NCERT Class 7 Hindi Chapter 8 बिरजू महाराज से साक्षात्कार

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NCERT Class 7 Hindi Chapter 8 बिरजू महाराज से साक्षात्कार

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Chapter: 8

मल्हार

पाठ से

मेरी समझ से

(क) नीचे दिए गए प्रश्नों का सबसे सही उत्तर कौन-सा है? उनके सामने तारा (☆) बनाइए। कुछ प्रश्नों के एक से अधिक उत्तर भी हो सकते हैं।

1. बिरजू महाराज ने गंडा बाँधने की परंपरा में परिवर्तन क्यों किया होगा?

(i) वे गुरु के प्रति शिष्य के निष्ठा भाव को परखना चाहते थे।

(ii) वे नृत्य शिक्षण के लिए इस परंपरा को महत्वपूर्ण नहीं मानते थे।

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(iii) वे नृत्य के प्रति शिष्य के लगन व समर्पण भाव को जाँचना चाहते थे।

(iv) वे शिष्य की भेंट देने की सामथ्य को परखना चाहते थे।

उत्तर: (iii) वे नृत्य के प्रति शिष्य के लगन व समर्पण भाव को जाँचना चाहते थे।

2. “जीवन में उतार चढ़ाव तो होता ही है।” बिरजू महाराज के जीवन में किस तरह के उतार-चढ़ाव आए?

(i) पिता के देहांत के बाद आर्थिक अभावों का सामना करना पड़ा।

(ii) कोई भी संस्था नृत्य प्रस्तुतियों के लिए आमंत्रित नहीं करती थी।

(iii) किसी समय विशेष में घर में सुख-समृद्धि थी।

(iv) नृत्य के औपचारिक प्रशिक्षण के अवसर बहुत ही सीमित हो गए थे।

उत्तर: (i) पिता के देहांत के बाद आर्थिक अभावों का सामना करना पड़ा।

3. बिरजू महाराज के अनुसार बच्चों को लय के साथ खेलने की अनुशंसा क्यों की जानी चाहिए?

(i) संगीत, नृत्य, नाटक और सभी कलाएँ बच्चों में मानवीय मूल्यों का विकास नहीं करती हैं।

(ii) कला संबंधी विषयों से जुड़ाव बच्चों के बौद्धिक विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

(iii) कला भी एक खेल है, जिसमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है।

(iv) वर्तमान समय में कला भी एक सफल माध्यम नहीं है।

उत्तर: (ii) कला संबंधी विषयों से जुड़ाव बच्चों के बौद्धिक विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

(ख) अब अपने मित्रों के साथ चर्चा कीजिए और कारण बताइए कि आपने ये उत्तर ही क्यों चुनें?

उत्तर: पहले प्रश्न में (iii) उत्तर क्यों चुना?

बिरजू महाराज एक महान गुरु थे, जो शिष्यों के समर्पण और लगन को सबसे अधिक महत्व देते थे। वे नृत्य में भौतिक उपहार या परंपराओं से अधिक भावनात्मक और व्यक्तिगत जुड़ाव को प्राथमिकता देते थे।

2. दूसरे प्रश्न में (i) उत्तर क्यों चुना?

बिरजू महाराज के जीवन में पिता का निधन एक बड़ा झटका था। इसके बाद आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने नृत्य से कभी समझौता नहीं किया। यही संघर्ष उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण उतार-चढ़ाव था।

3. तीसरे प्रश्न में (ii) उत्तर क्यों चुना?

बिरजू महाराज का मानना था कि कला बच्चों के बौद्धिक और भावनात्मक विकास में सहायक होती है। नृत्य, संगीत और लय के साथ खेलने से बच्चों में रचनात्मकता और संतुलन का विकास होता है। इसलिए बच्चों को लयबद्ध गतिविधियों में शामिल करना चाहिए।

मिलकर करें मिलान

पाठ में से चुनकर कुछ शब्द एवं शब्द समूह नीचे दिए गए हैं। अपने समूह में इन पर चर्चा कीजिए और इन्हें इनके सही संदर्भों या अवधारणाओं से मिलाइए। इसके लिए आप शब्दकोश, इंटरनेट या अपने शिक्षकों की सहायता ले सकते हैं।

शब्दसंदर्भ या अवधारणा
1. कर्नाटक संगीत शैली1. भारत की प्राचीन गायन-वादन गीत-नृत्य अभिनय पंरपरा का अभिन्न अंग है। इसमें शब्दों की अपेक्षा सुरों का महत्व होता है। इसमें नियमों की प्रधानता होती है।
2. घराना2. भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक शैली, जो मुख्य रूप से दक्षिण भारत के राज्यों में प्रचलित है। इसमें स्वर शैली की प्रधानता होती है। जल तरंगम, वीणा, मृदंग, मंडोलिन वाद्ययंत्रों से संगत दी जाती है।
3. शास्त्रीय संगीत3. हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में एक है, यह कान में सोने या चाँदी का तार पहनाने से संबंधित है।
4. हिंदुस्तानी संगीत शैली4. हिंदुस्तानी संगीत में कलाकारों का एक समुदाय या कुटुंब, जो संगीत नृत्य की विशिष्ट शैली साझा करते हैं। संगीत या नृत्य की परंपरा, जिसमें सिद्धांत और शैली पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्रशिक्षण के द्वारा आगे बढ़ती है।
5. कनछेदन5. किसी क्षेत्र विशेष में लोक द्वारा किए जाने वाले पारंपरिक नृत्य। लोक नृत्य, क्षेत्र विशेष की संस्कृति एवं रीति-रिवाजों को दर्शाते हैं। ये विशेष रूप से फसल कटाई, उत्सवों आदि के अवसर पर किए जाते हैं।
6. लोक नृत्य6. भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक शैली, जो मुख्य रूप से उत्तर भारत के राज्यों में प्रचलित है। तबला, सारंगी, सितार, संतूर वाद्ययंत्रों से संगत दी जाती है। इसके प्रमुख रागों की संख्या छह है।

उत्तर:

शब्दसंदर्भ या अवधारणा
1. कर्नाटक संगीत शैली2. भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक शैली, जो मुख्य रूप से दक्षिण भारत के राज्यों में प्रचलित है। इसमें स्वर शैली की प्रधानता होती है। जल तरंगम, वीणा, मृदंग, मंडोलिन वाद्ययंत्रों से संगत दी जाती है।
2. घराना4. हिंदुस्तानी संगीत में कलाकारों का एक समुदाय या कुटुंब, जो संगीत नृत्य की विशिष्ट शैली साझा करते हैं। संगीत या नृत्य की परंपरा, जिसमें सिद्धांत और शैली पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्रशिक्षण के द्वारा आगे बढ़ती है।
3. शास्त्रीय संगीत1. भारत की प्राचीन गायन-वादन गीत-नृत्य अभिनय पंरपरा का अभिन्न अंग है। इसमें शब्दों की अपेक्षा सुरों का महत्व होता है। इसमें नियमों की प्रधानता होती है।
4. हिंदुस्तानी संगीत शैली6. भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक शैली, जो मुख्य रूप से उत्तर भारत के राज्यों में प्रचलित है। तबला, सारंगी, सितार, संतूर वाद्ययंत्रों से संगत दी जाती है। इसके प्रमुख रागों की संख्या छह है।
5. कनछेदन3. हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में एक है, यह कान में सोने या चाँदी का तार पहनाने से संबंधित है।
6. लोक नृत्य5. किसी क्षेत्र विशेष में लोक द्वारा किए जाने वाले पारंपरिक नृत्य। लोक नृत्य, क्षेत्र विशेष की संस्कृति एवं रीति-रिवाजों को दर्शाते हैं। ये विशेष रूप से फसल कटाई, उत्सवों आदि के अवसर पर किए जाते हैं।
शीर्षक

इस पाठ का शीर्षक ‘बिरजू महाराज से साक्षात्कार’ है। यदि आप इस साक्षात्कार को कोई अन्य नाम देना चाहते हैं तो क्या नाम देंगे? आपने यह नाम क्यों सोचा? लिखिए।

उत्तर: “नृत्य के देवता: बिरजू महाराज की कहानी”

या

“नृत्य से जीवन तक – बिरजू महाराज की दृष्टि”

कारण: यह नाम इसलिए चुना गया क्योंकि यह केवल साक्षात्कार नहीं, बल्कि एक महान कलाकार की जीवन-दृष्टि, साधना और नृत्य के प्रति उनकी गहराई को दर्शाता है। उन्होंने नृत्य को केवल कला नहीं, पूजा और जीवन का साधन माना है। यह नाम उनके व्यक्तित्व और दर्शन को और बेहतर ढंग से प्रकट करता है।

पंक्तियों पर चर्चा

साक्षात्कार में से चुनकर कुछ वाक्य नीचे दिए गए हैं। इन्हें ध्यान से पढ़िए और इन पर विचार कीजिए। आपको इनका क्या अर्थ समझ में आया? अपने विचार लिखिए।

(i) “तुम नौकरी में बँट जाओगे। तुम्हारे अंदर का नर्तक पूरी तरह पनप नहीं पाएगा।”

उत्तर: “तुम नौकरी में बँट जाओगे। तुम्हारे अंदर का नर्तक पूरी तरह पनप नहीं पाएगा।”

अर्थ: यह बात उस संघर्ष को दर्शाती है जहाँ जीवन की व्यावसायिक जरूरतें कला के विकास में बाधा बनती हैं। इसका मतलब है कि यदि कलाकार नौकरी जैसे बँधे कार्यों में उलझ जाए, तो उसकी सृजनात्मक स्वतंत्रता और लगन में कमी आ सकती है।

(ii) “लय हम नर्तकों के लिए देवता है।”

उत्तर: “लय हम नर्तकों के लिए देवता है।”

अर्थ: यह कथन लय के महत्व को दिखाता है। जैसे कोई भक्त अपने देवता की पूजा करता है, उसी प्रकार एक नर्तक लय के प्रति श्रद्धा और समर्पण रखता है। लय नृत्य का आधार है।

(iii) “नृत्य में शरीर, ध्यान और तपस्या का साधन होता है।”

उत्तर: “नृत्य में शरीर, ध्यान और तपस्या का साधन होता है।”

अर्थ: नृत्य केवल शारीरिक कला नहीं है, बल्कि यह आत्मिक साधना है जिसमें मन, शरीर और आत्मा एकाकार हो जाते हैं। यह वाक्य नृत्य को योग और ध्यान की तरह देखता है।

(iv) “कथक में गर्दन को हल्के से हिलाया जाता है, चिराग की लौ के समान।”

उत्तर: “कथक में गर्दन को हल्के से हिलाया जाता है, चिराग की लौ के समान।”

अर्थ: यह कथन कथक की कोमलता और नजाकत को दर्शाता है। जैसे चिराग की लौ धीरे-धीरे हिलती है, वैसे ही कथक में शरीर की हरकतें होती हैं—नरम, सुंदर और नियंत्रित।

सोच-विचार के लिए

1. साक्षात्कार को एक बार पुनः पढ़िए और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए।

(क) बिरजू महाराज नृत्य का औपचारिक प्रशिक्षण आरंभ होने से पहले ही कथक कैसे सीख गए थे?

उत्तर: बिरजू महाराज के घर का माहौल ही कथक से भरा हुआ था। उनके पिता अच्छन महाराज और उनके चाचा शंभू महाराज तथा लच्छू महाराज सभी प्रसिद्ध कथक नर्तक थे। इसलिए उन्होंने बचपन से ही कथक को घर में देखकर और सुनकर सीखना शुरू कर दिया था। औपचारिक प्रशिक्षण से पहले ही वे नवाब के दरबार में नाचने लगे थे।

(ख) नृत्य सीखने के लिए संगीत की समझ होना क्यों अनिवार्य है?

उत्तर: नृत्य और संगीत एक-दूसरे के पूरक हैं। नृत्य की लय, ताल और भाव को सही ढंग से व्यक्त करने के लिए संगीत की गहरी समझ जरूरी होती है। बिरजू महाराज स्वयं न केवल नृत्य करते थे, बल्कि वे गाते और तबला भी बजाते थे। इससे स्पष्ट होता है कि संगीत की समझ नर्तक को अधिक सशक्त और अभिव्यक्तिपूर्ण बनाती है।

(ग) नृत्य के अतिरिक्त बिरजू महाराज को और किन-किन कार्यों में रुचि थी?

उत्तर: बिरजू महाराज को नृत्य के अलावा संगीत में भी रुचि थी। वे तबला बजाते और गाते भी थे। इसके अतिरिक्त वे नृत्य नाटिकाएँ तैयार करते और उनके लिए संगीत की रचना भी करते थे। यह सब उनकी बहुआयामी प्रतिभा को दर्शाता है।

(घ) बिरजू महाराज ने बच्चों की शिक्षा और रुचियों के बारे में अभिभावकों से क्या कहा है?

उत्तर: बिरजू महाराज ने कहा कि हर बच्चे में कोई न कोई प्रतिभा छिपी होती है। अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों की रुचियों को पहचानें और उन्हें उस दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें। बच्चों पर जबरन कोई विषय थोपना उचित नहीं है क्योंकि इससे उनका स्वाभाविक विकास रुक सकता है।

2. पाठ में से उन प्रसंगों की पहचानकर उन पर चर्चा कीजिए, जिनसे पता चलता है कि-

(क) बिरजू महाराज बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे।

उत्तर: बिरजू महाराज बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे: बिरजू महाराज केवल कथक नर्तक ही नहीं थे, बल्कि वे ढोलक, तबला और पखावज जैसे वाद्य यंत्रों में भी निपुण थे। वे गायन भी करते थे और साथ ही भाव-भंगिमा, अभिनय और संवाद की भी अद्भुत समझ रखते थे। मंच पर वे जिस तरह अभिनय करते थे, उससे दर्शकों को पात्र की भावनाएँ सहज ही समझ में आ जाती थीं। उनकी नृत्य की प्रस्तुति में अभिनय, संगीत और लय का अद्भुत संगम होता था। इससे स्पष्ट होता है कि वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे।

(ख) बिरजू महाराज को नृत्य की ऊँचाइयों तक पहुँचाने में उनकी माँ का बहुत योगदान रहा।

उत्तर: बिरजू महाराज को नृत्य की ऊँचाइयों तक पहुँचाने में उनकी माँ का बहुत योगदान रहा: बचपन में जब उनके पिता की मृत्यु हो गई थी, तब उनके परिवार पर संकट आ गया था। उस समय उनकी माँ ने बहुत संघर्ष किया और बिरजू को नृत्य सीखने तथा आगे बढ़ने का अवसर दिया। माँ की प्रेरणा और समर्थन से ही वे कठिन परिस्थितियों में भी अभ्यास करते रहे और धीरे-धीरे कथक की दुनिया में ऊँचाइयों तक पहुँचे।

(ग) बिरजू महाराज महिलाओं के लिए समानता के पक्षधर थे।

उत्तर: बिरजू महाराज महिलाओं के लिए समानता के पक्षधर थे: वे मानते थे कि स्त्रियाँ भी उतनी ही अच्छी नर्तक हो सकती हैं जितने पुरुष। उन्होंने अनेक महिला शिष्यों को कथक सिखाया और उन्हें मंच पर प्रस्तुतियाँ देने के लिए प्रोत्साहित किया। वे महिलाओं को केवल सौंदर्य की दृष्टि से नहीं, बल्कि एक सक्षम कलाकार के रूप में देखते थे। इससे पता चलता है कि वे महिलाओं के लिए समानता के समर्थक थे।

शब्दों की बात

(क) पाठ में आए हुए कुछ शब्द नीचे दिए गए हैं, इन्हें ध्यान से पढ़िए-

आजीविका, सीमित, प्रशिक्षण, सुंदरता, आधुनिक, पारंपरिक, भारतीय, सामूहिक, शास्त्रीय

आपने इन शब्दों पर ध्यान दिया होगा कि मूल शब्द के आगे या पीछे कोई शब्दांश जोड़कर नया शब्द बना है। इससे शब्द के अर्थ में परिवर्तन आ गया है। शब्द के आगे जुड़ने वाले शब्दांश उपसर्ग कहलाते हैं, जैसे कि-

अदृश्य – अ + दृश्य

आवरण- आ + वरण

प्रशिक्षण-प्र + शिक्षण

यहाँ पर ‘अ’, ‘आ’, ‘प्र’ उपसर्ग हैं।

शब्द के पीछे जुड़ने वाले शब्दांश प्रत्यय कहलाते हैं और मूल शब्द के अर्थ में नवीनता, परिवर्तन या विशेष प्रभाव उत्पन्न करते हैं, जैसे कि-

सीमित – सीमा + इत

सुंदरता – सुंदर + ता

भारतीय – भारत + इय

सामूहिक – समूह + इक

यहाँ पर ‘इत’, ‘ता’, ‘ईय’, और ‘इक’ प्रत्यय हैं।

(ख) नीचे दो तबले हैं, एक में कुछ शब्दांश (उपसर्ग व प्रत्यय) हैं, दूसरे तबले में मूल शब्द हैं। इनकी सहायता से नए शब्द बनाइए-

उत्तर: 

1. आ + गमन = आगमन
2. सु + संस्कृति = संस्कृति
3. ता + साधारण = सामान्यता
4. ता + संस्कृति = सांस्कृतिकता
5. ईय + राष्ट्र = राष्ट्रीय
6. खंड़ + नाम = खंडनाम
7. प्रत्यय ‘ता’ + कर्म = कर्मता/कर्तव्यता
8. साधारण + इय = सामान्यीय (कम प्रचलित)
9. श्रम + इक = श्रमिक
10. आ + नाम = नामांकन
11. सु + मर्म = सुमर्म

(ग) इस पाठ में से उपसर्ग व प्रत्यय की सहायता से बने कुछ और शब्द छाँटकर उनसे वाक्य बनाइए।

उत्तर: (i) अद्भुत (उपसर्ग अद् + भुत)।

वाक्य: बिरजू महाराज का नृत्य अद्भुत होता था।

(ii) कलाकार (मूल शब्द कला + प्रत्यय कार)।

वाक्य: वे एक महान कलाकार के रूप में प्रसिद्ध हुए।

(iii) नृत्यांगना (मूल शब्द नृत्य + प्रत्यय अंगा)।

वाक्य: उन्होंने कई नृत्यांगनाओं को प्रशिक्षित किया।

(iv) मंचन (मूल शब्द मंच + प्रत्यय न)।

वाक्य: उनका कथक नृत्य मंचन दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देता था।

(v) प्रेरणा (मूल शब्द प्रेरण + प्रत्यय आ)।

वाक्य: उन्हें अपनी माँ से प्रेरणा मिली।

(vi) अभिनय (उपसर्ग अभि + नय)।

वाक्य: उनके नृत्य में अभिनय की अद्भुत झलक होती थी।

(vii) सांस्कृतिक (मूल शब्द संस्कृति + प्रत्यय क)।

वाक्य: बिरजू महाराज ने भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को विश्वभर में पहुँचाया।

शब्दों का प्रभाव

पाठ में आए नीचे दिए गए वाक्य पढ़िए–

1. “कुछ कथिक डर गए किंतु उन कथिकों की कला में इतना दम था कि डाकू सब कुछ भूलकर उन कथिकों के कथक में मग्न हो गए।” इस वाक्य में रेखांकित शब्द ‘इतना’ हटाकर वाक्य पढ़िए और पहचानिए कि क्या परिवर्तन आया है?

पाठ में आए हुए वाक्यों में से ऐसे ही कुछ और शब्द ढूँढ़कर उन्हें रेखांकित कीजिए जिनके प्रयोग से वाक्य में विशेष प्रभाव उत्पन्न होता है?

उत्तर: प्रश्न 1: वाक्य: “कुछ कथिक डर गए किंतु उन कथिकों की कला में इतना दम था कि डाकू सब कुछ भूलकर उन कथिकों के कथक में मग्न हो गए।”

विश्लेषण: अगर इसमें से “इतना” शब्द हटा दिया जाए, तो वाक्य यूँ हो जाएगा:

“कुछ कथिक डर गए किंतु उन कथिकों की कला में दम था कि डाकू सब कुछ भूलकर उन कथिकों के कथक में मग्न हो गए।”

परिणाम: अब वाक्य में जो प्रभाव और बल था, वह कम हो गया। “इतना” शब्द से यह पता चलता है कि कथिकों की कला में असाधारण शक्ति थी। यह शब्द वाक्य को अधिक प्रभावशाली और भावनात्मक बनाता है।

प्रश्न 2: अब हम पाठ से ऐसे ही कुछ और शब्द पहचानते हैं, जिनसे वाक्य में विशेष प्रभाव पड़ता है:

(i) “अद्भुत”।

वाक्य: “बिरजू महाराज का नृत्य अद्भुत होता था।”

प्रभाव: “अद्भुत” शब्द से उनके नृत्य की विशेषता और चमत्कारी प्रभाव सामने आता है।

(ii) “सहजता”।

वाक्य: “वे कठिन मुद्राओं को भी बड़ी सहजता से प्रस्तुत करते थे।”

प्रभाव: “सहजता” से यह दर्शाता है कि कठिन चीजें भी उनके लिए सरल थीं, जिससे उनकी प्रतिभा उजागर होती है।

(iii) “पूर्णतः”।

वाक्य: “उन्होंने अपने आप को पूर्णतः कथक को समर्पित कर दिया।”

प्रभाव: “पूर्णतः” से समर्पण की गहराई झलकती है, जिससे उनके समर्पण का स्तर स्पष्ट होता है।4. “गहराई से”

वाक्य: “उन्होंने नृत्य को गहराई से समझा।”

प्रभाव: यह शब्द उनके अध्ययन और समझ की गंभीरता को दर्शाता है।

(iv) “मंत्रमुग्ध”।

वाक्य: “दर्शक उनके नृत्य को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते थे।”

प्रभाव: यह दर्शकों की प्रतिक्रिया को गहराई और चमत्कृत रूप में प्रस्तुत करता है।

ये सभी शब्द वाक्य में भावना, प्रभाव और गहराई को बढ़ाते हैं।

पाठ से आगे

कला का संसार

(क) बिरजू महाराज– “कथक की पुरानी परंपरा को तो कायम रखा है। हाँ, उसके प्रस्तुतीकरण में बदलाव किए हैं।” इस कथन को ध्यान में रखते हुए लिखिए कि कथक की प्रस्तुतियों में किस प्रकार के परिवर्तन आए हैं?

उत्तर: कथक की प्रस्तुतियों में आए परिवर्तन इस प्रकार हैं:

(i) मंचीय रूप में विकास: पहले कथक दरबारों और मंदिरों में प्रस्तुत किया जाता था, लेकिन अब यह मंच पर नाट्य रूप में प्रस्तुत किया जाने लगा है।

(ii) कथावाचन का समावेश: बिरजू महाराज ने कथक में भाव और अभिनय के साथ कथावाचन जोड़ा, जिससे नृत्य की प्रस्तुति और अधिक प्रभावशाली और संवादपूर्ण बन गई।

(iii) नई विषयवस्तु का चयन: परंपरागत धार्मिक कथाओं के साथ-साथ सामाजिक, ऐतिहासिक और समकालीन विषयों को भी कथक में शामिल किया गया।

(iv) लाइटिंग और संगीत में प्रयोग: मंच पर रौशनी, बैकग्राउंड संगीत और तकनीकी प्रभावों का उपयोग कर कथक को और आकर्षक बनाया गया।

(v) दर्शकों से संवाद: बिरजू महाराज ने कथक को केवल देखने की कला न बनाकर, दर्शकों से जुड़ने की कला बना दिया वे दर्शकों को समझाते, मुस्कुराते और भावों से जोड़ते थे।

(ख) लोकनृत्य और शास्त्रीय नृत्य में क्या अंतर है? लिखिए।

(इस प्रश्न के उत्तर के लिए आप अपने सहपाठियों, अभिभावकों, शिक्षकों, पुस्तकालय या इंटरनेट की सहायता भी ले सकते हैं।)

उत्तर: 

बिंदुलोकनृत्यशास्त्रीय नृत्य
परिभाषायह किसी क्षेत्र की परंपरा, संस्कृति और जीवनशैली को दर्शाता है।यह परंपरा, नियम, मुद्रा और तकनीक पर आधारित एक विधिवत कला है।
उत्पत्तिग्राम्य जीवन, त्योहारों, उत्सवों और परंपराओं से जुड़ा होता है।यह धार्मिक और आध्यात्मिक परंपराओं से विकसित हुआ है।
नियमइसमें कठोर नियम नहीं होते, स्वतःस्फूर्त होता है।इसमें नृत्य की मुद्राएँ, भाव, ताल और रचना के निश्चित नियम होते हैं।
संगीतलोकगीतों और पारंपरिक वाद्ययंत्रों का प्रयोग होता है।शास्त्रीय संगीत का प्रयोग होता है।
उदाहरणभांगड़ा (पंजाब), गरबा (गुजरात), घूमर (राजस्थान), बिहु (असम)भरतनाट्यम, कथक, ओडिसी, कुचिपुड़ी, कथकली आदि
परिधान व आभूषणक्षेत्रीय परिधान और गहनों का प्रयोग होता है।विशेष वेशभूषा और शास्त्रीय आभूषण होते हैं।
प्रस्तुति स्थलगाँवों, मेलों, उत्सवों में प्रस्तुत किया जाता है।रंगमंच, नाट्यशालाओं में प्रस्तुति होती है। 

(ग) “बैरगिया नाला जुलुम जोर, 

नौ कथिक नचावें तीन चोर। 

जब तबला बोले धीन-धीन, 

तब एक-एक पर तीन-तीन।”

इस पाठ में हरिया गाँव में गाए जाने वाले उपर्युक्त पद का उल्लेख है। आप अपने क्षेत्र में गाए जाने वाले किसी लोकगीत को कक्षा में प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर: बिहु गीत का उदाहरण (असम का लोकगीत):

गीत: “डेकासोकी सुआलीरे,

नाचिबो लागे बिहु,

धोल बाजे, पीपा बाजे,

गाबो लागे गीतु…”

अनुवाद: “नवयुवतियाँ सजी-संवरी,

बिहु नृत्य करें,

ढोल बजता है, पीपा बजता है,

सब मिलकर गीत गाते हैं…”।

साक्षात्कार की रचना
प्रस्तुत पाठ की विधा ‘साक्षात्कार’ है। सामान्यतः इसे बातचीत या भेंटवार्ता का पर्याय मान लिया जाता है, लेकिन यह भेंटवार्ता से इस संदर्भ में भिन्न है कि इसका एक निश्चित उद्देश्य और ढाँचा होता है। यह साक्षात्कार किसी नौकरी या पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने के लिए होने वाले साक्षात्कार से बिल्कुल भिन्न है। प्रस्तुत साक्षात्कार एक प्रकार से व्यक्तिपरक साक्षात्कार है। इसका उद्देश्य साक्षात्कारदाता के निजी जीवन, उनके कामकाज, उपलब्धियों, रुचि-अरुचि, विचारों आदि को पाठकों के सामने लाना है। किसी भी प्रकार के साक्षात्कार के लिए पर्याप्त तैयारी, संवेदनशीलता और धैर्य की आवश्यकता होती है। साक्षात्कार की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि साक्षात्कारदाता के संदर्भ में कितना शोध किया गया है और प्रश्न किस प्रकार के बनाए गए हैं।

प्रस्तुत ‘साक्षात्कार’ के आधार पर बताइए-

(क) साक्षात्कार से पहले क्या-क्या तैयारियाँ की गई होंगी?

उत्तर: साक्षात्कार से पहले निम्लिखित तैयारियाँ की गई होंगी।

(i) बिरजू महाराज के जीवन और कार्य का अध्ययन: उनकी कला, शैली, उपलब्धियाँ, परिवार, प्रशिक्षण और योगदान पर शोध किया गया होगा।

(ii) प्रश्नों की सूची तैयार की गई होगी: प्रश्नों को उनकी उम्र, अनुभव और रूचि को ध्यान में रखते हुए सजाया गया होगा।

(iii) साक्षात्कार का उद्देश्य तय किया गया होगा: जैसे – उनकी कला यात्रा, विचारधारा और प्रेरणा के बारे में जानना।

(iv) उन्हें साक्षात्कार के लिए समय और स्थान की जानकारी दी गई होगी।

(v) रिकॉर्डिंग या लेखन सामग्री की व्यवस्था की गई होगी।

(ख) आप इस साक्षात्कार में और क्या-क्या प्रश्न जोड़ना चाहेंगे?

उत्तर: इस साक्षात्कार में निम्लिखित प्रश्न जोड़ना चाहेंगे।

1. आपको सबसे पहला प्रेरणा स्रोत कौन मिला?

2. आपकी किसी एक प्रस्तुति का ऐसा अनुभव बताइए जो आपको आज भी याद है।

3. क्या आपने कभी मंच पर कुछ भूल किया है? तो कैसे संभाला?

4. आज की युवा पीढ़ी को आप क्या सलाह देना चाहेंगे?

5. कथक को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुँचाने के लिए आपने क्या प्रयास किए?

(ग) यह साक्षात्कार एक सुप्रसिद्ध कलाकार का है। यदि आपको किसी सब्जी विक्रेता, रिक्शा चालक, घरेलू सहायक या सहायिका का साक्षात्कार लेना हो तो आपके प्रश्न किस प्रकार के होंगे?

उत्तर: सामान्य जीवन से जुड़े, सरल और सम्मानजनक प्रश्न होंगे, जैसे-

(i) आप यह काम कब से कर रहे हैं?

(ii) दिन की शुरुआत आप कैसे करते हैं?

(iii) आपके काम में सबसे बड़ी कठिनाई क्या होती है?

(iv) आपको अपने काम में क्या अच्छा लगता है?

(v) आप अपने बच्चों की पढ़ाई या भविष्य के लिए क्या सोचते हैं?

(vi) समाज या ग्राहक से आपको किस प्रकार का व्यवहार मिलता है?

(vii) अगर आपको कोई सुविधा या मदद मिले तो आप क्या बदलना चाहेंगे?

सृजन

आपके विद्यालय में कथक नृत्य का आयोजन होने जा रहा है।

(क) आप दर्शकों को कथक नृत्यकला के बारे में क्या-क्या बताएँगे? लिखिए।

उत्तर: कथक भारत का एक प्रमुख शास्त्रीय नृत्य है जिसकी उत्पत्ति उत्तर भारत में हुई। यह नृत्यकला “कथक” शब्द से बनी है, जिसका अर्थ है – “कहानी कहने वाला”। कथक की विशेषता इसकी सुंदर मुद्राएँ, भावपूर्ण अभिनय (अभिनय), घुंघरूओं की लयबद्ध झंकार, तथा ताल की सटीकता में निहित होती है। इसमें कलाकार तालबद्ध घूमनों, तेज़ पैर की थापों और आँखों के भावों से कथा को प्रस्तुत करता है। प्रसिद्ध कथक नर्तक बिरजू महाराज जी ने इस नृत्य को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। यह नृत्य सिर्फ कला नहीं, भारतीय संस्कृति, परंपरा और आध्यात्मिकता का प्रतीक भी है। इस नृत्य के माध्यम से रामायण, महाभारत जैसी कथाएँ भी प्रस्तुत की जाती हैं।

(ख) इस कार्यक्रम की सूचना देने के लिए एक विज्ञापन तैयार कीजिए।

उत्तर: सूचना/विज्ञापन

विद्यालय में कथक नृत्य कार्यक्रम

सभी विद्यार्थियों, अभिभावकों एवं शिक्षकों को सूचित किया जाता है कि हमारे विद्यालय में एक विशेष कथक नृत्य कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। इस कार्यक्रम में विद्यालय के प्रतिभाशाली छात्र-छात्राएँ अपनी नृत्य प्रतिभा का प्रदर्शन करेंगे।

तिथि: 15 मई 2025

समय: प्रातः 10:30 बजे

स्थान: विद्यालय सभागार

विशेष आकर्षण: बिरजू महाराज शैली में कथक प्रस्तुति

सभी से अनुरोध है कि समय पर उपस्थित होकर कलाकारों का उत्साहवर्धन करें।

— प्रधानाचार्य,

सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कॉलेज

(ग) यदि इस नृत्य कार्यक्रम में कोई दृष्टिबाधित दर्शक है और वह नृत्य का आनंद लेना चाहे तो इसके लिए विद्यालय की ओर से क्या व्यवस्था की जानी चाहिए?

उत्तर: यदि कार्यक्रम में कोई दृष्टिबाधित दर्शक है, तो विद्यालय को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह भी नृत्य का आनंद ले सके। इसके लिए एक प्रशिक्षित स्वयंसेवक या टिप्पणीकार को नियुक्त किया जाना चाहिए जो उन्हें कार्यक्रम के दौरान मुँहज़ुबानी रूप में नृत्य की प्रत्येक गतिविधि, भाव-भंगिमा, वेशभूषा, मंच सजावट और कथा की जानकारी दे। यह विवरण धीमी आवाज़ में या हेडफोन के माध्यम से दिया जा सकता है ताकि अन्य दर्शकों को असुविधा न हो। इसके साथ-साथ कथक के संगीत, ताल और घुंघरुओं की आवाज़ से वह दर्शक नृत्य के भावों को अनुभव कर सकता है। इस प्रकार की व्यवस्था उन्हें भी सम्मानपूर्वक सांस्कृतिक अनुभव का अवसर प्रदान करेगी और समावेशी वातावरण को बढ़ावा देगी।

आज की पहेली

“अगर नर्तक को सुर-ताल की समझ है तो वह जान पाएगा कि यह लहरा ठीक नहीं है, इसके माध्यम से नृत्य अंगों में प्रवेश नहीं करेगा।” संगीत में लय को प्रदर्शित करने के लिए ताल का सहारा लिया जाता है। किसी भी गीत की पंक्तियों में लगने वाले समय को मात्राओं द्वारा ठीक उसी प्रकार मापा जाता है, जैसे दैनिक जीवन में व्यतीत हो रहे समय को हम सेकेंड के द्वारा मापते हैं। ताल कई मात्रा समूहों का संयुक्त रूप होता है। संगीत के समय को मापने की सबसे छोटी इकाई मात्रा है और ताल कई मात्राओं का संयुक्त रूप है। जिस तरह घंटे में मिनट और मिनट में सेकेंड होते हैं, उसी तरह ताल में मात्रा होती है। आज हम आपके लिए ताल से जुड़ी एक अनोखी पहेली लाए हैं।

एक विद्यार्थी ने अपनी डायरी में अपने विद्यालय के किसी एक दिन का उल्लेख किया है। उस उल्लेख में संगीत की कुछ तालों के नाम आए हैं। आप उन तालों के नाम ढूंढ़िए–

कल हमारे विद्यालय में संगीत और नृत्य सभा का आयोजन हुआ था। उसमें एक-दो नहीं बल्कि चार कलाकार आए थे। उन कलाकारों में एक का नाम रूपक और दूसरे का नाम लक्ष्मी था। शेष दो कलाकारों के नाम पता नहीं चल पाए। वे दोनों जब अपनी प्रस्तुति के लिए मंच पर आए तो दर्शकों से पूछने लगे- “तिलवाड़ा, दादरा या झूमरा?” दर्शक बोले- “तीनों में से कोई नहीं। हमें दीपचंदी और कहरवा पसंद है।” दर्शकों की यह बात सुनते ही कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति प्रारंभ कर दी।

उत्तर: इस पहेली में विद्यार्थियों को संगीत की तालों के नाम पहचानने हैं जो एक दैनिक वर्णन में छिपे हुए हैं।

आइए एक-एक करके उन नामों की पहचान करें:

उल्लेखित तालों के नाम:

1. रूपक – “एक का नाम रूपक”

2. लक्ष्मी – यह नाम लक्ष्मी ताल से संबंधित हो सकता है, लेकिन यह बहुत सामान्य नाम है; फिर भी संदर्भ में ताल का नाम माना गया है।

3. तिलवाड़ा – “तिलवाड़ा, दादरा या झूमरा?”

4. दादरा – वही पंक्ति

5. झूमरा – वही पंक्ति

6. दीपचंदी – “हमें दीपचंदी और कहरवा पसंद है।”

7. कहरवा – वही पंक्ति

इस वर्णन में कुल 7 तालों के नाम छिपे हैं:

1. रूपक

2. लक्ष्मी

3. तिलवाड़ा

4. दादरा

5. झूमरा

6. दीपचंदी

7. कहरवा

अब नीचे दी गई शब्द पहेली में से संगीत की उन तालों के नाम ढूँढ़कर लिखिए-

उत्तर: शब्द पहेली में पाए गए तालों के नाम:

1. तीनताल – पहले स्तम्भ में ऊपर से नीचे: ती, न, म, ल, द।

2. झूमरा – ऊपर से नीचे और दाएँ से: झू, म, रा।

3. रूपक – दूसरी पंक्ति: रू, प, क।

4. कहरवा – तीसरी पंक्ति में दाएँ से: क, ह, र, वा।

5. दादरा – पाँचवीं पंक्ति: दा, द, रा।

6. दीपचंदी – चौथी पंक्ति में: दी, प, चं, दी।

7.  तिलवाड़ा – पहली पंक्ति और तीसरी: ति, ल, वा, ड़ा।

तालों के नाम: तीनताल, झूमरा, रूपक, कहरवा, दादरा,

दीपचंदी, तिलवाड़ा।

साझी समझ

अभी आपने शास्त्रीय नृत्यों को निकटता से जाना समझा। पाँच-पाँच विद्यार्थियों के समूह में भारत के लोक नृत्यों की सूची बनाइए और उनकी विशिष्टताओं का पता लगाइए।

नीचे दिए गए भारत के मानचित्र में राज्यानुसार शास्त्रीय एवं लोक नृत्य दर्शाइए।

उत्तर:

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