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NCERT Class 11 Sangeet Chapter 5 हिंदुस्तानी संगीत में राग पद्धति का क्रमिक विकास
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हिंदुस्तानी संगीत में राग पद्धति का क्रमिक विकास
Chapter: 5
हिंदुस्तानी संगीत गायन एवं वादन
अभ्यास
इस पाठ को आप पढ़ चुके हैं। आइये, नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर प्रयास करें-
1. गान के दो भेद कौन से हैं?
उत्तर: गान के दो भेद है— निबद्ध और अनिबद्ध।
2. रामायण के समय कौन से ग्राम राग थे?
उत्तर: रामायण के समय षड्ज ग्राम व मध्यम ग्राम राग थे।
3. मार्गी संगीत को विस्तार से समझाइए।
उत्तर: मार्गी संगीत वह प्राचीन शास्त्रीय संगीत है जिसका उल्लेख संस्कृत ग्रंथों में मिलता है। यह ब्राह्मणों और विद्वानों द्वारा गाया और सीखा जाता था तथा इसका संबंध देवालयों एवं राजदरबारों से था। इसे शुद्ध शास्त्रीय संगीत भी कहा जाता है। मार्गी संगीत का अनुसरण नाट्यशास्त्र और संगीतरत्नाकर जैसे ग्रंथों के सिद्धांतों पर आधारित होता है।
4. जातियों से क्या अभिप्राय था?
उत्तर: रामायण में जातियों के विषय में वर्णित है कि जातिभीर्सप्तमिर्बद्धं तन्त्रीलय समन्वितम् अर्थात रामायण गान, सात जातियों से निबद्ध था तथा तंत्रीलय (तार से बने वाद्य द्वारा बजायी गई लयबद्ध धुन) से समन्वित था। लव और कुश के द्वारा गायी गई राम की गाथा स्वरबद्ध थी एवं शब्दों को भी उच्च कोटि का माना गया था।
5. देशी संगीत के प्रचलित होने के क्या प्रमुख कारण हैं? अपने शब्दों में बताइए।
उत्तर: देशी संगीत के प्रचलित होने के निम्नलिखित प्रमुख कारण हैं—
(i) सरलता: देशी संगीत शब्दों, धुनों और लय में सरल होता है, जिसे हर कोई गा और समझ सकता है।
(ii) स्थानीय भाषा में रचना यह क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों में होता है, जिससे लोग भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं।
(iii) लोक परंपराओं से जुड़ाव देशी संगीत विवाह, त्योहार, खेती आदि में उपयोग होता है, जिससे यह जीवन का हिस्सा बन जाता है।
(iv) मौखिक परंपरा से प्रचार इसे लोग सुनकर सीखते हैं, जिससे यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी फैलता गया।
(v) स्थानीय वाद्य यंत्रों का प्रयोग जैसे ढोलक, इकतारा, सारंगी आदि जो स्थानीय लोगों के लिए सहज उपलब्ध होते हैं।
(vi) भावनाओं की अभिव्यक्ति इसमें आम लोगों के दुख, सुख, प्रेम, संघर्ष आदि को सरलता से व्यक्त किया जाता है।
6. महाभारत के समय मूच्र्छना से क्या अभिप्राय था?
उत्तर: महाभारत के समय मूच्र्छना से यह अभिप्राय था कि किसी निश्चित स्वर से आरंभ होकर एक विशेष क्रम से अन्य स्वरों का प्रयोग करना, जिससे विशिष्ट राग उत्पन्न होता है। यह प्राचीन राग निर्माण की एक विधि थी।
7. प्राचीन काल में निम्नलिखित स्वरों के लिए प्रयुक्त की गई शब्दावली बताइए
(क) दो स्वर।
उत्तर: दो स्वर: गावतक।
(ख) एक स्वर।
उत्तर: एक स्वर: आवश्यक।
(ग) तीन स्वर।
उत्तर: तीन स्वर: साम्यक।
(घ) चार स्वर।
उत्तर: चार स्वर: स्वरांतर।
8. मार्गी-देशी संगीत के अंतर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: मार्गी-देशी संगीत के अंतर है—
मार्गी संगीत | देशी संगीत |
‘मार्गी’ का अर्थ है ‘शास्त्रीय मार्ग से चलने वाला’ संगीत। | ‘देशी’ का अर्थ है ‘स्थानीय या प्रादेशिक परंपरा से उत्पन्न संगीत’। |
यह वैदिक एवं पुराणिक काल से संबंधित है। | यह मार्गी संगीत के आधार पर विकसित हुआ, परंतु क्षेत्रीय भावनाओं और परंपराओं से जुड़ा रहा। |
नाट्यशास्त्र (भरत मुनि द्वारा रचित) मार्गी संगीत का प्रमुख ग्रंथ है। | यह आम लोगों के बीच लोकप्रिय रहा – जैसे लोकगीत, भक्ति संगीत, और क्षेत्रीय राग। |
यह संगीत देवालयों, यज्ञों और नाट्य मंचों पर गाया-बजाया जाता था। | इसमें सरलता, भावप्रधानता और स्थानीयता अधिक होती है। |
9. देशी संगीत से आप क्या समझते हैं? विस्तारपूर्वक समझाइए।
उत्तर: देशी संगीत से हम यह समझते हैं कि किसी विशेष क्षेत्र, समुदाय या लोक संस्कृति से उत्पन्न होती है और जिसे आम लोग अपनी दिनचर्या, त्योहारों और सामाजिक अवसरों पर गाते-बजाते हैं। यह संगीत शास्त्रीय नियमों से बंधा नहीं होता, बल्कि भावों और अनुभवों से जुड़ा होता है। इसमें क्षेत्रीय भाषा, रीति-रिवाज, लोककथाएँ और जीवन के रंग-बिरंगे पहलू दिखाई देते हैं। यह संगीत परंपरागत रूप से मौखिक रूप में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचा है और उसमें सरलता, आत्मीयता और सजीवता होती है।
देशी संगीत लोगों के जीवन का हिस्सा है, वह खेतों में काम करते समय, बच्चों को सुलाते समय, विवाह और त्योहारों में गाया जाता है। इसमें ढोलक, खंजरी, इकतारा, सारंगी जैसे स्थानीय वाद्य यंत्रों का प्रयोग होता है। देशी संगीत हमारे सांस्कृतिक मूल्यों, भावनाओं और सामाजिक जीवन को अभिव्यक्त करता है और भारत की सांस्कृतिक विविधता को जीवंत बनाता है।
10. थाट-राग पद्धति किस पद्धति के सिद्धांतों पर आधारित है?
उत्तर: थाट-राग पद्धति सात स्वर पद्धति के सिद्धांतों पर आधारित है।
11. थाट और राग के भेद को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: थाट और राग का संबंध जनक और जन्य का है। थाट वह आधार है जिससे रागों की उत्पत्ति होती है। एक थाट से कई राग बनाए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए, यमन थाट से राग यमन, राग हंसध्वनि और राग भूपाली का निर्माण होता है। थाट केवल एक स्वरों का क्रम है जबकि राग में स्वरों का विशेष चयन और प्रयोग होता है जो किसी भाव को प्रकट करता है। थाट और राग भारतीय शास्त्रीय संगीत के मूल आधार हैं। थाट का प्रयोग केवल राग निर्माण में होता है, जबकि राग संगीत प्रस्तुति में प्रमुख भूमिका निभाता है। थाट स्थैतिक है जबकि राग गतिशील होता है, जिसमें भाव, रस और समय का विशेष महत्व होता है। थाट और राग का यह संबंध संगीत की गहराई और परंपरा को दर्शाता है।
थाट और राग के भेद है—
विशेषता | थाट | राग |
परिभाषा | सात स्वरों का निश्चित क्रम जिसमें सभी स्वर (स, रे, ग, म, प, ध, नि) शामिल होते हैं। | स्वरों का एक विशिष्ट संयोजन जो संगीत में भाव और रस उत्पन्न करता है। |
स्वर संरचना | हमेशा संपूर्ण होता है, यानी सभी सात स्वर होते हैं। | पाँच, छह या सात स्वर हो सकते हैं। |
आरोह-अवरोह | स्वर हमेशा आरोही क्रम में होते हैं। | आरोह (चढ़ाव) और अवरोह (उतराव) का नियम होता है। |
उपयोगिता | रागों की उत्पत्ति और वर्गीकरण का आधार। | शास्त्रीय संगीत का मुख्य आधार और प्रस्तुति का माध्यम। |
12. मेल स्वर समूह स्याद्रागण्जन्यशक्तिमानं श्लोक का अर्थ समझाइए।
उत्तर: मेल स्वर समूह स्याद्रागण्जन्यशक्तिमानं श्लोक का अर्थ यह है कि मेल या थाट वह मूल स्वर-ढांचा है जो रागों का आधार होता है। हर राग किसी न किसी थाट से उत्पन्न होता है, इसलिए थाट को रागों की जननी (मूल) माना जाता है। उदाहरण के लिए, राग यमन ‘कल्याण थाट’ से उत्पन्न होता है।
13. ख्याल गायन में अनिबद्ध गान का प्रयोग कहाँ पर होता है? समझाइए।
उत्तर: ख्याल गायन में अनिबद्ध गान का प्रयोग मुख्यतः विलंबित ख्याल की शुरुआत में होता है, जहाँ गायक आलाप के माध्यम से राग का विस्तार करता है। इसमें ताल का बंधन नहीं होता और यह राग की भावनात्मक अभिव्यक्ति के लिए उपयोग होता है।
14. हर राग सात स्वरों से रचित होने के बावजूद भिन्न सुनाई देता है, इस बात की पुष्टि कीजिए।
उत्तर: यह कथन सत्य है कि हर राग सात स्वरों से ही बना होता है, लेकिन उनके चयन, क्रम, कोमल या तीव्र रूप, विशेष प्रयोग (जैसे वादी-संवादी, पकड़, चलन) और समय के अनुसार उनकी भाव-व्यक्ति अलग होती है। इसी कारण राग भूपाली और राग यमन, दोनों में सा, रे, ग, प, ध जैसे स्वर होते हुए भी उनकी मूड, रस और पहचान बिलकुल भिन्न होती है। यह स्वर विन्यास, राग की पहचान और भाव को विशेष बनाता है।
15. थाट-राग वर्गीकरण के नियमों को विस्तार से बताइए।
उत्तर: थाट-राग वर्गीकरण के नियम निम्नलिखित है—
(i) थाट सदैव संपूर्ण होता है अर्थात् सभी थाटों में सातों स्वर का प्रयोग अनिवार्य है। हमें ज्ञात है कि राग सात स्वर, छः स्वर या पाँच स्वर किसी भी जाति से बन सकता है। थाट को जनक माना गया है और इसलिए विभिन्न जातियों के राग उत्पन्न करने के लिए उसमें सातों स्वरों का होना अनिवार्य है। थाट में लगने वाले स्वर भी क्रमयुक्त होने चाहिए। स्वरों के विकृत रूप उलट-पलट कर प्रयोग किये जा सकते हैं परंतु उनका क्रम सा, रे, ग, म, प ध, नि ही होना चाहिए।
(ii) थाट में आरोह-अवरोह दोनों का होना आवश्यक नहीं होता, थाट के लिए केवल आरोह की ही आवश्यकता होती है।
(iii) थाट में रंजकता का होना आवश्यक नहीं है।
(iv) थाट गाया-बजाया नहीं जाता।
(v) यह एक आधार समान है जिससे अनेक रागों का जन्म संभव है। थाट स्वयं गाए-बजाए नहीं जाते। ऐसी मान्यता है कि थाट जननी है एवं इससे उत्पन्न होने वाले राग इसकी संतान जैसे हैं। इसे ‘जनक-जन्य’ पद्धति नाम से भी यह जाना जाता है।
(vi) थाट को पहचानने के लिए उससे उत्पन्न किसी प्रमुख राग का नाम उस थाट को दे दिया जाता है। अधिकतर वह प्रमुख राग ही उस थाट का आश्रय राग बन जाता है।
16. निबद्ध-अनिबद्ध गान से आप क्या समझते हैं? विस्तार से समझाइए।
उत्तर: संगीत रत्नाकर ग्रंथ में गान के दो भेद निबद्ध व अनिबद्ध के बारे में बताया गया है। शाङ्गदेव के गायन या वादन में छंद, पद, वर्ण व ताल आदि के बंधन द्वारा गाए गान को ‘निबद्ध’ कहते हैं। अनिबद्धगान स्वतः स्फूर्त होता है। संगीत रत्नाकर में आलाप-आलप्ति द्वारा राग की स्थापना होती थी। उनके अनुसार वर्ण व अलंकार से विभूषित तथा गमक व स्थाय (विभिन्न प्रकार के स्वर समुदाय) आदि से परिपूर्ण गान जो सुनने में मधुर हो और जिन स्वर समुदायों से राग स्पष्ट हो. उसे ‘आलप्ति’ कहा गया है। आलप्ति के द्वारा अभिव्यक्ति भी दो तरह की थी- एक तो निबद्ध रचना यानि बंदिश (जिसमें पद ताल के साथ गाए जाते थे) और दूसरी, बंदिश गाने से पहले स्वर-विस्तार जो कि ‘अनिबद्ध’ कहा जाता था।
17. आपके अनुसार संगीत की विभिन्न शैलियाँ ध्रुपद, धमार, टप्पा, ठुमरी आदि किसके अंतर्गत आती हैं निबद्ध अथवा अनिबद्ध अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: इनमें से अधिकतर शैलियाँ निबद्ध गान की श्रेणी में आती हैं क्योंकि वे ताल और बंदिश में बंधी होती हैं।
(i) ध्रुपद, धमार, टप्पा, ठुमरी: निबद्ध।
(ii) आलाप, विस्तार: अनिबद्ध।
18. निबद्ध गान में ताल के महत्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर: निबद्ध गान में ताल के महत्व यह है कि जो ताल से बंधा हुआ है, इसमें स्वर, ताल और पद तीनों तत्व आवश्यक हैं। गान के तीन नाम मिलते हैं-प्रबंध, वस्तु और रूपका प्रबंध महत्वपूर्ण हैं जो आज की बंदिशों की भाँति गाए जाते थे।
संगीत में समय नापने के साधन को ताल कहते हैं। यह विभागों और मात्राओं के समूह से बनता है। दूसरे शब्दों में जय नापने के साधन को जो मात्राओं का समूह होता है, संगीत-शास्त्र में ताल कहते हैं। ताल लय को प्रकट करने की प्रक्रिया है।
19. आलाप के प्राचीन एवं आधुनिक सिद्धांतों के भेद को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: आलाप के प्राचीन एवं आधुनिक सिद्धांतों के भेद है—
प्राचीन सिद्धांत: प्राचीन सिद्धांतों के अनुसार, आलाप राग की आत्मा है और उसका विस्तार बहुत गंभीर, शांत और धीरे-धीरे किया जाता था। इसमें लय का प्रयोग बहुत कम या नहीं के बराबर होता था। आलाप केवल राग के स्वरूप और भाव की प्रस्तुति के लिए होता था और यह राग की सूक्ष्मताओं को समझाने का माध्यम माना जाता था। इसे “निबद्ध” न मानकर पूरी तरह “अनिबद्ध” और आत्मिक अनुभव का रूप माना जाता था।
आधुनिक सिद्धांतों: आधुनिक सिद्धांतों में आलाप का प्रयोग अधिक लयात्मक हो गया है और इसका उद्देश्य केवल राग का विस्तार नहीं, बल्कि श्रोता को आकर्षित करना भी बन गया है। आज के ख्याल गायन में आलाप के बाद राग की विशेषताओं को तानों, बोल-आलाप, और सुरों की सजावट के साथ प्रस्तुत किया जाता है। आधुनिक शैली में ताल की छाया भी आलाप में आ जाती है, जिससे यह अधिक प्रभावशाली बनता है।
20. थाट-राग पद्धति को विस्तार से समझाइए।
उत्तर: उत्तर भारतीय शास्त्रीय संगीत में थाट-राग पद्धति की मान्यता है। विष्णु नारायण भातखण्डे ने समस्त रागों को दस थाटों के अंतर्गत विभाजित किया गया है। उन्हीं के सिद्धांतों के अनुसार इस पद्धति का प्रचलन एवं मान्यता वर्तमान समय में भी है। पंडित विष्णु नारायण भातखंडे वह पहले आचार्य थे जिन्होंने ‘थाट पद्धति’ को उत्तर भारतीय संगीत में रागों के वर्गीकरण हेतु स्वीकार किया और उसे व्यावहारिक संगीत में स्थापित किया। यह पद्धति मध्यकालीन मेल प्रणाली पर आधारित है। यद्यपि पंडित अहोबल के समय से ही इस दिशा में प्रयास किए जा रहे थे और इसके सिद्धांतात्मक पक्ष का प्रतिपादन भी होता रहा था, किंतु उसे व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत करने का कार्य भातखंडे जी ने ही किया। परंतु क्रियात्मक संगीत में इन ग्रंथों की अनभिज्ञता के कारण इस पद्धति को स्थान न मिल पाया व मध्य काल में राग-रागिनी पद्धति का प्रयोग निरंतर चलता रहा।
सही या गलत बताइए—
1. गान के तीन भेद माने गए हैं। (सही/गलत)
उत्तर: गलत।
2. विभिन्न स्थान की जनरुचि के अनुसार हृदय का रंजन करने वाले संगीत को मार्गी संगीत कहते हैं। (सही/गलत)
उत्तर: गलत।
3. ध्रुपद, स्वरमालिका, त्रिवट आदि सांगीतिक रचनाएँ देशी संगीत में ही समन्वित हैं।(सही/गलत)
उत्तर: सही।
4. मार्गी संगीत में शास्त्रोक्त नियमों का दृढ़ता से पालन नहीं होता। (सही/गलत)
उत्तर: गलत।
रिक्त स्थानों (श्लोकों) की पूर्ति कीजिए-
1. रंजको_________ सच__________।
उत्तर: रञ्जको रञ्जयत्येष सच राग इति स्मृतः।
2. जातिभीः __________ समन्वितम्।
उत्तर: जातिभिः क्रियते यत्र रागः स तत्समन्वितम्।
3. षड़जश्र ऋषभश्चैव ___________।
उत्तर: षड्जश्च ऋषभश्चैव गान्धारश्च तथैव च।
4. पंचमो ___________ निषादः सप्त च स्वरः।
उत्तर: पञ्चमो धैवतश्चैव निषादः सप्त च स्वराः।
5. ग्रहांशी तारमंद्रो च __________एवं च।
उत्तर: ग्रहांश्च तारमन्द्रो च साधारण एव च।
6. निम्नलिखित श्लोकों को पूरा कीजिए तथा भावार्थ लिखिए-
(क) मार्गोदेशीति __________ भरतादिभिः।।
उत्तर: मार्गो देशीति ख्यातः संगीतशास्त्रकोविदैः।
भरतादिभिश्च मुनिभिर्मार्गोदेशीति कथ्यते।।
(ख) देशे-देशे __________ तद्देशीत्यभिधीयते।।
उत्तर: देशे देशे यः प्रवृत्तो रागो लोकप्रसिद्ध्यया।
स देशी इत्यभिधीयते तद्देशैस्त्वनुगम्यते।।
7. निम्न तालिका में रिक्त स्थानों पर थाटों के नाम व शद्ध एवं कोमल स्वर लिखिए—
थाट | स्वर |
बिलावल | स__________ ग म ________ |
__________ | स रे ग म प ध नि स |
भैरव | स रे _____________ नि सं |
खमाज | स_______________ सं |
____________ | स रे ग म प ध नि स |
आसावरी | स______ म प ________सं |
_____________ | स रे ग म प ध नि सं |
मारवा | ________ रे________ |
पर्वी | __________ ध नि स |
भैरवी | _______________ |
उत्तर:
थाट | स्वर |
बिलावल | स रे ग म प ध नि सं |
यमन | स रे ग म प ध नि स |
भैरव | स रे ग म प ध नि सं |
खमाज | स रे ग म प ध नी सं |
काफी | स रे ग म प ध नि स |
आसावरी | स रे ग म प ध नि सं |
तोड़ी | स रे ग म प ध नि सं |
मारवा | स रे ग म प ध नि सं |
पर्वी | स रे ग म प ध नि सं |
भैरवी | स रे ग म प ध नि सं |
INTEXT QUESTIONS |
1. किसी भी राग में किन नियमावलियों का पालन किया जाता है?
उत्तर: किसी भी राग में शुद्ध एवं कोमल स्वर, विशिष्ट स्वर, आरोह-अवरोह, वादी-संवादी, जाति, आलाप, तान, वर्जित स्वर, ताल, लय, कण, मींड इत्यादि का पालन किया जाता है।
2. मतंग मुनि ने बृहद्देशी ग्रंथ में किस तरह राग की परिभाषा दी है?
उत्तर: मतंग मुनि ने अपने ग्रंथ बृहद्देशी में राग की स्पष्ट परिभाषा देते हुए लिखा है-
योऽसौ ध्वनिविशेषस्तु स्वरवर्ण विभूषतः
“रंजको जनचित्तानां स च राग उदाहृतः”
बृहदेशी, तृतीयोऽध्यायः, श्लोक 264
अर्थात् जो ध्वनि मनुष्य के चित्त का रंजन करती है उसे ही ‘राग’ कहा गया है।
राग में नियमित स्वर एवं विविध स्वर समूह होने के कारण अलग-अलग छवि चित्रित होती
(i) आरोह: स रे ग म प ध नि सं
(ii) अवरोह: सं नि ध प म ग रे स
3. संगीत में गेय विधाओं के उदाहरण बताइए।
उत्तर: संगीत में गेय विधाओं के उदाहरण निम्नलिखित है—
(i) शास्त्रीय संगीत में ध्रुपद, धमार, विलंबित ख्याल, दुत ख्याल इत्यादि।
(ii) उपशास्त्रीय संगीत में ठुमरी, दादरा, कजरी इत्यादि।
(i) लोक संगीत में विभिन्न प्रदेशों के गीत, उनकी विशिष्ट बोलियों के साथ।
(ii) सुगम संगीत में जीवन के विविध भावों से युक्त गीत, भजन, सामाजिक क्रियाकलापों से युक्त शिक्षाप्रद गीत, गजल आदि।
4. सामवेद में विविध स्वर प्रयोग से युक्त गायन में दिए गए नामों का स्मरण कीजिए।
उत्तर: सामवेद में विविध स्वर प्रयोग से युक्त गायन में दिए गए नाम है—
(i) आर्चिक – एक स्वर।
(ii) गाथिक – दो स्वर।
(iii) सामिक – तीन स्वर।
(iv) स्वरान्तर – चार स्वर।
5. वैदिक काल में संगीतय मंत्रोच्चारण की प्रथा कौन निभाते थे?
उत्तर: वैदिक काल में संगीतय मंत्रोच्चारण की प्रथा उद्गाथा, प्रस्तोता और प्रतिहर्ता ये तीनों मिलकर निभाते थे।
6. रामायण में किन जातियों का उल्लेख किया गया है। जाति की रचना कैसे होती है?
उत्तर: रामायण में पाठ्य जाति और स्वर जाति का उल्लेख किया गया है। जाती की रचना श्रुति, ग्रह, स्वर आदि के समूह से होती थी।
7. नाट्यशास्त्र में लिखे श्लोक जो जाति के 10 लक्षणों का उल्लेख करते हैं, याद कीजिए एवं समूह में बोलिए।
उत्तर: नाट्यशास्त्र में लिखे श्लोक जो जाति के 10 लक्षणों का उल्लेख करते हैं—
(i) ग्रह।
(ii) अंश।
(iii) तार।
(iv) मंद्र।
(v) न्यास।
(vi) अपन्यास।
(vii) अल्पत्व।
(viii) बहुत्व।
(ix) औडवत्व।
(x) षाडवत्व।
8. रामायण में ग्राम शब्द से क्या अभिप्राय था?
उत्तर: रामायण में ग्राम शब्द से यह अभिप्राय था कि ग्राम राग में विभिन्न जातियों को गाने की प्रथा थी। निश्चित श्रुति के अंतरालों पर स्थापित किए गए सात स्वरों को ‘ग्राम’ कहा जाता था। विभिन्न स्वरावली के प्रयोग से नियमित श्रृंखला बनाते हुए गीत (जिसको विभिन्न नामों से जाना जाता है) या धुनों को गाने-बजाने की प्रथा ‘जाति’ में निहित थी।
9. रामायण में राग शब्द किस तरह प्रयोग किया गया है?
उत्तर: राग शब्द रामायण में पाया गया है, टीकाकार रामानुजीय ने व्याख्या की है कि “कैशिक रागविशेषः तदाचार्ये तुंबरू प्रभृतिभिरित्यर्थः” जिसमें रामायण में पाए जाने वाली राग कैशिक का स्पष्टीकरण होता है।
10. महाभारत काल में मूच्र्छना शब्द से क्या समझा जाता था।
उत्तर: महाभारत काल में गीत, वाद्य एवं नृत्य समाज का अभिन्न अंग था। रामायण एवं महाभारत में साम गान का प्रयोग वैदिक आर्यों के दैनंदिन जीवन का अश था। यज्ञ के अलावा जन्म तथा मृत्यु जैसे लौकिक प्रसंगों में भी साम गान किया जाता था। जाति के अलावा इस ग्रंथ में मूर्छना शब्द का प्रयोग मिलता है।
11. नाट्यशास्त्र की रचना किन ग्रंथों के संकलन से मानी जाती है?
उत्तर: नाट्यशास्त्र की रचना ऋग्वेद के पाठ्च, सामवेद के संगीत, यजुर्वेद के अभिनय तथा अथर्ववेद के रस से समाहित मानी जाती है, इसलिए इसे नाट्यवेद’ भी कहा जाता है।
12. नाट्यशास्त्र में दिया गया कौन सा श्लोक सातों स्वरों की पुष्टि देता है? याद करके समूह में बोलिए।
उत्तर: नाट्यशास्त्र में दिया गया “षडजश्र ऋषभश्चैव गन्धारो मध्यमस्तथा । पंचमो धैवतश्चैव सप्तमोऽय निषादवात्।। (षड्ज, ऋषभ, गंधार, मध्यम, पंचम धैवत तथा निषाद) श्लोक सातों स्वरों की पुष्टि देता है।
13. क्रमिक विकास में मूर्छना को गाने की पद्धति कैसी थी?
उत्तर: क्रमिक विकास में मूर्छना को गाने की पद्धति अवरोहन थी।
14. नाट्यशास्त्र में दिए गए पाँच प्रकार की गीति कैसी होती थी?
उत्तर: नाट्यशास्त्र में दिए गए पाँच प्रकार की गीति निम्नलिखित होती थी—
(i) शुद्धा: सीधे परंतु अल्प अलंकृत।
(ii) भिन्ना: साधारणतः अलंकृत।
(iii) गौड़ी: पूर्णतः अलंकृत।
(iv) बेसरा: द्रुत।
(v) साधारणी: साधारण रूप।
15. नाट्यशास्त्र के 32 वें एवं 33 वें अध्याय में संगीत की किन विशेष बातों का उल्लेख मिलता है।
उत्तर: नाट्यशास्त्र के 33वें अध्याय में मृदंगम् के संदर्भ में जाति, राग, तथा ग्राम राग का उल्लेख किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि वही मृदंगम् वादन श्रेष्ठ है जो बोलों की विशदता, स्पष्ट प्रहार, रक्तिगुण आदि के साथ राग के स्वरूप को स्पष्ट करें।
नाट्यशास्त्र के 32वें अध्याय में ‘ग्राम रागों’ का स्पष्ट नाम निर्देश उपलब्ध है, जो इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि ग्राम रागों का प्रचलन नाट्यशास्त्र (जो लगभग पहली सदी में लिखा गया है) की रचना से पहले ही था।
16. कश्यप मुनि ने राग की परिभाषा क्या दी है?
उत्तर: चौथी-पाँचवीं शताब्दी में कश्यप मुनि ने राग की परिभाषा इस प्रकार दी है-
“चतुर्णामपि वर्णना योगा रागः शोभना”
स सर्वो दृष्यते येन तेन राग इति स्मृताः।
बृहद्देशी, तृतीयोऽध्यायः, श्लोक 283
यह श्लोक मतंग मुनि के ग्रंथ बृहदेशी में दिया गया है अर्थात् चार वर्णों का योग राग को शोभनीय बनाता है, जो (चार वर्ण) राग में हर स्थान पर दिखाई देते हैं इसीलिए उसे राग कहा गया है।
17. मतंग मुनि ने राग के बारे में क्या-क्या कहा है- दो श्लोकों द्वारा व्यक्त कीजिए।
उत्तर: मतंग मुनि ने राग के बारे में दो श्लोक इस प्रकार कहे हैं-
(i) “योऽसौ ध्वनिविशेषस्तु स्वरवर्ण विभूषतः रंजको जनचित्तानां स च राग उदाहृतः
अर्थात् जो ध्वनि मनुष्य के चित्त का रंजन करती है उसे ही राग कहा गया है।
(ii) “स्वर वर्ण विशेषेण ध्वनिभेदेन वा पुनः रज्यते येन यः कश्चित सरागः समंतः सताम् ।”
अर्थात् विशिष्ट स्वर वर्ण (गान क्रिया) से अथवा ध्वनि भेद के द्वारा जो जन-रंजन में समर्थ है, वह राग है।
18. शाङ्गदेव ने 22 श्रुतियों में शुद्ध स्वर को कहाँ रखा है।
उत्तर: शाङ्गदेव ने 22 श्रुतियों के आधार पर स्वरों की श्रुतियाँ इस प्रकार मानी हैं: स-4, रे-3, ग-2, म-4, प-4, घ-3, नि-21

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