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NIOS Class 12 Hindi Chapter 2 सगुण भक्तिकाव्य: तुलसीदास, सूरदास और मीराँबाई
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सगुण भक्तिकाव्य: तुलसीदास, सूरदास और मीराँबाई
Chapter: 2
HINDI
प्रथम पृष्ठ – पुस्तक – 1 बोध प्रश्न 2.1 |
सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प चुनकर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
1. ‘कृपा की रीति’ किस विकल्प से प्रकट हो रही है-
(क) नीरज नयन नेह जल बाढ़े।
(ख) खेलत खुनिस न कबहुँ देखी।
(ग) हारेहुँ खेल जितावहिं मोही।
(घ) लागत मोहि नीक परिनामू।
उत्तर: (ग) हारेहुँ खेल जितावहिं मोही।
2. भरत सबसे अधिक दोषी मानते हैं-
(क) भाग्य को।
(ख) गुरु वशिष्ठ को।
(ग) कैकेयी को।
(घ) दशरथ को।
उत्तर: (क) कैकेयी को।
पाठगत प्रश्न 2.1 |
सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प चुनकर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
1. भरत ने अपने अनुकूल पाया-
(क) कैकेयी और राम को।
(ख) गुरु वशिष्ठ और राम को।
(ग) गुरु वशिष्ठ और कैकेयी को।
(घ) अयोध्यावासियों और राम को।
उत्तर: (क) कैकेयी और राम को।
2. किसके नेत्र नीरज रूपी कहे गए है-
(क) राम के।
(ख) वशिष्ठ के।
(ग) कैकेयी के।
(घ) भरत के।
उत्तर: (ग) कैकेयी के।
3. भारत ने राम के समक्ष मुँह क्यों नहीं खोला-
(क) प्रेम और संकोचवश।
(ख) क्रोध और नाराजगीवश।
(ग) प्रेम और अपराधबोधवश।
(घ) प्रेम और अपमानवश।
उत्तर: (क) प्रेम और संकोचवश।
पाठगत प्रश्न 2.2 |
सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प चुनकर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
1. भरत के अनुसार कौन-सी विशेषता राम के स्वभाव की है?
(क) वे अपराधी पर क्रोध नहीं करते हैं।
(ख) खेलते समय जीते हुए को भी हरा देते हैं।
(ग) वे भरत का दिल दुखाते हैं।
(घ) वे लक्ष्मण से अधिक प्रेम करते हैं।
उत्तर: (क) वे अपराधी पर क्रोध नहीं करते हैं।
2. भारत को किसका दुलार प्राप्त हुआ-
(क) दुर्भाग्य का।
(ख) विधाता का।
(ग) राम का।
(घ) वशिष्ठ का।
उत्तर: (ग) राम का।
3. पठित काव्यांश की विशेषता नहीं है-
(क) ब्रजभाषा।
(ख) अर्थगांभीर्य।
(ग) उदाहरण का उपयोग।
(घ) आत्मग्लानि।
उत्तर: (घ) आत्मग्लानि।
पाठगत प्रश्न 2.3 |
1. ‘नीरज नयन नेह जल बाढ़े’ कथन में कौन-से अलंकार हैं?
(क) उपमा और अनुप्रास।
(ख) उत्प्रेक्षा और अनुप्रास।
(ग) रूपक और अनुप्रास।
(घ) अनुप्रास और अनुप्रास।
उत्तर: (ग) रूपक और अनुप्रास।
2. ‘रामचरितमानस’ में सबसे अधिक किस छंद का प्रयोग किया गया है?
(क) सवैया।
(ख) कवित्त।
(ग) चौपाई।
(घ) घनाक्षरी।
उत्तर: (ग) चौपाई।
बोध प्रश्न 2.2 |
सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प चुनकर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
1. प्रस्तुत पद में कौन-सा रस है-
(क) वात्सल्य।
(ख) श्रृंगार।
(ग) वीर।
(घ) भक्ति।
उत्तर: (क) वात्सल्य।
2. भौरों के समूह से किसकी तुलना की गई है-
(क) कपोल।
(ख) मुख।
(ग) केश।
(घ) लोचन।
उत्तर: (ग) केश।
पाठगत प्रश्न 2.4 |
सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प चुनकर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
1. “लट लटकनि मनु मत्त मधुप गन मादक मधुहिं पिए” में कौन-से अलंकार हैं-
(क) रूपक और उत्प्रेक्षा।
(ख) अनुप्रास और उत्प्रेक्षा।
(ग) अनुप्रास और रूपक।
(घ) उपमा और रूपक।
उत्तर: (ख) अनुप्रास और उत्प्रेक्षा।
2. प्रस्तुत पद की भाषा है-
(क) ब्रज।
(ख) अवधी।
(ग) भोजपुरी।
(घ) मैथिली।
उत्तर: (क) ब्रज।
3. प्रस्तुत पद की विशेषता नहीं है-
(क) चित्रात्मकता।
(ख) गतिशीलता।
(ग) श्रृंगारिकता।
(घ) स्वाभाविकता।
उत्तर: (ग) श्रृंगारिकता।
पाठगत प्रश्न 2.5 |
सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प चुनकर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
1. प्रस्तुत पद किसे संबोधित हैं-
(क) राणा को।
(ख) माँ को।
(ग) स्वयं को।
(घ) सखी को।
उत्तर: (घ) सखी को।
2. प्रस्तुत पद में किसे मोल लेने की बात कही गई है-
(क) कृष्ण को।
(ख) जीवन को।
(ग) दर्शन को।
(घ) पूर्व जन्म को।
उत्तर: (क) कृष्ण को।
3. मीरा श्रीकृष्ण पर अपना तन और जीवन न्योछावर करती है, क्योंकि-
(क) वे सखी को चिढ़ाना चाहती हैं।
(ख) वे कृष्ण को वचन दे चुकी हैं।
(ग) उन्होंने कृष्ण को मोल ले लिया है।
(घ) उनका मन समाज से त्रस्त है।
उत्तर: (ग) उन्होंने कृष्ण को मोल ले लिया है।
4. मीरा श्रीकृष्ण से दर्शन देने के लिए कहती हैं, क्योंकि-
(क) अब जैसे कृष्ण चाहते हैं, वे वैसे ही रहती हैं।
(ख) अब वे कृष्ण को मोल ले चुकी हैं।
(ग) वे मंदिर में उनके दर्शन नहीं कर पातीं।
(घ) कृष्ण ने पिछले जन्म में उन्हें दर्शन देने का वचन दिया था।
उत्तर: (घ) कृष्ण ने पिछले जन्म में उन्हें दर्शन देने का वचन दिया था।
5. प्रस्तुत पद की एक विशेषता नहीं है-
(क) दृढ़ता।
(ख) मुहावरों का प्रयोग।
(ग) प्रेम को छिपाना।
(घ) माधुर्य भाव।
उत्तर: (ग) प्रेम को छिपाना।
पाठगत प्रश्न 2.6 |
1. मीराँ की काव्य रचना किस संप्रदाय से जुड़ी हुई थी-
(क) ज्ञानमार्गी साधना।
(ख) सूफ़ी काव्यधारा।
(ग) वल्लभाचार्य का पुष्टि मार्ग।
(घ) उपर्युक्त में किसी से नहीं।
उत्तर: (ग) वल्लभाचार्य का पुष्टि मार्ग।
2. मीराँ की भाषा में अभाव है –
(क) चित्रात्मकता का।
(ख) नाद सौंदर्य का।
(ग) क्लिष्टता का।
(घ) बिंब का।
उत्तर: (ग) क्लिष्टता का।
2.15 पाठांत प्रश्न |
1. ‘बिधि न सकेउ सहि मोर दुलारा – भरत द्वारा यह कहने का क्या कारण है?
उत्तर: ‘बिधि न सकेउ सहि मोर दुलारा भरत द्वारा यह कहने यह कारण है की भरत ने बचपन से ही राम का साथ कभी नहीं छोड़ा। अब इतनी दीर्घ अवधि के लिए उनका वियोग वह कैसे सह सकता है।
2. “राम और भरत का प्रेम अद्वितीय है-” पद के आधार पर उदाहरण देकर सिद्ध किजिए।
उत्तर: राम और भरत का प्रेम भारतीय साहित्य और संस्कृति में अद्वितीय और आदर्श माना गया है। यह प्रेम केवल भाइयों के बीच का नहीं है, बल्कि इसमें धर्म, कर्तव्य और समर्पण का भी अद्वितीय सम्मिलन है। जिनके लिए जो प्रिय है, वही उनके लिए मित्र है। भरत के लिए राम प्राणप्रिय हैं, और वही उनके स्वामी हैं। भरत के मन में राम के प्रति जो श्रद्धा और समर्पण है, वह भी अद्वितीय है। वे अयोध्या का राज्य संभालने से इंकार कर देते हैं और राम की चरण पादुका को सिंहासन पर रखकर राज्य का संचालन करते हैं।
3. माँ के प्रति भरत का आक्रोश क्यों था स्पष्ट कीजिए?
उत्तर: माँ के प्रति भरत का आक्रोश इसलिए था क्योंकि कैकेयी ने राजा दशरथ से राम के लिए वनवास और भरत के लिए राज्याभिषेक का वरदान माँगा था। भरत के लिए यह बात अकल्पनीय थी। राजगद्दी पर तो बड़े भाई का अधिकार होता है, किंतु यहाँ उन्हें वनवास दे दिया गया। इसी कारण से वह अपनी माता कैकेयी से नाराज़ थे।
4. पठित पद के आधार पर तुलसी के काव्य-सौदर्य की दो विशेषताएँ सोदाहरण लिखिए।
उत्तर: तुलसी के काव्य-सौदर्य की दो विशेषताएँ यह है कि–
(i) उनकी भाषा बड़ी विनम्र शैली में दिखाई देती है।
(ii) तुलसीदास जी ने अलंकारो के सटीक प्रयोग से इसकी भाषा को और भी सुंदर व संगीतमय बना दिया है।
5. निम्नलिखित पंक्तियों में निहित प्रमुख अलंकरी का उल्लेख कीजिए:
(क) नीरज तयन नेह जल बाढ़े।
उत्तर: भरत कहते हैं कि मैंने प्रेम और संकोच के कारण उनके सामने कभी मुख नहीं खोला। शिष्टाचार की परंपरा रही है कि बड़ों के सामने उद्धत्तता (उपहासपूर्ण व्यवहा) का व्यवहार नहीं किया जाता। बड़ों के सामने मुख खोलना उनका अनादर है। जो भरत ने कभी नहीं किया। वे तो बस राम का दर्शन ही करते रहे, किंतु दर्शनों से भी आज तक तृप्त नहीं हुए। उनकी आँख सदा राम के प्रेम की प्यासी ही बनी रहीं।
(ख) मातु मंदि मैं साधु सुचाली। उर अस आनत कोटि कुचाली।।
फरइ कि कोदव बालि सुसाली। मुकुता प्रसव कि संबुक काली।।
उत्तर: भरत कहते हैं यह सोचना कि माँ बुरी है और मैं सदाचारी और सज्जन हूँ, ठीक नहीं है। ऐसा भाव मन में आना करोड़ों दुराचारों जैसा है। ‘कोटि कुचाली’ पर ध्यान दीजिए। माँ को बुरा मानने का असद् विचार वस्तुतः करोड़ों असद् विचारों जैसा बुरा है। कैकेयी ने राम को वनवास दिलाया था, भरत के पास इसके दो कारण है पहला है कैकेयी के स्वभाव की विशेषता। भरत उदाहरण देकर पूछ रहे है- भला कोदो के पौधे से शालिधान की बालें कैसे आएँगी। इसे दूसरी कहावत से भी कह सकते है- बबूल के पेड़ पर आम कैसे लगेंगे। अर्थ यह भी है कि जब माँ में ही दोष है तो मैं निर्दोष कैसे हो सकता हूँ।
6. निम्नलिखित काव्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए:
(क) पुलकि सरीर सभाँ भए ठाढ़े। नीरज नयन नेह जल बाढ़े।
कहब मोर मुनिनाथ निबाहा। एहि तें अधिक कहौं मैं काहा।।
उत्तर: राम ने कभी भी भरत का दिल नहीं दुखाया। अतः आज भी उन्हें विश्वास है कि राम उनका मन नहीं तोड़ेंगे और उनके आग्रह पर वापस अयोध्या लौट चलेंगे।
किसी पर कृपा करने की राम की रीति भी भरत को ज्ञात है। उन्होंने उस रीति पर मनन किया है और पाया है कि वे तो हारे हुए को भी जिता देते हैं।
भरत कहते हैं कि मैंने प्रेम और संकोच के कारण उनके सामने कभी मुख नहीं खोला। शिष्टाचार की परंपरा रही है कि बड़ों के सामने उद्दंडता पूर्ण व्यवहार नहीं किया जाता। बड़ों के सामने मुख खोलना उनका अनादर है, जो भरत ने कभी नहीं किया। वे तो बस राम का दर्शन ही करते रहे, किंतु दर्शनों से भी आज तक तृप्त नहीं हुए।
7. कृष्ण के बाल रूप का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर: कृष्ण के बाल रूप का वर्णन अत्यंत आकर्षक और मनमोहक होता है। उनके बालों का रंग काले-नीले होते हुए भी चमकदार था, जो उनके चेहरे की सुंदरता को और बढ़ाता था। उनकी आँखों में एक विशेष चमक और माया थी, जो हर किसी को अपनी ओर खींच लेती थी। कृष्ण का रूप हर दृष्टि से दिव्य था, उनके गालों पर प्यारी सी हंसी और नन्हे से होंठों पर हमेशा एक मुस्कान रहती थी। श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं में माखन चोरी की लीला सुप्रसिध्द है। वैसे तो कान्हा ग्वालिनों के घरो में जाकर माखन चुराकर खाया करते थे। लेकिन एक रोज़ उन्होंने अपने ही घर में माखन चोरी की और यशोदा मैया ने उन्हें देख लिया। “तब कृष्ण से यशोदा मैया पूछी, ‘लाला, तुमने माखन खाया?’ तो वो नजरें चुराते हुए सिर हिलाकर नहीं बोले, उनकी छोटी-छोटी शरारतों से युक्त हंसी और आकर्षक रूप ने उन्हें न केवल गोकुलवासियों का प्रिय बना दिया, बल्कि देवताओं और भक्तों के दिलों में भी एक खास स्थान बना लिया। उनकी नटखट और प्यारी हरकतें बालकों के रूप में भगवान के दर्शन को और भी आनंदमय बना देती थीं।
8. सूरदास के पठित पद के काव्य-सौंदर्य पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर: जब सूरदास श्रीकृष्ण के बाल रूप का विवात्मक चित्रण प्रारंभ करते है तो एक से बढ़कर एक मनोहर चित्र अंकित होते जाते हैं। इस पद में कवि ने श्रीकृष्ण का गतिशील बिंबात्मक चित्र खींचा है। सूरदास ने कृष्ण की आँखों, गालों, मुखमुद्राओं और उनके रूप-रंग को बारीकी से चित्रित किया है। उनकी कविता में बालकृष्ण की आकर्षक मुस्कान, नयन-नक्श और लीलाएँ विशेष रूप से मनमोहक रूप में प्रस्तुत की गई हैं। सूरदास ने कृष्ण के श्रृंगारी रूप को अत्यंत सुंदरता से व्यक्त किया है, जहाँ वे बालकृष्ण की नटखटता और चपलता को भी सजीव रूप में उकेरते हैं। सूरदास का यह काव्य सौंदर्य कृष्ण के प्रति उनकी अनन्य भक्ति और शरणागति का प्रतीक है।
9. मीरा के पद में कृष्ण प्रेम की अभिव्यक्ति किस रूप में हुई है प्रस्तुत कीजिए?
उत्तर: मीरा श्री कृष्ण की अनन्य भक्त थीं। वे कृष्णभक्ति के विभिन्न संप्रदायों में से किसी में भी विधिवत दीक्षित नहीं थीं। उनकी भक्ति ‘माधुर्य भाव’ की भक्ति कही जाती है। माधुर्य भाव की भक्ति के अंतर्गत भक्त और भगवान में प्रेम का संबंध होता है। मीराँवाई श्री कृष्ण के प्रेम में डूबी हुई थी। कृष्ण को वे प्रायः गिरधर, साँवरा या प्रीतम के नाम से पुकारती थी।
मीराँ के समूचे काव्य में इस प्रेम की अभिव्यक्ति अनेक प्रकार से से हुई है। प्रेम में मिलन और विरह, दोनों ही पक्षों की सुंदर अभिव्यक्ति उनके काव्य में मिलती है। यह अभिव्यक्ति अत्यंत सीधे-सादे और सरल रूप में हुई है; जिसमें प्रेम, विश्वास और समर्पण की भावना विद्यमान है।
10. मीराँ के पद में उनके व्यक्तित्व की किन्हीं दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर: मीरा के पद में उनके व्यक्तित्व की किन्हीं दो विशेषताओं है–
(i) मीराबाई कृष्णभक्ति के विभिन्न संप्रदायों में से किसी में भी विधिवत दीक्षित नहीं थीं।
(ii) मीराबाई की कृष्णभक्ति में प्रेम, विश्वास और समर्पण की भावना विद्यमान है।
11. मीराँ की भाषा की दो विशेषताएँ उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर: मीराँ की भाषा की दो विशेषताएँ है–
(i) ब्रजभाषा: जिसमें राजस्थानी तथा गुजराती के शब्दों की प्रचुरता भी है।
उदाहरण: पंक्तियाँ मैं कैसे लिखूँ लिख्यो री न जाए।’
(ii) खड़ी बोली: खड़ी बोली के पूर्व रूप को भी मीरों के काव्य में यत्र-तत्र देखा जा सकता है।
उदाहरण: ऐसे वर का क्या करू जो जनमे और मर जाय।
12. निम्नलिखित पद की संप्रसंग व्याख्या कीजिए-
माई री म्हां लियां गोविन्दाँ मोल।। टेक।।
थे कह्यां छाणे म्हां कां चोड्डे, लिया बजन्ता ढोल।
थे कह्यां मुंहोघो म्हां कह्यां सस्तो, लिया री तराजां तोल।
तण वारां म्हां जीवण वांरा, वांरां अमोलक मोल।
मीराँ कूं प्रभु दरसण दीज्याँ, पूरब जणम को कोल।।
उत्तर: इस पद में मीराबाई अपने भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अपनी अद्वितीय प्रेम और समर्पण का अभिव्यक्ति करती हैं। वे कह रही थी कि वे गोविंद की मोहनी लीलाओं में लिप्त रहती हैं। उन्होंने ढोल को छोड़ दिया है, जिसका अर्थ यह है कि उनकी मानसिक दृष्टि अब केवल भगवान की ओर है। उन्होंने सस्तो और तराजां की बात कही है, जो यहां भावनात्मक दृष्टि से समझी जा सकती हैं – वे भगवान के दर्शन के लिए अपने जीवन को समर्पित कर देंगी, जिसे वे अनमोल मानती हैं। अंत में, उन्होंने भगवान से प्रार्थना की है कि वे उन्हें अपने दर्शन दें, ताकि उनका जन्म फिर भी व्यर्थ न जाए। वे अपनी भक्ति में पूर्ण रूप से समर्पित हैं और भगवान से साक्षात्कार की लालसा रखती हैं।