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NCERT Class 12 Political Science Chapter 6 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन
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पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन
Chapter: 6
समकालीन विश्व राजनीति |
1. पर्यावरण के प्रति बढ़ते सरोकारों का क्या कारण है? निम्नलिखित में सबसे बेहतर विकल्प चुनें।
(क) विकसित देश प्रकृति की रक्षा को लेकर चिंतित हैं।
(ख) पर्यावरण की सुरक्षा मूलवासी लोगों और प्राकृतिक पर्यावासों के लिए जरूरी है।
(ग) मानवीय गतिविधियों से पर्यावरण को व्यापक नुकसान हुआ है और यह नुकसान ख़तरे की हद तक पहुँच गया है।
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर: (ग) मानवीय गतिविधियों से पर्यावरण को व्यापक नुकसान हुआ है और यह नुकसान ख़तरे की हद तक पहुँच गया है।
2. निम्नलिखित कथनों में प्रत्येक के आगे सही या ग़लत का चिह्न लगायें। ये कथन पृथ्वी सम्मेलन के बारे में हैं-
(क) इसमें 170 देश, हजारों स्वयंसेवी संगठन तथा अनेक बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भाग लिया।
उत्तर: सही।
(ख) यह सम्मेलन संयुक्त राष्ट्रसंघ के तत्त्वावधान में हुआ।
उत्तर: सही।
(ग) वैश्विक पर्यावरणीय मुद्दों ने पहली बार राजनीतिक धरातल पर ठोस आकार ग्रहण किया।
उत्तर: सही।
(घ) यह महासम्मेलनी बैठक थी।
उत्तर: गलत।
3. ‘विश्व को साझी विरासत’ के बारे में निम्नलिखित में कौन-से कथन सही हैं?
(क) धरती का वायुमंडल, अंटार्कटिका, समुद्री सतह और बाहरी अंतरिक्ष को ‘विश्व की साझी विरासत’ माना जाता है।
(ख) ‘विश्व की साझी विरासत’ किसी राज्य के संप्रभु क्षेत्राधिकार में नहीं आते।
(ग) ‘विश्व की साझी विरासत’ के प्रबंधन के सवाल पर उत्तरी और दक्षिणी देशों के बीच मतभेद है।
(घ) उत्तरी गोलार्द्ध के देश विश्व को साझी विरासत’ को बचाने के लिए दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों से कहीं ज्यादा चिंतित हैं।
उत्तर: (क), (ख) और (ग)।
4. रियो सम्मेलन के क्या परिणाम हुए?
उत्तर: 1992 में रियो डी जेनेरो में हुआ यह सम्मेलन पृथ्वी सम्मेलन (Earth Summit) कहलाया। इसमें 170 देशों ने भाग लिया। सम्मेलन में “सतत विकास” (Sustainable Development) की अवधारणा को अपनाया गया और पर्यावरण संरक्षण के लिए रियो सम्मेलन का एक प्रमुख परिणाम एजेंडा 21 था, जो सतत विकास के लिए एक व्यापक कार्रवाई योजना है। यह योजना पर्यावरण, सामाजिक और आर्थिक विकास के बीच संतुलन स्थापित करने के लिए एक रूपरेखा प्रदान करती है
5. ‘विश्व को साझी विरासत’ का क्या अर्थ है? इसका दहन और प्रदूषण कैसे होता है?
उत्तर: ‘विश्व की साझी विरासत’ से आशय उन क्षेत्रों से है जो किसी एक देश के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा सामूहिक रूप से प्रबंधित होते हैं, जैसे वायुमंडल, अंटार्कटिका, समुद्री सतह और बाह्य अंतरिक्ष। इनका दहन और प्रदूषण मानवीय गतिविधियों से होता है—जैसे वनों की कटाई, जीवाश्म ईंधनों का जलना, समुद्री तेल रिसाव, आदि—जिससे पूरी पृथ्वी प्रभावित होती है।
6. ‘साझी परंतु अलग-अलग जिम्मेदारियों से क्या अभिप्राय है? हम इस विचार को कैसे लागू कर सकते?
उत्तर: इसका अर्थ है कि पर्यावरण की सुरक्षा की जिम्मेदारी सबकी है, लेकिन प्रत्येक देश की जिम्मेदारी उसकी विकास स्थिति के अनुसार होनी चाहिए। देशों का तर्क है कि विश्व में पारिस्थितिकी को नुकसान अधिकांश विकसित देशों के औद्योगिक विकास से पहुँचा है। यदि विकसित देशों ने पर्यावरण को ज्यादा नुकसान पहुँचाया है तो उन्हें इस नुकसान की भरपाई की जिम्मेदारी भी ज्यादा उठानी चाहिए। इसके अलावा, विकासशील देश अभी औद्योगीकरण की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं तो अंक8 जिम्मेदारी है कि पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाएं इस प्रकार अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण कानून के निर्माण, प्रयोग और व्याख्या में विकासशील देशों की विशिष्ट जरूरतों का ध्यान रखा जाना चाहिए। सन् 1992 में हुए पृथ्वी सम्मेलन में इस तर्क को मान लिया गया और इसे ‘साझी परंतु अलग-अलग जिम्मेदारियाँ’ का सिद्धांत कहा गया।
7. वैश्विक पर्यावरण की सुरक्षा से जुड़े मुद्दे 1990 के दशक से विभिन्न देशों के प्राथमिक सरोकार क्यों बन गए हैं?
उत्तर: 1990 के दशक से वैश्विक पर्यावरण की समस्याएँ जैसे जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता की हानि, और प्रदूषण बहुत तीव्र गति से बढ़ने लगीं हैं और साथ ही दुनिया में जनसंख्या भी बढ़ रही है लेकिन कृषि योग्य भूमि स्थिर है। जल स्रोत प्रदूषित हो रहे हैं और जल की उपलब्धता घट रही है। भूमि की उर्वरता घट रही है और खाद्यान्न उत्पादन पीछे रह गया है। वनों की कटाई से जैव विविधता नष्ट हो रही है और जलवायु परिवर्तन का खतरा बढ़ गया है। फ्लोरोकार्बन और ग्रीनहाउस गैसें ओजोन परत और जलवायु पर बुरा प्रभाव डाल रही हैं, जिससे ग्लोबल वार्मिंग का खतरा है। वैज्ञानिक प्रमाणों और संयुक्त राष्ट्र जैसे संगठनों के प्रयासों (जैसे सन् 1992 में संयुक्त राष्ट्र के तत्त्वावधान में विश्व पर्यावरण सम्मेलन का आयोजन किया गया। विशेष रूप से इस सम्मेलन के बाद पर्यावरण व विकास से जुड़े विभिन्न पहलुओं, यथा-टिकाऊ विकास, जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग, जैविक विविधता, मूल देशी जनता के अधिकार व अलग-अलग भूमिका की धारणा पर विस्तार से चर्चा की गई। उक्त पृष्ठभूमि में पर्यावरण का मुद्दा विभिन्न राष्ट्रों के लिए प्रथम सरोकार के रूप में उभरकर सामने आया।
8. पृथ्वी को बचाने के लिए जरूरी है कि विभिन्न देश सुलह और सहकार की नीति अपनाएँ। पर्यावरण के सवाल पर उत्तरी और दक्षिणी देशों के बीच जारी की रोशनी में इस कथन की पुष्टि करें।
उत्तर: पृथ्वी को बचाने के लिए विभिन्न देश सुलह और सहकार की निति अपनाएँ क्योंकि पृथ्वी केवल किसी एक देश की नहीं, बल्कि पूरे विश्व और मानवता की साझी धरोहर है। पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं के समाधान में विकसित देश (उत्तरी गोलार्द्ध) चाहते हैं कि विकासशील देश (दक्षिणी गोलार्द्ध) भी समान रूप से भागीदारी निभाएँ। जबकि हकीकत यह है कि औद्योगीकरण के कारण सबसे अधिक प्रदूषण विकसित देशों ने फैलाया है और विकासशील देश अभी अपने विकास की राह पर हैं। 1992 में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय रियो सम्मेलन में यह टकराव स्पष्ट रूप से सामने आया। इसीलिए सम्मेलन में एक संतुलित प्रस्ताव लाया गया, जिसमें यह स्वीकार किया गया कि पर्यावरण की सुरक्षा सभी देशों की सामूहिक जिम्मेदारी है, लेकिन इसमें योगदान उनकी क्षमताओं के अनुसार अलग-अलग होगा। अर्थात् विकसित देश संसाधनों व प्रौद्योगिकी के माध्यम से विश्व पर्यावरण की सुरक्षा में अधिक योगदान देंगे। यह स्पष्ट करता है कि सुलह और सहयोग के बिना पृथ्वी को बचाना संभव नहीं है।
9. विभिन्न देशों के सामने सबसे गंभीर चुनौती वैश्विक पर्यावरण को आगे कोई नुकसान पहुंचाए बगैर आर्थिक विकास करने की है। यह कैसे हो सकता है? कुछ उदाहरण के साथ समझाएं।
उत्तर: पर्यावरणीय समस्याओं से निपटने में केवल सरकारों की भूमिका ही नहीं रही, बल्कि विश्व के सारे पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने भी अहम योगदान दिया है। इनमें से कई अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, जबकि अधिकांश स्थानीय स्तर पर सक्रिय हैं। मलेशिया, ब्राज़ील, भारत जैसे दक्षिणी देशों में बीते तीन दशकों से वन संरक्षण के आंदोलन चल रहे हैं, फिर भी यहां वनों की कटाई तेजी से चल रही है। वहीं, खनिज उद्योग ने भूमिगत संसाधनों के अत्यधिक दोहन, प्रदूषण के कारण अनेक परेशानियां झेली हैं। वैश्वीकरण की वजह से इन उद्योगों का विस्तार हुआ है, जिससे पर्यावरणीय संकट और गहराए में हैं।
उदाहरण:
नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग (जैसे सौर और पवन ऊर्जा)
हरित प्रौद्योगिकियाँ (जैसे कम उत्सर्जन वाले वाहन, ऊर्जा कुशल उपकरण)
वन संरक्षण और पुनर्वनीकरण भारत ने National Solar Mission और Paris Agreement 2016 के तहत कई प्रयास किए हैं, जैसे कार्बन उत्सर्जन में कटौती और साफ ऊर्जा का प्रसार। इससे आर्थिक विकास भी होता है और पर्यावरण की रक्षा भी।

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