NIOS Class 12 Hindi Chapter 6 नयी कविता: अज्ञेय और भवानीप्रसाद मिश्र

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NIOS Class 12 Hindi Chapter 6 नयी कविता: अज्ञेय और भवानीप्रसाद मिश्र

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नयी कविता: अज्ञेय और भवानीप्रसाद मिश्र

Chapter: 6

HINDI

प्रथम पृष्ठ – पुस्तक – 1 बोध प्रश्न 6.1

सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प चुनकर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

1. कविता में किसके लिए ‘माँ’ शब्द का प्रयोग किया गया है?

(क) नदी।

(ख) धारा।

(ग) जल।

(घ) द्वीप।

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उत्तर: (क) नदी।

2. नदी के लिए किस अन्य शब्द का प्रयोग किया गया है?

(क) स्रोतस्विनी।

(ख) अंतरीप।

(ग) प्लावन।

(घ) संस्कार।

उत्तर: (क) स्रोतस्विनी।

3. ‘पितर’ किसे कहा गया है?

(क) किनारे को।

(ख) भूखंड को।

(ग) समर्पण को।

(घ) श्राप को।

उत्तर: (ख) भूखंड को।

पाठगत प्रश्न 6.1

उपयुक्त विकल्प चुनकर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

1. द्वीप नदी को माँ के रूप में देखते हैं, क्योंकि-

(क) द्वीप चारों तरफ से पानी से घिरा होता है।

(ख) नदी से ही द्वीप निर्मित होते हैं।

(ग) नदी माँ का प्रतीक है।

(घ) द्वीप नदियों में बने होते हैं।

उत्तर: (ख) नदी से ही द्वीप निर्मित होते हैं।

2. संस्कृति का एक गुण है-

(क) उत्पन्न।

(ख) स्थिरता।

(ग) स्वतंत्रता।

(घ) आकार देना।

उत्तर: (घ) आकार देना।

पाठगत प्रश्न 6.2

सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प चुनकर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

1. ‘पैर उखड़ना’ से तात्पर्य है-

(क) नष्ट हो जाना।

(ख) डूब जाना।

(ग) टिक न पाना।

(घ) ऊपर उठना।

उत्तर: (ग) टिक न पाना।

2. रेत होने का आशय है-

(क) नदी का बहना।

(ख) समर्पण करना।

(ग) पहचान मिटना।

(घ) मटमैला होना।

उत्तर: (ग) पहचान मिटना।

पाठगत प्रश्न 6.3

सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प चुनकर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

1. नदी के क्रोड़ में बैठे होने की बात किसके लिए कही गयी है-

(क) शिशु के।

(ख) माँ के।

(ग) द्वीप के।

(घ) पिता के।

उत्तर: (ग) द्वीप के।

2. द्वीप को निर्मित करने का भार होता है-

(क) नदी पर।

(ख) भू-खंड पर।

(ग) समाज पर।

(घ) संस्कृति पर।

उत्तर: (क) नदी पर।

पाठगत प्रश्न 6.4

सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प चुनकर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

1. द्वीप को दाय मिलता है-

(क) आह्लाद से।

(ख) माँजने से।

(ग) संस्कार से।

(घ) भूखंड से।

उत्तर: (घ) भूखंड से।

2. कविता में प्रतीक के रूप में नहीं है-

(क) व्यक्ति।

(ख) भूखंड।

(ग) नदी।

(घ) द्वीप।

उत्तर: (क) व्यक्ति।

पाठगत प्रश्न 6.5

1. जंगल में क्या चुप नहीं है-

(क) पलाश।

(ख) कास।

(ग) हवा।

(घ) घास।

उत्तर: (ग) हवा।

2. कविता के इस अंश में जंगल में किसका चित्र नहीं दिखाई देता-

(क) मकड़ियों के जाल का।

(ख) होली के त्योहार का।

(ग) मच्छरों के दश का।

(घ) हिरन-दल का।

उत्तर: (ख) होली के त्योहार का।

पाठगत प्रश्न 6.6

1. वन में कौन निश्चिंत है-

(क) मुर्गे।

(ख) तीतर।

(ग) गोंड।

(घ) झोंपड़ी।

उत्तर: (ग) गोंड।

2. कविता में निम्न में से कौन-सी विशेषता गोंड जनजातियों की नहीं है-

(क) उन्होंने मुर्गे और तीतर पाले हुए हैं।

(ख) झोपड़ी पर फूस डाल रखा है।

(ग) वे तगड़े और काले हैं।

(घ) वे अनमने रहते हैं।

उत्तर: (घ) वे अनमने रहते हैं।

पाठगत प्रश्न 6.7

1. कवि सतपुड़ा के जंगल को मौत का घर नहीं मानते, क्योंकि-

(क) यह बहुत घना है।

(ख) यह निर्जन है।

(ग) यह शांत है।

(घ) यह सभी का पालन करता है।

उत्तर: (घ) यह सभी का पालन करता है।

2. जंगल ने किसे अपने गोद में पाला है-

(क) नदी।

(ख) झरना।

(ग) नाले।

(घ) नदी, झरने और नाले को।

उत्तर: (घ) नदी, झरने और नाले को।

6.11 पाठांत प्रश्न

1. ‘नदी के द्वीप’ में ‘नदी’ किसका प्रतीक है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: कविता “नदी के द्वीप” में नदी को व्यक्ति, समाज और परंपरा के आपसी संबंधों को सर्वथा नवीन दृष्टि से देखा गया है। यहाँ द्वीप, नदी और भूखंड को क्रमशः व्यक्ति परंपरा और समाज के प्रतीक के रूप में चुना गया है। अज्ञेय जी ने नदी के माध्यम से समाज को चित्रित किया है, जो हमेशा गतिशील, बदलते हुए और विकसित होता रहता है। नदी में निरंतर प्रवाह है, जो समय के साथ समाज के रूप में निरंतर बदलती रहती है। समाज के विभिन्न घटक, व्यक्ति, और उनके रिश्ते भी इसी प्रवाह में हैं, जैसे द्वीप (व्यक्ति) नदी के प्रवाह में रहते हुए अपना अस्तित्व बनाए रखता है।

नदी, जैसे समाज की धाराएँ होती हैं, व्यक्ति (द्वीप) को आकार देती हैं और समाज में उसके स्थान की पहचान करती हैं। नदी के प्रति द्वीप (व्यक्ति) का समर्पण और आशा है कि वह निरंतर बहते हुए उसे निखारती रहेगी और उसे एक नया रूप देती रहेगी। नदी के प्रलयकारी स्थिति में भी उसका विश्वास है कि वह स्वच्छ रूप में अपने अस्तित्व को बनाए रखेगा, यही भाव व्यक्ति और समाज के रिश्ते को दर्शाता है।

2. द्वीप को आकार देने में नदी की क्या भूमिका है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: द्वीप को आकार देने में नदी की भूमिका यह है की द्वीप नहीं चाहता है कि नदी उसकी उपेक्षा करती हुई आगे बह जाए। द्वीप के कोण, उसके मध्य का उठान, उसके मार्ग, बालू के किनारे सभी गोलाकार आकृति नदी की ही देन है। जब नदी बहती है, तो वह अपने साथ मिट्टी, पत्थर और अन्य तत्वों को लेकर चलती जाति है, लेकिन द्वीप स्थिर रहता है, जो संघर्ष और स्थायित्व का प्रतीक है। नदी के दोनों किनारों के बीच द्वीप विभाजन भी करता है, लेकिन साथ ही जोड़ता भी है, जो समाज में विभाजन और एकता दोनों के महत्व को दर्शाता है। नदी और द्वीप का संबंध अस्थायित्व और अनंतता का प्रतीक है, जो जीवन के अस्थाई और अनंत पहलुओं को दर्शाता है। 

3. नदी के प्रलयंकारी रूप का वर्णन क्यों किया गया है? उल्लेख कीजिए।

उत्तर: नदी के प्रलयंकारी रूप का वर्णन इसलिए किया गया है ताकि यह समझाया जा सके कि नदी के शांत और विनाशकारी दोनों रूप होते हैं। जब बहुत अधिक वर्षा होती है, तो इसमें से कुछ वाष्पित (गैस में बदलना) हो जाती हैं तब नदी प्रलयकारी रूप लेती है, तो वह अपने मार्ग में आने वाली सभी चीजों को नष्ट कर देती है, जिससे भारी तबाही मचती है। इसके परिणामस्वरूप अचानक पानी में अतिप्रवाह बाढ़ के रूप में सामने आती है।

4. ‘नदी के द्वीप’ कविता का मूल संदेश क्या है? वर्णन कीजिए।

उत्तर: ‘नदी के द्वीप’ कविता का मूल संदेश यह है कि जीवन में हमें अनेक चुनौतियों और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जिस प्रकार द्वीप का निर्माण नदी द्वारा होता है, उसी प्रकार जीवन सरिता से हमारा निर्माण होता है। द्वीप का प्रतीक हमारे भीतर की वह शक्ति और आत्मनिर्भरता है जो हमें समस्याओं से लड़ने और उन्हें पार करने का हौसला देती है क्योंकि जो कुछ हम है हमारा कुछ अस्तित्व या आकार है, वह सब नदी द्वारा प्रदत्त है। इन कठिनाइयों के बीच हमें अपने संकल्प और धैर्य से एक नया मार्ग ढूंढ़ना होता है।

5. द्वीप के माध्यम से आप व्यक्तित्व निर्माण के लिए कौन-सी शिक्षा प्राप्त करते हैं? उदाहरण द्वारा प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर: द्वीप के माध्यम से हमें यह शिक्षा मिलती है कि किसी भी व्यक्ति को आत्मनिर्भर, साहसी और धैर्यवान होना चाहिए। जैसे एक द्वीप अपने चारों ओर पानी से घिरा होता है, ठीक वैसे ही हमें भी अपनी समस्याओं के बीच आत्मनिर्भर रहकर उनका समाधान ढूंढ़ना चाहिए। 

उदाहरण:

जब हम किसी कठिन परिस्थिति का सामना करते हैं, तब हमें हार नहीं माननी चाहिए, क्योंकि अगर हम पहले ही हर मान लेंगे तो परिस्थिति का समाधान कैसे करेंगे बल्कि धैर्य और साहस के साथ उस परिस्थिति का समाधान निकालना चाहिए।

6. नदी, द्वीप और भूखंड की तुलना किन चीजों से की है? पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: कविता में नदी- माँ और संस्कृति तथा द्वीप – पुत्र और व्यक्तित्व के प्रतीक हैं, वैसे ही भूखंड – पिता और समाज के प्रतीक हैं। नदी की तुलना जीवन की उन धारा से की गई है, जो निरंतर बहती रहती है और अपने मार्ग में आने वाली सभी रुकावटों को पार करती है। जिस प्रकार माँ अपने गर्भ में शिशु को धारण करके उसे रूप-आकार देकर जन्म देती है उसी प्रकार नदी भी द्वीप को रूप और आकार देकर उसे गढ़ती है। द्वीप की तुलना आत्मनिर्भरता और धैर्य से की गई है, जो कठिनाइयों के बीच में भी स्थिर और सुरक्षित रहता है। भूखंड की तुलना स्थिरता और मजबूत आधार से की गई है, जो किसी भी परिस्थिति में अपनी जगह पर अडिग रहता है। 

7. निम्नलिखित को लगभग 50 शब्दों में स्पष्ट कीजिए:

(क) नदी और माँ।

उत्तर: कवि संकेत करता है कि नदी रूप-आकार देकर द्वीप को निर्मित ही नहीं करती है बल्कि उसे उस विस्तृत भू-खंड से भी मिलाने का भी काम करती है जिसका वह अटूट अंश है। इस कविता में जैसे नदी- माँ और संस्कृति तथा द्वीप पुत्र और व्यक्तित्व के प्रतीक हैं, जैसे माँ शिशु को जन्म देकर उसका पालन-पोषण करती है और उसका परिचय पिता से कराती है उसी प्रकार नदी भी द्वीप का निर्माण करती है और उसे विस्तृत भूखंड से मिलाती है। जैसे पुत्र से पिता का संबंध जैविक होता है उसे पालने का प्राथमिक दायित्व माँ का ही होता है। वैसे ही द्वीप भले ही विस्तृत भू-खंड का अंश होता है लेकिन उसे द्वीप के रूप में निर्मित करने का भार नदी ही उठाती है।

(ख) भूखंड और पिता।

उत्तर: भूखंड-पिता और समाज के प्रतीक हैं। कविता में कवि ने माँ, पिता और पुत्र का एक पारिवारिक रूपक लिया है। द्वीप भले ही विस्तृत भू-खंड का अंश होता है लेकिन उसे द्वीप के रूप में निर्मित करने का भार नदी ही उठाती है। भूखंड द्वीप का निर्माण नहीं कर सकते हैं। इस कविता में नदी, द्वीप और भू-खंड के प्रतीक का एक और स्तर है। इसे भी यहाँ समझ लेना आवश्यक है। जिस प्रकार नदी, द्वीप का निर्माण करती है और उसे विस्तृत भू-खंड से जोड़ती है, उसी प्रकार संस्कृति, व्यक्तित्व का निर्माण करती है और उसे समाज से जोड़ती है।

(ग) द्वीप और पुत्र।

उत्तर: कविता में द्वीप और पुत्र का रूपक पारिवारिक संबंधों को दर्शाता है। इसमें नदी द्वीप तथा भूखंड को प्रतीक के रूप में चुना गया है। इसमें व्यक्ति, समाज और परंपरा के आपसी संबंधों को सर्वथा नवीन दृष्टि से देखा गया है। यहाँ द्वीप, नदी और भूखंड को क्रमशः व्यक्ति परंपरा और समाज के प्रतीक के रूप में चुना गया है। द्वीप नदी के प्रवाह से उत्पन्न होता है, और पुत्र का जन्म माता-पिता के संबंध से होता है। द्वीप को नदी की धारा से जीवन मिलता है, ठीक उसी प्रकार जैसे पुत्र को माता-पिता से संस्कार और पोषण मिलता है। द्वीप नदी का ऋणी है, जैसे पुत्र माता-पिता का। द्वीप का अस्तित्व नदी पर निर्भर है, और इसी प्रकार, पुत्र का अस्तित्व अपने माता-पिता पर निर्भर करता है। यह कविता द्वीप और पुत्र के माध्यम से यह भावनात्मक और पारिवारिक संबंधों को दर्शाता है।

8. आपके व्यक्तित्व को निखारने में जिन लोगों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया उसके बारे में लिखिए।

उत्तर: छात्र–छात्री खुद करे।

9. ‘नदी के द्वीप’ कविता के शिल्प-सौदर्य का वर्णन कीजिए।

उत्तर: अज्ञेय जी ने प्रतीकात्मक शैली में यह प्रतिपादित किया है कि व्यक्ति की स्थिति समाज में एक द्वीप की भांति है। व्यष्टि चेतना को सुरक्षित रखते हुए भी वह उस समष्टि का अंग है। नदी समष्टि चेतना का प्रतीक है जबकि ‘द्वीप’ व्यष्टि चेतना का। 

10. निम्नलिखित पंक्तियों के आशय स्पष्ट कीजिए:

(क) सब गोलाइयाँ उसकी गढ़ी है।

उत्तर: “सब गोलाइयाँ उसकी गढ़ी है” का आशय यह है कि द्वीप की जो गोलाइयाँ, आकार और रूप हैं, वे सभी नदी के प्रवाह से उत्पन्न होते हैं। नदी, अपनी धारा के साथ बहते हुए मिट्टी और रेत के कणों को जमा करती है और धीरे-धीरे उनके द्वारा द्वीप का आकार और रूप निर्मित करती है। द्वीप का रूप और आकार नदी की धारा की दिशा और गति के कारण बनता है। द्वीप जानता है कि उसका अस्तित्व नदी के बिना अधूरा है, और उसकी गोलाइयाँ, उभार, और रेत के किनारे उसी नदी के प्रभाव से बने हैं। ट्वीप इस सत्य से इनकार नहीं कर सकता कि उसके रूप और आकार में कोण, गलियाँ, उभार, रेतीले किनारे और गोलाइयों का जो सौंदर्य है; वह सब प्रवाहमान नदी ने ही गढे हैं। नदी से अपना अस्तित्व प्राप्त करने वाले द्वीप, नदी को अपनी माँ के रूप में देखता हैं।

(ख) क्योंकि बहना रेता होना है।

उत्तर: इन पंक्तियों में कवि ने मानवीय अस्तित्व, आत्म-संरक्षण और आत्मसम्मान का प्रतीकात्मक वर्णन किया है। “हम द्वीप हैं, धारा नहीं” कहकर कवि यह बताना चाहता है कि मनुष्य को अपने मूल्यों, सिद्धांतों और पहचान में स्थिर और अडिग रहना चाहिए। द्वीप यहाँ स्थिरता, आत्मनिर्भरता और आत्मसम्मान का प्रतीक है, जबकि धारा परिवर्तनीयता और बिना किसी स्थायित्व के बहने का। कवि यह संदेश देते हैं कि दूसरों की इच्छाओं और परिस्थितियों के अनुरूप बहने (समर्पण करने) से हमारी अपनी पहचान समाप्त हो सकती है, जो “रेत होना” के रूप में व्यक्त की गई है, क्योंकि बहने का अर्थ अपने अस्तित्व को मिटा देना है। यह संदेश स्थिरता, दृढ़ता और आत्मसम्मान को बनाए रखने का आह्वान करता है।

11. सतपुड़ा के घने जंगल में हवा क्यों नहीं प्रवेश कर पाती? 

उत्तर: सतपुड़ा एक संज्ञा के रूप में प्रकट होता है, क्योंकि वहाँ के पेड़ और पौधे बहुत घने होते हैं। घने पेड़-पौधों की शाखाएँ और पत्तियाँ मिलकर एक प्राकृतिक अवरोध बनाती हैं, जंगली झाड़ियाँ कुछ छोटी हैं और कुछ ऊँची। इसके अतिरिक्त, सतपुड़ा के जंगलों में पेड़ों की ऊँचाई और उनकी घनी पत्तियाँ हवा को रोकने में योगदान करती हैं, इसलिए जंगल के भीतर हवा का प्रवेश नहीं कर पाती है।

12. कवि ने इन जंगलों में किन-किन कष्टों को सहन करने की बात कही है?

उत्तर: कवि जंगल के कठोर और डरावने पक्ष की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करते हैं। किसी भी सिक्के के दो पहलू होते हैं। हरियाली की गोद में भी कुछ डरावने पल बैठे हुए है। इस मनोहारी जंगल में मकड़ियों की विविध प्रजातियाँ भी है। जंगल में इन मकड़ियों के रहस्यमय जाले उनके स्वाभाविक घर हैं। मच्छरों की भिनभिनाहट और दंश इस जंगल का यथार्थ है। इस जंगल के शांत वातावरण में कवि तेज हवा, पानी, आँधी से भी हमारा परिचय कराते हैं। कविता में जंगल का रूप और रंग विविध मौसम में अपने अलग-अलग तेवर में प्रकट हुआ है। इसलिए मिश्रजी का यह जंगल एक रस नहीं है। कवि ने जंगलों में इन कष्टों को सहन किया है। 

13. कवि ने सतपुड़ा के जंगलों में ऐसा क्या देखा कि वे उसे मौत का घर नहीं मानते?

उत्तर: कवि ने सतपुड़ा के जंगलों में जीवन और प्रकृति का अद्भुत संगम देखा, जिसने उनके मन में इन जंगलों को “मौत का घर” मानने की धारणा को समाप्त कर दिया। कवि ने सतपुड़ा के जंगलों में यह देखा कि जंगलों की ओट में पहाड़ों की समानान्तर कई पंक्तियाँ फैली हुई हैं। इसीलिए सतपुड़ा के इस जंगल को “सात-सात पहाड़ वाले” कहा गया है। यानी वनस्पति के साथ पहाड़ का यह संगम इसे दुर्लभ बनाता है। पहाड़ों की इन श्रृंखलाओं में सिंह की उपस्थिति हमारे मन में कौतूहल और भय दोनों पैदा करती है। शेर की आवाज वनैले वातावरण को और स्वाभाविक बना देती है। सतपुड़ा के जंगलों में प्रकृति और मनुष्य का सामंजस्य, कठोरता और सौंदर्य का अद्वितीय मेल, इसे कवि के लिए “मौत का घर” नहीं, बल्कि जीवन और आनंद का स्रोत बनाता है।

14. ‘सतपुड़ा के घने जंगल’ कविता का मूल कथ्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: भवानीप्रसाद मिश्र की ‘सतपुड़ा के घने जंगल’ एक मार्मिक कविता है। मध्य भारत का यह जंगल अपनी जैविक सम्पदा के लिए बहुत प्रसिद्ध है। कवि ने जीव-जगत के बीच मनुष्य की उपस्थिति को बहुत तटस्थता से उकेरा है। उन्होंने बहुत खामोशी से हमें यह समझाया है कि पृथ्वी सभी जीवों का आश्रय है। मनुष्य इन सभी जीवों में से एक प्राणी है। पूरी कविता की बनावट वाचिक शैली में है। अपनी ऊपरी बुनावट से यह कविता एक शिशु गीत का आनंद देती है। मानवीकरण अलंकार भी है। जैसे झाड़ ऊँचे और नीचे चुप खड़े हैं आँख मींचे। ‘सतपुड़ा के घने जंगल’ एक ऐसी कविता है जिसमें पेड़, लता, हवा, पत्तों, नदी, निर्झर को मनुष्य के रूप में चित्रित किया गया है। साहित्य की भाषा में इसे ‘मानवीकरण अलंकार’ कहते हैं। अर्थात् जो मानव नहीं है, जड़ है कल्पना शक्ति से उसे मानव जैसा व्यवहार करते दिखाना। मिश्रजी ने सतपुड़ा के जंगल के प्राकृतिक सौंदर्य को दर्शाने के लिए इन जंगलों का मानवीकरण किया है।

15. ‘सतपुड़ा के घने जंगल’ कविता के सौंदर्य के तीन बिंदुओं को अपने शब्दों में रेखांकित कीजिए।

उत्तर: सतपुड़ा के घने जंगल’ कविता के सौंदर्य के तीन बिंदु निम्नलिखित हैं:

(i) प्रकृति का अद्भुत चित्रण: कवि ने जंगल के गहन सौंदर्य को “नींद में डूबे हुए अनमने जंगल” कहकर व्यक्त किया है। यह दर्शाता है कि जंगल अपने आप में एक शांत, रहस्यमय और ध्यानमग्न संसार है।

(ii) पेड़ों की मौन उपस्थिति: कवि ने झाड़ियों और ऊँचे-नीचे पेड़ों को “आँख मीचे चुप खड़े” के रूप में चित्रित किया है, जो जंगल के सौंदर्य में स्थिरता और गंभीरता को दर्शाता है।

(iii) प्रकृति की स्थिरता और जीवंतता: कवि ने प्रकृति के विभिन्न तत्वों की स्थिरता के माध्यम से शांत सौंदर्य को व्यक्त किया है। यह कई जीव-जंतुओं का निवास स्थान है और पर्यावरण संतुलन बनाए रखता है। इसके बिना जीवन की कल्पना असंभव है।

16. ‘वन हैं तो हम हैं-’ इस विषय पर तर्क सहित अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर: ‘वन है तो हम हैं-’ का मतलब यह है कि हमारा अस्तित्व वनों पर निर्भर है। अगर वन नहीं होंगे तो मानव जीवन संकट में पड़ जाएगा। वनों से हमें कई आवश्यक वस्तुएं मिलती हैं जैसे लकड़ी, औषधियां, फल, और गोंद। इसके अलावा, वनों से हमें मानसिक और शारीरिक शांति मिलती है। पेड़, नदी, पहाड़ और हवा हमारे साथी हैं। हम इन पर निर्भर हैं। इनके बिना मानव जाति का अस्तित्व ही खतरे में है। इन्हीं से हमारा पर्यावरण बनता है। पर्यावरण प्रकृति का अमूल्य उपहार है। अपनी संतुलित जिंदगी के लिए मनुष्य पेड़-पौधों, जल, वायु, पर्वत, जीव जंतुओं आदि पर निर्भर है, फिर भी ज्यादा-से-ज्यादा सुविधाओं के भोग के लालच में वह जंगल का अंधाधुंध दोहन करता आ रहा है। इसका दुष्परिणाम प्राकृतिक आपदाएँ जैसे बाढ़, भूकंप, सूखा आदि हैं।

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