Class 12 AHSEC 2020 Hindi (MIL) Question Paper Solved English Medium

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HINDI (MIL)

2020

HINDI (MIL) OLD QUESTION PAPER SOLVED

1. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर उसके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

साथ दो बच्चे भी हैं हाथ फैलाए,

बाएँ से वे मलते हुए पेट को चलते,

और दाहिना दया-दृष्टि पाने की ओर बढ़ाए।

भूख से सूख ओठ जब जाते,

दाता-भाग्य-विधाता से क्या पाते?

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घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते।

चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए,

और झपट लेने को उनसे

प्रश्न: (i) भिखारी के साथ कौन हैं?

उत्तरः भिखारी के साथ उनके दो बच्चे हैं।

(ii) वे किस प्रकार आगे बढ़ रहे हैं?

उत्तर: वे अपने बाएँ हाथ से खाली पेट को मलते हुए और दाएँ हाथ को भीख माँगने के लिए फैलाए हुए आगे बढ़ रहे हैं।

(iii) बच्चे दानियों से क्या प्राप्त करना चाहते हैं?

उत्तरः भिक्षुक के दोनो बच्चे, दानियों की दया-दृष्टि पाने के लिए उनसे भीख में कुछ प्राप्त करने के लिए अपने हाथ फैलाए रहते हैं ताकि उनसे प्राप्त भीख से अपना पेट भर सकें।

(iv) ‘घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते’ – कवि ने ऐसा क्यों कहा?

उत्तरः अपनी विवशता और समाज एवं भाग्य की क्रूरता के कारण भिक्षुक और बच्चे अपने दुख को रोकर व्यक्त करने के सिवा और कुछ नहीं कर सकते।

(v) कुत्ते बच्चों से क्या झपटने के लिए अड़े हुए हैं?

उत्तरः कुत्ते बच्चों से अमीरों द्वारा फेंकी गई जूठी पतलों झपटने के लिए अड़े हुए हैं।

2. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर उसके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

परिस्थितियाँ मानव के उत्थान-पतन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। कभी कभी व्यक्ति पर वे इस कदर हावी हों जाती हैं कि व्यक्ति चलना छोड़ देता है और उसके विकास की गति अवरुद्ध हो जाती है। वह परिस्थितियों से हार मान बैठता हैं। यह स्थिति तभी पैदा होती है जव हम परिस्थितियों को अपने ऊपर हावी होने देते हैं, उनकी गुलामी स्वीकार कर लेते हैं। यदि हम यह मान लें कि परिस्थितियाँ तो हमारी दास हैं तो विपम से विषम परिस्थितियाँ भी हमें हमारे मार्ग से विचलित नहीं कर सकतीं। हर व्यक्ति में इतनी शक्ति है कि वह प्रतिकूल परिस्थितियों को अपने अनुकूल नहीं कर सकती। हर व्यक्यि में इतनी शक्ति है कि वह प्रतिकूल परिस्थितियों को अपने अनुकूल बना ले। पर असल चीज तो हमारा अपना आत्मविश्वास हैं, जिसके सहारे हम बड़ी से बड़ी कठिनाई का भी सामना कर सकते हैं। आदमी को हिम्मत और उसका आत्मविश्वास उसे जीवन-संग्राम में विजय दिलाता हैं।

प्रश्न: (i) परिस्थितियों के हावी होने का व्यक्ति पर क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तरः परिस्थितियों के हावी होने का व्यक्ति पर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ता है, व्यक्ति चलना छोड़ देता है और उसके विकास की गति अवरुद्ध हो जाती है। वह परिस्थितियों से हार मान बैठता है।

(ii) व्यक्ति परिस्थितियों को कब अपने अनुकूल बना सकता है?

उत्तरः व्यक्ति परिस्थितियों को तब अपने अनुकूल बना सकता है जब वह परिस्थितियों को अपने ऊपर हावी ना होने दे। और हर व्यक्ति में इतनी शक्ति है कि वह प्रतिकूल परिस्थितियों को भी अपने अनुकूल बना सकता हैं।

(iii) विषम से विषम परिस्थितियाँ भी किस स्थिति में हमें विचलित नहीं कर पाती?

उत्तरः विषम से विषम परिस्थितियों भी हमे हमारे मार्ग से विचलित नहीं कर सकती।

(iv) व्यक्ति को जीवन-संग्राम में कौन विजय दिलाया हैं?

उत्तरः व्यक्ति को जीवन संग्राम में हिम्मत और उसका आत्मविश्वास विजय दिलाता है।

(v) गद्यांश का एक उपयुक्त शीर्षक दीजिए?

उत्तर: इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक हैं – व्यक्ति और परिस्थितियाँ।

(vi) निम्नलिखित शब्दों के अर्थ लिखिए: हावी होना, अवरूद्ध, विषम, विचलित।

उत्तरः हावी होना – नियंत्रण करना।

अवरूद्ध – रूका हुआ, बाघित।

विषम – कठिन, मुश्किल।

विचलित – बेचैन, परेशान।

(vii) विपरीतार्थी शब्द लिखिए: उत्थान, गुलाम, अनुकूल, विजय।

उत्तरः उत्थान – पतन।

गुलाम – आज़ाद।

अनुकूल – प्रतिकूल।

विजय – पराजय।

(viii) गद्यांश में से एक सरल वाक्य छाँटिए।

उत्तरः आदमी को हिम्मत और उसका आत्मविश्वास उसे जीवन-संग्राम में विजय दिलाता हैं।

3. निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर निबन्ध लिखिए:

(क) आतंकवाद।

(भूमिका- आतंकवाद का अर्थ और रूप- भारत और आतंकवाद – मानवता का शत्रु आतंकवाद – उपसंहार)

उत्तरः भूमिका: आतंकवाद आज विश्व की ज्वलंत समस्याओं में से एक हैं। यह विश्व के लगभग सभी देशों के लिए चिन्ता का विषय है। मानवता के शत्रु आंतकवाद से निपटने के लिए विकशित देशों के पास पर्याप्त साधन मौजूद हैं। आतंकवाद से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ तथा विकसित देश अन्य देशों को सैनिक, आर्थिक तथा अन्य सहायता उपलब्ध करना रहे हैं।

आतंकवाद का अर्थ: ‘आतंकवाद’ अंग्रेजी के ‘टेररिज्म’ शब्द का हिन्दी पर्याय है। यह उग्रवाद, अलगाववाद, धमधिता, कट्टरवादिता आदि प्रवृत्रियों का हिंसक रूप है। शब्दकोश के अनुसार सरकार को उरवाड़ने के लिए गैरकानूनी हिंसा ही आतंकवाद हैं। परन्तु आज सरकार को उरवाड़ने की उपेक्षा उसकी कठिनाइयाँ, परेशानियाँ आदि बढ़ाना, अपना उद्देश्य प्राप्त करने का अभिनव माध्यम बन गया है। वर्तमान सन्दर्भ में आतंकवाद एक ऐसा माध्यम है जिसके अन्तगर्त एक संगठित समूह अपना लक्ष्य पूरा करने के लिए हिंसक कारवाइयों का सहारा लेता है।

आतंकवाद के रूप: राजनैतिक दृढ़वादिता, धमधिता, वर्ग या सम्प्रदाय कट्टरवादिता आदि प्रवृत्तियाँ आतंकवाद के मूल आधार है। हिंसा, तोड़फोड़, दहशत, भय, लूट-पाट, अपहरण, आगजनी, बम विस्फोर आदि इसके विभिन्न रूप है। सामान्यतः अपेक्षित मानवीय संवेदनाओं का इसमें अभाव है। दया, ममता, करूणा, सहानुभूति जैसी संवेदनाओं तथा वात्सल्य, स्नेह, प्रेम आदि भावों का आतंकवाद में कोई स्थान नहीं है। निर्दोष, निरीह आम लोगों को हान्या तथा अपहरण करनेवाले आतंकवादी वास्तव में मानवता के घोर शत्रु हैं।

भारत और आतंकवाद: विगत लगभग आधी शताब्दी से भारत आतंकवाद के विषैले दंश को झेल रहा है। कभी स्थानीय अलगाववादी और उग्रवादी, कभी विदेशी भाड़े के टट्टू (विदेशों से धन, हथियार आदि सुविधाएँ पाने वाले) विभिन्न गुटों जैसे जैश-ए-मुहम्मद, हिजबुल मुजाहिद्दीन, लश्कर-ए-तोएवा, हरकत-उल-अंसार, फिदायीन आदि ने भारत भर में आतंकवादी गतिविधियों का जाल फैलाया हुआ है । प्रायः प्रतिदिन रोंगटे खड़े करनेवाले और दर्दनाक समाचार संचार माध्यमों द्वारा प्रसारित होते रहते हैं।

भारत में आतंकवादी गुट: असम में ‘उल्फा’ और ‘वोडो’, मेघालय तथा मणिपूर में अलगाववादी तत्न, पंजाब में बब्बर खालसा, कश्मीर में आतंकवादी गुटों को संग्या अत्यधिक है। आतंकवाद का वास्तविक निशाना जम्मू-कश्मीर रहा हैं, परन्तु अब कश्मीर और पाकिस्तान द्वारा संचालित अनेक गुट गुजरात, दिल्ली, मुंबई को भी अपना निशाना बना रहे हैं। दिल्ली की संसद, लालकिला, जम्मू का मंदिर, मुंबुई की लोकल ट्रेनें, बड़े होटल तथा माल, दिल्ली के कई बाजार, अयोद्धा, वाराणसी आदि आंतकवादी कारवाईयों का निशाना बन चुके हैं। अब तक लाखों की संख्या में निर्दोष लोग अपने प्राण गँवा चुके हैं। अरबों रूपये की संपत्ति स्वाहा हो चुकी है। २६ नवम्बर, ०८ को मुम्बई में पाकिस्तानी आंतवादियों ने जो कहर बरपाया और देखते-देखते २७६ लोगों को भून डाला, इसे कैसे भुलाया जा सकता है। आज पाकिस्तान इसे नकारता आ रहा है। अब जल शीर्ष आंतकवादी संगठन ‘अलकायदा’ का सरगना २ मई २०११ को पाकिस्तान के सैनिक अण्डों के पास एटाबाबाद के एक विशाल भवन में अमेरिकी खुखिया तन्त्र द्वारा मारा गया है, तब विश्व का ध्यान भारत की पीड़ा की और गया है।

आतंकवाद मानवता का शत्रु: आतंकबाद को संचालित करने वाले देश या गुट अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिए सामान्य जनता में भय और आतंक फैलाने के लिए उसे ही अपना निशाना बनाते हैं। क्योंकि सामान्य जनता के पास उनका सामना करने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। आतंकवादियों के लिए मानव का कोई महत्व नहीं है। उनका कोई धर्म या जाति नहीं है। वे तो मानव को आंतक फैलाने के साधन में प्रयोग करते हैं। कभी उनकी सामूहिक हत्या करते हैं तो कभी सामूहिक अपहरण, कभी भीड़ भरे बाजारों में विस्फोट कर मानवता को लहूलुहान करते है तो कभी चलते रेलगाड़ियों में बम रखकर निर्दोष, निरीह यात्रियों को मौत के घाट उतारते हैं। इस प्रकार आतंकवाद और आंतकवादी मानवता के घोर शत्रु हैं।

उपसंहार: संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि आतंकवाद एक प्रकार से मानवता के घोर शत्रु के रूप में ताडंप कर रहा है। विकासात्मक कार्यो, सरकारी कार्यालयों, त्यावसायिक केन्द्रों, जनहितकारी योजनाओं को छोड़कर देश की सुरक्षा एजेंसियों के लाखों कर्मचारियों को आंतकवादियों से जूझना पड़ रहा है। अब प्रत्येक देशवासी को संयुक्त रूप से दृढ़संकल्प और कर्तव्यनिष्ठा से आतंकवाद का सामना करना होगा। मुक्ति पाने का हर सम्भव प्रयास करना होगा। आझ आवश्यकता है कि सारा विश्व एकजुट होकर आतंकवाद और आतंकवादियों का सफाया करे।

(ख) परिश्रम सफलता की कुंजी हैं।

(भूमिका – परिश्रम की अनिवार्यता – परिश्रम से बिकास – लाभ – उपसंहार)

उत्तर: भूमिका: मानव जीवन में परिश्रम बहुत आवश्यक हैं। परिश्रम ही सफलता की कुंजी हैं। परिश्रम द्वारा छोटा से छोटा मनुष्य बड़ा बन सकता है। परिश्रम के द्वारा सभी कार्य सम्भव हैं। यदि मनुष्य कोई भी काम कठोर परिश्रम एवं दृढ़ संकल्प लेकर करता है तो वह उस काम में सफलता अवश्य पाता हैं।

परिश्रम की अनिवार्यता: मानव जीवन में परिश्रम बहुत उपयोगिता रखती है। परिश्रम को अपनाकर ही मानव आसमान की बुलदियों को अवश्य छूता है।

मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में परिश्रम उपयोगी है। चित्रकर या मूर्तिकार कम परिश्रम नहीं करता हैं। वह एख मूर्ति का निर्माण करने में उसको आकार देने में रात दिन एक कर देता है। तब कहीं जाकर वह जिस मूर्ति का निमार्ण करता है, उसमें सफल होता है। वह प्रसिद्ध मूर्तिकार कहलाता है। किसान भी कड़ी धूप एवं चिलचिलाती गर्मी में कृषि का अत्याधिक परिश्रम करता है और उसी के परिश्रम का फल पूरे संसार को मिलता है। महात्मा गाँधी परिश्रमी जीवन को सच्चा जीवन मानते थे। अतः जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए परिश्रम की अनिवार्यता बहुत ही आवश्यक हैं।

परिश्रम से विकास: परिश्रम द्वारा मानव जीवन का विकास सम्भव है। प्राचीन काल में मानव का शरीर बन्दर जैसा था। वह अपने खाने तथा जीविका को चलाने के लिए निरन्तर परिश्रम करता रहता था। धीरे-धीरे मानव का विकास हुआ और वह कठोर परिश्रम कर एकदिन जानवर सीधा होकर सिर्फ पैरों के सहारे चलने लगा। इस सिद्धान्त का प्रतिपादन महान वैज्ञानिक डार्विन ने तय किया हैं। परिश्रम द्वारा ही गुफाओं की दुनिया से निकलकर वह पेड़ों पर विचरण करते हुए जीविका की खोज में आगे बढ़ा। टोलो बनाकर रहने लगा और अपनी अधिक प्रगति के लिए वह खेती करने लगा। रहने के लिए घर बनाने लगा, छोटी-छोटी वस्तुओं का निर्माण करने लगा। आझ नगरों में जो सभ्यता एवं संस्कृति दिखलाई पड़ती हैं, वह सब परिश्रम द्वारा सम्भव हुई है। जापान संसार में विकासशील देशों में इसलिए गिना जाने लगा है क्योंकि वहाँ के लोग संसार के सबसे अधिक परिश्रमी होते हैं।

परिश्रम के लाभ: परिश्रम से मनुष्य के जीवन में अनेक लाभ होते हैं। जब मनुष्य जीवन में परिश्रम करता है तो उसका जीवन गंगा के जल की तरह पवित्र हो जाता है। जो मनुष्य परिश्रम करता है उसके मन से वासनाएँ और अन्य प्रकार की दूषित भावनाएँ खत्म हो जाती हैं। जो व्यक्ति परिश्रम करते हैं उनके पास किसी भी तरह की बेकार की बातों के लिए समय नहीं होता है। जिस व्यक्ति में परिश्रम करने की आदत होती है उनका शरीर हष्ट-पुष्ट रहता है। परिश्रम करने से मनुष्य का शरीर रोगों से मुक्त रहता है।

परिश्रम करने से जीवन में विजय और धन दोनों ही मिलते हैं। अक्सर ऐसे लोगों को देखा गया है जो भाग्य पर निर्भर नहीं रहते हैं और थोड़े से धन से काम करना शुरु करते हैं और कहाँ से कहाँ पर पहुँच जाते है। जिन लोगों के पास थोड़ा धन हुआ करता था वे अपने परिश्रम से धनवान बन जाते हैं। जो व्यक्ति परिश्रमी होते हैं उन्हें जीवित रहते हुए भी यश मिलता है और मरने के बाद भी। परिश्रमी व्यक्ति ही अपने राष्ट्र और देश को ऊँचा उठा सकता है। जिस देश के लोग परिश्रमी होते है वही देश उन्नति कर सकता है। जिस देश के नागरिक आलसी और भाग्य पर निर्भर होते हैं वह देश किसी भी शक्तिशाली देश का आसानी से गुलाम बन जाता है।

उपसंहार: इस प्रकार परिश्रम ही मानव जीवन की सफलता की कुंजी हैं। हमें निरन्तर करते रहना चाहिये तभी हमें अच्छे फल की प्राप्ति होगो।

यदि हमें दूसरों की सफलता देखनी है तो इस बात को पहले देखना चाहिये की उनकी इस सफलता के पीछे उनका परिश्रम लगा हुआ है। परिश्रम को देखकर सफलता का आंकलन हम करने लगें तो खुद भी प्रेरित होकर उतना ही परिश्रम करके वैसे ही सफल होने की हिम्मत जुटा सकते हैं।

(ग) खेल का महत्व।

(भूमिका – खेल के प्रकार – खेल का महत्व – लाभ – मनोरंजन और खैल – निष्कर्ष)

उत्तरः प्रस्तावना: यदि हम कुछ पलों के लिए इतिहास की और देखें या किसी सफल व्यक्ति के जीवन पर प्रकाश डालें तो हम देखते हैं कि नाम, प्रसिद्ध और धन आसानी से नहीं आते हैं। इसके लिए लगन, नियमितता, धैर्य, और सबसे अधिक महत्वपूर्ण कुछ शारीरिक और क्रियाओं अर्थात् स्वस्थ जीवन और सफलता के लिए एक व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य की आवश्यकता होती है। नियमित शारीरिक गतिविधियों में शामिल होने के लिए खेल सबसे अच्छा तरीका है। किसी भी व्यक्ति की सफलता मानसिक और शारीरिक ऊर्जा पर निर्भर करती है। इतिहास बताता है कि, केवल प्रसिद्धी ही राष्ट्र या व्यक्ति पर शासन करने की शक्ति है।

खेल से लाभ: आजकल की व्यस्त दिनचर्या में खेल ही एक मात्र साधन है, जो मनोरजन के साथ साथ हमारे विकास में सहायक है। यह हमारे शरीर को स्वस्थ एवं तंदुरुस्त बनाए रखता है। इससे हमारे नेत्रों की ज्योति बढ़ती है, हड्डिया मजबूत एवं रक्त का संचार उचित रूप से होता है। खेलो से हमारे पाचन तंत्र पूर्ण रूप से कार्य करता है। खेल एक व्यायाम है जिससे हमारे दिमागी स्तर का विकास होता है। ध्यान केंद्रित करने से शरीर के सारे अंग पूर्ण रूप से काम करते है, जिससे हमारा दिन अच्छा एवं खुसनूमा होता है। खेलो से हमारा शरीर सुडोल एवं आकर्षक बनता है, जो आलस्य को दूर कर उर्जा प्रदान करता है। अतः हमें रोगो से मुक्त रखता है। हम यह भी कह सकते है कि मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास में खेल अपनी एहम भूमिका अदा करता है, इससे ही मनुष्य आत्मनिर्भर तथा जीवन में सफलता प्राप्त करता है।

खेल का प्रकार: खेल कई तरह के होते है जिन्हे मुख्यतः दो वर्गों में बाँटा गया है इनडोर और आउटडोर। इनडोर खेल जैसे ताश, लुडो, केरम सांपसीडी आदि ये मनोरंजन के साथ साथ बोधिक विकास में सहायक होते हैं, वही आउटडोर खेल जैसे क्रिकेट, फूटबॉल, हॉकी, बेटमिंटन, टेनिस, वॉलीबॉल आदि शरीर को स्वस्थ बनाए रखने में लाभकारी है। इन दोनो वर्गों में इतना अंतर है कि आउटडोर खेलो के लिए बड़े मैदान की आवश्यकता होती है जबकि इनडोर खेलो में ऐसे बड़े मैदान की ज़रूरत नही होती है। आउटडोर खेल हमारे शारीरिक विकास में लाभकारी होते है, वही दूसरी ओर शरीर को स्वस्थसुडोल तथा सक्रिय बनाए रखते हैं। जबकि इनडोर खेल हमारे दिमागी स्तर को तेज करते है। साथ ही साथ मनोरंजन का उत्तम स्त्रोत माने जाते हैं।

टीम स्प्रिट: खेलों से ‘टीम स्प्रिट’ का विकास होता है। ‘तीम स्प्रिट’ का मतलब हर उस खिलाड़ी से है जो अपने पृथक-पृथक व्यक्तित्व को टीम के व्यक्तित्व में विलीन कर दे। इसमें टीम का हर खिलाड़ी सम्पूर्ण टीम के लिए खेलता है केवल अपने लिए नहीं। यह ‘टीम स्प्रिट’ की भावना जो वह खेलों के द्वारा अपने अंदर विकसित करता है तो यही उसके व्यावहारिक जीवन की समस्याओं का समाधान करने में अत्यधिक लाभदायक सिद्ध होता है।

उपसंहारः जैसे जीवन को व्यवस्थित रूप से चलाने के लिए हमारे शरीर का स्वस्थ होना अत्यंत आवश्यक है। उसी प्रकार हमारे शरीर के पूर्ण विकास हेतु व्यायाम बहुत जरुरी है। खेलो में भाग लेने से हमारे शरीर का अच्छा व्यायाम होता है। यह बालकों एवं युवाओ के मानसिक तथा शारीरिक दोनो ही विकास में अत्यंत महत्वपूर्ण है। हम यह कह सकते है कि खेलो का हमारे जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। इससे मनुष्य आत्मविश्वासी एवं प्रगतिशील बनता है। किसी महान पुरुष ने कहा है कि एक स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का विकास होता है स्वस्थ जीवन ही सफलता प्राप्त करने की कुंजी है, इस तरह खेल हमारे जीवन को सफल बनाने में सहायक है।

(घ) राष्ट्र निमार्ण में युवाओं का योगदान।

(भूमिका – राष्ट्र निर्माण का अर्थ- राष्ट्र की माँग – राष्ट्र उत्थान में योगदान – उपसंहार)

उत्तरः भूमिका: प्रत्येक युग में युवाओं को राष्ट्र का भविष्य माना जाता है क्योंकि उनके मन में कुछ कर गुजरने की अदभ्य साहस होता है। उनके मन में सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक परिवर्तन करने की प्रबल इच्छा और शक्ति होती है। प्रत्येक राष्ट्र अपने युवाओं से यह आशा रखता है कि वह उसके नवनिर्माण और उत्थान में सहायक बनें और सुरक्षा के लिए भी सदैव तत्पर रहें। इतिहास इश बात का साक्षी है कि युवाओं ने अनपे दायित्व का पालन करते हुए राष्ट्र के उत्थान के लिए अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया है।

राष्ट्र-निर्माण का अर्थ: राष्ट्र में सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक, वैज्ञानिक तथा कानून-व्यवस्था के निर्माण में योगदान देना ही राष्ट्र निर्माण हैं। इसके साथ ही देश में शांति-व्यवस्था स्नेह, सहानुभूति, भाइचारे की भावना को बनाए रखने के लिए कार्य करना भी राष्ट्र का निर्माण करना ही है। परन्तु युवा भी तभी देश के उत्थान में अपना योगदान कर सकते हैं जब उनका तन-मन और मस्तिष्क भली-भाँति विकसित हो। युवावर्ग को चाहिए कि वे युगानुरूप अच्छे संस्कार ग्रहण करें और विभिन्न विषयों का अध्ययन करके स्वयं को हर प्रकार से योग्य बनाएँ क्योंकि योग्य, कल्पनाशील, दृढ़ संकल्पी, परिश्रमी एवं स्वस्थ -सुन्दर व्यक्तित्व वाले ही राष्ट्र के उत्थान में उचित एवं अपेक्षित योगदान कर सकते हैं।

राष्ट्र की माँग: राष्ट्र अपने उत्थान के लिए युवाओं से अखंड परिश्रम की माँग करता हैं। वह चाहता है की युवा लोभ, लालच और स्वार्थी को त्याग कर कर्मठता से उसके नव-निमार्ण में योगदान करें क्योंकि देश के उत्थान में ही उनका भी उत्थान है। उनके परिश्रम से देश का उत्थान होगा तो देश में खुशहाली आएगी तो युवाओं का जदीवन-स्तर भी ऊपर उठेगा। वे भी खुशहाल होंगे।

राष्ट्र- उत्थान में योगदान: युवा वर्ग राष्ट्र के उत्थान में कई प्रकार से अपना योगदान कर सकता हैं। वह निरक्षरों को साक्षर, अशिक्षितों को शिक्षित करने में अपना योगदान दे सकता है। वह ऐसे असामाजिक और देशद्रोहियों पर दृष्टि रख सकता है जो अराजक, आतंकवादी, असामाजिक, अनैतिक और राष्ट्र निरोधी गतिविधियों में संलग्न रहते हैं। युवा-जन देश की सीमाओं की निगरानी रखते हुए उन्हें विदेशी शक्तियों से सुरक्षित रख सकते हैं। वे देश के आंतरिक शत्रुओं और राजनीतिज्ञों पर अकुंश लगा सकते हैं। जो अपने क्षुद्र स्वार्थो की पूर्ति के लिए देश का संतुलन बिगाड़ने या भंग करने के लिए प्रयासरत रहते हैं। इसी तरह आज देश में रिश्वत, भ्रष्टाचार, कालावाजारी, धोखाधड़ी, अलगाववाद आदि अनेक तरह के गोरखधंधों का बोलबाला है। जागरूक एवं जाग्रत युवा शक्ति उसे जड़-मूल से मिटाने में अपना योगदान कर सकती है।

युवा शक्ति सचेष्ट-सक्रिय होकर दहेज-प्रथा, जातिवाद, प्रांतवाद, भाषावाद जैसी सामाजिक बुराइयों से छुटकारा दिला सकती हैं। वह बेकारी, तीब्र गति से बढ़ती जनसंख्या, प्रदूषण आदि के प्रति लोगों में चेतना उत्पन्न कर इन समस्याओं का निदान कर सकती हैं। अध्यापक, डॉक्टर, वकील, समाज-सेवक बनकर युवक शिक्षा का प्रचार-प्रसार, रोगियों, निर्बलों की सेवा। समाज में फैली गरीबी, सांप्रदायिक्ता, असमानता आदि कुरीतियों के विरुद्ध संघर्ष और सुनीतियों रीतियों के प्रति जागरुकता उत्पन्न कर देश को उन्नति की ओर ले जा सकते हैं। युवा ही देश के भावी कर्णधार है। इतिहास साक्षी है कि गांधी, नेहरु, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, पटेल आदि अनेकानेक युवाओं ने अपने त्याग, बलिदान और अदम्य साहस शक्ति से भारत को सदियों की दासता से मुक्ति दिलवाई थी । यदि प्रत्येक युवक अपनी शक्ति को पहचान कर, अपनी कार्य-शक्तियों को संचित एवं संकलित करके और संगठित होकर, इतिहास से प्रेरणा लेकर सकारात्मक कार्य करे तो निश्यत ही देश का उत्थान होगा।

4. (क) दिन-प्रतिदिन बढ़ती महँगाई के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए किसी भी एक स्थानीय पत्र के संपादक के नाम एक पत्र लिखिए।

उत्तरः सेवा में,

सम्पादक महोदय

दैनिक जागरण,

केशव नगर, गुवाहाटी

विषय: बढ़ती मँहगाई के संबंध में सम्पादक को पत्र।

महोदय,

मैं इस पत्र के माध्यम से प्रशासन तथा सरकार का ध्यान बढ़ती हुई महँगाई की ओर आकर्षित करना चाहती हूँ। आपसे अनुरोध है की मेरे पत्र को अपने समाचार पत्र के लोकवार्ण कालम में प्रकाशित करने का कष्ट करें।

आजकल देश में बढ़ती महँगाई से जनता त्राहि-त्राहि कर रही है। दैनिक प्रयोग की लगभग सभी वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं। यहाँ तक की सब्जियों की कीमतों में अभूतपूर्व बृद्धि हुई हैं। महँगाई के कारण आम आदमी का जीना मुश्किल हो गया है। देश के अधिकांश नेता महँगाई का रोना तो रोते हैं, सरकार भी इस विषय पर चिंता जताती हैं, पंरतु कीमतों पर नियंत्रण करने के लिए कड़े कदम नहीं उठाए जाते। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार भी महँगाई पर रोक लगाने में पूरी तरह असफल रही है। यदि सरकार दृढ़ता दिखाए तो बड़ी हुए कीमतों पर नियंत्रण लगा सकती हैं। अतः मेरा सरकार तथा प्रशासन से निवेदन है कि इश दिशा में तत्तकाल आवश्यक कदम उठाए जाएँ और महँगाई पर रोक लगाएँ।

धन्यवाद सहित,

भवदीय

मधु गोस्वामी

अथवा

(ख) आपके क्षेत्र में बच्चों के लिए एक पार्क विकसित करने के लिए नगर निगम अधिकारी को एक पत्र लिखिए।

उत्तरः सेवा में,

नगर निगम अधिकारी

गुवाहाटी

विषय: बहार कॉलोनी का पार्क विकसित करने के बारे में

महोदय,

निवेदन है कि हम बहार कॉलोनी के निवासी हे हमारी कॉलोनी में नगर निगम के पार्क के लिए खाली भूमि पड़ी हैं। इस समय वह भूमि गंदगी का कारण बनी हुई है। कॉलोनी के लोग उसे कूड़ाघर समझकर इस्तेमाल करते हैं। हम चाहते हैं कि हम स्वय इस पार्क को विकसित और व्यवस्थित करें। इसके लिए आपकी अनुमति और विभागीय सहयोग चाहिए। हमारा निवेदन है कि आफ किसी दिन हम कॉलोनी वासियों के साथ बैठक करें और पार्क को विकसित करने की विकसित योजना बनवाएँ।

आशा है, आप अपना भरपूर सहयोग देंगे। हम कॉलोनीवासी हर तरह का सहयोग करने को तैयार है।

भवदीय

अरनव सिंह

प्रतिनिधि बहार कॉलोनी, गुवाहाटी 

5. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

(क) संचार माध्यम किसे कहते हैं?

उत्तरः भाषा संचार का सर्वप्रथम माध्यम है, किन्तु दुर लोगों तक संवाद संचार के लिए जिन वैज्ञानिक उपकरणों, साधनों आदि का उपयोग किया जाता है वे संचार माध्यम कहे जाते हैं।

(ख) हिन्दी के किन्ही दो समाचार पत्रों के नाम लिखिए।

उत्तरः सरिता, कादंबिनी।

(ग) समाचार पत्र की भाषा कैसी होनी चाहिए?

उत्तरः समाचार पत्र की भाषा सरल तथा सहज होनी चाहिए।

(घ) टेलीविज़न किस प्रकार का जनसंचार माध्यम हैं?

उत्तरः टेलीविज़न जनसंचार का एक अनोखा माध्यम है जिसकी द्वारा एक ही सूचना एक ही समय पर कई सारे लोगो को आसानी से ली जा सकती है।

(ङ) संपादकीय किसे कहते हैं?

उत्तरः सम्पादकीय: सम्पादक के द्धारा लिखा गया लेख ही सम्पादकीय है। सम्पादकीय पृष्ठ समाचार का माना गया है।

6. (क) पुस्तक मेला की उपयोगिता पर एक आलेख प्रस्तुत कीजिए।

उत्तरः पुस्तकें अनमोल हैं। वे हमारी सबसे अच्छी मित्र हैं क्योंकि वे ज्ञान-विज्ञान की भंडार हैं। व्यक्ति आते है और चले चाते हैं परन्तु उनके श्रेष्ठ विचार, ज्ञान, उपदेश, संस्कृति, सभ्यता, मानवीय मूल्य पुस्ततों के रूप में जीवित रहते हैं। उनका विनाश नहीं होता। वे एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को प्राप्त होते रहते हैं। उदाहरण के लिए हमारे वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, हमारा इतिहास सभी आज जीवित हैं, हमारे पास है। ये ग्रंथ आज भी हमें प्रकाश और प्रेरणा दे रहे हैं।

पुस्तको की तरह पुस्तक मेले भी हमारे लिए वरदान है। ये पाठकों और लेखकों के संगम होते हैं। यहां पर सभी विषयों पर सभी प्रकार की पुस्तकें सरलता से मिल जाती हैं। पाठक अपनी रूचि, योग्यता और आवश्यकता के अनुसार पुस्तकों का चुनाव कर सकता है।

पुस्तक मेला पुस्तक की विषय, मूल्य आदि की विविधता चुनाव को और भी सरल सहज और सरस बना देता है । इसके अतिरिक्त एक पाठक दूसरे पाठक से विचारों का आदान-प्रदान कर सकता है। पुस्तक विक्रेताओं से मार्गदर्शन प्राप्त कर सकता है। ये सभी पाठकों के लिए बहुत लाभदायक रहती हैं।

अथवा

(ख) ‘महानगर की ओर पलायन’ विषय पर एक फीचर प्रस्तुत कीजिए।

उत्तरः महानगर सपनों की तरह है मनुष्य को ऐसा लगता है मानो वही हैं। हर व्यक्ति ऐसे स्वर्ग की ओर खींचा चला आता है। चमक-दमक, आकाश छूती इमारते, अब कुछ पा लेने की चाह, मनोरंजन आदि न जाने बहुत कुछ जिन्हें पाने के लिए गाँव का सुदामा लालायित हो उठता है और चल पढ़ता है महानगर की ओर। आज महानगरों में भीड़ वढ़ रही है। हर ट्रेन, बस में आप देख सकते हैं। गाँव यहाँ तक कि कस्वे का व्यक्ति भी अपनी दरिद्रता को समाप्त करने के खाब लिए महानगरों की तरफ चल पड़ता है। शिक्षा प्राप्त करने के बाद रोजगार के अधिकांश अवसर महानगरों में ही मिलते हैं। इस कारण गाँव व कस्बे से शिक्षित व्यक्ति शहरों की तरफ भाग रहा है। इस भाग दौड़ में वह अपनों का साथ भी छोड़ने को तैयार हो जाता है। दूसरे, अच्छी चिकित्सा सुविधा, परिवहन के साधन, मनोरंजन के अनेक तरीके, बिजली पानी की कमी न होना आदि अनेक आकर्षक महानगर की ओर पलायन को बढ़ा रहे हैं। महानगरों को व्यवस्था भी चमकाने लगी हैं। यहाँ के साधन भी भीड़ के सामने बौने हो जाते हैं। महानगरों का जीवन एक ओर आकर्षित करता है तो दूसरी ओर यह अभिशाप से कम नहीं हैं। सरकार को चाहिए की वह गाँवों में भी विकास का कार्य करें।

7. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर उसके नीचे दिए गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए: 

(क) कविता एक उड़ान है चिड़िया के बहाने

कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने

बाहर भीतर

इस घर, उस घर

कविता के पंख लगा उड़ने के माने 

चिड़िया क्या जाने?

प्रश्न (i) प्रस्तुत काव्यांश के कवि और कविता का नाम लिखिए।

उत्तरः प्रस्तुत काव्यांश के कवि ‘कुवँर नारायण’ और कविता का नाम ‘कविता के बहाने हैं।’

(ii) ‘कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने’ – आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तरः चिड़िया की उड़ान सीमित है जबकि कविता की उड़ान असीमित हैं। अत: चिड़िया कविता के अर्थ को नहीं जान सकती।

(iii) ‘कविता एक उड़ान है चिड़िया के बहाने’ – के माध्यम से कवि क्या कहना चाहते है?

उत्तरः कविता की यात्रा, असीम, अनंत है। चिड़िया की उड़ान के बहाने यह कविता की उड़ान है। कविता में भावों, विचारों, अनुभूतियों, संवेदनाओं और कल्पनाओं असीमित, कल्पनातीत उड़ान है। चिड़िया की उड़ान तो मुक्त आकाश में एक निश्चित सीमा तक हैं।

(iv) ‘बाहर भीतर

इस घर, उस घर’ – से कवि का अभिप्राय बताइए।

उत्तरः ‘बाहर भीतर इस घर’ आशय हैं यह लौकिक जगत तथा ‘उस घर’ से आशय है – अलौकिक ज़गत। चिड़िया केवल लौकिक जगत के इस घर से उस घर तक उड़ान भर सकती हैं।

अथवा

(ख) ‘ममता के बादल की मँडराती कोमलता – भीतर पिराती है

कमज़ोर और अक्षम अब हो गई है आत्मा यह

छटपटाती छाती को भवितव्यता डराती है

बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदश्त नहीं होती हैं।।’

प्रश्न (i) कवि को कौन सी भावना दुःख देती है?

उत्तरः ममता के कारण कवि की आत्मा कमजोर हो चुकी है। और यही कोमलता कवि के मन को अदंर ही अंदर पीड़ा देती है।

(ii) कवि की आत्मा कमज़ोर और अक्षम क्यों हो गई है?

उत्तरः यहाँ कवि की आत्मा को कमजोर और अक्षम कहा है, क्योंकि ममता के कारण कवि की आत्मा अब कमजोर हो चुकी है। यह कोमलता मन को अंदर ही अंदर पीड़ा पहुचाती है। जिसके कारण उनकी आत्मा कमजोर और क्षमताहीन हो गई है।

(iii) कवि भविष्य के प्रति क्यों आशंकित है?

उत्तरः कवि के ऊपर- कोमल ममता के बादल भले मंडराते हो लेकिन उन्हें भीतर दर्द का अनुभव होता है। उनकी आत्मा कमजोर और अक्षम हो गई है इसीलिए उन्हे भवितव्यता डराती है।

(iv) ‘बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है।’ – भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तरः कवि के मन में सदा प्रिय की ममता बादलों की भाँति मँडराती रहती है। यदि कोमल ममता उनके हृदय को पीड़ा पहुचाती है, और इस कारण अनकी आत्मा कमजोर और असमर्थ हो गई है। इसलिए उन्हें अपने प्रिय का बहलाना सहलाना बरदाश्त नहीं होता है।

8. निम्नलिखित में से किसी एक काव्यांश को पढ़कर उसके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

(क) ‘उससे पूछेंगे तो आप क्या अपाहिज हैं?

तो आप क्यों अपाहित हैं?

आपका उपाहिजपन तो दुःख देता होगा देता है?

(कैमरा दिखाओ इसे बड़ा बड़ा)

हाँ तो बताइए आपका दुख क्या है

जल्दी बताइए वह दुख बताइए

वता नहीं पाएगा।’

प्रश्न: (i) प्रस्तु पद्दांश के भाव सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।

उत्तरः इस काव्यांश में कवि ने मीडिया की हृदयहीन कार्यशैली पर व्यंग्य किया है। संचालक अपने कार्यक्रम को प्रभावी बनाने के लिए उपाहिज से ऊट-पटांग सवाल करके उसकी भावनाओं से खेलते हैं। वे उसके दुख को कुरेदना चाहते हैं। परतुं अपाहिज चुप रहता है। वह अपना मजाक नहीं ठड़वाना चाहता।

(ii) ‘आपका अपाहिजपन तो दुख देता होगा देता है ?’ – इस तरह के प्रश्न से दूरदर्शन के कार्यक्रम संचालकों की किस मानसिकता को दशति हैं?

उत्तर: कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए प्रश्नकर्ता की मानिसकता उपाहिज को रूलाने को होती है। वह सोचता है कि उपाहिज के साथ-साथ यदि दर्शक भी रोने लगेंगे तो उनकी सहानुभूति चैनल को मिल जाएगी और इससे उसे धन व प्रसिद्ध का लाभ होगा।

(iii) इस काव्यांश के बारे में अपनी राय लिखिए।

उत्तरः इस काव्यांश से हमारी यह राय है कि हमें शारीरिक अपंगता झेलने वाले लोगों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए।

अथवा

(ख) मुझसे मिलने को कौन विकल?

मैं होऊँ किसके हित चंचल?

यह प्रश्न शिथिल करता पद को,

भरता उर में विह्वलता है।

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है।

प्रश्न: (i) ‘मुझसे मिलने को कौन विकल?’ कवि के मन में ऐसा भाव क्यों उत्पन्न होता है?

उत्तरः कवि के मन में ऐसा भाव इसलिए उत्पन्न होता है क्योंकि उससे मिलने के लिए कौन उत्कंठित होकर प्रतीक्षा कर रहा है और वह किसके लिए चंचल होकर कदम बढ़ाए।

(ii) कवि क्यों अपनी चंचलता त्याग देता है?

उत्तरः कवि अपनी चंचलता इसलिए त्याग देता है क्योंकि कवि अपनी पत्नी से दूर होकर एकाकी जीवन विता रहा है। उसकी प्रतीक्षा करनेवाला कोई नहीं हैं।

(iii) काव्याशं के शिल्पगत सौन्दर्य पर टिप्पणी कीजिए।

उत्तरः शिल्पगत सौन्दर्य: मनुष्य में किसी प्रिय आलंबन या विषय से मिलने की इच्छा न हो तो वह मनुष्य को निष्क्रिय बना सकता है। इसकी भाषा सहज-सरल है। यहाँ अलंकारों का प्रयोग किया गया है।

9. निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

(क) भोर का नभ राख से लीपा हुआ चौका 

(अभी गीला पड़ा है ) – आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तरः भोर के नभ की पवित्रता व निर्मलता व्यक्त करने के लिए उसे राख से लीपा हुआ गीला चौका कहा गया है। भोर के समय आकाश का रगं राख से पुते सीले चौके के समान मटमैला और नभी से भरा होता है। राख से लीपे चौके का रंग भोरकालीन नभ के प्राकृतिक रंग से अच्छा साम्य रखता है।

(ख) धूत कहौ, अवधूत कहौं, रजपूत कहौ,

जोलहा कहौ कोऊ।

काहू की बेटोसों बेटा न व्याहब,

काहूकी जाति बिगार न सोऊ।।

भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तरः तुलसीदास जी कहते हैं कि मुझे चाहे कोई धूर्त कहे या सन्यासी, राजपूत अथवा जुलाहा कहें। (मुझे इनसे कोई मतलब नही हैं) क्योंकि मुझे किसी की बेटी से अपने बेटे की शादी नहीं करनी है जिसके कारण उनकी जाति ही बिगड़ जाएगी।

(ग) ‘आँगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी

हाथों पे झुलाती हैं उसे गोद-भरी’

– प्रस्तुत काव्यांश में वात्सल्य का एक सुन्दर दृश्य प्रकट होती हैं – सिद्ध कीजिए।

उत्तरः कवि कहते है कि माँ अपने चाँद के टुकड़े को यानी अपने बच्चे को आँगन में लिए खड़ी है। वह कभी अपने चाँद के टुकड़े को हाथों पर झुलाती हैं, तो कभी उसे अपने गोद में भर लेती हैं। रह-रह कर वह अपने बच्चे को हवा में उछाल-उछाल उसे प्यार करती है। जिससे उसके बच्चे की हँसी, उसकी खिलखिलाहट चारों ओर गुँज उठती हैं।

(घ) ‘कोई अंधड़ कहीं से आया

क्षण का बीज वहाँ बोया गया।’

– कवि ने कौन सा बीज बोने के बारे में कहा है ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तरः कवि ने भावात्मक आँधी के प्रभाव से कागज पर रचना (कविता) के बीज बोने के बारे में कहा है। किसान खेत में रासायनिक खादों के प्रयोग द्वारा बीज को अंकुरित करता है। बीज से अंकुर फूटते है जो वाद में फलों और फूलों से लटकर झुक जाते हैं। रचनाकार भी कल्पना की सहायता से रचना के मूल भाव को विकसित करता हैं।

10. निम्नलिखित में से किसी एक गद्याशं को पढ़कर उसके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

(क) पानी की आशा पर जैसे सारा जीवन आकर टिक गया हो। बस एक बात मेर समझ में नहीं आती थी कि जब बागों ओर पानी की इतनी मकी है तो लोग घर में इतनी कठिनाई से इकट्ठा है पानी की। देश की इतनी क्षति होती है इस तरह के अंधविश्वासी से। कौन कहता है इन्हें इंद्र की सेना ? अगर इंद्र महारात से ये पानी दिलवा सकते हैं तो खुद अपने लिए पानी क्यों नहीं माँग लेते? क्यों मुहल्ले भर का पानी नष्ट करवाते घूमते है। नहीं यह सब पाखंड है। अंधविश्वास है। ऐसे ही अंधविश्वास के कारण हम अंग्रेजों से पिछड़ गए और गुलाम बन गए।

प्रश्न: (i) ‘पानी की आशा पर जैसे सारा जीवन आकर टिक गया हो’ – लेखक ने ऐसा क्यों कहाँ हैं?

उत्तरः ‘पानी की आशा पर जैसे सारा जीवन आकर टिक गया हो’ – लेखक ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि गर्मी के कारण गाँव-शहर सभी जगह पानी का अभाव हो गया था। कूएँ सूख गए थे, नलों पानी नहीं आता था, प्यास से पशु व्याकुल थे। खेतों में मिट्टी सूखकर पत्थर होकर फट गई। लोग इंद्र देवता को प्रसन्न करने के लिए पूजा-पाठ, कथा-विधान आदि करने लगे।

(ii) लेखक ने किसे पानी की निर्मम बरबादी कहाँ है?

उत्तरः पानी की अतयाधिक कमी होनें पर भी लोग इंदर सेना पर बाल्टी भर-भर पानी फेंकते हैं। घर में एकत्र किए हुए पानी को इंद्र सेना पर फेंकने को ही लेखक ने पानी की निर्मम बरबादी कहाँ हैं।

(iii) इंदर सेना के संबंध में लेखक का क्या दृष्टिकोण है?

उत्तर: इंदर सेना के सम्भवध में लेखक का मानना हैं, यह सब पाखंड हैं। यदि इंदर सेना देवता से पानी दिलवा सकती है तो वह स्वयं अपने लिए पानी क्यों नहीं माँग लेती। दूसरे शब्दोंम में लेखक नही मानता कि इस प्रकार का अंधविश्वास वर्षा करवाने में सक्षम हैं।

(iv) लेखक भारत की गुलामी और अवनति का मूल कारण किसे मानता है?

उत्तर: लेखक भारत की गुलामी और अवनति का मूल कारण यह मानता है कि भारत अंधविश्वासों में डूबा है। इन्हीं अंधविश्वासों के कारण भारत अंग्रेजों से बिछड़ गया और गुलाम हो गया।

(ख) शिरीष के फूलों की कोमलता देखकर परवर्ती कवियों ने समझा कि उसका सबकुछ कोमल है। यह भूल है। इसके फल इतने मज़बूत होते हैं कि नए फूलों के निकल आने पर भी स्थान नहीं छोड़ते। जब तक नए फल-पत्ते मिलकर, धकियाकर उन्हें बाहर नहीं कर देते तब तक वे डटे रहते है। वसंव के आगमन के समय जब सारी वनस्थली पुष्प-पत्र से मर्मरित होती रहती है, शिरीष के पुराने फल बुरी तरह खड़खड़ाते रहते हैं। मुझे इनको देखकर उन नेताओं की बात याद आती हैं, जो किसी प्रकार जमाने के रूख नहीं पहचानते और जब तक नयी पौध के लोग उन्हें धक्का मारकर निकाल नहीं देते तब तक जमे रहते हैं।

प्रश्न: (i) शिरीप के नए फूल और पत्तों का पुराने फलों के प्रति कैसा व्यवहार हैं?

उत्तरः शिरीष के नए फल व पत्तें नवीनता के परिचायक हैं। तथा पुराने फल प्राचीनता के। नयी पीढ़ी प्राचीन रूढ़िवादिता को धकेलकर नव निमार्ण करती है।

(ii) शिरीप के फूलों और फलों के स्वभाव में क्या अन्तर है?

उत्तरः शिरीष के फूल बेहद कोमल होते हैं, जबकि फल आत्मायिक मजबूत होते हैं। वे तभी अपना स्थान छोड़ते हैं, जब नए फल और पत्ते मिलकर उन्हें धकियाकर बाहर नहीं निकाल देते।

(iii) शिरीष के फलों और आधुनिक नेताओं के स्वभाव में क्या साम्य दिखाई पड़ता है?

उत्तरः शिरीष के फलों और आधुनिक नेताओं के स्वभाव में अभिगता तथा कुर्सी के मोह की समानता दिखाई पड़ती हैं। ये दोनों तभी स्थान छोड़ते हैं जब उन्हें धकियाया जाता है।

(iv) कवि ने किसे और क्यों परवर्ती कवियो की भूल कहाँ है?

उत्तरः कालिदास को आधार मानकर बाद के कवियों को ‘परवर्ती’ कहा गया है क्योंकि उन्होने भी भूल से शिरीष के फूलों को कोमल मान लिया। 

11. निम्नलिखित में से किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर दीजिएः

(क) बाज़ार का बाज़ारूपन कौन लोग बढ़ाते हैं?

उत्तरः बाज़ार का बाजारूपन वे लोग बढ़ाते है जो नहीं जानते कि वे क्या चाहते हैं। बाजार सच्चा लाभ वही लोग दे पाते हैं जिन्हें यह होता है कि बाजार किस लिए होता है। उसका प्रेयोग हमें कितना और किस अर्थ में करना चाहिए। लोग उपयोगिता के लिए बाजार का उपयोग करते है। वे ही सच्चे ग्राहक है और बाजार को उसका सही अर्थ देने में सहयोग करते हैं।

(ख) चार्ली चैप्लिन के व्यक्तित्व की तीन विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

उत्तरः चार्ली चैप्लिन की फिल्मों की विशेषताएँ –

(i) उनके फिल्मों में भाषा की बजाय मानवीय क्रियाएँ अधिक सजीव तथा स्पष्ट है।

(ii) उनकी फिल्म विदेशियों को भी विदेशी नहीं लगती थी।

(iii) चार्ली चैप्लिन ने अपनी फिल्मों में आत्म-हास्य को दिखाया है।

(ग) ढोलक का गाँव के लोगों पर क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तरः ढोलक का गाँव के लोगों पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। गाँववालों में एक नई चेतना ऊर्जा पैदा कर देता है। जब पहलवान अपना ढोल संध्या से लेकर सुबह तक बजाता था तो गाँव के अर्धमृत ओषधि उपचार पथ्यविहीन उन प्राणियों में भी संजीवनो शक्ति ही भरती थी। सभी की आँखों के आगे जंगल का दृश्य उपस्थित हो जाता था तथा उनमें एक नया ऊर्जा पैदा हो जाती थी तथा रोग से लड़ने को प्रेरणा मिलती थी।

(घ) सफ़िया ने सिख बीबी में अपनी माँ से क्या समानता देखी?

उत्तरः सफ़िया को सिख बीबी अपनी माँ जैसी लगती है और उसके माँ के जैसा ही उसका पहनाना है। और सफिया की माँ के जैसा सिख बीबी का व्यक्तित्य भी एक ही हैं।

(ङ) लेखक ने शिरीप को एकमात्र कालजयी अवधूत क्यों कहाँ है?

उत्तरः लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत की तरह माना है। इसका कारण यह है कि जब सारी दुनिया गरमी से त्रस्त तथा सारा वातावरण उमस एवं लू से त्राहि-त्राहि कर रहा होता है। मनुष्य जब इस भयानक गर्मी से बचने का हर संभव प्रयास करता है। जेठ की जलती धूप में जब धरती अग्निकुंड बन जाती है तथा लू से हृदय सूखने लगता हैं तब शिरीष नीचे से ऊपर तक फूलों से लदा होता है। जिसप्रकार अवधूत को आँधी, लू और गरमी की प्रचंड़ता विचलीत नहीं कर सकती हैं। ठीक उसी प्रकार शिरीष भी आँधी, लू और गरमी की प्रचंडता में भी अवधूत की तरह अविचल होकर कोमल पुष्पों का सौन्दर्य विखेरता रहता है। दुख हो या सुख वह कभी घर नहीं मानता।

पूरक पुस्तक (वितान भाग-२)

12. निम्नलिखित में से किन्ही दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

(क) यशोधरा बाबू का भरा-पूरा परिवार होने के बाबजूद भी स्वयं को अधूरा सा क्यों अनुभव करते हैं?

उत्तरः यशोधर बाबू का भरा-पूरा परिवार होने के बावजूद भी स्वंय को अधूरा इसलिए अनुभव करते हैं क्योंकि यशोधर बाबू के बच्चे परिश्रमी और प्रतिभाशाली तो है किन्तु उनका व्यवहार आप जनक हैं। उनके मन में अपने पिता, रिश्तेदार, धर्म और समाज के प्रति नकारात्मक भाव वे अपने पिता को कदम-कदम पर उपेक्षा करतें हैं। उनकी लड़की तक उनका तिरस्कार करती हैं। उनकी पत्नी बच्चों के साथ मिल चुकी है।

(ख) यशोधरा बाबू किससे प्रभावित थे?

उत्तरः यशोधर बाबू किशन दा से प्रभावित थे। क्योंकि उन्होंने यशोधर बाबू को कठिन समय में सहारा दिया था। यशोधर भी उनकी हर बात अनुकरण करते थे।

(ग) ‘अतीत में दवे पाँव’ पाठ में उल्लेखित बोद्ध स्तूप का वर्णन कीजिए।

उत्तरः x

13. किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

(क) सिंधु घाटी की सभ्यता मूलतः खेतिहर और पशुपालक सभ्यता थी।’ – स्पष्ट कीजिए।

उत्तरः सिंधु घाटी सभ्यता के शहर मुअनजों दड़ो की व्यवस्था, साधन और नियोजन ही उसकी पहचान है। वहाँ की उन्न-भंडारण व्यवस्था, जल निकासी व्यवस्था अत्यंत विकसित और परिपक्क थी।

(ख) यशोधर बाबू को अपने पर गर्व और प्रसन्नता का बोध कब होता है?

उत्तरः यशोधर बाबू को अपने पर गर्व प्रसन्नता का बोध तब होता है जब वह किशनदा के मार्ग में चलते है और उस मार्ग में वे सफल और दूसरों से अपना गुणगान सुनते हैं।

(ग) मुअनजो-दड़ो की जल-निकासी व्यवस्था का वर्णन कीजिए।

उत्तरः मुअनजों दड़ो की जल निकासी के लिए नालियाँ व नाले बने हुए हैं जो पकी ईंटों से बने हैं। ये ईटों से ढँके हुए हैं। आज भी शहरों में जल निकासी के लिए ऐसी व्यवस्था की जाती है।

14. ‘सिंधु-सभ्यता की खूबी उसका सौन्दर्य-बोध है, जो राज-पोषित या धर्म- पषित न होकर समाज-पांपित था।’ – लेखक ने ऐसा क्यों कहा है?

उत्तरः सिंधु सभ्यता में कला को अधिक महत्व दिया गया हैं। यहाँ की वास्तुरुप अनुपम हैं। इसके अतिरिक्त धातु व पत्थर की मूतियाँ, मिट्टी के बर्तन, उन पर चित्रित छवियाँ, सुनिर्मित मुहरें, खिलौने, केश विन्यास, आभूषण, सुघड़ अक्षरों की लिपि आदि सिंधु सम्भल के कला पक्ष के सौन्दर्य को प्रदूर्षिथ करते हैं। इसीलिए एक महान पुरातत्व को ने कहा है, सिंधु सभ्यता की खूबी उसका सौन्दर्य बोध हैं।

समाज-पोषित सौंदर्य बोध: प्राचीन सभ्यता में मुख्यतः राजाओं के संरक्षण में कला का विकास होता था। कहीं-कहीं धार्मिक आस्था से भी कला का सर्जन होता था। लेकिन सिंधु सभय न तो राजपोषित हैं और न पौषित उसके पोषण में समाज के हर वर्ग का हाथ था, वह समाज के लोगों द्वारा समाज के लिए पोषित था।

अथवा

यशोधरा बाबू की पत्नी की चारित्रिक विशेषताओ पर प्रकाश डालिए।

उत्तरः यशोधर बाहू की पत्नी की चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

(क) कुमाऊँनी संस्कृति के पोषक: यशोधर बाबू की पत्नी का जन्म कुमाऊँ अँचल में हुआ। उनका पालन-पोषण व शादी से पूर्व का जीवन वहीं व्यतीत हुआ इसलिए उनमें भी यशोधर बाबू की तरह कुमाँउनी संस्कारों का होना निश्चित था। वह अपने मूल संस्कारों से किसी भी तरह आधुनिक नहीं थी।

(ख) मातृ सुलभ मजबूरी: हर माँ में स्वाभाविक गुण होना है कि वह सदैव अपने बच्चों के पक्ष में खड़ी होती है। यशोधर बाबू की पत्नी पर बच्चों का प्रभाव था इसलिए वह आधुनिक वेशभूषा तथा रहन-सहन को अपनाती थी। इसी कारण से वह माँडर्न बन गई थी। 

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