल और लोकायुक्त दोषी पाए गए अधिकारियों के विरुद्ध अपनी रिपोर्ट और अनुशंसा संबंधित सक्षम अधिकारियों को भेजते हैं। हालांकि लोकायुक्त की अनुशंसाएँ बाध्यकारी नहीं होतीं, लेकिन उनका उद्देश्य प्रशासन में जवाबदेही और पारदर्शिता को बढ़ाना है। इन संस्थाओं का मूल लक्ष्य यह है कि आम नागरिक की शिकायतों का समाधान तेज, सरल और निष्पक्ष तरीके से हो, क्योंकि पहले की व्यवस्थाएँ महंगी, जटिल और देर से निर्णय देने वाली थीं।

4. केन्द्रीय सतर्कता आयोग की क्या भूमिका होती है?

उत्तर: केन्द्रीय सतर्कता आयोग की मुख्य भूमिका केंद्र सरकार और उसके अंतर्गत आने वाले सार्वजनिक उपक्रमों, निगमों तथा विभागों में हो रहे भ्रष्टाचार, कुप्रशासन और कुरीतियों की निगरानी करना है। यह आयोग नागरिकों या अन्य स्रोतों से प्राप्त शिकायतों को स्वीकार करता है और संबंधित मंत्रालयों तथा विभागों से पूछताछ करके सत्यता की जांच करवाता है। कई मामलों में यह सीबीआई को जांच की सिफारिश करता है और जांच पूरी होने पर उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर संबंधित विभाग को कार्रवाई करने के लिए कहता है।

सीवीसी मंत्रालयों और विभागों को प्रशासनिक ईमानदारी बनाए रखने के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश और सुझाव देता है। यह सारी कार्यवाही सलाहकार के रूप में होती है, क्योंकि आयोग के निर्णय बाध्यकारी नहीं होते। आयोग मंत्रालयों में मुख्य सतर्कता अधिकारियों की नियुक्ति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और सतर्कता संगठन को मजबूत बनाने से जुड़े सुझावों पर विचार करता है।

हालांकि आयोग भ्रष्टाचार पर नजर रखने की जिम्मेदारी निभाता है, फिर भी इसकी शक्तियाँ सीमित हैं क्योंकि यह कोई वैधानिक संस्था नहीं है और केवल सलाहकार की भूमिका तक सीमित रहता है। इसकी जांच प्रक्रिया भी लंबी और जटिल होती है, जिसके कारण सरकार एवं प्रशासनिक दबावों के चलते इसकी प्रभावशीलता अक्सर कम हो जाती है।

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