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NCERT Class 12 Hindi Antra Chapter 10 प्रेमघन की छाया-स्मृति
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प्रेमघन की छाया-स्मृति
Chapter: 10
अंतरा गद्य खंड |
प्रश्न-अभ्यास |
1. लेखक ने अपने पिता जी की किन-किन विशेषताओं का उल्लेख किया है?
उत्तर: लेखक ने अपने पिता की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया है–
(क) उनके पिताजी फारसी के अच्छे ज्ञाता थे।
(ख) वे पुरानी हिंदी के बड़े प्रेमी थे।
(ग) उन्हें फारसी कवियों की उक्तियों को हिंदी कवियों की उवितयों के साथ मिलाने में बड़ा आनंद आता था।
(घ) वे रात के समय ‘रामचरितमानस’ और रामचंद्रिका’ ‘को घर के लोगों के सम्मुख बड़े चित्राकर्षक ढंग से पढ़ा करते थे।
(ङ) आधुनिक हिंदी-साहित्य में भारतेंदु जी के नाटक उन्हें बहुत प्रिय थे।
2. बचपन में लेखक के मन में भारतेंदु जी के संबंध में कैसी भावना जगी रहती थी?
उत्तर: बचपन में लेखक के मन में भारतेंदु जी के संबंध में एक अपूर्व मधुर भावना जगी रहती थी। ‘सत्य हरिश्चंद्र’ नाटक के नायक राजा हरिश्चंद्र और कवि हरिश्चंद्र में अंतर को समझ नहीं पाते थे और दोनों को एक ही दृष्टि से देखते थे। ‘हरिश्चंद्र’ शब्द से दोनों की एक मिलीजुली भावना एक अपूर्व माधुर्य का संचार कवि के मन में करती थी। इसी कारण उनके मन में एक माधर्य भाव का संचार होता था।
3. उपाध्याय बद्रीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ की पहली झलक लेखक ने किस प्रकार देखी?
उत्तर: लेखक मिर्जापुर में नगर से बाहर रहते थे। वहाँ रहते हुए उन्हें एक दिन ज्ञात हुआ कि भारतेन्दु हरिश्चंद्र के सखा जिनका नाम उपाध्याय बदरीनारायण चौधरी है और जो ‘प्रेमघन’ उपनाम से लिखते हैं, वे यहाँ रहते हैं। डेढ़ मील का सफर तय करके सभी बालक एक मकान के नीचे पहुँचे। लेखक उन्हें मिलने को आतुर हो उठा और अपने मित्रों की मंडली के साथ योजना बनाने लगे। उन बालकों को एकत्रित किया गया जो चौधरी साहब के मकान से परिचित थे। उनके घर की ऊपरी बालकनी लताओं से सुज्जित थी। लेखक ऊपर की और लगातार देखता रहा कुछ देर में उसे प्रेमघन की झलक दिखाई पड़ी। उनके दोनों कंधों पर बाल बिखरे हुए थे। देखते ही देखते यह मूर्ति दृष्टि से ओझल हो गई। यही बदरीनारायण चौधरी की पहली झलक थी, जो लेखक ने देखी।
4. लेखक का हिंदी साहित्य के प्रति झुकाव किस तरह बढ़ता गया?
उत्तर: लेखक के पिता फ़ारसी के ज्ञाता थे तथा हिंदी प्रेमी भी थे। उनके घर में भारतेन्दु रचित हिन्दी नाटकों का वाचन हुआ करता था। रामचरितमानस तथा रामचंद्रिका का भी सुंदर वाचन होता था। वह ज्यों-ज्यों सयाना होता गया, त्यों-त्यों हिंदी-साहित्य की ओर उसका झुकाव बढ़ता गया। पिता द्वारा लेखक को बचपन से ही साहित्य से परिचय करवा दिया गया था। जब वह क्वींस कॉलेज में पढ़ता था तब स्व. रामकृष्ण वर्मा उनके पिताजी के सहपाठियों में से एक थे। भारतेन्दु लिखित नाटक लेखक को आकर्षित करते थे। अतः इस आधार पर कहा जा सकता है कि पिताजी ने ही उनके अंदर हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम के बीज बोए थे। इस तरह हिंदी साहित्य की ओर झुकाव होना स्वाभाविक था। उन्हीं दिनों पं. केदारनाथ पाठक ने एक हिंदी पुस्तकालय खोला था। लेखक वहाँ से पुस्तकें लाकर पढ़ा करता था। बाद में लेखक की पाठक जी के साथ गहरी मित्रता हो गई। उन्हीं के कारण सौलह वर्ष की अवस्था में लेखक को हिंदी प्रेमियों की मंडली से परिचय हुआ। इस मंडली के सभी लोग हिंदी जगत में महत्वपूर्ण स्थान रखते थे, जिनमें काशी प्रसाद जायसवाल, भगवानदास हालना, पंडित बदरीनाथ गौड़, पंडित उमाशंकर द्विवेदी इत्यादि थे। इस प्रकार उनका झुकाव हिंदी-साहित्य के प्रति बढ़ता चला गया।
5. ‘निस्संदेह’ शब्द को लेकर लेखक ने किस प्रसंग का जिक्र किया है?
उत्तर: जब लेखक का परिचय हिन्दी प्रेमी मंडली से हुआ। लेखक और उनके मित्रों की बातचीत प्रायः लिखने-पढ़ने की हिंदी में हुआ करती थी, जिसमें ‘निस्संदेह’ इत्यादि शब्द आया करते थे। जिस स्थान पर लेखक रहते थे, वहाँ अधिकतर वकील, मुख्तारों तथा कचहरी के अफ़सरों और अमलों की बस्ती थी। ये लोग राजभाषा होने के कारण उर्दू का प्रयोग अधिक किया करते थे। ऐसे लोगों को लेखक तथा उसकी मंडली द्वारा हिंदी बोलना अजीब लगता था। इसी कारण उन लोगों ने इस लेखक-मंडली के लोगों का नाम ‘निस्संदेह’ रख दिया था।
6. पाठ में कुछ रोचक घटनाओं का उल्लेख है। ऐसी तीन घटनाएँ चुनकर उन्हें अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: तीन रोचक घटनाएँ चौधरी साहब से जुड़ी हुई हैं।
वे इस प्रकार हैं–
(क) एक बार की बात है कि मिर्जापुर में एक प्रतिभाशाली कवि वामनाचार्य गिरि रहते थे। एक दिन वे सड़क पर चौधरी साहब के ऊपर एक कविता जोड़ते चले जा रहे थे। कविता के आखिर अंक पर वह अटके हुए थे तभी उन्हें ऊपरी बालकनी में चौधरी साहब खड़े दिखाई दिए। उन्हें देखते ही वह तपाक से ज़ोर से बोल पड़े “खंभा टेकि खड़ी जैसे नारि मुगलाने की।”
(ख) एक दिन चौधरी साहब बहुत से लोगों के साथ बैठे हुए थे। उसी दौरान एक पंडित जी वहाँ से गुजर रहे थे, तो वह भी इस मंडली में शामिल हो गए। चौधरी साहब ने उनका हालचाल पूछा, “पंडित जी, कैसे हैं आप? “पंडित जी ने जवाब दिया, “सब ठीक है, आज मेरा एकादशी का व्रत है। इसलिए सिर्फ जल ग्रहण किया है और यूं ही टहलने निकल पड़ा। “पंडित जी के इतना कहते ही वहाँ बैठे सब लोग मुस्कुराते हुए पूछने लगे, “सिर्फ जल ही पिया है, या कुछ फल भी खाया है।”
(ग) एक बार गर्मी के दिनों में कई लोग छत पर बैठकर चौधरी साहब से बातचीत कर रहे थे। चौधरी साहब के पास एक लैम्प जल रहा था, तभी लैम्प की बत्ती तेज़ी से भभकने लगी। चौधरी साहब ने इसे बुझाने के लिए नौकरों को आवाज़ देना शुरू कर दिया। लेखक ने सोचा कि वह खुद आगे बढ़कर बत्ती को नीचे गिरा दे, लेकिन पंडित बदरीनारायण ने तमाशा देखने के विचार से लेखक को रोक दिया। चौधरी साहब लगातार कहते जा रहे थे, “अरे, जब फूट जाई तबै चलत आवह।” आखिरकार, चिमनी ग्लोब सहित लैम्प चकनाचूर हो गया, लेकिन चौधरी साहब का हाथ फिर भी लैम्प की तरफ नहीं बढ़ा।
7. “इस पुरातत्व की दृष्टि में प्रेम और कुतूहल का अद्भुत मिश्रण रहता था।” यह कथन किसके संदर्भ में कहा गया है और क्यों? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: यह कथन चौधरी साहब के संदर्भ में कहा गया है। ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि मंडली में वह सबसे ज्यादा उमर के इंसान थे। यही कारण भी था कि उन्हें मंडली में पुरानी वस्तु समझा जाता था। चौधरी साहब स्नेही व्यक्ति थे। वे सबसे प्रेम से बातें किया करते थे। लोगों को उनके विषय में जानने का जिज्ञासा था। उनके यहाँ त्योहारों में अनेक उत्सव होते थे। इसलिए लेखक ने चौधरी जी के लिए यह कथन कहा है।
8. प्रस्तुत संस्मरण में लेखक ने चौधरी साहब के व्यक्तित्व के किन-किन पहलुओं को उजागर किया है?
उत्तर: लेखक ने चौधी साहब के व्यक्तित्व के निम्नलिखित पहलुओं को उजागर किया है–
(i) आकर्षक व्यक्तित्व– चौधरी साहब एक आकर्षक व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे। उनके बाल कंधों पर बिखरे रहते थे। वे एक भव्य मूर्ति के समान प्रतीत होते थे। तभी वामनाचार्य जी ने उन्हें देखकर ‘मुगलानी नारी’ कहा था।
(ii) हिंदी प्रेमी– चौधरी साहब हिंदी के कवि थे। वह ‘प्रेमघन’ उपनाम से लिखा करते थे। हिंदी से उनका प्रेम इन बातों से स्पष्ट हो जाता है। लेखक को हिंदी साहित्य की ओर ले जाने में उनका बड़ा योगदान था।
(iii) रियासती व्यक्ति– चौधरी साहब एक रियासत और तबीयतदारी व्यक्ति थे। जब वे टहलते थे तब एक छोटा-सा लड़का पान की तश्तरी लिए उनके पीछे-पीछे लगा रहता था।
(iv) हँसमुख व्यक्ति– चौधरी साहब हँसमुख व्यक्ति थे। बात-बात पर लोगों को गुदगुदा देते थे।
(v) प्रसिद्ध कवि– चौधरी साहब एक प्रसिद्ध कवि थे। उनका पूरा नाम था-उपाध्याय बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’। उनके घर पर लेखकों की भीड़ रहती थी।
9. समवयस्क हिंदी प्रेमियों की मंडली में कौन-कौन से लेखक मुख्य थे?
उत्तर: समवयस्क हिंदी प्रेमियों की मंडली में ये लेखक मुख्य थे–
(क) काशी प्रसाद जायसवाल।
(ख) भगवानदास हालना।
(ग) पंडित बदरीनाथ गौड़।
(घ) पंडित उमाशंकर द्विवेदी।
10. ‘भारतेंदु जी के मकान के नीचे का यह हृदय-परिचय बहुत शीघ्र गहरी मैत्री में परिणत हो गया।’ कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: एक बार लेखक पिता के कहने पर किसी की बारात में काशी चले गए। वहाँ घूमते हुए काशी के चौखंभा स्थान पर पहुँच गए। यहीं उनकी मुलाकात पंडित केदारनाथ जी पाठक से हुई। लेखक उनके पुस्तकालय में प्रायः जाया करता थे। वे भरतेन्दु के मित्र थे। लेखक स्वयं भरतेंदु के प्रशांसक थे। दोनों में वहीं बातचीत होने लगी। इसी बातचीत में मालूम हुआ कि पाठक जी जिस मकान से निकले थे वह भारतेंदु जी का ही घर था। वह लेखक को भावनाओं में डूबा देखकर प्रसन्न थे। उन्हें लेखक की इस प्रकार की भावुकता ने बहुत प्रभावित किया। उन दोनों का यह हृदय-परिचय भारतेंदु के मकान के नीचे हुआ था, जो आगे चलकर शीघ्र ही गहरी मित्रता में बदल गया।
भाषा-शिल्प |
1. हिंदी-उर्दू के विषय में लेखक के विचारों को देखिए। आप इन दोनों को एक ही भाषा की दो शैलियाँ मानते हैं या भिन्न भाषाएँ?
उत्तर: लेखक हिंदी-उर्दू दोनों भाषाओं के शब्दों का प्रयोग करता है। उनका काल संक्रमण का काल था। गध में खड़ी बोली का आगमन हो रहा था अतः उस समय के सभी लेखक हिंदी-उर्दू शब्दों का एक समान प्रयोग करते थे। अतः इस आधार पर यह कहना सरल होगा कि हिंदी और उर्दू दो अलग-अलग भाषाएँ हैं। हिंदुस्तानी की ये दोनों शैलियाँ हो सकती हैं, पर हिंदी-उर्दू दोनों भाषाओं में अंतर है। सत्य यही है कि अन्य सभी भाषाओं की तरह ये दोनों अलग हैं और भिन्न शैली की हैं। सभी भाषाओं की तरह दोनों भाषाओं की लिपियाँ भी अलग हैं।
2. चौधरी जी के व्यक्तित्व को बताने के लिए पाठ में कुछ मजेदार वाक्य आए हैं उन्हें छाँटकर उनका संदर्भ लिखिए।
उत्तर: (क) “इस पुरातत्व की दृष्टि में प्रेम और कुतूहल का एक अद्भुत मिश्रण रहता था।”
यह कथन चौधरी जी के व्यक्तित्व की विशिष्टता को दर्शाने के लिए लिखा गया है। लेखक के अनुसार, चौधरी जी मंडली के सबसे पुराने सदस्य थे, इसलिए उन्हें “पुरातत्व” की संज्ञा दी गई। इसके अलावा, उनका स्वभाव अत्यंत स्नेही था; वे मंडली के हर सदस्य से प्रेम करते थे। साथ ही, उनका व्यक्तित्व इतना रोचक और जटिल था कि लोग उन्हें कुतूहल की दृष्टि से देखते थे। उनकी उपस्थिति लोगों में जिज्ञासा बनाए रखती थी।
(ख) “उनकी हर एक अदा से रियासत और तबीयतदारी टपकती थी।”
यह कथन चौधरी जी के रईसी स्वभाव को रेखांकित करता है। उनका ताल्लुक एक धनी परिवार से था, और उनकी रईसी उनके हर हाव-भाव से झलकती थी। उनकी चाल-ढाल, वाणी और व्यवहार में ऐसा प्रभाव था कि अनजान व्यक्ति भी तुरंत पहचान सकता था कि वे किसी रईस परिवार से संबंधित हैं।
(ग) “जो बातें उनके मुँह से निकलती थीं, उनमें एक विलक्षण वक्रता रहती थी।”
इस कथन के माध्यम से चौधरी जी की बात करने की शैली को व्यक्त किया गया है। उनके द्वारा कही गई हर बात में एक विशेष प्रकार की वक्रता (कुटिलता) होती थी। वे सीधे-सपाट तरीके से बात नहीं करते थे, बल्कि उनकी वाणी में चतुराई और व्यंग्य का पुट होता था, जो उन्हें अनोखा बनाता था।
(घ) “खंभा टेकि खड़ी जैसे नारि मुगलाने की।”
यह पंक्ति चौधरी जी के बाहरी रूप और वेशभूषा पर व्यंग्य करती है। उनके बाल कंधे तक लटके रहते थे, जो उस समय पुरुषों की पारंपरिक केश-सज्जा से भिन्न थी। इसी पर वामनाचार्यगिरी ने चुटकी लेते हुए कहा था कि चौधरी ऐसे खड़े हैं, जैसे कोई मुस्लिम महिला खंभे का सहारा लेकर खड़ी हो। यह टिप्पणी उनके लुक और पहनावे पर हास्य के साथ व्यंग्य करती है।
3. पाठ की शैली की रोचकता पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर: संस्मरणात्मक निबंध “प्रेमघन की छाया स्मृति” में शुक्ल जी ने हिंदी भाषा एवं साहित्य के प्रति अपने प्रारंभिक रुझानों का बड़ा रोचक वर्णन किया है। उनका बचपन साहित्यिक परिवेश से भरापूरा था। बाल्यावस्था में ही किस प्रकार भारतेंदु एवं उनके मंडल के अन्य रचनाकारों विशेषतः प्रेमघन के सान्निध्य में शुक्ल जी का साहित्यकार आकार ग्रहण करता है, उसकी अत्यंत मनोहारी झाँकी यहाँ प्रस्तुत हुई है। प्रेमघन के व्यक्तित्व ने शुक्ल जी की समवयस्क मंडली को किस तरह प्रभावित किया, हिंदी के प्रति किस प्रकार आकर्षित किया तथा किसी रचनाकार के व्यक्तित्व निर्माण आदि से संबंधित पहलुओं का बड़ा चित्ताकर्षक चित्रण इस निबंध में किया गया है।
योग्यता-विस्तार |
1. भारतेंदु मंडल के प्रमुख लेखकों के नाम और उनकी प्रमुख रचनाओं की सूची बनाकर स्पष्ट कीजिए कि आधुनिक हिंदी गद्य के विकास में इन लेखकों का क्या योगदान रहा?
उत्तर: भारतेंदु मंडल के प्रमुख लेखकों के नाम इस प्रकार हैं—
लेखकों की सूची | उनकी रचनाएँ |
प्रतापनारायण मिश्र | नाटक: भारतदुर्दशा, कलिप्रभाव, जुआरी खुआरी, कलिकौतुक, गोसकट आदि। गद्य कृतियाँ: पंचामृत, शैव सर्वस्व, चरिताष्टक आदि। कविता: दंगल खंड, मन की लहर, ब्रैडला स्वागत। |
अम्बिका दत्त व्यास | अवतार मीमांसा (ग्रंथ), पावन पचासा, बिहारी बिहार, चांद की रात। |
राधाचरण गोस्वामी | ‘बूढ़े मुह मुंहांसे, लोग देखें तमासे’ तथा ‘तन मन धन श्रीगुसाईं जी के अर्पण’, ‘सौदामिनी’, ‘यमलोक की यात्रा’, ‘विदेश यात्रा विचार’ और ‘विधवा विवाह’। |
2. आपको जिस व्यक्ति ने सर्वाधिक प्रभावित किया है, उसके व्यक्तित्व की विशेषताओं को लिखिए।
उत्तर: मुझे मेरे पिताजी के व्यक्तित्व ने बहुत प्रभावित किया है। उनके व्यक्तित्व की विशेषताएँ इस प्रकार हैं—
(क) कर्तव्यनिष्ठता: पिताजी हमेशा अपने परिवार और समाज के प्रति जिम्मेदारी को प्राथमिकता देते हैं। उनकी कड़ी मेहनत और समर्पण उनके जीवन का आधार है।
(ख) संस्कार और नैतिकता: उन्होंने जीवन में नैतिक मूल्यों और आदर्शों को सदैव महत्व दिया। ये संस्कार और मूल्य ही उन्हें एक आदर्श व्यक्ति बनाते हैं।
(ग) सहनशीलता और धैर्य: कठिन परिस्थितियों में भी उनका शांत और धैर्यपूर्ण व्यवहार दूसरों के लिए एक उदाहरण है।
(घ) प्रेरणा का स्रोत: पिताजी का जीवन संघर्ष, त्याग और सफलता की कहानी है। उन्होंने अपने अनुभवों से आपको सिखाया होगा कि मेहनत और ईमानदारी से सब कुछ हासिल किया जा सकता है।
(ङ) परिवार के प्रति प्रेम: मेरे पिताजी ने अपने परिवार के लिए हर संभव प्रयास किया है, चाहे वह आर्थिक सुरक्षा हो या भावनात्मक समर्थन।
(च) ज्ञान और अनुभव: उनकी बातों और सलाह में जीवन के अनुभव झलकते हैं, जो हर बार आपको प्रेरित करते हैं।
3. यदि आपको किसी साहित्यकार से मिलने का अवसर मिले तो आप उनसे क्या-क्या पूछना चाहेंगे और क्यों?
उत्तर: यदि मुझे किसी साहित्यकार से मिलने का अवसर मिले, तो मैं उनसे निम्नलिखित सवाल पूछना चाहूँगी, और इसके पीछे कुछ कारण भी हैं:
1. आपके लेखन की प्रेरणा क्या होती है?
यह सवाल मुझे साहित्यकार के विचारों और मानसिकता को समझने में मदद करेगा। उनके लेखन के पीछे की प्रेरणा, उनकी सोच और दृष्टिकोण जानने से मैं साहित्य के प्रति उनके दृष्टिकोण को बेहतर तरीके से समझ सकती हूँ।
2. क्या आपके व्यक्तिगत अनुभवों का आपके लेखन पर प्रभाव पड़ा है?
अधिकांश साहित्यकार अपने जीवन के अनुभवों को अपनी रचनाओं में समाहित करते हैं। इस सवाल से मैं यह जानने की कोशिश करूंगी कि उनके व्यक्तिगत अनुभवों ने उनकी लेखनी को किस प्रकार आकार दिया।
3. आपका मानना है कि साहित्य समाज में क्या भूमिका निभाता है?
साहित्यकार के दृष्टिकोण से यह जानना रोचक होगा कि साहित्य समाज की सोच, विचार और व्यवहार को कैसे प्रभावित करता है।
4. आपके अनुसार एक अच्छा लेखक बनने के लिए क्या गुण होने चाहिए?
यह सवाल मुझे लेखक बनने की प्रक्रिया और आवश्यक गुणों के बारे में मार्गदर्शन देने में मदद करेगा। इसके जरिए मैं यह जानने की कोशिश करूंगी कि एक लेखक के लिए क्या महत्वपूर्ण है – रचनात्मकता, समर्पण, या अन्य कोई गुण।
5. क्या आपको लगता है कि वर्तमान समय में साहित्य का प्रभाव पहले जैसा है?
इस सवाल से मुझे यह जानने का अवसर मिलेगा कि साहित्यकार वर्तमान समय में साहित्य के महत्व को कैसे देखते हैं। क्या उन्होंने देखा है कि सामाजिक मीडिया और अन्य नई तकनीकों ने साहित्य को कैसे प्रभावित किया है?
4. संस्मरण साहित्य क्या है? इसके बारे में जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर: संस्मरण साहित्य एक प्रकार का आत्मकथात्मक लेखन है जिसमें लेखक अपने व्यक्तिगत अनुभवों, विचारों और घटनाओं का वर्णन करता है। इसमें लेखक अपने जीवन की खास यादों और महत्वपूर्ण क्षणों को साझा करता है, और इसके माध्यम से वह पाठकों के साथ अपने आत्मीय अनुभवों और भावनाओं को साझा करता है। संस्मरण साहित्य में लेखक अपने जीवन के किसी विशेष कालखंड, घटना, या समय के बारे में लिखता है, लेकिन यह पूरी तरह से आत्मकथा नहीं होता, क्योंकि इसमें लेखक अपनी पूरी ज़िन्दगी की नहीं, बल्कि किसी विशेष पहलू या घटना पर ध्यान केंद्रित करता है।
संस्मरण साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ:
1. व्यक्तिगत अनुभवों का वर्णन: संस्मरण में लेखक अपनी व्यक्तिगत यादों और अनुभवों का वर्णन करता है। यह उसके जीवन के किसी खास घटना या समय की कहानी हो सकती है, जैसे कि बचपन, शिक्षा, संघर्ष, या कोई महत्वपूर्ण यात्रा।
2. भावनात्मक और संवेदनशीलता: संस्मरण साहित्य में लेखक की भावनाओं का गहरा असर होता है। लेखक पाठकों से अपनी निजी यादों के माध्यम से जुड़ने की कोशिश करता है, जो अधिकतर भावनात्मक और संवेदनशील होते हैं।
3. साक्षात्कार और घटनाएँ: संस्मरण में लेखक अक्सर महत्वपूर्ण घटनाओं, मुलाकातों या साक्षात्कारों का विवरण देता है, जो उसके जीवन में विशेष महत्व रखते हैं।
4. साहित्यिक और ऐतिहासिक संदर्भ: बहुत बार संस्मरण साहित्य में लेखक अपने अनुभवों के साथ-साथ उस समय के सामाजिक, राजनीतिक और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य का भी विवरण देता है, ताकि पाठक उस समय के हालात को बेहतर समझ सकें।
5. स्वतंत्र और निजी दृष्टिकोण: यह साहित्यकृतियाँ अक्सर लेखक की खुद की नजर से लिखी जाती हैं, जो एक व्यक्तिगत दृष्टिकोण और आत्म-विश्लेषण पर आधारित होती हैं।