NCERT Class 11 Sangeet Chapter 1 भारतीय संगीत का सामान्य परिचय

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NCERT Class 11 Sangeet Chapter 1 भारतीय संगीत का सामान्य परिचय

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Chapter: 1

हिंदुस्तानी संगीत गायन एवं वादन

अभ्यास

इस पाठ को आप पढ़ चुके हैं। आइये, नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर देने का प्रयास करें-

1. संगीत रत्नाकर के अनुसार संगीत की परिभाषा बताइए।

उत्तर: संगीत एक कला है जो ध्वनि और मौन के माध्यम से, समय के साथ अभिव्यक्ति प्रदान करती है। “गीतं वाद्यं तथा नृत्यं त्रयं संगीतमुच्यते।”अर्थात्, गायन (गीत), वादन (वाद्य यंत्र बजाना) और नृत्य (शारीरिक भावाभिव्यक्ति) — इन तीनों का समन्वित रूप ‘संगीत’ कहलाता है। इसमें सुर और लय के माध्यम से भावनाओं की अभिव्यक्ति की जाती है, जिससे मनुष्य और प्रकृति के बीच एक मधुर संबंध स्थापित होता है। जिसका माध्यम ध्वनि और मौन है, जो समय के साथ घटित होता है। संगीत के सामान्य तत्व हैं पिच जो माधुर्य और सामंजस्य को नियंत्रित करता है। लय और इससे जुड़ी अवधारणाएं टेम्पो, मीटर और आर्टिक्यूलेशन (स्पष्ट और प्रभावशाली ढंग से), गतिकी, और समय और बनावट के ध्वनि गुण।

2. कर्नाटक संगीत पद्धति में प्रचलित विधाएँ कौन-सी हैं?

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उत्तर: उत्तर भारत में प्रचलित शास्त्रीय संगीत को ‘हिंदुस्तानी संगीत पद्धति’ के रूप में भी जाना जाता है। इसके अंतर्गत, ध्रुपद, धमार, ख्याल, तराना इत्यादि गाए-बजाए जाते हैं जिनका विस्तृत वर्णन अग्रिम पृष्ठों में समन्वित है। दक्षिण भारत में प्रचलित शास्त्रीय संगीत को ‘कर्नाटक संगीत पद्धति’ कहा जाता है। इसके अंतर्गत रागम्-तानम्-पल्लवी, वर्णम्, जावलि तथा तिल्लाना आदि विधाएँ समन्वित हैं। यद्यपि श्रुति ही दोनों का आधार है, लेकिन दोनों पद्धतियों में स्वरों की श्रुतियाँ, विधाएँ एवं भाषा भिन्न हैं।

3. उपशास्त्रीय संगीत की गायन शैली टप्पा की रचनाओं में अधिकांशतः किन भाषाओं के शब्दों का प्रयोग होता है?

उत्तर: उपशास्त्रीय संगीत की गायन शैली टप्पा की रचनाओं में अधिकांशतः पंजाबी, सिंधी और मुल्तानी भाषाओं के शब्दों का प्रयोग होता है। 

4. लोक संगीत का मूल उद्देश्य क्या है?

उत्तर: लोक संगीत का तात्पर्य यह है कि सामान्य जनमानस का संगीत। लोकतंत्र, लोकप्रिय जैसे शब्दों के आईने में इसे देखा जा सकता है। कोई भी व्यक्ति अपने मन के भावों को या दैनिक क्रियाकलापों को स्वर या लय का प्रयोग करते हुए गायन या वादन के माध्यम से अभिव्यक्त करता है तो वह अभिव्यक्ति लोक संगीत में समाहित हो जाती है। भावों की सरलतम एवं मधुरतम अभिव्यक्ति ही लोक संगीत का मूल उद्देश्य होता है। जब भी कोई कला उभरती है तो वह सर्वप्रथम लोक ही होती है, बाद में परिष्कृत होकर वह शास्त्रीय कला के रूप में स्थापित हो जाती है।

5. ठुमरी के प्रचलित प्रमुख दो रूप कौन-से हैं?

उत्तर: ठुमरी के दो प्रमुख रूप प्रचलित हैं-

(i) बोल-बनाव की ठुमरी: चैनदारी और ठहराव बोल-बनाव की ठुमरी की विशेषता होती है। कम शब्दों का प्रयोग करते हुए स्वरात्मक विहार से हाव-भाव दर्शाते हुए गीत में निहित संवेदनाओं को अभिव्यक्त करना ही इस ठुमरी की विशेषता मानी जाती है। स्वरों और शब्दों का गुँथाव तथा रागों का किंचित मिश्रण करना पूर्णतः ठुमरी गायक की सांगीतिक कल्पना एवं सौंदर्य दृष्टि पर निर्भर करता है।

(ii) बोल-बाँट की ठुमरी: बोल-बाँट की ठुमरी की रचना ख्याल गायन शैली की भाँति ही प्रतीत होती है। इसमें शब्द अधिक होते हैं और शब्दों के बीच अंतराल कम होता है। कण व मुर्की आदि का प्रयोग कुछ शिथिल रहता है परंतु बोल-बनाव की ठुमरी की अपेक्षा बोल-बाँट की ठुमरी में लय का काम अधिक दिखाया जाता है।

6. दक्षिण भारतीय लोक संगीत की प्रमुख तालें कौन-सी हैं?

उत्तर: दक्षिण भारतीय लोक संगीत की प्रमुख तालें है—

(i) चापू ताल।

(ii) आदि ताल।

(iii) रूपक ताल।

7. उपशास्त्रीय संगीत की परिभाषा बताते हुए इसकी पाँच विधाओं के नाम बताइए।

उत्तर: उपशास्त्रीय संगीत वह संगीत है जिसमें शास्त्रीय नियमों का कठोर पालन नहीं होता, बल्कि रस, भाव और सौंदर्य की प्रधानता रहती है। इसमें भावनाओं को अलंकारिक साज-सज्जा के साथ प्रस्तुत किया जाता है। 

इसकी पाँच विधाओं के नाम है—

(i) ठुमरी।

(ii) दादरा।

(iii) टप्पा।

(iv) होरी।

(v) चैती।

8. लोक संगीत को परिभाषित करते हुए इसमें प्रयुक्त होने वाले प्रमुख तंत्री, सुषिर एवं अवनद्ध वाद्यों के नाम बताइए।

उत्तर: लोक संगीत, जिसे पारंपरिक या क्षेत्रीय संगीत के रूप में भी जाना जाता है, एक विशिष्ट क्षेत्र या समुदाय में विकसित और प्रसारित होने वाली संगीत की एक शैली है। यह आमतौर पर मौखिक रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होता है और सांस्कृतिक मूल्यों और कहानी को व्यक्त करने के लिए प्रयोग किया जाता है।

प्रमुख वाद्ययंत्रः

(i) तंत्री वाद्यः एकतारा, सारंगी।

(ii) सुषिर वाद्यः शहनाई, नादस्वरम।

(iii) अवनद्ध वाद्यः ढोलक, उडुक्कु, नगाड़ा।

9. उपशास्त्रीय संगीत गायन शैली टप्पा को विस्तारपूर्वक समझाइए।

उत्तर: टप्पा शब्द की उत्पत्ति ‘टप’ से हुई है जिसका अर्थ है, कूदना, लाँघना या छलाँग लगाना। 18वीं शताब्दी में लखनऊ के नवाब आसिफुद्दौला के दरबार के एक पंजाबी गायक गुलाम नबी शोरी, जो ‘शोरी मियाँ’ के नाम से प्रसिद्ध थे, ने टप्पा गायकी को प्रचलित किया। पंजाब प्रदेश से संबंधित होने के कारण ही संभवतः टप्पा गायकी की गीत रचनाओं में अधिकांशतः पंजाबी, सिंधी व मुल्तानी भाषा के शब्दों का प्रयोग होता है। इस गायन विधा में शब्द, स्वर व लय तीनों को कहीं विश्राम नहीं मिलता। पूरी गायकी छोटी-छोटी द्रुत गति की तानों पर आधारित होती है। इस गायकी में में कण, खटका व मुर्की का अधिक प्रयोग किया जाता है। काफ़ी, पीलू, खमाज, भैरवी, झिंझोटी आदि रागों में टप्पा गाया जाता है। इसकी गीत रचना में स्थायी व अंतरा, दो भाग होते हैं। इसके साथ जत, दीपचंदी, चाचर, अद्धा आदि तालों का प्रयोग किया जाता है।

10. ललित कलाएँ कितने प्रकार की होती हैं? इन कलाओं में किसे श्रेष्ठतम माना गया है?

उत्तर: ललित कलाएँ पाँच प्रकार की होती हैं। जैसे– संगीत, काव्य, चित्रकला, मूर्तिकला और वास्तुकला। इन सभी कलाओं में संगीत को सर्वोत्तम और श्रेष्ठतम स्थान दिया गया है, क्योंकि यह सीधे हृदय और आत्मा से जुड़ता है।

11. ठुमरी को परिभाषित करते हुए ठुमरी के प्रमुख दो रूपों का विस्तृत वर्णन कीजिए।

उत्तर: ठुमरी एक उपशास्त्रीय गायन शैली है जिसमें शृंगार रस और भावों की मधुरता को महत्व दिया जाता है। इसमें रागों की कठोरता कम होती है और गायक को भावों के अनुसार लय और स्वर को मोड़ने की स्वतंत्रता होती है।

ठुमरी के प्रमुख दो रूप है—

(i) बोल-बनाव की ठुमरी: चैनदारी और ठहराव बोल-बनाव की ठुमरी की विशेषता होती है। कम शब्दों का प्रयोग करते हुए स्वरात्मक विहार से हाव-भाव दर्शाते हुए गीत में निहित संवेदनाओं को अभिव्यक्त करना ही इस ठुमरी की विशेषता मानी जाती है। स्वरों और शब्दों का गुँथाव तथा रागों का किंचित मिश्रण करना पूर्णतः ठुमरी गायक की सांगीतिक कल्पना एवं सौंदर्य दृष्टि पर निर्भर करता है।

(ii) बोल-बाँट की ठुमरी: बोल-बाँट की ठुमरी की रचना ख्याल गायन शैली की भाँति ही प्रतीत होती है। इसमें शब्द अधिक होते हैं और शब्दों के बीच अंतराल कम होता है। कण व मुर्की आदि का प्रयोग कुछ शिथिल रहता है परंतु बोल-बनाव की ठुमरी की अपेक्षा बोल-बाँट की ठुमरी में लय का काम अधिक दिखाया जाता है।

12. सुगम संगीत से आप क्या समझते हैं? विस्तार से समझाइए।

उत्तर: सुगम शब्द का अर्थ है ‘सरल’ या ‘सहज’, इसीलिए सुगम संगीत का अर्थ है- सरलता या सहजता से गाया-बजाया जाने वाला संगीत। इस प्रकार के संगीत में विशिष्ट गेय विधा या शैली के स्वरूप को बनाए रखने के अतिरिक्त किसी अन्य प्रकार के नियमों का बंधन नहीं होता। इस संगीत में यदि राग का आधार लिया गया हो तो भी राग के नियमों में शिथिलता रहती है। भाव प्रदर्शन के लिए यदि आवश्यक हो तो आलाप-तान या स्वरों का प्रयोग गीत के सौंदर्यवर्धन के लिए किया जा सकता है। सुगम संगीत के विशेष तत्वों के रूप में हाव-भाव, गहराई, रंजकता और सुंदर शब्द इसे विशेष स्थान प्रदान करते हैं। शास्त्रीय या उपशास्त्रीय संगीत के बंधनों से मुक्त इस संगीत के अंतर्गत भजन, पद-गायन, काव्य, गीत, गजल आदि का समावेश होता है। कहा जा सकता है कि लय व तालबद्ध कविताएँ, ईश्वर का गुण-गान महान चरित्रों वाले व्यक्तियों पर आधारित गीत. ऋतुओं से संबंधित गीत, गजल आदि सुगम संगीत के अंतर्गत आते हैं। भिन्न-भिन्न प्रदेशों में अपनी विचारात्मक अभिव्यक्ति और भाषाओं के अनुरूप सुगम संगीत अपना आकार-प्रकार ग्रहण करता है।

13. समाज में लोक संगीत का क्या महत्व है? अपने विचार विस्तारपूर्वक समझाइए।

उत्तर: लोक संगीत समाज की आत्मा है। यह उस साधारण जनजीवन की अभिव्यक्ति है जो अपनी भावनाओं, रीति-रिवाजों, परंपराओं और संस्कृति को सहजता से संगीत के माध्यम से व्यक्त करता है। लोक संगीत केवल मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा माध्यम है जो समाज की सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक एकता को भी सुदृढ़ करता है।

14. हिंदुस्तानी संगीत पद्धति की प्रचलित विधाओं का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।

उत्तर: हिंदुस्तानी संगीत पद्धति में ध्रुपद, धमार, खयाल, तराना, ठुमरी, दादरा, टप्पा, होरी, चैती, कजरी जैसी विधाएँ प्रचलित हैं।

ध्रुपद सबसे प्राचीन शैली है, जो गंभीरता और गंभीर रचनाओं पर आधारित होती है।

खयाल में कल्पनाशीलता और अलंकारों का सुंदर समावेश होता है।

तराना में तेज गति और बोल की विविधता प्रमुख होती है।

ठुमरी, दादरा, टप्पा आदि भावप्रधान उपशास्त्रीय गायन विधाएँ हैं।

15. तिरूवेम्पावई नामक शैली को विस्तार से समझाइए।

उत्तर: तिरुवेम्पावई एक तमिल भक्ति संगीत शैली है, जिसे संत मणिक्कवाचकर ने रचा था। यह भगवान शिव की भक्ति में गाए जाने वाले स्तुतिपरक पदों का संग्रह है। इसमें भक्ति भावना, कोमलता और संगीत का सुंदर संयोग देखने को मिलता है। यह शैली दक्षिण भारत के मंदिर संगीत में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है।

सही या गलत बताइए-

1. संगीत एक ऐसी औषधि है जो मनोवैज्ञानिक रूप से चित्त को एकाग्र कर उसे संतुलित बनाने की क्षमता रखती है। (सही/गलत)

उत्तर: सही।

2. शोरी मियाँ को ठुमरी का विशेष प्रचारक माना जाता है। (सही/गलत)

उत्तर: गलत।

3. उपशास्त्रीय संगीत में एक राग से दूसरे राग में जाने की स्वतंत्रता नहीं होती है। (सही/गलत)

उत्तर: गलत।

4. ठुमरी एक ऐसी विधा है जिसमें लोक और शास्त्रीय, दोनों प्रकार के संगीत के तत्व विद्यमान हैं। (सही/गलत)

उत्तर: सही।

5. ढोलक, उडुक्कू एवं गुम्माटी एक प्रकार के सुषिर वाद्य है। (सही/गलत)

उत्तर: गलत।

6. ‘हो रामा’ शब्द चैती नामक गीत की विशेष टेक है। (सही/गलत)

उत्तर: सही।

7. दादरा गीत, दादरा ताल के अतिरिक्त अन्य किसी ताल में गाए-बजाए नहीं जाते हैं। (सही/गलत)

उत्तर: गलत।

8. बोल-बाँट की ठुमरी की रचना ख्याल गायन शैली की तरह ही प्रतीत होती है। (सही/गलत)

उत्तर: सही।

9. कजरी पंजाब क्षेत्र की एक प्रचलित गायन शैली है। (सही/गलत)

उत्तर: गलत।

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-

1. गायन, वादन तथा नृत्य के समावेश को _________ कहते हैं।

उत्तर: गायन, वादन तथा नृत्य के समावेश को संगीत कहते हैं।

2. संगीत की दोनों पद्धतियों का आधार __________ है।

उत्तर: संगीत की दोनों पद्धतियों का आधार स्वर है।

3. नवाब वाजिद अली शाह को __________ का प्रचारक माना जाता है।

उत्तर: नवाब वाजिद अली शाह को ठुमरी का प्रचारक माना जाता है।

4. चैती को _________ माह में गाया जाता है।

उत्तर: चैती को चैत्र माह में गाया जाता है।

5. राजस्थान का लोकप्रिय लोक नृत्य __________ है।

उत्तर: राजस्थान का लोकप्रिय लोक नृत्य घूमर है।

6. सोपान संगीतम के अंतर्गत मंदिरों की सीढ़ियों पर __________ नामक संप्रदाय संगीत प्रस्तुत करता है। 

उत्तर: सोपान संगीतम के अंतर्गत मंदिरों की सीढ़ियों पर मरार नामक संप्रदाय संगीत प्रस्तुत करता है।

7. तमिलनाडु में सुगम संगीत को ___________ नाम से जाना जाता है।

उत्तर: तमिलनाडु में सुगम संगीत को लघु संगीत नाम से जाना जाता है।

विभाग ‘अ’ के शब्दों का ‘आ’ विभाग में दिए गए शब्दों से मिलान करें-

अ 
(क) ललित कला1. शोरी मियाँ
(ख) हिंदुस्तानी संगीत2. जम्मू-कश्मीर
(ग) ठुमरी3. अवनद्ध वाद्य
(घ) पल्लवी4. मिर्जापुर
(ङ) टप्पा5. सुषिर वाद्य
(च) कजरी6. अष्टपदी
(छ) गोडीय7. धातु वाद्य
(ज) चकरी8. ध्रुपद
(झ) कोम्बू9. कर्नाटक संगीत
(ञ) तन्तीपानई10. पश्चिम बंगाल
(ट) कइचिलम्बु11. मूर्तिकला 
(ठ) गीत गोविन्दम12. नवाब वाज़िद अली शाह

उत्तर: 

अ 
(क) ललित कला11. मूर्तिकला 
(ख) हिंदुस्तानी संगीत8. ध्रुपद
(ग) ठुमरी12. नवाब वाज़िद अली शाह
(घ) पल्लवी6. अष्टपदी
(ङ) टप्पा1. शोरी मियाँ
(च) कजरी4. मिर्जापुर
(छ) गोडीय10. पश्चिम बंगाल
(ज) चकरी2. जम्मू-कश्मीर
(झ) कोम्बू5. सुषिर वाद्य
(ञ) तन्तीपानई3. अवनद्ध वाद्य
(ट) कइचिलम्बु7. धातु वाद्य
(ठ) गीत गोविन्दम9. कर्नाटक संगीत
INTEXT QUESTIONS

1. संगीत रत्नाकर में दिए गए संगीत की परिभाषा बताइए।

उत्तर: संगीत रत्नाकर में संगीत को “गीत, वाद्य और नृत्य” (गायन, वाद्य और नृत्य) का एक समग्र प्रदर्शन कला के रूप में परिभाषित किया गया है। इस ग्रंथ में, संगीत को मार्ग और देशी संगीत में भी वर्गीकृत किया गया है। संगीत रत्नाकर के अनुसार, केवल स्वर या केवल वादन या केवल नृत्य को ही संगीत नहीं माना जाता, बल्कि जब ये तीनों कलाएँ एक दूसरे के साथ संतुलन में जुड़ती हैं, तब संपूर्ण रूप से संगीत का सृजन होता है।

यह परिभाषा बताती है कि संगीत केवल सुनने का माध्यम नहीं, बल्कि देखने (नृत्य), सुनने (गायन) और भावनात्मक अभिव्यक्ति (वादन) का एक समन्वित रूप है, जो हमारी संवेदनाओं को स्पर्श करता है और मन को शांति प्रदान करता है।

2. वर्तमान काल में गाया जाने वाला शास्त्रीय संगीत देशी संगीत के अतंर्गत है या मार्गी संगीत के? क्यों?

उत्तर: वर्तमान काल का शास्त्रीय संगीत देशी संगीत के अंतर्गत आता है क्योंकि यह अधिक भावप्रधान, व्यावहारिक और सरल रूप में प्रस्तुत किया जाता है। यह आम लोगों के लिए सुलभ है, जबकि मार्गी संगीत पुराने समय का था, जो ग्रंथों के नियमों पर चलता था और बहुत कठिन तथा सीमित लोगों तक सीमित था।

3. लोक संगीत के क्षेत्र के बारे में आप जो भी जानते हैं, बताइए।

उत्तर: लोक संगीत वह संगीत है जो किसी समुदाय या संस्कृति द्वारा पारंपरिक रूप से और मौखिक रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी पारित किया जाता है। यह आम तौर पर सादा और सरल होता है, और इसमें पारंपरिक वाद्य यंत्रों का उपयोग किया जाता है। लोक संगीत एक समुदाय के इतिहास, मूल्यों और परंपराओं को दर्शाता है।

4. सूरदास के किसी पद को लीजिए। उसको लोक संगीत की तरह गाइए एवं शास्त्रीय संगीत के किसी भी राग में गाइए। अपने अनुभवों को लिखिए।

उत्तर: “मीरा के प्रभु गिरधर नागरी, घर-घर श्याम की महिमा।” 

रदास के पद को लोक संगीत और शास्त्रीय संगीत दोनों में गाने का अनुभव अलग था। लोक संगीत में इसे सरल और रिदमिक तरीके से गाया, जिससे भावनाओं की सीधी और सहज अभिव्यक्ति हुई। यह श्रोताओं से तुरंत जुड़ा और गीत में नयापन और आत्मीयता आई। लोक संगीत में शब्दों और संगीत का मिलाजुला अंदाज एक सजीवता और सादगी लेकर आता है। वहीं, शास्त्रीय संगीत में इसे राग यमन में गाने पर पद का प्रभाव गहरा और सशक्त हुआ। राग के जटिलता और तान ने उसे और अधिक भव्यता दी, लेकिन कभी-कभी शब्दों का भाव पूरी तरह से व्यक्त नहीं हो पाता। शास्त्रीय संगीत में तकनीकी बारीकियाँ और राग की गहराई ने गीत को एक नई ऊँचाई दी, लेकिन भावनात्मक जुड़ाव में लोक संगीत की सहजता जैसी सादगी नहीं थी। दोनों रूपों में भक्ति की भावना प्रकट हुई, लेकिन प्रस्तुतिकरण में फर्क था।

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