NCERT Class 12 Political Science Chapter 8 राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ

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NCERT Class 12 Political Science Chapter 8 राष्ट्र-निर्माण की चुनौतियाँ

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Chapter: 8

स्वतंत्र भारत में राजनीति

1. भारत-विभाजन के बारे में निम्नलिखित कौन-सा कथन गलत है?

(क) भारत-विभाजन “द्वि-राष्ट्र सिद्धांत” का परिणाम था।

(ख) धर्म के आधार पर दो प्रांतों पंजाब और बंगाल-का बँटवारा हुआ।

(ग) पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान में संगति नहीं थी।

(घ) विभाजन की योजना में यह बात भी शामिल थी कि दोनों देशों के बीच आबादी की अदला-बदली होगी।

उत्तर: (घ) विभाजन की योजना में यह बात भी शामिल थी कि दोनों देशों के बीच आबादी की अदला-बदली होगी।

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2. निम्नलिखित सिद्धांतों के साथ उचित उदाहरणों का मेल करें:

(क) धर्म के आधार पर देश की सीमा का निर्धारण1. पाकिस्तान और बांग्लादेश
(ख) विभिन्न भाषाओं के आधार पर देश की सीमा का निर्धारण2. भारत और पाकिस्तान
(ग) भौगोलिक आधार पर किसी देश के क्षेत्रों का सीमांकन3. झारखंड और छत्तीसगढ़
(घ) किसी देश के भीतर प्रशासनिक और राजनीतिक आधार पर क्षेत्रों का सीमांकन4. हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड

उत्तर: 

(क) धर्म के आधार पर देश की सीमा का निर्धारण2. भारत और पाकिस्तान
(ख) विभिन्न भाषाओं के आधार पर देश की सीमा का निर्धारण1. पाकिस्तान और बांग्लादेश
(ग) भौगोलिक आधार पर किसी देश के क्षेत्रों का सीमांकन4. हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड
(घ) किसी देश के भीतर प्रशासनिक और राजनीतिक आधार पर क्षेत्रों का सीमांकन3. झारखंड और छत्तीसगढ़

3. भारत का कोई समकालीन राजनीतिक नक्शा लीजिए (जिसमें राज्यों की सीमाएँ दिखाई गई हों) और नीचे लिखी रियासतों के स्थान चिह्नित कीजिए-

(क) जूनागढ़।

(ख) मणिपुर।

(ग) मैसूर।

(घ) ग्वालियर।

उत्तर: 

4. नीचे दो तरह की राय लिखी गई है:

विस्मय: रियासतों को भारतीय संघ में मिलाने से इन रियासतों की प्रजा तक लोकतंत्र का विस्तार हुआ।

इंद्रप्रीत: यह बात मैं दावे के साथ नहीं कह सकता। इसमें बलप्रयोग भी हुआ था जबकि लोकतंत्र में आम सहमति से काम लिया जाता है।

देशी रियासतों के विलय और ऊपर के मशविरे के आलोक में इस घटनाक्रम पर आपकी क्या राय है?

उत्तर: देशी रियासतों के विलय से संबंधित उपरोक्त दोनों विचार अपने-अपने स्थान पर सही हैं। देसी रियासतों का विलय प्रायः लोकतांत्रिक तरीके से हुआ क्योंकि सिर्फ चार – पाँच रजवाड़ों को छोड़कर सभी स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व वहीं भारतीय संघ में शामिल हो चुके थे। इनमें से भी कुछ शासक जनमत एवं जनता की भावनाओं की अनदेखी कर रहे थे। विलय से पूर्व अधिकांश रियासतों में शासन अलोकतान्त्रिक रीति से चलाया गया था और रजवाड़ों के शासक अपनी प्रजा को लोकतान्त्रिक अधिकार देने के लिए तैयार नहीं थे। इन रियासतों को भारतीय संघ में मिलाने से यहाँ समान रूप से चुनावी प्रक्रिया क्रियान्वित हुई। इसके विपरीत भारतीय सरकार का रवैया रजवाड़ों के प्रति लचीला था। वह कुछ इलाकों को स्वतंत्रता देने के लिए तैयार थी। अतः विस्मय की यह राय कि रियासतों को भारतीय संघ में मिलाने से इन रियासतों की प्रजा तक लोकतंत्र का विस्तार हुआ, पर्याप्त रूप से सही है।

परंतु देशी रियासतों के विलय के घटनाचक्र पर विस्मय का विचार अधिक सही मालूम पड़ता है। स्वतंत्रता अधिनियम 1947 की घोषणा के अनुसार रजवाड़ों पर ब्रिटिश प्रभुत्व समाप्त हो गया था। इसका अर्थ यह था कि सभी रजवाड़े कानूनी तोर पर स्वतंत्र हो गए। अंग्रेजी राज का यह दृष्टिकोण था कि रजवाड़े भारत अथवा पाकिस्तान में मिलने के लिए स्वतंत्र होंगें या फिर ये अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रख सकते हैं। अधिकांश रजवाड़ों का प्रशासन सुव्यवस्थित ढंग से नहीं चल रहा था। प्रजा अपने लोकतंत्रीय अधिकार चाहती थी। क्योंकि अधिकांश रजवाड़ों में शासन अलोकतंत्रीय ढंग से चलाया जा रहा था। इसलिए रजवाड़ों के लोग भारतीय संघ में शामिल होने के लिए तैयार थे। इस तरह रियासतों के खिलाफ बल प्रयोग अलोकतंत्रीय था लेकिन सरकार की राजनीतिक मजबूरी थी। इस आधार पर इंद्रप्रीत के विचार सही हैं कि लोकतंत्र में आम सहमति से काम किया जाता है।

5. नीचे 1947 के अगस्त के कुछ बयान दिए गए हैं जो अपनी प्रकृति में अत्यंत भिन्न हैं:

आज आपने अपने सर पर काँटों का ताज पहना है। सत्ता का आसन एक बुरी चीज है। इस आसन पर आपको बड़ा सचेत रहना होगा.. आपको और ज्यादा विनम्र और धैर्यवान बनना होगा… अब लगातार आपकी परीक्षा ली जाएगी।

-मोहनदास करमचंद गाँधी

…भारत आज़ादी की जिंदगी के लिए जागेगा… हम पुराने से नए की ओर कदम बढ़ाएँगे… आज दुर्भाग्य के एक दौर का खात्मा होगा और हिंदुस्तान अपने को फिर से पा लेगा… आज हम जो जश्न मना रहे हैं वह एक कदम भर है, संभावनाओं के द्वार खुल रहे हैं…

-जवाहरलाल नेहरू

इन दो बयानों से राष्ट्र निर्माण का जो एजेंडा ध्वनित होता है उसे लिखिए। आपको कौन-सा एजेंडा जँच रहा है और क्यों?

उत्तर: मुझे गांधी जी का एजेंडा अधिक ध्वनित होता है, क्योंकि राष्ट्र निर्माण केवल भौतिक विकास से नहीं, बल्कि नैतिक मूल्यों और ज़िम्मेदार नेतृत्व से ही टिकाऊ और समावेशी बनता है। गांधी जी का दृष्टिकोण गहराई से समाज के हर वर्ग को जोड़ता है और सच्चे लोकतंत्र की नींव रखता है।

भारत की स्वतंत्रता ने हमें कांटों का ताज दिया, जिसका अर्थ है कि यद्यपि हमारे सिर पर स्वतंत्रता का मुकुट था; यह विभिन्न चुनौतियों के कांटे के साथ आया था। वह नेताओं को सचेत करने के लिए पहले से अधिक विनम्र और मना करने के लिए सचेत करता है। राष्ट्र के विभाजन के बाद उसे एक नया आकार देने और एकजुट बनाए रखने की आवश्यकता थी। इन चुनौतियों से निपटने के लिए ऐसे नेतृत्व की जरूरत थी जो लोकतंत्र को मजबूत करे और समाज के समग्र विकास व कल्याण को सुनिश्चित कर सके।

6. भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाने के लिए नेहरू ने किन तकों का इस्तेमाल किया। क्या आपको लगता है कि ये केवल भावनात्मक और नैतिक तर्क हैं अथवा इनमें कोई तर्क युक्तिपरक भी है?

उत्तर: नेहरू ने भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाने के लिए यह तर्कों दिया कि लोकतंत्र तभी फल-फूल सकता है जब सभी धर्मों के लोगों को समान अधिकार और स्वतंत्रता मिले। यह न केवल नैतिक और भावनात्मक तर्क था, बल्कि यह भी युक्तिपरक था कि विविधता वाले समाज में समानता और धार्मिक स्वतंत्रता सामाजिक स्थिरता और एकता के लिए आवश्यक है। इसके साथ ही यह मानकर चलना कि विभिन्नताओं में परस्पर विरोध भी हो सकते हैं। अन्य शब्दों में कहें तो, भारत में लोकतंत्र की धारणा विचारों और जीवन पद्धति की बहुलता की धारणा से जुड़ी हुई है। सन् 1952 से लेकर सन् 2014 तक लगातार कई राज्यों के पुनर्गठन हुए हैं और पुनर्गठित राज्यों में पहले की अपेक्षा अधिक आन्तरिक शान्ति का माहौल देखा जा सकता है। पुनर्गठित राज्यों के आर्थिक विकास का संदर्भ भी लिया जा सकता है। इसी प्रकार क्षेत्रीय आकांक्षाओं का सीधा सम्बन्ध क्षेत्र विशेष के लोगों की विचारधारा और जीवन शैली से है।

7. आज़ादी के समय देश के पूर्वी और पश्चिमी इलाकों में राष्ट्र निर्माण की चुनौती के लिहाज से दो मुख्य अंतर क्या थे?

उत्तर: आज़ादी के समय देश के पूर्वी और पश्चिमी इलाकों में राष्ट्र निर्माण की चुनौती के लिहाज से निम्नांकित दो प्रमुख अन्तर है-

(i) आज़ादी के साथ देश के पूर्वी क्षेत्रों में सांस्कृतिक एवं आर्थिक सन्तुलन की समस्या थी जबकि पश्चिमी क्षेत्रों में विकास सम्बन्धी चुनौती थी।

(ii) देश के पूर्वी क्षेत्रों में भाषाई समस्या अधिक थी जबकि पश्चिमी क्षेत्रों में धार्मिक एवं जातिवाद की समस्या अधिक थी।

8. राज्य पुनर्गठन आयोग का काम क्या था? इसकी प्रमुख सिफारिश क्या थी?

उत्तर: केंद्र सरकार ने 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया। इस आयोग का काम राज्यों के सीमांकन के मामले पर गौर करना था। आज़ादी के बाद के शुरुआती सालों में एक बड़ी चिंता यह थी कि अलग राज्य बनाने की माँग से देश की एकता पर आँच आएगी। आशंका थी कि नए भाषाई राज्यों में अलगाववाद की भावना पनपेगी और नव-निर्मित भारतीय राष्ट्र पर दबाव बढ़ेगा। जनता के दबाव में आखिरकर नेतृत्व ने भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का मन बनाया। उम्मीद थी कि अगर हर इलाके के क्षेत्रीय और भाषाई दावे को मान लिया गया तो बँटवारे और अलगाववाद के खतरे में कमी आएगी। इसके अलावा क्षेत्रीय माँगों को मानना और भाषा के आधार पर नए राज्यों का गठन करना एक लोकतांत्रिक कदम के रूप में भी देखा गया। इसकी प्रमुख सिफारिश यह थी कि राज्यों का गठन भाषाई आधार पर किया जाए, जिससे प्रशासन सुचारु रूप से चल सके और जनता से जुड़ाव बना रहे।

9. कहा जाता है कि राष्ट्र एक व्यापक अर्थ में ‘कल्पित समुदाय’ होता है और सर्वसामान्य विश्वास, इतिहास, राजनीतिक आकांक्षा और कल्पनाओं से एकसूत्र में बँधा होता है। उन विशेषताओं की पहचान करें जिनके आधार पर भारत एक राष्ट्र है।

उत्तर: (i) साझा इतिहासः भारत का एक समृद्ध इतिहास है, जिसमें प्राचीन सभ्यताएँ, विभिन्न साम्राज्यों का उदय और पतन, और ब्रिटिश शासन शामिल हैं। इस इतिहास ने भारत को एक साझा पहचान दी है और एक साथ रहने की भावना को मजबूत किया है।

(ii) धर्म की एकता: राष्ट्रों के इतिहास में धर्म का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। धर्म लोगों में एकता का महत्त्वपूर्ण बंधन रहा है। धर्म और राजनीति सदियों तक एक-दूसरे के इतने निकट रहे हैं कि मध्यकालीन युग में राजनीति धर्म पर निर्भर मानी जाती थी।

(iii) राजनीतिक आकांक्षाएँ: भारतीय जनता की साझा आकांक्षा रही है कि देश स्वतंत्र, समृद्ध और न्यायपूर्ण हो। यह आकांक्षा देशवासियों को एक दिशा में ले जाती है।

(iv) भौगोलिक सीमाएँ: भारत की भौगोलिक सीमाएँ, जैसे कि हिमालय और हिन्द महासागर, भारत को अन्य देशों से अलग करती हैं। ये सीमाएँ भारत को एक प्राकृतिक इकाई बनाती हैं और एक साझा पहचान प्रदान करती हैं।

(v) समान नस्ल व जातिः जातीय एकता भी राष्ट्र अथवा राष्ट्रीयता के निर्माण में बहुत सहायक होती है। एक नस्ल व जाति के लोग एक-दूसरे से अपने पन की भावना पाते हैं। उनमें अधिक एकता होती है। प्रत्येक राष्ट्र की ऐतिहासिक उत्पत्ति की पौराणिक कथाएँ होती हैं।

10. नीचे लिखे अवतरण को पढ़िए और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

राष्ट्र-निर्माण के इतिहास के लिहाज से सिर्फ़ सोवियत संघ में हुए प्रयोगों की तुलना भारत से की जा सकती है। सोवियत संघ में भी विभिन्न और परस्पर अलग-अलग जातीय समूह, धर्म, भाषाई समुदाय और सामाजिक वर्गों के बीच एकता का भाव कायम करना पड़ा। जिस पैमाने पर यह काम हुआ, चाहे भौगोलिक पैमाने के लिहाज से देखें या जनसंख्यागत वैविध्य के लिहाज़ से, वह अपनेआप में बहुत व्यापक कहा जाएगा। दोनों हो जगह राज्य को जिस कच्चों सामग्री से राष्ट्र निर्माण की शुरुआत करनी थी वह समान रूप से दुष्कर थी। लोग धर्म के आधार पर बाॅंटे हुए और कर्ज़ तथा चीमारी से दबे हुए थे।

– रामचंद गुहा

(क) यहाँ लेखक ने भारत और सोवियत संघ के बीच जिन समानताओं का उल्लेख किया है, उनकी एक सूची बनाइए। इनमें से प्रत्येक के लिए भारत से एक उदाहरण दीजिए।

उत्तर: (i) जातीय और सांस्कृतिक विविधता:

समानता: दोनों देशों में विभिन्न जातीय समूहों को एकजुट करना पड़ा।

भारत में उदाहरण: भारत में आदिवासी, दलित, स्वर्ण, उत्तर-पूर्व के समुदाय आदि, सभी को एकसाथ जोड़ना एक चुनौती रहा।

(ii) धार्मिक विविधता:

समानता: धर्म के आधार पर लोगों में विभाजन था।

भारत में उदाहरण: भारत में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि धर्मों को साथ लेकर चलना पड़ा, विशेषकर विभाजन के बाद की परिस्थिति में।

(iii) भाषाई विविधता:

समानता: अनेक भाषाएँ थीं जिन्हें राष्ट्र की एकता में समाहित करना था।

भारत में उदाहरण: हिंदी, तमिल, बंगाली, तेलुगु जैसी भाषाओं के साथ-साथ अन्य भाषाओं को मान्यता दी गई।

(iv) आर्थिक विषमता:

समानता: दोनों देशों में जनसंख्या का बड़ा हिस्सा गरीबी, कर्ज और अशिक्षा से जूझ रहा था।

भारत में उदाहरण: स्वतंत्रता के समय भारत में खाद्यान्न की भारी कमी थी और ग्रामीण भारत में व्यापक गरीबी फैली थी।

(ख) लेखक में यहाँ भारत और सोवियत संघ में चली राष्ट्र निर्माण की प्रक्रियाओं के बीच की असमानता का उल्लेख नहीं किया है। क्या आप दो असमानताएँ बता सकते हैं?

उत्तर: (i) भारत में लोकतान्त्रिक समाजवादी आधार पर राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रिया पूर्ण हुई परंतु सोवियत संघ में साम्यवादी आधार पर राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रिया पूर्ण हुई।

(ii) भारत ने राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रिया में कई प्रकार की अंतरराष्ट्रीय सहायता, यानी विदेशी सहयोग प्राप्त किया। परंतु सोवियत संघ ने राष्ट्र-निर्माण के लिए आत्म-निर्भरता का सहारा लिया।

(ग) अगर पीछे मुड़कर देखें तो आप क्या पाते हैं? राष्ट्र निर्माण के इन यो प्रयागों में किसने बेहतर काम किया और क्यों?

उत्तर: भारत ने राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में अपेक्षाकृत बेहतर कार्य किया है। भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था ने विविधता के बावजूद लोगों को एकता में बाँधने का मौका दिया और संविधान ने सभी नागरिकों को समान अधिकार दिए, समय के साथ भारत एक स्थिर लोकतंत्र के रूप में विकसित हुई।

वहीं सोवियत संघ में एकता ज़बरदस्ती थोपने की कोशिश की गई, जो अंततः सफल नहीं हुई और 1991 में सोवियत संघ का विघटन हो गया। इसलिए, विविधता को सम्मान देते हुए लोकतांत्रिक मार्ग से राष्ट्र निर्माण करने के कारण भारत की राह अधिक सफल मानी जा सकती है।

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