NCERT Class 11 Psychology Chapter 3 मानव विकास

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NCERT Class 11 Psychology Chapter 3 मानव विकास

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Chapter: 3

समीक्षात्मक प्रश्न

1. विकास किसे कहते हैं? यह संवृद्धि तथा परिपक्वता से किस प्रकार भिन्न है?

उत्तर: विकास एक सतत और परिवर्तनशील प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक पहलुओं में समय के साथ परिवर्तन होते हैं। यह केवल आकार या संख्या में वृद्धि तक सीमित नहीं रहता, बल्कि इसमें गुणात्मक परिवर्तन भी शामिल होते हैं।

संवृद्धि (Growth) मुख्य रूप से शारीरिक विस्तार को दर्शाती है, जैसे लंबाई, वजन और मांसपेशियों की वृद्धि। यह मात्रात्मक (quantitative) परिवर्तन को इंगित करता है। उदाहरण के लिए, बच्चे की लंबाई में वृद्धि या वजन का बढ़ना संवृद्धि के अंतर्गत आता है।

परिपक्वता (Maturation) जैविक और आनुवंशिक रूप से नियंत्रित प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति का शरीर और मस्तिष्क अपनी पूर्ण क्षमता प्राप्त करते हैं। यह विकास का एक स्वाभाविक पहलू है और इसमें बाहरी कारकों की भूमिका सीमित होती है। उदाहरण के लिए, एक बच्चे का समय के साथ चलना सीखना या एक किशोर का यौवन अवस्था में प्रवेश करना परिपक्वता का संकेत है।

2. विकास के जीवनपर्यंत परिप्रेक्ष्य को मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

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उत्तर: विकास के जीवनपर्यंत परिप्रेक्ष्य को मुख्य विशेषताएँ–

(i) शारीरिक लक्षण; जैसे ऊँचाई, वजन, आँख तथा त्वचा का रंग, एवं अनेक मानसिक विशेषताएँ; जैसे बुद्धि सर्जनात्मकता, और व्यक्तित्व दृश्य प्ररूप के अंतर्गत आते हैं।

(ii) विकास जीवन भर चलने वाली प्रक्रिया है, अर्थात विकास गर्भाधान से प्रारंभ होकर वृद्धावस्था तक सभी आयु समूहों में होता है।

(iii) व्यक्ति में ये देखी जा सकने वाली विशेषताएँ, व्यक्ति के वशागत शीलगुण तथा उनके परिवेश की अंतः क्रिया के परिणाम हैं।

(iv) वास्तविक आनुवंशिक तत्व या व्यक्ति की आनुवंशिक विरासत या वंश परंपरा को जीन प्ररूप (genotype) कहते हैं।

(v) जन्म से मृत्यु तक की संपूर्ण अवधि में मानव विकास की विभिन्न प्रक्रियाएँ, अर्थात जैविक, संज्ञानात्मक तथा समाज संवेगात्मक, एक व्यक्ति के विकास में एक दूसरे से घनिष्ठ रूप से संबंधित रहते हैं।

3. विकासात्मक कार्य क्या है? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: विकासात्मक कार्य (Developmental Tasks) वे विशेष कार्य से होते हैं जिन्हें व्यक्ति अपने जीवन के विभिन्न चरणों में सफलतापूर्वक पूरा करता है। यह कार्य समाज, संस्कृति और व्यक्तिगत क्षमताओं पर निर्भर करते हैं। किसी भी व्यक्ति को ये उपलब्धियाँ विकास को उस अवस्था के लिए एक सामाजिक अपेक्षा बन जाती हैं। इन्हें विकासात्मक कार्य कहते हैं। 

उदाहरण: यह माना जाता है कि रूबेला नामक रोग (जिसे जर्मन मिजल्स कहते हैं), जननांग में होने वाला हर्पिस तथा ह्यूमन इम्यूनोडिफिशियंसि वाइरस (एच.आई.वी.) नवजात शिशुओं में आनुवंशिक समस्याएँ उत्पन्न करते हैं। प्रसवपूर्व अवस्था में विकास के लिए भय का दूसरा स्त्रोत विरूपजनन-तत्व (teratogens) है वे परिवेशीय कारक जो सामान्य विकास में ऐसे विचलन उत्पन्न करते हैं जिससे गंभीर असामान्यताएँ जन्म ले सकती हैं या मृत्यु हो सकती है। सामान्य विरूपजनन-तत्व के अंतर्गत मादक द्रव्य, संक्रमण, विकिरण तथा प्रदूषण आते हैं। स्त्री द्वारा प्रसवपूर्व काल में मादक द्रव्य (गांजा, हेरोइन, कोकीन आदि), शराब, तंबाकू आदि के सेवन का शिशु पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है और जन्मजात असामान्यताओं की आवृत्ति बढ़ सकती है। विकिरण (जैसे- एक्स-रे) तथा औद्योगिक क्षेत्र के आस-पास के कुछ रसायन, जीन में स्थाई परिवर्तन उत्पन्न कर सकते हैं। परिवेशीस प्रदूषक तथा कार्बनमोनोऑक्साइड, पारा, शीशा जैसे विषाक्त पदार्थ भी अजन्मे बच्चे के लिए खतरे के स्रोत हैं।

4. ‘बच्चे के विकास में बच्चे के परिवेश की महत्वपूर्ण भूमिका है।’ उदाहरण की सहायता से अपने उत्तर की पुष्टि कीजिए।

उत्तर: बच्चे का विकास उसके परिवेश पर गहरा प्रभाव डालता है। परिवेश में परिवार, विद्यालय, समुदाय, और सामाजिक-सांस्कृतिक कारक शामिल होते हैं। उदाहरण: एक बच्चा जिसे स्कूल भेजा जाता है, वह अशिक्षित बच्चे की तुलना में अधिक आसानी से आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता की विशेषताओं को सक्षम रूप से विकसित करता है। इसके विपरीत, यदि बच्चा उपेक्षित या नकारात्मक वातावरण में पलता है, तो उसमें आत्म-संदेह और भय उत्पन्न हो सकता है।

5. विकास को सामाजिक-सांस्कृतिक कारक किस प्रकार प्रभावित करते हैं?

उत्तर: विकास को सामाजिक-सांस्कृतिक कारक कुछ इस प्रकार प्रभावित करते हैं जैसे कि पारिवारिक परंपराएँ, धार्मिक मान्यताएँ, शिक्षा प्रणाली, और सामाजिक अपेक्षाएँ, बच्चे के मानसिक और भावनात्मक विकास को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए, यदि किसी संस्कृति में स्वतंत्र निर्णय लेने को प्रोत्साहित किया जाता है, तो बच्चे द्वारा मिलने वाले विभिन्न सामाजिक-सांस्कृतिक परिणामों को उसके द्वारा सीखा जाता है और इस प्रकार, एक बच्चा एक व्यक्तित्व विकसित करता है जो उसके अनुभवों से प्रभावित होता है। वहीं, यदि सामाजिक बंधन कठोर होते हैं, तो बच्चा अधिक अनुशासित और परंपरागत प्रवृत्तियों को अपनाता है।

6. विकसित हो रहे बच्चे में होने वाले संज्ञानात्मक परिवर्तनों की विवेचना कीजिए।

उत्तर: विकसित हो रहे बच्चे में होने वाले संज्ञानात्मक परिवर्तन उनके सोचने, समझने और निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करते हैं। सूचना प्रसंस्करण, बुद्धिमत्ता, तर्क शक्ति, भाषा में विकास इत्यादि संज्ञानात्मक परिवर्तन के भाग हैं। पियाजे के संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत के अनुसार, बच्चा विभिन्न चरणों से गुजरता है—संवेदी-गतिक (sensorimotor), पूर्व-संक्रियात्मक (preoperational), ठोस संक्रियात्मक (concrete operational), और औपचारिक संक्रियात्मक (formal operational)। जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है, उसकी अमूर्त चिंतन करने की क्षमता विकसित होती जाती है।

7. बचपन में विकसित हुए आसक्तिपूर्ण बंधनों का दूरगामी प्रभाव होता है। दिन-प्रतिदिन के जीवन के उदाहरणों से इनको व्याख्या कीजिए।

उत्तर: बचपन में माता-पिता या अभिभावकों के साथ बनने वाले भावनात्मक बंधन व्यक्ति के भविष्य के संबंधों को प्रभावित करते हैं। एरिक एरिक्सन (1968) के अनुसार जीवन का प्रथम वर्ष आसक्ति के विकास के लिए महत्वपूर्ण समय होता है। यह विश्वास अथवा अविश्वास के विकास को अवस्था की निरूपित करता है। विश्वास का बोध भौतिक सुख की अनुभूति पर निर्मित होता है जो संसार के प्रति एक प्रत्याशा विकसित करता है कि यह सुरक्षित और अच्छा स्थान है। बच्चों में विश्वास की भावना सहानुभूतिपूर्ण और संवेदनशील पैतृक प्रभाव से विकसित होती है। यदि माता-पिता संवेदनशील, स्नेहपूर्ण और स्वीकार्यता प्रदान करने वाले हों, तो यह बच्चे के लिए परिवेश को समझने की एक मजबूत नींव तैयार करता है। ऐसे वातावरण में पले-बढ़े बच्चों में सुरक्षित लगाव विकसित होने की संभावना अधिक होती है।

उदाहरण: यदि कोई बच्चा अपने माता-पिता से सुरक्षित लगाव महसूस करता है, तो वह भविष्य में आत्मविश्वासी और सामाजिक रूप से कुशल होगा। दूसरी ओर, यदि बच्चा असुरक्षित लगाव का अनुभव करता है, तो उसके रिश्तों में अविश्वास और अस्थिरता हो सकती है।

8. किशोरावस्था क्या है? अहंकेंद्रवाद के संप्रत्यय की व्याख्या कीजिए।

उत्तर: किशोरावस्था (Adolescence) वह अवस्था है जिसमें बच्चा बचपन से वयस्कता की ओर बढ़ता है। इसमें शारीरिक, मानसिक, और भावनात्मक परिवर्तन होते हैं। अहकेंद्रवाद (Egocentrism) का तात्पर्य उस मनोवैज्ञानिक अवस्था से है जिसमें किशोर यह मानते हैं कि उनके विचार और अनुभव अद्वितीय हैं और कोई अन्य उन्हें पूरी तरह नहीं समझ सकता। यह अवस्था आत्म-जागरूकता और आत्म-विश्लेषण को भी प्रभावित करती है।

एरिक एरिक्सन (1968) के अनुसार, जीवन का प्रथम वर्ष आसक्ति के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण चरण होता है। यह अवस्था विश्वास या अविश्वास की नींव रखती है। विश्वास की भावना भौतिक सुख और देखभाल की निरंतरता पर आधारित होती है, जिससे बच्चे में यह प्रत्याशा विकसित होती है कि संसार एक सुरक्षित और सकारात्मक स्थान है। बच्चों में विश्वास का बोध सहानुभूतिपूर्ण एवं संवेदनशील पैतृक प्रभाव द्वारा विकसित होता है। यदि माता-पिता संवेदनशील हैं, स्नेहिल एवं उनमें स्वीकृति प्रदान करने बाले है तो यह बच्चे में परिवेश को जानने का मजबूत आधार प्रदान करता है। ऐसे बच्चों में सुरक्षित लगाव के विकास को संभावना बढ़ जाती है।

9. किशोरावस्था में पहचान निर्माण को प्रभावित करने वाले कौन से कारक हैं? उदाहरण की सहायता से अपने उत्तर की पुष्टि कीजिए।

उत्तर: किशोरावस्था में पहचान निर्माण विभिन्न कारकों से प्रभावित होती है, जिनमें पारिवारिक परिवेश, सामाजिक संपर्क, सांस्कृतिक प्रभाव और व्यक्तिगत अनुभव शामिल हैं। परिवार का समर्थन और मार्गदर्शन किशोरों की आत्म-छवि और आत्मसम्मान को प्रभावित करता है। समान उम्र के समूह (peers) भी उनकी पहचान को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, क्योंकि वे अपने साथियों से सामाजिक स्वीकृति प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।

उदाहरण के लिए, यदि कोई किशोर एक सहायक परिवार और सकारात्मक मित्र समूह से घिरा है, तो उसकी पहचान आत्मविश्वास और स्वतंत्रता पर आधारित हो सकती है। इसके विपरीत, यदि उसे लगातार आलोचना या अस्वीकृति का सामना करना पड़ता है, तो उसकी पहचान असुरक्षा और आत्म-संदेह से प्रभावित हो सकती है। सामाजिक मीडिया और सांस्कृतिक मूल्यों का प्रभाव भी किशोरों की पहचान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

10. प्रौढ़ावस्था में प्रवेश करने पर व्यक्तियों को कौन-कौन सी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?

उत्तर: प्रौढ़ावस्था में प्रवेश करते समय व्यक्ति को कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जो व्यक्तिगत, सामाजिक और व्यावसायिक जीवन से जुड़ी होती हैं। इस चरण में करियर स्थापित करने और आर्थिक स्थिरता प्राप्त करने का दबाव बढ़ जाता है। साथ ही, पारिवारिक जिम्मेदारियाँ भी बढ़ती हैं, जिससे संतुलन बनाए रखना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

सामाजिक रूप से, व्यक्ति को मित्रों और परिवार के सदस्यों के साथ संबंध बनाए रखने और नई भूमिकाओं को अपनाने की आवश्यकता होती है। मानसिक रूप से, आत्म-परिभाषा और दीर्घकालिक लक्ष्यों को स्पष्ट करने की जरूरत होती है। इस उम्र में तनाव प्रबंधन और आत्म-स्वीकृति भी प्रमुख चुनौतियाँ होती हैं। उदाहरण के लिए, एक युवा व्यावसायिक व्यक्ति को अपनी नौकरी की मांगों को पूरा करने और अपने व्यक्तिगत जीवन के बीच संतुलन बनाने में कठिनाई हो सकती है।

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