NIOS Class 12 Hindi Chapter 1 निर्गुण भक्तिकाव्य: कबीर और जायसी

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NIOS Class 12 Hindi Chapter 1 निर्गुण भक्तिकाव्य: कबीर और जायसी

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निर्गुण भक्तिकाव्य: कबीर और जायसी

Chapter: 1

HINDI

प्रथम पृष्ठ – पुस्तक – 1 पाठगत प्रश्न 1.1

सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प चुनकर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

1. कबीर किस काल के कवि थे?

(क) आदिकाल।

(ख) भक्तिकाल।

(ग) रीतिकाल।

(घ) आधुनिक काल।

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उत्तर: (ख) भक्तिकाल।

2. कबीर की भक्ति किस प्रकार की थी?

(क) सख्य।

(ख) श्रृंगार।

(ग) दास्य।

(घ) करुण।

उत्तर: (ग) दास्य।

3. कबीर की भाषा को क्या नाम दिया गया?

(क) सधुक्कड़ी।

(ख) अवधी।

(ग) ब्रजभाषा।

(घ) हिंदी।

उत्तर: (क) सधुक्कड़ी।

पाठगत प्रश्न 1.2

सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प चुनकर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

1. राजा रत्नसेन ने देवताओं की स्तुति किसकी प्राप्ति के लिए की-

(क) धन।

(ख) राज्य।

(ग) पद्मावती।

(घ) शिव।

उत्तर: (ग) पद्मावती।

2. ‘प‌द्मावत’ के काव्यांश में सर्वाधिक महत्व दिया गया है-

(क) मिट्टी को।

(ख) बैकुण्ठ को।

(ग) प्रेम को।

(घ) अमरता को।

उत्तर: (ग) प्रेम को।

3. ‘प‌द्मावत’ महाकाव्य की भाषा है-

(क) ब्रजभाषा।

(ख) अवधी।

(ग) भोजपुरी।

(घ) सधुक्कड़ी।

उत्तर: (ख) अवधी।

1.9 पाठांत प्रश्न

1. ‘लोचन अनंत उघाड़िया, अनँत दिखावणहार’ से ‘कबीर’ का क्या आशय है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: ‘लोचन अनंत उघाड़िया, अनँत दिखावणहार’ से ‘कबीर’ का आशय यह है कि कबीर कहते है कि सतगुरु की महिमा का वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता, क्योंकि वह अनंत है, उसकी कोई सीमा नहीं है। गुरु ने मुझ पर असीम उपकार किया है। उन्होंने मुझे अज्ञान के अंधेरे से निकालकर ज्ञान का मार्ग दिखाया है। गुरु ने मेरे ज्ञान-चक्षु खोल दिए हैं और मुझे परमात्मा के सच्चे स्वरूप का दर्शन कराया है।

सामान्य रूप से हमारी आँखें एक सीमा के बाद नहीं देख पाती है, किंतु गुरु के सानिध्य में आने के बाद हमारी दृष्टि व्यापक हो जाती है। हम सही मार्ग पर चल पड़ते हैं। इसीलिए गुरु के उपकार असीम है, जो कि हमारे जीवन को संतुलित और व्यवस्थित बनाते है। 

2. ‘लाली मेरे लाल की’ में ‘लाली’ और ‘लाल’ से क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: कबीर ने इस दोहे में ईश्वर के प्रति अपनी अनुभूति की मार्मिक अभिव्यक्ति की तित है। वे कहते हैं कि यह सारी भक्ति, यह सारा संसार, यह सारा ज्ञानः मेरे ईश्वर का अर्थात् मेरे लाल का  है, जिसे मैं महसूस करता हूँ। मैं जिधर भी देखता हूँ। उधर मेरे लाल (ईश्वरीय) की अनुभूति का ही रूप दिखाई देता है। मुझे संसार के हर एक कण में, हर जीव में मेरे लाल की ही सत्ता अर्थात् रूप का प्रकाश दिखाई देता है। सभी प्राणियों में मुझे अपने ईश्वर के ही दर्शन होते हैं। स्वयं मुझमें भी हमेशा अनंत के प्रति प्रेम का वास दिखाई देता है।

3. कबीर की भाषा पर टिप्पणी कीजिए।

उत्तर: (i) कबीर में दास्य-भाव की भक्ति दिखाई देती है। वे ईश्वर को स्वामी मानते हैं।

(ii) प्रतीकात्मक पर सरल भाषा में भक्ति का संदेश दिया है। कबीर के विचार आत्मा में उतर जाते हैं।

(iii) कबीर को वाणी का डिक्टेटर माना गया है। उनकी भाषा में अनेक भाषाओं का मेल है। लोकभाषा का सौंदर्य और भावों की गहराई है। उनकी भाषा को ‘सधुक्कड़ी’ नाम दिया गया है।

(iv) कबीर के दोहों को ‘साखी’ भी कहा जाता है। ‘साखी’ छंद नहीं है। ‘साखी’ शब्द संस्कृत के ‘साक्षी’ का तद्भव रूप है। ‘साक्षी’ का अर्थ होता है- गवाह। साक्षी वह है जिसने स्वयं अपनी आँखों से सत्य को देखा हो। अतः साक्षी का अर्थ हुआ आँखों से देखे हुए का वर्णन। कबीर ने साखियों में वर्णित तथ्यों का स्वयं साक्षात्कार किया है। यह ज्ञान सुनी-सुनाई बातें या केवल पोथियों में उपलब्ध ज्ञान नहीं है।

(v) जिस प्रकार पहली साखी में ‘अनंत’ शब्द का सार्थक एवं सुंदर प्रयोग हुआ है, उसी प्रकार इस दूसरी साखी में भी ‘लाली’ शब्द का प्रयोग है।

4. आज के समय में प्रेम के महत्व पर एक टिप्पणी लिखिए।

उत्तर: आज की भागदौड़ भरी दुनिया में प्रेम का महत्व कम नहीं हुआ, बल्कि और भी बढ़ गया है प्रेम स्नेह से लेकर खुशी की ओर धीरे धीरे अग्रसर करता है। ये एक मज़बूत आकर्षण और निजी जुड़ाव की भावना है जो सब भूला देता है। प्रेम हमें अपने आसपास के लोगों से जुड़ने की शक्ति देता है और यह कठिन समय में सहारा देता है और एक बेहतर दुनिया बनाने में मदद करता है। इसके माध्यम से हम दूसरों की भावनाओं को समझ सकते हैं, और समर्थन दे सकते है। जिससे समाज में सौहार्द (सद्भावना) बढ़ता है। इसलिए, प्रेम का महत्व आज भी समाज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

5. माटी मोल न किछु लहै औ माटी सब मोल। 

दिस्टि जौं माटी-सौं करै माटी होइ अमोल।।

यहाँ कवि ने ‘माटी’ शब्द का प्रयोग किन-किन अर्थों में किया है?

उत्तर: यहाँ कवि ने ‘माटी’ शब्द का प्रयोग भौतिक अर्थ, धार्मिक अर्थ, चित्रकालात्मक अर्थ और आर्थिक अर्थो में किया है। सबसे पहले, भौतिक अर्थ में माटी को एक साधारण और सस्ती वस्तु के रूप में दर्शाया गया है, जिसे आमतौर पर कोई महत्व नहीं दिया जाता। इसके अलावा, धार्मिक अर्थ में माटी का आध्यात्मिक महत्व है, क्योंकि जीवन और मृत्यु का चक्र माटी से जुड़ा होता है—हम सभी माटी से उत्पन्न होते हैं और अंततः उसी में विलीन हो जाते हैं। चित्रकालात्मक अर्थ में, माटी को जीवन के सच्चे मूल्य और सादगी का प्रतीक माना गया है। अंत में, आर्थिक अर्थ में, माटी का मूल्य बाहरी रूप से कम नजर आता है, लेकिन यह असल में हर जीवन और सभ्यता का आधार है, इसलिए इसकी असली कीमत अमूल्य है।

6. ‘पद्मावत’ का काव्यांश हमें क्या प्रेरणा देता है?

उत्तर: ‘पद्मावत’ का काव्यांश हमें यह प्रेरणा देता है कि यदि मनुष्य सच्चे मन से सेवा करता है, तो देवता प्रसन्न हो जाते हैं। शिक्षार्थियो, इसीलिए हमारी संस्कृति में सेवा का इतना महत्व है। ‘प‌द्मावत’ की इन पंक्तियों में आप देखते हैं कि इस प्रकार की वाणी मंडप में झंकृत होने लगी। यह ध्वनि मंदिर में गूंजने लगी। दिव्य वाणी को सुनकर राजा रत्नसेन श्रद्धा एवं प्रेम से भर उठे और पूर्व दिशा के द्वार पर आकर बैठ गए। प्रेम के प्रति उनका विश्वास और दृढ़ हो उठा। उन्होंने अपने शरीर पर भस्म लगा ली और सोचा कि हमारा शरीर मिट्टी है और इसे अंत में मिट्टी में ही मिल जाना है। अतः मैं अपने शरीर पर भस्म लगाकर यह सिद्ध कर दूँ कि यह तो मिट्टी ही है और अंत में मिट्टी में ही मिलकर इसे मिट्टी ही हो जाना है।

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