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NCERT Class 11 Sangeet Chapter 4 हिंदुस्तानी संगीत की गायन एवं वादन विधाएँ
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हिंदुस्तानी संगीत की गायन एवं वादन विधाएँ
Chapter: 4
हिंदुस्तानी संगीत गायन एवं वादन
अभ्यास
आइये, देखते हैं क्या इस पाठ को पढ़कर हम निम्न प्रश्नों के उत्तर दे सकते हैं-
1. ध्रुपद गायन शैली की उत्पत्ति पर प्रकाश डालते हुए उसकी विशेषताओं को विस्तार से समझाइए।
उत्तर: ध्रुपद गायन शैली की उत्पत्ति पर प्रकाश डालते हुए उसकी विशेषताएँ है—
(i) ऐसा माना जाता है कि दसवीं से तेरहवीं में ध्रुपद की उत्पत्ति प्रबंध से हुई है।
(ii) समय के साथ, प्रबंध में हुए परिवर्तनों के कारण ध्रुपद का विकास हुआ।
(iii) ध्रुपद गंभीर प्रकृति की गायकी है, जिसमें कंठ और फेफड़ों पर जोर दिया जाता है, और इसमें गमक और मीड़ का विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है, जबकि मुर्की और तानें वर्जित हैं।
(iv) ध्रुपद में प्रायः वीर, रौद्र, शांत, श्रृंगार, करुण और भक्ति रस की अभिव्यक्ति होती है। इसके साथ पखावज जैसे गंभीर वाद्य का प्रयोग किया जाता है।
(v) कभी-कभी तबले का भी प्रयोग होता है। ध्रुपद गायन में नोम, तोम, रे, ते आदि बोलों से आलाप किया जाता है, और इसमें लयकारियों का प्रदर्शन महत्वपूर्ण होता है।
2. स्वरमालिका किसे कहते हैं? उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर: राग में गाई जाने वाली स्वरों की तालबद्ध रचना को ‘सरगम गीत’ या ‘स्वरमालिका’ कहते हैं। राग के चलन को ध्यान में रखकर तीनों सप्तकों में रची गई स्वरमालिका राग के स्वरों के चलन को स्पष्ट रूप से समझने में सहायक होता है। स्वरों का आरोह-अवरोह में विचरण, विशेष स्वर समूह इत्यादि तत्व, स्वरमालिका के अभ्यास द्वारा भली प्रकार समझ में आ जाते हैं। इसमें स्थायी और अंतरा दोनों गाए जाते हैं। इसमें बंदिश नहीं होती है केवल स्वर होते हैं। इस रचना का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों को स्वर, ताल, लय के साथ राग का ज्ञान कराना होता है।
उदाहरण—
3. ख्याल गायन शैली का प्रणेता किन्हें माना जाता है? इस गायन शैली के क्रमिक विकास का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर: ख्याल गायन शैली का प्रणेता जौनपुर के बादशाह सुल्तान हुसैन शाह शर्की को माना जाता है, जिन्होंने 15वीं शताब्दी में इसका प्रचार-प्रसार किया। ख्याल का विकास ध्रुपद के साथ-साथ विकसित होने वाली ख्याल गेय विधा की बंदिशें भी ब्रज, अवधी, हिंदी, उर्दू व राजस्थानी आदि प्रादेशिक भाषाओं के शब्दों से युक्त होकर प्रचलित होती रहीं। ख्याल गायन में एक बंदिश या रचना होती है। इसमें शब्द अधिकांशतः हिंदी, उर्दू या ब्रजभाषा में होते हैं। यह विभिन्न राग एवं तालों में गाई-बजाई जाती है। अधिकतर तीनताल, झपताल, एकताल, झूमरा, रूपक में ख्याल की बंदिशें गाई जाती हैं जो प्रायः विलंबित, मध्य एवं द्रुत लय में प्रस्तुत की जाती हैं।
ख्याल शैली में प्रायः दो बंदिशें गाई जाती हैं विलंबित यानि बड़ा ख्याल और द्रुत यानि छोटा ख्याल ख्याल की रचनाएँ प्रायः श्रृंगार, विरह, प्रेम तथा भक्ति भाव आदि से संबंधित होती हैं। ख्याल के शब्द विविध रसों से युक्त होते हैं, जैसे- भूपाली राग का ख्याल ‘जाऊँ तोरे चरण कमल पर वारी’ भक्ति रस दर्शाता है। राग यमन कल्याण में ‘सुंदर छवि ली नार मोहे नैन में समाए’ श्रृंगार रस को अभिव्यक्त करता है। इसी तरह अलग-अलग बंदिशें विभिन्न रसों को दर्शाती हैं।
4. लक्षण गीत में प्रायः राग के किन लक्षणों का उल्लेख होता है? सोदाहरण समझाइए।
उत्तर: लक्षण गीत राग के शास्त्रीय पक्ष (जैसे वादी, संवादी, आरोह-अवरोह, जाति, ग्रह, न्यास) और प्रयोगात्मक पक्ष (जैसे ताल-लय में प्रस्तुति) दोनों को सहज रूप में प्रस्तुत करता है।
लक्षण गीत में प्रायः किसी राग के निम्नलिखित लक्षणों का उल्लेख होता है-
राग का नाम
जैसे: “कान्हा मोहे आसावरी राग सुनाए” – यहाँ राग आसावरी का नाम स्पष्ट रूप से बताया गया है।
आरोह और अवरोह
आरोह: “ग नि को आरोहन में छुपाए” यह संकेत करता है कि ग और नि आरोह में प्रयुक्त नहीं होते, अर्थात राग का आरोह औडव (5 स्वरों वाला) है।
अवरोह: “सरेमरे मपधूप धूगुरेंस रेंनिधप” यह अवरोह की संपूर्णता को दर्शाता है (संपूर्ण अवरोह – सात स्वर)।
वादी और संवादी स्वर: “चैवत बादी ग संवादी” – यहाँ गंधार (ग) को वादी और निषाद (नि) को संवादी स्वर बताया गया है।
ग्रह और न्यास स्वर: “मध्यम सुर ग्रह न्यास सुपंचम” – मध्यम (म) को ग्रह स्वर और पंचम (प) को न्यास स्वर बताया गया है।
ताल और लय: उदाहरण में रचना त्रिताल में निबद्ध है, और लक्षण गीत सामान्यतः मध्य या द्रुत लय में गाया जाता है।
5. गत किसे कहते हैं? गत के प्रकारों को विस्तारपूर्वक लिखिए।
उत्तर: स्वरों की रचना जिस ताल में निबद्ध होती है वह ‘गत’ कहलाती है।
(i) मसीतखानी गत: यह गत तीन ताल में निबद्ध होती है। इसकी लय विलंबित होती है। इसकी शुरुआत सदैव बारहवीं मात्रा से होती है। इसमें निश्चित बोलों का प्रयोग किया जाता है जोकि इस प्रकार है-दिर दा दिर दारा दा दार, बारहवीं (12) मात्रा से तीसरी (3) मात्रा तथा पुनः चौथी (4) मात्रा से ग्यारहवीं (11) मात्रा तक इन्हीं बोलों की पुनरावृत्ति होती है। इसमें मींड, गमक, कण आदि का प्रयोग तथा चौगुण, छह गुण, अठगुण में तोड़े तथा लयकारी की जाती है। इस गत के निर्माता मसीत खाँ थे अतः उन्हीं के नाम के आधार पर इसे ‘मसीतखानी गत’ कहा जाता है। जिस गत में इन बोलों का पालन नहीं होता एवं तीन ताल के अलावा अन्य तालों का प्रयोग होता है उसे ‘विलंबित गत’ कहते है।
(ii) रज़ाखानी गत: इस गत के निर्माता रजा खाँ है अतः उन्हीं के नामानुसार इसे ‘रजाखानी गत’ कहते हैं। यह तीन ताल में निबद्ध होती है जिसमें दा दिर दिर दिर दाऽ र, द डर, दा अथवा दिर दिर दाऽ र, दा ऽर, दा के निश्चित बोल होना अनिवार्य है। इसकी लय द्रुत होती है। बंदिश प्रस्तुत करने के पश्चात इसमें दुगुन में तानें तथा लड़ियाँ प्रस्तुत की जाती हैं। अंत में एक साथ इस गत का समापन किया जाता है। जिस गत में इन बोलों का पालन नहीं होता है उसे द्रुत गत कहा जाता है।
6. शास्त्रीय संगीत में तराना गायन शैली की महत्ता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर: तराना शास्त्रीय संगीत की एक गायन शैली है। ख्याल गायकी के समान ही तराना गायन शैली भी शास्त्रीय संगीत की एक विशिष्ट गायन शैली है। इसकी विशेषता है कि तराना में बोल प्रायः निरर्थक होते हैं। इसकी लय बहुत तेज़ होती है अर्थात यह अति द्रुतलय में गाया जाता है। तराने प्रायः सभी रागों में गाये जाते हैं। इसमें भी स्थायी तथा अंतरा दो भाग होते हैं। इसे प्रायः ख्याल गायन के पश्चात् गाया जाता है। इसमें आलाप प्रायः नहीं गाते हैं। तानें भी बहुत छोटी और कम मात्रा की गाई जाती हैं। तराना गायकी के लिए गला बहुत तैयार होना चाहिए तथा स्वर, ताल और लय का अच्छा ज्ञान होना चाहिए। इसमें ओदेन, तोम, नोम, तदारे, दानि, तदी, यना, तनननना आदि निरर्थक शब्दों का प्रयोग किया जाता है। इसमें राग, ताल और लय का ही आनंद होता है।
सही या गलत बताइए-
1. ध्रुपद शैली का गायन प्रायः पखावज जैसे गंभीर वाद्य के साथ किया जाता है। (सही/गलत)
उत्तर: सही।
2. प्राचीन काल में भारतीय संगीत में केवल दो प्रकार की गीतियाँ प्रचलित थीं। (सही/गलत)
उत्तर: गलत।
3. ख्याल गायन के अंतर्गत द्रुत ख्याल विलंबित लय में गाया जाता है। (सही/गलत)
उत्तर: गलत।
4. तानरस खाँ एवं नत्थू खाँ के तराने अत्यंत प्रचलित हैं। (सही/गलत)
उत्तर: सही।
5. राग के चलन को ध्यान में रखकर तीनों सप्तकों में रची गई स्वरमालिका राग को स्पष्ट रूप से समझने में मदद करती है। (सही/गलत)
उत्तर: सही।
6. ध्रुपद की चार शैलियाँ थीं जिन्हें वाणी कहते थे। (सही/गलत)
उत्तर: सही।
7. ऐसी मान्यता है कि जौनपुर के बादशाह सुल्तान हुसैन शर्की ने ख्याल शैली का आविष्कार किया। (सही/गलत)
उत्तर: सही।
8. झूमरा और तिलवाड़ा तालों का प्रयोग ध्रुपद गायन के साथ किया जाता है। (सही/गलत)
उत्तर: गलत।
रिवत्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
1. प्राचीन काल में ध्रुपद गायकों को _________ कहा जाता था।
उत्तर: प्राचीन काल में ध्रुपद गायकों को कलावंत कहा जाता था।
2. अभय नारायण मल्लिक __________ गायन शैली के प्रमुख कलाकार हैं।
उत्तर: अभय नारायण मल्लिक ध्रुपद गायन शैली के प्रमुख कलाकार हैं।
3. सुल्तान हुसैन शाह शर्की को __________ गायन शैली का प्रवर्तक माना जाता है।
उत्तर: सुल्तान हुसैन शाह शर्की को ख्याल गायन शैली का प्रवर्तक माना जाता है।
4. राग में प्रयोग की जाने वाली स्वरों की तालबद्ध रचना को __________ कहते हैं।
उत्तर: राग में प्रयोग की जाने वाली स्वरों की तालबद्ध रचना को स्वरमालिका कहते हैं।
5. मआदनुल मुसीकी नामक ग्रंथ में वाणियों ध्रुपद की __________ उल्लेख मिलता है।
उत्तर: मआदनुल मुसीकी नामक ग्रंथ में वाणियों ध्रुपद की चार उल्लेख मिलता है।
6. तिलवाड़ा, झमरा आदि तालों के साथ प्रायः ________ ख्याल गाए जाते हैं।
उत्तर: तिलवाड़ा, झमरा आदि तालों के साथ प्रायः विलंबित ख्याल गाए जाते हैं।
7. ___________ नामक तालबद्ध रचना में बंदिश के बोल नहीं होते, केवल स्वर होते हैं।
उत्तर: सरगम गीत नामक तालबद्ध रचना में बंदिश के बोल नहीं होते, केवल स्वर होते हैं।
8. जिस रचना में राग के बादी-संवादी, गायन समय तथा अन्य लक्षण का वर्णन हो उसे ___________ कहते हैं।
उत्तर: जिस रचना में राग के बादी-संवादी, गायन समय तथा अन्य लक्षण का वर्णन हो उसे लक्षण गीत कहते हैं।
विभाग ‘अ’ के शब्दों का ‘आ’ विभाग में दिए गए शब्दों से मिलान करें-
अ | आ |
(क) वसिफुद्दीन डागर | 1. तराने के बोल |
(ख) झमरा | 2. ख्याल गायिका |
(ग) तदारे दा नि | 3. ध्रुपद |
(घ) सरगम गीत | 4. विलंबित ताल |
(ङ) केसरबाई केरकर | 5. स्वरमालिका |
उत्तर:
अ | आ |
(क) वसिफुद्दीन डागर | 3. ध्रुपद |
(ख) झमरा | 4. विलंबित ताल |
(ग) तदारे दा नि | 1. तराने के बोल |
(घ) सरगम गीत | 5. स्वरमालिका |
(ङ) केसरबाई केरकर | 2. ख्याल गायिका |
INTEXT QUESTIONS |
1. भारत के अलावा किस देश में तराना गाया जाता है? कलाकार का नाम, एक तराना के शब्द स्वर एवं लय पर विचार करें।
उत्तर: भारत के अलावा पाकिस्तान में भी तराना शैली का गायन लोकप्रिय है। पाकिस्तान के प्रसिद्ध संगीतकार उस्ताद नुसरत फतेह अली खाँ ने तराना शैली को अपनी गायकी में प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया है।
एक प्रसिद्ध तराना उदाहरण:
शब्द: “ओदरि दा ना, तदारि दा ना, तोम् ना ना तना”, आदि।
स्वर: ये शब्द किसी विशेष अर्थ से युक्त नहीं होते, बल्कि केवल ताल-लय और राग की प्रस्तुति हेतु प्रयुक्त होते हैं।
लय: तराना आमतौर पर तीव्र लय में गाया जाता है। यह तेज गति के आलाप, बोलबाँट और तानों से युक्त होता है।
2. किसी भी राग में, तीनताल में एक सरगम गीत की रचना करें।
उत्तर: राग: भूपाली
ताल: तीनताल (16 मात्राएँ)
सरगम गीत:
स्थायी: सा रे ग प, ग प ध प, ग प ग रे — सा
रे ग प ध, सा — सा
अंतरा: ग प ध प, ध नि ध प, ग प ग रे — सा
रे सा रे ग, रे — सा
लय: मध्यम (तीनताल – धा धा धिन ता | ता धा धिन ता | ता धा धिन ता | ता धा धा)

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