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NCERT Class 12 Hindi Antra Chapter 9 कवित्त
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कवित्त
Chapter: 9
अंतरा काव्य खंड |
प्रश्न-अभ्यास |
1. कवि ने ‘चाहत चलन ये संदेसो ले सुजान को’ क्यों कहा है?
उत्तर: इस पंक्ति में कवि की अपनी प्रेमिका से मिलने की व्यग्रता दिखाई देती है। वह रह-रहकर अपनी प्रेमिका से मिलने की प्रार्थना कर रहा है। कवि अपनी प्रेयसी सुजान के दर्शन की अभिलाषा काफी समय से कर रहा है। वह आने का झूठा वादा करती है और आती नहीं है। मिलने की आस में कवि के प्राण अटक रखे हैं। यदि एक बार उसका संदेश आ जाए, तो कवि उन्हें लेकर ही मृत्यु को प्राप्त हो जाते। अब तो उसके प्राण निकलने को ही हैं। वे अधर तक आ गए हैं। वे अभी भी अटके हुए हैं। उनकी चाहत है कि निकलने से पहले वे सुजान का संदेशा ले लें अर्थात् सुजान के संदेश या आगमन की प्रतीक्षा में उसके प्राण अटके हुए हैं।
2. कवि मौन होकर प्रेमिका के कौन से प्रण पालन को देखना चाहता है?
उत्तर: कवि घनानंद मौन होकर प्रेमिका सुजान के उस प्रण-पालन (प्रतिज्ञा) को देखना चाहता है जो उसने पूर्व-काल में उससे प्रेम करते समय किया था। कवि के अनुसार उसकी प्रेमिका उसकी ओर से कठोर बनी हुई है। वह न उससे मिलने आती है और न उसे कोई संदेशा भेजती है। उसकी पुकार को कब उसकी प्रेमिका अनसुना करती है, कवि यही देखना चाहता है।
3. कवि ने किस प्रकार की पुकार से ‘कान खोलि है’ की बात कही है?
उत्तर: कवि ने अपनी पुकार से नायिका के कान खोलने की बात कही है- ‘कबहूँ तो मेरियै पुकार कान खोलि है।’ कवि कहता है कि वह कब तक कानों में रुई डाले रहेगी। कब तक बहरे होने का ढोंग करती रहोगी? कभी तो तुम्हारे कानों में मेरे दिल की आवाज पहुँचेगी और तुम्हारे कान खुलेंगे। एक दिन ऐसा अवश्य आएगा कि मेरे हृदय की पुकार उसके कानों तक अवश्य पहुँचेगी। भाव यह है कि कवि को विश्वास है कि एक दिन उसकी प्रेमिका अवश्य उसके प्रति बैरुखा रवैया छोड़कर उसे अपना लेगी।
4. घनानंद की रचनाओं की भाषिक विशेषताओं को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: घनानंद की रचनाओं की भाषिक विशेषताएँ इस प्रकार हैं–
(क) घनानंद की भाषा परिष्कृत और साहित्यिक ब्रजभाषा है।
(ख) घनानंद की रचनाओं में अलंकारों का बड़ा सुंदर वर्णन मिलता है। वे अलंकारों का प्रयोग बड़ी प्रवीणता से करते थे। उनकी दक्षता का परिचय उनकी रचनाओं का पठन करते ही पता चल जाता है।
(ग) घनानंद भाषा की व्यंजकता बढ़ाने में कुशल थे।
(घ) घनानंद ब्रजभाषा के प्रवीण कवि थे। इनका भाषा साहित्यिक तथा परिष्कृत है।
(ङ) घनानंद की भाषा में लाक्षणिकता का समावेश है।
5. निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकारों की पहचान कीजिए।
(क) कहि कहि आवन छबीले मनभावन को, गहि गहि राखति ही दैं दैं सनमान को।
उत्तर: इस पंक्ति में ‘कहि कहि’, ‘गहि गहि’ तथा ‘दैं दैं’ शब्दों का एक ही साथ बार बार आना पुनरुक्ति अलंकार है।
(ख) कूक भरी मूकता बुलाय आप बोलि है।
उत्तर: प्रस्तुत पंक्ति में कवि ने अपनी चुप्पी को कोयल की कूक के समान बताया है। इसके माध्यम से कवि अपनी प्रेमिका पर कटाक्ष करता है। उसके अनुसार वह कुछ नहीं कहेगा परन्तु फिर भी वह उसके कारण चली आएगी। हम यह जानते हैं कि चुप्पी कोई सुन नहीं सकता है। परन्तु फिर भी कवि मानता है कि उसे सुनकर चली आएगी इसलिए यह विरोधाभास अलंकार का उदाहरण है।
(ग) अब न घिरत घन आनंद निदान को।
उत्तर: प्रस्तुत पंक्ति में ‘घन आनंद’ शब्द के दो अर्थ है एक का अर्थ है आनंद दूसरे का अर्थ है घनानंद। इसके आलवा, शब्द ‘घ’ की पुनरुक्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है।
6. निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए–
(क) बहुत दिनान को अवधि आसपास परे/खरे अरबरनि भरे हैं उठि जान को।
उत्तर: प्रस्तुत पंक्ति में कवि यह कहना चाहता है कि आपका इंतज़ार किए हुए बहुत समय बीत चुका है। मेरे प्राण अब तो निकल जाने को व्यग्र हैं। अर्थात निकलने वाले हैं। भाव यह है कि कवि को आशा है कि उसकी प्रेमिका ज़रूर आएगी परंतु वह नहीं आई। अब उसके जीवन के कुछ ही दिन शेष बचे हैं और वह उसे अपने अंतिम दिनों में देखना चाहता है।
(ख) मौन हू सौं देखिहाँ कितेक पन पालिहौ जू/कूकभरी मूकता बुलाय आप बोलिहै।
उत्तर: कवि घनानंद कहते है की वह चुप होकर देखना चाहते हैं कि उनकी प्रेमिका कब तक उनसे दूर रहती है। कवि कहते है कि मेरी कूकभरी चुप्पी तुम्हें बोलने पर विवश कर देगी। भाव यह है कि कवि की प्रेमिका उससे बोल नहीं रही है। कवि को लगता है की उनकी ख़ामोशी उनकी प्रेमिका को बोलने के लिए विवश कर देगी।
7. संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए–
(क) झूठी बतियानि की पत्यानि तें उदास है, कै चाहत चलन ये संदेसो लै सुजान को।
उत्तर: प्रसंग: प्रस्तुत पंक्ति “अंतरा भाग दो” नामक पुस्तक में संकलित कविता से ली गई है। इसकी रचना रीतिकाल के कवि घनानंद ने की है। प्रस्तुत पंक्तियों में कवि प्रेमिका से वियोग के कारण अपनी दुःखद स्थिति का वर्णन करता है। वह प्रेमिका से मिलने की आस लगाए बैठा है परन्तु प्रेमिका उसकी ओर से विमुख बनी बैठी है।
व्याख्या: कवि कहता है कि मैंने तुम्हारे द्वारा कही गई झूठी बातों पर विश्वास किया था लेकिन उन पर विश्वास करके आज मैं उदास हूँ। मुझे आनंद देने वाले बादल भी अब दिखाई नहीं दे रहे। मेरी मृत्यु व मेरे प्राण सिर्फ़ इसी लिए रुके है कि तुम्हारा कोई संदेश आए तो उसको पढ़ के मृत्यु को प्राप्त हो जाऊँ।
(ख) जान घनआनंद यों मोहिं तुम्है पैज परी कबहुँ तौ मेरियै पुकार कान खोलि है।
उत्तर: प्रसंग: प्रस्तुत पंक्ति “अंतरा भाग दो” नामक पुस्तक में संकलित कविता से ली गई है। इसकी रचना रीतिकाल के कवि घनानंद ने की है। इस पंक्ति में कवि अपनी प्रेमिका के वियोग से उत्पन्न अपने दुःख का वर्णन करते हैं।
व्याख्या: कवि घनानंद कहते हैं कि वह मौन रहकर देखना चाहते हैं कि उनकी प्रेमिका कब तक उनसे दूर रहती है। कवि को आशा है कि उनकी दुःखभरी खामोशी प्रेमिका को व्याकुल कर देगी और वह लौट आएगी। कवि को विश्वास है कि उनकी चुप्पी उनकी प्रेमिका को बोलने और मिलने के लिए विवश कर देगी।
योग्यता-विस्तार |
1. निम्नलिखित कवियों के तीन-तीन कवित्त एकत्रित कर याद कीजिए–
तुलसीदास, रसखान, पद्माकर, सेनापति।
उत्तर: विद्यार्थी स्वयं करें।
2. पठित अंश में से अनुप्रास अलंकार की पहचान कर एक सूची तैयार कीजिए।
उत्तर: अनुप्रास अलंकार की सूची इस प्रकार है–
(i) घिरत घन आनंद निदान को।
(ii) चाहत चलन’।
(iii) पन पालिहौ..।
(iv) टेक टरें”।
(v) जात जरें”।
(vi) सुख साज समाज।
(vii) पूरन प्रेम।
(viii) सोचि सुधारि।
(ix) चारु चरित्र।
(x) रचि राखिख।
(xi) हियो हितपत्र।