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NCERT Class 11 Sangeet Chapter 3 हिंदुस्तानी संगीत के पारिभाषिक शब्द
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हिंदुस्तानी संगीत के पारिभाषिक शब्द
Chapter: 3
हिंदुस्तानी संगीत गायन एवं वादन
अभ्यास
इस पाठ को आप पढ़ चुके हैं। आइये, नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर देने का प्रयास करें-
1. संगीत कला का माध्यम है इसकी पुष्टिकरण करें।
उत्तर: संगीत एक ऐसी कला या विधा है जिसका माध्यम है ध्वनि। ध्वनि के अनेक प्रकारों पर जब हम गहन दृष्टि डालते हैं तो पाते हैं कि ये विभिन्न प्रकार की ध्वनियाँ कभी हमें चौंकाती हैं, कभी हमारे अंदर दिलचस्पी जगाती हैं तो कभी अनूठी लगती हैं। कभी मेघ गर्जन की तरह तेज तो कभी नर्म-मुलायम घास पर किसी की पदचाप, कभी पक्षियों के कलरव और पशुओं के रैभाने की आवाज़ों, कभी फेरी वालों की हाँक लगाती आवाजें तो कभी अनेक मानवीय ध्वनियाँ हमें सुनाई पड़ती रहती हैं। नदी की धाराओं की कलकल ध्वनि, पत्तियों की सरसराहट, आकाश से गिरती वर्षा की बूँदों की रिमझिम और ऐसी ही अनेक ध्वनियाँ प्रकृति में समाहित हैं। एक संवेदनशील व्यक्ति इन सभी का अनुभव करता है।
2. नाद किसे कहते हैं?
उत्तर: संगीत का आधार नाद है। नाद से श्रुति, श्रुति से स्वर तथा स्वर से ही राग की उत्पत्ति होती है। नियमित और स्थिर आंदोलन संख्या वाली ध्वनि को ‘नाद’ कहते है।
3. श्रुति को परिभाषित करते हुए श्रुतियों की संख्या बताइए।
उत्तर: संगीत में उपयोग होने वाली ध्वनि जो कानों को स्पष्ट एवं साफ़ सुनाई दे और एक-दूसरे से अलग व स्पष्ट रूप से पहचानी जा सके उसे श्रुति कहते हैं। ‘श्रूयते इतिश्श्रुति’ अर्थात् जिसे सुना जा सके उसे श्रुति कहते हैं। श्रुति शब्द की उत्पत्ति श्रृ धातु से हुई है जिसका अर्थ है-सुनना। शरीर में अलग-अलग स्थानों पर नाड़ियाँ होती हैं। शरीर का रक्त संचार इन्हीं नाड़ियों पर निर्भर होता है। भरत के अनुसार हृदय स्थान में 22 नाड़ियाँ हैं।
इसी कारण विद्वानों ने श्रुतियों की संख्या 22 निर्धारित की है-
1. | तीव्रा | 7. | कुमुद्धती | 13. | मंदा | 19. | रौद्री |
2. | दयावती | 8. | रजनी | 14. | रक्तिका | 20. | प्रीति |
3. | क्रोधा | 9. | वज्रिका | 15. | प्रसारिणी | 21. | संदीपनी |
4. | मार्जनी | 10. | क्षिति | 16. | रक्ता | 22. | रम्या |
5. | आलापिनी | 11. | मदंती | 17. | रोहिणी | ||
6. | उग्रा | 12. | क्षोभिणी | 18. | छंदोवती |
4. मूच्र्छना किसे कहते हैं?
उत्तर: सात स्वरों को क्रमानुसार आरोह तथा अवरोह में प्रयोग करने को ‘मूर्छना’ कहा कहते है।
5. लय को परिभाषित करते हुए लय के प्रकार बताइए।
उत्तर: प्रत्येक स्थान पर व्यक्ति, वस्तु, जीव-जंतु सभी में एक लय होती है। यहाँ तक कि सूर्य, चंद्रमा इत्यादि भी समान लय में ही चलते हैं। मनुष्य की नाड़ी की गति भी समान लय में चलती रहती है। गायन, वादन एवं नर्तन में व्यतीत हो रहे समय की समान गति को ‘लय’ कहा जाता है।
लय तीन प्रकार के होते है— विलंबित लय, मध्य लय और द्रुत लय।
(i) विलंबित लय: जब लय बहुत धीमी गति में चलती है तो उसे ‘विलंबित लय’ कहा जाता है। इस लय में गाये जाने वाले ख्याल की बंदिश को विलंबित ख्याल कहते हैं। सितार पर बजने वाली गत को मसीतखानी या विलंबित गत कहते हैं। तबला, पखावज या अन्य वाद्यों में भी विलंबित लय का प्रयोग किया जाता है।
(ii) मध्य लय: जब लय साधारण रहे अर्थात् न बहुत ज्यादा हो और न बहुत कम तो उसे ‘मध्य लय’ कहते हैं। गाने-बजाने में अधिकतर मध्य लय का प्रयोग किया जाता है। वह लय जो सामान्यतः न तो बहुत अधिक विलंबित हो और न बहुत अधिक द्रुत हो, वह मध्य अर्थात् बीच की लय कहलाती है।
(iii) द्रत लय: गाते-बजाते समय एक लय स्थिर की जाती है जो बराबर की लय कहलाती है। मध्य लय से दोगुनी लय को ‘द्रुत लय’ कहा जाता है। इसी लय में द्रुत ख्याल, तराने तथा सितार पर रजाखानी या द्रुत गतें बजाई जाती हैं। स्वर वाद्यों में यहीं से झाला की शुरूआत करते हैं जिसे अतिदुत लय तक ले जाकर वादन का चमत्कार दर्शाया जाता है। तबला स्वतंत्र वादन में इस लय में टुकड़े, परन, गत, फर्द आदि का वादन होता है।
6. भातखण्डे ताललिपि के अनुसार सम को परिभाषित करते हुए, उसका चिह्न लिखिए।
उत्तर: भातखण्डे ताललिपि पद्धति के अनुसार ताल की प्रथम मात्रा को ‘सम’ कहते हैं। सम वह स्थान होता है जहाँ गीत, वादन या नृत्य का प्रारम्भ होता है और कलाकार अपनी प्रस्तुति में विभिन्न रचनाओं को समाप्त करके पुनः इसी स्थान पर पहुँचता है। सम को संगीत में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि यह लय और ताल का केंद्र बिंदु होता है। भातखण्डे ताललिपि में सम को दर्शाने के लिए ‘x’ (क्रॉस) चिह्न का प्रयोग किया जाता है।
7. वर्ण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: किसी भी व्यक्ति के वर्ण से उसकी पहचान होती है। उसी तरह गाने या बजाने के विभिन्न आयामों को ‘वर्ण’ कहा गया है। भावार्थ गान करने की क्रिया को वर्ण कहते हैं।
वर्ण चार प्रकार के होते हैं—
(i) स्थायी वर्ण: जब एक ही स्वर बार-बार उच्चरित होता है, तो उसे ‘स्थायी वर्ण’ कहते हैं।
(ii) आरोही वर्ण: षड्ज से ऊपर निषाद की ओर स्वरों को गाने या बजाने को आरोही वर्ण कहते हैं।
(iii) अवरोही वर्ण: निषाद से नीचे की ओर स्वरों को गाने या बजाने को ‘अवरोही वर्ण’ कहते हैं।
(iv) संचारी वर्ण: स्थायी, आरोही, अवरोही इन तीनों के मिश्रण से स्वरों के गाने या बजाने को ‘संचारी वर्ण’ कहते हैं।
8. शाङ्गदेव ने संगीत रत्नाकर में राग की क्या परिभाषा दी है?
उत्तर: शारंगदेव ने अपनी पुस्तक ‘संगीत रत्नाकर’ में राग को स्वरों की एक विशिष्ट रचना के रूप में परिभाषित किया है, जो सुनने वाले के मन में आनंद की भावना पैदा करती है। राग की परिभाषा के अनुसार, एक राग का अपना विशिष्ट स्वरूप, एक विशिष्ट व्यक्तित्व होता है जो उसके स्वरों और लय पर आधारित होता है।
9. मतंग मुनि ने रागों के कितने भेद बताए हैं?
उत्तर: मतंग मुनि ने रागों के तीन भेद बताए हैं।
10. अष्टक किसे कहते हैं?
उत्तर: जब शास्त्रीय संगीत गाते-बजाते हैं तो मध्य सप्तक के स से लेकर बीच के सारे स्वर रेगमपधनि गाने या बजाने के पश्चात तार सप्तक के स पर जाकर ठहरते हैं। इसी तरह अवरोह के समय तार सप्तक के स से आरंभ कर सारे स्वरों को बोलते हुए मध्य स पर आकर ही गान क्रिया को संपन्न करते हैं। इसी को ‘अष्टक’ कहा जाता है।
11. नाद की जाति अथवा गुण से आप क्या समझते हैं। उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर: नाद की जाति या गुण, नाद की तीसरी विशेषता है, जो हमें यह पहचानने में मदद करती है कि ध्वनि किस स्रोत से आ रही है। उदाहरण के लिए, दो समान आवृत्ति वाले नादों को बजाने पर, हम उनके बीच सूक्ष्म अंतर को सुन सकते हैं। यह अंतर नाद की जाति या गुण को दर्शाता है।
उदाहरण:
मान लीजिए कि दो अलग-अलग वाद्य यंत्रों को एक ही आवृत्ति पर बजाया जाता है। हम उनके बीच सूक्ष्म अंतर सुन सकते हैं, जो उनकी जाति या गुण को दर्शाता है. इसी प्रकार, हम किसी व्यक्ति के स्वर और किसी वाद्य यंत्र की आवाज़ में अंतर सुन सकते हैं, जो उनकी जाति या गुण को दर्शाता है।
12. 22 श्रुतियों के नाम व उनकी आंदोलन संख्या लिखिए।
उत्तर: 22 श्रुतियों के नाम व उनकी आंदोलन संख्या है—
क्र. सं. | श्रुतियों के नाम | प्राचीन कालीन स्वर | आधुनिक स्वर | आंदोलन संख्या |
1. | तीव्रा | षड्ज | 240 | |
2. | कुमुद्वती | |||
3. | मंदा | |||
4. | छंदोवती | षड्ज | ||
5. | दयावती | रिषभ | 270 | |
6. | रंजनी | |||
7. | रक्तिका | रिषभ | ||
8. | रौद्री | गंधार | ||
9. | क्रोधा | गंधार | ||
10. | वत्रिका | मध्यम | 320 | |
11. | प्रसारिणी | |||
12. | प्रीति | |||
13. | मार्जनी | मध्यम | ||
14. | क्षिति | |||
15. | रक्ता | पंचम | 360 |
13. आधुनिक काल के स्वर-स्थापना के अनुसार, 22 श्रुतियों में सात स्वर का स्केल बनाकर दिखाइए।
उत्तर:
14. संगीत रत्नाकर में वर्ण को किस तरह परिभाषित किया गया है?
उत्तर: संगीत रत्नाकर में, ‘वर्ण’ का अर्थ है गायन या वादन के दौरान स्वरों को एक निश्चित क्रम में प्रस्तुत करना या उनका एक विशिष्ट प्रकार का उपयोग करना। यह एक राग की पहचान और उसके स्वरूप को प्रदर्शित करने का एक तरीका है। वर्ण को चार प्रकार में विभाजित किया गया है: स्थाई, आरोही, अवरोही, और संचारी।
15. राग के सभी लक्षणों की उदाहरण सहित विवेचना कीजिए।
उत्तर: (i) राग की विशेषता यह है कि उनमें रंजकता अवश्य होनी चाहिए अर्थात् वह सुनने में मधुर लगे।
(ii) राग में कम से कम पाँच और अधिक से अधिक सात स्वर होने चाहिए। पाँच स्वरों से कम समूह का राग नहीं होता है।
(iii) प्रत्येक राग को किसी न किसी थाट से उत्पन्न माना गया है, जैसे- राग भूपाली कल्याण थाट से तथा राग बाग्रेश्री को काफ़ी थाट से उत्पन्न माना गया है।
(iv) किसी भी राग में षड्ज अर्थात् स कभी वर्जित नहीं होता क्योंकि यह सप्तक का आधार स्वर होता है।
(v) प्रत्येक राग में मध्यम (म) और पंचम (प) में से एक स्वर अवश्य रहना चाहिए। दोनों स्वर एक साथ वर्जित नहीं होते। अगर किसी राग में प के साथ शुद्ध म भी वर्जित है तो उसमें तीव्र मध्यम (म) अवश्य रहता है। उदाहरणस्वरूप भूपाली में मध्यम वर्जित है, मालकौंस में पंचम वर्जित है, परंतु भूपाली में पंचम तथा मालकौंस में मध्यम स्वर विद्यमान है।
(vi) प्रत्येक राग में आरोह-अवरोह, वादी-संवादी, पकड़ एवं गायन-समय को निर्धारित करना आवश्यक है।
(vii) राग में किसी स्वर के दोनों रूप एक साथ अर्थात् एक के बाद दूसरा प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। उदाहरणस्वरूप- कोमल रे और शुद्ध रे अथवा कोमल ग और शुद्ध ग किसी भी राग में एक के बाद एक नहीं आते। यह संभव है कि आरोह में शुद्ध प्रयोग किया जाए तथा अवरोह में कोमल। जैसे खमाज राग में शुद्ध नि और अवरोह में कोमल नि का प्रयोग होता है। फिर भी कुछ राग ऐसे हैं जिनमें शुद्ध व कोमल स्वरों का प्रयोग दृष्टिगोचर होता है. जैसे रारा मियाँ मल्हार में पहले कोमल नि और फिर शुद्ध नि का प्रयोग या फिर राग ललित में शुद्ध मध्यम व तीव्र मध्यम का प्रयोग एक-दूसरे के बाद किया जाता है। ऐसे रागों को सौंदर्यदृष्टि या विशेष माधुर्य के कारण अपवादस्वरूप ही माना जाना चाहिए।
16. औड्व-संपूर्ण जाति का राग बताएँ एवं उसका विवरण कीजिए।
जिस राग में केवल पाँच स्वरों का प्रयोग किया जाता है उसे औड्व जाति का राग कहते हैं। जिस राग में सातों स्वरों का प्रयोग हो उसे सं पर्ण जाति का राग कहा जाता है।
17. ग्राम को परिभाषित करते हुए ग्राम के प्रकारों को समझाइए।
उत्तर: ‘ग्राम’ शब्द का प्रयोग सामान्य अर्थ में गाँव अर्थात् कुछ घर और वहाँ रहने वाले व्यक्तियों का समूह आदि से लिया गया है। ग्राम शब्द एक छोटे समूह की ओर संकेत करता है। संगीत में भी ग्राम का अर्थ कुछ इसी प्रकार है। प्राचीन संगीत में ग्राम शब्द बहुत ही महत्वपूर्ण था। ग्राम मूच्र्छनाओं के आधार पर बनता था।
(i) षड्ज ग्राम: षड्ज ग्राम का आरंभिक एवं प्रधान स्वर षड्ज है। शास्त्रकारों ने वीणा पर प्रत्येक स्वर का स्थान निश्चित कर दिया। षड्ज ग्राम में षड्ज पंचम संवाद होना अनिवार्य है।
(ii) मध्यम ग्राम: मध्यम ग्राम के संबंध में भरत ने कहा है- “मध्यम ग्रामे तु श्रुति अपकृष्टः पंचमः कार्यः”। इस सूत्र के अनुसार पंचम को एक श्रुति नीचे उतारने से ही मध्यम ग्राम की रचना हुई। मध्यम ग्राम भी षड्ज ग्राम के समान ही है लेकिन इसका पंचम 17वीं श्रुति पर स्थित न होकर 16वीं श्रुति पर स्थित होता है।
(iii) गंधार ग्राम: गंधार ग्राम नाममात्र प्रचलन में रहा। ऐसा कहा जाता है कि इसका प्रयोग केवल गंधर्वो द्वारा किया गया था। इसे निषाद ग्राम भी कहा जाता है।
18. मूच्र्छना एवं मूच्र्छना के प्रकारों को विस्तार से समझाइए।
उत्तर: मूच्र्छना एवं मूच्र्छना के प्रकार हैं—
(i) शुद्धा: सात शुद्ध स्वर युक्त मूर्छना।
(ii) काकली संहिता: काकली निषाद युक्त मूच्र्छना।
(iii) अंतर संहिता: अंतर गंधार युक्त मूच्र्छना।
(iv) अंतर काकली संहिता: अंतर गंधार तथा काकली निषाद युक्त मूर्छना।
19. मतंग कृत बृहदेशों में वर्णित विषयों एवं सिद्धांतों को विस्तार से समझाइए।
उत्तर: मतंग कृत बृहद्देशी में संगीत के कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांतों और विषयों पर चर्चा की गई है इनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं राग की परिभाषा बृहद्देशी में राग को इस प्रकार परिभाषित किया गया है कि वह ध्वनि की एक विशिष्ट रचना है जो स्वरों और वर्णों से सुशोभित होती है और श्रोताओं के मन को आनंदित करती है यह राग की भावनात्मक और सौंदर्यशास्त्रीय प्रकृति पर जोर देता है नाद का महत्व बृहद्देशी में नाद ध्वनि के महत्व पर प्रकाश डाला गया है इसमें कहा गया है कि संगीत स्वर और श्रुति सभी नाद पर आधारित हैं और इसलिए यह माना जाता है कि पूरा ब्रह्मांड नाद से बना है
20. हिंदुस्तानी संगीत में ताल के महत्व को समझाएँ। किसी एक ताल का विवरण देते हुए उसका ठेका लिखिए।
उत्तर: ताल शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा की ‘तलू’ धातु से तुसे हुई है जिसे आधा ‘आधार’ और ‘भित्ति’ भी कहा जाता है। इसीलिए ताल की गणना संगीत के आधारभूत तत्वों में होती है। जिस प्रकार अनुशासन, सामाजिक नियमों और प्रतिबंधों का हमारे दैनिक जीवन में बहुत महत्व होता है उसी तरह ताल का संगीत में महत्व होता है।
हिंदुस्तानी संगीत पद्धति में अनेक तालों की रचना की गई है। भारतीय संगीत में प्रचलित विभिन्न गायन शैलियों के लिए अलग-अलग तालों का निर्माण हुआ है। उदाहरणस्वरूप ध्रुपद के लिए चारताल, सूलताल, ब्रहाताल आदि, धमार के लिए धमार ताल, ठुमरी के लिए दीपचंदी व जतताल इत्यादि ताल बनाए गए हैं।
त्रिताल ताल का विवरण:
त्रिताल, हिन्दुस्तानी संगीत का एक प्रमुख ताल है। इसमें 16 मात्राएँ हैं, जो 4/4/4/4 के विभाजन में विभाजित हैं। इस ताल में पहली मात्रा पर ताली (अभिघात) और तीसरी मात्रा पर खाली (अभिघात का अभाव) होता है। यह ताल विभिन्न लयों (गति) में बजाया जा सकता है, जैसे कि विलींबित (धीमी), मध्य (मध्यम) और द्रुत (तेज)।
त्रिताल का ठेका:
ठेका ताल का एक विशिष्ट बोल या पैटर्न है जो उसे पहचान देता है। त्रिताल का ठेका कुछ इस प्रकार है:
धा धा धा धिं/ता ति ति ता/धा धा धा धिं/ता ति ति ता।
सही या गलत बताइए-
1. आहत तथा अनाहत नाद के भेद हैं। (सही/गलत)
उत्तर: सही।
2. विद्वानों ने श्रुतियों की संख्या 24 बताई है। (सही/गलत)
उत्तर: गलत।
3. भरतमुनि के अनुसार रे-ध की चार श्रुतियाँ मानी गयी हैं। (सही/गलत)
उत्तर: गलत।
4. मंद्र, मध्य तथा तार सप्तक के प्रकार हैं। (सही/गलत)
उत्तर: सही।
5. राग यमन की जाति औड्व-संपूर्ण है। (सही/गलत)
उत्तर: गलत।
6. खाली को दक्षिण भारतीय ताल पद्धति में विसर्जितम कहते हैं। (सही/गलत)
उत्तर: गलत।
7. किसी भी ताल की प्रथम तथा अंतिम मात्रा को सम कहते हैं। (सही/गलत)
उत्तर: गलत।
8. चारताल में 12 मात्राएँ होती हैं। (सही/गलत)
उत्तर: सही।
9. विद्वानों ने श्रुतियों की संख्या 26 निर्धारित की है। (सही/गलत)
उत्तर: गलत।
10. नाद की जाति के आधार पर वाद्य या व्यक्ति को बिना देखे उसकी आवाज़ सुनकर हम यह आसानी से पहचान जाते हैं कि आवाज किसकी है। (सही/गलत)
उत्तर: सही।
11. किसी भी राग में षड्ज स्वर कभी वर्जित नहीं होता। (सही/गलत)
उत्तर: सही।
12. जब एक ही स्वर बार-बार उच्चारित होता है, तो उसे संचारी वर्ण कहते हैं। (सही/गलत)
उत्तर: गलत।
रिक्त्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
1. संगीत का आधार __________ है, नाद से _________, श्रुति से ________ तथा स्वर से की उत्पत्ति होती है।
उत्तर: संगीत का आधार नाद है, नाद से श्रुति, श्रुति से स्वर तथा स्वर से की उत्पत्ति होती है।
2. जब आघात अथवा घर्षण से ध्वनि उत्पन्न होती है उसे __________ नाद कहते हैं।
उत्तर: जब आघात अथवा घर्षण से ध्वनि उत्पन्न होती है उसे आहत नाद कहते हैं।
3. सात स्वरों के समूह को __________ कहते हैं।
उत्तर: सात स्वरों के समूह को सप्तक कहते हैं।
4. योऽसौ ध्वनि __________ विभूषित।
उत्तर: योऽसौ ध्वनि स्वरवर्ण विभूषित।
5. जिस राग में छह स्वर गाये जाते हैं वह _________ जाति का राग होता है।
उत्तर: जिस राग में छह स्वर गाये जाते हैं वह मतंग जाति का राग होता है।
6. मतंग __________ वीणा के अविष्कारक माने जाते हैं।
उत्तर: मतंग भारतीय वीणा के अविष्कारक माने जाते हैं।
7. वर्तमान काल में पंडित भातखण्डे द्वारा स्वर की स्थापना श्रुतियों में से __________ श्रुति पर की गई।
उत्तर: वर्तमान काल में पंडित भातखण्डे द्वारा स्वर की स्थापना श्रुतियों में से 4वीं श्रुति पर की गई।
8. सात स्वरों को क्रमानुसार आरोह तथा अवरोह में प्रयोग करने को _________ कहते हैं।
उत्तर: सात स्वरों को क्रमानुसार आरोह तथा अवरोह में प्रयोग करने को सप्तक कहते हैं।
9. षड्ज ग्राम का आरंभिक एवं प्रधान स्वर _________ है।
उत्तर: षड्ज ग्राम का आरंभिक एवं प्रधान स्वर षड्ज (सा) है।
10. भीमपलासी _________ जाति का राग है।
उत्तर: भीमपलासी औढ़व-सम्पूर्ण जाति का राग है।
11. तीव्रा ताल में _________ मात्राएँ होती हैं।
उत्तर: तीव्र ताल में 7 मात्राएँ होती हैं।
विभाग ‘अ’ के शब्दों का ‘आ’ विभाग में दिए गए शब्दों से मिलान करें-
अ | आ |
(क) आहत | 1. 12 मात्रा |
(ख) रौद्री | 2. जाति |
(ग) औड्व | 3. लय |
(घ) उरमंदा | 4. नाद |
(ड) विलंबित | 5. ताली |
(च) सशब्द क्रिया | 6. रस |
(छ) अदभुत | 7. श्रुति |
(ज) राग बागेश्री | 8. 2323 |
(झ) झपताल | 9. प्रथम मूच्र्छना |
(न) एकताल | 10. काफी थाट |
उत्तर:
अ | आ |
(क) आहत | 4. नाद |
(ख) रौद्री | 6. रस |
(ग) औड्व | 2. जाति |
(घ) उरमंदा | 9. प्रथम मूच्र्छना |
(ड) विलंबित | 3. लय |
(च) सशब्द क्रिया | 7. श्रुति |
(छ) अदभुत | 5. ताली |
(ज) राग बागेश्री | 10. काफी थाट |
(झ) झपताल | 8. 2323 |
(न) एकताल | 1. 12 मात्रा |
INTEXT QUESTIONS |
1. ध्वनि के संचरण के लिए कौन से माध्यम हो सकते हैं? किन्हीं दो पर विचार करें। आप सभी ने दसवीं कक्षा तक विज्ञान पढ़ा है। विज्ञान द्वारा ध्वनि को किस तरह समझ सकते हैं।
उत्तर: ध्वनि के संचरण के लिए ठोस, द्रव और गैस ये तीनों प्रकार के माध्यम हो सकते हैं। ध्वनि को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचने के लिए किसी माध्यम की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए, जब हम किसी धातु की छड़ को ठोकते हैं तो उसमें उत्पन्न ध्वनि तेजी से ठोस के माध्यम से यात्रा करती है। इसी प्रकार जल के भीतर भी ध्वनि तरंगें चलती हैं, जैसे डॉल्फिन और मछलियाँ जल में एक-दूसरे से संवाद करती हैं। वायु यानी गैस माध्यम सबसे सामान्य है, क्योंकि हम सामान्यतः हवा के द्वारा ही ध्वनि सुनते हैं।
विज्ञान के अनुसार ध्वनि एक प्रकार की यांत्रिक तरंग है, जो कंपन द्वारा उत्पन्न होती है और माध्यम के अणुओं के कंपन से आगे बढ़ती है। ध्वनि तरंगों में ऊर्जा का संचार होता है, लेकिन अणु अपने स्थान से आगे नहीं बढ़ते, केवल कंपन करते हैं। दसवीं कक्षा के विज्ञान में हमने पढ़ा है कि निर्वात में ध्वनि नहीं चल सकती, क्योंकि वहाँ कोई माध्यम नहीं होता। इससे यह भी सिद्ध होता है कि ध्वनि के संचार के लिए माध्यम का होना अनिवार्य है।
2. ध्वनि में कंपन पर विचार करें।
उत्तर: मनुष्य के कानों द्वारा लगभग 20 हर्ज से लेकर 20 किलोहर्ज (20000 हर्ट्ज) आवृत्ति की तरंगों को सुना जा सकता है। बहुत से अन्य जीव-जंतु इससे बहुत अधिक या बहुत कम आवृत्ति की तरंगों को भी सुन सकते हैं। पेड़-पौधों में भी ध्वनि को सुनने की क्षमता होती है।
उदाहरणस्वरूप, यदि हम किसी तंत्री वाद्य के तार को छेड़े या किसी तबले जैसे वाद्य या किसी ऐसी वस्तु पर आघात करें तो उसमें से ध्वनि अवश्य उत्पन्न होगी। अनेक प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध हो चुका है है कि प्रत्येक ध्वनि की विशेषता उसके पदार्थ व कंपन की संख्या पर निर्भर होती है। बाँसुरी में हवा के कंपन से ध्वनि उत्पन्न होती है। झाँझ में धातु के कंपन से तथा मनुष्य के कंठ के भीतर जो स्वर तंत्रियाँ हैं, उसके कंपन से ध्वनि उत्पन्न होती है। ध्वनि दो प्रकार की होती है- मधुर और अमधुर अथवा कोलाहल मधुर ध्वनि संगीतोपयोगी होती है।
3. आजकल आप सब इंटरनेट से बहुत कुछ खोज निकालते हैं। तो खोज करके बताइए कि जब हम तबला, सितार, संतूर या सुमधुर कंठ से संगीत सुनते हैं तो इतने आनंद का क्यो अनुभव होता है?
उत्तर: जब हम तबला, सितार या सुमधुर कंठ से संगीत सुनते हैं, तो हमें आनंद कई कारणों से होता है। संगीत हमारे मस्तिष्क को उत्तेजित करता है और डोपामाइन और सेरोटोनिन जैसे रसायनों का स्राव करता है, जो खुशी और संतोष का अनुभव उत्पन्न करते हैं। वाद्ययंत्रों की ध्वनियाँ हमारे शरीर के ऊर्जा केंद्रों को सक्रिय करती हैं, जिससे शांति और सुकून का एहसास होता है। संगीत हमारे भावनाओं को व्यक्त करता है और हमारे मन से जुड़कर सुखद प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न करता है। यह मस्तिष्क के आनंद और इनाम केंद्रों को सक्रिय करता है, जिससे हमें आनंद की अनुभूति होती है। इस तरह, संगीत का आनंद हमारे शरीर, मन और भावनाओं को एक साथ जोड़कर हमें शांति और खुशी का अनुभव कराता है।
4. नाद शब्द संगीत में बहुत महत्व रखता है। ऐसा क्यों?
उत्तर: नाद शब्द संगीत में बहुत महत्व रखता है। क्योंकि संगीत का सम्पूर्ण आधार ही नाद पर टिका हुआ है। नाद वह श्रव्य ध्वनि है जो सुनने योग्य होती है और जिसमें नियमित कंपन होता है। संगीत में वही ध्वनि उपयोगी मानी जाती है जो मधुर हो, स्पष्ट हो और सुनने वाले के हृदय में आनंद उत्पन्न करे। नाद से ही स्वर की उत्पत्ति होती है, स्वर से राग बनते हैं और रागों से संगीतमय रचनाएँ तैयार होती हैं। इस प्रकार नाद संगीत का मूल स्रोत है। यदि नाद न हो, तो न तो स्वर होंगे, न गीत होंगे और न ही वादन या नृत्य। इसलिए कहा जाता है कि पूरा संगीत संसार नादात्मक है और नाद के बिना संगीत की कोई कल्पना भी नहीं की जा सकती।
5. 22 श्रुतियों के नाम एवं आंदोलन संख्या को समझकर याद कीजिए और उनकी सूची बनाइए।
उत्तर:
क्र. सं. | श्रुतियों के नाम | प्राचीन कालीन स्वर | आधुनिक स्वर | आंदोलन संख्या |
1. | तीव्रा | षड्ज | 240 | |
2. | कुमुद्वती | |||
3. | मंदा | |||
4. | छंदोवती | षड्ज | ||
5. | दयावती | रिषभ | 270 | |
6. | रंजनी | |||
7. | रक्तिका | रिषभ | ||
8. | रौद्री | गंधार | ||
9. | क्रोधा | गंधार | ||
10. | वत्रिका | मध्यम | 320 | |
11. | प्रसारिणी | |||
12. | प्रीति | |||
13. | मार्जनी | मध्यम | ||
14. | क्षिति | |||
15. | रक्ता | पंचम | 360 |
6. प्रकृति में पायी गई ध्वनियों को ध्यान से सुनें अपने फ़ोन में उन्हें रिकॉर्ड करें और कक्षा में उस पर विचार-विमर्श करें। क्या उनमें स्वर जो हम गाते बजाते हैं, सुनाई दे रहे हैं?
उत्तर: विद्यार्थी स्वयं करे।
7. अष्टक द्वारा वर्षों को बताइए, उन्हें समूह में गाएँ और कक्षा में प्रस्तुत करें।
उत्तर: विद्यार्थी स्वयं करे।
8. प्रार्थना सभा जो आपके विद्यालय का दैनंदिन कार्यक्रम है, उसमें किसी भी प्रार्थना गीत के साथ समन्वय बनाकर इसको गाएँ एवं बजाएँ। महसूस कीजिए कि इस तरह के माहौल से किस तरह का आनंदप्रद अनुभव होता है।
उत्तर: विद्यार्थी स्वयं करे।
9. ध्वनि के अमूर्त (intangible) रूप पर विचार कीजिए।
उत्तर: ध्वनि को एक प्रकार का कंपन या आंदोलन माना गया है जो किसी ठोस, द्रव या वायु रूपी पदार्थ से होकर संचारित होता है। जो बिना किसी आघात के उत्पन्न होता है और जिसे केवल अनुभव किया जा सकता है, सुना नहीं जा सकता।
10. अलंकार का अर्थ तो आप समझ ही गए हैं, अब अपने रचनात्मक तरीके से तीन अलंकार बनाइए जो मंद्र और माध्य सप्तक में हों।
उत्तर: अलंकार का सामान्य अर्थ होता है “श्रृंगार” या “सजावट”। संगीत में जब स्वर विशेष क्रम में आरोह और अवरोह करते हैं, तो उसे भी अलंकार कहा जाता है। अब मैं आपके लिए तीन रचनात्मक अलंकार तैयार कर रहा हूँ जो केवल मंद्र सप्तक और मध्य सप्तक के स्वरों का उपयोग करते हुए बनाए गए हैं:
(i) पहला अलंकार
आरोहः मं स मं रे स मं ग रे स
अवरोहः स रे मं ग रे मं स
(ii) दूसरा अलंकार
आरोहः मं प मं ध मं प मं वि मं ध
अवरोहः मं वि मं प मं ध मं प मं
(iii) तीसरा अलंकार
आरोहः स मं ग मं प मं ध मं वि मं
अवरोहः मं वि मं ध मं प मं ग मं स
11. राग के लक्षण लिखिए।
उत्तर: राग के लक्षण है—
(i) राग की विशेषता यह है कि उनमें रंजकता अवश्य होनी चाहिए अर्थात् वह सुनने में मधुर लगे।
(ii) राग में कम से कम पाँच और अधिक से अधिक सात स्वर होने चाहिए। पाँच स्वरों से कम समूह का राग नहीं होता है।
(iii) प्रत्येक राग को किसी न किसी थाट से उत्पन्न माना गया है, जैसे- राग भूपाली कल्याण थाट से तथा राग बाग्रेश्री को काफ़ी थाट से उत्पन्न माना गया है।
(iv) किसी भी राग में षड्ज अर्थात् स कभी वर्जित नहीं होता क्योंकि यह सप्तक का आधार स्वर होता है।
(v) प्रत्येक राग में मध्यम (म) और पंचम (प) में से एक स्वर अवश्य रहना चाहिए। दोनों स्वर एक साथ वर्जित नहीं होते। अगर किसी राग में प के साथ शुद्ध म भी वर्जित है तो उसमें तीव्र मध्यम (म) अवश्य रहता है। उदाहरणस्वरूप भूपाली में मध्यम वर्जित है, मालकौंस में पंचम वर्जित है, परंतु भूपाली में पंचम तथा मालकौंस में मध्यम स्वर विद्यमान है।
(vi) प्रत्येक राग में आरोह-अवरोह, वादी-संवादी, पकड़ एवं गायन-समय को निर्धारित करना आवश्यक है।
(vii) राग में किसी स्वर के दोनों रूप एक साथ अर्थात् एक के बाद दूसरा प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। उदाहरणस्वरूप – कोमल रे और शुद्ध रे अथवा कोमल ग और शुद्ध ग किसी भी राग में एक के बाद एक नहीं आते। यह संभव है कि आरोह में शुद्ध प्रयोग किया जाए तथा अवरोह में कोमल। जैसे खमाज राग में शुद्ध नि और अवरोह में कोमल नि का प्रयोग होता है। फिर भी कुछ राग ऐसे हैं जिनमें शुद्ध व कोमल स्वरों का प्रयोग दृष्टिगोचर होता है. जैसे रारा मियाँ मल्हार में पहले कोमल नि और फिर शुद्ध नि का प्रयोग या फिर राग ललित में शुद्ध मध्यम व तीव्र मध्यम का प्रयोग एक-दूसरे के बाद किया जाता है। ऐसे रागों को सौंदर्यदृष्टि या विशेष माधुर्य के कारण अपवादस्वरूप ही माना जाना चाहिए।
12. क्या प्राचीन काल में मूच्र्छना और आधुनिक समय में राग की तुलना कर सकते हैं? अगर हाँ तो कैसे और अगर नहीं तो क्यों?
उत्तर: हाँ, प्राचीन काल में मूच्छना और आधुनिक समय में राग की तुलना की जा सकती है। प्राचीन समय में ‘मूच्छना’ एक ऐसी संकल्पना थी जिसमें सप्तक के सात स्वरों को विशिष्ट क्रम में आरोह और अवरोह के साथ प्रयोग किया जाता था। यह स्वरक्रम रागों की उत्पत्ति का आधार माना जाता था।
मूच्छनाओं में स्वर-व्यवस्था, आरोह-अवरोह के भेद और विशिष्ट गमन को ध्यान में रखा जाता था। इसी तरह आधुनिक समय में भी राग की रचना विशिष्ट स्वरों के चयन, उनके आरोह-अवरोह, विशेष पकड़ और रस उत्पत्ति के आधार पर होती है। इस प्रकार, मूच्छना को रागों का प्रारंभिक रूप कहा जा सकता है। अंतर केवल इतना है कि प्राचीन मूच्छना अधिक स्थूल रूप में थी, जबकि आधुनिक रागों में भावनात्मक अभिव्यक्ति और सौंदर्य का अधिक सूक्ष्म और विकसित रूप देखने को मिलता है।
13. ग्राम शब्द पर विचार विमर्श हो जाए। हिंदी साहित्य में ग्राम शब्द तो आपने बहुत सालों से पढ़ा ही है। तो उसकी तुलना संगीत में ग्राम शब्द से किस प्रकार हो सकती है।
उत्तर: हिंदी साहित्य में ‘ग्राम’ शब्द का प्रयोग आमतौर पर एक बस्ती या गाँव के लिए किया जाता है, जहाँ लोग मिल-जुलकर रहते हैं। इसी प्रकार, संगीत में ‘ग्राम’ का अर्थ भी एक समुदाय से है, परंतु यहाँ वह समुदाय स्वरों का है। संगीत में ‘ग्राम’ सात स्वरों के एक निश्चित समूह को कहते हैं जो एक विशिष्ट ध्वनि-संरचना का निर्माण करते हैं। जैसे साहित्य में ग्राम अनेक व्यक्तियों के समूह का प्रतिनिधित्व करता है, वैसे ही संगीत में ग्राम विभिन्न स्वरों के समूह को एक संगठित रूप में प्रस्तुत करता है। इस प्रकार हिंदी साहित्य के ग्राम और संगीत के ग्राम दोनों ही अपने-अपने क्षेत्र में व्यवस्था, संगठन और सामूहिकता का प्रतीक हैं, भले ही उनका स्वरूप अलग हो।

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