NIOS Class 12 Hindi Chapter 14 कुटज: आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी

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NIOS Class 12 Hindi Chapter 14 कुटज: आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी

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कुटज: आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी

Chapter: 14

HINDI

प्रथम पृष्ठ – पुस्तक – 1 बोध प्रश्न 14.1

दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

1. लेखक को शिवालिक की पहाडियों में क्या दिखाई देता है?

(क) शिव की जटाएँ।

(ख) महादेव की मूर्ति।

(ग) ठिगना शानदार वृक्ष।

(घ) अलकनंदा का स्रोत।

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उत्तर: (ग) ठिगना शानदार वृक्ष।

2. लेखक ने कटज के पेड़ को कहा है।

(क) बेहया।

(ख) अलमस्त।

(ग) द्वंद्वयुक्त।

(घ) अजीब।

उत्तर: (ख) अलमस्त।

3. निम्नलिखित में से लेखक के विचारानुसार सबसे सही वाक्य चुनिएः

(क) नाम में कुछ नहीं रखा, रूप ही सब कुछ है।

(ख) नाम रूप से अधिक महत्त्वपूर्ण है।

(ग) पदार्थ सामने हो तो उसका नाम याद रखना जरूरी नहीं।

(घ) रूम व्यक्ति सत्य है, नाम समाज सत्य।

उत्तर: (घ) रूम व्यक्ति सत्य है, नाम समाज सत्य।

4. लेखक के अनुसार कुटज का कौन-सा नाम पौरुष व्यजक नहीं है?

(क) गिरिगौरव।

(ख) अकुतोभय।

(ग) मदोद्धता।

(घ) अपराजित।

उत्तर: (ख) अकुतोभय।

5. ‘कुटज’ शब्द का अर्थ बताते हुए लेखक किस शब्द को इससे जुड़ा हुआ नहीं मानता?

(क) कूटना।

(ख) कुटिया।

(ग) घड़ा।

(घ) कुटकारिका।

उत्तर: (क) कूटना।

पाठगत प्रश्न 14.1

सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प चुनकर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

1. ‘शिवालिक’ का अर्थ किया गया है-

(क) शिव का त्रिनेत्र।

(ख) शिव की केशराशि।

(ग) शिव की दृढ़ता।

(घ) शिव की साधना।

उत्तर: (ख) शिव की केशराशि।

2. विपरीत परिस्थितियों में भी कुटज हरा-भरा बना रहता है, क्योंकि-

(क) वह सदैव हँसता रहता है।

(ख) उसके भीतर जिजीविषा है।

(ग) उस पर किसी बात का प्रभाव नहीं पड़ता।

(घ) उसकी जड़े बहुत गहरी हैं।

उत्तर: (ख) उसके भीतर जिजीविषा है।

3. कुटज सौभाग्यशाली है, क्योंकि-

(क) कालिदास ने इसे अपनाया।

(ख) संस्कृत साहित्य में इसका उल्लेख है।

(ग) यह गिरिकूट पर उत्पन्न होता है।

(घ) फूलों से खूब लदा हुआ है।

उत्तर: (क) कालिदास ने इसे अपनाया।

4. नाम को किसकी स्वीकृति प्राप्त होती है-

(क) लेखक की।

(ख) व्यक्ति की।

(ग) ईश्वर की।

(घ) समाज की।

उत्तर: (घ) समाज की।

पाठगत प्रश्न 14.2

सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प चुनकर दिए निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

1. रहीम कुटज की कद्र नहीं कर पाए, क्योंकि–

(क) उन्हें कुटज पसंद नहीं था।

(ख) कुटज के फूल सुंदर नहीं थे।

(ग) वह स्वयं समाज के उपेक्षित व्यवहार से दुखी थे।

(घ) उनके विचार से कुटज तो मात्र एक बौना-सा पेड़ है।

उत्तर: (ग) वह स्वयं समाज के उपेक्षित व्यवहार से दुखी थे।

2. “लेकिन दुनिया है कि मतलब से मतलब है, रस चूस लेती है, छिलका और गुठली फेंक देती है” वाक्य में दुनिया की कैसी मनोवृत्ति अभिव्यक्त हुई है-

(क) मूल्य पहचानने वाली।

(ख) उपेक्षा करने वाली।

(ग) सम्मान देने वाली।

(घ) स्वार्थ पूरा करने वाली।

उत्तर: (ग) सम्मान देने वाली।

3. ‘कट’ कहते हैं-

(क) घड़े और गमले को।

(ख) घड़े और पुत्र को।

(ग) घड़ और दासी को।

(घ) घड़े और घर को।

उत्तर: (घ) घड़े और घर को।

पाठगत प्रश्न 14.3

सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प चुनकर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

1. ‘जिजीविषा’ शब्द में है-

(क) अद्वितीय होने की इच्छा।

(ख) जीने की दुर्दम इच्छा।

(ग) विवशता का भाव।

(घ) पराजित होने का भाव।

उत्तर: (ख) जीने की दुर्दम इच्छा।

2. कुटज है-

(क) सहिष्णु।

(ख) नीरस।

(ग) कोयल।

(घ) उदास।

उत्तर: (क) सहिष्णु।

3. लेखक किस बात का खंडन करता है-

(क) जीना एक कला और तपस्या है।

(ख) याज्ञवल्क्य की बात को गलत मानने का।

(ग) अबोध, बुद्धिहीन।

(घ) त्याग, ममता, परमार्थ जैसे भावों को सत्य मानने का।

उत्तर: (ग) अबोध, बुद्धिहीन।

4. भाषा-विचार के संदर्भ में किसका उल्लेख है-

(क) सिलवाँ लेवी।

(ख) हेल्वेशियस।

(ग) हॉब्स।

(घ) याज्ञवल्क्य।

उत्तर: (घ) याज्ञवल्क्य।

पाठगत प्रश्न 14.4

लेखक के अनुसार निम्नलिखित में से गलत विकल्प का चुनाव कीजिए: 

1. निम्नलिखित में से मुहावरा नहीं है-

(क) जूते चाटना।

(ख) दाँत निपोरना।

(ग) बगलें झाँकना।

(घ) नीलम धारण करना।

उत्तर: (घ) नीलम धारण करना।

2. कुटज–

(क) मिथ्याचारों से युक्त है।

(ख) भोगों में लिप्त है।

(ग) अपने दिल पर सवारी करता है।

(घ) घड़े से पैदा हुआ है।

उत्तर: (घ) घड़े से पैदा हुआ है।

3. लेखक कुटज को देखकर रोमांचित होता है, क्योंकि वह-

(क) अवधूत है।

(ख) केवल जी रहा है।

(ग) विचलित नहीं होता।

(घ) विशाल हृदय है।

उत्तर: (ग) विचलित नहीं होता।

4. ‘कुटज अपने मन पर सवारी करता है, मन को अपने पर सवार नहीं होने देता’ कथन का संदेश है-

(क) आप भी अपने मन के अनुसार कार्य करें।

(ख) स्वार्थ सिद्धि के लिए जीवन में किसी भी प्रकार की चुनौती स्वीकार करें।

(ग) मन तो चंचल है पर उसका कहना कभी नहीं टालें।

(घ) स्वयं पर नियंत्रण रखें, मन को वश में करके उस पर जीत हासिल करें।

उत्तर: (घ) स्वयं पर नियंत्रण रखें, मन को वश में करके उस पर जीत हासिल करें।

पाठगत प्रश्न 14.5

1. ‘कुटज’ के अंतिम गद्यांश “दुख और सुख …………. उनसे मुक्त है” में जिस शैली का प्रयोग हुआ है, वह है-

(क) विश्लेषणात्मक।

(ख) विवेचनात्मक।

(ग) भावात्मक।

(घ) प्रतीकात्मक।

उत्तर: (ग) भावात्मक।

2. भाषा के प्रति लेखक का दृष्टिकोण है-

(क) समावेशी।

(ख) मनोरंजक।

(ग) शुद्धतावादी।

(घ) तत्समाग्रही।

उत्तर: (क) समावेशी।

14.9 पाठांत प्रश्न

1. कुटज वृक्ष की किन्हीं सात विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर: कुटज वृक्ष की किन्हीं सात विशेषताएं है–

(i) पौधों का आकारः कुटज एक मध्यम आकार का वृक्ष होता है, जिसकी ऊँचाई लगभग 2 से 5 मीटर तक होती है।

(ii) पत्तेः इसके पत्ते विपरीत, सरल और गहरे हरे रंग के होते हैं। ये लंबी और चिकनी धारियों वाले होते हैं।

(iii) फूल: कुटज के फूल सफेद रंग के होते हैं और ये गुच्छों में खिलते हैं। इनके फूलों में हल्की सुगंध होती है।

(iv) फल: इसके फल गोलाकार और हरे रंग के होते हैं, जो पकने पर भूरे या काले रंग के हो जाते हैं। ये फल बीजों से भरे होते हैं।

(v) औषधीय गुणः कुटज वृक्ष का उपयोग पारंपरिक चिकित्सा में किया जाता है। यह विशेष रूप से दस्त, आंतों के रोग और बुखार के उपचार में उपयोगी होता है।

(vi) जलबायुः यह वृक्ष मुख्यत उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगता है, और इसे सामान्यत सूखे और आर्द्र जलवायु में पाया जाता है।

(vii) मिट्टी की जरूरत: कुटज को विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है, लेकिन यह अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी को पसंद करता है।

2. प्रस्तुत निबंध द्वारा लेखक क्या संदेश देना चाहते हैं? लिखिए।

उत्तर: आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी कुटज निबंध के माध्यम से यह संदेश देना चाहते हैं कि वस्तुतः सुख और दुःख तो व्यक्ति के मन के अनुरूप होते हैं कोई भी सुख सबके लिए सुख का कारण नहीं हो सकता तथा कोई भी दुख सबको दुखी नहीं कर सकता। यदि किसी का मन कमजोर, अस्थिर या चंचल है, अपने वश में नहीं है तो बाह्य जीवन की परिस्थितियों से वह बहुत जल्दी प्रभावित हो जाता है, सुखी अथवा दुखी हो जाता है। निष्कर्ष रूप में वह अपने क्षुद्र स्वार्थ भावना को लेकर कभी किसी की खुशामद करता है तो कभी दांत निपोर कर किसी की जीहजूरी करता है। उसका आत्म सम्मान, आत्म गौरव, आत्मविश्वास सब समाप्त हो जाता है तथा वह अपनी कमजोरी को छिपाने के लिए झूठी शान दिखाता है। दूसरों को अपने समान स्तर पर लाने, हानि पहुंचाने के लिए कुटिल चालों के जाल बिछाता है।

3. विषम परिस्थितियों में पड़े व्यक्ति को कुटज किस प्रकार सहारा देता है?

उत्तर: कुटज एक ऐसा पौधा है जो प्रतिकूल परिस्थितियों में भी जीवन शक्ति और सहनशीलता प्रदान करता है। सामान्य परिस्थितियों में तो सभी जी लेते हैं पर विषम परिस्थितियों में जीना वास्तव में जीना है। यह पौधा कठिन वातावरण में भी हरा-भरा रहता है और इसके गुणों के कारण इसे साहस और धैर्य का प्रतीक माना जाता है। विषम परिस्थितियों में कुटज की तरह रहने का अर्थ है कठिनाइयों का सामना करते हुए भी स्थिर और संकल्पबद्ध रहना। कुटज का यह गुण दर्शाता है कि किसी भी विपत्ति के समय धैर्य और आत्मविश्वास बनाए रखना चाहिए। 

4. निम्नलिखित गद्यांशों की अपने शब्दों में सप्रसंग व्याख्या कीजिए:

(क) “याज्ञवल्क्य ने जो बात ___________ कृपण बना देता है।”

उत्तर: गद्यांश में याज्ञवल्क्य के विचारों का उल्लेख किया गया है, जिसमें उन्होंने किसी विशेष बात या विचार पर जोर दिया है, जो व्यक्ति के मानसिक और सामाजिक दृष्टिकोण को प्रभावित करता है। याज्ञवल्क्य ने इस कथन में यह बताया है कि जब व्यक्ति केवल धन के पीछे भागता है और अपने आंतरिक गुणों या आत्मसंतुष्टि की अनदेखी करता है, तो वह असल में एक कृपण (जुनूनी, संकुचित) व्यक्ति बन जाता है। व्यक्ति का सच्चा समृद्धि और संतोष केवल भौतिक संपत्ति में नहीं, बल्कि आत्मा और ज्ञान में होता है।

(ख) “जो समझता है कि वह अभिमान ___________नहीं होना चाहिए।”

उत्तर: इस वाक्य में यह समझाया गया है कि जो व्यक्ति यह सोचता है कि वह सर्वश्रेष्ठ है या उसे किसी से श्रेष्ठ समझता है, वह अभिमान से ग्रस्त होता है। अभिमान व्यक्ति की असली शक्ति और अच्छाई को ढक देता है, और यह यह संदेश देता है कि किसी को भी अपनी काबिलियत पर गर्व नहीं करना चाहिए। विनम्रता और आत्मनिवेदन ही सच्चे व्यक्ति की पहचान है।

(ग) जीना चाहते हो __________ उल्लास खींच ली।

उत्तर: इस वाक्य में जीवन के जीने की इच्छाओं और उत्साह के बारे में बात की जा रही है। यह जीवन के प्रति उत्साह और उल्लास को प्रेरित करता है, और यह सुझाव देता है कि जब हमें अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की प्रेरणा मिलती है, तो वह जीवन के प्रति हमारी आत्मविश्वास और उत्साह को और बढ़ा देती है।

(घ) दुनिया में त्याग नहीं है ___________ गलत ढंग से सोचना है।

उत्तर: यह कथन इस बात पर बल देता है कि अगर कोई यह मानता है कि संसार में त्याग या निःस्वार्थ कार्य नहीं होते, तो वह एक गलत धारणा है। सच यह है कि असली त्याग या बलिदान हमेशा किसी न किसी रूप में मौजूद होते हैं। यदि हम इसे नहीं समझ पाते, तो यह हमारी सोच का विकृति है।

(ङ) दुख और सुख तो मन के विकल्प हैं __________ जाल बिछाता है।

उत्तर: इस वाक्य का मतलब है कि दुख और सुख केवल हमारे मन की स्थिति और सोच पर निर्भर करते हैं। जब हम अपने मन को अधिक नकारात्मक सोच से भरते हैं, तो दुख का अनुभव करते हैं। इसी तरह, सकारात्मक सोच और दृष्टिकोण से सुख की प्राप्ति होती है। मन के ये विकल्प व्यक्ति को भ्रमित करते हैं और कभी उसे सुख में, कभी दुख में डालते हैं, जैसे एक जाल में फंसा हुआ महसूस करना।

5. नाम के निर्धारण में समाज की क्या भूमिका है?

उत्तर: नाम का निर्धारण समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। समाज की सांस्कृतिक, धार्मिक, और पारंपरिक मान्यताएँ नामकरण प्रक्रिया को प्रभावित करती हैं। एक बच्चे का नामकरण उसके परिवार की परंपराओं और समाज के रीति-रिवाजों के अनुसार होता है। इसके अलावा, नाम का निर्धारण अक्सर सामाजिक मान्यताओं, रीति-रिवाजों और परंपराओं के अनुसार किया जाता है। इस प्रकार, समाज नाम के निर्धारण में एक निर्णायक भूमिका निभाता है और यह व्यक्ति की सामाजिक पहचान का आधार होता है।

6. प्रस्तुत निबंध से पाँच अंग्रेजी के दस संस्कृत के तथा दस अरबी फारसी के शब्द छाँटकर लिखिए।

उत्तर: प्रस्तुत निबंध से पाँच अंग्रेजी के दस संस्कृत के तथा दस अरबी फारसी के शब्द है–

अंग्रेजी शब्द संस्कृत शब्द अरबी फारसी शब्द
समाजआत्मज्ञानमोहब्बत
परंपराकर्तव्यइन्सानियत
संस्कृतित्यागदुनिया
नाममोहइल्म
पहचानमायातालीम
अहंकारआदाब
ज्ञानख़ुशी
विनम्रतासुख
उत्साहदर्द
शांतितकलीफ़

7. हजारीप्रसाद द्विवेदी के भाषा-संबंधी दृष्टिकोण पर टिप्पणी लिखिए।

उत्तर: हजारीप्रसाद द्विवेदी का भाषा-संबंधी दृष्टिकोण व्यापक और विविधतापूर्ण था। उन्होंने भाषा को केवल एक संचार माध्यम के रूप में नहीं देखा, बल्कि उसे संस्कृति, साहित्य, और समाज की अभिव्यक्ति का महत्वपूर्ण साधन माना। उनका मानना था कि भाषा आम लोगों के लिए सुलभ होनी चाहिए, न कि केवल अभिजात वर्ग तक सीमित होनी चाहिए। द्विवेदी ने रोजमर्रा की भाषा के इस्तेमाल की वकालत की, उनका तर्क था कि आम लोगों से जुड़ने और परिचितता और साझा अनुभव की भावना पैदा करने के लिए यह आवश्यक है। उन्होंने तर्क दिया कि यह शैली कृत्रिम थी और रोजमर्रा की जिंदगी की वास्तविकताओं से अलग थी। इसके बजाय, उन्होंने भाषा के प्रति अधिक स्वाभाविक और सहज दृष्टिकोण का समर्थन किया, जो लेखकों को खुद को स्वतंत्र और प्रामाणिक रूप से व्यक्त करने की अनुमति देगा। कुल मिलाकर द्विवेदी जी का भाषा-संबंधी दृष्टिकोण हिंदी साहित्य में सरलता, सुगमता और प्रामाणिकता के महत्व पर जोर देता है। उनके दृष्टिकोण का हिंदी भाषा और साहित्य के विकास पर अमिट प्रभाव पड़ा है और उनकी विरासत आज भी लेखकों और विद्वानों को प्रेरित करती है।

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