NCERT Class 7 Social Science Hamare Atit Chapter 6 ईश्वर से अनुराग Solutions, in Hindi Medium to each chapter is provided in the list so that you can easily browse through different chapters NCERT Class 7 Social Science Hamare Atit Chapter 6 ईश्वर से अनुराग Notes and select need one. NCERT Class 7 Social Science Hamare Atit Chapter 6 ईश्वर से अनुराग Question Answers Download PDF. NCERT Class 7 Solutions for Social Science Itihas-Hamare Atit – II.
NCERT Class 7 Social Science Hamare Atit Chapter 6 ईश्वर से अनुराग
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ईश्वर से अनुराग
Chapter: 6
हमारे अतीत-२
1. आज भी आप स्थानीय मिथक तथा किस्से-कहानियों की इस प्रक्रिया को व्यापक स्वीकृति पाते हुए देख सकते हैं। क्या आप अपने आस-पास कुछ ऐसे उदाहरण ढूँढ सकते हैं?
उत्तर: जैन धर्म में अन्जना कुमारी तथा मैना सुन्दरी की कहानियाँ प्रचलित हैं जिसमें ये परमेश्वर में भक्ति के माध्यम से मोक्ष प्राप्त करती है।
2. शंकर या रामानुज के विचारों के बारे में कुछ और पता लगाने का प्रयत्न करें।
उत्तर: भारत के सर्वाधिक प्रभावशाली दार्शनिकों में से एक शंकर का जन्म आठवीं शताब्दी में केरल प्रदेश में हुआ था। वे अद्वैतवाद के समर्थक थे, जिसके अनुसार जीवात्मा और परमात्मा (जो परम सत्य है), दोनों एक ही हैं। उन्होंने यह शिक्षा दी कि ब्रह्मा, जो एकमात्र या परम सत्य है, वह निर्गुण और निराकार है। शंकर ने हमारे चारों ओर के संसार को मिथ्या या माया माना और संसार का परित्याग करने अर्थात् संन्यास लेने और ब्रह्मा की सही प्रकृति को समझने और मोक्ष प्राप्त करने के लिए ज्ञान के मार्ग को अपनाने का उपदेश दिया।
रामानुज ग्यारहवीं शताब्दी में तमिलनाडु में पैदा हुए थे। वे विष्णुभक्त अलवार संतों से बहुत प्रभावित थे। उनके अनुसार मोक्ष प्राप्त करने का उपाय विष्णु के प्रति अनन्य भक्ति भाव रखना है। भगवान विष्णु की कृपा दृष्टि से भक्त उनके साथ एकाकार होने का परमानंद प्राप्त कर सकता है। रामानुज ने विशिष्टताद्वैत के सिद्धांत को प्रतिपादित किया, जिसके अनुसार आत्मा, परमात्मा से जुड़ने के बाद भी अपनी अलग सत्ता बनाए रखती है।
फिर से याद करें |
1. निम्नलिखित में मेल बैठाएँ:
बुद्ध | नामघर |
शंकरदेव | विष्णु की पूजा |
निज़ामुद्दीन औलिया | सामाजिक अंतरों पर सवाल उठाए |
नयनार | सूफ़ी संत |
अलवार | शिव की पूजा |
उत्तर:
बुद्ध | सामाजिक अंतरों पर सवाल उठाए |
शंकरदेव | नामघर |
निज़ामुद्दीन औलिया | सूफ़ी संत |
नयनार | शिव की पूजा |
अलवार | विष्णु की पूजा |
2. रिक्त स्थान की पूर्ति करें:
(क) शंकर __________ के समर्थक थे।
उत्तर: शंकर अद्वैतवाद के समर्थक थे।
(ख) रामानुज ___________ के द्वारा प्रभावित हुए थे।
उत्तर: रामानुज विष्णुभक्त अलवार संतों के द्वारा प्रभावित हुए थे।
(ग) ____________, ____________ और _________ वीरशैव मत के समर्थक थे।
उत्तर: बसवन्ना, अल्लामा प्रभु और अक्कमहादेवी वीरशैव मत के समर्थक थे।
(घ) ____________ महाराष्ट्र में भक्ति परंपरा का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र था।
उत्तर: पंढरपुर महाराष्ट्र में भक्ति परंपरा का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र था।
3. नाथपंथियों, सिद्धों और योगियों के विश्वासों और आचार-व्यवहारों का वर्णन करें।
उत्तर: नाथपंथियों, सिद्धों और योगियों के विश्वासों और आचार-व्यवहारों का वर्णन निम्न प्रकार किया गया है–
(i) उन्होंने साधारण तर्क-वितर्क के आधार पर रूढ़िवादी धार्मिक कर्मकांडों एवं सामाजिक व्यवस्था का विरोध किया।
(ii) उन्होंने संसार का त्याग करने का समर्थन किया।
(iii) उनके विचार से निराकार परम सत्य का चिन्तन-मनन और उसके साथ एक हो जाने की अनुभूति ही मोक्ष का मार्ग है।
(iv) उनके द्वारा की गई रूढ़ीवादी धर्म की आलोचना ने भक्तिमार्गीय धर्म के लिए आधार तैयार किया, जो आगे चलकर उत्तरी भारत में लोकप्रिय शक्ति बना।
4. कबीर द्वारा अभिव्यक्त प्रमुख विचार क्या-क्या थे? उन्होंने इन विचारों को कैसे अभिव्यक्त किया?
उत्तर: हमें उनके विचारों की जानकारी उनकी साखियों और पदों के विशाल संग्रह से मिलती है, जिनके बारे में यह कहा जाता है कि इनकी रचना तो कबीर ने की थी परंतु ये घुमंतू भजन-गायकों द्वारा गाए जाते थे। इनमें से कुछ भजन गुरु ग्रंथ साहब, पंचवाणी और बीजक में संग्रहित एवं सुरक्षित हैं।
कबीर के उपदेश प्रमुख धार्मिक परंपराओं की पूर्ण एवं प्रचंड अस्वीकृति पर आधारित थे। उनके उपदेशों में ब्राह्ममणवादी हिंदू धर्म और इस्लाम दोनों की बाह्य आंडबरपूर्ण पूजा के सभी रूपों का मज़ाक उड़ाया गया है। उनके काव्य की भाषा बोलचाल की हिंदी थी, जो आम आदमियों द्वारा आसानी से समझी जा सकती थी। उन्होंने कभी-कभी रहस्यमयी भाषा का भी प्रयोग किया, जिसे समझना कठिन होता है।
आइए समझें |
5. सूफ़ियों के प्रमुख आचार-व्यवहार क्या थे?
उत्तर: संतों और सूफ़ियों में बहुत अधिक समानता थी, यहाँ तक कि यह भी माना जाता है कि उन्होंने आपस में कई विचारों का आदान-प्रदान किया और उन्हें अपनाया। सूफ़ी मुसलमान रहस्यवादी थे। वे धर्म के बाहरी आडंबरों को अस्वीकार करते हुए ईश्वर के प्रति प्रेम और भक्ति तथा सभी मनुष्यों के प्रति दयाभाव रखने पर बल देते थे।
इस्लाम ने एकेश्वरवाद यानी एक अल्लाह के प्रति पूर्ण समर्पण का दृढ़ता से प्रचार किया। आठवीं और नवीं शताब्दी में धार्मिक विद्वानों ने पवित्र कानून (शरिया) और इस्लामिक धर्मशास्त्र के विभिन्न पहलुओं को विकसित किया। इस्लाम धीरे-धीरे और जटिल होता गया जबकि सूफ़ियों ने एक अलग रास्ता दिखाया जो ईश्वर के प्रति व्यक्तिगत समर्पण पर बल दिया। सूफ़ी लोगों ने मुसलिम धार्मिक विद्वानों द्वारा निर्धारित विशद् कर्मकांड और आचार-संहिता को बहुत कुछ अस्वीकार कर दिया। वे ईश्वर के साथ ठीक उसी प्रकार जुड़े रहना चाहते थे, जिस प्रकार एक प्रेमी, दुनिया की परवाह किए बिना अपनी प्रियतमा के साथ जुड़े रहना चाहता है।
6. आपके विचार से बहुत-से गुरुओं ने उस समय प्रचलित धार्मिक विश्वासों तथा प्रथाओं को अस्वीकार क्यों किया?
उत्तर: हमारे विचार से बहुत से गुरुओं ने उस समय प्रचलित धार्मिक विश्वासों तथा प्रथाओं को इसलिए अस्वीकार किया क्योंकि-
(i) विश्वास और प्रथाएँ रूढ़ियों से ग्रस्त हो चुकी थीं।
(ii) प्राचीनकाल से चले आ रहे ऐसे धार्मिक कर्मकांड जिसमें कई तरह की कुरीतियाँ व्याप्त हो गई थीं।
(iii) उस समय प्रचलित धार्मिक विश्वास तथा प्रथाएँ समानता पर आधारित नहीं थीं। कई वर्गों के साथ काफी भेदभाव किया जाता था।
(iv) इनसे जातिगत विभाजन जटिल होता जा रहा था।
(v) अवतारवाद तथा विभिन्न धार्मिक कर्मकांडों से साधारण जनता भ्रम का शिकार हो चुकी थी।
7. बाबा गुरु नानक की प्रमुख शिक्षाएँ क्या थीं?
उत्तर: बाबा गुरुनानक की प्रमुख शिक्षाएँ निम्न हैं—
(i) गुरु नानक ने एक ईश्वर की उपासना के महत्त्व पर जोर दिया।
(ii) जाति-पाति और लिंग-भेद की भावना से दूर रहना।
(iii) उनके उपदेशों को नाम-जपना, कीर्तन करना और वंड-छकना के रूप में याद किया जाता है।
(iv) उन्होंने धार्मिक कर्मकांडों और रीतिरिवाजों तथा जातिपांति का विरोध किया।
आइए विचार करें |
8. जाति के प्रति वीरशैवों अथवा महाराष्ट्र के संतों का दृष्टिकोण कैसा था? चर्चा करें।
उत्तर: जाति के प्रति वीरशैवों के विचार: वीरशैवों ने सभी व्यक्तियों की समानता के पक्ष में और जाति तथा नारी के प्रति व्यवहार के बारे में ब्राह्मणवादी विचारधारा के विरुद्ध अपने प्रबल तर्क प्रस्तुत किए। इसके अलावा वे सभी प्रकार के कमर्काडों और मूर्तिपूजा के विरोधी थे।
जाति के प्रति महाराष्ट्र के संतों के विचार: तेरहवीं से सत्रहवीं शताब्दी तक महाराष्ट्र में अनेकानेक संत कवि हुए, जिनके सरल मराठी भाषा में लिखे गए गीत आज भी जन-मन को प्रेरित करते हैं। उन संतों में सबसे महत्त्वपूर्ण थे-ज्ञानेश्वर, नामदेव, एकनाथ और तुकाराम तथा सखूबाई जैसी स्त्रियाँ तथा चोखामेळा का परिवार, जो ‘अस्पृश्य’ समझी जाने वाली महार जाति का था। भक्ति की यह क्षेत्रीय परंपरा पंढरपुर में विठ्ठल (विष्णु का एक रूप) पर और जन-मन के हृदय में विराजमान व्यक्तिगत देव (ईश्वर) संबंधी विचारों पर केंद्रित थी।
9. आपके विचार से जनसाधारण ने मीरा की याद को क्यों सुरक्षित रखा?
उत्तर: हमारे विचार से जनसाधारण ने मीराबाई की याद को निम्न कारणों से सुरक्षित रखा:
(i) मीराबाई ने अपने गीतों द्वारा उच्च जातियों की रूढ़ियोंरीतियों को खुली चुनौती दी।
(ii) वह शाही परिवार से संबंध रखती थी कृष्ण की दीवानी थी।
(iii) मीराबाई एक राजपूत राजकुमारी थीं और उसका विवाह मेवाड़ के राजपरिवार में हुआ था, फिर भी उन्होंने रविदास जो अस्पृश्य जाति से संबंधित थे।
(iv) उन्होंने भगवान कृष्ण की उपासना में अपने आप को समर्पित करते हुए भक्ति के प्रेम मार्ग को जनता के समक्ष रखा।
आइए करके देखें |
10. पता लगाएँ कि क्या आपके आस-पास भक्ति परंपरा के संतों से जुड़ी हुई कोई दरगाह, गुरुद्वारा या मंदिर है। इनमें से किसी एक को देखने जाइए और बताइए कि वहाँ आपने क्या देखा और सुना।
उत्तर: विद्यार्थी स्वयं करें।
11. इस अध्याय में अनेक संत कवियों की रचनाओं के उद्धरण दिए गए हैं। उनकी कृतियों के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त करें और उनकी उन कविताओं को नोट करें, जो यहाँ नहीं दी गई हैं। पता लगाएँ कि क्या ये गाई जाती हैं। यदि हाँ, तो कैसे गाई जाती हैं और कवियों ने इनमें किन विषयों पर लिखा था।
उत्तर: विद्यार्थी स्वयं करें।
12. इस अध्याय में अनेक संत-कवियों के नामों का उल्लेख किया गया है, परंतु कुछ की रचनाओं को इस अध्याय में शामिल नहीं किया गया है। उस भाषा के बारे में कुछ और जानकारी प्राप्त करें, जिसमें ऐसे कवियों ने अपनी कृतियों की रचना की। क्या उनकी रचनाएँ गाई जाती थीं? उनकी रचनाओं का विषय क्या था?
उत्तर: विद्यार्थी स्वयं करें।