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NCERT Class 7 Hindi Chapter 5 नहीं होना बीमार
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नहीं होना बीमार
Chapter: 5
मल्हार
पाठ से |
मेरी समझ से
(क) नीचे दिए गए प्रश्नों का सही उत्तर कौन-सा है? उसके सामने तारा (☆) बनाइए। कुछ प्रश्नों के एक से अधिक उत्तर भी हो सकते हैं।
1. बच्चे के विद्यालय न जाने का मुख्य कारण क्या था?
(i) उसका विद्यालय जाने का मन नहीं था।
(ii) उसका साबूदाने की खीर खाने का मन था।
(iii) उसने गृहकार्य नहीं किया था।
(iv) उसे बुखार हो गया था।
उत्तर: (ii) उसका साबूदाने की खीर खाने का मन था।
2. कहानी के अंत में बच्चे ने कहा, “इसके बाद स्कूल से छुट्टी मारने के लिए मैंने बीमारी का बहाना कभी नहीं बनाया।” बच्चे ने यह निर्णय लिया क्योंकि-
(i) घर में रहने के बजाय विद्यालय जाना अधिक रोचक है।
(ii) बीमारी का बहाना बनाने से साबूदाने की खीर नहीं मिलती।
(iii) झूठ बोलने से झूठ के खुलने का डर हमेशा बना रहता
(iv) इस बहाने के कारण उसे दिनभर अकेले और भूखे रहना पड़ा।
उत्तर: (iii) झूठ बोलने से झूठ के खुलने का डर हमेशा बना रहता।
(iv) इस बहाने के कारण उसे दिनभर अकेले और भूखे रहना पड़ा।
3. “लेटे-लेटे पीठ दुखने लगी” इस बात से बच्चे के बारे में क्या पता चलता है?
(i) उसे बिस्तर पर लेटे रहने के कारण ऊब हो गई थी।
(ii) उसे अपनी बीमारी की कोई चिंता नहीं रह गई थी।
(iii) वह बिस्तर पर आराम करने का आनंद ले रहा था।
(iv) बीमारी के कारण उसकी पीठ में दर्द हो रहा था।
उत्तर: (i) उसे बिस्तर पर लेटे रहने के कारण ऊब हो गई थी।
4. “क्या ठाठ हैं बीमारों के भी!” बच्चे के मन में यह बात आई क्योंकि-
(i) बीमार व्यक्ति को बहुत आराम करने को मिलता है।
(ii) बीमार व्यक्ति को अच्छे खाने का आनंद मिलता है।
(iii) बीमार व्यक्ति को विद्यालय नहीं जाना पड़ता है।
(iv) बीमार व्यक्ति अस्पताल में शांति से लेटा रहता है।
उत्तर: (i) बीमार व्यक्ति को बहुत आराम करने को मिलता है।
(ii) बीमार व्यक्ति को अच्छे खाने का आनंद मिलता है।
(iii) बीमार व्यक्ति को विद्यालय नहीं जाना पड़ता है।
(ख) हो सकता है कि आपके समूह के साथियों ने अलग-अलग उत्तर चुने हों। अपने मित्रों के साथ चर्चा कीजिए कि आपने ये उत्तर ही क्यों चुनें?
उत्तर: 1. (ii) इस उत्तर का चयन इसलिए किया गया क्योंकि कहानी में यह स्पष्ट रूप से बताया गया है कि बच्चे ने अस्पताल में सुधाकर काका को साबूदाने की खीर खाते हुए देखा था। उसने सोचा कि बीमार होने पर उसे भी साबूदाने की खीर खाने को मिलेगी। इसलिए उसने बीमारी का बहाना बनाया।
2. (iii) और (iv) चुने गए क्योंकि झूठ बोलने से झूठ के खुलने का डर हमेशा बना रहता है। इसके अलावा, बच्चे ने अनुभव किया कि बीमारी का बहाना बनाने से उसे दिनभर अकेले और भूखे रहना पड़ा। पाठ में यह स्पष्ट रूप से बताया गया है कि बच्चे को स्कूल न जाकर घर में खाली और भूखे रहने का पछतावा हुआ।
3. (i) चुना गया क्योंकि बच्चे ने बिस्तर पर लेटे-लेटे ऊब होने का अनुभव किया। वह बाहर जाकर गली की चहल-पहल देखना चाहता था लेकिन बीमारी का नाटक करते हुए उसे बिस्तर पर ही रहना पड़ा।
4. (i), (ii), और (iii) चुने गए क्योंकि बच्चे को लगता था कि बीमार व्यक्ति को आराम करने, अच्छे खाने का आनंद लेने और स्कूल न जाने का फायदा मिलता है। जब उसने अस्पताल में सुधाकर काका को आराम करते और साबूदाने की खीर का आनंद लेते देखा, तो उसे बीमार होने में ठाठ का अनुभव हुआ।
मिलकर करें मिलान |
पाठ में से चुनकर कुछ शब्द नीचे दिए गए हैं। अपने समूह में इन पर चर्चा कीजिए और इन्हें इनके सही अर्थों से मिलाइए। इसके लिए आप शब्दकोश, इंटरनेट या अपने परिजनों और शिक्षकों की सहायता ले सकते हैं।
शब्द | अर्थ |
1. साबूदाना | 1.किसी विशिष्ट कार्य के लिए घेरकर बनाया हुआ स्थान। |
2. वार्ड | 2.एक प्रकार का जाड़े का ओदना जिसका कपड़ा दोहरा होता है और जिसमें रुई भरी होती है। |
3. नर्स | 3. शरीर का तापमान (जैसे बुखार) नापने का एक छोटा यंत्र। |
4. रजाई | 4. कई तरह की जड़ी-बूटियों और औषधियों को उबालकर उनके रस से बना पेय होता है। इसे सर्दी-जुकाम, खाँसी-बुखार और पाचन से जुड़ी समस्याओं में लाभदायक माना जाता है। |
5. थर्मामीटर | 5. रेशमी, ऊनी, मलमल जैसे नाजुक कपड़ों को पानी, साबुन और डिटर्जेंट के बिना मशीनों से साफ करने वाला व्यक्ति। |
6. काढ़ा | 6. उत्तर प्रदेश के आगरा शहर में स्थित 17वीं सदी में निर्मित एक विश्व-प्रसिद्ध स्मारक जो सफेद संगमरमर से बना है। |
7. ड्राइक्लीनर | 7. एक दाल जिसे तुअर भी कहते हैं। |
8. ताजमहल | 8. सागू नामक वृक्ष के तने का गूदा, सागूदाना, यह पहले आटे के रूप में होता है और फिर कूटकर दानों के रूप में सुखा लिया जाता है। |
9. अरहर | 9. वह व्यक्ति जो रोगियों, घायलों या वृद्धों आदि की देखभाल करे। |
उत्तर:
शब्द | अर्थ |
1. साबूदाना | 8. सागू नामक वृक्ष के तने का गूदा, सागूदाना, यह पहले आटे के रूप में होता है और फिर कूटकर दानों के रूप में सुखा लिया जाता है। |
2. वार्ड | 1.किसी विशिष्ट कार्य के लिए घेरकर बनाया हुआ स्थान। |
3. नर्स | 9. वह व्यक्ति जो रोगियों, घायलों या वृद्धों आदि की देखभाल करे। |
4. रजाई | 2.एक प्रकार का जाड़े का ओदना जिसका कपड़ा दोहरा होता है और जिसमें रुई भरी होती है। |
5. थर्मामीटर | 3. शरीर का तापमान (जैसे बुखार) नापने का एक छोटा यंत्र। |
6. काढ़ा | 4. कई तरह की जड़ी-बूटियों और औषधियों को उबालकर उनके रस से बना पेय होता है। इसे सर्दी-जुकाम, खाँसी-बुखार और पाचन से जुड़ी समस्याओं में लाभदायक माना जाता है। |
7. ड्राइक्लीनर | 5. रेशमी, ऊनी, मलमल जैसे नाजुक कपड़ों को पानी, साबुन और डिटर्जेंट के बिना मशीनों से साफ करने वाला व्यक्ति। |
8. ताजमहल | 6. उत्तर प्रदेश के आगरा शहर में स्थित 17वीं सदी में निर्मित एक विश्व-प्रसिद्ध स्मारक जो सफेद संगमरमर से बना है। |
9. अरहर | 7. एक दाल जिसे तुअर भी कहते हैं। |
पंक्तियों पर चर्चा |
पाठ में से चुनकर कुछ पंक्तियाँ नीचे दी गई हैं। इन्हें ध्यान से पढ़िए और इन पर विचार कीजिए। आपको इनका क्या अर्थ समझ में आया? अपने विचार अपने समूह में साझा कीजिए और लिखिए-
(क) “मैंने सोचा बीमार पड़ने के लिए आज का दिन बिलकुल ठीक रहेगा। चलो बीमार पड़ जाते हैं।”
उत्तर: इस पंक्ति से पता चलता है कि बच्चा जानबूझकर बीमारी का बहाना बना रहा है। वह वास्तव में बीमार नहीं है, लेकिन उसे स्कूल नहीं जाना और घर पर रहकर स्वादिष्ट खीर खाना है। इसलिए वह सोचता है कि आज बीमार बनने का ‘अभिनय’ करने का सही मौका है। यह पंक्ति बच्चों की मासूम शरारत, लालच और नटखट स्वभाव को दर्शाती है।
(ख) “देखो! उन्होंने एक बार भी आकर नहीं पूछा कि तू क्या खाएगा? पूछते तो मैं साबूदाने की खीर ही तो माँगता। कोई ताजमहल तो नहीं माँग लेता। लेकिन नहीं! भूखे रहो!! इससे सारे विकार निकल जाएँगे। विकार निकल जाएँ बस। चाहे इस चक्कर में तुम खुद शिकार हो जाओ।”
उत्तर: इस पंक्ति में बच्चा नाराज़ और दुखी है क्योंकि उसने बीमारी का बहाना तो खीर खाने के लिए बनाया था, लेकिन घरवालों ने उसे कुछ खाने को नहीं पूछा। वह यह कहना चाहता है कि उसने कोई बहुत बड़ी माँग नहीं की थी—सिर्फ खीर ही तो चाहता था, न कि कोई अनमोल चीज़ जैसे ताजमहल! उसकी बातों में गुस्सा, हताशा और व्यंग्य भी है। यह दिखाता है कि झूठ बोलने का अंजाम उसे पसंद नहीं आया और वह पछता रहा है।
सोच-विचार के लिए |
पाठ को एक बार फिर ध्यान से पढ़िए, पता लगाइए और लिखिए-
(क) अस्पताल में बच्चे को कौन-कौन सी चीजें अच्छी लगीं और क्यों?
उत्तर: अस्पताल में बच्चे को कई चीजें अच्छी लगीं। उसे वहाँ का शांत वातावरण, साफ-सुथरे बिस्तर, सफेद कपड़े पहने नर्सें और डॉक्टर, और सबसे ज़्यादा साबूदाने की खीर अच्छी लगी। उसे लगा जैसे वह किसी अच्छे होटल में है जहाँ आराम से लेटकर सबकी सेवा मिल रही है। उसे यह सब इसलिए अच्छा लगा क्योंकि वह घर पर स्कूल जाना, पढ़ाई करना और डाँट खाना नहीं चाहता था। अस्पताल का यह सारा ठाठ उसे आरामदायक और आनंददायक लगा।
(ख) कहानी के अंत में बच्चे को महसूस हुआ कि उसे स्कूल जाना चाहिए था। क्या आपको लगता है कि उसका निर्णय सही था? क्यों?
उत्तर: हाँ, बच्चे का यह निर्णय बिल्कुल सही था। उसने बीमार होने का नाटक यह सोचकर किया था कि वह ठाठ से बिस्तर पर लेटा रहेगा, सब लोग उसकी सेवा करेंगे और उसे स्वादिष्ट चीज़ें खाने को मिलेंगी। लेकिन जब उसने देखा कि नानाजी ने उसे दवा दी, खाना नहीं दिया और उसे आराम करने को कहा, तो उसे समझ में आया कि बीमार होने में कोई मज़ा नहीं है। बिस्तर पर लेटे रहना, भूखे पेट दवा खाना और अकेले पड़े रहना उसे बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। तब उसे अहसास हुआ कि स्कूल जाना, वहाँ दोस्तों से मिलना और पढ़ाई करना ज़्यादा अच्छा है। इसलिए उसका यह निर्णय बिल्कुल सही था, क्योंकि उसने अपने अनुभव से यह सीखा कि झूठ बोलकर बीमारी का नाटक करना ठीक नहीं और शिक्षा का महत्व सबसे ऊपर है।
(ग) जब बच्चा बीमार पड़ने का बहाना बनाकर बिस्तर पर लेटा रहा तो उसके मन में कौन-कौन से भाव आ रहे थे?
(संकेत – मन में उत्पन्न होने वाले विकार या विचार को भाव कहते हैं, उदाहरण के लिए – क्रोध, दुख, भय, करुणा, प्रेम आदि।)
उत्तर: जब बच्चा बीमार होने का बहाना बनाकर बिस्तर पर लेटा रहा, तब उसके मन में कई तरह के भाव उत्पन्न हो रहे थे। शुरुआत में उसके मन में आनंद और उत्साह का भाव था, क्योंकि उसे लगा कि अब उसे स्कूल नहीं जाना पड़ेगा और वह आराम से बिस्तर पर लेटा रहेगा। उसे उम्मीद थी कि नानी उसे खीर खिलाएंगी और सब उसका ख्याल रखेंगे। लेकिन जब उसे दवा दी गई, खाना नहीं दिया गया और उसे आराम करने को कहा गया, तब उसके मन में दुख, पछतावा और अकेलेपन की भावना आने लगी। भूख लगने के बावजूद कुछ न मिलने से उसे गुस्सा और निराशा भी हुई। धीरे-धीरे उसे अपने झूठ पर शर्म आने लगी और भय भी हुआ कि अगर उसकी पोल खुल गई तो क्या होगा। अंत में वह सचमुच पछता गया और स्कूल न जाने का निर्णय गलत लगा।
(घ) कहानी में बच्चे ने सोचा था कि “ठाठ से साफ-सुथरे बिस्तर पर लेटे रहो और साबूदाने की खीर खाते रहो।” आपको क्या लगता है, असल में बीमार हो जाने और इस बच्चे की सोच में कौन-कौन सी समानताएँ और अंतर होंगे?
(संकेत – आप अपने अनुभवों के आधार पर इस प्रश्न पर विचार कर सकते हैं कि कहानी वाले बच्चे की कल्पना वास्तविकता से कितनी अलग है।)
उत्तर: बच्चे की सोच और असल बीमारी में बड़ा अंतर है। बच्चे ने सोचा था कि बीमार होने पर आराम मिलेगा, सब उसका ध्यान रखेंगे और वह स्वादिष्ट चीज़ें खा पाएगा। परंतु वास्तव में बीमार होने पर शरीर कमजोर हो जाता है, खाने की इच्छा नहीं होती, दवाइयाँ और इंजेक्शन सहने पड़ते हैं और मन उदास हो जाता है। हाँ, दोनों में कुछ समानताएँ भी हैं—जैसे बीमार व्यक्ति को सच में बिस्तर पर आराम मिलता है और लोग उसका ध्यान रखते हैं। लेकिन बच्चे की कल्पना में बीमारी केवल एक मस्ती का बहाना थी, जबकि वास्तविकता में यह कष्टदायक होती है।
(ङ) नानीजी और नानाजी ने बच्चे को बीमारी की दवा दी और उसे आराम करने को कहा। बच्चे को खाना नहीं दिया गया। क्या आपको लगता है कि उन्होंने सही किया? आपको ऐसा क्यों लगता है?
उत्तर: हाँ, नानीजी और नानाजी ने बिल्कुल सही किया। जब बच्चा बीमार होने का नाटक कर रहा था, तो उन्होंने उसे सच में बीमारों की तरह व्यवहार करके दिखाया—जैसे दवा देना और भोजन न देना। ऐसा उन्होंने इसलिए किया ताकि बच्चे को अपनी गलती का एहसास हो सके और वह समझे कि बीमार होने में कोई मज़ा नहीं होता। यह एक प्रकार की शिक्षाप्रद सीख थी, जिससे बच्चा स्वयं समझदार बन सके और आगे ऐसा झूठ न बोले।
अनुमान और कल्पना से |
(क) कहानी के अंत में बच्चा नानाजी और नानीजी को सब कुछ सच-सच बताने का निर्णय कर लेता तो कहानी में आगे क्या होता?
(संकेत – उसका दिन कैसे बदल जाता? उसकी सोच और अनुभव कैसे होते?)
उत्तर: अगर बच्चा अंत में नानाजी और नानीजी को सब कुछ सच-सच बता देता कि वह बीमार नहीं है, केवल स्कूल से बचने के लिए बहाना कर रहा था, तो शायद नानीजी पहले थोड़ी नाराज़ होतीं, लेकिन फिर उसकी ईमानदारी देखकर उसे माफ़ कर देतीं। नानाजी उसे समझाते कि झूठ बोलने से हमेशा परेशानी होती है। बच्चा खुद को हल्का और अच्छा महसूस करता, क्योंकि उसने सच्चाई बता दी होती। उसका दिन बदल जाता — वह आराम से खाना खा पाता, और अगले दिन उत्साह से स्कूल जाने की तैयारी करता। इस अनुभव से उसकी सोच बदल जाती और वह समझ जाता कि सच्चाई और मेहनत का रास्ता ही सही होता है।
(ख) कहानी में बच्चे की नानीजी के स्थान पर आप हैं। आप सारे नाटक को समझ गए हैं लेकिन चाहते हैं कि बच्चा सारी बात आपको स्वयं बता दे। अब आप क्या करेंगे?
(संकेत – इर त- इस सवाल में आपको नानीजी की जगह लेकर सोचना है और एक मनोरंजक बच्चा आपको स्वयं सारी बातें बता दे।)
उत्तर: अगर मैं नानीजी की जगह होती और मुझे बच्चे का नाटक समझ आ जाता, तो मैं गुस्सा नहीं करती, बल्कि धीरे-धीरे उसे उसकी गलती का अहसास कराती। मैं उसे प्यार से कहती, “बिमारी में तो कोई भी मीठा नहीं खाता, चलो अब कड़वी दवा लो।” फिर धीरे-धीरे उसके आराम को उबाऊ बना देती — न खेलने देती, न बातें करती और न ही उसकी पसंद की कोई चीज़ देती। इससे बच्चा खुद सोचने लगता कि उसने ठीक नहीं किया। जब वह सच मानकर मेरे पास आता, तो मैं उसे गले लगाकर समझाती कि सच्चाई बोलना कितना अच्छा होता है और झूठ से कभी सुख नहीं मिलता।
(ग) कहानी में बच्चे के स्थान पर आप हैं और घर में अकेले हैं। अब आप ऊबने से बचने के लिए क्या-क्या करेंगे?
उत्तर: अगर मैं बच्चे की जगह होती और घर में अकेली होती, तो ऊबने से बचने के लिए किताबें पढ़ती, ड्राइंग बनाती या अपने खिलौनों से खेलती। मैं अपनी नानी से कहानियाँ सुनती, कुछ नया सीखने की कोशिश करती जैसे कविता याद करना या गाना गाना। मैं अपने स्कूल की किताबों में कोई मज़ेदार अध्याय देखती और उसे पढ़कर मज़ा लेती। इस तरह समय भी अच्छा कटता और कुछ नया सीखने को भी मिलता।
(घ) कहानी के अंत में बच्चे को लगा कि उसे स्कूल जाना चाहिए था। कल्पना कीजिए, अगर वह स्कूल जाता तो उसका दिन कैसा होता? अगले दिन जब वह स्कूल गया होगा तो उसने क्या-क्या किया होगा?
उत्तर: अगर बच्चा उस दिन स्कूल चला जाता, तो उसका दिन बहुत अच्छा गुजरता। वह अपने दोस्तों से मिलता, खेलता, क्लास में मज़ेदार बातें सुनता और नए-नए चीज़ें सीखता। उसे किसी कड़वी दवा की ज़रूरत नहीं पड़ती, न ही भूखा रहना पड़ता। स्कूल में वह अपने अध्यापक की तारीफ़ें सुनता और मन लगाकर पढ़ाई करता। अगले दिन जब वह सचमुच स्कूल गया होगा, तो शायद उसने अपने दोस्तों को सारी बात मज़ाक में बताई होगी और ठान लिया होगा कि अब वह कभी झूठ बोलकर बीमारी का बहाना नहीं बनाएगा।
(ङ) कहानी में नानाजी और नानीजी ने बच्चे की बीमारी ठीक करने के लिए उसे दवाई दी और खाने के लिए कुछ नहीं दिया। अगर आप नानीजी या नानाजी की जगह होते तो क्या-क्या करते?
उत्तर: अगर मैं नानीजी या नानाजी की जगह होती, तो मैं भी यही करती — ताकि बच्चे को समझ आ जाए कि बीमार होने का मतलब कोई मज़ा नहीं है। लेकिन साथ ही मैं उसकी देखभाल करती, प्यार से समझाती कि झूठ बोलने से क्या नुकसान हो सकता है। मैं उससे धीरे-धीरे बात करके सच्चाई खुद उससे कहलवाती, ताकि वह खुद स्वीकार करे कि उसने गलती की है। मैं उसे माफ़ करती लेकिन अगली बार सतर्क रहने की सलाह देती। इस तरह मैं उसे एक अच्छी सीख देती बिना डराए या डाँटे।
कहानी की रचना |
“अस्पताल का माहौल मुझे बहुत ही अच्छा लग रहा था। बड़ी-बड़ी खिड़कियों के पास हरे-हरे पेड़ झूम रहे थे। न ट्रैफिक का शोरगुल, न धूल, न मच्छर-मक्खी…। सिर्फ लोगों के धीरे-धीरे बातचीत करने की धीमी-धीमी गुनगुन। बाकी एकदम शांति।”
इन पंक्तियों पर ध्यान दीजिए। इन पंक्तियों में ऐसा लग रहा है मानो हमारी आँखों के सामने अस्पताल का चित्र-सा बन गया हो। लेखन में इसे ‘चित्रात्मक भाषा’ कहते हैं। अनेक लेखक अपनी रचना को रोचक और सरस बनाने के लिए उपयुक्त स्थानों पर अनेक वस्तुओं, कार्यों, स्थानों आदि का विस्तार से वर्णन करते हैं।
लेखक ने इस कहानी को सरस और रोचक बनाने के लिए और भी अनेक तरीकों का उपयोग किया है। उदाहरण के लिए, उन्होंने कहानी में ‘बच्चे द्वारा कल्पना करने’ का भी प्रयोग किया है (जब बच्चा अकेले लेटे-लेटे घर और बाहर के लोगों के बारे में सोच रहा है)। इस कहानी में ऐसी कई विशेषताएँ छिपी हैं।
(क) इस पाठ को एक बार फिर से पढ़िए और अपने समूह में मिलकर इस पाठ की अन्य विशेषताओं की सूची बनाइए। अपने समूह की सूची को कक्षा में सबके साथ साझा कीजिए।
उत्तर: इस पाठ “अस्पताल में बचपन” की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं, जो इसे रोचक और सरस बनाती हैं:
(i) चित्रात्मक भाषा का प्रयोग: लेखक ने शब्दों से ऐसा दृश्य खींचा है कि पाठक के सामने पूरा दृश्य जीवंत हो जाता है, जैसे—
“बड़ी-बड़ी खिड़कियों के पास हरे-हरे पेड़ झूम रहे थे… सिर्फ लोगों के धीरे-धीरे बातचीत करने की धीमी-धीमी गुनगुन…।”
(ii) बच्चे की मासूम कल्पनाएँ: बच्चा अस्पताल में अकेले लेटा है, तो वह अपने घर, स्कूल, दोस्तों और बाहर की दुनिया की कल्पना करता है। इससे उसकी मासूम सोच और भावनाएँ सामने आती हैं।
(iii) भावनात्मक पक्ष की अभिव्यक्ति: कहानी में बच्चे की अकेलापन, माँ की चिंता, नर्स का व्यवहार आदि बहुत कोमलता और संवेदना से प्रस्तुत किए गए हैं।
(iv) संवादों का प्रयोग: जहाँ-जहाँ संवाद हैं, वहाँ कहानी अधिक जीवंत लगती है। जैसे नर्स का बच्चे से बात करना, डॉक्टरों का व्यवहार आदि।
(v) आत्मकथात्मक शैली: कहानी एक बच्चे की दृष्टि से कही गई है, जो उसे और भी प्रभावशाली बनाती है। पाठक सीधे बच्चे के मन में झाँक पाता है।
(vi) हास्य और सरलता: बच्चे की बातें कहीं-कहीं हास्य उत्पन्न करती हैं, जैसे “टी.बी. और कैंसर को लेकर मेरी चिंता बड़ी गंभीर थी।”
(vii) सरल और सहज भाषा: पूरे पाठ में भाषा बहुत सरल, बोलचाल की और भावनाओं से भरी हुई है, जिससे पाठक जुड़ाव महसूस करता है।
(ख) कहानी में से निम्नलिखित के लिए उदाहरण खोजकर लिखिए-
विशेष बिंदु | कहानी में से उदाहरण |
बच्चे द्वारा पिछली बातों को याद किया जाना | |
हास्य यानी हँसी-मजाक का उपयोग किया जाना | |
बच्चे द्वारा सोचने के तरीके में बदलाव आना | |
कहानी में किसी का किसी बात से अनजान होना | |
बच्चे द्वारा स्वयं से बातें किया जाना |
उत्तर: विद्यार्थी स्वयं करें।
समस्या और समाधान |
कहानी को एक बार पुनः पढ़कर पता लगाइए–
(क) बच्चे के सामने क्या समस्या थी? उसने उस समस्या का क्या समाधान निकाला?
उत्तर: बच्चे के सामने यह समस्या थी कि वह स्कूल नहीं जाना चाहता था, क्योंकि उसने होमवर्क नहीं किया था और उसे डर था कि स्कूल में उसे सज़ा मिलेगी। साथ ही, कुछ दिन पहले वह अपनी नानीजी के साथ अस्पताल गया था, जहाँ उसने सुधाकर काका को आराम से साफ़-सुथरे बिस्तर पर लेटे हुए, खीर खाते हुए देखा था। उस शांत और सुसंस्कृत वातावरण ने उसके मन में यह भावना भर दी कि बीमार होना भी एक सुखद अनुभव हो सकता है। उसने सोचा कि अगर वह बीमार हो गया तो उसे भी वैसा ही आराम और सेवा मिलेगी। इसलिए उसने बीमार होने का बहाना बनाया और रजाई में दुबककर लेट गया। जब नानीजी ने उसे उठाया, तो उसने सिरदर्द, पेटदर्द और बुखार का बहाना बनाया। इस तरह, स्कूल से बचने और घर पर आराम पाने के लिए उसने बीमारी का नाटक करके अपनी समस्या का समाधान खोजा।
(ख) नानीजी-नानाजी के सामने क्या समस्या थी? उन्होंने उस समस्या का क्या समाधान निकाला?
उत्तर: नानीजी और नानाजी के सामने यह समस्या थी कि बच्चा बीमार होने का नाटक कर रहा था, लेकिन वे उस पर सीधे आरोप नहीं लगा सकते थे। उन्हें बच्चे की हालत पर शक तो था, लेकिन वे उसे प्यार से सिखाना चाहते थे कि बीमारी का नाटक करना सही नहीं है। उन्होंने इस समस्या का समाधान यह निकाला कि बच्चे को वही व्यवहार दिया जाए जैसा किसी बीमार को मिलता है — बिना स्वादिष्ट खाना, कड़वी दवाई और आराम करने की सख़्त हिदायत। उन्होंने बच्चे को उसका मनपसंद कुछ नहीं दिया, जिससे बच्चे को खुद अपनी गलती का एहसास हो गया। इस तरह उन्होंने बिना डाँटे बच्चे को एक ज़रूरी सीख दी।
शब्द से जुड़े शब्द |
नीचे दिए गए स्थानों में ‘बीमार’ से जुड़े शब्द पाठ में से चुनकर लिखिए-
उत्तर:
खोजबीन |
कहानी में से वे वाक्य ढूँढ़कर लिखिए जिनसे पता चलता है कि-
(क) कहानी में सर्दी के मौसम की घटनाएँ बताई गई हैं।
(ख) बच्चे को बहाना बनाने के परिणाम का आभास हो गया।
(ग) बच्चे को खाना-पीना बहुत प्रिय है।
(घ) बच्चे को स्कूल जाना अच्छा लगता है।
उत्तर: विद्यार्थी स्वयं करें।
शीर्षक |
(क) आपने जो कहानी पढ़ी है, इसका नाम ‘नहीं होना बीमार’ है। अपने समूह में चर्चा करके लिखिए कि इस कहानी का यह नाम उपयुक्त है या नहीं। अपने उत्तर के कारण भी बताइए।
उत्तर: कहानी का नाम ‘नहीं होना बीमार’ बिलकुल उपयुक्त है क्योंकि यह कहानी एक बच्चे की है जो स्कूल में नहीं जाना चाहता और बीमारी का बहाना बनाता है। लेकिन बाद में उसे एहसास होता है कि झूठ बोलना ठीक नहीं है और स्कूल जाना अच्छा होता है। इस पूरी कहानी का मूल संदेश यही है कि बीमारी का झूठा बहाना नहीं बनाना चाहिए और स्वस्थ रहकर अपने कर्तव्यों को निभाना चाहिए।
(ख) यदि आपको इस कहानी को कोई अन्य नाम देना हो तो क्या नाम देंगे? आपने यह नाम क्यों सोचा, यह भी बताइए।
उत्तर: यदि मुझे इस कहानी को कोई अन्य नाम देना हो तो मैं इसका नाम ‘झूठ का फल’ रखूँगा/रखूँगी। मैंने यह नाम इसलिए चुना क्योंकि कहानी में बच्चा झूठ बोलकर स्कूल से छुट्टी तो ले लेता है, लेकिन बाद में उसे अपने झूठ का पछतावा होता है और वह समझ जाता है कि झूठ बोलने से अच्छा कुछ नहीं मिलता। यह नाम कहानी के मुख्य संदेश को संक्षेप में स्पष्ट करता है।
अभिनय |
कहानी में से चुनकर कुछ संवाद नीचे दिए गए हैं। आपको इन्हें अभिनय के साथ बोलकर दिखाना है। प्रत्येक समूह से बारी-बारी से छात्र/छात्राएँ कक्षा में सामने आएँगे और एक संवाद अभिनय के साथ बोलकर दिखाएँगे-
1. “बुखार आ गया।” मैंने कराहते हुए कहा।
2. “आपको पता नहीं चल रहा। थर्मामीटर लगाकर देखिए।” मैंने कहा।
3. “मेरे सिर में दर्द हो रहा है। पेट भी दुख रहा है और मुझे बुखार भी है।”
4. नानाजी आए। बोले, “अब कैसा है सिरदर्द?”
5. फिर नानाजी बोले, “आज इसे कुछ खाने को मत देना। आराम करने दो। शाम को देखेंगे।”
उत्तर: विद्यार्थी स्वयं करें।
चेहरों पर मुस्कान, मुँह में पानी |
(क) इस कहानी में अनेक रोचक घटनाएँ हैं जिन्हें पढ़कर चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। इस कहानी में किन बातों को पढ़कर आपके चेहरे पर भी मुस्कान आ गई थी? उन्हें रेखांकित कीजिए।
(ख) इस कहानी में किन वाक्यों को पढ़कर आपके मुँह में पानी आ गया था? उन्हें रेखांकित कीजिए।
(इन्हें रेखांकित करने के लिए आप किसी अन्य रंग का उपयोग कर सकते हैं।)
उत्तर: विद्यार्थी स्वयं करें।
लेखन के अनोखे तरीके |
मैं बिना आवाज किए दरवाजे तक गया और ऐसे झाँककर देखने लगा जिससे किसी को पता न चले कि मैं बिस्तर से उठ गया हूँ।
इस बात को कहानी में इस प्रकार विशेष रूप से लिखा गया है-
“दबे पाँव दरवाजे तक गया और चुपके से झाँककर देखा।”
इस कहानी में अनेक स्थानों पर वाक्यों को विशेष ढंग से लिखा गया है। साधारण बातों को कुछ अलग तरह से लिखने से लेखन की सुंदरता बढ़ सकती है।
नीचे कुछ वाक्य दिए गए हैं। कहानी में ढूंढ़िए कि इन बातों को कैसे लिखा गया है-
1. ऐसा लगा मानो हमें देखकर सुधाकर काका खुश हो गए।
उत्तर: कहानी में: हमें देखते ही सुधाकर काका के चेहरे पर मुस्कान दौड़ गई।
2. खिड़कियाँ बहुत बड़ी थीं और उनके बाहर हरे पेड़ हवा से हिल रहे थे।
उत्तर: कहानी में: बड़ी-बड़ी खिड़कियों के बाहर हरे-भरे पेड़ हवा में झूम रहे थे।
3. वहाँ केवल लोगों के फुसफुसाने की आवाजें आ रही थीं।
उत्तर: कहानी में: चारों ओर धीमी-धीमी फुसफुसाहट गूँज रही थी।
4. फुसफुसाने की आवाजों के सिवा वहाँ कोई आवाज नहीं थी।
उत्तर: कहानी में: सन्नाटा इतना गहरा था कि बस फुसफुसाने की आवाजें ही सुनाई देती थीं।
5. बीमार लोगों के बहुत मजे होते हैं।
उत्तर: कहानी में: बीमार होने का मतलब है – आराम ही आराम, खाना-पीना बिस्तर पर और कोई काम नहीं।
6. मैं झूठमूठ बीमार पड़ जाता हूँ।
उत्तर: कहानी में: मैं सोचने लगा कि क्यों न एक दिन के लिए मैं भी बीमार बन जाऊँ।
विराम चिह्न |
“देखें!” नानाजी ने रजाई हटाकर मेरा माथा छुआ। पेट देखा और नब्ज देखने लगे। इस बीच नानीजी भी आ गईं। “क्या हुआ?”, नानीजी ने पूछा।
पिछले पृष्ठ पर दिए गए वाक्यों को ध्यान से देखिए। इन वाक्यों में आपको कुछ शब्दों से पहले या बाद में कुछ चिह्न दिखाई दे रहे हैं। इन्हें विराम चिह्न कहते हैं।
अपने समूह के साथ मिलकर नीचे दिए गए विराम चिह्न को कहानी में ढूँदिए। ध्यानपूर्वक देखकर समझिए कि इनका प्रयोग वाक्यों में कहाँ-कहाँ किया जाता है। आपने जो पता किया, उसे नीचे लिखिए-
विराम चिह्न | कहाँ प्रयोग किया जाता है |
पूर्ण विराम । | |
अल्प विराम , | |
प्रश्नवाचक चिह्न ? | |
विस्मयादिबोधक चिह्न ! | |
उद्धरण चिह्न “ “ |
आवश्यकता हो तो इस प्रश्न का उत्तर पता करने के लिए आप अपने परिजनों, शिक्षकों, पुस्तकालय या इंटरनेट की सहायता ले सकते हैं।
उत्तर:
विराम चिह्न | कहाँ प्रयोग किया जाता है |
पूर्ण विराम । | नानीजी चली गईं। |
अल्प विराम , | एक दिन मुझे साथ लेकर नानीजी हमारे पड़ोसी सुधाकर काका को देखने गईं, जो बीमार थे। |
प्रश्नवाचक चिह्न ? | क्या हो गया? |
विस्मयादिबोधक चिह्न ! | क्या ठाठ हैं बीमारों के भी। मैंने सोचा… ठाठ से साफ-सुथरे बिस्तर पर लेटे रहो और साबूदाने की खीर खाते रहो ! काश! सुधाकर काका की जगह मैं होता! मैं कब बीमार पडूंगा! |
उद्धरण चिह्न “ “ | “मेरे सिर में दर्द हो रहा है। पेट भी दुख रहा है और मुझे बुखार भी है।” |
कैसी होगी गली |
“मुझे बड़ी तेज इच्छा हुई कि इसी समय बाहर निकलकर दिन की न की रोशनी में अपनी गली की चहल-पहल देखूँ”
आपने कहानी में बच्चे के घर के साथ वाली गली के बारे में बहुत-सी बातें पढ़ी हैं। उन बातों और अपनी कल्पना के आधार पर उस गली का एक चित्र बनाइए।
उत्तर: विद्यार्थी स्वयं करें।
पाठ से आगे |
आपकी बात
(क) बच्चे ने अस्पताल के वातावरण का विस्तार से सुंदर वर्णन किया है। इसी प्रकार आप अपनी कक्षा का वर्णन कीजिए।
उत्तर: मेरी कक्षा बहुत सुंदर और साफ-सुथरी है। कक्षा में बड़े-बड़े खिड़कियाँ हैं जहाँ से सूरज की रोशनी भीतर आती है और कमरा उजला लगता है। दीवारों पर रंग-बिरंगे चार्ट और पोस्टर लगे हैं जिनमें ज्ञानवर्धक बातें, कविताएँ और चित्र होते हैं। हमारी कक्षा में एक बड़ी ब्लैकबोर्ड है जिस पर हमारी शिक्षिका सुंदर अक्षरों में लिखती हैं। सभी बच्चों की मेज़ें और कुर्सियाँ क्रम से लगी होती हैं। एक कोने में किताबों की अलमारी भी है जिसमें हम कहानी की किताबें पढ़ सकते हैं। कक्षा का वातावरण शांत, मनोहर और पढ़ाई के अनुकूल होता है। यहाँ हम सब मिल-जुलकर पढ़ते हैं, खेलते हैं और सीखते हैं।
(ख) कहानी में बच्चे को घर में अकेले दिन भर लेटे रहना पड़ा था। क्या आप कभी कहीं अकेले रहे हैं? उस समय आपको कैसा लग रहा था? आपने क्या-क्या किया था?
उत्तर: हाँ, मैं एक बार अकेला घर पर रहा था जब मेरे माता-पिता किसी जरूरी काम से बाहर गए थे। उस समय शुरू में तो मुझे अच्छा लगा क्योंकि मैं अपनी मनपसंद चीज़ें कर सकता था। लेकिन थोड़ी देर बाद मुझे अकेलापन महसूस होने लगा। घर का सन्नाटा डरावना लगने लगा और मुझे माँ-पापा की बहुत याद आई। मैंने समय बिताने के लिए अपनी पसंदीदा किताब पढ़ी, टीवी देखा और ड्राइंग भी बनाई। लेकिन जैसे-जैसे शाम हुई, मुझे घबराहट होने लगी और मैं बार-बार दरवाजे की ओर देखता रहा कि माँ-पापा कब आएँगे। जब वे लौटे, तो मुझे बहुत राहत महसूस हुई और मैं उनसे लिपट गया। उस दिन मुझे समझ आया कि अपने परिवार के बिना घर कितना सूना लगता है।
(ग) कहानी में आम खाने वाले मुन्नू को देखकर बच्चे को ईर्ष्या हुई थी। क्या आपको कभी किसी से या किसी को आपसे ईर्ष्या हुई है? आपने तब क्या किया था ताकि यह भावना दूर हो जाए?
उत्तर: हाँ, मुझे एक बार अपने एक दोस्त से ईर्ष्या हुई थी जब उसे स्कूल में पुरस्कार मिला और मैं पीछे रह गया। मुझे लगा कि मैं भी मेहनत करता हूँ, फिर भी मुझे वह सम्मान नहीं मिला। उस समय मैं थोड़ा उदास और निराश हो गया था। लेकिन बाद में मैंने सोचा कि मेरे दोस्त ने सच में कड़ी मेहनत की थी और वह उस पुरस्कार का हकदार था। मैंने अपने आप को समझाया कि ईर्ष्या करने से कुछ नहीं मिलेगा, बल्कि मुझे भी अपनी कोशिशें और बढ़ानी चाहिए। मैंने अपने दोस्त को बधाई दी और खुद से वादा किया कि अगली बार मैं और अच्छा प्रदर्शन करूंगा। इस तरह धीरे-धीरे मेरी ईर्ष्या की भावना दूर हो गई और मैं और मेहनत करने के लिए प्रेरित हुआ।
(घ) कहानी में नानाजी-नानीजी बच्चे का पूरा ध्यान रखने का प्रयास करते हैं। आपके घर और विद्यालय में आपका ध्यान कौन-कौन रखते हैं? कैसे?
उत्तर: मेरे घर में मेरे माता-पिता मेरा सबसे ज़्यादा ध्यान रखते हैं। माँ समय पर खाना खिलाती हैं, मेरा होमवर्क देखने में मदद करती हैं और जब मैं बीमार होता हूँ तो मेरी बहुत देखभाल करती हैं। पापा मुझे स्कूल छोड़ने और लाने जाते हैं, मेरी पढ़ाई के लिए ज़रूरी चीज़ें लाते हैं और मुझे अच्छे संस्कार सिखाते हैं। दादी-दादा भी मुझे कहानियाँ सुनाते हैं और हमेशा प्यार से मेरी चिंता करते हैं।
विद्यालय में मेरी कक्षा की शिक्षिका मेरा ध्यान रखती हैं। अगर मैं किसी बात को नहीं समझ पाता, तो वह धैर्य से समझाती हैं। जब मैं उदास होता हूँ तो वे मुझसे बात करती हैं और हौसला देती हैं। मेरे दोस्त भी हमेशा मेरी मदद करते हैं और साथ में खेलते हैं। इस तरह घर और विद्यालय दोनों जगह मुझे बहुत स्नेह और देखभाल मिलती है।
(ङ) आप अपने परिजनों और मित्रों का ध्यान कैसे रखते हैं? क्या-क्या करते हैं या क्या-क्या नहीं करते हैं ताकि उन्हें कम-से-कम परेशानी हो?
उत्तर: मैं अपने परिजनों और मित्रों का ध्यान रखने की पूरी कोशिश करता हूँ। घर पर मैं माँ-पापा की बात मानता हूँ, समय पर पढ़ाई करता हूँ और बिना कहे अपनी चीज़ें सही जगह पर रखता हूँ ताकि उन्हें बार-बार समझाना न पड़े। जब माँ थकी होती हैं तो मैं छोटा-मोटा काम खुद कर लेता हूँ और उन्हें आराम करने देता हूँ। दादी-दादा की मदद करता हूँ और उन्हें अकेला महसूस नहीं होने देता।
अपने मित्रों का भी मैं ख्याल रखता हूँ। अगर कोई दोस्त उदास होता है तो मैं उसके साथ बैठता हूँ, बात करता हूँ और उसे खुश करने की कोशिश करता हूँ। मैं कभी किसी से झगड़ा नहीं करता और सबके साथ मिलजुल कर खेलता हूँ। अगर मेरे किसी काम या बात से उन्हें परेशानी हो सकती है, तो मैं वह नहीं करता। इस तरह मैं यह कोशिश करता हूँ कि मेरे आस-पास के लोग खुश रहें और उन्हें मुझसे कोई तकलीफ़ न हो।
बहाने |
(क) कहानी में बच्चे ने बीमारी का बहाना बनाया ताकि उसे स्कूल न जाना पड़े। क्या आपने कभी किसी कारण से बहाना बनाया है? यदि हाँ, तो उसके बारे में बताइए। उस समय आपके मन में कौन-कौन से भाव आ-जा रहे थे? आप कैसा अनुभव कर रहे थे?
उत्तर: हाँ, एक बार मैंने भी स्कूल न जाने के लिए बहाना बनाया था। उस दिन मेरा होमवर्क पूरा नहीं हुआ था और मुझे डर था कि मुझे डाँट पड़ेगी, इसलिए मैंने माँ से कहा कि मुझे पेट में दर्द हो रहा है। माँ बहुत चिंतित हो गईं और मुझे स्कूल नहीं भेजा। शुरू में मुझे अच्छा लगा कि मैं घर पर रुक गया, लेकिन थोड़ी देर बाद मुझे अंदर ही अंदर बुरा लगने लगा। मुझे अपने झूठ पर पछतावा हुआ और माँ की चिंता देखकर मन दुखी हो गया। मुझे ऐसा लगा कि मैंने उनका विश्वास तोड़ा है। उस दिन मैंने तय किया कि आगे से कभी झूठ नहीं बोलूँगा और अपनी जिम्मेदारियों को समय पर पूरा करने की कोशिश करूँगा। उस अनुभव ने मुझे ईमानदारी और मेहनत का महत्व सिखाया।
(ख) आमतौर पर बनाए जाने वाले बहानों की एक सूची बनाइए।
उत्तर: यहाँ आमतौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले बहानों की एक सूची दी गई है, जिन्हें लोग विभिन्न परिस्थितियों में उपयोग करते हैं:
1. तबीयत खराब है “मुझे सिरदर्द है”, “बुखार लग रहा है।” |
2. घर में मेहमान आ गए हैं। |
3. इंटरनेट/लाइट नहीं थी। |
4. फोन चार्ज में नहीं था। |
5. अचानक कोई जरूरी काम आ गया। |
6. नींद आ गई थी। |
7. याद नहीं रहा। |
8. ट्रैफिक बहुत ज्यादा था। |
9. घर में कोई परेशानी हो गई थी। |
10. मुझे किसी ने बताया ही नहीं। |
(ग) बहाने क्यों बनाने पड़ते हैं? बहाने न बनाने पड़ें, इसके लिए हम क्या-क्या कर सकते हैं?
उत्तर: बहाने अक्सर तब बनाए जाते हैं जब हम किसी ज़िम्मेदारी को पूरी नहीं कर पाते, या सच कहने से डरते हैं।
इसके पीछे कुछ आम कारण हैं:
(i) डर – डांट, सज़ा या आलोचना का डर।
(ii) आलस्य – काम टालने की आदत।
(iii) समय प्रबंधन की कमी – सही समय पर काम न कर पाना।
(iv) ईमानदारी से बचना – किसी को ठेस न पहुंचे, इसलिए झूठ बोलना।
(v) आत्मविश्वास की कमी – सच बोलने का साहस न होना।
बहाने न बनाने पड़ें, इसके लिए हम यह कर सकते हैं-
(i) समय का सही उपयोग करें – To-do list और reminders की मदद लें।
(ii) ईमानदार रहें – जब संभव हो, सच बोलें; इससे भरोसा बढ़ता है।
(iii) ज़िम्मेदार बनें – जो काम लिया है, उसे पूरा करने की कोशिश करें।
(iv) ना कहना सीखें – जो नहीं कर सकते, उसे मना करना बेहतर है।
(v) आत्मनिरीक्षण करें – हर दिन सोचें कि कहां सुधार की ज़रूरत है।
(vi) माफ़ी मांगना सीखें – बहाने बनाने से अच्छा है, साफ़-साफ़ गलती मान लेना।
अनुमान |
“मैं रजाई में पड़ा-पड़ा घर में चल रही गतिविधियों का अनुमान लगाता रहा।“
कहानी में बच्चे ने अनेक प्रकार के अनुमान लगाए हैं। क्या आपने कभी किसी अनदेखे व्यक्ति/वस्तु/पशु-पक्षी/स्थान आदि के विषय में अनुमान लगाए हैं? किसके बारे में? क्या? कब? विस्तार से बताइए।
(संकेत – जैसे पेड़ से आने वाली आवाज सुनकर किसी प्राणी का अनुमान लगाना; कहीं दूर रहने वाले किसी संबंधी/रिश्तेदार के विषय में सुनकर उसके संबंध में अनुमान लगाना।)
उत्तर: हाँ, मैंने भी कई बार किसी अनदेखी वस्तु या व्यक्ति के बारे में अनुमान लगाए हैं। एक बार की बात है, मैं अपने ननिहाल गया था। वहाँ रात को आँगन के पास एक पेड़ है, जिससे अजीब सी सरसराहट की आवाज़ आ रही थी। मैं रजाई में दुबक कर उस आवाज़ को सुन रहा था। कभी वह हल्की होती, कभी तेज़। मुझे लगा शायद वहाँ कोई उल्लू बैठा है, फिर सोचा शायद कोई बिल्ली या सियार आ गया हो। मैं बहुत देर तक अनुमान लगाता रहा कि आखिर वह आवाज़ किसकी है।
अगली सुबह मैंने वहाँ जाकर देखा, तो पता चला कि उस पेड़ की टहनी पर कुछ सूखे पत्ते लटक रहे थे, और हवा चलने पर वे आपस में टकराकर वैसी आवाज़ कर रहे थे। उस दिन मुझे समझ आया कि कभी-कभी हमारी कल्पना वास्तविकता से बहुत अलग होती है, पर अनुमान लगाना भी एक मज़ेदार अनुभव होता है।
घर का सामान |
“बहुत ढूँढ़ा गया पर थर्मामीटर मिला ही नहीं। शायद कोई माँगकर ले गया था।”
कहानी में बच्चे के घर पर थर्मामीटर (तापमापी) खोजने पर वह मिल नहीं पाता। आमतौर पर हमारे घरों में कोई न कोई ऐसी वस्तु होती है जिसे खोजने पर भी वह नहीं मिलती, जिसे कोई माँगकर ले जाता है या हम जिसे किसी से माँगकर ले आते हैं। अपने घर को ध्यान में रखते हुए ऐसी वस्तुओं की सूची बनाइए-
जो खोजने पर भी नहीं मिलती हैं | जो कोई माँगकर ले जाते हैं | जो आप किसी से माँगकर लाते हैं |
उत्तर:
जो खोजने पर भी नहीं मिलती हैं | जो कोई माँगकर ले जाते हैं | जो आप किसी से माँगकर लाते हैं |
कैंची कभी सही जगह नहीं मिलती। | किताबें अक्सर दोस्त माँगकर ले जाते हैं। | प्रोजेक्टर हम पड़ोसी से माँगकर लाते हैं। |
सेलोटेप या ग्लू स्टिक अक्सर गायब रहता है। | थर्मामीटर कोई माँगकर ले जाता है। | त्योहारों में झाडू हम किराए पर लेते हैं। |
चार्जर या रिमोट ढूँढ़ने पर भी नहीं मिलता। | खेल के बैट या बॉल कोई ले जाता है। | बर्तन जैसे बड़ा भगोना रिश्तेदारों से माँगते हैं। |
स्टेशनरी सामान जैसे पेन-पेंसिल मिलते नहीं। | प्रेस (इस्त्री) कोई माँगकर ले जाता है। | त्योहारों पर लाइटें हम पड़ोसी से लेते हैं। |
खान-पान और आप |
(क) कहानी में सुधाकर काका को बीमार होने पर साबूदाने की खीर दी गई थी। आपके घर में किसी के बीमार होने पर उसे क्या-क्या खिलाया जाता है?
उत्तर: हमारे घर में जब कोई बीमार होता है, तो उसे जल्दी ठीक होने के लिए कुछ हल्के और पौष्टिक खाद्य पदार्थ दिए जाते हैं। जैसे:
(i) खिचड़ी – हल्की और सुपाच्य होने के कारण, खिचड़ी अक्सर दी जाती है। इसमें थोड़ा सा घी और नमक डालकर आसानी से पचने वाली होती है।
(ii) सूप – शोरबा या गर्म सूप, खासकर मूँग दाल का सूप, जो शरीर को हाइड्रेटेड रखता है और जल्दी ठीक होने में मदद करता है।
(iii) साबूदाने की खीर – हल्की और सुपाच्य होती है, इसलिए जब पेट में ज्यादा असर न हो, तो इसे दिया जाता है।
(iv) दही और चिउड़े – दही शरीर की इम्यूनिटी को मजबूत करता है, और चिउड़े हलके होते हैं, जिससे जल्दी ऊर्जा मिलती है।
(ख) कहानी में बच्चे को बहुत-सी चीजें खाने का मन है। आपका क्या-क्या खाने का बहुत मन करता है?
उत्तर: मुझे भी कुछ खास चीज़ों का बहुत मन करता है। जैसे:
(i) चॉकलेट – खासकर डार्क चॉकलेट या चॉकलेट ट्रफल्स, जिनका स्वाद बहुत ही लाजवाब होता है।
(ii) पिज्जा – पिज्जा के ऊपर ढेर सारी चीज़ और स्वादिष्ट टॉपिंग्स, वह भी कुरकुरी क्रस्ट के साथ।
(iii) आइस्क्रीम – खासकर वनीला या चॉकलेटी फ्लेवर की आइस्क्रीम, गर्मी में खासा अच्छा लगता है।
(iv) पकोड़ी – बारिश के मौसम में गरम-गरम पकोड़ी और चाय, वह भी आलू या पालक की पकोड़ी हो, तो क्या बात है!
(ग) कहानी में बच्चा सोचता है कि साबूदाने की खीर सिर्फ बीमारी या उपवास में क्यों मिलती है। आपके घर में ऐसा क्या-क्या है, जो केवल विशेष अवसरों या त्योहारों पर ही बनता है?
उत्तर: हमारे घर में कुछ चीज़ें होती हैं जो विशेष अवसरों या त्योहारों पर ही बनती हैं। जैसे:
(i) गुझिया – होली के मौके पर बनती है, और इसे खासतौर पर तभी खाया जाता है।
(ii) पूड़ी-हलवा – दीपावली और अन्य बड़े त्योहारों पर पूड़ी और सूजी का हलवा बनाया जाता है।
(iii) खीर – विशेष पूजा और अवसरों पर खीर बनाई जाती है, खासकर जैसे गणेश चतुर्थी या तीज पर।
(iv) पानीपुरी – साल में कुछ खास दिनों में, खासतौर से घर में किसी खास उत्सव के दौरान, पानीपुरी बनाई जाती है।
(घ) कहानी में बच्चा सोचता है कि अगर वह स्कूल जाता तो उसे ठेले पर नमक-मिर्च वाले अमरूद खाने को मिलते। आप अपने विद्यालय में क्या-क्या खाते-पीते हैं? विद्यालय में आपका रुचिकर भोजन क्या है?
उत्तर: मेरे विद्यालय में भी कई मजेदार चीज़ें होती हैं जो मुझे बहुत पसंद आती हैं। जैसे:
(i) संडे – कभी-कभी स्कूल के आस-पास कोई ठेला आता है, जहाँ चॉकलेट या फल का संडे मिलता है।
(ii) चिप्स और फ्रूट्स – कुछ साथी अपने साथ चिप्स और ताजे फल लाते हैं, जो लंच टाइम में साथ में खाते हैं।
(iii) पकोड़ी – बारिश के मौसम में कुछ दोस्त स्कूल के बाहर से पकोड़ी ले आते हैं।
(iv) सैंडविच – कभी-कभी हल्का सैंडविच भी बहुत अच्छा लगता है, खासकर जब उसमें चीज़ या आलू होता है।
(ङ) इस कहानी में भोजन से जुड़ी बच्चे की कई रोचक बातें बताई गई हैं। आपके बचपन की भोजन से जुड़ी आप अब याद करते हैं?
उत्तर: हाँ, बचपन की भोजन से जुड़ी कई प्यारी यादें अब भी मन को खुश कर देती हैं। एक खास याद है जब मैं स्कूल से आते ही सीधे रसोई में चला जाता था, जहाँ माँ गरम-गरम परांठे और मक्कन लेकर खड़ी होती थीं। कभी-कभी जब घर में गोलगप्पे या चाट बनती थी, तो मैं और मेरे भाई-बहन लाइन लगाकर खड़े हो जाते थे कि किसे पहले मिलेगा।
एक बार मैंने सबके हिस्से की खीर छुपाकर खुद खा ली थी — फिर पकड़ा भी गया, लेकिन माँ ने प्यार से समझाया और थोड़ा हँसी-मज़ाक भी हुआ। अब वो बातें बहुत याद आती हैं।
(च) कहानी में बच्चा भोजन की सुंगध से रजाई फेंककर रसोई में झाँकने लगा। क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि घर में किसी विशेष खाने की सुंगध से आप भी रसोई में जाकर तुरंत देखना चाहते हैं कि क्या पक रहा है? आपको किस-किस खाने की सुंगध सबसे अधिक पसंद है?
उत्तर: हाँ, मेरे साथ भी ऐसा कई बार हुआ है! जब भी रसोई से पकोड़ों, गरम पराठों, या चॉकलेट केक की खुशबू आती है, तो मैं अपने आप को रोक नहीं पाता और सीधा रसोई की ओर भागता हूँ कि “क्या बन रहा है?”
मुझे खासकर इन चीज़ों की सुगंध बहुत पसंद है:
(i) पकोड़ों की खुशबू – बारिश के मौसम में जब तेल में गरम पकोड़े तले जाते हैं, तो उनकी खुशबू पूरे घर में फैल जाती है।
(ii) चॉकलेट केक – बेक होते समय जो मीठी-मीठी खुशबू आती है, वह बहुत लुभावनी होती है।
(iii) तड़के वाली दाल – जब दाल में घी और मसालों का तड़का लगता है, तो उसकी खुशबू भूख और बढ़ा देती है।
(iv) पूड़ी-सब्ज़ी – खासकर त्योहारों पर जब रसोई से पूड़ियों की खुशबू आती है, तो मन करता है तुरंत खा लें।
आज की पहेली |
कहानी में आपने खाने-पीने की अनेक वस्तुओं के बारे में पढ़ा है। अब हम आपके सामने खाने-पीने की वस्तुओं या व्यंजनों से जुड़ी कुछ पहेलियाँ लाए हैं। इन्हें बूझिए और उत्तर लिखिए-
पहेली | उत्तर |
1. रोटी जैसा होता है ये, पर आलू से भरा-भरा घी-तेल साथी हैं इसके, दही-चटनी से हरा-भरा | |
2. दाल-चावल का मेल है यह तो, भारत भर में तुम इसे पाओ, दक्षिण में ये खूब है बनता, चटनी-सांभर संग-संग खाओ, गोल-तिकोना इसका आकार, गरम-गरम तुम इसे बनाओ, कौन-सा व्यंजन होता है यह, बोलो बोलो नाम बताओ। | |
3. नाश्ते का यह बड़ा है खास, महाराष्ट्र में इसका वास, मिर्च-मसाले से भरपूर, संग बटाटा भी मशहूर, चटपटी चटनी लगी किसे? बूझो नाम तो खाएँ इसे ! | |
4. बेसन से बने चौकोर या गोल, गुजरात में बड़ा है बोल। खाने में नर्म, पानी भरे, धनिया मिर्ची संग सजे। | |
5. गोल-गोल पानी से भरके, चटनी सोंठ संग इसे खाओ उत्तर-दक्षिण पूरब-पश्चिम, गली-मुहल्लों में भी पाओ। खट्टी-मीठी, तीखी हाय, खाना तो इसे हर कोई चाहे ! | |
6. हरे साग संग मुझको पाओ, मक्खन के संग मुझको खाओ। आटा मेरा हल्का पीला, स्वाद मेरा है बड़ा रंगीला। | |
7. आग में पकती हूँ, सोंधा-सा स्वाद, साथ में खाओ चूरमा, बन जाए फिर बात, गरम दाल से मुझको प्यार, राजस्थान का मैं उपहार। | |
8. गोल-गोल और श्वेत रंग का रस से भरा हुआ हूँ खूब। मीठी दुनिया का महाराजा चाशनी मीठी डूब-डूब। |
उत्तर:
पहेली | उत्तर |
1. रोटी जैसा होता है ये, पर आलू से भरा-भरा घी-तेल साथी हैं इसके, दही-चटनी से हरा-भरा | पराठा (आलू पराठा) |
2. दाल-चावल का मेल है यह तो, भारत भर में तुम इसे पाओ, दक्षिण में ये खूब है बनता, चटनी-सांभर संग-संग खाओ, गोल-तिकोना इसका आकार, गरम-गरम तुम इसे बनाओ, कौन-सा व्यंजन होता है यह, बोलो बोलो नाम बताओ। | डोसा |
3. नाश्ते का यह बड़ा है खास, महाराष्ट्र में इसका वास, मिर्च-मसाले से भरपूर, संग बटाटा भी मशहूर, चटपटी चटनी लगी किसे? बूझो नाम तो खाएँ इसे ! | वड़ा पाव |
4. बेसन से बने चौकोर या गोल, गुजरात में बड़ा है बोल। खाने में नर्म, पानी भरे, धनिया मिर्ची संग सजे। | ढोकला |
5. गोल-गोल पानी से भरके, चटनी सोंठ संग इसे खाओ उत्तर-दक्षिण पूरब-पश्चिम, गली-मुहल्लों में भी पाओ। खट्टी-मीठी, तीखी हाय, खाना तो इसे हर कोई चाहे ! | गोलगप्पे/पानीपुरी |
6. हरे साग संग मुझको पाओ, मक्खन के संग मुझको खाओ। आटा मेरा हल्का पीला, स्वाद मेरा है बड़ा रंगीला। | मक्के की रोटी |
7. आग में पकती हूँ, सोंधा-सा स्वाद, साथ में खाओ चूरमा, बन जाए फिर बात, गरम दाल से मुझको प्यार, राजस्थान का मैं उपहार। | बाजरे की रोटी या बाटी (संदर्भ अनुसार सही उत्तर बाटी) |
8. गोल-गोल और श्वेत रंग का रस से भरा हुआ हूँ खूब। मीठी दुनिया का महाराजा चाशनी मीठी डूब-डूब। | रसगुल्ला |

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