NCERT Class 7 Hindi Chapter 3 हिमालय की बेटियाँ

NCERT Class 7 Hindi Chapter 3 हिमालय की बेटियाँ Solutions to each chapter is provided in the list so that you can easily browse through different chapters NCERT Class 7 Hindi Chapter 3 हिमालय की बेटियाँ and select need one. NCERT Class 7 Hindi Chapter 3 हिमालय की बेटियाँ Question Answers Download PDF. NCERT Class 7 Hindi Solutions.

NCERT Class 7 Hindi Chapter 3 हिमालय की बेटियाँ

Join Telegram channel

Also, you can read the NCERT book online in these sections Solutions by Expert Teachers as per Central Board of Secondary Education (CBSE) Book guidelines. CBSE Class 7 Hindi Solutions are part of All Subject Solutions. Here we have given NCERT Class 7 Hindi Chapter 3 हिमालय की बेटियाँ and Textbook for All Chapters, You can practice these here.

हिमालय की बेटियाँ

Chapter: 3

वसंत भाग – 2 

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

प्रश्न 1. लेखक ने अभी तक किन्हें दूर से देखा था?

उत्तर: लेखक ने अभी तक हिमालय की बेटियों अर्थात् नदियों को दूर से देखा था।

2. दूर से ये कैसी लगती थी?

उत्तर: दूर से ये नदियाँ एक संघांत महिला के समान शांत प्रतीत होती थीं।

3. लेखक के मन में नदियों के प्रति कैसे भाव थे?

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Join Now

उत्तर: लेखक के मन में इन नदियों के प्रति आदर और श्रद्धा के भाव थे। वह उनकी  धारा में डुबकियाँ लगाया करता था।

4. हिमालय के कंधे पर चढ़कर लेखक को क्या अनुभव हुआ?

उत्तर: हिमालय के कंधे पर बढ़कर लेखक को पता चला कि यहाँ तो गंगा-यमुना सततुन आदि नदियाँ दुबली-पतली हैं, पर समतल मैदान में पहुँचकर इनका आकाश विशाल हो जाता है। उनके रूप में यह एक बड़ा परिवर्तन है।

5. नदियों का हृदय कैसा प्रतीत होता है और यह कैसे पता चलता है?

उत्तर: नदियों का हृदय अतृप्त प्रतीत होता है। इसका पता इससे चलता है कि अपने पिता (हिमालय) का प्यार पाकर भी ये बेचैन हैं और निरंतर आगे भागी जा रही हैं।

6. नदियों का लौला निकेतन क्या है?

उत्तर: नदियों के लीला निकेतन है-बरफ जली नगी पहाड़ियाँ पौधों से भरी घाटियाँ टेबललैंड हरी-भरी घाटियाँ।

7. इन्हें कम बोटी बातें याद करने का मौका मिलता होगा?

उत्तर: ये नदियाँ जब खेलते-खेलते दूर निकल जाती हैं तब देवदार, चौड़, सरो, चिनार, सफेदा, कैल के जंगलों में पहुँच कर इन्हें बीती बातों को याद करने का मौका मिल जाता होगा।

8. हिमालय का चित्रण किस रूप में किया गया है? वह क्या करता होगा?

उत्तर: हिमालय का चित्रण एक बूढ़े पिता के रूप में किया गया है। यह अपनी इन शैतान बेटियों (नदियों) के लिए अपना सिर धुनता होगा।

9. मैदान में इन नदियों के किस रूप की कल्पना करना कठिन है?

उत्तर: मैदान में नदियों के उस रूप की कल्पना करना कठिन है कि ये बूढ़े हिमालय की गोद में बच्चियाँ बनकर कैसे खेला करती थीं।

10. माँ-बाप की गोद में खेलने वाली बालिकाएँ कौन हैं?

उत्तर: माँ-बाप की गोद में खेलने वाली बालिकाएँ हिमालय पर्वत से निकलने वाली नदियाँ ही हैं।

11. पहाड़ी आदमियों को क्या आकर्षक प्रतीत नहीं होता और क्यों?

उत्तर: पहाड़ों से निकलने वाली नदियों (बालिकाओं के समान) का रूप पहाड़ी आदमियों को आकर्षक प्रतीत नहीं होता।

12. गद्यांश में किसे ससुर और किसे दामाद कहा गया है और क्यों?

उत्तर: गद्यांश में हिमालय को ससुर और समुद्र को दामाद कहा गया है। नदी हिमालय की पुत्री है और समुद्र में जा मिलती है।

13. काका कालेलकर ने नदियों को क्या कहा है?

उत्तर: काका कालेलकर ने नदियों को लोकमाता कहा है।

14. लेखक नदियों को और किन-किन रूपों में देखने को कहता है?

उत्तर: लेखक नदियों को बेटी, प्रेयसी, बहन के रूपों में भी देखने को कहता है।

15. एक दिन लेखक की कैसी भावना हुई?

उत्तर: एक दिन यो लिङ् (तिब्बत) में लेखक का मन उचट गया, तबीयत ढोली थी।

16. किस काम से लेखक का मन ताजा हो गया?

उत्तर: लेखक के किनारे बैठ गया। पैर लटका दिए। इससे तन-मन ताजा हो गया और वह गुनगुनाने लगा।

बहुविकल्पी प्रश्न

सही उत्तर चुनकर लिखिए–

1. अभी तक लेखक ने नदियों को कैसे देखा था? 

(क) पास से।

(ख) दूर से।

(ग) पहाड़ से।

(घ) मैदान से।

उत्तर: (ख) दूर से।

2. लेखक को नदियाँ कैसी लगती थीं? 

(क) शांत।

(ख) गंभीर।

(ग) संभ्रात महिला के समान।

(घ) ये सभी रूप।

उत्तर: (घ) ये सभी रूप।

3. लेखक नदियों की धारा में क्या करता था?

(क) डुबकियों लगाता था। 

(ख) नाव चलाता था।

(ग) खेलता था।

(घ) कुछ नहीं करता था।

उत्तर: (क) डुबकियों लगाता था।

4. समतल मैदान में पहुँचकर नदियाँ कैसी हो जाती हैं?

(क) दुबलो।

(ख) पतली।

(ग) विशाल।

(घ) टेड़ी।

उत्तर: (ग) विशाल।

5. कौन भाग रहा है?

(क) हिमालय।

(ख) नदियाँ।

(ग) मैदान।

(घ) लेखक।

उत्तर: (ख) नदियाँ।

6. ‘अतृप्त’ शब्द का अर्थ है-

(क) असंतुष्ट।

(ख) प्यासा।

(ग) भरना।

(घ) भूखा।

उत्तर: (क) असंतुष्ट।

7. ‘बुड्ढा हिमालय’ में रेखांकित शब्द क्या है?

(क) संज्ञा।

(ख) विशेषण।

(ग) सर्वनाम।

(घ) क्रिया।

उत्तर: (ख) विशेषण।

8. हिमालय की बेटियाँ कैसी है?

(क) शांत।

(ख) नटखट।

(ग) तेज।

(घ) गंभीर।

उत्तर: (ख) नटखट।

9. ‘बूढे हिमालय’ में रेखांकित शब्द क्या है?

(क) संज्ञा।

(ख) सर्वनाम।

(ग) विशेषण।

(घ) क्रिया।

उत्तर: (क) संज्ञा।

10. इस पाठ के लेखक हैं–

(क) नागार्जुन।

(ख) सर्वनाम।

(ग) नीलकंठ।

(घ) अर्जुन।

उत्तर: (क) नागार्जुन।

11. हिमालय की बेटियाँ कौन हैं?

(क) हिमालय से निकलने वाली नदियाँ।

(ख) हिमालय की चोटियाँ।

(ग) बालिकाएँ।

(घ) समुद्र।

उत्तर: (क) हिमालय से निकलने वाली नदियाँ।

12. नदी को लोकमाता किसने कहा?

(क) काका।

(ख) कालेलकर।

(ग) काका कालेलकर।

(घ) नागार्जुन।

उत्तर: (ख) कालेलकर।

13. कवियों ने नदियों को किसका स्थान दिया है?

(क) प्रेयसी का।

(ख) बेटी का।

(ग) बहन का।

(घ) अन्य का।

उत्तर: (ग) बहन का।

प्रश्न-अभ्यास

>> लेख से

प्रश्न 1. नदियों को माँ मानने की परंपरा हमारे यहाँ काफी पुरानी है लेकिन लेखक नागार्जुन उन्हें और किन रूपों में देखते हैं?

उत्तर: नदियों को माँ मानने की परंपरा भारतीय संस्कृति में अत्यंत पुरानी है। प्रायः ‘गंगा मैया, यमुना मैया’ कहा जाता है। इसके बावजूद लेखक नदियों को और भी कई रूपों में देखता है। वे रूप हैं-

– बेटी के रूप में : नागार्जुन नदियों को हिमालय पर्वत की बेटियों के रूप में देखता है। 

– प्रेयसी के रूप में : कालिदास के ‘मेघदूत’ का प्रसंग बताकर नागार्जुन इन्हें प्रेयसी का रूप देता है। वैसे नदियाँ समुद्र की प्रेयसियाँ हैं क्योंकि नदियाँ उसी की बाँहों में समाने को बेचैन रहती हैं। 

– बहन के रूप में : अनेक कवियों ने भी नदियों का वर्णन बहन के रूप में किया है। 

प्रश्न 2. सिंधु और ब्रह्मपुत्र की क्या विशेषताएँ बताई गई है?

उत्तर: सिंधु और ब्रह्मपुत्र स्वयं में कुछ नहीं हैं। दयालु हिमालय के पिघले दिल की एक-एक बूँद इकट्ठा होकर ये महानद बनी हैं। ये नदियाँ लुभावनी हैं।

प्रश्न 3. काका कालेलकर ने नदियों को लोकमाता क्यों कहा है?

उत्तर: काका कालेलकर ने नदियों को लोकमाता इसलिए कहा है क्योंकि ये नदियाँ लोगों के लिए माता के समान पवित्र एवं कल्याणकारी हैं। इनमें ममता की भावना होती है।

प्रश्न 4. हिमालय की यात्रा में लेखक ने किन-किन की प्रशंसा की है?

उत्तर: हिमालय की यात्रा में लेखक ने इनकी प्रशंसा की है: 

– गंगा-यमुना।

– पौधों से भरी घाटियाँ।

– उपत्यकाएँ।

– विभिन्न प्रकार के पेड़।

>> लेख से आगे 

प्रश्न 1. नदियों और हिमालय पर अनेक कवियों ने कविताएँ लिखी हैं। उन कविताओं का चयन कर उनकी तुलना पाठ में निहित नदियों के वर्णन से कीजिए।

उत्तर: नदी पर कविता-

नदी: कामधेनु                                                         -त्रिलोचन

नदी ने कहा था: मुझे बाँधो मनुष्य ने सुना और तैरकर धारा को पार किया।

नदी ने कहा था: मुझे बाँधो मनुष्य न सुना और सपरिवार धारा को नाव से पार किया।

नदी ने कहा था: मुझे बाँधो मनुष्य ने सुना और आखिर उसे बाँध लिया बाँध कर नदी को मनुष्य दुह रहा है अब वह कामधेनु है।

प्रश्न 2. गोपालसिंह नेपाली की कविता ‘हिमालय और हम’ पढ़िए। हिमालय को कवि किस रूप में प्रस्तुत करता है? उसकी तुलना प्रस्तुत पाठ के हिमालय वर्णन से कीजिए। 

उत्तर: हिमालय और हम                          -गोपाल सिंह नेपाली

(1) गिरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है। इतनी ऊँची इसकी चोटी कि सकल धरती का ताज यही, पर्वत-पहाड़ से भरी धरा पर केवल पर्वत राज यही, 

अंबर में सिर, पाताल चरन 

मन इसका गंगा का बचपन 

तन वरन – वरन, मुख निरावरन

इसकी छाया में जो भी है, वह मस्तक नहीं झुकाता है। गिरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है।।

(2) अरुणोदय की पहली लाली, इसको ही चूम निखर जाती, फिर संध्या की अंतिम लाली, इस पर ही झूम बिखर जाती।

इन शिखरों की माया ऐसी, 

जैसा प्रभात संध्या वैसी,

अमरों को फिर चिंता कैसी, 

इस धरती का हर लाल खुशी से उदय-अस्त अपनाता है। गिरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है।।

(3) हर संध्या को इसकी छाया, सागर सी लंबी होती है, हर सुबह वही फिर गंगा की, चादर सी लंबी होती है। 

इसकी छाया में रंग गहरा,

है देश हरा, परदेश हरा,

हर मौसम है, संदेश भरा।

इसका पद-तल छूने वाला, वेदों की गाथा गाता है। गिरिराज हिमालय से भारत का, कुछ ऐसा ही नाता है।।

(4) जैसा वह अटल, अविचल, वैसे ही हैं भारतवासी, है अमर हिमालय धरती पर, तो भारतवासी अविनाशी। 

कोई क्या हमको ललकारे 

हम कभी न हिंसा से हारे 

दुःख देकर तुमको क्या मारे

गंगा का जल जो भी पी ले, वह दुःख में भी मुसकाता है। गिरिराज हिमालय से भारत का, कुछ ऐसा ही नाता है।।

इस कविता में कवि बताता है कि हिमालय पर्वत पर्वतों का राजा है और उसका भारत के साथ विशेष संबंध है। इस पर्वत की चोटी विश्व भर में सबसे ऊँची है। यही कारण है कि यह इस पृथ्वी का ताज है। पहाड़ों से भरी हुई इस पृथ्वी पर हिमालय ही पर्वतों का राजा है। इस पर्वत का सिर आकाश में है तो इसके चरण समुद्र में हैं। सागर इसके चरण धोता है। इसी से गंगा नदी निकलती है जो इसके मन के समान है। इसका शरीर तो ढका हुआ है पर इसका मुख उघड़ा हुआ है। शरीर पर हरियाली ही इसका आवरण है। इस पर्वत की छाया में भारत देश है जो कभी किसी के सामने सिर नहीं झुकाता है। भारत का इस पर्वत के साथ विशेष नाता है।

हिमालय पर्वत इतना बड़ा है कि शाम के समय इसकी छाया समुद्र के समान बड़ी होती है। प्रातःकाल होते ही गंगा नदी चादर के समान बहती दिखाई देती है। इसकी छाया गहरी होती है। देश-परदेश सभी जगह हरियाली छाई रहती है। प्रत्येक मौसम संदेश देता-सा जान पड़ता है। इसके पैरों में बसा भारत वेदों की गाथा गाता रहता है अर्थात् वेदों की कहानी कहता है। पर्वतराज हिमालय से भारत का विशेष नाता है।

प्रातःकाल जब सूर्य निकलता है तो उसकी पहली लालिमा इस हिमालय की चोटी को चूमकर ही निखरती है अर्थात् पहली किरण इसी पर पड़ती है। शाम के समय भी छिपते सूर्य की लाली इसी चोटी पर बिखरकर अपनी छटा दिखाती है। इन चोटियों की विशेषता ही कुछ ऐसी है कि यहाँ सवेरे और शाम का वातावरण एक समान प्रतीत होता है। यहाँ किसी प्रकार की चिंता की आवश्यकता नहीं है। इस पृथ्वी पर रहने वाला हर व्यक्ति इस सूर्य के उगने और छिपने अर्थात् सुख-दुःख को प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करता है। भारत का इस हिमालय के साथ विशेष प्रकार का रिश्ता है।

रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कविता- ‘हिमालय’

मेरे नगपति! मेरे विशाल। 

साकार, दिव्य, गौरव विराट।

पौरुष के पूंजीभूत ज्वाल।

मेरी जननी के हिम-किरीट।

मेरे भारत के दिव्य भाल।

मेरे नगपति! मेरे विशाल।

युग-युग अजेय, निर्बन्ध मुक्त 

युग-युग गर्वोन्नत, नित महान

निस्सीम व्योम में तान रहा

युग से किस महिमा का वितान।

कैसी अखण्ड यह चिर-समाधि? 

यतिवर! कैसा यह अमर ध्यान?

तू महा शून्य में खोज रहा

किस जटिल समस्या का निदान?

उलसन का कैसा विषम जाल 

मेरे नगपति! मेरे विशाल!

ओ, मौन तपस्या-लीन यही। 

पल-भर को तो कर दृगोन्मेष।

रे ज्वालाओं से दग्ध-विकल 

है तड़प रहा पद पर स्वदेश।

सुखसिन्धु, पंचनद, ब्रह्मपुत्र, 

गंगा-यमुना की अमियधार

जिस पुण्य भूमि की ओर बही

तेरी विगलित करुणा उदार।

मेरे नगपति! मेरे विशाल।

प्रश्न 3. यह लेख 1947 में लिखा गया था। तब से हिमालय से निकलने वाली नदियों में क्या-क्या बदलाव आए हैं?

उत्तर: हिमालय से निकलने वाली नदियाँ अब प्रदूषण का शिकार हो चुकी हैं। गंगा और यमुना नदियाँ अब अपनी पवित्रता खो बैठी हैं। अब गंगा जल पीने योग्य नहीं रह गया है। नदियों में सामान्य दशा में जल का प्रवाह भी कम हो गया है। हरिद्वार में ही गंगा का जल काला प्रतीत होता है। गंगाजल की पवित्रता नष्ट हो गई है।

प्रश्न 4. अपने संस्कृत शिक्षक से पूछिए कि कालिदास ने हिमालय को देवात्मा क्यों कहा है?

उत्तर: हिमालय में देवताओं का वास है। अतः कालिदास ने हिमालय को देवात्मा कहा है।

>> अनुमान और कल्पना

प्रश्न 1. लेखक ने हिमालय से निकलने वाली नदियों को ममताभरी आँखों से देखते हुए उन्हें हिमालय भी बेटियाँ कहा है। आप उन्हें क्या कहना चाहेंगे? नदियों की सुरक्षा के लिए कौन-कौन से कार्य हो रहे हैं? जानकारी प्राप्त करें और अपना सुझाव दें।

उत्तर: लेखक ने नदियों को भले ही बेटियाँ कहा है, पर हम उन्हें माँ कहना चाहेंगे-गंगा मैया, यमुना मैया आदि। माँ कहने में नदियों के प्रति पूज्य, आदर-सम्मान का भाव व्यक्त होता है। नदियाँ माँ के समान हमारा पालन-पोषण एवं भरण-पोषण करती हैं। वे हमें तथा धरती को जल प्रदान करती हैं। हमारी प्यास बुझाने के साथ-साथ खेतों की भी प्यास बुझाती हैं।

नदियों की सुरक्षा के लिए सरकार प्रयास तो कर रही है, पर वे अपर्याप्त हैं। उनमें दिखावा अधिक है, वास्तविकता कम अभी तक उनमें गिरने वाले कारखानों के कचरे को रोका नहीं जा सका है। गंगा-यमुना सफाई अभियान पर करोड़ों रूपये खर्च किए जा चुके हैं, पर नतीजा शून्य है- वही’ ढाक के तीन पात’ वाली स्थिति कायम है।

नदियों की पवित्रता बनाए रखने के लिए जन-चेतना जगानी होगी। सरकार को भी कड़े उपाय करने होंगे। 

प्रश्न 2. नदियों से होने वाले लाभों के विषय में चर्चा कीजिए और इस विषय पर बीस पंक्तियों का एक निबंध लिखिए।

उत्तर: नदियों से लाभ: नदियों से हमें बहुत लाभ हैं। ये हमारी संस्कृति की पहचान हैं। नदियों के किनारे हमारे तीर्थस्थल हैं। नदियों का क्षेत्र उपजाऊ होता है। गंगा-यमुना का क्षेत्र इसी कारण अत्यधिक उपजाऊ है। नदियों से हमें पीने का पानी प्राप्त होता है। नदियों का जल अमृत तुल्य है। नदियों का जल खेतों की सिंचाई के काम आता है। नदियाँ आवागमन का साधन भी रही हैं। इनसे व्यापार में मदद मिलती है। नदियाँ हमें पेयजल प्रदान करती हैं। ये ही हमारी प्यास बुझाती हैं। नदियों के जल से बिजली तैयार की जाती है, इसे ‘हाइड्रो इलेक्ट्रिसिटी’ कहा जाता है।

>> भाषा की बात

प्रश्न 1. अपनी बात कहते हुए लेखक ने अनेक समानताएँ प्रस्तुत की हैं। ऐसी तुलना से अर्थ अधिक स्पष्ट एवं सुंदर बन जाता है। उदाहरण-

(क) संभ्रांत महिला की भाँति वे प्रतीत होती थीं। 

(ख) माँ और दादी, मौसी और मामी की गोद की तरह उनकी धारा में डुबकियाँ लगाया करता।

• अन्य पाठों से ऐसे पाँच तुलनात्मक प्रयोग निकालकर कक्षा में सुनाइए और उन सुंदर प्रयोगों को कॉपी में भी लिखिए।

उत्तर: (अन्य पाठों से)

1. लाल किरण-सी चोंच खोल, चुगते तारक-अनार के दाने।

2. उन्होंने संदूक खोलकर एक चमकती-सी चीज़ निकाली।

3. सागर की हिलोर की भाँति उसका यह मादक गान गली भर के मकानों में इस ओर से उस ओर तक, लहराता हुआ पहुँचता और खिलौने वाला आगे बढ़ जाता।

4. इन्हें देखकर तो ऐसा लग रहा है, मानो बहुत सी छोटी-छोटी बालूशाही रख दी गई हों।

5. यह स्थिति चित्रा जैसी अभिमानिनी मार्जारी के लिए असह्य ही कही जाएगी।

प्रश्न 2. निर्जीव वस्तुओं को मानव-संबंधी नाम देने से निर्जीव वस्तुएँ भी मानो जीवित हो उठती हैं । लेखक ने इस पाठ में कई स्थानों पर ऐसे प्रयोग किए हैं; जैसे- 

(क) परंतु इस बार जब मैं हिमालय के कंधे पर चढ़ा तो वे कुछ और रूप में सामने थीं।

(ख) काका कालेलकर ने नदियों को लोकमाता कहा है। 

उत्तर: पाठ से अन्य उदाहरण

– नदियाँ संभ्रांत महिला की भाँति प्रतीत होती थीं।

– इन बेटियों की बाललीला देखकर …….।

– माँ-बाप की गोद में नंग-धड़ंग होकर खेलने वाली इन बालिकाओं को रूप …….।

– बूढ़े हिमालय की गोद में बच्चियाँ बनकर ये कैसे खेला करती हैं।

– हिमालय को ससुर और समुद्र को उसका दामाद कहने में कुछ भी झिझक नहीं होती है।

प्रश्न 3. पिछली कक्षा में आप विशेषण और उसके भेदों से परिचय प्राप्त कर चुके हैं। नीचे संज्ञा (विशेष्य) और विशेषण का मिलान कीजिए-

विशेषणविशेष्य
संभ्रांत वर्षा
चंचलजंगल
समतलमहिला
घनानदियाँ
मूसलाधारआंगन

उत्तर: 

विशेषणविशेष्य
संभ्रांत महिला
चंचलनदियाँ
समतलआँगन
घनाजंगल
मूसलाधारवर्षा

प्रश्न 4. द्वंद्व समास के दोनों पद प्रधान होते हैं। इस समास में ‘और’ शब्द का लोप हो जाता है; जैसे- राजा-रानी द्वंद्व समास है जिसका अर्थ है राजा और रानी। पाठ में कई स्थानों पर द्वंद्व समासों का प्रयोग किया गया है । द्वंद्व समास को खोज कर वर्णमाला क्रम (शब्द कोश- शैली) से लिखिए।

उत्तर: द्वंद्व समास- 

उछलना-कूदना, नंग-धड़ंग, दुबली-पतली, माँ-बाप।

प्रश्न 5. नदी को उल्टा लिखने से ‘दीन’ होता है जिसका अर्थ होता है-गरीब। आप भी पाँच ऐसे शब्द लिखिए जिसे उल्टा लिखने पर सार्थक शब्द बन जाए। प्रत्येक शब्द के आगे संज्ञा का नाम भी लिखो जैसे- नदी- दीन (भाववाचक संज्ञा)

उत्तर: धारा: राधा (व्यक्तिवाचक संज्ञा)

जाता: ताजा (विशेषण-गुणवाचक)

नामी: मीना (व्यक्तिवाचक संज्ञा)

लाल: लला (जातिवाचक संज्ञा)

राखी: खीरा (जातिवाचक संज्ञा)

प्रश्न 6. समय के साथ भाषा बदलती है, शब्द बदलते हैं और उनके रूप बदलते हैं, जैसे- बेतवा नदी के नाम का दूसरा रूप ‘वेत्रवती’ है। नीचे दिए शब्दों में से ढूँढ़ कर इन नामों के अन्य रूप लिखिए-

सतलुजरोपड़झेलम
चिनाबअजमेर बनारस
विपाशावितस्ता
रूपपुरशतद्रुम
अयजमेरुवाराणसी

उत्तर: 

सतलुजशतद्रुम
झेलमवितस्ता
व्यासविपाशा
रोपड़रूपपुर
अजमेरअजयमेरु
बनारसवाराणसी

प्रश्न 7. “उनके ख्याल में शायद ही यह बात आ सके कि बूढ़े हिमालय की गोद में बच्चियाँ बन कर ये कैसे खेला करती है?”

• उपर्युक्त पंक्ति में ‘ही’ के प्रयोग की ओर ध्यान दीजिए। ‘ही’ वाला वाक्य नकारात्मक अर्थ रहा है। इसीलिए ‘ही’ वाले वाक्य में कही गई बात को हम ऐसे भी कह सकते हैं। ‘उनके ख्याल में शायद यह बात न आ सके।’ 

उत्तर: ‘ही’ के प्रयोग वाले तीन वाक्य-

1. वह शायद ही यह काम पूरा करे।

2. मेरे ध्यान में शायद ही तुम्हारा खयाल आए।

3. मैं ही बचा हूँ इस काम के लिए।

• इसी प्रकार नकारात्मक प्रश्नवाचक वाक्य कई बार ‘नहीं’ के अर्थ में इस्तेमाल नहीं होते हैं; जैसे-महात्मा गाँधी को कौन नहीं जानता ? दोनों प्रकार के वाक्यों जैसे तीन-तीन उदाहरण सोचें और इस दृष्टि से उनका विश्लेषण करें।

उत्तर: ‘नहीं’ के प्रयोग वाले तीन वाक्य-

1. बाबा रामदेव को भला कौन नहीं जानता।

2. क्या यह बात मैं नहीं जानता?

3. क्या वह इस पुस्तक को समझ नहीं सकता?

कुछ करने को: 

– लिखो – नदी की आत्मकथा।

– एक पर्वत का चित्र बनाकर उससे गंगा नदी निकलती हुई दिखाओ जो समतल मैदान तक आ गई हो।

उत्तर: छात्र-छात्री स्वयं करें।

परीक्षोपयोगी अन्य आवश्यक प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पी प्रश्न

1. ‘हिमालयी की बेटियाँ’ पाठ और लेखक का नाम इनमें से कौन-सा है?

(क) शिवप्रसाद सिंह।

(ख) नागार्जुन।

(ग) यतीश अग्रवाल।

(घ) भवानी प्रसाद मिश्र। 

उत्तर: (ख) नागार्जुन।

2. लेखक ने किन्हें दूर से देखा था?

(क) हिमालय पर्वत को।

(ख) हिमालय की चोटियों को।

(ग) हिमालय से निकलने वाली नदियों को।

(घ) हिमालय के समतल मैदानों को।

उत्तर: (ग) हिमालय से निकलने वाली नदियों को।

3. बेतवा नदी को किसकी प्रेयसी के रूप में चित्रित किया गया है?

(क) यक्ष की।

(ख) कालिदास की।

(ग) मेघदूत की।

(घ) हिमालय की।

उत्तर: (ग) मेघदूत की।

4. लेखक को नदियाँ कहाँ अठखेलियाँ करती हुई दिखाई पड़ती हैं? 

(क) हिमालय के मैदानी इलाकों में।

(ख) हिमालय की गोद में।

(ग) सागर की गोद में।

(घ) घाटियों की गोद में।

उत्तर: (ख) हिमालय की गोद में।

5. लेखक ने नदियों और हिमालय का क्या रिश्ता कहा है?

(क) पिता-पुत्र का।

(ख) पिता-पुत्रियों का।

(ग) माँ-बेटे का।

(घ) भाई-बहन का।

उत्तर: (ख) पिता-पुत्रियों का।

6. लेखक किस नदी के किनारे बैठा था?

(क) गोदावरी।

(ख) सतलुज। 

(ग) गंगा।

(घ) यमुना।

उत्तर: (ख) सतलुज।

7. ‘हिमालय की बेटियाँ’ किन्हें कहा गया है? 

(क) वनस्पतियों को।

(ख) बर्फ की चादर को।

(ग) चोटियों को।

(घ) नदियों को।

उत्तर: (घ) नदियों को।

8. लेखक ने मैदानी इलाकों की नदियों को किसके समान बताया है?

(क) नवयौवना के समान।

(ख) बालिका के समान।

(ग) संभ्रांत महिला के समान।

(घ) वृद्धा के समान।

उत्तर: (ग) संभ्रांत महिला के समान।

9. मैदानों में आते-आते नदियों को _________ गायब हो जाती है।

(क) रेत एवं मिट्टी।

(ख) कष्ट एवं पीड़ा।

(ग) उल्लास एवं चंचलता।

(घ) प्रवाह एवं शीतलता।

उत्तर: (ग) उल्लास एवं चंचलता।

10. लेखक को लगता है कि नदियाँ अपने महान पिता का विराट प्रेम पाकर भी _________ हैं।

(क) संतुष्ट।

(ग) अतृप्त।

(ख) तृप्त।

(घ) प्रसन्न।

उत्तर: (ग) अतृप्त।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. लेखक ने इस पाठ में किनका वर्णन किया है? 

उत्तर: लेखक ने इस पाठ में हिमालय से निकलने वाली नदियों का वर्णन किया है।

प्रश्न 2. हिमालय पर्वत पर नदियों का रूप कैसा दिखाई देता है?

उत्तर: हिमालय पर्वत पर नदियों का रूप दुबला-पतला दिखाई देता है।

प्रश्न 3. नदियाँ कहाँ भागी जाती हैं?

उत्तर: नदियाँ समुद्र की ओर भागी जाती हैं।

प्रश्न 4. कौन-सी दो नदियाँ महानदों के रूप में समुद्र की ओर प्रवाहित होती रही हैं?

उत्तर: सिंधु और ब्रह्मपुत्र।

प्रश्न 5. हिमालय और समुद्र में क्या रिश्ता है?

उत्तर: हिमालय और समुद्र में ससुर और दामाद का रिश्ता है।

प्रश्न 6. काका कालेलकर ने नदियों को क्या कहा है?

उत्तर: काका कालेलकर ने नदियों को ‘लोकमाता’ कहा है। 

प्रश्न 7. नदियों की बाल-लीला कहाँ देखने को मिलती है?

उत्तर: नदियों की बाल लीला हिमालय की पहाड़ियों, हरी-भरी घाटियों तथा गहरी गुफाओं में देखने को मिलती हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. लेखक ने किन्हें हिमालय की बेटियाँ कहा है और क्यों?

उत्तर: लेखक ने हिमालय से निकलने वाली नदियों को

हिमालय की बेटियाँ कहा है। ये नदियाँ हिमालय से निकली हैं तथा इनका बचपन हिमालय की गोद में ही बीता है। अतः ये उसी की बेटियाँ हैं। 

प्रश्न 2. हिमालय पर चढ़कर लेखक ने नदियों का क्या रूप देखा?

उत्तर: जब लेखक हिमालय के कंधे पर चढ़ा तब उसने देखा कि वहाँ ये नदियाँ दुबले-पतले रूप में थीं। वहाँ ये नदियाँ उछलती-कूदती, हँसती थीं। मैदान में उतरकर ये विशाल रूप धारण कर लेती हैं।

प्रश्न 3. नदियाँ कहाँ भागी जाती हैं?

उत्तर: नदियाँ पर्वत की गोद से निकल कर मैदानों (समतल) की ओर भागी जाती हैं, पर यहीं इनकी भाग-दौड़ समाप्त नहीं हो जाती। ये समुद्र से मिलने के लिए उसी की ओर भागी चली जाती हैं।

प्रश्न 4. सिंधु और ब्रह्मपुत्र क्या हैं?

उत्तर: सिंधु और ब्रह्मपुत्र दो महानद हैं। इन्हें नदी कहा जाता है। ये स्वयं में कुछ नहीं हैं। दयालु हिमालय के पिघले हुए दिल की एक-एक बूँद को इकट्ठा करके इन दोनों नदियों में जल-दान किया है। ये दोनों समुद्र की ओर प्रवाहित होती हैं।

प्रश्न 5. कालिदास के विरही यक्ष क्या कहा था?

उत्तर: विरही यक्ष ने मेघदूत से कहा था कि वेत्रवती (बेतवा) नदी को प्रेम का प्रतिदान देते जाना। तुम्हारी प्रेयसी तुम्हें पाकर बहुत प्रसन्न होगी।

प्रश्न 6. समुद्र को सौभाग्यशाली क्यों कहा गया है?

उत्तर: समुद्र को सौभाग्यशाली इसलिए कहा गया है, क्योंकि हिमालय के हृदय से निकली उसकी दो प्रिय पुत्रियाँ सिंधु और ब्रह्मपुत्र को धारण करने का सौभाग्य समुद्र को ही प्राप्त हुआ।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. हिमालय से निकलने वाली प्रमुख नदियों के नाम लिखिए तथा बताइए कि लेखक ने उनके अस्तित्व के विषय में क्या विचार किया है?

उत्तर: हिमालय से निकलने वाली प्रमुख नदियों के नाम हैं- सिंधु, ब्रह्मपुत्र, रावी, सतलुज, व्यास, चेनाब, झेलम, काबुल, कपिशा, गंगा, यमुना, सरयू, गंडक, कोसी आदि। लेखक का विचार है कि इन नदियों का अपना कोई अस्तित्व नहीं है। ये वास्तव में हिमालय के कृपा पात्र हैं जिसके पिघले हुए दिल की बूँदे हैं। इन बूँदों ने एकत्रित होकर नदी का आकार ले लिया है। और समुद्र की ओर बहती हुई समुद्र में जाकर मिलती हैं। निष्कर्ष में लेखक का विचार है कि हिमालय पर जमी बर्फ के पिघलने से ही इन नदियों का उद्गम होता है। इसलिए हिमालय के बिना नदियों का कोई अस्तित्व नहीं है।

प्रश्न 2. काका कालेलकर ने नदियों को लोकमाता क्यों कहा है?

उत्तर: मानव जाति के विकास में नदियों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। यह जल प्रदान कर सदियों से पूजनीय व मनुष्य हेतु कल्याणकारी रही हैं। नदियाँ लोगों के द्वारा दूषित किया गया जल जैसे-कपड़े धोना, पशु नहलाना व अन्य कूड़ा-करकट भी अपने साथ ही लेकर जाती हैं। फिर भी नदियाँ हमारे लिए कल्याण ही करती हैं। मानव के आधुनिकीकरण में जैसे बिजली बनाना, सिंचाई के नवीन साधनों आदि में इन्होंने पूरा सहयोग दिया है। मानव ही नहीं अपितु पशु-पक्षी, पेड़-पौधों आदि के लिए जल भी उपलब्ध कराया है। इसलिए हम कह सकते हैं। कि काका कालेलकर का नदियों को लोकमाता की संज्ञा देना कोई अतिशयोक्ति नहीं।

प्रश्न 3. इस पाठ का उद्देश्य क्या है? साथ ही लेखक द्वारा लिखी कविता का सार लिखिए।

उत्तर: इस पाठ का उद्देश्य लेखक द्वारा हिमालय से निकलने वाली नदियों के नाम, उनके सदैव परिवर्तन होने वाले पल के रूप से परिचित करवाना है। हिमालय को पिता, नदियों को पुत्रियाँ व सागर को उनका प्रेमी माना गया है। लेखक ने यह बताना चाहा है कि सिंधु और ब्रह्मपुत्र ऐसी वृहत्त नदियाँ हैं जो हिमालय के हृदय से पिघली बूँदों से अपना अस्तित्व पाती हैं। इसे महानदी भी कहते हैं।

लेखक द्वारा लिखी कविता में सतलुज बहन का गुणगान किया गया है। उसकी जयकार करते हुए लेखक लिखता है कि तुमसे मेरा हृदय प्रसन्न हुआ और सारी खुमारी हट गई। मैं तुम पर बलिहारी हूँ तुम हिमालय की पुत्री हो। तुम्हारे पिता हिमालय तुम्हारे लिए चिंतित हैं। वे प्रकृति के प्रांगण में अपनी अद्भुत छटा बिखेर रहे हैं। हे सतलुज बहन ! तुम्हारी जय हो।

मूल्यपरक प्रश्न

प्रश्न. आप नदी को किस रूप में लेते हैं? उनकी शुद्धता के लिए क्या प्रयास करते हैं या कर सकते हैं?

उत्तर: हम नदियों को माँ के रूप में (पूज्य भाव) लेते हैं। नदियाँ हमारा पालन-पोषण करती हैं। नदियों के जल को शुद्ध रखा जाना चाहिए। इसके लिए हम यह प्रयास करते हैं कि नदियों में किसी भी प्रकार की गंदगी न डाली जाए। हम नदी तट पर कपड़े धोने, मूर्तियों को प्रवाहित करने तथा नालों की गंदगी डालने का सख्त विरोध करते हैं। हम नदी के स्वच्छता अभियान में सक्रिय रूप से योगदान करते हैं।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top