NIOS Class 12 Political Science Chapter 29 समकालीन विश्व व्यवस्था

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NIOS Class 12 Political Science Chapter 29 समकालीन विश्व व्यवस्था

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Chapter: 29

वैकल्पिक मॉड्यूल – 1 विश्व व्यवस्था और संयुक्त राष्ट्र

पांठगत प्रश्न 29.1

(क) विश्व मामलों में मुख्य भूमिका निभाने वाले घटक कौन से हैं?

उत्तर: विश्व मामलों में मुख्य भूमिका निभाने वाले घटक है— राज्य जिन्हें देशों के नाम से जाना जाता है।

(ख) क्या सभी राष्ट्र आकार और शक्ति में समान हैं?

उत्तर: नहीं।

पाठगत प्रश्न 29.2

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(क) द्वितीय विश्व युद्ध में विजयी देशों के नाम लिखिए।

उत्तर: द्वितीय विश्व युद्ध में विजयी देशों के नाम है— अमेरिका, सोवियत संघ और ग्रेट ब्रिटेन।

(ख) क्या यह सत्य है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोप का महत्त्व कम हो गया था?

उत्तर: हाँ।

(ग) कौन से दो देश महाशक्ति के नाम से जाने जाते थे?

उत्तर: अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ यह दो देश महाशक्ति के नाम से जाने जाते थे।

(घ) शीतयुद्ध के समय कौन से दो सैन्य गुट बने।

उत्तर: शीतयुद्ध के समय नाटो तथा वारसा संधि संगठन दो सैन्य गुट बने।

(ङ) महाशक्तियों ने क्या सामंजस्य बिठाने का प्रयास किया? इस प्रक्रिया को क्या नाम दिया गया?

उत्तर: हाँ। इस प्रक्रिया को ‘तनाव शैथिल्य’ नाम दिया गया।

पाठगत प्रश्न 29.3

(क) शीतयुद्ध में किस देश की हार हुई?

उत्तर: शीतयुद्ध में सोवियत संघ की हार हुई।

(ख) शीतयुद्ध के अंत के बाद कौन-सा देश सर्वशक्तिमान बनकर उभरा?

उत्तर: शीतयुद्ध के अंत के बाद अमेरिका सर्वशक्तिमान बनकर उभरा।

(ग) शीतयुद्ध के अंत की घोषणा के समय सोवियत संघ के नेता का नाम लिखिए।

उत्तर: शीतयुद्ध के अंत की घोषणा के समय सोवियत संघ के नेता का नाम मिखाइल गोर्बाचोव था।

(घ) ध्रुवीय विश्व के अविर्भाव ने संयुक्त राष्ट्र की कार्य प्रणाली में कैसे सहायता की?

उत्तर: ध्रुवीय विश्व के अविर्भाव से अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शक्ति-संतुलन बना, जिससे प्रत्यक्ष युद्ध की संभावना कम हुई और अंतर्राष्ट्रीय विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका मजबूत हुई। संयुक्त राष्ट्र के शांति-रक्षक अभियानों और बहुपक्षीय वार्ताओं को भी इससे बढ़ावा मिला।

पाठगत प्रश्न 29.4

(क) क्या एक ध्रुवीय युग ने विश्व क्रम में स्थायित्व पैदा किया?

उत्तर: हाँ।

(ख) विभाजित होने वाले देशों के नाम लिखिए।

उत्तर: विभाजित होने वाले देशों के नाम है— यूगोस्लाविया, चैकोस्लोवाकिया आदि।

(ग) गृह युद्ध झेल रहे देशों के कुछ उदाहरण दीजिए।

उत्तर: गृह युद्ध झेल रहे देशों के कुछ उदाहरण है— अफ‌गानिस्तान, सोमालिया, सीयरा लिओन, यूगोस्लाविया आदि।

(घ) युद्धों और हिंसाओं में निदर्दोष जनता अप्रभावित रही। (सत्य या असत्य)

उत्तर: असत्य।

पाठगत प्रश्न 29.5

(क) वैश्वीकरण केवल आर्थिक क्षेत्र तक ही सीमित है। (सत्य/असत्य)

उत्तर: असत्य।

(ख) पश्चिम् की निजी कंपनियां वैश्वीकरण से सबसे अधिक लाभान्वित हुई है। (सत्य/असत्य)

उत्तर: सत्य।

(ग) सूचना और संचार प्रौद्योगिकी में क्रांति के बाद वैश्वीकरण को बल मिला है। (सत्य/असत्य)

उत्तर: सत्य।

(घ) देशों के अंदर और उनके बीच आय का अंतर बढ़ा है। (हाँ/नहीं)

उत्तर: हाँ।

पाठांत प्रश्न

1. विश्व व्यवस्था का अर्थ और मौलिक लक्षण लिखिए।

उत्तर: विश्व व्यवस्था का तात्पर्य उस व्यवस्था और क्रम से है जिसके अनुसार राष्ट्र अपने अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और मामलों का संचालन करते हैं। इसमें नियम, सिद्धांत और परंपराएँ शामिल होती हैं जिन्हें राष्ट्र मान्यता देते हैं और उनका सम्मान करते हैं। इन नियमों के अंतर्गत शामिल हैं—सभी राष्ट्रों की समानता, किसी राष्ट्र के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना, द्विपक्षीय संबंधों में शक्ति का अनुचित प्रयोग न करना, युद्ध बंदियों के साथ मानवीय व्यवहार आदि। संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाएँ इस व्यवस्था को लागू करने और देशों के बीच वार्ता और विवाद समाधान में सहायता प्रदान करने के लिए स्थापित की गई हैं।

मौलिक लक्षण:

(i) नियम और सिद्धांत: विश्व व्यवस्था नियमों और अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के माध्यम से संचालित होती है।

(ii) समानता और अधिकार: औपचारिक रूप से सभी राष्ट्र समान माने जाते हैं, हालाँकि वास्तविकता में शक्ति और संसाधनों के आधार पर असमानता मौजूद होती है।

(iii) संघर्ष और विवाद समाधान: देशों के बीच सीमाओं, व्यापार और अन्य मामलों में विवाद होते हैं, जिन्हें वार्ता, कूटनीति और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के माध्यम से हल करने का प्रयास किया जाता है।

(iv) संगठन और नियंत्रण: संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियाँ, बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ और गैर-सरकारी संगठन विश्व व्यवस्था में प्रभाव डालते हैं।

(v) व्यवस्थित क्रियाकलाप: राजनायिक आदान-प्रदान, युद्ध संबंधी नियम, वायु एवं समुद्री यातायात, मुद्रा विनिमय आदि विश्व व्यवस्था के व्यवस्थित उदाहरण हैं।

(vi) लचीलेपन और परिवर्तन: विश्व व्यवस्था स्थिर नहीं होती; वास्तविकताओं और परिस्थितियों के अनुसार इसमें आवश्यक परिवर्तन किए जाते हैं।

2. अमेरिका और सोवियत संघ ने शीत युद्ध किस प्रकार लड़ा?

उत्तर: द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और सोवियत संघ दो विरोधी महाशक्तियों के रूप में उभरे, जिनके बीच राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य मतभेद गहराए। अमेरिका ने प्रजातंत्र और मुक्त व्यापार को बढ़ावा दिया, जबकि सोवियत संघ ने साम्यवादी एक-दलीय शासन और राज्य नियंत्रित अर्थव्यवस्था में विश्वास रखा। इन अंतरों के कारण दोनों देशों के बीच भय और अविश्वास की भावना पैदा हुई, जिससे द्विध्रुवीय विश्व व्यवस्था का आरंभ हुआ।

शीत युद्ध मुख्यतः प्रत्यक्ष युद्ध के बिना, राजनीतिक और सैन्य प्रतिस्पर्धा के माध्यम से लड़ा गया। दोनों महाशक्तियों ने सैन्य और आर्थिक गुट बनाए पश्चिमी देशों ने अमेरिका के नेतृत्व में नॉर्थ अटलांटिक ट्रिटी ऑर्गनाइजेशन (नैटो) और पूर्वी यूरोप ने सोवियत संघ के नेतृत्व में वारसा संधि संगठन का गठन किया। नाभिकीय हथियारों की होड़, स्थानीय संघर्षों में प्रभाव जमाना, मित्र राष्ट्रों को सैन्य सहायता देना, और वैश्विक सामरिक संतुलन बनाए रखना शीत युद्ध की रणनीतियाँ थीं।

इसके अलावा, दोनों गुटों ने अंतरराष्ट्रीय नीतियों और आर्थिक संसाधनों पर प्रभाव जमाने की कोशिश की। द्विध्रुवीय शक्ति संघर्ष के बावजूद नाभिकीय विनाश की संभावना के कारण प्रत्यक्ष युद्ध टाला गया। यह संघर्ष 1990 तक चला, जब पूर्वी यूरोप और सोवियत संघ में समाजवाद का अंत हुआ और शीत युद्ध समाप्त हो गया।

3. द्विध्रुवीय विश्व किस प्रकार धीरे-धीरे बहुध्रुवीय बना?

उत्तर: शीत युद्ध के समय विश्व अमेरिका और सोवियत संघ के दो विरोधी ध्रुवों के इर्द-गिर्द केन्द्रित था। हालांकि 1970 के दशक से यह द्विध्रुवीय व्यवस्था धीरे-धीरे बहुध्रुवीय बनने लगी। इसका मुख्य कारण यह था कि केवल दो महाशक्तियों के अलावा विश्व में शक्ति और प्रभाव के कई अन्य केन्द्र उभरने लगे। तृतीय विश्व देशों ने अपनी सामूहिक शक्ति का प्रदर्शन किया और गुट निरपेक्ष आंदोलन आरंभ किया, जिसका उद्देश्य विश्व शांति, नाभिकीय निरस्त्रीकरण और निर्धन देशों की आर्थिक उन्नति पर बल देना था।

इसके अलावा, अमेरिका की आर्थिक और सैन्य सुरक्षा प्राप्ति के बाद, पश्चिमी यूरोप के देश क्षेत्रीय एकीकरण प्रक्रिया में शामिल होकर यूरोपीय संघ बन गए और वैश्विक व्यापार में अमेरिका के मुख्य प्रतिद्वंदी बन गए। पूर्वी एशिया में जापान और चीन की आर्थिक उन्नति के साथ-साथ दक्षिण कोरिया, सिंगापुर जैसे देशों की बढ़ती ताकत ने भी द्विध्रुवीय शक्ति संतुलन को चुनौती दी। इन नए ध्रुवों से उत्पन्न चुनौती के साथ अमेरिका और सोवियत संघ ने सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास किया, जिसे तनाव शैथिल्स कहा गया।

4. एकध्रुवीय संसार के लक्षण में गृह युद्ध और आतंकवाद का वर्णन कीजिए।

उत्तर: शीत युद्ध के बाद एकध्रुवीय संसार में राष्ट्रों को आंतरिक और बाहरी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। सोवियत संघ के विघटन के बाद कई क्षेत्रों में जातीय, भाषाई और धार्मिक पहचान के आधार पर अलग राज्य की मांगें बढ़ गईं। उदाहरण के लिए, यूगोस्लाविया पांच हिस्सों में टूट गया और क्रोशिया, बोस्निया, हर्जगोविना जैसी जगहों पर जातीय आधार पर हिंसक संघर्ष हुए। इसके अलावा चेकोस्लोवाकिया दो हिस्सों में बंटा और इरीट्रिया ने इथियोपिया से स्वतंत्रता प्राप्त की। इन संघर्षों में सीमाओं की समस्या और गृह युद्ध की स्थितियाँ उत्पन्न हुईं।

गृह युद्ध अत्यंत नृशंस और अनैतिक तरीके से लड़े गए। इसमें छोटे हथियार, हैंड ग्रेनेड और बारूदी सुरंगों का प्रयोग किया गया, जिससे लाखों निर्दोष पुरुष, महिलाएँ और बच्चे मारे गए। अल्पसंख्यक समुदायों को मारकर शहरों से खत्म किया गया, बच्चों को बलपूर्वक सैनिक बनाया गया और महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार जैसी घटनाएँ हुईं।

साथ ही आतंकवाद एक गंभीर समस्या बन गया। ओसामा बिन लादेन के नेतृत्व वाला अलकायदा और अन्य आतंकवादी संगठन अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन गए। सितंबर 2001 में न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आक्रमण इसका उदाहरण है। दक्षिण एशिया, पश्चिमी एशिया, अफ्रीका और दक्षिण-पूर्वी एशिया में आतंकवाद फैल चुका है। इस प्रकार, एकध्रुवीय विश्व में गृह युद्ध और आतंकवाद ने न केवल देशों की आंतरिक सुरक्षा बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्थायित्व को भी गंभीर रूप से प्रभावित किया।

5. वैश्वीकरण के बुरे प्रभावों पर प्रकाश डालिए।

उत्तर: वैश्वीकरण ने जहाँ विश्व को एक बाजार में बदल दिया है, वहीं इसके कई नकारात्मक प्रभाव भी सामने आए हैं। सबसे पहले, बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बढ़ते प्रभुत्व ने विकासशील देशों की राज्य-संरचना और आर्थिक नियंत्रण को कमजोर किया है। इन कंपनियों के पास अत्याधुनिक तकनीक और पूंजी है, जो विश्व स्तर पर समान रूप से उपलब्ध नहीं, इसलिए स्थानीय उद्योग इनके सामने टिक नहीं पाते। इसके कारण स्थानीय उत्पादन पर खतरा बढ़ा और विकसित देशों के सस्ते उपभोक्ता सामान ने घरेलू बाजारों पर कब्जा कर लिया। ग्रामीण और कृषि क्षेत्रों में भी समस्याएँ बढ़ीं क्योंकि सरकार ने उर्वरकों, बिजली और अन्य आवश्यक वस्तुओं पर सहायता घटा दी।

वैश्वीकरण ने अमीर और गरीब के बीच की खाई को और चौड़ा कर दिया है। विश्व की आधी आबादी अत्यधिक गरीबी में जी रही है, जबकि कुछ देशों और व्यक्तियों के पास असीमित संपत्ति है। साथ ही, गरीब देशों पर विदेशी कर्ज का बोझ और बढ़ गया है, जबकि सम्पन्न देशों से मिलने वाली सहायता नहीं बढ़ी।

इसके अतिरिक्त, हमारी जीवनशैली अनावश्यक उपभोक्तावाद की ओर बढ़ रही है, और एड्स जैसी वैश्विक बीमारियाँ तेजी से फैल रही हैं। कुल मिलाकर, वैश्वीकरण के दुष्परिणाम विकासशील देशों के लिए गंभीर चुनौती बन गए हैं, और इसे मानवीय रूप न देने पर विश्वव्यवस्था की विश्वसनीयता पर प्रश्न उठ सकते हैं।

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