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NCERT Class 7 Social Science Samajik Aur Rajniti Jeevan Chapter 1 समानता
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समानता
Chapter: 1
सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन-२
इकाई एक: भारतीय लोकतंत्र में समानता |
1. क्या आपको अपने जीवन की कोई ऐसी घटना याद है, जब आपकी गरिमा को चोट पहुँची हो? आपको उस समय कैसा महसूस हुआ था?
उत्तर: विद्यार्थी स्वयं करें।
2. मध्याह्न भोजन कार्यक्रम क्या है? क्या आप इस कार्यक्रम के तीन लाभ बता सकते हैं? आपके विचार से यह कार्यक्रम किस प्रकार समानता की भावना बढ़ा सकता है?
उत्तर: मध्याह्न भोजन कार्यक्रम के अंतर्गत सभी सरकारी प्राथमिक स्कूलों के बच्चों को दोपहर का भोजन स्कूल द्वारा दिया जाता है। यह योजना भारत में सर्वप्रथम तमिलनाडु राज्य में प्रारंभ की गई और 2001 में उच्चतम न्यायालय ने सभी राज्य सरकारों को इसे अपने स्कूलों में छह माह के अंदर आरंभ करने के निर्देश दिए।
इस कार्यक्रम के तीन लाभ नीचे दिए गए हैं:
(i) दोपहर का भोजन मिलने के कारण गरीब बच्चों ने अधिक संख्या में स्कूल में प्रवेश लेना और नियमित रूप से स्कूल जाना शुरू कर दिया।
(ii) शिक्षक बताते हैं कि पहले बच्चे खाना खाने घर जाते थे और फिर वापस स्कूल लौटते ही नहीं थे, परंतु अब, जब से स्कूल में मध्याह्न भोजन मिलने लगा है, उनकी उपस्थिति में सुधार आया है।
(iii) वे माताएँ जिन्हें पहले अपना काम छोड़कर दोपहर को बच्चों को खाना खिलाने घर आना पड़ता था, अब उन्हें ऐसा नहीं करना पड़ता है।
3. अपने क्षेत्र में लागू की गई किसी एक सरकारी योजना के बारे में पता लगाइए। इस योजना में क्या किया जाता है? यह किसके लाभ के लिए बनाई गई है?
उत्तर: विद्यार्थी स्वयं करें।
अभ्यास |
1. लोकतंत्र में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार क्यों महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर: यह लोकतंत्रीय समाज का अत्यंत महत्त्वपूर्ण पहलू है। इसका अर्थ है कि सभी वयस्क (18 वर्ष एवं उससे अधिक आयु के) नागरिकों को वोट देने का अधिकार है, चाहे उनकी सामाजिक या आर्थिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो। लोकतंत्र का मतलब है ऐसी शासन व्यवस्था जिसमें सरकार का चुनाव जनता करती है, यानि जनता के पास असली अधिकार होते हैं।
लोकतंत्र में सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार महत्व:
(i) सार्वभौमिक मताधिकार भारत के सभी नागरिकों को प्राप्त है।
(ii) यह सरकार को जनता के प्रति उत्तरदायी बनाता है तथा लोकतंत्र में जनता की गरिमा और महत्त्व को सुनिश्चित करता है।
(iii) सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार के माध्यम से भारत का प्रत्येक नागरिक अपने प्रतिनिधियों का चुनाव स्वयं करता है।
2. बॉक्स में दिए गए संविधान के अनुच्छेद 15 के अंश को पुनः पढ़िए और दो ऐसे तरीके बताइए, जिनसे यह अनुच्छेद असमानता को दूर करता है?
उत्तर: ऐसे दो तरीके जिनसे यह अनुच्छेद असमानता को दूर करता है नीचे दिए गए हैं–
(i) राज्य (यानि सरकार) किसी भी नागरिक से भेदभाव नहीं करेगा, यानि कानून और सरकार के लिए हर नागरिक एक समान होगा।
(ii) राज्य को विशेष अवसर प्रदान करने और आरक्षण देने का अधिकार है। यह प्रावधान अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों को शिक्षा और नौकरियों में समान अवसर देता है।
3. “कानून के सामने सब व्यक्ति बराबर हैं” इस कथन से आप क्या समझते हैं? आपके विचार से यह लोकतंत्र में महत्त्वपूर्ण क्यों है?
उत्तर: इस कथन का मतलब है हर व्यक्ति पर एक जैसा कानून ही लागू होता है, प्रथम, कानून की दृष्टि में हर व्यक्ति समान है। इसका तात्पर्य यह है कि हर व्यक्ति को देश के राष्ट्रपति से लेकर कांता जैसी घरेलू काम की नौकरी करने वाली महिला तक, सभी को एक ही जैसे कानून का पालन करना है। दूसरा, किसी भी व्यक्ति के साथ उसके धर्म, जाति, वंश, जन्मस्थान और उसके स्त्री या पुरुष होने के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। तीसरा, हर व्यक्ति सार्वजनिक स्थानों पर जा सकता है, जिनमें खेल के मैदान, होटल, दुकानें और बाज़ार आदि सम्मिलित हैं। सब लोग सार्वजनिक कुँओं, सड़कों और नहाने के घाटों का उपयोग कर सकते हैं। चौथा, अस्पृश्यता का उन्मूलन कर दिया गया है।
लोकतंत्र में यह महत्त्वपूर्ण है क्योंकि समानता लोकतंत्र की आत्मा है। लोकतंत्र सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के द्वारा सभी लोगों को समान महत्त्व देता है। यदि कानून भेदभावपरक होंगे तो लोकतंत्र विकसित नहीं हो पायेगा।
4. दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016, के अनुसार उनको समान अधिकार प्राप्त हैं और समाज में उनकी पूरी भागीदारी संभव बनाना सरकार का दायित्त्व है। सरकार को उन्हें निःशुल्क शिक्षा देनी है और विकलांग बच्चों को स्कूलों की मुख्यधारा में सम्मिलित करना है। कानून यह भी कहता है कि सभी सार्वजनिक स्थल, जैसे– भवन, स्कूल आदि में ढलान बनाए जाने चाहिए, जिससे वहाँ विकलांगों के लिए पहुँचना सरल हो।
चित्र को देखिए और उस बच्चे के बारे में सोचिए, जिसे सीढ़ियों से नीचे लाया जा रहा है। क्या आपको लगता है कि इस स्थिति में उपर्युक्त कानून लागू किया जा रहा है? वह भवन में आसानी से आ-जा सके, उसके लिए क्या करना आवश्यक है? उसे उठाकर सीढ़ियों से उतारा जाना, उसके सम्मान और उसकी सुरक्षा को कैसे प्रभावित करता है?
उत्तर: नहीं, इस चित्र में दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 को लागू नहीं किया जा रहा है। इस चित्र में दिव्यांगजन को सीढ़ियों से उतारा जा रहा है, जबकि कानून यह कहता है कि सभी सार्वजनिक स्थल, जैसे— भवन, स्कूल आदि में ढलान बनाए जाने चाहिए, जिससे वहाँ विकलांगों के लिए पहुँचना सरल हो। लेकिन यहाँ ढलान नहीं है, दिव्यांगजन को सीढ़ियों से उतारा जा रहा है। दिव्यांगजन को सीढ़ियों से उतारे जाने पर कभी भी असावधानी या असंतुलन के कारण दुर्घटना हो सकती है। इसके साथ ही ऐसे करने से उसका सम्मान भी प्रभावित होता है क्योंकि उसे अपनी पहियों वाली कुर्सी पर चलने के लिए दूसरों पर निर्भर हो जाना पड़ा है।
दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 में अधिनियमित किया गया है। यह एक ऐसा अधिनियम है जो 40% दिव्यांगता से पीड़ित लोगों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करता है।
“दिव्यांग व्यक्ति” का अर्थ है लंबे समय तक शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, या संवेदी हानि वाला व्यक्ति है, जो बाधाओं के साथ अंत:क्रिया में दूसरों के साथ समान रूप से समाज में उसकी पूर्ण और प्रभावी भागीदारी में बाधा डालता है।