AHSEC Class 12 Hindi MIL Question Paper Solved 2024 English Medium

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Class 12 AHSEC Hindi MIL Question Paper Solved English Medium

AHSEC Class 12 Hindi MIL Question Paper Solved 2024 English Medium

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HINDI (MIL)

2024

HINDI MIL OLD QUESTION PAPER SOLVED

1. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर उसके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

मनमोहनी प्रकृति की जो गोद में बसा है।

सुख स्वर्ग-सा जहाँ है, वह देश कौन-सा है?

जिसके चरण निरंतर रत्नेश धो रहा है।

जिसका मुकुट हिमालय, वह देश कौन-सा है?

नदियाँ जहाँ सुधा की धारा बहा रही हैं।

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सींचा हुआ सलोना, वह देश कौन-सा है?

जिसके बड़े रसीले फल, कंद, नाज मेवे।

सब अंग में सजे हैं वह देश कौन-सा है?

प्रश्न: 

(क) प्रस्तुत काव्यांश का एक उपयुक्त शीर्षक लिखिए।

उत्तर: “भारत की सुंदरता”

(ख) कवि ने कविता में किस देश का उल्लेख किया है?

उत्तर: कवि ने कविता में भारत देश का उल्लेख किया है।

(ग) काव्यांश के अनुसार नदियों की क्या विशेषताएँ हैं?

उत्तर: काव्यांश के अनुसार नदियों की विशेषताएं यह है कि नदियाँ सुधा की धारा (अमृत जैसी) बहा रही हैं, जो जीवनदायिनी और समृद्धि की प्रतीक हैं।

(घ) कवि के अनुसार इस देश में कौन-सा सुख प्राप्त होता है?

उत्तर: कवि के अनुसार, इस देश में स्वर्ग जैसा सुख प्राप्त होता है, यानी यह देश अत्यधिक सुखद और समृद्ध है।

(ङ) कवि ने हिमालय के बारे में क्या कहा है?

उत्तर: कवि के अनुसार, हिमालय इस देश का मुकुट है, अर्थात वह देश की गरिमा और शान का प्रतीक है।

2. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर उसके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

बोलने का विवेक, बोलने की कला और पटुता व्यक्ति की शोभा है, उसका आकर्षण है। सुबुद्ध वक्ता अपार जनसमुह का मन मोह लेता है, मित्रों के बीच सम्मान और प्रेम का केंद्र-बिंदु बन जाता है। जो लोग अपनी बात को राई का पहाड़ बनाकर उपस्थित करते हैं, वे एक ओर जहाँ सुनने वाले के धैर्य की परीक्षा लिया करते हैं, वहीं अपना और दूसरे का समय भी अकारण नष्ट किया करते हैं। विषय से हटकर बोलने वालों से, अपनी बात को अकारण खींचते चलेजाने वालों से तथा ऐसे मुहावरों और कहावतों का प्रयोग करने वालों से जो उस प्रसंग में ठीक ही न बैठ रहे हों, लोग ऊब जाते हैं। वाणी का अनुशासन, वाणी का संयम और संतुलन तथा वाणी की मिठास ऐसी शक्ति है जो हर कठिन स्थिति में हमारे अनुकूल ही रहती है, जो मरने के पश्चात् भी लोगों की स्मृतियों में हमें अमर बनाए रहती है। हाँ, बहुत कम बोलना या सदैव चुप लगाकर बैठे रहना भी बुरा है। यह हमारी प्रतिभा और तेज को कुंद कर देता है। ऐसा व्यक्ति गुफा में रहने वाले उस व्यक्ति की तरह होता है, जिसे बहुत दिनों के बाद प्रकाश में आने पर भय लगने लगता है। अतएव कम बोलो, सार्थक और हितकर बोलो। यही वाणी का तप है।

प्रश्न:

(क) प्रस्तुत गद्यांश में व्यक्ति की शोभा और आकर्षण किसे बताया गया है और क्यों?

उत्तर: प्रस्तुत गद्यांश में व्यक्ति की शोभा और आकर्षण को “बोलने का विवेक, बोलने की कला और पटुता” बताया गया है, क्योंकि ये गुण व्यक्ति को अपार जनसमूह का मन मोहने और मित्रों के बीच सम्मान और प्रेम का केंद्र बनाने में मदद करते हैं।

(ख) किस प्रकार का बोलना लोग पसंद नहीं करते हैं?

उत्तर: लोग ऐसे बोलने को पसंद नहीं करते हैं जो विषय से हटकर हो, अपनी बात को अकारण खींचते हुए लम्बे समय तक की जाए, या ऐसे मुहावरों और कहावतों का प्रयोग किया जाए जो प्रसंग के अनुकूल न हों।

(ग) कैसी भाषा हमें जीवन में लोकप्रिय और अमर बनाती है?

उत्तर: वाणी का अनुशासन, संयम, संतुलन और मिठास वाली भाषा हमें जीवन में लोकप्रिय और अमर बनाती है, क्योंकि यह हर कठिन स्थिति में हमारे अनुकूल रहती है और मरने के बाद भी लोगों की स्मृतियों में हमें जीवित रखती है।

(घ) गद्यांश के अनुसार कम बोलना अच्छा क्यों नहीं है?

उत्तर: गद्यांश के अनुसार, कम बोलना अच्छा नहीं है क्योंकि यह हमारी प्रतिभा और तेज को कुंद कर देता है और ऐसा व्यक्ति उस गुफा में रहने वाले व्यक्ति की तरह होता है जिसे बहुत दिनों बाद प्रकाश में आने पर भय लगने लगता है।

(ङ) उपर्युक्त गद्यांश का एक उपयुक्त शीर्षक दीजिए।

उत्तर: “वाणी का तप”

(च) गद्यांश में निष्कर्ष रूप में कौन-सा वाक्य है?

उत्तर: गद्यांश में निष्कर्ष रूप में यह वाक्य है: “कम बोलो, सार्थक और हितकर बोलो। यही वाणी का तप है।”

(छ) निम्नलिखित शब्दों के अर्थ लिखिए:

पटुता; संयम; अनुकूल; हितकर

उत्तर: (i) पटुता – कौशल, दक्षता।

(ii) संयम – आत्म-नियंत्रण, संतुलन।

(iii) अनुकूल – सहायक, उपयुक्त।

(iv) हितकर – लाभकारी, फायदेमंद।

(ज) विपरीतार्थी शब्द लिखिए:

सम्मान; संतुलन; कठिन; प्रकाश

उत्तर: (i) सम्मान – अपमान।

(ii) संतुलन – असंतुलन।

(iii) कठिन – सरल।

(iv) प्रकाश – अंधकार।

3. निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर निबंध लिखिए :

(क) परिश्रम सफलता की कुंजी है

(भूमिका – परिश्रम की अनिवार्यता – परिश्रम से विकास-लाभ – उपसंहार)

उत्तर: भूमिका: “परिश्रम सफलता की कुंजी है” एक प्रसिद्ध उक्ति है, जिसका अर्थ है कि बिना कठिन परिश्रम के किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करना असंभव है। यह सत्य है कि बिना श्रम के कोई भी व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता। परिश्रम सफलता की ओर पहला कदम है। किसी भी व्यक्ति को जीवन में उच्चता प्राप्त करने के लिए उसे मेहनत करनी होती है, तभी वह अपने सपनों को साकार कर सकता है।

परिश्रम की अनिवार्यता: परिश्रम न केवल सफलता की ओर मार्गदर्शन करता है, बल्कि यह व्यक्ति के भीतर आत्मविश्वास और संकल्प भी पैदा करता है। जो लोग परिश्रम को अपनी आदत बना लेते हैं, वे जीवन में किसी भी कठिनाई का सामना करना जानते हैं। परिश्रम के बिना कोई भी लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सकता। यह न केवल हमारे व्यक्तिगत विकास के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाज और देश की प्रगति में भी योगदान देता है।

परिश्रम से विकास-लाभ: परिश्रम से व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है। यदि हम किसी कार्य को ईमानदारी और मेहनत से करते हैं, तो न केवल हम उस कार्य में उत्कृष्टता प्राप्त करते हैं, बल्कि हमें आत्म-संतुष्टि भी मिलती है। परिश्रम से मिलने वाला लाभ सिर्फ व्यक्तिगत स्तर तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह समाज और राष्ट्र के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उदाहरण के लिए, एक किसान अपने खेत में मेहनत करता है, जिससे न केवल उसकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होती है, बल्कि समाज को भी उसकी मेहनत के फलस्वरूप अनाज मिलता है।

उपसंहार: इसलिए, हमें समझना चाहिए कि सफलता के लिए परिश्रम अत्यंत आवश्यक है। बिना मेहनत के कोई भी लक्ष्य हासिल करना संभव नहीं है। केवल परिश्रम ही वह साधन है, जो हमें सफलता की ओर अग्रसर करता है। इस प्रकार, परिश्रम न केवल व्यक्तिगत सफलता का कारण बनता है, बल्कि यह समाज और राष्ट्र के समग्र विकास में भी योगदान करता है।

(ख) जनसंचार माध्यम

(भूमिका – प्रकार – सामाजिक जीवन में जनसंचार माध्यम का सुप्रभाव – कुप्रभाव – उपसंहार)

उत्तर: भूमिका: जनसंचार माध्यम हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। इसके द्वारा हम समाज में घटित होने वाली घटनाओं, समाचारों, विचारों और जानकारियों से अवगत होते हैं। जनसंचार के विभिन्न रूप जैसे कि अखबार, रेडियो, टेलीविजन, इंटरनेट, और सोशल मीडिया समाज में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

प्रकार: जनसंचार माध्यम मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं:

(i) प्रिंट मीडिया – इसमें समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, पुस्तकें, आदि आते हैं।

(ii) इलेक्ट्रॉनिक मीडिया – इसमें रेडियो, टेलीविजन, और इंटरनेट शामिल हैं।

(iii) सोशल मीडिया – फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफार्मों द्वारा जानकारी का आदान-प्रदान होता है।

सामाजिक जीवन में जनसंचार माध्यम का सुप्रभाव

जनसंचार माध्यम ने समाज में जागरूकता बढ़ाई है। यह विभिन्न समाजिक मुद्दों, शिक्षा, विज्ञान, और स्वास्थ्य के बारे में लोगों को जानकारी प्रदान करता है। टेलीविजन और इंटरनेट के माध्यम से लोग वैश्विक घटनाओं से अवगत हो पाते हैं। सोशल मीडिया ने लोगों को आपस में जुड़ने और अपनी आवाज उठाने का एक मंच प्रदान किया है। यह समाज में लोकतंत्र की मजबूती में भी योगदान करता है।

कुप्रभाव: हालांकि जनसंचार माध्यमों के कई लाभ हैं, लेकिन इसके कुछ कुप्रभाव भी हैं। अत्यधिक टीवी और इंटरनेट का उपयोग मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डाल सकता है। सोशल मीडिया पर फैलने वाली अफवाहें और गलत जानकारी भी समाज में भ्रम की स्थिति उत्पन्न कर सकती हैं। इसके अलावा, कभी-कभी मीडिया में केवल नकारात्मक समाचारों का प्रसारण होता है, जिससे समाज में निराशा और भय का वातावरण बनता है।

उपसंहार: जनसंचार माध्यम समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन इसका उपयोग विवेकपूर्ण तरीके से किया जाना चाहिए। यदि हम जनसंचार के सकारात्मक पहलुओं को बढ़ावा देते हैं और नकारात्मक पहलुओं से बचते हैं, तो यह हमारे जीवन को बेहतर बना सकता है।

(ग) पुस्तकों का महत्व

(भूमिका – पुस्तकों से होने वाले लाभ – मनोरंजन का साधन पुस्तकें अमर निधि है – उपसंहार)

उत्तर: भूमिका: पुस्तकें हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। वे ज्ञान का अद्भुत स्रोत होती हैं। पुस्तकों का अध्ययन न केवल हमारी जानकारी को बढ़ाता है, बल्कि यह हमें मानसिक शांति और मार्गदर्शन भी प्रदान करता है। यह आत्म-विकास और शिक्षा का एक सशक्त माध्यम है।

पुस्तकों से होने वाले लाभ: पुस्तकों के अध्ययन से हम न केवल नई-नई जानकारियाँ प्राप्त करते हैं, बल्कि यह हमारी सोच को भी विस्तृत और गहरी बनाता है। वे हमें जीवन के विभिन्न पहलुओं से परिचित कराती हैं और कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति देती हैं। पुस्तकें एक प्रकार से हमारे मित्र की तरह होती हैं, जो हमें हर परिस्थिति में मार्गदर्शन देती हैं। इसके अतिरिक्त, पुस्तकें मनोरंजन का एक साधन भी हैं। अच्छे साहित्यिक कार्य न केवल हमारी सोच को प्रभावित करते हैं, बल्कि हमें आनंद भी प्रदान करते हैं।

मनोरंजन का साधन पुस्तकें अमर निधि हैं पुस्तकें अमर निधि होती हैं, क्योंकि यह न केवल हमें वर्तमान में ज्ञान प्रदान करती हैं, बल्कि भविष्य में भी यह हमें प्रेरित करती रहती हैं। अच्छे साहित्यिक कार्य, जैसे कि उपन्यास, कहानियाँ और कविताएँ, हमें आत्मा को शांति और सुख प्रदान करती हैं। प्रसिद्ध लेखकों और कवियों द्वारा लिखी गई पुस्तकें समय के साथ अमर बन जाती हैं और सदियों तक लोगों के दिलों में जीवित रहती हैं।

उपसंहार: इस प्रकार, पुस्तकें न केवल हमारे जीवन को ज्ञान से भरती हैं, बल्कि ये हमारी मानसिक और आत्मिक शांति का स्रोत भी हैं। एक व्यक्ति जो नियमित रूप से पुस्तकें पढ़ता है, वह अपने जीवन में अधिक सफल और संतुष्ट होता है। पुस्तकों का अध्ययन करना हमारे जीवन के लिए आवश्यक और लाभकारी है।

(घ) स्वतन्त्रता दिवस

(प्रस्तावना – स्वतन्त्रता का अर्थ – स्वरूप कर्तव्य भावना – उपसंहार)

उत्तर: पन्द्रह अगस्त, स्वतंत्रता दिवस भारत का प्रमुख पुनीत त्योहार है। कोटि-कोटि भारतवासियों के हृदय की आशा-आकांक्षाओं का प्रतीक है यह स्वतंत्रता दिवस। इसके आगमन पर भारतीय जनता का हृदय नवीन प्रेरणात्मक भावों से उदबुद्ध हो जाता है। स्वतंत्रता दिवस १५ अगस्त सन् १९४७ से ही मनाया जाने लगा है। इसकी प्राप्ति का इतिहास असंख्य शहीदों के बलिदानों और लोक नायकों के आत्मत्याग के सुनहरे अक्षरों से अंकित हैं। उस तारीख से पहले लगभग सौ साल तक भारतवर्ष विदेशी अंग्रेजों के शासन में रहा। महात्मा गांधी के असहयोग आन्दोलन एवं अन्य क्रांतिकारियों की क्रान्ति पूर्ण कारनामे से यह देश स्वतंत्र हुआ। महात्मा गांधी सन् 1915 ई० में दक्षिण अफ्रीका से लौटकर भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के सूत्रधार बने। महात्मा गांधी के आहवान पर देशवासियों ने असहयोग आन्दोलन छेड़ दिया। हजारों लोग जेल जाने लगे, सैकड़ों लोगों को अंग्रेजों की गोलियों का शिकार होना पड़ा। मगर भारतीय जनता दृढ़ संकल्पित थी। उसे स्वतंत्रता के बिना चैन ना था।

पूरे देश में महात्मा गांधी प्रदर्शित अहिंसात्मक आन्दोलन के साथ-साथ क्रान्तिकारी आन्दोलन भी सक्रिय था। इसके कारण अंग्रेज सरकार को पूरी तरह ज्ञात हो गया कि भारतवासियों को अधिक दिनों तक पराधीन रख पाना असंभव है। अन्त में अंग्रेज को १५ अगस्त सन् १९४७ को भारत की स्वतंत्रता की घोषणा करनी पड़ी।

राष्ट्रीय जीवन में स्वतंत्रता दिवस का महत्त्व अविस्मरणीय है। यह पिछले बलिदानों की याद दिलाता है, साथ ही भविष्य की प्रेरणा भी देता है। हमारे देश में ऐसे कमजोरियाँ और फूट के तत्व मौजूद है, जिन्हे, न मिटाया जाय तो हमारी स्वतंत्रता पर फिर से मुसीबत आ सकती है। स्वतंत्र राष्ट्र की रक्षा में प्रस्तुत रहना ही जागरुक नागरिक का लक्षण है। अभी हमारे राष्ट्र के चारों और दुश्मन के हथकंडे जारी है। इनसे राष्ट्रीय सुरक्षा हेतु हमें सदैव प्रस्तुत रहने की आवश्यकता है। स्वतंत्रता दिवस का महत्व इसी की प्रेरणा देने में है।

स्वतंत्रता दिवस आते ही भारत के अतीत और वर्तमान का स्मरण हो जाता है। इस पवित्रतिथि के अवसर पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि इस की महत्ता हम कभी घटने नहीं देंगे और हर क्षेत्र में भारत को समृद्ध बनाकर विश्व में नाम उज्वल करेंगे। स्वतंत्रता दिवस सच्चे नागरिक बनने की मांग हमसे करता है।

4. (क) दिन-प्रतिदिन बढ़ती महँगाई के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए किसी भी एक स्थानीय पत्र के संपादक के नाम एक पत्र लिखिए। 

उत्तर: सेवा में,

सम्पादक महोदय

दैनिक जागरण,

विषय : बढ़ती मँहगाई के संबंध में सम्पादक को पत्र।

महोदय,

मैं इस पत्र के माध्यम से प्रशासन तथा सरकार का ध्यान बढ़ती हुई महँगाई की ओर आकर्षित करना चाहती हूँ। आपसे अनुरोध है की मेरे पत्र को अपने समाचार पत्र के लोकवार्ण कॉलम में प्रकाशित करने का कष्ट करें।

आजकल देश में बढ़ती महँगाई से जनता त्राहि-त्राहि कर रही है। दैनिक प्रयोग की लगभग सभी वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं। यहाँ तक की सब्जियों की कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई हैं। महँगाई के कारण आम आदमी का जीना मुश्किल हो गया है। देश के अधिकांश नेता महँगाई का रोना तो रोते हैं, सरकार भी इस विषय पर चिंता जताती हैं, पंरतु कीमतों पर नियंत्रण करने के लिए कड़े कदम नहीं उठाए जाते। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार भी महँगाई पर रोक लगाने में पूरी तरह असफल रही है। यदि सरकार दृढ़ता दिखाए तो बड़ी हुए कीमतों पर नियंत्रण लगा सकती हैं। अतः मेरा सरकार तथा प्रशासन से निवेदन है कि इश दिशा में तत्तकाल आवश्यक कदम उठाए जाएँ और महँगाई पर रोक लगाएँ।

धन्यवाद सहित,

भवदीय

…..

अथवा

(ख) अपने शहर की सड़कों की दुर्दशा पर चिंता और खेद प्रकट करते हुए नगर पालिका के अध्यक्ष को पत्र लिखिए। 

उत्तर: नगर पालिका अध्यक्ष,

नगर पालिका कार्यालय,

विषय: शहर की सड़कों की दुर्दशा पर चिंता व्यक्त करना।

मान्यवर,

सादर प्रणाम। मैं आपके ध्यान में शहर की सड़कों की अत्यंत खराब स्थिति लाना चाहता हूँ। हाल ही में, मैंने शहर की प्रमुख सड़कों पर कई समस्याएँ देखी हैं, जो न केवल नागरिकों के लिए असुविधाजनक हैं, बल्कि दुर्घटनाओं के होने का खतरा भी बढ़ा रही हैं। सड़कों पर गड्ढे, टूटी-फूटी सड़कों और जलभराव की समस्या गंभीर होती जा रही है।

इन खराब सड़कों के कारण वाहन चलाने में कठिनाई हो रही है, जिससे ट्रैफिक जाम की समस्या बढ़ रही है। खासकर बरसात के मौसम में जलभराव के कारण दुर्घटनाओं का खतरा कई गुना बढ़ गया है। इसके अतिरिक्त, पैदल चलने वालों को भी बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है।

मैं आपसे निवेदन करता हूँ कि इस स्थिति पर शीघ्र ध्यान दें और सड़कों की मरम्मत तथा पुनर्निर्माण के लिए उचित कदम उठाए जाएं। यदि यह समस्या जल्द हल नहीं हुई, तो शहरवासियों की परेशानी और बढ़ सकती है।

आपसे अनुरोध है कि आप इस मामले में त्वरित कार्यवाही करें और नागरिकों को इस समस्या से मुक्ति दिलवाएं।

धन्यवाद।

आपका विश्वासी,

………

5. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

(i) ब्रेकिंग न्यूज़ किसे कहते हैं?

उत्तर: टेलीविजन पर जब कोई बड़ी खबर कम से कम शब्दों में केवल सूचना के रूप में तत्काल दर्शको तक पहुंचाई जाती है। उसे ब्रेकिंग न्यूज कहते हैं।

(ii) इंटरनेट पत्रकारिता से क्या आशय है?

उत्तर: आज कंप्यूटर की सहायता से इंटरनेट यानि विश्व-व्यापी अंतर्जाल पर समाचार प्रकाशित किए जाते हैं। पत्रकारिता के अंतर्गत जो-जो कार्य किए जाते हैं, वे सब इंटरनेट के माध्यम से भी किए जाते हैं। इसी को इंटरनेट पत्रकारिता कहते हैं।

(iii) समाचार की भाषा शैली कैसी होनी चाहिए?

उत्तर: समाचार की भाषा शैली सरल तथा सहज होनी चाहिए।

(iv) हिन्दी के पहले समाचार पत्र का नामोल्लेख कीजिए।

उत्तर: हिन्दी के पहले समाचार पत्र का नाम है ‘उदन्त मार्तण्ड’।

(v) किसी एक श्रव्य जनसंचार माध्यम का नाम लिखिए।

उत्तर: किसी एक श्रव्य जनसंचार माध्यम का नाम है रेडियो।

6. (क) सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव पर एक फ़ीचर लिखिए।

उत्तर: सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव पर एक फ़ीचर:

सोशल मीडिया की दुनिया में हम आज इतने व्यस्त हो गए हैं कि हम अपने आसपास की दुनिया को भूल गए हैं। सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव ने हमारी जिंदगी को पूरी तरह से बदल दिया है।

सोशल मीडिया के फायदे:

(i) सोशल मीडिया के माध्यम से हम दुनिया भर के लोगों से जुड़ सकते हैं।

(ii) हम अपने विचारों और अनुभवों को साझा कर सकते हैं।

सोशल मीडिया के माध्यम से हमें जानकारी और समाचार मिलते हैं।

सोशल मीडिया के नुकसान:

(i) सोशल मीडिया के अधिक उपयोग से हमारी मानसिक और शारीरिक सेहत पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

(ii) सोशल मीडिया पर फैलने वाली अफवाहों और गलत जानकारी से हमारी सोच और व्यवहार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

अथवा

(ख) भारत की परंपराओं पर हावी होती पाश्चात्य संस्कृति पर चिंता प्रकट करते हुए एक आलेख लिखिए।

उत्तर: आज समस्त विश्व पाश्चात्य संस्कृति का अनुपालन कर रहा है, ऐसे में भला भारतवासी कहाँ  पीछे रहने वाले हैं। अतः भारत में भी पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति का अनुगमन व अनुपालन धड़ल्ले से किया जा रहा है। लोग इसके अनुपालन कर स्वयं को आधुनिक एवं विकसित देषों के समक्ष मानने लगे हैं।

आज की युवा पीढ़ी को क्या कहें, पुरानी पीढ़ी भी पाश्चात्य संस्कृति के अनुपालन से पीछे नहीं हट रही है। आज गली-चैराहे, बाजार व अन्य सार्वजनिक स्थल कहीं भी चले जाएँ, हमें पाश्चात्य रंग में रंगे लोगों की टोलियाँ  सहज ही दिख पड़ेंगी। सबसे अधिक परिवर्तन लोगों के वेषभूषा में आया है। धोती-कुर्ता, पायजामा का प्रयोग पुरूषों में और साडि़यों का प्रयोग स्त्रियों में दुर्लभ होता जा रहा है। आज की स्त्रियाँ  बड़ों के सामने सिर ढॅंकने की हमारी पुरानी संस्कृति को भूलती जा रही हैं। रह-रह कर उन्हें कभी घर के लोगों तो कभी बारह से इस बात की याद दिलायी जाती है। लड़कियाँ  पश्चिमी  वेशभूषा के रंग में इस कदर रंग गई हैं कि शालीनता क्या चीज होती है भूल-सी गयी हैं। इन सब के कारण दिन-व-दिन आपराधिक घटनाओं में वृद्धि होने लगी है।

 लड़कों की वेशभूषा भी अभद्रता का पर्याय बन चुकी है। पश्चिमी वस्तुओं का सीमित उपयोग हमें आगे ले जा सकता है। मैं यह नहीं कहता कि पाश्चात्य संस्कृति बुरी है, लेकिन इसके सीमित प्रयोग तथा हमारी प्राचीन सभ्यता-संस्कृति के साथ तालमेल ही हमारे लिए सार्थक है। हमें अपनी सभ्यता-संस्कृति को संरक्षण देना चाहिए,क्योंकि यही हमारी सांस्कृतिक विरासत है। पाश्चात्य संस्कृति को स्वयं में इतना ही प्रवेश करने देना चाहिए कि वे हमारे अस्तित्व को ही न मिटा कर रख दें।

7. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़‌कर उसके नीचे दिए गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

(क) ऊँचे-नीचे करम, धरम-अधरम करि, 

पेट ही को पचत, बेचत बेटा-बेटकी॥ 

‘तुलसी’ बुझाइ एक राम घनस्याम ही तें, 

आगि बड़वागितें बड़ी है आगि पेटको॥

प्रश्न:

(i) प्रस्तुत-काव्यांश के कवि और कविता का नाम लिखिए। 

उत्तर: प्रस्तुत-काव्यांश के कवि तुलसीदास और कविता का नाम कवितावली है।

(ii) भूख और गरीबी का सबसे मार्मिक दृश्य कौन-सा है?

उत्तर: भूख और गरीबी का सबसे मार्मिक दृश्य यह है कि जब कोई व्यक्ति भूखा होता है, तो वह अपने परिवार को भी भूखा रखकर अपना पेट भरने के लिए बेचने तक का कार्य करता है, जो गरीबी की गहरी और कष्टकारी स्थिति को दर्शाता है।

(iii) कवि की भूख कैसे शांत हुई?

उत्तर: कवि ने अपनी भूख को यह कहकर शांत की है कि राम या भगवान ही सबकी भूख और दुखों को दूर करने वाले हैं। इसे आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जा सकता है, जहाँ भूख की शांति भगवान के कृपा से होती है।

(iv) विपरीतार्थी शब्द लिखिए:

ऊँचे; धरम; बेटा; बुझाइ

उत्तर: (i) ऊँचे – नीच।

(ii) धरम – अधरम।

(iii) बेटा – बेटी।

(iv) बुझाइ – जलाई

अथवा

(ख) आँगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी 

हाथों पे झुलाती है उसे गोद-भरी 

रह-रह के हवा में जो लोका देती है 

गूँज उठती है खिलखिलाते बच्चे की हाँसी।

प्रश्न:

(i) प्रस्तुत काव्यांश के कवि और कविता का नाम लिखिए।

उत्तर: प्रस्तुत काव्यांश के कवि फ़िराक गोरखपुरी और कविता का नाम रूबाइयाँ है।

(ii) शब्दार्थ लिखिए:

आँगन; झुलाती; लोका; गूँज

उत्तर: (i) आँगन = घर के बाहर का खुला स्थान।

(ii) झुलाती = झूला देना।

(iii) लोका = दुनिया, प्रपंच, या लोक।

(iv) गूँज = आवाज़।

(iii) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने माँ की ममता को किस प्रकार चित्रित किया है?

उत्तर: प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने माँ की ममता को बहुत ही कोमल और सजीव रूप में चित्रित किया है। कवि ने माँ को “आँगन में लिए चाँद के टुकड़े” के रूप में दर्शाया है, जिससे यह प्रतीत होता है कि माँ अपने बच्चे को उतना ही मूल्यवान और प्यारा मानती है जितना चाँद का टुकड़ा। माँ अपने बच्चे को अपने हाथों में झुलाती है, जो उसकी ममता और स्नेह को दर्शाता है। 

(iv) ‘चाँद के टुकड़े’ का प्रयोग किसके लिए हुआ है और क्यों?

उत्तर: “चाँद के टुकड़े” का प्रयोग कवि ने माँ के बच्चे के लिए किया है। यहाँ पर यह प्रतीकात्मक रूप में है, जिसमें बच्चा माँ के लिए अत्यधिक प्रिय और अनुपम है। चाँद को अपनी सुंदरता और शांति के कारण एक दिव्य वस्तु माना जाता है, और माँ अपने बच्चे को उसी प्रकार प्यारा और अनमोल मानती है।

8. निम्नलिखित में से किसी एक काव्यांश को पढ़कर उसके नीचे दिये गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

(क) मुझसे मिलने को कौन विकल?

मैं होऊँ किसके हित चंचल?

यह प्रश्न शिथिल करता पद को, 

भरता उर में विह्वलता है!

दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

प्रश्न:

(i) काव्यांश के शिल्पगत सौन्दर्य पर प्रकाश:

उत्तर: इस काव्यांश में सरल, सहज और प्रभावशाली शिल्प का प्रयोग हुआ है। कवि ने अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए लयबद्ध रूप से शब्दों का चयन किया है, जिससे कविता में एक हलचल और गति का अहसास होता है। “दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!” जैसे वाक्य में समय की तीव्रता को व्यक्त किया गया है। “चंचल” और “विह्वलता” जैसे शब्दों का प्रयोग भावनाओं के तीव्र उफान को दर्शाता है। कविता की रचनात्मकता और भावनाओं का प्रवाह शिल्पगत सौंदर्य को प्रमुख बनाता है।

(ii) “यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है” – भाव स्पष्ट कीजिए:

उत्तर: यह पंक्ति कवि के अंतर्मन की गहरी पीड़ा और भ्रम को व्यक्त करती है। कवि पूछते हैं कि “मुझसे मिलने को कौन विकल?” इस प्रश्न से कवि का मन अशांत और विचलित हो जाता है, जिससे उसके विचारों में शिथिलता उत्पन्न होती है। यह प्रश्न उसकी चंचलता और मानसिक स्थिति को प्रभावित करता है और हृदय में व्याकुलता और विकलता का भाव भरता है। यहां यह भी संकेत मिलता है कि कवि को अपने अस्तित्व और उद्देश्य के बारे में गहरी चिंता और उलझन है।

(iii) कवि क्यों अपनी चंचलता त्याग देता है?

उत्तर: कवि अपनी चंचलता इसलिए त्याग देता है क्योंकि उसे अपने जीवन के उद्देश्य और उद्देश्य की स्पष्टता नहीं मिल रही है। वह अपने भीतर एक विकलता और शिथिलता महसूस करता है, जो उसकी मानसिक स्थिति को प्रभावित करती है। चंचलता उसकी ऊर्जा को दिशाहीन कर देती है, और उसे एक ठहराव या संतुलन की आवश्यकता महसूस होती है। वह यह प्रश्न करता है कि किसके लिए और किस उद्देश्य से वह चंचल बने, इसीलिए वह इसे छोड़कर अधिक गंभीरता और स्थिरता की ओर बढ़ता है।

अथवा

(ख) फिर हम परदे पर दिखलाएँगे

फूली हुई आँख की एक बड़ी तस्वीर

बहुत बड़ी तस्वीर

और उसके होंठों पर एक कसमसाहट भी

(आशा है आप उसे उसकी अपंगता की पीड़ा मानेंगे)

एक और कौशिश

दर्शक

धीरज रखिए

देखिए

हमें दोनों एक संग रुलाने हैं।

प्रश्न:

(i) प्रस्तुत काव्यांश के भावसौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।

उत्तर: इस काव्यांश में गहरे और संवेदनशील भावों का चित्रण किया गया है। यहाँ परदे पर एक अपंग व्यक्ति की पीड़ा और संघर्ष की तस्वीर प्रस्तुत की जा रही है, जिसे दर्शक भावनात्मक दृष्टि से महसूस कर सकें। कवि ने “फूली हुई आँख की एक बड़ी तस्वीर” और “होंठों पर एक कसमसाहट” जैसी छवियों का उपयोग किया है, जो अपंगता, दर्द, और संघर्ष के संकेत हैं। 

(ii) “हमें दोनों एक संग रुलाने हैं” 

– प्रस्तुत काव्यांश से कार्यक्रम संचालक का कौन-सा रवैया सामने आया है?

उत्तर: इस पंक्ति से यह स्पष्ट होता है कि कार्यक्रम संचालक का रवैया भावनात्मक है। वह चाहते हैं कि दोनों—यानी व्यक्ति की अपंगता और उसके दर्द को दर्शाने वाली तस्वीर और दर्शक—एक साथ मिलकर रुलाएँ। संचालक जानता है कि यह चित्रण केवल अपंगता का नहीं, बल्कि उस व्यक्ति की पीड़ा और संघर्ष का है, और वह चाहता है कि दर्शक इसे गहरे रूप से महसूस करें। यह उनके संवेदनशील दृष्टिकोण को दर्शाता है, जहां वे दर्शकों से एक गहरी भावना की अपेक्षा कर रहे हैं।

(iii) “और उसके होंठों पर एक कसमसाहट भी” – यह अवस्था किसकी है और क्यों? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: यह अवस्था उस अपंग व्यक्ति की है, जिसे परदे पर दिखाया जा रहा है। “होंठों पर एक कसमसाहट” यह दर्शाती है कि वह व्यक्ति दर्द या मानसिक तनाव से जूझ रहा है। यह कसमसाहट उसके दुख और अपंगता की पीड़ा का प्रतीक है। वह शायद बोलने में असमर्थ है, लेकिन उसकी शारीरिक अवस्था और चेहरे के भाव उसकी आंतरिक पीड़ा और संघर्ष को व्यक्त कर रहे हैं। यह कसमसाहट उसकी विवशता और दर्द को प्रकट करती है, जो अपंगता के कारण उत्पन्न हुई है।

9. निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

(क), “यह घर, वह घर 

सब घर एक कर देने के माने 

बच्चा ही जाने।”

– भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: सब घर एक देने के माने का अर्थ है कि सभी को अपना घर बना लेना। बच्चों के लिए अपना-पराया कुछ नहीं होता है। जहाँ उन्हें प्यार मिलता है, वे वहीं के हो जाते हैं। यही कारण है कि बच्चे पड़ोसियों के साथ भी वैसे ही रहते हैं, जैसे अपने माता-पिता के साथ रहते हैं। वे किसी सीमा को नहीं समझते हैं। वे उन सीमाओं को तोड़कर एकता स्थापित कर देते हैं। ऐसे ही कविताएँ होती हैं। कविता यह नहीं देखती कि उसे हिन्दू पढ़ रहा है या अन्य कोई धर्म या जाति का व्यक्ति। वे सारी सीमाएँ तोड़कर प्रेम तथा एकता का सूत्र कायम कर देती हैं। वे समाज तथा सभी देशों की सीमाओं को एकसूत्र में पिरो देती हैं।

(ख) भोर का नभ

राख से लीपा हुआ चौका

(अभी गीला पड़ा है)

– आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: ‘भोर का नभ राख से लीपा हुआ चौका (अभी गीला पड़ा है)’ पंक्ति का आशय यह है कि सूर्य उदय से पहले आसमान से रात की कालिमा हटने लगती है और आसमान का रंग राख जैसा स्लेटी हो जाता है। 

(ग) “गरबीली गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव”

– पंक्ति कवि के कैसे अनुभव को व्यक्त करती है?

उत्तर: इस पंक्ति में कवि के जीवन के गहरे अनुभवों को व्यक्त करती है. कविता ‘सहर्ष स्वीकारा है’ के रचयिता गजानन माधव ‘मुक्तिबध’ हैं. इस कविता में कवि ने जीवन के सुख-दुख, संघर्ष-अवसाद, उठा-पटक को सम्यक भाव से स्वीकार करने की प्रेरणा दी है. कवि ने अपनी गरीबी को अपनी कमज़ोरी नहीं बल्कि अपने दर्द का विषय बनाया है. कवि ने जीवन के कई अनुभवों को सहर्ष स्वीकारा है, जैसे कि: गर्वीली गरीबी, विचारों का वैभव, भावनाओं की बहती सरिता, व्यक्तित्व की दृढ़ता, प्रिय का प्रेम।

(घ) “कोई अंधड़ कहीं से आया क्षण का बीज वहाँ बोया गया।”

– कवि ने ऐसा क्यों कहा है?

उत्तर: कवि ने भावात्मक आँधी के प्रभाव से कागज पर रचना (कविता) के बीज वोने के बारे में कहा है। किसान खेत में रासायनिक खादों के प्रयोग द्वारा बीज को अंकुरित करता है। बीज से अंकुर फूटते है जो वाद में फलों और फूलों से लटकर झुक जाते हैं। रचनाकार भी कल्पना की सहायता से रचना के मूल भाव को विकसित करता है।

10. निम्नलिखित में से किसी एक गद्यांश को पढ़कर उसके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

(क) एक बार चूरन वाले भगत जी बाजार चौक में दीख गए। मुझे देखते ही उन्होंने जय- जयराम किया। मैंने भी जयराम कहा। उनकी आँखें बंद नहीं थीं और न उस समय वह बाजार को किसी भाँति कोस रहे मालूम होते थें। राह में बहुत लोग, बहुत बालक मिले जो भगत जी द्वारा पहचाने जाने के इच्छुक थे। भगत जी ने सबको ही हँसकर पहचाना। सबका अभिवादन लिया और सबको अभिवादन किया। इससे तनिक भी यह नहीं कहा जा सकेगा कि चौक बाजार में होकर उनकी आँखें किसी से भी कम खुली थीं। लेकिन भौंचक्के हो रहने की लाचारी उन्हें नहीं थी। व्यवहार में पसोपेश उन्हें नहीं था और खोए- से खड़े नहीं वह रह जाते थे। भाँति-भाँति के बढ़िया माल से चौक भरा पड़ा है। उस सबके प्रति अप्रीति इस भगत के मन में नहीं है। जैसे उस समूचे माल के प्रति भी उनके मन में आशीर्वाद हो सकता है। विद्रोह नहीं, प्रसन्नता ही भीतर है, क्योंकि कोई रिक्त भीतर नहीं है। देखता हूँ कि खुली आँख, तुष्ट और मग्न, वह चौक बाजार में से चलते चले जाते हैं।

(i) भगत जी बाजार में प्रसन्न और संतुष्ट क्यों दिखाई देते हैं?

उत्तर: भगत जी बाजार में प्रसन्न और संतुष्ट इसलिए दिखाई देते हैं क्योंकि उनका मन किसी भी वस्तु या परिस्थिति से अप्रसन्न नहीं है। वह बाजार में भरे हुए माल को भी आशीर्वाद की दृष्टि से देखते हैं, न कि ईर्ष्या या लोभ के साथ। उनकी आँखें खुली हुई हैं, और उनका व्यवहार सहज, आत्मनिर्भर और संतुष्ट है। उनका मन भीतर से रिक्त नहीं है, जो उन्हें अपने आस-पास की चीजों को बिना किसी विकार के स्वीकार करने की क्षमता देता है।

(ii) “भगत जी की आँखें बंद नहीं थीं” – इसका क्या आशय है?

उत्तर: “भगत जी की आँखें बंद नहीं थीं” का आशय यह है कि भगत जी ने संसार को पूरी तरह से खुले दृष्टिकोण से देखा। उनकी आँखें किसी भी प्रकार के भ्रम, स्वार्थ या नकारात्मकता से नहीं बंद थीं। वह सभी चीजों और परिस्थितियों को पूरी तरह से समझते हुए, बिना किसी प्रकार के हर्ष या विषाद के, सहज रूप से देखते थे। 

(iii) भगत जी वस्तुओं के प्रति मन में कैसा भाव रखते थे?

उत्तर: भगत जी वस्तुओं के प्रति न तो कोई ईर्ष्या रखते थे और न ही उनमें किसी प्रकार की अप्रीति थी। वह बाजार में भरे हुए माल के प्रति भी सकारात्मक दृष्टिकोण रखते थे, जैसे किसी चीज़ को आशीर्वाद देने का भाव था। उनका मन अपार संतोष से भरा था, और वह जीवन को सहज रूप से स्वीकार करते थे, बिना किसी लालच या घृणा के।

(iv) इस गद्यांश के आधार पर बताइए कि बाजार के प्रति हमारा कैसा रुख होना चाहिए।

उत्तर: इस गद्यांश के आधार पर हमारा बाजार के प्रति रुख संतुलित और सहज होना चाहिए। हमें बाजार में व्याप्त भौतिक वस्तुओं को एक साधन के रूप में देखना चाहिए, न कि उन पर अस्वस्थ आशक्ति या लोभ करना चाहिए। हमें वस्तुओं को बिना किसी प्रकार के दुराग्रह के, सरलता और संतुष्टि से स्वीकार करना चाहिए।

अथवा

(ख) शिरीष तरु सचमुच पक्के अवधूत की भाँति मेरे मन में ऐसी तरंगें जगा देता है जो ऊपर की ओर उठती रहती हैं। इस चिलकती धूप में इतना इतना सरस वह कैसे बना रहता है? क्या ये बाद्य परिवर्तन – धूप, वर्षा, आँधी, लू- अपने आपमें सत्य नहीं हैं? हमारे देश के ऊपर से जो यह मार-काट, अग्निदाह, लूट-पाट, खून-खच्चर का बवंडर बह गया है, उसके भीतर भी क्या स्थिर रहा जा सकता है? शिरीष रह सका है। अपने देश का एक बूढ़ा रह सका था। क्यों मेरा मन पूछता है कि ऐसा क्यों संभव हुआ ? क्योंकि शिरीष भी अवधूत है। शिरीष वायुमंडल से रस खींचकर इतना कोमल और इतना कठोर है। गाँधी भी वायुमंडल से रस खींचकर इतना कोमल और इतना कठोर हो सका था। मैं जब- जब शिरीष की ओर देखता हूँ तब तब हूक उठती है- हाय, वह अवधूत आज कहाँ है।

प्रश्न:

(i) शिरीष की सरसता को देखकर लेखक के मन में कौन-सा भाव उठता है?

उत्तर: लेखक के मन में शिरीष की सरसता को देखकर आश्चर्य और प्रेरणा का भाव उठता है। शिरीष के फूलों की सुंदरता और ताजगी को देखकर लेखक यह सोचता है कि इतनी चिलकती धूप और कठोर मौसम में भी वह कैसे इतना सरस, कोमल और स्थिर बना रह सकता है। यह उसकी अद्वितीयता और प्रकृति के प्रति उसकी ताकत को दर्शाता है। 

(ii) अग्निकांड और खून-खराबे के बीच कौन-कौन स्थिर रह सके हैं?

उत्तर: अग्निकांड और खून-खराबे के बीच लेखक के अनुसार शिरीष और गांधी जैसे व्यक्ति स्थिर रह सके हैं। शिरीष की तुलना लेखक ने गांधी से की है, जिनका जीवन भी उस समय के राजनीतिक और सामाजिक तूफान के बावजूद कोमल और कठोर दोनों था। गांधी भी देश की परिस्थितियों से प्रभावित हुए, लेकिन उन्होंने अपने सिद्धांतों और शांति की प्रक्रिया को बनाए रखा। शिरीष और गांधी दोनों ही इन कठिन परिस्थितियों में स्थिर और अप्रभावित रहे।

(iii) शिरीष को अवधूत क्यों कहा गया है?

उत्तर: शिरीष को अवधूत इस लिए कहा गया है क्योंकि वह अपने पर्यावरण से पूरी तरह से अप्रभावित रहता है, जैसे एक अवधूत का जीवन होता है। अवधूत वह होता है जो संसार की भौतिक और मानसिक उलझनों से मुक्त होता है और अपनी आत्मा में स्थिरता और संतुलन बनाए रखता है। शिरीष भी अपने कठोर वातावरण में रहते हुए अपनी प्राकृतिक स्थिति में स्थिर और प्रफुल्लित रहता है, इसलिए उसे अवधूत कहा गया है।

(iv) वायुमंडल से रस खींचने का क्या आशय है?

उत्तर: वायुमंडल से रस खींचने का आशय है कि शिरीष और गांधी जैसे व्यक्ति अपने आस-पास के वातावरण से सकारात्मक ऊर्जा और शक्ति प्राप्त करते हैं। वे बाहरी कठिनाइयों, तूफानों और संघर्षों के बावजूद अपनी आंतरिक शक्ति को बनाए रखते हैं। वे अपने भीतर संतुलन और शांति बनाए रखते हुए बाहरी परिस्थितियों से खुद को प्रभावित होने से बचाते हैं। यह वायुमंडल से रस खींचने की प्रक्रिया उनके जीवन की स्थिरता और शक्ति को दर्शाती है।

11. निम्नलिखित में से किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

(क) जीजी ने इंदर सेना पर पानी फेंके जाने को किस तरह सही ठहराया है?

उत्तर: जीजी के अनुसार मनुष्य के पास जो चीज़ ना हो और वह उसका त्याग करके किसी और को देता है, तो उसका बहुत अच्छा फल मिलता है। इंदर सेना ऐसे समय में पानी की माँग करती थी, जब लोगों के पास स्वयं पानी नहीं हुआ करता था। लोग अपने घरों से निकाल-निकालकर पानी देते थे। लेखक को पानी की यह बर्बादी पसंद नहीं थी। वह अपनी जीजी को ऐसा करने से मना करता था। तब जीजी ने समझाया कि मनुष्य जब स्वयं त्याग करता है, तो वह ईश्वर को विवश कर देता। ईश्वर उसके त्याग से प्रसन्न होकर उसे इनाम देते हैं।

(ख) “बाजार किसी का लिंग, जाति, धर्म या क्षेत्र नहीं देखता; वह देखता है सिर्फ उसकी क्रय शक्ति को।”

– आप इससे कहाँ तक सहमत है?

उत्तर: लेखक का लिखा हुआ कथन यह आभास अवश्य करवाता है कि इस प्रकार से सामाजिक समता की रचना होती है। हम इससे बिलकुल सहमत नहीं है। बाज़ार सामाजिक समता को नहीं बल्कि बटुवे के भार को देखता है। जिसके बटुवे में नोट हैं और वे नोट खर्च कर सकता है केवल वही इसका लाभ उठा सकते हैं। तब बाज़ार आदमी-औरत, छोटा-बड़ा, ऊँच-नीच, हिन्दु-मुस्लिम तथा गाँव-शहर का भेद नहीं देखता है। वह बस नोट देखता है। तो यह सामाजिक समता का सूचक नहीं बल्कि समाज को बाँटने में अधिक विनाशक शक्ति के रूप में कार्य करता है। धन का भेदभाव ऐसा है जब आता है, तो यह लिंग, जाति, धर्म तथा क्षेत्र को भी बाँटने से हिचकिचाता नहीं है।

(ग) चार्ली प्रेमचन्द के ज्यादा नजदीक कैसै है?

उत्तर: प्रेमचन्द्र जी का लेखन और चार्ली की फ़िल्म दर्शन में बहुत ही मेल है अर्थात दोनो का दर्शन एक जैसा ही है। दोनो का प्रकाश भंगी प्राय एक जैसा ही था और समाज की हर एक व्यक्ति की हृदय तक पहुँचता था। इसलिए चार्ली प्रेमचन्द्र के ज्यादा नजदीक थे।

(घ) नमक की पुड़िया ले जाने के संबंध में सफ़िया के मन में क्या द्वंद्र था?

उत्तर: सफ़िया के मन में नमक की पुड़िया ले जाने के संबंध में द्वंद्व था क्योंकि वह अपनी नैतिक जिम्मेदारी और समाज के नियमों के बीच उलझी हुई थी। सफ़िया को यह समझ में नहीं आ रहा था कि वह एक ओर अपनी परिवारिक जिम्मेदारी को निभाते हुए नमक की पुड़िया ले जाए, या दूसरी ओर, समाज के द्वारा तय किए गए मानकों का पालन करे। इसके अतिरिक्त, उसे यह भी खटकता था कि समाज उसे और उसके परिवार को कमतर मानता था, और नमक की पुड़िया ले जाने से उसे अपनी स्थिति का एहसास और घमंड महसूस होता था। वह यह सोच रही थी कि यह कार्य उसके लिए सही है या नहीं, और समाज के दृष्टिकोण से वह कैसी नजर आएगी।

(ङ) चार्ली चैप्लिन सबसे ज्यादा स्वयं पर कब हँसता है?

उत्तर: चार्ली चैप्लिन सबसे ज्यादा स्वयं पर तब हँसता है जब वह अपनी मुसीबतों और कमज़ोरियों का मज़ाक उड़ाता है। उनके हास्य में हमेशा एक प्रकार की दुःखभरी सहजता होती है, जहां वे अपने खुद के संघर्ष और कमज़ोरियों को हल्के-फुल्के ढंग से दिखाते हैं। उदाहरण के लिए, उनके कई फिल्मों में वह अपने कठिनाइयों का सामना करते हुए भी खुशी और उम्मीद बनाए रखते हैं। “The Tramp” के रूप में उन्होंने खुद को एक निरंतर संघर्ष करने वाले, लेकिन हमेशा हँसते रहने वाले व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत किया, जो दूसरों के मुकाबले खुद की मुश्किलों पर हँसता है। इस प्रकार, चार्ली चैप्लिन का हास्य आत्ममौक्षिकी और स्वयं पर हंसी का एक सुंदर मिश्रण था।

पूरक पुस्तक (वितान: भाग-2)

12. निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए :

(क) यशोधर बाबू की पत्नी के चरित्र पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।

उत्तर: यशोधर बाबू को जीवन की पुरानी शेलो से मोह है। वे समाज और धर्म की कुछ ऐसी परंपराओं को निभाना चाहते हैं जिन्हें समाज ने पुरानी और अनुपयोगी मानकर त्याग दिया है। यशोधर बाबू सरल-सादा सीधी व्यक्ति थे और इसलिए सरल-सादा जीवन जीना चाहते थे। यशोधर बाबू को सहज पारिवारिक जीवन की तलाश रहती हैं। जिसमें वे अपनेपन से रह सकें। इसके लिए वे केवल अपने परिवारजनों को ही नहीं बल्कि अन्य रिश्तेदारों की भी सम्मिलित करना चाहते है।

(ख) यशोधर बाबू की दिनचर्या कैसी थी?

उत्तर: यशोधर बाबू पुराने विचारों के व्यक्ति थेl उन्हें बस में पैसे देकर दफ्तर जाना फिजूल खर्च लगता था। इसलिए वह साइकिल ही चलाया करते थे। उनके दैनिक खर्च नाम मात्र के एवं नहीं के बराबर थेl उन्हें बेवजह के खर्चे करना पसंद नहीं था। इसलिए वे कहीं भी आने-जाने के लिए साइकिल का ही प्रयोग किया करते थे।

(ग) ‘अतीत में दबे पाँव’ में वर्णित महाकुंड का वर्णन कीजिए।

उत्तर: महाकुंड एक ऐतिहासिक जलकुंड है, जो लगभग 40 फीट लंबा, 25 फीट चौड़ा और 7 फीट गहरा है। इसमें उत्तर और दक्षिण से सीढ़ियां उतरती हैं और तीन तरफ़ साधुओं के कक्ष बने हैं। उत्तर में दो पंक्तियों में आठ स्नानघर हैं। कुंड के तल और दीवारों में पानी रिसने से बचाने के लिए चूने और चिरोड़ी के गारे का प्रयोग किया गया है। यह माना जाता है कि इस कुंड में सामूहिक स्नान किसी धार्मिक अनुष्ठान का हिस्सा था।

13. किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

(क) “यशोधर बाबू स्वीकार करते हैं कि उनमें कुछ परिवर्तन हुआ है लेकिन वह समझते हैं कि उम्र के साथ-साथ बुजुर्गियत आना ठीक हो है।”

– पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: यह वाक्य यशोधर बाबू की मानसिकता और दृष्टिकोण को दर्शाता है। वे अपनी उम्र के बढ़ने के साथ होने वाले शारीरिक और मानसिक परिवर्तनों को स्वीकार करते हैं, लेकिन साथ ही यह मानते हैं कि उम्र के साथ बुजुर्गियत आना स्वाभाविक और उचित है। इसका मतलब है कि वे इस परिवर्तन को एक सकारात्मक पहलू के रूप में देखते हैं, न कि इसे किसी प्रकार की परेशानी या कमी के रूप में। वे मानते हैं कि उम्र का यह बदलाव जीवन का एक हिस्सा है और इसके साथ आने वाले अनुभवों का सम्मान किया जाना चाहिए।

(ख) “सिंधु सभ्यता में नगर नियोजन से भी कहीं ज्यादा सौंदर्य-बोध के दर्शन होते हैं।”

– ‘अतीत में दबे पाँव’ पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए।

उत्तर: यह वाक्य यशोधर बाबू की मानसिकता और दृष्टिकोण को दर्शाता है। वे अपनी उम्र के बढ़ने के साथ होने वाले शारीरिक और मानसिक परिवर्तनों को स्वीकार करते हैं, लेकिन साथ ही यह मानते हैं कि उम्र के साथ बुजुर्गियत आना स्वाभाविक और उचित है। इसका मतलब है कि वे इस परिवर्तन को एक सकारात्मक पहलू के रूप में देखते हैं, न कि इसे किसी प्रकार की परेशानी या कमी के रूप में। वे मानते हैं कि उम्र का यह बदलाव जीवन का एक हिस्सा है और इसके साथ आने वाले अनुभवों का सम्मान किया जाना चाहिए।

(ग) “टूटे-फूटे खंडहर, सभ्यता और संस्कृति के इतिहास के साथ-साथ धड़कती जिंदगियों के अनछुए समयों का भी दस्तावेज होते हैं”

-इस कथन का भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: टूटे-फूटे खंडहर, सभ्यता और संस्कृति के इतिहास के साथ धड़कती जिंदगियों के अनछुए समयों का दस्तावेज भी होता है। ये खंडहर वहाँ बसने वाले लोगों की रहन- सहन, जीवन शैली को दर्शाता है। लेखक कहते है कि भले ही आज वहां कोई नहीं बसता है, परंतु उन टूटे घरों में घूमते हुए अजनबी घर में अनाधिकार चहल कदमों का अपराध बोध का एहसास होता है। ऐसा लगता है मानों किसी पराए घर में पिछवाड़े से चोरी-छुपे घुस आए हो। ये टूटे हुए घर यहाँ आने वाले लोगों को हमेशा यह अहसास दिलाता है कि यह भले ही यह आपकी सभ्यता परंपरा है परंतु यह घर आपका नहीं है। इन घरों में भले ही आज कोई नहीं बसता है, परंतु बीते हुए कल में यह पचासी हजार आबादी वाला शहर हुआ करता था। पचास हजार पहले का दो सौ हैक्टर क्षेत्र में फैला हुआ यह शहर आज के ‘महानगर’ की परिभाषा को भी लांघता है। वर्तमान समय में भले ही यह खंडहर बन गया है, परंतु आज भी किसी घर की रसोई की खिड़की पर खड़े होकर उसकी गंध महसूस कर सकते है। 

14. “सिंधु-सभ्यता साधन-संपन्न थी, पर उसमें भव्यता का आडंबर नहीं था”

– पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: सिंधु-सभ्यता साधन संपन्न थी। खुदाई के दौरान बड़ी तदाद में इमारतें, सड़कें, धातु-

पत्थर की मूर्तियां, चाक पर बने चित्रित भांडे, मुहरें, साजो-सामान और खिलौने आदि मिले। वहां की सड़कों और गलियों में आज भी घुमा जा सकता है। वहां के चबूतरे पर बौद्ध स्तूप था। साथ ही भिक्षुओं के रहने के लिए कमरे भी बने हुए थे। पक्की और आकार में समरूप धूसर ईंटें तो सिंधु घाटी सभ्यता की विशिष्ट पहचान है। सड़कों की व्यवस्था बहुत अच्छी है। सड़क के दोनों ओर घर है। यहां जल की भी सुव्यवस्था थी। अतः सिंधु घाटी सभ्यता संसार में पहली ज्ञात संस्कृति है, जो कुएं खोद कर भूजल तक पहुंची। वहां की नालियाँ भी अनगढ़ पत्थरों से ढकी दिखाई देती है। ढकी हुई नालियाँ मुख्य सड़क के दोनों तरफ समांतर दिखाई देती है। हर घर में एक स्नानघर है। वहाँ ज्ञानशालाएँ, प्रशासनिक इमारतें, सभा भवन, सामुदायिक केंद्र हुआ करते थे। इतना ही नहीं यह मूलतः खेतिहर और पशुपालक सभ्यता ही थी।

अथवा

‘सिल्वर वैडिंग’ पाठ में नयी पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी के अन्तराल को किस तरह दिखाया गया है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: ‘सिल्वर वैडिंग’ पाठ में नयी पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी के अन्तराल को रिश्तों की बदलती परिभाषाओं और सोच के माध्यम से दिखाया गया है। पुराने समय की पीढ़ी में पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारियाँ प्रमुख होती थीं, जबकि नयी पीढ़ी में व्यक्तिगत स्वतंत्रता और व्यक्तिगत आकांक्षाएँ अधिक महत्वपूर्ण हो गई हैं। लेखिका ने माँ-बाप की शादी की 25वीं सालगिरह के अवसर पर दोनों पीढ़ियों के दृष्टिकोण और विचारों में अंतर को उजागर किया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि समय के साथ रिश्तों और उनके महत्व को देखने का तरीका बदल गया है।

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