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NIOS Class 12 Political Science Chapter 26 भारत की विदेश नीति
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भारत की विदेश नीति
Chapter: 26
| मॉड्यूल – 6 भारत और विश्व |
पाठगत प्रश्न 26.1
1. रिक्त स्थान भरिए-
(क) भारत की विदेश नीति के मुख्य शिल्पी _________________ हैं।
उत्तर: भारत की विदेश नीति के मुख्य शिल्पी नेहरू हैं।
(ख) अफ्रीकी एशियाई सम्मेलन 1955 में _________________ में हुआ।
उत्तर: अफ्रीकी एशियाई सम्मेलन 1955 में बैन्डंग में हुआ।
(ग) प्रथम गुटनिरपेक्ष आंदोलन सम्मेलन _________________ में _________________ सन में हुआ।
उत्तर: प्रथम गुटनिरपेक्ष आंदोलन सम्मेलन बेलग्रेड में 1961 सन में हुआ।
(घ) पंचशील समझौता ________________ और ________________ के बीच हुआ था।
उत्तर: पंचशील समझौता भारत और चीन के बीच हुआ था।
(ङ) भारत ने गुट निरपेक्ष आंदोलन सम्मेलन की मेजबानी ________________ में की थी।
उत्तर: भारत ने गुट निरपेक्ष आंदोलन सम्मेलन की मेजबानी नई दिल्ली में की थी।
2. सही उत्तर पर (✔) लगाएं:
(क) गुट-निरपेक्षता और उदासीनता एक ही हैं। (सत्य/असत्य)
उत्तर: असत्य।
(ख) भारत ने दक्षिण अफ्रीकी सरकार की रंगभेद नीति का विरोध किया। (सत्य/असत्य)
उत्तर: सत्य।
(ग) नेहरू ने टीटो और नासर के साथ मिलकर गुट निरपेक्ष आंदोलन को प्रारम्भ करने में मुख्य भूमिका निभाई। (सत्य/असत्य)
उत्तर: सत्य।
पाठगत प्रश्न 26.2
1. सही उत्तर पर (✔) का निशान लगाएं:
(क) शीतयुद्ध के बाद के समय में अंतर्राष्ट्रीय संबंध द्विध्रुवीय प्रारूप पर आधारित हैं। (सत्य/असत्य)
उत्तर: असत्य।
(ख) कश्मीर मसला भारत की विदेश नीति के लिए 1990 से सबसे बड़ी समस्या बन गया। (सत्य/असत्य)
उत्तर: सत्य।
(ग) शीतयुद्ध के बाद भारत की विदेश नीति अरब देशों को नेकारना और इस्राइल को स्वीकारना चाहती है। (सत्य/असत्य)
उत्तर: असत्य।
(घ) भारत आतंक विरोधी देशों का एक गुट बनाने के लिए प्रयासरत है। (सत्य/असल्य)
उत्तर: सत्य।
पाठगत प्रश्न 26.3
1. भारत सदैव समर्थन करता है:
(क) परमाणु हथियार रहित संसार का।
(ख) एक ऐसा विश्व जहां प्रत्येक राष्ट्र के पास परमाणु अस्त्र हो।
(ग) एक ऐसा विश्व जहां केवल कुछ गिने-चुने राष्ट्रों के पास ही परमाणु अस्त्र हो।
उत्तर: (क) परमाणु हथियार रहित संसार का।
2. निम्न संक्षिप्त शब्दों का विस्तृत रूप लिखिएः
(क) सीटीबीटी।
उत्तर: कॉम्प्रिहेंसिव टैस्ट बैन ट्रीटी।
(ख) एनपीटी।
उत्तर: न्यूक्लियर नॉन-प्रोलीफरेशन ट्रीटी।
पाठगत प्रश्न 26.4
1. भारतीय सैनिकों के साथ प्रथम शांति सेना भेजी गई थी-
(क) कोरिया में।
(ख) सिनाय में।
(ग) कांगो में।
उत्तर: (ख) सिनाय में।
2. कौन सा कथन असत्य है?
(क) संयुक्त राष्ट्र संघ के शाति प्रयास में भारत सैन्य शक्ति प्रदान करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश है।
(ख) शांति कायम करना केवल शीत युद्ध के काल तक ही सीमित था।
(ग) कांगो को विघटन से बचाने में भारत की भूमिका महत्वपूर्ण थी।
उत्तर: (ग) कांगो को विघटन से बचाने में भारत की भूमिका महत्वपूर्ण थी।
3. शांति कायम रखने में भारत द्वारा किए गए योगदान में शामिल हैं-
(क) केवल सैनिक।
(ख) केवल असैनिक कर्मचारी।
(ग) सैनिक और असैनिक कर्मचारी।
उत्तर: (ग) सैनिक और असैनिक कर्मचारी।
पाठगत प्रश्न 26.5
1. सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य नहीं है:
(क) रूस।
(ख) ग्रेट ब्रिटेन।
(ग) भारत।
(घ) चीन।
उत्तर: (ग) भारत।
2. कौन-सा कथन असत्य है-
(क) शीत युद्ध का अंत हो चुका है।
(ख) सोवियत संघ विघटित हो चुका है।
(ग) वैश्वीकरण एक सत्यता है।
(घ) संयुक्त राष्ट्र का विघटन हो चुका है।
उत्तर: (ग) वैश्वीकरण एक सत्यता है।
पाठांत प्रश्न
1. भारत की विदेश नीति के मूल सिद्धांतों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर: भारत की विदेश नीति कुछ प्रमुख उद्देश्यों और सिद्धांतों पर आधारित है। इसका मुख्य लक्ष्य राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा, विश्व शांति की स्थापना, निःशस्त्रीकरण, तथा एशियाई–अफ्रीकी देशों की स्वतंत्रता का समर्थन करना है।
इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए भारत ने निम्नलिखित मूल सिद्धांतों को अपनाया है—
(i) पंचशील सिद्धांत: 1954 में चीन के साथ हुए समझौते में भारत ने पंचशील के पाँच सिद्धांतों—
(क) एक-दूसरे की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान।
(ख) परस्पर अनाक्रमण।
(ग) आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना।
(घ) समानता तथा पारस्परिक हित।
(ङ) शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को विदेश नीति का आधार बनाया। पंचशील भारत की शांतिपूर्ण और मैत्रीपूर्ण संबंधों की नीति का महत्वपूर्ण अंग है।
(ii) गुट निरपेक्षता: भारत ने शीतयुद्ध के दौरान अमेरिका या सोवियत संघ के किसी भी सैन्य गुट में शामिल न होकर स्वतंत्र विदेश नीति अपनाई। नेहरू, नासर और टीटो को मिलाकर गुटनिरपेक्ष आंदोलन का जनक माना जाता है। यह नीति साम्राज्यवाद-विरोधी, शांति समर्थक और स्वतंत्र निर्णय की पक्षधर थी। भारत ने 1983 में गुटनिरपेक्ष आंदोलन की सम्मेलन का आयोजन कर इसकी भूमिका को मजबूत किया।
(iii) उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद और रंगभेद का विरोध: भारत ने हमेशा उपनिवेशवाद और रंगभेद के खिलाफ आवाज उठाई। इन्डोनेशिया की स्वतंत्रता, नामीबिया पर अवैध कब्जे, तथा दक्षिण अफ्रीका की रंगभेद नीति के खिलाफ भारत ने विरोध दर्ज किया। भारत ने हर अन्याय के खिलाफ खड़े होने का सिद्धांत अपनाया।
(iv) संयुक्त राष्ट्र संघ का सशक्तीकरण: भारत संयुक्त राष्ट्र को विश्व शांति का महत्वपूर्ण साधन मानता है। भारत चाहता है कि संयुक्त राष्ट्र संवाद और सहयोग द्वारा अंतरराष्ट्रीय विवादों को हल करे। भारत ने उपनिवेशवाद के अंत, निःशस्त्रीकरण, मानवीय सहायता तथा विकास के लिए संयुक्त राष्ट्र की सक्रिय भूमिका का समर्थन किया है।
2. गुटनिरपेक्ष नीति की सार्थकता का वर्णन कीजिए।
उत्तर: गुटनिरपेक्षता भारत की विदेश नीति की एक महत्वपूर्ण विशेषता रही है, जिसकी सार्थकता शीतयुद्ध काल से लेकर वर्तमान समय तक बनी हुई है। इसका मुख्य उद्देश्य अमेरिका और सोवियत संघ जैसे महाशक्तियों के सैन्य गुटों में शामिल हुए बिना राष्ट्रीय स्वतंत्रता और विदेश नीति में स्वायत्तता बनाए रखना था। यह न तो तटस्थता थी और न ही उदासीनता, बल्कि प्रत्येक अंतरराष्ट्रीय मुद्दे पर स्वतंत्र रूप से विचार करने की नीति थी।
गुटनिरपेक्ष नीति की मुख्य सार्थकताएँ इस प्रकार हैं—
(i) राष्ट्रीय स्वतंत्रता और संप्रभुता की रक्षा: गुटनिरपेक्षता ने भारत सहित विकासशील देशों को किसी भी महाशक्ति के दबाव से मुक्त रहकर अपनी नीतियाँ बनाने का अवसर दिया। इससे नव स्वतंत्र राष्ट्र अपनी संप्रभुता सुरक्षित रख सके।
(ii) शीतयुद्ध का विकल्प प्रदान करना: शीतयुद्ध के दौरान विश्व द्विध्रुवीय था अमेरिका और सोवियत संघ दो विरोधी गुटों में बँटा हुआ। गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने इन दोनों गुटों से अलग एक स्वतंत्र मंच प्रदान किया, जिससे देशों को स्वतंत्र निर्णय लेने का साहस मिला।
(iii) उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद का विरोध: यह आंदोलन स्वभाव से साम्राज्यवाद-विरोधी था। नव स्वतंत्र देशों ने इसका उपयोग अपने अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए किया, जिससे दुनिया में न्याय और समानता के लिए आवाज उठ सकी।
(iv) विश्व राजनीति में समान भागीदारी: गुटनिरपेक्ष देशों को उनके आकार या शक्ति की परवाह किए बिना अंतरराष्ट्रीय निर्णयों में भाग लेने का अवसर मिला। इससे छोटे देशों को भी प्रभावशाली मंच मिला।
(v) दक्षिण-दक्षिण सहयोग को बढ़ावा: इस आंदोलन ने विकासशील देशों के बीच आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक सहयोग को बढ़ावा दिया, जिससे समान समस्याओं का समाधान सामूहिक रूप से किया जा सका।
(vi) शीतयुद्ध के बाद की प्रासंगिकता: सोवियत संघ के विघटन के बाद भी गुटनिरपेक्षता सार्थक बनी रही क्योंकि— विश्व एकध्रुवीय होने के खतरे से घिरा था, जिस पर संतुलन बनाए रखना आवश्यक था। विकसित और विकासशील देशों के बीच आर्थिक असमानता बढ़ रही थी, जिसका समाधान गुटनिरपेक्ष मंच के माध्यम से संभव था। 21वीं सदी की आवश्यकताओं के अनुरूप संयुक्त राष्ट्र में सुधार की मांग उठाने के लिए यह आंदोलन आवश्यक है।
3. सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता कहाँ तक उचित है?
उत्तर: भारत की सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता आज के वैश्विक परिदृश्य में पूरी तरह उचित और आवश्यक मानी जाती है। वर्तमान सुरक्षा परिषद का ढाँचा 1945 की परिस्थितियों पर आधारित है, जबकि आज विश्व की शक्ति संरचना पूरी तरह बदल चुकी है। अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन जैसे पुराने पाँच स्थायी सदस्य वर्तमान अंतरराष्ट्रीय संतुलन का सही प्रतिनिधित्व नहीं करते।
भारत के स्थायी सदस्यता के दावे की उचितता निम्न बिंदुओं से स्पष्ट होती है—
(i) बदलता वैश्विक शक्ति संतुलन: आज का विश्व 1945 से भिन्न है। भारत आर्थिक, राजनीतिक और सामरिक दृष्टि से वैश्विक मंच पर एक महत्वपूर्ण शक्ति बन चुका है, इसलिए संयुक्त राष्ट्र की संरचना में इसका प्रतिनिधित्व होना चाहिए।
(ii) तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था: भारत विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है। इतनी बड़ी आर्थिक शक्ति को सुरक्षा परिषद में स्थायी स्थान मिलना विश्व व्यवस्था की वास्तविकता को दर्शाता है।
(iii) अंतरराष्ट्रीय मामलों में भारत का नेतृत्व: अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों और वैश्विक मुद्दों पर भारत का सक्रिय नेतृत्व उसे स्थायी सदस्यता का मजबूत दावेदार बनाता है।
(iv) शांति स्थापना में योगदान: भारत संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों में निरंतर और बड़े पैमाने पर योगदान देता रहा है, जो उसे स्थायी सदस्यता का नैतिक अधिकार प्रदान करता है।
(v) तृतीय विश्व (विकासशील देशों) की आवाज़ बनना: भारत लंबे समय से विकासशील देशों के हितों का प्रतिनिधित्व करता आया है। अगर भारत स्थायी सदस्य बनेगा तो सुरक्षा परिषद अधिक लोकतांत्रिक और प्रतिनिधिक संस्था बन सकेगी।
4. शीत युद्ध के अंत के बाद और सोवियत संघ के विघटन के बाद भारत के सामने कौन सी चुनौतियां आई हैं?
उत्तर: शीत युद्ध समाप्त होने (1989) और सोवियत संघ के विघटन के बाद अंतरराष्ट्रीय राजनीति में बड़े परिवर्तन हुए, जिनसे भारत की विदेश नीति के सामने कई नई चुनौतियाँ उभरकर आईं। यह नया विश्व-परिदृश्य अनिश्चितता, जटिलता और अस्थिरता से भरा था।
मुख्य चुनौतियाँ इस प्रकार हैं—
(i) सोवियत संघ के विघटन से उत्पन्न अनिश्चितताएँ: सोवियत संघ भारत का विश्वसनीय मित्र था। उसके विघटन के बाद भारत को कई कठिनाइयाँ सामने आईं—
(क) युद्ध सामग्री और स्पेयर पार्ट्स की आपूर्ति का संकट।
(ख) संयुक्त राष्ट्र में राजनयिक समर्थन में कमी।
(ग) अंतरराष्ट्रीय मामलों में राजनीतिक सहयोग का समाप्त होना।
(घ) दक्षिण एशिया में अमेरिका का बढ़ता प्रभाव।
(ii) एकध्रुवीय विश्व का उदय: शीत युद्ध के बाद अमेरिका सबसे शक्तिशाली देश बनकर उभरा। इससे संतुलन बिगड़ा और भारत को अपनी विदेश नीति नए तरीके से बनानी पड़ी।
(iii) नए वैश्विक मुद्दों का उभरना: वैश्वीकरण के कारण कई नई समस्याएँ सामने आईं—
(क) आतंकवाद।
(ख) मुद्रा स्फीति।
(ग) युद्ध शस्त्रों में वृद्धि।
(घ) ग्लोबल वार्मिंग।
ये समस्याएँ सभी देशों को प्रभावित कर रही थीं, इसलिए भारत को अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने की आवश्यकता पड़ी।
(iv) कश्मीर में आतंकवाद: भारत की विदेश नीति के लिए सबसे बड़ी चुनौती कश्मीर में आतंकवाद था। पाकिस्तान और कुछ पश्चिमी देशों द्वारा भारत पर मानवाधिकार हनन के आरोप लगाए गए। सीमापार आतंकवाद ने भारत-पाक संबंधों को और खराब किया।
(v) भारत–पाक संबंधों में तनाव: 1998 के परमाणु परीक्षणों के बाद तनाव और बढ़ा। पाकिस्तान द्वारा कारगिल संघर्ष जैसी घटनाओं ने गंभीर चुनौती पैदा की। पाकिस्तान को सार्थक वार्ता के लिए तैयार करना भारत के लिए कठिन कार्य बन गया, विशेषकर जब उसे अमेरिका का समर्थन प्राप्त था।
(vi) अन्य क्षेत्रों में आतंकवाद की चुनौती: कश्मीर के अलावा भारत को अन्य हिस्सों में भी आतंकवाद रोकने के लिए विभिन्न देशों के साथ आतंकवाद-विरोधी सहयोग बढ़ाना पड़ा।
(vii) पुराने मित्रों को बनाए रखना और नए मित्रों की तलाश: अरब देशों से संबंध बिगाड़े बिना इज़राइल के साथ संबंध मजबूत करना, अमेरिका के साथ साझेदारी बढ़ाना, लेकिन उसकी एकतरफा सैन्य कार्रवाइयों (इराक, यूगोस्लाविया) का विरोध करना, चीन और दक्षिण–पूर्व एशियाई देशों के साथ आर्थिक संबंध मजबूत करना।
(viii) विदेश नीति का आर्थिक पक्ष मजबूत करना: वैश्विक अर्थव्यवस्था में बदलाव के कारण भारत को आर्थिक संबंधों को विदेशी नीति का केंद्र बनाना पड़ा।
5. निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए:
(क) पंचशील।
उत्तर: पंचशील भारत की विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है, जिसे 28 अप्रैल 1954 को चीन के साथ हुए समझौते के समय अपनाया गया। नेहरू विश्व शांति के प्रबल पक्षधर थे और मानते थे कि किसी भी देश के विकास के लिए लंबी अवधि की शांति आवश्यक है। दो विश्व युद्धों के विनाश और परमाणु हथियारों के बढ़ते खतरे ने नेहरू के शांति-समर्थक दृष्टिकोण को और मजबूत किया। इसी कारण उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को सर्वोच्च महत्व दिया।
पंचशील के पाँच मुख्य सिद्धांत हैं— एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखण्डता और संप्रभुता का सम्मान, परस्पर अनाक्रमण, आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना, समानता और पारस्परिक हित, तथा शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व। ये सिद्धांत विशेष रूप से बड़े और पड़ोसी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखने की भारत की इच्छा को दर्शाते हैं। इसलिए पंचशील समझौता पड़ोसी राष्ट्रों के साथ शांति और सहयोग का सर्वोत्तम उदाहरण माना जाता है।
(ख) संयुक्त राष्ट्र संघ के निःशस्त्रीकरण प्रयास में भारत का योगदान।
उत्तर: भारत ने संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के बाद से ही विश्व शांति और निःशस्त्रीकरण के प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत का मानना है कि खतरनाक हथियारों, विशेषकर परमाणु अस्त्रों पर नियंत्रण और उनके विनाश से ही विश्व की सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित की जा सकती है। इसी सिद्धांत के आधार पर भारत ने संयुक्त राष्ट्र के मंच पर अनेक पहलें कीं।
भारत ने 1948 में परमाणु हथियारों में कटौती और परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग का प्रस्ताव रखा। 1950 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र शांति कोष की स्थापना का सुझाव दिया ताकि संवर्धित धन विनाशकारी हथियारों को कम करने और विकास कार्यों में उपयोग हो सके। 1954 में भारत ने व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध की वकालत की और 1963 में आंशिक परीक्षण प्रतिबंध संधि का पहला सदस्य बना। 1964 में हथियारों के उत्पादन पर नियंत्रण की पहल भी भारत ने की।
1980 के दशक में भारत ने वैश्विक स्तर पर और भी सक्रिय भूमिका निभाई। 1984 में ‘छह राष्ट्र पाँच महाद्वीप’ शांति उपक्रम की शुरुआत में भारत प्रमुख भागीदार था। 1988 में राजीव गांधी ने 2010 तक परमाणु हथियारों के पूर्ण विनाश की कार्ययोजना प्रस्तुत की। भारत जैविक हथियार निषेध संधि का मूल सदस्य भी रहा तथा 1993 में इसे सबसे पहले पुष्टि करने वाले देशों में शामिल हुआ।
यद्यपि व्यापक परीक्षण प्रतिबंध संधि भारत की सुरक्षा चिंताओं को संबोधित नहीं कर सकी, फिर भी भारत ने बिना भेदभाव के वैश्विक निःशस्त्रीकरण के अपने संकल्प को दृढ़ता से दोहराया। इस प्रकार भारत संयुक्त राष्ट्र के निःशस्त्रीकरण प्रयासों में निरंतर सक्रिय, सकारात्मक और दृढ़ योगदान देता रहा है।
(ग) संयुक्त राष्ट्र संघ के शांति प्रयास में भारत का योगदान।
उत्तर: संयुक्त राष्ट्र के शांति प्रयासों में भारत का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण और दीर्घकालिक रहा है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने भी भारत की इस भूमिका की सराहना की है। शांति कायम करने का अर्थ है किसी देश के आंतरिक या बाहरी संघर्षों को संयुक्त राष्ट्र की सलाह और बहुराष्ट्रीय बलों की सहायता से रोकना, नियंत्रित करना और समाप्त करना। इस कार्य में भारत लगातार सक्रिय रहा है।
भारत ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा संचालित चार महाद्वीपों में फैली 35 से अधिक शांति अभियानों में भाग लिया है। अफ्रीका और एशिया में शांति और स्थिरता स्थापित करने में भारत की भूमिका विशेष रूप से उल्लेखनीय रही है। भारत वर्तमान समय में संयुक्त राष्ट्र को सबसे अधिक सैन्य बल प्रदान करने वाले देशों में अग्रणी है।
भारत की शांति अभियान में भागीदारी 1956 में शुरू हुई, जब इस्राइल–मिस्र युद्ध के बाद गाजा पट्टी और सिनाई में संयुक्त राष्ट्र आपातकालीन बल की स्थापना हुई। कांगो में 1960 के दशक में भारत के सैनिकों ने एकता और अखंडता बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
शीत युद्ध के बाद भी भारत की भूमिका जारी रही। संयुक्त राष्ट्र महासचिव के अनुरोध पर भारतीय सैनिक और अधिकारी अंगोला, कंबोडिया, सोमालिया, अल सल्वाडोर और सिएरा लियोन जैसे देशों में भेजे गए। गृहयुद्ध से प्रभावित देशों में भारत ने न केवल सैनिक भेजे, बल्कि पुलिस, डॉक्टर, इंजीनियर और प्रशासक भी भेजकर शांति पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण सहायता प्रदान की।

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