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NCERT Class 9 Hindi Chapter 4 तुम कब जाओगे, अतिथि
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तुम कब जाओगे, अतिथि
Chapter: 4
स्पर्श भाग – 1 (गघ-भाग)
गद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
(1) ठहाकों के रंगीन गुब्बारे, जो कल तक इस कमरे के आकाश में उड़ते थे, अब दिखाई नहीं पड़ते। बातचीत की उछलती हुई गेंद चर्चा के क्षेत्र के सभी कोनों से टप्पे खाकर फिर सेंटर में आकर चुपड़ी है। अब इसे न तुम हिला रहे हो, न मैं कल से मैं उपन्यास पढ़ रहा हूँ और तुम फिल्मी पत्रिका के पन्ने पलट रहे हो। शब्दों का लेन-देन मिट गया और चर्चा के विषय चूक गए। परिवार, बच्चे, नौकरी, फिल्म, राजनीति, रिश्तेदारी, तबादले, पुराने दोस्त, परिवार-नियोजन, महँगाई,साहित्य और यहाँ तक कि आँख मार-मारकर हमने पुरानी प्रेमिकाओं का भी जिक्र कर दिया और अब एक चुप्पी है। सौहार्द अब शनैः-शनैः बोरियत में रूपांतरित हो रहा है। भावनाएं गालियों का स्वरूप ग्रहण कर रही हैं, पर तुम जा नहीं रहे किस अदृश्य गोद से तुम्हारा व्यक्तित्व यहाँ चिपक गया है, मैं इस भेद को सपरिवार नहीं समझ पा रहा हूँ। बार-बार यह प्रश्न उठ रहा है-तुम कब जाओगे अतिथि?
प्रश्न- (1) कल तक कमरे में क्या होता था?
(क) उड़ाके गूँजते थे
(ख) गुब्बारे उड़ते थे
(ग) चर्चा होती थी
(घ) चुप्पी रहती थी
उत्तर: (क) ठहाके गूंजते थे।
(ii) अतिथि अब क्या कर रहा है?
(क) उपन्यास पढ रहा है
(ख) फिल्मी पत्रिका के पन्ने पलट रहा है
(ग) बातचीत कर रहा है
(घ) कुछ नहीं
उत्तर: (ख) फिल्मी पत्रिका के पन्ने पलट रहा है।
(iii) किस-किस विषय पर चर्चा हो चुकी है?
(क) परिवार पर
(ख) राजनीति पर
(ग) पुरानो प्रेमिकाओं पर
(घ) इन सभी पर
उत्तर: (घ) इन सभी पर।
(iv) अब सौहार्द का स्थान कौन ले रही है?
(क) बोरियत
(ख) हँसी
(ग) व्यंग्य
(घ) चुहुलबाजी
उत्तर: (क) बोरियत।
(v) लेखक के मन में बार- बार क्या प्रश्न उठ रहा है?
(क) अतिथि कब जाएगा?
(ख) मैं कब आऊँगा?
(ग) मेरी मुसीबत कब टलेगी?
(घ) कब छुटकारा मिलेगा?
उत्तर: (क) अतिथि कब जाएगा?
(2) दूसरे दिन किसी रेल से एक शानदार मेहमानवाजी की छाप अपने हृदय में ले तुम चले जाओगे। हम तुमसे रुकने के लिए आग्रह करेंगे, मगर तुम नहीं मानोगे और एक अच्छे अतिथि की तरह चले जाओगे। पर ऐसा नहीं हुआ! दूसरे दिन भी तुम अपनी अतिधि – सुलभ मुसकान लिए घर में ही बने रहे। हमने अपनी पीड़ा पी ली और प्रसन्न बने रहे। स्वागत-सत्कार के जिस उच्च बिंदु पर हम तुम्हें ले जा चुके थे, वहाँ से नीचे उतर हमने फिर दोपहर के भोजन को संघ की गरिमा प्रदान की और रात्रि को तुम्हें सिनेमा दिखाया। हमारे सत्कार का यह आखिरी छोर है, जिससे आगे हम किसी के लिए नहीं बढ़े।
प्रश्न- (i) कौन चला जाएगा?
(क) लेखक
(ख) अतिथि
(ग) दोनों
(घ) पत्नी
उत्तर: (ख) अतिथि।
(ii) दूसरे दिन क्या हुआ?
(क) अतिथि घर में ही बने रहे
(ख) अतिथि चला गया
(ग) मुसकराता रहा
(घ) अतिथि अच्छा बना रहा
उत्तर: (क) अतिथि घर में ही बने रहे।
(iii) अपनी पीड़ा किसने ली?
(क) अतिथि ने
(ख) लेखक ने
(ग) पत्नी ने
(घ) सभी ने
उत्तर: (ख) लेखक ने।
(iv) दोपहर का भोजन क्या बना दिया?
(क) लंच
(ख) डिनर
(ग) नाश्ता
(घ) कुछ विशेष नहीं
उत्तर: (क) लंच।
(v) सत्कार का आखिरी छोर क्या था?
(क) रात को सिनेमा दिखाया
(ख) डिनर खिलाया
(ग) अच्छी व्यवस्था की
(घ) बातचीत की
उत्तर: (घ) बातचीत की।
(3) उस दिन जब तुम आए थे, मेरा हृदय किसी अज्ञात आशंका से धड़क उठा था। अंदर-ही-अंदर कहीं मेरा बटुआ काँप गया। उसके बावजूद एक स्नेह-भीगी मुसकराहट के साथ मैं तुमसे गले मिला था और मेरी पत्नी ने तुम्हें सादर नमस्ते की थी। तुम्हारे सम्मान में ओ अतिथि, हमने रात के भोजन को एकाएक उच्च-मध्यम वर्ग के डिनर में बदल दिया था। तुम्हें स्मरण होगा कि जो सब्जियों और रायते के अलावा हमने मीठा भी बनाया था। इस सारे उत्साह और लगन के मूल में एक आशा थी। आशा थी कि दूसरे दिन किसी रेल से एक शानदार मेहमाननवाजी की छाप अपने हृदय में ले तुम चले जाओगे।
प्रश्न- (1) अतिथि के आने पर लेखक पर क्या प्रतिक्रिया हुई?
(क) उसका हृदय अज्ञात आशंका से धड़क उठा।
(ख) यह प्रसन्न हो गया
(ग) स्वागत करने उठा
(घ) वह सोच-विचार में दूब गया
उत्तर: (क) उसका हृदय अज्ञात आशंका से धड़क उठा।
(ii) लेखक की पत्नी ने क्या किया?
(क) अतिथि सादर नमस्ते की
(ख) रात के भोजन को उच्च दिन में बदला
(ग) दो सब्जियाँ और मोठा परोसा
(घ) उपर्युक्त सभी काम
उत्तर: (घ) उपर्युक्त सभी काम।
(iii) लेखक और पत्नी को क्या आशा थी?
(क) मेहमान खुश हो जाएगा
(ख) उसके हृदय पर अच्छी मेहमाननवाजी को छाप पड़ेगी
(ग) वह शीघ्र लौट जाएगा
(घ) उपर्युक्त सभी बातें
उत्तर: (घ) उपर्युक्त सभी बातें।
(iv) ‘मुस्कुराहट में किस प्रत्यय का प्रयोग है?
(क) हट
(ख) कराहट
(ग) आहट
(घ) राहट
उत्तर: (घ) राहट।
(v) इस पाठ के रचयिता कौन हैं?
(क) जैनेंद्र
(ख) यशपाल
(ग) शरद जोशी
(घ) धनश्याम जोशी
उत्तर: (ग) शरद जोशी।
(4) आज तुम्हारे आगमन के चतुर्थ दिवस पर यह प्रश्न बार-बार मन में घुमड़ रहा है-तुम कब जाओगे, अतिथि ? तुम जहाँ बैठ निस्संकोच सिगरेट का धुआँ फेंक रहे हो, उससे ठीक सामने एक कैलेंडर है। देख रहे हो! इसकी तारीखें अपनी सीमा में नम्रता से फड़फड़ाती रहती हैं। विगत दो दिनों से मैं तुम्हें दिखाकर तारीखें बदल रहा हूँ। तुम जानते हो, अगर तुम्हें हिसाब लगाना आता है कि यह चौथा दिन है, तुम्हारे सतत आतिथ्य का चौथा भारी दिन! पर तुम्हारे जाने की कोई संभावना प्रतीत नहीं होती। लाखों मील लंबी यात्रा करने के बाद वे दोनों एस्ट्रॉनॉट्स भी इतने समय चाँद पर नहीं रुके थे, जितने समय तुम एक छोटी-सी यात्रा कर मेरे घर आए हो। तुम अपने भारी चरण कमलों की छाप मेरी जमीन पर अंकित कर चुके, तुमने एक अंतरंग निजी सबंध मुझसे स्थापित कर लिया, तुमने मेरी आर्थिक सीमाओं की बैजनी चट्टान देख ली; तुम मेरी काफी मिट्टी खोद चुके। अब तुम लौट जाओ, अतिथि! तुम्हारे जाने के लिए यह उच्च समय अर्थात् हाईटाइम है। क्या तुम्हें तुम्हारी पृथ्वी नहीं पुकारती?
प्रश्न- (i) अब तक अतिथि को आए कितने दिन हो चुके थे?
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) पाँच
उत्तर: (ग) चार।
(ii) अतिथि के ठीक सामने क्या है?
(क) कैलेंडर
(ख) सिगरेट
(ग) फूलदान
(घ) मेज
उत्तर: (क) कैलेंडर।
(iii) लेखक को किसकी संभावना प्रतीत नहीं होती?
(क) अतिथि के जाने की
(ख) अतिथि के ठहरने की
(ग) अतिथि के कपड़े धोने की
(घ) किसी की भी नहीं
उत्तर: (क) अतिथि के जाने की।
(iv) ‘चरण-कमल’ में किस अलंकार का प्रयोग है?
(क) उपमा
(ख) रूपक
(ग) यमक
(घ) श्लेष
उत्तर: (ख) रूपक।
(v) ‘आर्थिक’ शब्द में किस प्रत्यय का प्रयोग है?
(क) अर्थ
(ख) धिक
(ग) इक
(घ) क
उत्तर: (ग) इक।
(5) अपने खर्राटों से एक और रात गुंजायमान करने के बाद कल जो किरण तुम्हारे बिस्तर पर आएगी वह तुम्हारे यहाँ आगमन के बाद पाँचवें सूर्य की परिचित किरण होगी। आशा है, वह तुम्हें चूमेगी और तुम घर लौटने का सम्मानपूर्ण निर्णय ले लोगे। मेरी सहनशीलता की वह अंतिम सुबह होगी। उसके बाद में स्टैंड नहीं कर सकूंगा और लड़खड़ा जाऊँगा। मेरे अतिथि, मैं जानता हूँ कि अतिथि देवता होता है, पर आखिर में भी मनुष्य हूँ। मैं कोई तुम्हारी तरह देवता नहीं एक देवता और एक मनुष्य अधिक देर तक साथ नहीं रहते। देवता दर्शन देकर लौट जाता है। नृप लौट जाओ अतिथि इसी में तुम्हारा देवत्व सुरक्षित रहेगा। मनुष्य अपनी वाली पर उतरे, उसके पूर्व तुम लौट जाओ।
प्रश्न- (i) कल अतिथि को आए हुए कौन-सा दिन होगा ?
(क) तीसरा
(ख) चैथा
(ग) पाँचवां
(घ) छठा
उत्तर: (ग) पाँचवां।
(ii) लेखक को अतिथि के किस निर्णय की आशा है?
(क) घरलौटने के निर्णय की
(ख) अभी और रुकने की
(ग) घूमने-फिरने की
(घ) गप्पे हाँकने की
उत्तर: (क) घरलौटने के निर्णय की।
(iii) लेखक क्या जानता है?
(क) मैं मनुष्य हूँ
(ख) अतिथि देवता होता है
(ग) दोनों (क) और (ख)
(घ) देवता कोई नहीं होता
उत्तर: (ग) दोनों (क) और (ख)।
(iv) देवता कब लौट जाता है?
(क) दर्शन देकर
(ख) भेंट लेकर
(ग) आशीर्वाद देकर
(घ) भोग खाकर
उत्तर: (क) दर्शन देकर।
(v) ‘देवत्व’ शब्द में किस प्रत्यय का प्रयोग है?
(क) देव
(ख) व
(ग) त्व
(घ) वत्
उत्तर: (क) देव।
(6) तुम जहाँ बैठे सिगरेट का धुआँ फेंक रहे हो, उसके ठीक सामने एक कैलेण्डर है। देख रहे हो ना। इसकी तारीखें अपनी सीमा में नम्रता से फड़फड़ाती रहती है। विगत दो दिनों से मैं तुम्हें दिखाकर तारीखें बदल रहा हूँ तुम जानते हो, अगर तुम हिसाब लगाना आता है कि यह चौथा भारी दिन है, तुम्हारे सतत आतिथ्य का चौथा भारी दिन पर तुम्हारे जाने की कोई संभावना प्रतीत नहीं होती। लाखो मीत संबी यात्रा करने के बाद वे दोनों एस्ट्रॉनॉट्स भी इतने समय चाँद पर नहीं रुके थे, जितने समय तुम एक छोटी-सी यात्रा कर मेरे घर आए हो।
प्रश्न- (i) सिगरेट के धुएँ के सामने क्या है?
(क) एक कैलेंडर
(ख) एक चित्र
(ग) एक मूर्ति
(घ) एक सोफा
उत्तर: (क) एक कैलेंडर।
(ii) लेखक विगत दो दिनों से क्या काम कर रहा है?
(क) कैलेंडर की तारीखें बदल रहा है
(ख) अतिथि को कैसेंटर दिखा रहा है
(ग) हिसाब लगा रहा है
(घ) कुछ नहीं कर रहा
उत्तर: (क) कैलेंडर की तारीखें बदल रहा है।
(iii) आतिथ्य का आज कौन-सा दिन है?
(क) तीसरा
(ख) चैथा
(ग) पाँचवाँ
(घ) छठा
उत्तर: (ख) चौथा।
(iv) ‘एस्टॉनाट’ कौन होता है?
(क) अंतरिक्ष यात्री
(ख) हवाई यात्री
(ग) रेल – यात्री
(घ) बस यात्री
उत्तर: (क) अंतरिक्ष यात्री।
(v) ‘फड़फड़ाना कैसा शब्द है?
(क) तत्सम
(ख) तद्भव
(ग) देशज
(घ) विदेशी
उत्तर: (ग) देशज।
(7) इस सारे उत्साह और लगन के मूल में एक आशा थी। आशा थी कि दूसरे दिन किसी रेल से एक शानदार मेहमाननवाजी की छाप अपने हृदय में से तुम चले जाओगे। हम तुमसे रुकने के लिए आग्रह करेंगे, मगर तुम नहीं मानोगे और एक अच्छे अतिथि की तरह चले जाओगे। पर ऐसा नहीं हुआ। दूसरे दिन भी तुम अपनी अतिथि – सुलभ मुसकान लिए घर में ही बने रहे। हमने अपनी पोड़ा पी ली और प्रसन्न बने रहे। स्वागत-सत्कार के जिस उच्च बिंदु पर हम तुम्हें ले जा चुके थे, वहाँ से नीचे उतरकर हमने फिर दोपहर के भोजन को लंच की गरिमा प्रदान की और रात्रि को तुम्हें सिनेमा दिखाया। हमारे सत्कार का यह आखिरी छोर है, जिससे आगे हम किसी के लिए नहीं बड़े। इसके तुरंत बाद भावभीनी विदाई का वह भीगा हुआ क्षण आ जाना चाहिए था, जब तुम विदा होते और हम तुम्हें स्टेशन तक छोड़ने जाते। पर तुमने ऐसा नहीं किया।
प्रश्न- (i) लेखक को उत्साह के मूल में क्या आशा थी?
(क) अतिथि अगले दिन चला जाएगा
(ख) वह मेहमान नवाजी को छाप लेकर जाएगा
(ग) दोनों (क) और (ख)
(घ) अतिथि रुक जाएगा
उत्तर: (ग) दोनों (क) और (ख)।
(ii) दूसरे दिन क्या हुआ?
(क) अतिथि चला गया
(ख) अतिथि घर में ही रुका रहा
(ग) वह सोता रहा
(घ) कुछ नहीं हुआ
उत्तर: (ख) अतिथि घर में ही रुका रहा।
(iii) दोपहर के समय लेखक ने अतिथि का सत्कार कैसे किया?
(क) दोपहर के भोजन को लंच की गरिमा दी
(ख) रात को सिनेमा दिखाया
(ग) दोनों (क) और (ख)
(घ) भली प्रकार
उत्तर: (ग) दोनों (क) और (ख)।
(iv) लेखक किस क्षण की उम्मीद कर रहा था?
(क) अतिथि की भावभीनी विदाई की
(ख) अतिथि की प्रशंसा करने की
(ग) अपने आतिथ्य की प्रशंसा सुनने की
(घ) कुछ नहीं
उत्तर: (क) अतिथि की भावभीनी विदाई की।
(v) ‘सत्कार’ शब्द कैसा है?
(क) तत्सम
(ख) तद्भव
(ग) देशज
(घ) विदेशी
उत्तर: (क) तत्सम।
(8) मेरी पत्नी की आँखें एकाएक बड़ी हो गईं। आज से कुछ बरस पूर्व उनकी ऐसी आंखें देख मैंने अपने अकेलेपन की यात्रा समाप्त कर बिस्तर खोल दिया था। पर अब जब वे ही आँखें बड़ी होती है तो मन छोटा होने लगता है। वे इस आशंका और भय से बढ़ी हुई थी कि अतिथि अधिक दिनों तक ठहरेगा और आशंका निर्मूल नहीं थी। अतिथि, तुम जा नहीं रहे। लॉण्ड्री पर दिए कपड़े धुलकर आ गए और तुम यहीं हो।
प्रश्न- (i) किसकी आँखें बड़ी हो गई थी?
(क) पत्नी की
(ख) अतिथि को
(ग) लेखक को
(घ) किसी की नहीं
उत्तर: (क) पत्नी की।
(ii) जब पत्नी की आंखें बड़ी होती हैं तब क्या होता है?
(क) लेखक का मन छोटा हो जाता है
(ख) वह अपना बिस्तर खोल देता है
(ग) वह डर जाता है
(घ) वह सोचता रह जाता है
उत्तर: (क) लेखक का मन छोटा हो जाता है।
(iii) आँखें बड़ी होने का क्या कारण था?
(क) अतिथि का ज्यादा दिन तक ठहरना
(ख) अतिथि का नाराज हो जाना
(ग) अतिथि का चले जाना
(घ) अतिथि का आ जाना
उत्तर: (क) अतिथि का ज्यादा दिन तक ठहरना।
(iv) अभी तक अतिथि कहाँ पर है?
(क) लेखक के घर
(ख) अपने घर
(ग) होटल में
(घ) सफर में
उत्तर: (क) लेखक के घर।
(v) ‘लाण्ड्री’ शब्द कैसा है?
(क) तत्सम
(ख) तद्भव
(ग) देशज
(घ) विदेशी
उत्तर: (घ) विदेशी।
(9) तुम्हारे सम्मान में ओ अतिथि, हमने रात के भोजन को एकाएक उच्च-मध्यम वर्ग के डिनर में बदल दिया था। तुम्हें स्मरण होगा कि दो सब्जियों और रायते के अलावा हमने मोठा भी बनाया था। इस सारे उत्साह और लगन के मूल में एक ही आशा थी। आशा थी कि दूसरे दिन किसी रेल से एक शानदार मेहमानवाजी की छाप अपने हृदय में ले तुम चले जाओगे। हम तुमसे रुकने का आग्रह करेंगे, मगर तुम नहीं मानोगे और एक अच्छे अतिथि की तरह चले जाओगे। पर ऐसा नहीं हुआ। दूसरे दिन भी तुम अपनी अतिथि सुलभ मुसकान लिए घर में ही बने रहे। हमने अपनी पीड़ा पी लो और प्रसन्न बने रहे। स्वागत सत्कार के जिस उच्च बिंदु पर हम तुम्हें ले जा चुके थे, वहाँ से नीचे उतर हमने फिर दोपहर के भोजन को लंच की गरिमा प्रदान की और रात्रि को तुम्हे सिनेमा दिखाया। हमारे सत्कार का यह आखिरी छोर है, जिससे आगे हम किसी के लिए नहीं बढ़े।
प्रश्न- (i) लेखक ने रात के भोजन को किसमें बदल दिया था?
(क) डिनर में
(ख) उच्च-मध्य वर्ग के डिनर में
(ग) दावत में
(घ) सामान्य भोज में
उत्तर: (ख) उच्च मध्य वर्ग के डिनर में।
(ii) डिनर में क्या-क्या बनाया गया था?
(क) दो सब्जियाँ
(ख) रायता
(ग) मीठी चीज
(घ) ये सभी
उत्तर: (घ) ये सभी।
(iii) लेखक क्या उम्मीद कर रहा था?
(क) अतिथि लौट जाएगा
(ख) वह मेहमानवाजी से खुश होगा
(ग) दोनों (क) और (ख)
(घ) रुका रहेगा
उत्तर: (ग) दोनों (क) और (ख)।
(iv) किसने अपनी पीड़ा हर ली?
(क) अतिथि ने
(ख) लेखक ने
(ग) पत्नी ने
(घ) सभी ने
उत्तर: (ख) लेखक ने।
(v) ‘उच्च’ शब्द कैसा है?
(क) तत्सम
(ख) त्द्भव
(ग) देशज
(घ) विदेशी
उत्तर: (क) तत्सम।
(10) तुम्हें देखकर फूट पड़ने वाली मुसकराहट धीरे-धीरे फीकी पड़कर अब लुप्त हो गई है। ठहाकों के रंगीन गुब्बारे, जो कल तक इस कमरे के आकाश में उड़ते थे, अब दिखाई नहीं पड़ते। बातचीत की उछलती हुई गेंद बच्चों के क्षेत्र के सभी कोनलों से टप्पे खाकर फिर सेंटर में आकर चुप पड़ी है। अब इसे न तुम हिला रहे हो, न मैं कल से मैं उपन्यास पढ़ रहा हूँ और तुम फिल्मी पत्रिका के पन्ने पलट रहे हो। शब्दों का लेन-देन मिट गया और चर्चा के विषय चुक गए। परिवार, बच्चे, नौकरी, फिल्म, राजनीति, रिश्तेदारी, तबादले, पुराने दोस्त, परिवार नियोजन, महँगाई, साहित्य और यहाँ तक कि आँख मार-मारकर हमने पुरानी प्रेमिकाओं का भी जिक्र कर लिया और अब एक चुप्पी है। सौहार्द अब शनैः शनैः बोरियत में रूपांतरित हो रहा है। भावनाएँ गालियों का स्वरूप ग्रहण कर रही है, पर तुम जा नहीं रहे। किस अदृश्य गाँव से तुम्हारा व्यक्तित्व यहाँ चिपक गया है, मैं इस भेद को सपरिवार नहीं समझा पा रहा हूँ।
प्रश्न- (i) लेखक किन-किन बातों के माध्यम से अतिथि के न जाने की बात कहता है?
(क) पर की मुस्कराहट गायब हो गई
(ख) बातचीत के विषय समाप्त हो गए
(ग) अतिथि का व्यक्तित्व अभी तक यहाँ चिपका है
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर: (घ) उपर्युक्त सभी।
(ii) लेखक और अतिथि के बीच किन-किन विषयों पर चर्चा हुई?
(क) लेखक और अतिथि के बीच परिवार पर
(ख) बच्चे पर
(ग) नौकरी पर
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर: (घ) उपर्युक्त सभी।
(iii) लेखक कल से क्या कर रहा था?
(क) फिल्मी पत्रिका के पन्ने पलट रहा था
(ख) उपन्यास पढ़ रहा था
(ग) कविता लिख रहा था
(घ) यात्रा कर रहा था
उत्तर: (घ) यात्रा कर रहा था।
(iv) ‘रूपांतरित’ मे किस प्रत्यय का प्रयोग हुआ है?
(क) इत्र
(ख) इक
(ग) ता
(घ) ई
उत्तर: (क) इत्र।
(v) निन्म शब्दों में से किस शब्द का अर्थ उल्लेख है?
(क) जिक्र
(ख) शनै: शनै:
(ग) फौकी
(घ) बोरियत
उत्तर: (क) जिक्र।
प्रश्न-अभ्यास
(पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोत्तर)
मौखिक
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-
प्रश्न 1. अतिथि कितने दिनों से लेखक के घर पर रह रहा है?
उत्तर:अतिथि लेखक के घर पाँच दिनों से रह रहा है। चार दिन पूरे हो चुके हैं, कल पाँचवाँ दिन होगा।
प्रश्न 2. कैलेंडर की तारीखें किस तरह फड़फड़ा रही हैं?
उत्तर: कैलेंडर की तारीखें अपनी सीमा में नम्रता से फड़फड़ा रही हैं। वे पक्षी के पखों की तरह फड़फड़ा रही हैं।
प्रश्न 3. पति-पत्नी ने मेहमान का स्वागत कैसे किया?
उत्तर: पति ने स्नेह-भीगी मुसकराहट से अतिथि के गले मिलकर उसका स्वागत किया। पत्नी ने सादर नमस्ते करके अतिथि का स्वागत किया।
प्रश्न 4 दोपहर के भोजन को कौन-सी गरिमा प्रदान की गई?
उत्तर: दोपहर के भोजन को लंच की गरिमा प्रदान की गई अर्थात् दोपहर के भोजन को लंच जैसा शानदार बनाया गया।
प्रश्न 5. तीसरे दिन सुबह अतिथि ने क्या कहा?
उत्तर: तीसरे दिन सुबह अतिथि ने धोबी को कपड़े देने के लिए कहा। वह उससे अपने कपड़े धुलवाना चाहता था।
प्रश्न 6. सत्कार की ऊष्मा समाप्त होने पर क्या हुआ?
उत्तर: सत्कार की ऊष्मा समाप्त होने पर डिनर के स्थान पर खिचड़ी बनने लगी। खाने में सादगी आ गई।
लिखित
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए
प्रश्न 1. लेखक अतिथि को कैसी विदाई देना चाहता था?
उत्तर: लेखक अतिथि को भावभीनी विदाई देना चाहता था। लेखक अतिथि का भरपूर स्वागत कर चुका था। उसके सत्कार का आखिरी छोर आ चुका था। अब लेखक चाहता था कि जब अतिथि विदा हो तो वह और उसकी पत्नी उसे स्टेशन तक छोड़ने जाएँ। वह उसे सम्मानजनक विदाई देना चाहता था।
प्रश्न 2. पाठ में आए निम्नलिखित कथनों की व्याख्या कीजिए-
(क) अंदर ही अंदर कहीं मेरा बटुआ काँप गया।
उत्तर: जब लेखक ने अनचाहे अतिथि को अपने यहाँ आते हुए देखा तो उसे लगा कि अब उसका बटुआ हल्का हो जाएगा। उसे उस पर काफी खर्च करना पड़ेगा । इसी को बटुआ काँपना कहा गया है।
(ख) अतिथि सदैव देवता नहीं होता, वह मानव और थोडे अंशों में राक्षस भी हो सकता।
उत्तर: यदि अतिथि थोड़ी देर तक टिकता है तो वह देवता रूप बनाए रखता है, पर फिर वह मनुष्य रूप में आ जाता है और ज्यादा देर तक टिकने पर वह राक्षस का रूप ले लेता है। तब वह राक्षस जैसा बुरा प्रतीत होता है।
(ग) लोग दूसरे के होम की स्वीटनेस को काटने न दौड़ें।
उत्तर: (ग) लोग अपने घर को तो स्वीट होम बनाए रखना चाहते हैं पर दूसरे के घर की मिठास में जहर घोलते नजर आते हैं। दूसरों के यहाँ अनचाहे अतिथि बनकर उनके घर की स्वीटनेस को काटने का प्रयास हो जाता है। यह नहीं होना चाहिए।
(घ) मेरी सहनशीलता की वह अंतिम सुबह होगी।
उत्तर: (घ) लेखक अनचाहे अतिथि को चार दिन से झेल रहा है। कल पाँचवाँ दिन हो जाएगा। अगर अतिथि कल भी नहीं गया तो उसकी सहनशीलता जवाब दे जाएगी। अब वह उस अतिथि को और नहीं झेल पाएगा।
(ङ) एक देवता और एक मनुष्य अधिक देर साथ नहीं रहते।
उत्तर: (ङ) यदि अतिथि देवता है तो वह एक सामान्य मनुष्य के साथ ज्यादा देर तक नहीं रह सकता। दोनों को सामान्य मनुष्य बनना होगा । देवता की पूजा ज्यादा देर तक नहीं चल सकती।
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-
प्रश्न 1. कौन-सा आघात अप्रत्याशित था और उसका लेखक पर क्या प्रभाव पड़ा?
(निबंधात्मक प्रश्न)
उत्तर: जब अतिथि ने लेखक से कहा कि वह धोबी को अपने कपड़े धोने के लिए देना चाहता है तब वह आघात की तरह था, जो अप्रत्याशित था। लेखक इसकी आशा नहीं कर रहा था। इस आघात की चोट मार्मिक थी। लेखक को लगा कि अतिथि के रहने का समय रबर की तरह खिंचता चला जा रहा है। इस स्थिति का लेखक को अनुमान तक न था। पहली बारी उस पर यह प्रभाव पड़ा कि वह अतिथि को देवता मानने के स्थान पर मानव और राक्षस मानने लगा। उसका अतिथि राक्षस का रूप लेता जा रहा था।
प्रश्न 2. ‘संबंधों का संक्रमण के दौर से गुजरना-इस पंक्ति से आप क्या समझते हैं? विस्तार से लिखिए।
(निबंधात्मक प्रश्न)
उत्तर: लेखक और अतिथि के संबंध अच्छे रहे थे, पर अब वे संक्रमण अर्थात् संकट के दौर से गुजर रहे थे। अब उन संबंधों में गरमाहट नहीं रह गई थी। अब वे समाप्ति की ओर बढ़ रहे थे।
जब संबंधों में दरार पड़ने लगती है तब ये संबंध टूटने के कगार पर पहुँच जाते हैं। पाठ में ये संबंध अनचाहे समय तक अतिथि बनकर रहने के कारण संक्रमण के दौर से गुजरते है।
प्रश्न 3. जब अतिथि चार दिन तक नहीं गया तो लेखक के व्यवहार में क्या-क्या परिवर्तन आए?
उत्तर: अतिथि चार दिन तक लेखक के घर टिका रहा। उसने जाने का नाम तक नहीं लिया। इससे लेखक के व्यवहार में निम्न परिवर्तन आए-
1. खाने का स्तर डिनर से गिरकर खिचड़ी तक आ पहुँचा।
2. वह गेट आउट कहने को भी तैयार होने लगता है।
3. लेखक को अतिथि राक्षस के समान लगने लगता है।
4. लेखक का धैर्य चुकने लगता है।
5. बातचीत तक बंद हो जाती है।
भाषा-अध्ययन
1. निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची लिखिए-
चाँद जिक्र आघात ऊष्मा अंतरंग
उत्तर: चाँद = सोम, मयंक
जिक्र = उल्लेख, वर्णन
आघात = हमला, चोट
ऊष्मा = गर्मी, घनिष्ठता
अंतरंग = आंतरिक, घनिष्ठ।
2. निम्नलिखित वाक्यों को निर्देशानुसार परिवर्तित कीजिए-
(क) हम तुम्हें स्टेशन तक छोड़ने जाएँगे। (नकारात्मक वाक्य)
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उत्तर: हम तुम्हें स्टेशन तक छोड़ने नहीं जाएँगे।
(ख) किसी लॉण्ड्री पर दे देते हैं, जल्दी धुल जाएँगे। (प्रश्नवाचक वाक्य)
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उत्तर: किसी लांड्री पर दे देने से क्या जल्दी धुल जाएँगे?
(ग) सत्कार की ऊष्मा समाप्त हो रही थी। (भविष्यत् काल)
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उत्तर: सत्कार की ऊष्मा समाप्त हो जाएगी।
(घ) इनके कपड़े देने हैं। (स्थानसूचक प्रश्नवाची)
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उत्तर: क्या यहाँ इनके कपड़े देने हैं?
(ङ) कब तक टिकेंगे? (नकारात्मक)
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उत्तर: ये अब नहीं टिकेंगे।
3. पाठ में आए इन वाक्यों में ‘चुकना’ क्रिया के विभिन्न प्रयोगों को ध्यान से देखिए और वाक्य संरचना को समझिए-
(क) तुम अपने भारी चरण-कमलों की छाप मेरी जमीन पर अंकित कर चुके।
(ख) तुम मेरी काफी मिट्टी खोद चुके।
(ग) आदर-सत्कार के जिस उच्च बिंदु पर हम तुम्हें ले जा चुके थे।
(घ) शब्दों का लेन-देन मिट गया और चर्चा के विषय चुक गए।
(ङ) तुम्हारे भारी-भरकम शरीर से सलवटें पड़ी चादर बदली जा चुकी और तुम यहीं हो।
उत्तर: छात्र-छात्री स्वयं करें।
4. निम्नलिखित वाक्य संरचनाओं में ‘तुम’ के प्रयोग पर ध्यान दीजिए-
(क) लॉण्ड्री पर दिए कपड़े धुलकर आ गए और यहीं हो तुम यहीं हो।
(ख) तुम्हें देखकर फूट पड़ने वाली मुसकुराहट धीरे-धीरे फीकी पड़कर अब लुप्त हो गई है।
(ग) तुम्हारे भारी-भरकम शरीर से सलवटें पड़ी चादर बदली जा चुकी।
(घ) कल से मैं उपन्यास पढ़ रहा हूँ और पत्रिका के पन्ने पलट रहे हो।
(ङ) भावनाएँ गालियों का स्वरूप ग्रहण कर रही हैं, पर तुम जा नहीं रहे।
उत्तर: छात्र-छात्री स्वयं करें।
योग्यता विस्तार
1. ‘अतिथि देवो भव’ उक्ति की व्याख्या करें तथा आधुनिक युग के संदर्भ में इसका आकलन करें।
उत्तर: छात्र-छात्री स्वयं करें।
2. विद्यार्थी अपने घर आए अतिथियों के सत्कार का अनुभव कक्षा में सुनाएँ।
उत्तर: छात्र-छात्री स्वयं करें।
3. अतिथि के अपेक्षा से अधिक रुक जाने पर लेखक की क्या – क्या प्रतिक्रियाएँ हुई, उन्हें क्रम से छाँटकर लिखिए।
उत्तर: लेखक पर ये प्रतिक्रियाएँ हुई :
(1) वह कैलेंडर की तारीखें दिखाकर अतिथि को जाने के लिए संकेत करने लगा।
(2) अतिथि के कपड़े लॉण्ड्री पर दिलवा दिए।
(3) आपस में बातचीत बंद कर दी।
(4) खाने में खिचड़ी बनानी शुरू कर दी।
परीक्षा उपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
(क) लघुत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. अतिथि के न जाने पर लेखक के मन में क्या विचार आ रहे थे?
उत्तर: लेखक के मन में सत्कार की ऊष्मा समाप्त हो गई। थी। वे डिनर से चले थे, खिचड़ी पर आ गए। अब भी अतिथि ने अपने बिस्तर को गोलाकार रूप प्रदान नहीं किया तो लेखक के परिवार को उपवास तक जाना होगा। उनके संबंध एक संक्रमण के दौर से गुजर रहे हैं। अतिथि के जाने का यह चरम क्षण है।
प्रश्न 2. लेखक क्या जानता है? ‘स्वीट होम’ के प्रसंग को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: तुम्हें यहाँ अच्छा लग रहा है न! लेखक यह जानता है। दूसरों के यहाँ अच्छा लगता है। अगर बस चलता तो सभी लोग दूसरों के यहाँ रहते, पर ऐसा नहीं हो सकता। अपने घर की महत्ता के गीत इसी कारण गाए गए हैं। होम को इसी कारण स्वीट होम कहा गया है कि लोग दूसरे के होम की स्वीटनेस को काटने न दौड़ें।
प्रश्न 3. लॉण्ड्री पर कपड़े देने की बात सुनकर लेखक की पत्नी पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर: लॉण्ड्री पर अतिथि के कपड़े देने की बात सुनकर
लेखक की पत्नी की आँखें एकाएक बड़ी हो गईं। आज से कुछ बरस पूर्व उनकी ऐसी आँखें देख उसने अपने अकेलेपन की यात्रा समाप्त कर बिस्तर खोल दिया था। पर अब जब वे ही आँखें बड़ी होती हैं तो लेखक का मन छोटा होने लगता है। वे इस आशंका और भय से बड़ी हुई थीं कि अतिथि अधिक दिनों तक ठहरेगा।
प्रश्न 4. तीसरे दिन अतिथि ने क्या कहा? इसका लेखक पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर: तीसरे दिन की सुबह अतिथि ने लेखक से कहा, “मैं धोबी को कपड़े देना चाहता हूँ।” लेखक के लिए यह आघात अप्रत्याशित था और इसकी चोट मार्मिक थी। अतिथि के सामीप्य की वेला एकाएक यों रबर की तरह खिंच जाएगी, इसका उसे अनुमान न था। पहली बार लेखक को लगा कि अतिथि सदैव देवता नहीं होता, वह मानव और थोडे अंशों में राक्षस भी हो सकता है।
प्रश्न 5. लेखक ने अतिथि की तुलना एस्ट्रॉनॉट्स से क्यों की है?
उत्तर: लेखक ने अतिथि की तुलना एस्ट्रॉनॉट्स से इसलिए की है क्योंकि एस्ट्रॉनॉट्स तो लाखों मील की यात्रा करके भी इतने समय चाँद पर नहीं रूके थे, जितना अतिथि छोटी-सी यात्रा करके उसके घर रुका हुआ है। अतिथि तो उस एस्ट्रॉनॉट्स से भी आगे निकल गया है।
प्रश्न 6. वर्तमान सामाजिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए स्पष्ट कीजिए कि आप कैसे अतिथि बनना पसंद करेंगे और क्यों?
उत्तर: वर्तमान सामाजिक स्थितियों को ध्यान में रखते हुए हम इस प्रकार के अतिथि बनना पसंद करेंगे जिससे किसी को कोई असुविधा न उठानी पड़े। हम एक-दो दिन के लिए ही अतिथि बनना चाहेंगे। वर्तमान समय में किसी के लिए भी अतिथि का बोझ उठाना आसान नहीं है। हम किसी पर अनचाहा बोझ नहीं बनना चाहेंगे।
प्रश्न 7. ‘तुम कब जाओगे, अतिथि’ पाठ का क्या उद्देश्य है?
उत्तर: इस पाठ का उद्देश्य उन व्यक्तियों पर कटाक्ष करना है। जो असमय किसी के यहाँ अतिथि बनकर चले जाते हैं और फिर वहाँ से जाने का नाम नहीं लेते। लेखक अतिथि को यह बताना चाहता है कि उसे मेजबान की परेशानी को भी ध्यान में रखना चाहिए।
प्रश्न 8. लेखक के मन में अतिथि को ‘गेट आउट’ कहने की बात क्यों आई?
उत्तर: लेखक के मन में अतिथि को ‘गेट आउट’ कहने की बात इसलिए आई क्योंकि अतिथि तीन-चार के दिन उपरांत भी जाने का नाम नहीं ले रहा था। वह मेजबान लिए के बोझ बन गया था। ऐसी मनःस्थिति में लेखक का मन अतिथि को गेट आउट कहने का कर रहा था।
प्रश्न 9. ‘अतिथि देवो भव’ उक्ति की व्याख्या करके आधुनिक युग में इसका आकलन कीजिए।
उत्तर: ‘अतिथि देवो भव’ का अर्थ है -अतिथि देवता होता है। यह उक्ति प्राचीन काल में तो ठीक प्रतीत होती होगी, पर आधुनिक युग में इसे पूर्णतः सच नहीं कहा जा सकता। वह सदैव अतिथि नहीं होता, कभी-कभी वह मानव तथा कभी राक्षस भी बन जाता है। आज महँगाई के युग में अतिथि को देवता मानना कठिन है।
प्रश्न 11. “मैं धोबी को कपड़े देना चाहता हूँ”– अतिथि के इस कथन का लेखक पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर: लेखक अतिथि की यह बात सुनकर सन्न रह गया। उसके लिए यह एक अप्रत्याशित आघात था । लेखक के लिए यह एक मार्मिक चोट थी। लेखक को पता चल गया कि यह अतिथि अभी जाने वाला नहीं है। इसे अभी कुछ दिनों तक झेलना पड़ेगा।
प्रश्न 12. अतिथि के स्वागत में लेखक का उत्साह क्षीण क्यों हो गया?
उत्तर: पहले दिन तो लेखक ने अतिथि के आने पर इसका शानदार स्वागत किया। उसने उसके खाने के लिए अच्छा स्वादिष्ट भोजन बनवाया। इस सारे उत्साह और लगन के मूल में एक ही आशा थी कि अतिथि दूसरे दिन इस शानदार मेहमाननवाजी की छाप अपने हृदय में लेकर चला जाएगा लेकिन उसकी यह आशा पूरी न हुई। लेखक रुकने का कोई न कोई बहाना बनाकर लेखक के घर में ठहरा रहा। धीरे-धीरे लेखक और उसकी पत्नी का उत्साह क्षीण होता चला गया। अब तो वह यह चाहने लगा कि किसी-न-किसी तरह यह अतिथि यहाँ से चला जाए।
प्रश्न 13. “अंदर ही अंदर कहीं मेरा बटुआ काँप गया।” पंक्ति का आशय पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: जब लेखक के घर एक अप्रत्याशित व्यक्ति अतिथि बनकर आया तब उसका हृदय किसी अज्ञात आशंका से धड़क उठा था। पर अंदर ही अंदर उसका बटुआ काँप गया। इसका आशय यह है कि इस अतिथि का आतिथ्य करने में लेखक का बटुआ हल्का होना तय था अर्थात् काफी खर्च होने वाला था। लेखक के साधन सीमित थे अतः खर्च की आशंका होना स्वाभाविक ही था।
प्रश्न 14. अतिथि के आने पर लेखक का हृदय अज्ञात आशंका से क्यों धड़क उठा?
उत्तर: जब लेखक ने अपने घर एक अतिथि को आते देखा तो उसका हृदय अज्ञात आशंका से धड़क उठा। उसे अतिथि सत्कार पर होने वाले खर्च को लेकर चिंता सवार हो गई थी। उसे आशंका हुई कि कहीं यह अतिथि ज्यादा दिन तक न टिक जाए।
प्रश्न 15. अच्छा अतिथि कौन होता है?
उत्तर: अच्छा अतिथि वह होता है जो अपने आने से पहले आने की सूचना देकर आता है। अच्छा अतिथि एक-दो दिन मेहमानी कराके विदा हो जाता है। वह अपने मेजबान पर अनावश्यक बोझ नहीं डालता। उसे मेजबान के घर में सहज-स्साभाविक रूप में ही रहना चाहिए, स्वयं को विशिष्ट नहीं समझना चाहिए।
प्रश्न 16. ‘अतिथि थोड़े अंशों में’ राक्षस भी हो सकता है।’ इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: अतिथि जब मेजबान के यहाँ एक-दो दिन ठहरता है और विशेष प्रकार की फरमाइशें नहीं करता है तब तक तो वह कुछ-कुछ देवता और कुछ-कुछ मानव के रूप में रहता है। पर जब उसका प्रवास रबर की तरह खिंचता चला जाता है और नई-नई फरमाइशें करने लगता है तब वह राक्षस प्रतीत होने लगता है।
प्रश्न 17. अतिथि कब तक देवता रहता है?
उत्तर: देवता दर्शन देकर लौट जाता है। इसी में उसका देवत्व सुरक्षित रहता है। अतिथि भी जब एक-दो दिन ठहरकर चला जाता है, तब तक वह देवता का रूप होता है। इसी रूप में अतिथि को देवता कहा गया है। एक देवता और मनुष्य ज्यादा देर तक साथ-साथ नहीं रह सकते।
(ख) निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. ‘लोग दूसरे के होम की स्वीटनेस को काटने न दौड़ें’- ‘तुम कब जाओगे अतिथि’ पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।
(निबंधात्मक प्रश्न)
उत्तर: ‘तुम कब जाओगे अतिथि शरद जोशी द्वारा रचित व्यंग्य लेख है। इसमें लंबे समय तक घर में आसन जमाकर बैठ जाने वाले अतिथियों पर कटाक्ष किया गया है। प्रायः घर को स्वीटहोम कहा जाता है क्योंकि यहाँ सभी अपने होते हैं तथा घर में स्वीटनेस का वातावरण बना रहता है। यहाँ औपचारिकता का बोझ नहीं होता। मनुष्य अपनी इच्छा के अनुसार उठ-बैठ, खा पी सकता है। पर जब कोई अनचाहा अतिथि उन पर बोझ बनकर आ टिकता है तो घरवालों को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। तब घर की सहज मिठास समाप्त हो जाती है और एक असहज स्थिति बन जाती है। लोगों को दूसरों के घर की स्वीटनेस को काटने के लिए नहीं दौड़ना चाहिए। ऐसा अतिथि राक्षस से कम नहीं होता। भगवान ऐसे अतिथि से बचाए।
प्रश्न 2. ‘यह चौथा दिन है, तुम्हारे सतत आतिथ्य का, चौथा भारी दिन।’ आशय स्पष्ट कीजिए।
(निबंधात्मक प्रश्न)
उत्तर: लेखक के घर तीन दिन पहले आया था। अभी वह जाने का नाम नहीं ले रहा। आज उसके टिकने का चौथा दिन भी हो गया। आर्थिक परेशानी के कारण लेखक को अभी तक इस अतिथि को झेलना बड़ा कठिन प्रतीत हो रहा था। चौथे दिन तो उसकी हिम्मत जवाब देने लगी थी। पिछले तीन दिनों से लेखक अतिथि का लगातार सत्कार करता चला आ रहा था, भले ही अनमने रूप से। अब चौथे दिन उसका बटुआ बुरी तरह हिल गया। अतः उसे मजबूरी में खिचड़ी खिलानी पड़ी थी। यह चौथा दिन काटना लेखक को बहुत कठिन जान पड़ रहा था। अब अतिथि सत्कार की ऊष्मा समाप्त होती चली जा रही थी। लेखक और अतिथि के संबंध संक्रमण के दौर से गुजर रहे थे। लेखक अब पूरे मन से चाह रहा था कि अब अतिथि उसके यहाँ से चला जाए।
प्रश्न 3. ‘अतिथि सदैव देवता नहीं होता, वह मानव और थोड़े अंशों में राक्षस भी हो सकता है।’ कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
(निबंधात्मक प्रश्न)
उत्तर: भारतीय संस्कृति में ‘अतिथि’ को देवता कहा गया है -‘अतिथि देवो भव’। वर्तमान समय में आर्थिक तंगी तथा स्थान के अभाव ने अतिथि के स्वरूप में परिवर्तन ला दिया है। यदि अतिथि थोड़े समय के लिए किसी के घर में टिकता है तो उसे देवता का रूप माना जा सकता है, पर ज्यादा दिनों तक टिकने वाले अतिथि को देवता मानना उचित नहीं कहा जा सकता। जो अतिथि सत्कार करता है, वह एक साधारण मनुष्य ही होता है। एक देवता और मनुष्य अधिक देर तक साथ नहीं रह सकते। देवता तो दर्शन देकर लौट जाता है, पर यदि अतिथि आकर टिक जाए तो वह देवता की जगह राक्षस प्रतीत होने लगता है। अतिथि पहले तो मनुष्य का रूप लेता है, फिर वह राक्षस का रूप ग्रहण कर लेता है। राक्षस के रूप में वह अपने आतिथेय को परेशानी में डाल देता है। अतिथि को दूसरे की सीमा को भी ध्यान में रखना चाहिए। उसे राक्षस का रूप धारण नहीं करना चाहिए।
प्रश्न 4. लेखक अतिथि के आने पर तो प्रसन्न होता है, पर बाद में वह उससे तंग आ जाता है। क्यों?
उत्तर:जिस दिन अतिथि लेखक के घर आया उस दिन उसने उसके आगमन पर प्रसन्नता प्रकट की थी। यद्यपि उस दिन भी किसी अज्ञात आशंका से उसका दिल धड़क उठा था, उसका बटुआ भी काँप गया था। इसके बावजूद उसने मुस्कुराहट के साथ अतिथि से गले मिला था। उसने अतिथि के सम्मान में उच्च मध्य वर्गीय डिनर का प्रबंध भी करा दिया था। उस समय लेखक (मेजबान) को आशा थी कि अतिथि दूसरे दिन लौट जाएगा। दिखावे के लिए उससे और रुकने का आग्रह किया जाएगा, पर वह एक अच्छे अतिथि की तरह चला जाएगा। दोपहर के भोजन को भी उसने लंच की गरिमा दे दी।
इसके बाद भी अतिथि जाने का नाम ही न ले रहा था। तीसरे दिन उसने धोबी को कपड़े देने की बात की। कपड़े लांड्री में धुलकर भी आ गए, पर अतिथि जाने का नाम ही नहीं ले रहा था। चौथे दिन लेखक को वह अनचाहा अतिथि बुरा लगने लगा। अब वह उससे तंग आ चुका था। वह उसके जाने की प्रतीक्षा करने लगता है।