NCERT Class 12 Political Science Chapter 15 भारतीय राजनीति: नए बदलाव

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NCERT Class 12 Political Science Chapter 15 भारतीय राजनीति: नए बदलाव

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Chapter: 15

स्वतंत्र भारत में राजनीति

1. उन्नी-मुन्नी ने अखबार की कुछ कतरनों को बिखेर दिया है। आप इन्हें कालक्रम के अनुसार व्यवस्थित करें:

(क) मंडल आयोग की सिफारिश को लागू करना।

(ख) जनता दल का गठन।

(ग) राम जन्मभूमि पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय।

(घ) इंदिरा गाँधी की हत्या।

(ङ) राजग सरकार का गठन।

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(च) संप्रग सरकार का गठन।

उत्तर: (घ) इन्दिरा गांधी की हत्या (1984)

(ख) जनता दल का गठन (1988)

(क) मण्डल आयोग की सिफारिशों और आरक्षण विरोधी हंगामा (1990)

(ग) बाबरी मस्जिद का विध्वंस (1992)

(ङ) राजग सरकार का गठन (1999)

(छ) गोधरा की दुर्घटना और उसके परिणाम (2002)

(च) संप्रग सरकार का गठन (2004)।

2. निम्नलिखित में मेल करें:

(क) सर्वानुमति की राजनीति(i) शाहबानो मामला
(ख) जाति आधारित दल(ii) अन्य पिछड़ा वर्ग का उभार
(ग) पर्सनल लॉ और लैंगिक न्याय(iii) गठबंधन सरकार
(घ) क्षेत्रीय पार्टियों की बढ़ती ताकत(iv) आर्थिक नीतियों पर सहमति

उत्तर: 

(क) सर्वानुमति की राजनीति(iv) आर्थिक नीतियों पर सहमति
(ख) जाति आधारित दल(ii) अन्य पिछड़ा वर्ग का उभार
(ग) पर्सनल लॉ और लैंगिक न्याय(i) शाहबानो मामला
(घ) क्षेत्रीय पार्टियों की बढ़ती ताकत(iii) गठबंधन सरकार

3. 1989 के बाद की अवधि में भारतीय राजनीति के मुख्य मुद्दे क्या रहे हैं? इन मुद्दों से राजनीतिक दलों के आपसी जुड़ाव के क्या रूप सामने आए हैं?

उत्तर: सन् 1989 के बाद की अवधि में भारतीय राजनीति के मुख्य मुद्दे है-

(i) 1989 के चुनाव में कांग्रेस की भारी हार हुई। कांग्रेस को महज 197 सीटें लोकसभा में मिलीं। इसके साथ ही’ कांग्रेस प्रणाली’ का वर्चस्व समाप्त हो गया।

(ii) देश की राजनीति में मंडल मुद्दे का उदय हुआ। इसने सन् 1989 के पश्चात् की राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। सभी दल वोटों की राजनीति करने लगे, अतः अन्य पिछड़े वर्ग के लोगों को आरक्षण दिए जाने के मामले में अधिकांश दलों में परस्पर जुड़ाव हुआ।

(iii) धार्मिक राजनीति का प्रभाव अयोध्या विवाद और राम जन्मभूमि आंदोलन के कारण भाजपा का उभार हुआ।

(iv) दिसम्बर 1992 में अयोध्या में स्थित एक विवादित ढाँचे को गिरा दिया गया। इस घटना के बाद भारतीय राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्षता को लेकर देशभर में गहन बहस छिड़ गई। यह घटनाक्रम भारतीय जनता पार्टी के उभार और हिन्दुत्व आधारित राजनीति के प्रसार से गहरे रूप से जुड़ा हुआ था।

4. “गठबंधन की राजनीति के इस नए दौर में राजनीतिक दल विचारधारा को आधार मानकर गठजोड़ नहीं करते हैं।” इस कथन के पक्ष या विपक्ष में आप कौन-से तर्क देंगे।

उत्तर: गठबंधन की राजनीति के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं-

(i) गठबंधन ज्यादा “संख्यात्मक बहुमत” पर आधारित होता है, न कि साझा विचारधारा पर।

(ii) इसमें क्षेत्रीय दलों के शामिल होने से स्थानीय मुद्दों को महत्त्व देना जरूरी हो जाता है।

(iii) गठबंधन की सरकार में किसी एक दल की मनमानी नहीं चलती है।

गठबंधन की राजनीति के विपक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं-

(i) विचारधारा के बदले निजी स्वार्थों को महत्त्व देने के कारण सरकार की अस्थिरता बनी रहती है।

(ii) कई दल मुद्दों पर आधारित गठजोड़ करते हैं (जैसे सामाजिक न्याय, क्षेत्रीय स्वायत्तता)।

(iii) अधिकांश राजनीतिक दल राष्ट्रीय विषयों के बदले स्थानीय मुद्दों को महत्व देते हैं।

5. आपातकाल के बाद के दौर में भाजपा एक महत्त्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरी। इस दौर में इस पार्टी के विकास क्रम का उल्लेख करें।

उत्तर: 1989 के बाद भाजपा के चुनावी प्रदर्शन में महत्वपूर्ण उतार-चढ़ाव देखने को मिले। 1989 में वी.पी. सिंह के नेतृत्व में राष्ट्रीय मोर्चा ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर रखने के लिए वाम मोर्चा और भाजपा के बाहरी समर्थन से सरकार बनाई। लेकिन मंडल आयोग की सिफारिशों के कार्यान्वयन से असहमति के कारण भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया, जिससे नवंबर 1990 में सरकार गिर गई।

इसके बाद 1996 में भाजपा ने अल्पमत सरकार बनाई, परंतु विश्वास मत में बहुमत प्राप्त न कर पाने के कारण यह सरकार भी अल्पकालिक रही।

1998 में भाजपा ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का गठन किया और मार्च 1998 से अक्टूबर 1999 तक गठबंधन सरकार चलाई, जिसने पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर एक सशक्त राजनीतिक शक्ति के रूप में स्थापित कर दिया।

6. कांग्रेस के प्रभुत्व का दौर समाप्त हो गया है। इसके बावजूद देश की राजनीति पर कांग्रेस का असर लगातार कायम है। क्या आप इस बात से सहमत हैं? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिए।

उत्तर: मैं  इस कथन से सहमत हूंँ क्योंकि कांग्रेस अब पहले जैसी चुनावी ताकत नहीं रही, इसके बावजूद देश की राजनीति पर कांग्रेस का असर लगातार कायम है क्योंकि अभी भी कुछ राज्यों में कांग्रेस की सत्ता कायम है। कई क्षेत्रीय और गठबंधन सरकारों में कांग्रेस की भागीदारी रही है। देश की राजनीति अब भी कांग्रेस के खिलाफ या समर्थन में धुरी पर घूमती है। 1975 से 1977 तक आपातकाल की स्थिति रही लेकिन कांग्रेस को सफलता मिली। 1989 से 1991 तक फिर कांग्रेस सबसे बड़ी विरोधी दल रही। 1991 के मध्यावधि चुनाव में फिर से कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की। 1996 में वामपंथियों ने गैर- कांग्रेसी सरकार का समर्थन किया क्योंकि कांग्रेस और वाम दोनों ही भाजपा को सत्ता से बाहर रखना चाहते थे। 2004 से शुरू होकर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार का नेतृत्व कांग्रेस ने किया। जुलाई 2007 और 2012 में हुए राष्ट्रपति चुनावों में भी कांग्रेस की महत्वपूर्ण भूमिका रही। इससे यह स्पष्ट होता है कि भले ही कांग्रेस का एकछत्र प्रभुत्व समाप्त हो चुका है, लेकिन भारतीय राजनीति में उसका प्रभाव अब भी बना हुआ है।

7. अनेक लोग सोचते हैं कि सफल लोकतंत्र के लिए दो-दलीय व्यवस्था जरूरी है। पिछले तीस सालों के भारतीय अनुभवों को आधार बनाकर एक लेख लिखिए और इसमें बताइए कि भारत की मौजूदा बहुदलीय व्यवस्था के क्या फ़ायदे हैं।

उत्तर: भारत में बहुदलीय व्यवस्था है। कुछ विचारकों का मानना है कि यह प्रणाली लोकतंत्र में अस्थिरता उत्पन्न कर सकती है, इसलिए भारत में दो-दलीय व्यवस्था आवश्यक है। लेकिन पिछले वर्षों के अनुभवों से स्पष्ट होता है कि बहुदलीय व्यवस्था भारतीय लोकतंत्र के लिए लाभकारी रही है। इस प्रणाली के माध्यम से विभिन्न वर्गों, समुदायों और क्षेत्रों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व का अवसर मिला है, जिससे लोकतंत्र अधिक समावेशी और विविधतापूर्ण बना है। मतदाताओं को वोट देने के लिए अधिक स्वतंत्रता मिलती है। बहुदलीय होने के कारण राष्ट्र दो गुटों में सिमट कर नहीं रह जाता। बहुदलीय व्यवस्था के अंतर्गत प्रांतीय दल तथा राष्ट्रीय दल का भेद अब लगातार कम होता जा रहा है। अनेक राजनीतिक दल राजनीतिक कार्यों के साथ-साथ सामाजिक सुधार के कार्य भी करते हैं।

8. निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देंः भारत की दलगत राजनीति ने कई चुनौतियों का सामना किया है। कांग्रेस-प्रणाली ने अपना खात्मा ही नहीं किया, बल्कि कांग्रेस के जमावड़े के बिखर जाने से आत्म-प्रतिनिधित्व की नयी प्रवृत्ति का भी जोर बढ़ा। इससे दलगत व्यवस्था और विभिन्न हितों की समाई करने की इसकी क्षमता पर भी सवाल उठे। राजव्यवस्था के सामने एक महत्त्वूपर्ण काम एक ऐसी दलगत व्यवस्था खड़ी करने अथवा राजनीतिक दलों को गढ़ने की है, जो कारगर तरीके से विभिन्न हितों को मुखर और एकजुट करें..

–जोया हसन

(क) इस अध्याय को पढ़ने के बाद क्या आप दलगत व्यवस्था की चुनौतियों की सूची बना सकते हैं?

उत्तर: जवाहर लाल नेहरू की तुलना में उनकी पुत्री और तीसरी प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने कांग्रेस पार्टी को बहुत ज्यादा केन्द्रीयकृत और अलोकतांत्रिक पार्टी संगठन के रूप में बदल दिया। नेहरू के काल में यह पार्टी संघीय लोकतांत्रिक और विभिन्न विचारधाराओं को मानने वाले कांग्रेसी नेताओं और यहाँ तक कि विरोधियों को साथ लेकर चलने वाले एक मंच के रूप में जानी जाती थी।

(ख) विभिन्न हितों का समाहार और उनमें एकजुटता का होना क्यों जरूरी है।

उत्तर: किसी भी लोकतंत्र में विभिन्न वर्गों, समुदायों और क्षेत्रों के हित होते हैं। यदि इन हितों को दलगत व्यवस्था के ज़रिए मुखर और एकजुट नहीं किया गया, तो समाज में असंतोष, विघटन और संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। दलों को चाहिए कि वे इन विविध हितों को प्रतिनिधित्व और संवाद के ज़रिए जोड़ें ताकि राष्ट्रीय एकता और लोकतांत्रिक स्थिरता बनी रहे।

(ग) इस अध्याय में आपने अयोध्या विवाद के बारे में पढ़ा। इस विवाद ने भारत के राजनीतिक दलों की समाहार की क्षमता के आगे क्या चुनौती पेश की?

उत्तर: अयोध्या विवाद ने दलगत समाहार की क्षमता को गंभीर चुनौती दी। इस मुद्दे ने धर्म और पहचान की राजनीति को तीव्र कर दिया, जिससे दलों के लिए सभी समुदायों के हितों को संतुलित करना कठिन हो गया। इससे राजनीतिक ध्रुवीकरण बढ़ा और दलों की समावेशी नीतियों पर असर पड़ा। कई दल या तो पूरी तरह से एक पक्ष में खड़े हो गए या निर्णय लेने में असमर्थ रहे, जिससे उनकी समाहार की शक्ति कमजोर हुई।

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