NCERT Class 11 Psychology Chapter 4 संवेदी, अवधानिक एवं प्रात्यक्षिक प्रक्रियाएँ

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NCERT Class 11 Psychology Chapter 4 संवेदी, अवधानिक एवं प्रात्यक्षिक प्रक्रियाएँ

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Chapter: 4

समीक्षात्मक प्रश्न

1. ज्ञानेंद्रियों की प्रकार्यात्मक सीमाओं को व्याख्या कीजिए।

उत्तर: ज्ञानेंद्रियाँ कुछ सीमाओं में कार्य करती हैं। उदाहरण के लिए, हमारी आँखें ऐसी चीजें नहीं देख सकती हैं जो बहुत धुँधली अथवा बहुत द्युतिमान होती हैं। इसी प्रकार हमारे कान बहुत धीमी अथवा बहुत तीव्र ध्वनि नहीं सुन सकते हैं। किसी विशेष संवेदी तंत्र को क्रियाशील करने के लिए जो न्यूनतम मूल्य अपेक्षित होता है उसे निरपेक्ष – सीमा अथवा निरपेक्ष देहली (absolute threshold or absolute limen, AL) कहते हैं। उदाहरण के लिए,उदाहरण के लिए, नेत्र बहुत अधिक मंद या अत्यधिक तेज़ प्रकाश को नहीं देख सकते, कान केवल एक विशिष्ट आवृत्ति की ध्वनियाँ सुन सकते हैं, और त्वचा केवल कुछ निश्चित तापमान की संवेदनाएँ महसूस कर सकती है।

निरपेक्ष सीमा (Absolute Threshold) किसी उद्दीपन को संवेदी तंत्र द्वारा ग्रहण करने के लिए आवश्यक न्यूनतम तीव्रता या परिमाण को दर्शाती है। यह वह बिंदु होता है जहां एक उद्दीपन पहली बार संवेदना उत्पन्न करता है। उदाहरणस्वरूप, पानी में धीरे-धीरे चीनी मिलाने पर, जब उसकी मिठास पहली बार महसूस होती है, तो यह मिठास की निरपेक्ष सीमा कहलाती है। इस संकल्पना का अध्ययन मनोभौतिकी (Psychophysics) के अंतर्गत किया जाता है। निरपेक्ष सीमा वह न्यूनतम उद्दीपन है, जिसे पहली बार अनुभव किया जा सकता है, जबकि भेद सीमा दो उद्दीपनों के बीच न्यूनतम अंतर है, जिससे वे अलग महसूस हों। संवेदना में ज्ञानेंद्रियाँ, तंत्रिका मार्ग और मस्तिष्क की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, और इनमें कोई भी दोष संवेदी क्षति का कारण बन सकता है।

2. अवधान को परिभाषित कीजिए। इसके गुणों की व्याख्या कीजिए।

उत्तर: अवधान (Attention) मानसिक प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से हम अपने आसपास की अनेक उत्तेजनाओं में से किसी विशेष उत्तेजना पर ध्यान केंद्रित करते हैं। इसे संज्ञानात्मक संसाधनों (cognitive resources) को व्यवस्थित करने की प्रक्रिया के रूप में देखा जा सकता है।

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अवधान के गुण:

(i) चयनात्मकता (Selectivity): हम केवल महत्वपूर्ण उत्तेजनाओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं और बाकी को अनदेखा कर देते हैं। उदाहरण: भीड़भाड़ वाले कमरे में, हम किसी विशेष व्यक्ति की आवाज़ को सुन सकते हैं और अन्य ध्वनियों को नज़रअंदाज़ कर सकते हैं (cocktail party effect)।

(ii) एकाग्रता (Concentration): किसी कार्य पर ध्यान केंद्रित करने की क्षमता अवधान का महत्वपूर्ण गुण है। यह पढ़ाई, खेल और किसी विशेष गतिविधि में प्रदर्शन को प्रभावित करता है।

(iii) सतता (Sustainability): हम कितनी देर तक किसी चीज़ पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं, यह हमारी मानसिक ऊर्जा और रुचि पर निर्भर करता है।

(iv) विभाज्यता (Divisibility): व्यक्ति एक ही समय में कई चीज़ों पर ध्यान दे सकता है, लेकिन इसकी एक सीमा होती है। उदाहरण: ड्राइविंग के दौरान म्यूजिक सुनना और ट्रैफिक संकेतों पर ध्यान देना।

(v) परिवर्तनशीलता (Shiftability): अवधान को आवश्यकता के अनुसार एक कार्य से दूसरे कार्य की ओर स्थानांतरित किया जा सकता है।

3. चयनात्मक अवधान के निर्धारकों का वर्णन कीजिए। चयनात्मक अवधान संधृत अवधान से किस प्रकार भिन्न होता है?

उत्तर: चयनात्मक अवधान (Selective Attention) का तात्पर्य किसी विशेष वस्तु या सूचना पर ध्यान केंद्रित करना और अन्य अवांछित सूचनाओं को अनदेखा करना है।

चयनात्मक अवधान के निर्धारक:

ब्राह्म कारक (External Factors): यह उद्दीपकों के लक्षणों से संबंधित होते हैं। अन्य चीज़ों के स्थिर होने पर उद्दीपकों के आकार, तीव्रता तथा गति अवधान के प्रमुख निर्धारक होते हैं।

उदाहरण: चमकीले रंग की वस्तु या तेज़ आवाज़ वाले विज्ञापन जल्दी ध्यान आकर्षित करते हैं।

(ii) आंतरिक कारक (Internal Factors): जब हम भूखे होते हैं तो भोजन की हल्की गंध को भी हम सूँघ लेते हैं। जिस विद्यार्थी को परीक्षा देनी होती है, वह परीक्षा न देने वाले विद्यार्थी की तुलना में शिक्षक के भाषण पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है।

उदाहरण: जब हम भूखे होते हैं, तो हमें भोजन से जुड़ी चीज़ें अधिक ध्यान आकर्षित करती हैं।

चयनात्मक अवधान संधूत अवधान 
यह अवधान किसी एक चीज़ पर ध्यान केंद्रित कर लेते है।यह अवधान एक साथ पर कई कार्यों पर ध्यान देते है।
परीक्षा के दौरान पढ़ाई पर ध्यान देना।गाड़ी चलाते समय फोन पर बात करना।
अधिक केंद्रित प्रयास की आवश्यकता।मस्तिष्क की मल्टीटास्किंग क्षमता पर निर्भर।

4. चाक्षुष क्षेत्र के प्रत्यक्षण के संबंध में गेस्टाल्ट मनोवैज्ञानिकों को प्रमुख प्रतिज्ञप्ति क्या है?

उत्तर: दृश्य क्षेत्र की धारणा के संबंध में गेस्टाल्ट मनोवैज्ञानिकों का मुख्य प्रस्ताव यह है कि मनुष्य विभिन्न उत्तेजनाओं को एक संगठित “संपूर्ण” के रूप में देखता है, जो एक निश्चित रूप धारण करता है। उनके अनुसार, वस्तु का रूप उसके संपूर्ण रूप में निहित होता है जो असतत भागों से अलग होता है। उनके अनुसार, हम वस्तुओं को उनके संपूर्ण रूप में देखते हैं, न कि उनके अलग-अलग भागों के रूप में। वे “संपूर्णता का सिद्धांत” (principle of pragnanz) प्रस्तुत करते हैं, जिसमें कहा गया है कि हमारा मस्तिष्क चीजों को सबसे सरल और व्यवस्थित रूप में देखने की प्रवृत्ति रखता है।

5. स्थान प्रत्यक्षण कैसे घटित होता है?

उत्तर: स्थान प्रत्यक्षण वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से हमारा मस्तिष्क विभिन्न संवेदी संकेतों की सहायता से किसी वस्तु की स्थिति, दिशा और दूरी का निर्धारण करता है। यह प्रक्रिया दृष्टि, श्रवण और अन्य संवेदी सूचनाओं के संयोजन से संचालित होती है। इसमें कई कारक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जैसे आकार, दूरी, गति, गहराई, छाया और परिप्रेक्ष्य। उदाहरण के लिए, दूर स्थित वस्तुएँ छोटी दिखाई देती हैं और उनके रंग व रूप धुंधले हो सकते हैं, जबकि निकट वस्तुएँ स्पष्ट और बड़ी प्रतीत होती हैं। गति का भी इसमें योगदान होता है, क्योंकि किसी वस्तु की चाल और दिशा से हम उसकी स्थिति को अधिक सटीकता से पहचान सकते हैं। स्थान प्रत्यक्षण के बिना, हम अपने परिवेश में वस्तुओं के बीच के भौतिक संबंधों को सही ढंग से समझने में असमर्थ होंगे।

6. गहनता प्रत्यक्षण के एकनेत्री संकेत क्या है? गहनता प्रत्यक्षण में द्विनेत्री संकेतों की भूमिका की व्याख्या कीजिए।

उत्तर: गहनता प्रत्यक्षण के एकनेत्री संकेत तब प्रभावी होते हैं जब वस्तुओं को केवल एक आँख से देखा जाता है। ऐसे संकेतों का उपयोग कलाकार अपनी द्विविम पेंटिंग में गहराई प्रदर्शित करने के लिए करते हैं। इसलिए इन्हें चित्रीय संकेत भी कहते हैं। कुछ महत्वपूर्ण एकनेत्री संकेत जो द्विविम सतहों में गहराई एवं दूरी का निर्णय लेने में हमारी सहायता करते हैं।

गहनता प्रत्यक्षण में द्विनेत्री संकेतों की भूमिका है–

(i) दृष्टिपटलीय अथवा द्विनेत्री असमता: चूँकि दोनों आँखों की स्थिति हमारे सिर में भिन्न होती है, इसलिए दृष्टिपटलीय असमता घटित होती है। वे एक दूसरे से क्षैतिज रूप से लगभग 6.5 सेंटीमीटर की दूरी पर अलग-अलग होती हैं। इस दूरी के कारण एक ही वस्तु की प्रत्येक आँख की रेटिना पर प्रक्षेपित प्रतिमाएँ कुछ भिन्न होती हैं। दोनों प्रतिमाओं के मध्य इस विभेद को दृष्टिपटलीय असमता कहते हैं।

अभिसरण: जब हम आस-पास की वस्तु को देखते हैं तो हमारी आँखें अंदर की ओर अभिसरित होती हैं, जिससे प्रतिमा प्रत्येक आँख की गर्तिका पर आ सके। मांसपेशियों का एक समूह, आँखें जिस सीमा तक अंदर की ओर परिवर्तित होती हैं के संबंध में संदेश मस्तिष्क को भेजता है और इन संदेशों की व्याख्या गहनता प्रत्यक्षण के संकेतों के रूप में की जाती है। जैसे-जैसे वस्तु प्रेक्षक से दूर होती जाती है वैसे-वैसे अभिसरण की मात्रा घटती जाती है। 

(ii) समंजन: समंजन एक प्रक्रिया है जिसमें पक्ष्माभिकी पेशियों की सहायता से हम प्रतिमा को दृष्टिपटल पर ध्यान केन्द्रित करते हैं। ये मांसपेशियाँ आँख के लेन्स की सघनता को परिवर्तित कर देती हैं। यदि वस्तु दूर चली जाती है (दो मीटर से अधिक), तब मांसपेशियाँ शिथिल रहती हैं। जैसे ही वस्तु निकट आती है, मांसपेशियों में संकुचन की क्रिया होने लगती है तथा लेन्स की सघनता बढ़ जाती है। मांसपेशियों के संकुचन की मात्रा का संकेत मस्तिष्क को भेज दिया जाता है, जो दूरी के लिए संकेत प्रदान करता है।

7. भ्रम क्यों उत्पन्न होते हैं?

उत्तर: मानवी प्रत्यक्षण सर्वदा तथ्यानुकूल नहीं होते हैं। कभी-कभी हम संवेदी सूचनाओं की सही व्याख्या नहीं कर पाते हैं। इसके परिणामस्वरूप भौतिक उद्दीपक एवं उसके प्रत्यक्षण में सुमेल नहीं हो पाता है। हमारी ज्ञानेंद्रियों से प्राप्त सूचनाओं की गलत व्याख्या से उत्पन्न गलत प्रत्यक्षण को सामान्यतया भ्रम कहते हैं। कम या अधिक हम सभी इसका अनुभव करते हैं। ये बाह्य उद्दीपन की स्थिति में उत्पन्न होते हैं और समान रूप से प्रत्येक व्यक्ति इसका अनुभव करता है। इसलिए, भ्रम को ‘आदिम संगठन’ भी कहा जाता है। 

कुछ प्रात्यक्षिक भ्रम सार्वभौम होते हैं और सभी लोगों में पाए जाते हैं। उदाहरण के लिए, रेल की पटरियाँ आपस में मिलती हुई सभी को दिखाई देती हैं। ऐसे भ्रमों को सार्वभौम अथवा स्थायी भ्रम कहते हैं, क्योंकि ये अनुभव अथवा अभ्यास से परिवर्तित नहीं होते हैं। कुछ अन्य भ्रम एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में परिवर्तित होते रहते हैं; इन्हें ‘वैयक्तिक भ्रम’ कहते हैं। 

8. सामाजिक-सांस्कृतिक कारक हमारे प्रत्यक्षण को किस प्रकार प्रभावित करते हैं?

उत्तर: सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि हमारे प्रत्यक्षण को प्रभावित करती है। विभिन्न संस्कृतियों में लोग एक ही वस्तु को अलग-अलग अर्थों में देख सकते हैं। उदाहरणों में सामाजिक वर्ग, धार्मिक विश्वास, धन वितरण, भाषा, व्यावसायिक प्रथाएँ, सामाजिक मूल्य, ग्राहक प्राथमिकताएँ, सामाजिक संगठन और काम के प्रति दृष्टिकोण शामिल हैं।

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