NCERT Class 11 Psychology Chapter 5 समीक्षात्मक प्रश्न

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NCERT Class 11 Psychology Chapter 5 समीक्षात्मक प्रश्न

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Chapter: 5

समीक्षात्मक प्रश्न

1. अधिगम क्या है? इसकी प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?

उत्तर: अधिगम मनुष्य के व्यवहारों में अधिगम की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। यह व्यक्ति के अनुभव, अभ्यास और पर्यावरण से नया ज्ञान, व्यवहार और कौशल अर्जित करता है। 

इसकी प्रमुख विशेषताएँ हैं—

(i) अधिगम में सदैव किसी न किसी तरह का अनुभव सम्मिलित रहता है। हम एक घटना को बहुत बार एक निश्चित क्रम में घटित होते हुए अनुभव करते हैं। हम जान जाते हैं कि कोई घटना के तुरंत बाद दूसरी निश्चित घटनाएँ होंगी। उदाहरणार्थ, अधिगम अनुभवों से प्राप्त ज्ञान या व्यवहार परिवर्तन की प्रक्रिया है। बार-बार संतोषजनक परिणाम मिलने से आदत बनती है, जबकि कभी-कभी एक ही अनुभव भी अधिगम के लिए पर्याप्त होता है, जैसे दियासलाई से अंगुली जलने पर बच्चा भविष्य में सावधान हो जाता है।

(ii) अधिगम के कारण व्यवहार में होने वाले परिवर्तन अपेक्षाकृत स्थायी होते हैं। इनको व्यवहार में होने वाले उन परिवर्तनों से अलग पहचानना चाहिए जो न तो स्थायी होते हैं और न ही सीखे गए होते हैं। उदाहरणार्थ, थकान, औषधि या आदत के कारण व्यवहार में अस्थायी परिवर्तन हो सकते हैं, लेकिन इन्हें अधिगम नहीं माना जाता। जैसे, लंबे समय तक पढ़ाई या कार चलाने के बाद थकान होने पर इसे छोड़ देना अधिगम का संकेत नहीं है।

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2. प्राचीन अनुबंधन किस प्रकार साहचर्य द्वारा अधिगम को प्रदर्शित करता है?

उत्तर: प्राचीन अनुबंधन (Classical Conditioning) अधिगम की वह प्रक्रिया है जिसमें कोई प्राकृतिक उद्दीपन (जैसे भोजन) किसी निष्क्रिय उद्दीपन (जैसे घंटी की ध्वनि) के साथ जोड़ा जाता है, जिससे बाद में निष्क्रिय उद्दीपन अकेले ही प्रतिक्रिया उत्पन्न करने लगता है। यह सिद्धांत इवान पैवलॉव के प्रयोगों पर आधारित है, जिसमें कुत्तों को घंटी और भोजन के साहचर्य के माध्यम से प्रशिक्षित किया गया।

अनुबंधन अनुक्रिया के अधिगम को प्रभावित करने वाले कुछ प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं:

(i) उद्दीपकों के बीच समय संबंध: प्राचीन अनुबंधन प्रक्रियाएँ प्रमुखतः चार प्रकार की होती हैं। इनका आधार अनुबंधित उद्दीपक और अननुबंधित उद्दीपक की शुरूआत के बीच समय संबंध पर आधारित होता है। पहली तीन प्रक्रियाएँ अग्रवर्ती अनुबंधन (forward conditioning) की हैं तथा चौथी प्रक्रिया पश्चगामी अनुबंधन (backward conditioning) की है। 

(ii) अननुबंधित उद्दीपकों के प्रकार: प्राचीन अनुबंधन के अध्ययनों में प्रयुक्त अननुबंधित उद्दीपक मूलतः दो प्रकार के होते हैं – प्रवृत्यात्मक (appetitive) तथा विमुखी (aversive)। प्रवृत्यात्मक अननुबंधित उद्दीपक स्वतः सुगम्य अनुक्रियाएँ उत्पन्न करते हैं; जैसे खाना, पीना, दुलारना आदि। ये अनुक्रियाएँ संतोष और प्रसन्नता प्रदान करती हैं। विमुखी अननुबंधित उद्दीपक, जैसे शोर या पीड़ा, परिहार और पलायन की अनुक्रियाएँ उत्पन्न करते हैं। प्रवृत्यात्मक अनुबंधन धीमा होता है, जबकि विमुखी अनुबंधन तीव्र उद्दीपक के कारण दो-तीन प्रयासों में ही स्थापित हो जाता है।

(iii) अनुबंधित उद्दीपकों की तीव्रता: अनुबंधित उद्दीपकों की तीव्रता प्रवृत्यात्मक और विमुखी प्राचीन अनुबंधन दोनों की दिशा को प्रभावित करती है। अनुबंधित उद्दीपक जितना तीव्र होगा, अनुबंधित अनुक्रिया उतनी ही तेजी से अर्जित होगी और अनुबंधन के लिए कम प्रयासों की आवश्यकता होगी।

3. क्रियाप्रसूत अनुबंधन की परिभाषा दीजिए। क्रियाप्रसूत अनुबंधन को प्रभावित करने वाले कारकों पर चर्चा कीजिए।

उत्तर: अनुबंधन की खोज सर्वप्रथम बी.एफ. स्किनर द्वारा की गई। उन्होंने ऐच्छिक अनुक्रियाओं के घटित होने का अध्ययन किया, जो प्राणी द्वारा अपने पर्यावरण में सक्रिय होने पर होती हैं। स्किनर ने इसे क्रियाप्रसूत की संज्ञा दी। क्रियाप्रसूत वे व्यवहार या अनुक्रियाएँ हैं, जो जानवरों और मानवों द्वारा ऐच्छिक रूप से प्रकट की जाती हैं और उनके नियंत्रण में रहती हैं। क्रियाप्रसूत संज्ञा का उपयोग इसलिए किया गया है क्योंकि प्राणी पर्यावरण में सक्रिय होकर कार्य करता है। क्रियाप्रसूत व्यवहार का अनुबंधन क्रियाप्रसूत अनुबंधन कहलाता है।

इसे प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक हैं—

(i) प्रबलन के प्रकार: प्रबलन धनात्मक अथवा ऋणात्मक हो सकता है। धनात्मक प्रबलन में वे उद्दीपक शामिल होते हैं जिनका परिणाम सुखद होता है। धनात्मक प्रबलन जिस नैमित्तिक अनुक्रिया से प्राप्त होता है उसे दृढ़ करता है और बनाए रखता है। धनात्मक प्रबलक आवश्यताओं की पूर्ति करते हैं, जिनमें भोजन, पानी, तमगा, प्रशंसा, धन, प्रतिष्ठा, सूचनाएँ आदि सम्मिलित हैं। ऋणात्मक प्रबलक अप्रिय एवं पीड़ादायक उद्दीपक होते हैं। ऋणात्मक प्रबलन वह प्रक्रिया है जिससे प्राणी पीड़ादायक उद्दीपकों से बचना या दूर रहना सीखते हैं, जैसे ठंड से बचने के लिए ऊनी कपड़े पहनना। यह परिहार और पलायन अनुक्रिया को बढ़ाता है, जबकि दंड केवल अनुक्रिया को अस्थायी रूप से दबाता है। कठोर दंड का प्रभाव अधिक समय तक रहता है, लेकिन यह स्थायी नहीं होता और दंडित व्यक्ति में प्रतिकूल भावनाएँ उत्पन्न कर सकता है।

(ii) प्रबलन की संख्या तथा अन्य विशेषताएँ: प्रबलन की संख्या से आशय उन प्रयासों की संख्या से है, प्रबलन की मात्रा प्राणी को प्राप्त उद्दीपक की मात्रा को दर्शाती है, जबकि प्रबलन की गुणवत्ता उद्दीपक के प्रकार को दर्शाती है, जैसे केक उच्च गुणवत्ता वाला और मटर निम्न गुणवत्ता वाला प्रबलक है। नैमित्तिक अनुबंधन की गति साधारणतया उतनी ही बढ़ती है जितनी प्रबलनों की संख्या, मात्रा और गुणवत्ता बढ़ती है।

(iii) प्रबलन अनुसूचियाँ: प्रबलन अनुसूची प्रबलन देने की व्यवस्था है, जो अनुबंधित अनुक्रियाओं को प्रभावित करती है। यदि हर बार अनुक्रिया पर प्रबलन दिया जाए तो इसे सतत प्रबलन कहते हैं। इसके विपरीत, सविराम अनुसूची में अनुक्रियाओं को कभी प्रबलित किया जाता है, कभी नहीं। इसे हम आंशिक प्रबलन (partial reinforcement) कहते हैं। यह देखा गया है कि आंशिक प्रबलन, सतत प्रबलन की अपेक्षा में विलोप के प्रति अधिक विरोध पैदा करता है।

(iv) विलंबित प्रबलन: किसी भी प्रबलन की प्रबलनकारी क्षमता विलंब के साथ-साथ कम होती जाती है। यह देखा गया है कि प्रबलन प्रदान करने में विलंब से निष्पादन का स्तर निकृष्ट हो जाता है। बच्चे आमतौर पर तुरंत मिलने वाला छोटा पुरस्कार लेना पसंद करते हैं बजाय लंबे अंतराल के बाद बड़े पुरस्कार के।

4. एक विकसित होते हुए शिशु के लिए एक अच्छा भूमिका प्रतिरूप अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। अधिगम के उस प्रकार पर विचार-विमर्श कीजिए जो इसका समर्थन करता है।

उत्तर: एक विकसित होते हुए शिशु के लिए एक अच्छा भूमिका प्रतिरूप (Role Model) महत्वपूर्ण होता है क्योंकि शिशु पर्यवेक्षण और अनुकरण (Observation and Imitation) के माध्यम से सीखता है। यह सामाजिक व्यवहार प्रौढ़ों द्वारा किया गया प्रेक्षण तथा उनकी नकल करके सीखते हैं। कपड़े पहनना, बालों को सँवारने की शैली और समाज में किस प्रकार रहा जाए यह सभी दूसरों को देखकर सीखा जाता है। विभिन्न अध्ययनों से यह भी ज्ञात हुआ है कि बच्चों में व्यक्तित्व का विकास भी प्रेक्षणात्मक अधिगम के द्वारा ही होता है। इस सिद्धांत के अनुसार, बच्चे अपने आसपास के लोगों के व्यवहार, दृष्टिकोण और भावनात्मक अभिव्यक्तियों की नकल करके सीखते हैं। यदि उन्हें सकारात्मक और अनुकरणीय भूमिका प्रतिरूप मिलते हैं, तो वे बेहतर सामाजिक एवं संज्ञानात्मक कौशल विकसित कर सकते हैं।

5. वाचिक अधिगम के अध्ययन में प्रयुक्त विधियों की व्याख्या कीजिए।

उत्तर: वाचिक अधिगम के अध्ययन में प्रयुक्त विधिया निम्नलिखित है–

(i) युग्मित सहचर अधिगम: यह विधि उद्दीपक-उद्दीपक अनुबंधन और उद्दीपक-अनुक्रिया अधिगम के समान है। इस विधि का उपयोग मातृभाषा के शब्दों के किसी विदेशी भाषा के पर्याय सीखने में किया जाता है। पहले युग्मित सहचरों की एक सूची बनाई जाती है। युग्मों के पहले शब्द का उपयोग उद्दीपक के रूप में किया जाता है।

(ii) क्रमिक अधिगम: वाचिक अधिगम की इस विधि का उपयोग यह जानने के लिए किया जाता है कि प्रतिभागी किसी शाब्दिक एकांशों की सूची को किस तरह सीखता है और सीखने में कौन-कौन सी प्रक्रियाएँ शामिल हैं। सबसे पहले शब्दों की एक सूची तैयार कर ली जाती है। सूची में निरर्थक शब्दांश, अधिक परिचित शब्द, कम परिचित शब्द, आपस में संबंधित शब्द आदि हो सकते हैं।

(iii) मुक्त पुनःस्मरण: इस विधि में प्रतिभागियों को शब्दों की सूची पढ़ाई जाती है और फिर उन्हें याद करने के लिए कहा जाता है। अध्ययन बताते हैं कि सूची की शुरुआत और अंत के शब्द बीच के शब्दों की तुलना में अधिक आसानी से याद रहते हैं।

6. कौशल से आप क्या समझते हैं? किसी कौशल के अधिगम के कौन-कौन से चरण होते हैं?

उत्तर: कौशल को किसी जटिल कार्य को आसानी से और दक्षता से करने की योग्यता के रूप में परिभाषित किया गया है। कार चलाना, हवाई जहाज उड़ाना, समुद्री जहाज चलाना, आशुलिपि में लिखना तथा लिखना एवं पढ़ना आदि कौशल के उदाहरण हैं। ये कौशल अनुभव और अभ्यास से सीखे जाते हैं।  इसके अधिगम के चरण हैं—संज्ञानात्मक (cognitive), साहचर्यात्मक (associative) तथा स्वायत्त (autonomous)।

(i) संज्ञानात्मक (cognitive): इस चरण में अधिगमकर्ता को दिए गए निर्देशों को समझना और याद करना पड़ता है। उसे यह भी समझना पड़ता है कि कार्य का निष्पादन किस प्रकार किया जाना है। और व्यक्ति को परिवेश से मिलने वाले सभी संकेतों, दिए गए निर्देशों की माँग तथा अपनी अनुक्रियाओं के परिणामों को सदा अपनी चेतना में रखना होता है।

(ii) साहचर्यात्मक (associative): कौशल अधिगम का दूसरा चरण साहचर्यात्मक होता है। इसमें विभिन्न प्रकार की सांवेदिक सूचनाओं अथवा उद्दीपकों को उपयुक्त अनुक्रियाओं से जोड़ना होता है। अभ्यास की मात्रा जैसे-जैसे बढ़ती जाती है त्रुटियों की मात्रा घटती जाती है, निष्पादन की गुणवत्ता बढ़ती जाती है और किसी अनुक्रिया को करने में लगने वाला समय भी घटता जाता है। 

(iii) स्वायत्त (autonomous): इस चरण में निष्पादन में दो महत्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं। साहचर्यात्मक चरण की अवधानिक माँगें (attentional demands) कम हो जाती हैं और बाह्य कारकों द्वारा उत्पन्न की गई बाधाएँ घट जाती हैं। अंत में सचेतन प्रयत्न की अल्प माँगों के साथ कौशलपूर्ण निष्पादन स्वचालिता प्राप्त कर लेता है।

7. सामान्यीकरण तथा विभेदन के बीच आप किस तरह अंतर करेंगे?

उत्तर: सामान्यीकरण समानता के कारण होता है, जबकि विभेदन भिन्नता के प्रति अनुक्रिया होती है। उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि एक बच्चा काले कपड़े पहनने वाले और बड़ी मूँछों वाले व्यक्ति से डरने की अनुक्रिया से जुड़ा हुआ है। बाद में, जब वह एक नए व्यक्ति से मिलता है, जो काले कपड़े पहने हुए है और दाढ़ी रखता है, तो वह बच्चा भयभीत हो जाता है।

8. अधिगम के लिए अभिप्रेरणा का होना क्यों अनिवार्य है?

उत्तर: जीवन-रक्षा की आवश्यकता सभी जीवित प्राणियों में होती है और मनुष्यों में जीवन-रक्षा के साथ-साथ संवृद्धि की भी आवश्यकता होती है। अभिप्रेरणा वह मानसिक और शारीरिक अवस्था है जो प्राणी को उसकी आवश्यकता पूरी करने के लिए प्रेरित करती है। यह लक्ष्य प्राप्ति तक सक्रिय रहती है और अधिगम के लिए आवश्यक होती है। जैसे, भूख लगने पर बच्चे मिठाई खोजते हैं या भूखा चूहा बॉक्स में भोजन तलाशता है। इसी कार्य को करने में संयोग से उससे बॉक्स की दीवार में बना एक लीवर दब जाता है और बॉक्स में भोजन का एक टुकड़ा गिर जाता है। भूखा चूहा उसे खा लेता है। बार-बार यही क्रिया दोहराता रहने से चूहा वह सीख जाता है कि लीवर दबाने से भोजन मिलता है।

9. अधिगम के लिए तत्परता के विचार का क्या अर्थ है?

उत्तर: प्राणियों की अधिगम क्षमता उनकी जैविक सीमाओं पर निर्भर करती है। विभिन्न प्रजातियों में उद्दीपक-उद्दीपक (S-S) या उद्दीपक-अनुक्रिया (S-R) साहचर्य स्थापित करने की क्षमता अलग-अलग होती है। मनुष्य और वनमानुष जटिल साहचर्य आसानी से सीख सकते हैं, जबकि बिल्लियों और चूहों के लिए यह कठिन या असंभव हो सकता है। इसलिए, प्रत्येक प्राणी केवल उन्हीं साहचर्यों को सीख सकता है जिनके लिए वह आनुवंशिक रूप से सक्षम है। तत्परता के संप्रत्यय को एक ऐसी सतत विमा या आयाम के रूप में अच्छी तरह से समझा जा सकता है जिसके एक छोर पर वे साहचर्य या सीखे जाने वाले कार्य रखे जा सकते हैं जिनको सीखना किसी प्रजाति के प्राणियों के लिए सरल है तथा दूसरे छोर पर वे साहचर्य या सीखे जाने वाले कार्य रखे जा सकते हैं, जिनको सीखने के लिए किसी प्रजाति के प्राणियों में तत्परता बिलकुल भी नहीं है। अतः वे उन्हें नहीं सीख सकते।

10. संज्ञानात्मक अधिगम के विभिन्न रूपों की व्याख्या कीजिए।

उत्तर: संज्ञानात्मक अधिगम के विभिन्न रूप है–

(i) अंतर्दृष्टि अधिगम: कोहलर (Kohler) ने अधिगम का एक ऐसा मॉडल प्रदर्शित किया जिसकी व्याख्या अनुबंधन के आधार पर सरलता से नहीं की जा सकती। उन्होंने चिम्पैंजी पर अनेक प्रयोग किए, जिसमें चिम्पैंज़ी को जटिल समस्याओं का समाधान करना था। कोहलर ने चिम्पैंज़ी को एक बंद खेल क्षेत्र में रखा जहाँ भोजन था, लेकिन चिम्पैंजी की पहुँच के बाहर था। इस खेल क्षेत्र में कुछ उपकरण; जैसे- डंडे तथा बॉक्स भी रख दिए गए थे। चिम्पैंज़ी ने तेज़ी से बॉक्स पर खड़े होना या डंडे से भोज्य पदार्थ को अपनी ओर खिसकाना सीख लिया।

अंतर्दृष्टि अधिगम में समस्या का समाधान अचानक स्पष्ट होता है, जैसा कि कोहलर के चिम्पैंजी प्रयोग में देखा गया। इसमें प्रयत्न-त्रुटि विधि के बजाय संज्ञानात्मक समझ महत्वपूर्ण होती है। एक बार समाधान मिलने के बाद, भविष्य में उसे तुरंत दोहराया जा सकता है। यह केवल उद्दीपक-अनुक्रिया साहचर्य पर आधारित नहीं होता, बल्कि साधन और साध्य के बीच संज्ञानात्मक संबंध को दर्शाता है, जिससे इसका सामान्यीकरण अन्य समान परिस्थितियों में भी संभव होता है।

(ii) अव्यक्त अधिगम: एक अन्य प्रकार के संज्ञानात्मक अधिगम को अव्यक्त अधिगम कहते हैं। अव्यक्त अधिगम में एक नया व्यवहार सीख लिया जाता है, किंतु व्यवहार दर्शाया नहीं जाता, जब तक कि उसे दर्शाने के लिए प्रबलन प्रदान नहीं किया जाता है। टोलमैन (Tolman) ने अव्यक्त अधिगम के संप्रत्यय को अपना प्रारंभिक योगदान दिया। अव्यक्त अधिगम को समझने के लिए उनके एक प्रयोग का संक्षिप्त वर्णन किया जा रहा है। टोलमैन ने चूहों के दो समूहों को भूल भुलैया में छोड़ा तथा उन्हें अन्वेषण करने का अवसर दिया।

11. अधिगम अशक्तता वाले छात्रों की पहचान हम कैसे कर सकते हैं?

उत्तर: अधिगम अशक्तता वाले छात्रों की पहचान हम कुछ इस तरह से कर सकते है–

(i) किसी भी छात्रों को शब्दों या वाक्यों को पढ़ने में कठिनाई होती है, सीखने की अक्षमता हो सकती है।

(ii) यदि किसी विद्यार्थी को सीखने में विकलांगता हो, तो उसे किसी विशेष अक्षर के उच्चारण में कठिनाई हो सकती है।

(iii) छात्र को लिखने में समस्या होती है जैसे वे पत्र या शब्दों को कॉपी करने में असफल हो जाते है।

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