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NCERT Class 9 Hindi Chapter 1 धूल
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धूल
Chapter: 1
स्पर्श भाग – 1 (गघ-भाग)
गद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
(1) शिशु भोलानाथ के संसर्ग से तो मैले जो करत गात ही नौबत आई, पर जो बचपन में धूल में खेला है, वह जवानी में अखाड़े की मिट्टी में सनने से कैसे बचित रह सकता है? यह साधारण धूल नहीं है, वरन् तेल और मठ्ठे से सिझाई हुई वह मिट्टी है, जिसे देवता पर चढ़ाया है। संसार में ऐसा सुख दुर्लभ है। पसीने से तर बदन पर मिट्टी ऐसे फिसलती है जैसे आदमी कुआँ खोदकर निकला हो। उसकी माँसपेशियाँ फूल उठती हैं, आराम से हरा होता है अखाड़े में निर्द्वद चारों खाने चित्त लेटकर अपने को विजयी लगाता है। मिट्टी उसके शरीर को बनाती है। क्योंकि शरीर भी तो मिट्टी का ही बना हुआ है। शरीर और मिट्टी को लेकर संसार की असारता पर बहुत कुछ कहा जा सकता है कि जितने सारतत्व जीवन के लिए अनिवार्य है, वे सब मिट्टी से ही मिलते है।
प्रश्न- (i) यहाँ किस धूल की चर्चा है?
(क) अखाड़े की
(ख) खेतों की
(ग) मैदान की
(घ) गली की
उत्तर: (क) अखाड़े की।
(ii) अखाड़े की मिट्टी कैसी होती है!
(क) तेल और पट्टे से साँझी हुई
(ख) पवित्र
(ग) दोनों (क) और (ख)
(घ) सामान्य
उत्तर: (ग) दोनों (क) और (ख)।
(iii) इस मिट्टी में चारों खाने चित्र होकर भी व्यक्ति को कैसा लगता है?
(क) स्वयं को विजयी समझता है
(ख) स्वयं को पहलवान समझता है
(ग) कुछ नहीं
(घ) सभी कुछ
उत्तर: (क) स्वयं को विजयी समझता है।
(iv) हमारा शरीर किससे बना हुआ है?
(क) मिट्टी से
(ख) भोजन से
(ग) रस से
(घ) सभी से
उत्तर: (क) मिट्टी से।
(v) संसार को कैसा बताया गया है?
(क) सारवान
(ख) असार
(ग) उपयोगी
(घ) आकर्षक
उत्तर: (ख) असार।
(2) शरीर और मिट्टी को लेकर संसार की असारता पर बहुत कुछ कहा जा सकता है परंतु यह भी ध्यान देने की बात है कि जितने सारतत्त्व जीवन के लिए अनिवार्य हैं, वे सब उस मिट्टी से ही मिलते हैं। जिन फूलों को हम अपनी प्रिय वस्तुओं का उपमान बनाते हैं, वे सब मिट्टी की ही उपज हैं। रूप, रस, गंध, स्पर्श- इन्हें कौन संभव करता है? माना कि मिट्टी और धूल में अंतर है, लेकिन उतना ही जितना शब्द और रस में देह और प्राण में, चाँद और चाँदनी में मिट्टी की आभा का नाम धूल है और मिट्टी के रंग-रूप की पहचान उसकी धूल से ही होती है।
प्रश्न- (i) यह गद्यांश किस पाठ से अवतरित है?
(क) धूल
(ख) मिट्टी
(ग) दुःख का अधिकार
(घ) धर्म की आड़
उत्तर: (क) धूल।
(ii) जीवन के अनिवार्य तत्त्व कहाँ से मिलते है?
(क) धूल से
(ख) मिट्टी से
(ग) पानी से
(घ) जल से
उत्तर: (ख) मिट्टी से।
(iii) मिट्टी और धूल में कितना अंतर है?
(क) जितना शब्द और रस में
(ख) जितना शरीर और प्राण में
(ग) जितना चाँद और चाँदनी में
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर: (घ) उपर्युक्त सभी।
(iv) मिट्टी के रंग-रूप की पहचान किससे होती है?
(क) धूल से
(ख) आभा से
(ग) पानी से
(घ) आकाश से
उत्तर: (क) धूल से।
(v) ‘स्पर्श’ शब्द कैसा है?
(क) तत्सम
(ख) तद्भव
(ग) देशज
(घ) विदेशी
उत्तर: (क) तत्सम।
(3) ‘नीच को धूरि समान’ वेद वाक्य नहीं है। सती उसे माथे से योद्धा उसे आँखों से लगाता है, पुलिसिस ने प्रवास से लौटने पर इथाका की पूति चूमी थी। युकैन के मुक्त होने पर एक लाल सैनिक ने उसी श्रद्धा से वहाँ की धूल का स्पर्श किया था। श्रद्धा, भक्ति, स्नेह इनकी चरम व्यजना के लिए धूल से बढ़कर और कौन साधन है? यहाँ तक कि घृणा, असूया आदि के लिए भी धूल चाटने, धूल झाड़ने आदि की क्रियाएँ प्रचलित है।
प्रश्न- (i) सती धूल को किस अंग से लगाती है?
(क) माथे से
(ख) आँखों से
(ग) सिर से
(घ) हाथों से
उत्तर: (क) माथे से।
(ii) योद्धा धूल को कहाँ लगाता है?
(क) माथे से
(ख) आँख से
(ग) सिर से
(घ) हाथों से
उत्तर: (ख) आँख से।
(iii) यूक्रेन के मुक्त होने वाले सैनिक ने श्रद्धा से क्या किया था?
(क) वहाँ की धूल का स्पर्श किया था
(ख) धूल को चूमा था
(ग) धूल माथे लगाई थी
(घ) धूल सिर पर चढ़ाई थी
उत्तर: (क) वहाँ की धूल का स्पर्श किया था।
(iv) धूल किसकी व्यंजना का साधन है?
(क) श्रद्धा
(ख) भक्ति
(ग) स्नेह
(घ) इन सभी का
उत्तर: (घ) इन सभी का।
(e) ‘धूरि’ शब्द कैसा है?
(क) तत्सम
(ख) तद्भव
(ग) देशज
(घ) विदेशी
उत्तर: (ग) देशज।
(4) गोधूलि पर कितने कवियों ने अपनी कलम तोड़ दी, लेकिन यह गोधूलि गाँव की अपनी सम्पत्ति है, जो शहरों के बाँटे नहीं पड़ी। एक प्रसिद्ध पुस्तक विक्रेता के निमंत्रण-पत्र में गोधूलि की वेला में आने का आग्रह किया गया था, लेकिन शहर में धूल-धक्कड़ के होते हुए भी गोधूलि कहाँ? यह कविता की विडंबना थी और गांवों में भी जिस धूलि को कवियों ने अमर किया है, वह हाथी-घोड़ों के पग संचालन से उत्पन्न होने वाली धूल नहीं है, वरन् गो-गोपालों के पदों की धूलि है।
प्रश्न- (1) गोधूलि बेला कौन-सी होती है?
(क) प्रातःकाल की
(ख) सायंकाल को
(ग) रात्रि काल की
(घ) दोपहर को
उत्तर: (ख) सायंकाल को।
(ii) किसने लेखक को गोधूलि वेला में आने का निमंत्रण भेजा था?
(क) एक पुस्तक-विक्रेता ने
(ख) एक कवि ने
(ग) एक शहरी व्यक्ति ने
(घ) किसी ने नहीं
उत्तर: (क) एक पुस्तक-विक्रेता ने।
(iii) धूलि को किसने अमर किया है?
(क) कवियों ने
(ख) पहलवानों ने
(ग) हाथी-घोड़ों ने
(घ) शहरी लोगों ने
उत्तर: (क) कवियों ने।
(iv) शहरों की धूलि कैसी होती है?
(क) धूल-धक्कड़ वाली
(ख) स्वच्छ
(ग) शांत
(घ) पता नहीं
उत्तर: (क) धूल-धक्कड़ वाली।
(v) यह गद्यांश किस पाठ से अवतरित है?
(क) धूल
(ख) धूलि
(ग) गोपाल
(घ) गोधूलि
उत्तर: (क) धूल।
(5) हीरे के प्रेमी तो शायद उसे साफ-सुथरा खराबा हुआ, आँखों से चकाचौंध पैदा करता हुआ देखना पसंद करेंगे। परंतु हीरे से भी कीमती जिस नयन-तारे का जिक्र इस पंक्ति में किया गया है, वह मूलि भरा ही अच्छा लगता है। जिसका बचपन गाँव के गलियारे की धूल में बीता हो, वह इस धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना नहीं कर सकता। फूल के ऊपर जो रेणु उसका श्रृंगार बनती है, वही मूल शिशु के मुंह पर उसकी सहज पार्थिवता को निखार देती है।
प्रश्न- (i) हीरे के प्रेमी उसे किस रूप में देखना पसन्द करते है?
(क) साफ-सुथरा
(ख) खरीदा हुआ
(ग) चकाचौंध पैदा करने वाला
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर: (घ) उपर्युक्त सभी।
(ii) ‘नयनतारा’ कौन है?
(क) छोटा शिशु
(ख) सुंदर आँखों वाला
(ग) धूलि भरा
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर: (क) छोटा शिशु।
(iii) किसके बिना शिशु की कल्पना नहीं की जा सकती?
(क) धूल के बिना
(ख) गलियारों के बिना
(ग) बचपन के बिना
(घ) पता नहीं
उत्तर: (क) धूल के बिना।
(iv) ‘पार्थिवता’ में किस प्रत्यय का प्रयोग है?
(क) पार्थ
(ख) थिव
(ग) ता
(घ) वता
उत्तर: (ग) ता।
(v) फूल के ऊपर रेणु क्या करती है?
(क) उसका शृंगार बनती है
(ख) निखारती है
(ग) सहजता लाती है
(घ) कुछ नहीं करती
उत्तर: (क) उसका शृंगार बनती है।
(6) हमारी देशभक्ति धूल को माथे से न लगाए, तो कम से कम उस पर पैर तो रखे। किसान के हाथ-पैर, मुँह पर छाई हुई यह धूल हमारी सभ्यता से क्या कहती है? हम काँच को प्यार करते हैं। धूल भरे हीरे में धूल ही दिखाई देती है। भीतर की कांति आँखों से ओझल रहती है, लेकिन ये हीरे अमर है और एक दिन अपनी अमरता का प्रमाण भी देंगे। अभी तो उन्होंने अटूट होने का प्रमाण दिया है- ‘हीरा वही धन चोट न टूटे’।
प्रश्न- (i) हमारी देशभक्ति के लिए क्या आवश्यक है?
(क) धूल को माथे से लगाना
(ख) धूल पर पाँव रखना
(ग) धूल का सम्मान करना
(घ) धूल को समझना
उत्तर: (ख) धूल पर पाँव रखना।
(ii) किसके हाथ-पैर और मुंह पर धूल छाई रहतील है?
(क) किसान के
(ख) श्रमिक के
(ग) अध्यापक के
(घ) डॉक्टर के
उत्तर: (क) किसान के।
(iii) हम क्या करते है?
(क) हम धूल को प्यार करते हैं
(ख) हम काँच को प्यार करते हैं
(ग) हम हीरे की कद्र करते हैं
(घ) हम धूल का तिरस्कार करते हैं
उत्तर: (ख) हम काँच को प्यार करते हैं।
(iv) अमर कौन है?
(क) हीरा
(ख) काँच
(ग) धूल
(घ) व्यक्ति
उत्तर: (क) हीरा।
(v) सच्चा हीरे की क्या पहचान है?
(क) जो हथौड़े की चोट से भी नहीं टूटता।
(ख) जिस पर धूल पड़ी होती है।
(ग) जिसमें चमक होती है।
(घ) जो अमर होता है।
उत्तर: (क) जो हथौड़े की चोट से भी नहीं टूटता।
(7) ग्राम भाषाएँ अपने सूक्ष्म बोध से धूल की जगह गर्द का प्रयोग कभी नहीं करतीं। मूल वह जिसे गोधूलि शब्द में हमने अमर कर दिया है। अमराइयों के पीछे छिपे सूर्य की किरणों में जो मूलि सोने को मिट्टी कर देती है, सूर्यास्त के उपरात लीक पर गाड़ी निकल जाने के बाद जो रुई के बादल की तरह या ऐरावत हाथी के नक्षत्र-पथ की भाँति जहाँ की वहाँ स्थिर रह जाती है। चाँदनी रात में मेले जाने वाली गाड़ियों के पीछे जो कवि कल्पना की भांति उड़ती चलती है, जो शिशु के मुँह पर फूल की पंखुरियों पर साकार सौंदर्य बनकर छा जाती है- धूल उसका नाम है।
प्रश्न- (i) ग्राम भाषाएँ क्या नहीं करती?
(क) धूल की जगह गर्द का प्रयोग
(ख) धूलि का प्रयोग
(ग) सूक्ष्म बोध
(घ) पता नहीं
उत्तर: (क) धूल की जगह गर्द का प्रयोग।
(ii) ‘धूल’ को किस शब्द में अमर कर दिया है?
(क) गोधूलि
(ख) धूलि
(ग) धूल-धक्कड़
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर: (क) गोधूलि।
(iii) सूर्य की किरणों में क्या होता है?
(क) धूलि सोने को मिट्टी कर देती है
(ख) रुई के बादल बन जाती है
(ग) हाथी के नक्षत्र पथ की भाँति हो जाती है
(घ) उपर्युक्त में कोई नहीं
उत्तर: (क) धूलि सोने को मिट्टी कर देती है।
(iv) धूल का शिशु मुख पर क्या प्रभाव पड़ता है?
(क) उसका सौंदर्य साकार कर देती है
(ख) फूल की भाँति बन जाती है
(ग) साकार रूप ले लेती है
(घ) कुछ नहीं
उत्तर: (क) उसका सौंदर्य साकार कर देती है।
(v) यह गद्यांश किस पाठ से अवतरित है?
(क) भूलि
(ख) धूल
(ग) गोधूलि
(घ) धूल ही धूल
उत्तर: (ख) धूल।
(8) जिसका बचपन गाँव के गलियारे की धूल में बीता हो, वह इस मूल के बिना किसी शिशु की कल्पना कर ही नहीं सकता। फूल के ऊपर जो रेणु उसका शृंगार बनती है, वही धूल शिशु के मुंह पर उसकी सहज पार्थिवता को निखार देती है। अभिजात वर्ग ने प्रसाधन-सामग्री में बड़े-बड़े आविष्कार किए लेकिन बालकृष्ण के मुँह पर छाई हुई वास्तविक गोधूलि की तुलना में वह सभी सामग्री क्या धूल नहीं हो गई?
प्रश्न- (i) गाँव के शिशु की कल्पना किसके बिना नहीं की जा सकती?
(क) धूल के
(ख) गरीबी के
(ग) गलियों के
(घ) मिट्टी के
उत्तर: (क) धूल के।
(ii) शिशु के मुँह पर धूल क्या करती है?
(क) श्रृंगार
(ख) पार्थिवता को निखार देती है
(ग) प्रसाधन सामग्री बन जाती है
(घ) कुछ नहीं
उत्तर: (ख) पार्थिवता को निखार देती है।
(iii) अभिजात वर्ग ने क्या किया है?
(क) धूल का तिरस्कार
(ख) तरह-तरह की प्रसाधन सामग्री बनाई है
(ग) इनका प्रयोग किया है
(घ) कुछ नहीं
उत्तर: (ख) तरह-तरह की प्रसाधन सामग्री बनाई है।
(iv) ‘वास्तविक’ शब्द में किस प्रत्यय का प्रयोग है?
(क) वा
(ख) वास्तव
(ग) इक
(घ) विक
उत्तर: (ग) इक।
(v) ‘गलियारा’ शब्द कैसा है?
(क) तत्सम
(ख) तद्भव
(ग) देशज
(घ) विदेशी
उत्तर: (ग) देशज।
(9) हिन्दी-कविता की सबसे सुंदर पंक्तियों में से एक यह है- ‘जिसके कारण धूलि भरे हारे कहलाए।’ हीरे के प्रेमी उसे साफ-सुथरा, खराबा हुआ, आँखों में चकाचौध पैदा करता हुआ देखना पसंद करेंगे। परंतु हीरे से भी अधिक जिस नयनतारे का जिक्र इस पंक्ति में किया गया है, वह पूलि भरा हो अच्छा लगता है। जिसका बचपन गाँव के गलियारे की धूल में बीता हो, वह इस धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना ही नहीं कर सकता। फूल के ऊपर जो रेणु उसका शृंगार बनती है, वहाँ धूल शिशु के मुंह पर उसकी सहज पार्थिवता को निखार देती है। अभिजात वर्ग ने प्रसाधन-समाग्री में बड़े-बड़े आविष्कार किए, लेकिन बालकृष्ण के मुख पर छाई हुई वास्तविक गोधूलि की तुलना में वह सभी सामग्री क्या धूल नहीं हो गई?
प्रश्न- (i) हीरे के प्रेमी हीरे को किस रूप में देखना पसंद करते हैं?
(क) साफ-सुधरे रूप में
(ख) खादा हुआ रूप में
(ग) चकाचौंध पैदा करने वाले रूप में
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर: (घ) उपर्युक्त सभी।
(ii) यह ‘नयन तारा’ कौन है?
(क) ग्रामीण शिशु
(ख) शहरी बालक
(ग) सामान्य व्यक्ति
(घ) कोई भी
उत्तर: (क) ग्रामीण शिशु।
(iii) इस शिशु का बचपन कहाँ बीता है?
(क) गाँव में
(ख) गलियारे में
(ग) धूल में
(घ) ये सभी
उत्तर: (घ) ये सभी।
(iv) फूल पर शृंगार कौन बनती है?
(क) उसके ऊपर की रेणु
(ख) पंखुड़ियां
(ग) कलियाँ
(घ) सभी अंग
उत्तर: (क) उसके ऊपर की रेणु।
(v) ‘चकाचौंध’ शब्द कैसा है?
(क) तत्सम
(ख) तद्भव
(ग) देशज
(घ) विदेशी
उत्तर: (ग) देशज।
(10) शरीर और मिट्टी को लेकर संसार की असारता पर बहुत कुछ कहा जा सकता है, परंतु यह भी ध्यान देने की बात है कि जितने सार तत्त्व जीवन के लिए अनिवार्य है, वे सब मिट्टी से ही मिलते हैं। जिन फूलों को हम अपनी प्रिय वस्तुओं का उपमान बनाते हैं, वे सब मिट्टी की ही उपज हैं। रूप, रस, गंध, स्पर्श-इन्हें कौन संभव करता है? जो बचपन में धूल से खेला है, वह जवानी में अखाड़े की मिट्टी से सनने से कैसे वंचित रह सकता है? रहता है तो उसका दुर्भाग्य है और क्या? यह साधारण धूल नहीं है, वरन् तेल और मठ्ठे से सिझाई हुई वह मिट्टी है, जिसे देवता पर चढ़ाया जाता है। संसार में ऐसा सुख दुर्लभ है। पसीने से तर बदन पर मिट्टी ऐसे फिसलती है, जैसे आदमी कुआँ खोदकर निकला हो। उसकी माँसपेशियाँ फूल उठती हैं, आराम से वह हरा होता है, अखाड़े में निर्द चारों खाने चिन लेटकर अपने को विश्वविजयो लगाता है। मिट्टी उसके शरीर को बनाती है, क्योंकि शरीर भी तो मिट्टी का ही बना हुआ है।
प्रश्न- (i) कौन व्यक्ति अखाड़े की मिट्टी में सनने से वंचित नहीं रह सकता?
(क) जो बचपन में धूल में खेला हो
(ख) जो जवानी में धूल में रहा हो
(ग) जो पहलवान हो
(घ) जिसे मिट्टी से प्यार हो
उत्तर: (क) जो बचपन में धूल में खेला हो।
(ii) अखाड़े की मिट्टी कैसी होती है?
(क) तेल और भट्ठे से सिझाई हुई
(ख) साधारण मिट्टी
(ग) धूल का एक रूप
(घ) पवित्र
उत्तर: (क) तेल और भट्ठे से सिझाई हुई।
(iii) पसीने से तर बदन पर मिट्टी कैसे फिसलती है?
(क) जैसे आदमी कुआँ खोदकर निकला हो
(ख) जैसे पहलवान कुश्ती लड़कर आया हो
(ग) जैसे खिलाड़ी खेलकर आया हो।
(घ) सामान्य रूप से
उत्तर: (क) जैसे आदमी कुआँ खोदकर निकला हो।
(iv) अखाड़े में पहलवान चित्त लेटकर क्या अनुभव करता है?
(क) स्वयं को विश्व विजयी
(ख) पराजित
(ग) लड़ाकू
(घ) सभी कुछ
उत्तर: (क) स्वयं को विश्व विजयी।
(v) पहलवान के शरीर को कौन बनाती है?
(क) मिट्टी
(ख) खुराक
(ग) पानी
(घ) धूल
उत्तर: (क) मिट्टी।
(11) हमारी सभ्यता इस धूल के संसर्ग से बचना चाहती है। वह आसमान में घर बनाना चाहती है, इसलिए शिशु भोलानाथ से कहती है कि धूल में मत खेलो। भोलानाथ के संसर्ग से उसके नकली मलमे सितारे धुंधले पड़ जाएंगे। जिसने लिखा था- “धन्य-धन्य ये हैं नर मैले जो करत गात कनिया लगाए पूरि ऐसे तरिकान की।” उसने भी मानो धूल भरे हीरों का महत्त्व कम करने में कुछ उठा न रखा था। ‘धन्य धन्य’ में ही उसने बड़प्पन को विज्ञापित किया, फिर ‘मैले’ शब्द से अपनी हीन भावना भी व्यंजित कर दी, अंत में ‘ऐसे लरिकान’ कहकर उसने भेद-बुद्धि का परिचय भी दे दिया। वह हीरों का प्रेमी है, धूल भरे हीरों का नहीं। ग्राम भाषाएँ अपने सूक्ष्म बोध से धूल की जगह गर्द का प्रयोग कभी नहीं करतीं। धूल वह जिसे गोधूलि शब्द में हमने अमर कर दिया है। अमराइयों के पीछे छिपे सूर्य की किरणों में जो धूलि सोने को मिट्टी कर देती है, सूर्यास्त के उपरांत लीक पर गाड़ी निकल जाने के बाद जो रुई के बादल की तरह या ऐरावत हाथी के नक्षत्र पथ की भाँति जहाँ की तहाँ स्थिर रह जाती है। चांदनी रात में मेले जाने वाली गाड़ियों के पीछे जो कवि-कल्पना की भाँति उड़ती चलती है, जो शिशु के मुँह पर फूल की पंखुरियों पर साकार सौंदर्य बनकर छा जाती है धूल उसका नाम है।
प्रश्न- (i) हमारी वर्तमान सभ्यता क्या चाहती है?
(क) धूल के संसर्ग से बचना
(ख) आसमान में घर बनाना
(ग) क-ख दोनों
(घ) कुछ नहीं
उत्तर: (ग) क-ख दोनों।
(ii) शिशु को धूल में खेलने से क्यों रोका जाता है?
(क) धूल से सलमे सितारों की चमक फीकी पड़ जाएगी
(ख) उसका मुख कुम्हला जाएगा
(ग) वह बीमार पड़ जाएगा
(घ) वह गंदा हो जाएगा
उत्तर: (क) धूल से सलमे सितारों की चमक फीकी पड़ जाएगी।
(iii) ‘धन्य-धन्य’ शब्द में किसको विज्ञापित किया?
(क) बड़प्पन को
(ख) मन के भाव को
(ग) अहं को
(घ) दिखावे की प्रवृत्ति को
उत्तर: (क) बड़प्पन को।
(iv) ‘व्यंजित’ शब्द में किस प्रत्यय का प्रयोग है?
(क) जित
(ख) इत
(ग) त
(घ) व्यंजना
उत्तर: (ख) इत।
(v) सामान्य व्यक्ति किसका प्रेमी होती है?
(क) धूल भरे हीरे का
(ख) हीरों का
(ग) धूल का
(घ) किसी का नहीं
उत्तर: (ख) हीरों का।
(12) शहर में धूल-धक्कड़ के होते हुए भी गोधूलि कहाँ ? यह कविता को विडंबना थी और गाँवों में भी जिस धुली को कवियों ने अमर किया है, वह हाथी-घोड़ों के पग-संचालन से उत्पन्न होने वाली धूल नहीं है, वरन् गो- गोपालों के पदों की धूलि है। ‘नीच को धूरि समान’ वेद वाक्य नहीं है। सती उसे माथे से योद्धा उसे आँखों से लगाता है, युलिसिस ने प्रवास मे लौटने पर इवाका की धुली चूमी थी। यूक्रैन के मुक्त होने पर एक लाल सैनिक ने उसी श्रद्धा से वहाँ भी धूल का स्पर्श किया था। श्रद्धा, भक्ति, स्नेह इनको चरम व्यंजना के लिए धूल से बढ़कर और कौन साधन है?
प्रश्न- (i) शहर में क्या नहीं होती?
(क) गोधूलि
(ख) भूल
(ग) मिट्टी
(घ) धूलि
उत्तर: (क) गोधूलि।
(ii) कवियों ने किस धूल को अमर किया है?
(क) हाथी-घोड़ों के पग – संचालन की भूल को
(ख) गोपालों के पैरों की धूल को
(ग) ग्रामीणों की धूल
(घ) गाँव की धूल
उत्तर: (ख) गोपालों के पैरों की धूल को।
(iii) सती धूल को कहाँ लगाती है?
(क) माथे पर
(ख) आँखों पर
(ग) पैरों में
(घ) शरीर में
उत्तर: (क) माथे पर।
(iv) योद्धा धूल को कहाँ लगाता है?
(क) माथे से
(ख) आँखों से
(ग) पैर से
(घ) शरीर से
उत्तर: (ख) आँखों से।
(v) धूल की व्यंजना किससे होती है?
(क) श्रद्धा
(ख) भक्ति
(ग) स्नेह
(घ) इन सभी से
उत्तर: (घ) इन सभी से।
(13) धुल, धुलि, धुली, धूरि आदि की व्यजनाएँ अलग-अलग हैं। धूल जीवन का यथार्थवादी गद्य, धूलि उसकी कविता है। धूली छायावादी दर्शन है, जिसकी वास्तविकता सदिग्ध है और धूरि लोक सस्कृति का नवीन जागरण है। इन सबका रंग एक ही है, रूप में भिन्नता जो भी हो। मिट्टी काली, पीली, लाल तरह-तरह की होती है, लेकिन धूल कहते ही शरत् के घुले-उजले बादलों का स्मरण हो आता है। धूल के लिए श्वेत नाम का विशेषण अनावश्यक है, वह उसका सहज रंग है।
प्रश्न (i) धूल क्या है?
(क) जीवन का यथार्थवादी गद्य
(ख) जीवन का काव्य
(ग) एक कविता
(घ) कुछ विशेष नहीं
उत्तर: (क) जीवन का यथार्थवादी गद्य।
(ii) ‘धूलि’ क्या है?
(क) प्रगतिवादी दर्शन
(ख) छायावादी दर्शन
(ग) साम्यवादी दर्शन
(घ) यथार्थवादी दर्शन
उत्तर: (ख) छायावादी दर्शन।
(iii) ‘धूरि’ शब्द का प्रयोग कहाँ होता है?
(क) लोक-संस्कृति में
(ख) आधुनिक संस्कृति में
(ग) सामान्य रूप में
(घ) विविध रूप में
उत्तर: (क) लोक-संस्कृति में।
(iv) मिट्टी किस रंग की होती है?
(क) काली
(ख) पीली
(ग) लाल
(घ) इन सभी रंगों की
उत्तर: (घ) इन सभी रंगों की।
(v) इस पाठ के रचयिता कौन हैं?
(क) हरविलास शर्मा
(ख) हरिशंकर शर्मा
(ग) रामविलास शर्मा
(घ) रामधारी सिंह
उत्तर: (ग) रामविलास शर्मा।
प्रश्न-अभ्यास
(पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर)
मौखिक
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-
प्रश्न 1. हीरे के प्रेमी उसे किस रूप में पसंद करते है?
उत्तर: हीरे के प्रेमी उसे साफ-सुथरे और खरादे हुए रूप में पसंद करते हैं।
प्रश्न 2. लेखक ने संसार में किस प्रकार के सुख को दुर्लभ माना है?
उत्तर: अखाड़े की मिट्टी, जिसे तेल और मट्ठे से सिझाया जाता है, में लेटने, शरीर पर मलने के सुख को लेखक ने दुर्लभ माना है। इस मिट्टी को देवता के सिर पर चढ़ाया जाता है।
प्रश्न 3. मिट्टी की आभा क्या है? उसकी पहचान किससे होती है?
उत्तर: मिट्टी को आभा उसकी धूल है। मिट्टी के रंग-रूप की पहचान उसकी धूल से ही होती है।
लिखित
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों मे) लिखिए-
प्रश्न 1. धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना क्यों नहीं की जा सकती?
उत्तर: धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना इसलिए नहीं की जा सकती, क्योंकि यह धूल ही है, जो शिशु के मुँह पर पड़कर उसकी सहज पार्थिवता (मिट्टी से बने स्वरूप) को निखारती है। उच्च संपन्न वर्ग ने भले ही अनेक कीमती प्रसाधन सामग्रियों का आविष्कार शिशु को एक नए सलोने रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया हो; पर शिशु के मुख पर छाई वास्तविक गोधूलि की तुलना में वह प्रसाधन सामग्री कोई मायने नहीं रखती।
प्रश्न 2. हमारी सभ्यता धूल से क्यों बचना चाहती है?
उत्तर: हमारी सभ्यता धूल से इसलिए बचना चाहती है, क्योंकि वह आसमान में अपना घर बनाना चाहती है अर्थात् वह काल्पनिक दुनिया में विचरण करती है। नई-नई विक यह सभ्यता धूल के महत्त्व को समझती ही नहीं है। इ सभ्यता के अनुपायी अपने बच्चों को धूल में नहीं खेलने देना चाहते। धूल के प्रति उनके मन में हीन भावना है।
प्रश्न 3. अखाड़े की मिट्टी की क्या विशेषता होती है?
उत्तर: अखाड़े की मिट्टी को बहुत पवित्र माना जाता है। वह कोई साधारण मिट्टी नहीं होती । उसे तेल और मट्टे से सिझाया जाता है। इस मिट्टी को देवता पर चढ़ाया जाता है। संसार में इस मिट्टी से बढ़कर दूसरा सुख दुर्लभ है। पहलवान अखाड़े में निश्चित चारों खाने चित सेटकर भी स्वयं को विश्वविजयी समझता है।
प्रश्न 4. श्रद्धा, भक्ति, स्नेह की व्यंजना के लिए धूल सर्वोत्तम साधन किस प्रकार है? (निबंधात्मक प्रश्न)।
उत्तर: 1. धूल का स्पर्श करके हम उस धरती की मिट्टी के प्रति श्रद्धा प्रकट करते हैं।
2. धूल को मस्तक पर लगाकर हम देश के प्रति भक्ति भावना का परिचय देते हैं।
3. धूल में सने शिशु को चूमकर हम अपने स्नेह को प्रकट करते हैं।
इस प्रकार धूल श्रद्धा, भक्ति, स्नेह की व्यंजना करने का सर्वोत्तम साधन है।
प्रश्न 5. इस पाठ में लेखक ने नगरीय सभ्यता पर क्या व्यग्य किया है?
उत्तर: इस पाठ में नगरीय सभ्याता पर ये व्यग्य किए गए हैं:
1. नगरीय सभ्यता में पले-बड़े लोग धूल से दूर रहना चाहते है, ताकि उनका शरीर मैला न हो जाए ।
2. इस सभ्यता के लोगों को काँच के हीरे प्यारे लगते हैं।
3. वे बनावटी जिंदगी जीते हैं।
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-
प्रश्न 1. लेखक ‘बालकृष्ण’ के मुँह पर छाई गोधूलि को श्रेष्ठ क्यों मानता है?
उत्तर: लेखक बाल कृष्ण के मुँह पर छाई गोधूलि को इसलिए श्रेष्ठ मानता है क्योंकि यह उनके मुख के सौंदर्य को कई गुना बढ़ा देती है और बनावटी प्रसाधन-सामग्री की निरर्थकता प्रकट कर देती है। फूल के ऊपर जो रेणु उसकी शोभा बनती है, वही धूल शिशु के मुँह पर उसकी सहज पार्थिवता को निखार देती है। बनावटी प्रसाधन उसे वह सौंदर्य प्रदान नहीं कर सकते, जो धूल करती है।
प्रश्न 2. लेखक ने धूल और मिट्टी में क्या अंतर बताया है?
उत्तर: लेखक ने धूल और मिट्टी में बहुत कम अंतर बताया है। वह कहता है कि मिट्टी की आभा का नाम धूल है और मिट्टी के रंग-रूप की पहचान उसकी धूल से ही होती है।
प्रश्न 3. ग्रामीण परिवेश में प्रकृति धूल के कौन-कौन से सुंदर चित्र प्रस्तुत करती है?
उत्तर: ग्रामीण परिवेश में प्रकृति धूल के निम्नलिखित चित्र प्रस्तुत करती है-
1. ग्रामीण परिवेश में बच्चे धूल में सने दिखाई देते हैं।
2. अखाड़ों में भी धूल का प्रभाव दिखाई देता है। अखाड़े की मिट्टी तेल और मट्टे से सिझाई होती है।
3. गाँव में सायंकाल पशुओं के खुरों से धूल उड़ती दिखाई देती है।
प्रश्न 4. ‘हीरा वही घन चोट न टूटे’ का संदर्भ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: इस पाठ में बताया गया है कि असली हीरा वही है, जो हथौड़े की चोट से टूटे नहीं। इससे उसकी अटूटता का प्रमाण मिलता है। हाँ, काँच चोट से अवश्य टूट जाता है। वह उलटकर हम पर वार भी करता है। हीरे अमर हैं और अमरता का प्रमाण भी देते हैं।
प्रश्न 5. धूल, धूलि, धूली, धूरि और गोधूलि की व्यंजनाओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: धूल, धूलि, धूरि और गोधूलि की व्यंजनाएँ अलग-अलग हैं।
– ‘धूल’ जीवन का यथार्थवादी गद्य है।
– ’धूलि’ उसकी कविता है।
– ‘भूलो’ छायावादी दर्शन है। इसकी वास्तविकता छायावादी कविता की तरह संदिग्ध है।
– ‘धूरि’ लोक-संस्कृति का नवीन संस्करण है।
– ‘गोधूलि’ गायों एवं ग्वालों के पद-संचालन से उड़ने वाली धूलि है।
इन सबका रंग एक ही है, रूप में भिन्नता अवश्य है।
प्रश्न 6. ‘धूल’ पाठ का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
(निबंधात्मक प्रश्न)
उत्तर: ‘भूल’ शीर्षक पाठ में लेखक धूल का महत्त्व प्रतिपादित करना चाहता है। धूल जन संस्कृति की प्रतीक है। इस पाठ में लेखक ने आभिजात्य संस्कृति की आलोचना की है तथा ग्रामीण संस्कृति व ग्रामीण जीवन का महत्त्व समझाया है। वह पाठक को लोक-जीवन से जोड़ना चाहता है।
‘धूलि भरे हीरे’ में लोगों का ध्यान धूल की तरफ कम और हीरे की तरफ अधिक रहता है। हमारी शहरी सभ्यता में धूल से बचने का हरसंभव प्रयास किया जाता है। वे यह भूल जाते हैं कि जीवन के लिए जितने सार तत्त्व अनिवार्य हैं. वे सभी मिट्टी से ही मिलते हैं। हमारा यह शरीर भी मिट्टी से बना है। धूल इसी मिट्टी की आभा है। मिट्टी के रंग-रूप की पहचान इसकी धूल से होती है अतः हमें इस भूल से बचने का प्रयास नहीं करना चाहिए। धूल से पृथक् रहकर हम ग्रामीण संस्कृति का अपमान करते हैं। श्रद्धा, भक्ति, स्नेह आदि भावों की व्यंजना के लिए धूल से बढ़कर अन्य कोई साधन नहीं है।
प्रश्न 7. कविता को विडंबना मानते हुए लेखक ने क्या कहा है?
उत्तर: कविता को विडंबना मानते हुए भी लेखक ने यह कहा है कि जिस धूलि को कवियों ने अपनी कविता में अमर बना दिया है, वह हाथी-घोड़ों के पग-संचालन से उत्पन्न होने वाली धूल नहीं है, बल्कि गो-गोपालों के पदों की धूलि है। लोगों को इस धूलि के वास्तविक स्वरूप को समझने का प्रयास करना चाहिए। शहरों में यह धूलि नहीं है।
(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए:
1. फूल के ऊपर जो रेणु उसका श्रृंगार बनती है, वही धूल शिशु के मुँह पर उसकी सहज पार्थिकता को निखार देती है।
उत्तर: इस कथन का आशय यह है कि फूल के ऊपर जो धूल की हल्की-सी परत होती है, वह उस फूल की सजावट का कारण बनती है। यही धूल शिशु के मुँह पर भी सहज सौंदर्य का उभार देती है। भाव यह है कि धूल दोनों स्थलों पर सौंदर्य वृद्धि का कारक बनती है, अतः उसे व्यर्थ का नहीं मानना चाहिए।
2. ‘धन्य-धन्य वे हैं नर मैले जो करत गात कनिया लगाय धूरि ऐसे लरिकान को’ लेखक इन पंक्तियों द्वारा क्या कहना चाहता है?
उत्तर: इन पंक्तियों के द्वारा लेखक यह कहना चाहता है। कि वे लोग धन्य हैं जो अपने शरीर से धूल को स्पर्श करने देते हैं, चाहे यह धूल उन बच्चों के माध्यम से उन्हें स्पर्श करती है जिन्हें वे गोद में उठाए रहते हैं। ये बच्चे धूल में सने होते हैं। इस धूल के स्पर्श से वे बड़े लोग भी धन्य हो जाते हैं।
3. मिट्टी और धूल में अंतर है, लेकिन उतना ही जितना शब्द और रस में, देह और प्राण में, चाँद और चाँदनी में।
उत्तर: इस कथन का आशय यह है कि मिट्टी और धूल में अंतर तो अवश्य है, पर यह अंतर बहुत अधिक नहीं है। जिस प्रकार शब्द और रस तथा शरीर और प्राण एवं चाँद और चाँदनी पृथक्-पृथक् सत्ता होते हुए भी मूल रूप से एक ही हैं। दोनों का आपस में घनिष्ठ संबंध है। मिट्टी की आभा का नाम धूल है और मिट्टी के रंग-रूप की पहचान उसकी धूल से ही होती है।
4. हमारी देशभक्ति धूल को माथे से न लगाए तो कम-से-कम उस पर पैर तो रखे।
उत्तर: हमारी देशभक्ति की पहचान देश की धूल के साथ संबंध स्थापित करने से है। हमारे देश की धूल को माथे से लगाना चाहिए। यदि हम इतना भी न कर सकें तो कम-से-कम इस धूल पर पैर तो अवश्य रखना चाहिए अर्थात् इस धूल का स्पर्श पैर से तो अवश्य करना चाहिए, उन्हें वास्तविकता को जानना-समझना चाहिए।
5. वे उलटकर चोट भी करेंगे और तब काँच और हीरे का भेद जानना बाकी न रहेगा।
उत्तर: इस कथन का आशय यह है कि काँच पर हथौड़ा मारने से वह टूटकर हमारे ऊपरी ही चोट करता है अर्थात् काँच के टुकड़े हमें ही चोट पहुँचाते हैं। तब हमें पता चलता है कि हीरा तो अटूट है। तभी हम काँच और हीरे का अंतर जान पाते हैं। काँच के टुकड़ों के चोट करते ही फिर हीरे और काँच का भेद स्वयं समझ में आ जाएगा।
इसमें एक अन्य अर्थ यह भी निहित है कि गाँव के किसान-मजदूर अभी भले ही चुप हों, पर जब उन पर वार होगा तो वे वार करने वाले (शोषक वर्ग) पर ही चोट कर देंगे।
भाषा-अध्ययन
1. निम्नलिखित शब्दों के उपसर्ग छाँटिए-
उदाहरण : विज्ञापित – वि (उपसर्ग) ज्ञापित
संसर्ग, उपमान, संस्कृति, दुर्लभ, निर्द्वद्व, प्रवास, दुर्भाग्य, अभिजात, संचालन।
उत्तर:
संसर्ग – सम्
उपमान – उप
संस्कृति – सम्
दुर्लभ – दुर्
निर्द्वद्व – निर्
प्रवास – प्र
दुर्भाग्य – दुर्
अभिजात – अभि
अभिजात – अभि
2. लेखक ने इस पाठ में धूल चूमना, धूल माथे पर लगाना, धूल होना जैसे प्रयोग किए हैं। धूल से संबंधित अन्य पाँच प्रयोग और बताइए तथा उन्हें वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर:
1. धूल चटाना: हमारी सेना ने शत्रु सेना को धूल चटा दी।
2. धूल धूसरित होना: मैदान में जाकर बच्चा धूल धूसरित हो जाता है।
3. धूल में मिलाना: मुझसे मत टकराना, मैं तुम्हें धूल में मिला दूँगा।
4. धूल फाँकना: इस स्थान को ढूँढ़ने में हमें पुरा दिन धूल फाँकनी पड़ी।
5. धूल उड़ाना: तुम्हारे कारण उत्सव की धूल उड़ गई।
योग्यता-विस्तार
शिवमंगल सिंह सुमन की कविता, ‘मिट्टी की महिमा’, नरेश मेहता की कविता ‘मृत्तिका’ तथा सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की ‘धूल’ शीर्षक से लिखी कविताओं को पुस्तकालय से ढूँढ़कर पढ़िए।
उत्तर:
‘मृत्तिका’ कविता
तब मैं
कुम्भ और कलश बनकर
जल लाती तुम्हारी अन्तरंग प्रिया हो जाती हूँ।
जब तुम मुझे मेले में मेरे खिलौने रूप पर
आकर्षित होकर मचलने लगते हो
तब मैं-
तुम्हारे शिशु-हाथों में पहुँच प्रजारूपा हो जाती हूँ।
पर जब भी तुम
अपने पुरुषार्थ-पराजित स्वत्व से मुझे पुकारते हो
तब मैं-
अपने ग्राम्य-देवत्व के साथ चिन्मयी शक्ति हो जाती हूँ।
(प्रतिमा बन तुम्हारी आराध्या हो जाती हूँ।)
विश्वास करो।
यह सबसे बड़ा देवत्व है कि-
तुम पुरुषार्थ करते मनुष्य हो
और मैं स्वरूप पाती मृत्तिका।
परियोजना
इस पाठ में लेखक ने शरीर और मिट्टी को लेकर संसार की असारता का जिक्र किया है। इस असारता का वर्णन अनेक भक्त कवियों ने अपने काव्य में किया है। ऐसी कुछ रचनाओं का संकलन कर कक्षा में भित्ति पत्रिका पर लगाइए।
उत्तर: छात्र-छात्री स्वयं करें।
परीक्षा उपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
प्रश्न 1. ‘अभी तो उन्होंने अटूट होने का ही प्रमाण दिया है’ – इस कथन में ‘उन्होंने’ किसके लिए आया है और अटूट होने का प्रमाण कैसे दिया है?
उत्तर: इस कथन में ‘उन्होंने’ शब्द का प्रयोग किसान- मजदूरों (शोषित वर्ग) के लिए किया गया है। उन्होंने अपनी एकता का प्रदर्शन करके अटूट होने का प्रमाण दिया है। अभी वे किसी की शक्ति (धन एवं सत्ता की ताकत) के आगे टूटकर झुके नहीं हैं। उन्होंने अपनी दृढ़ता का परिचय दिया है।
प्रश्न 2. अपने शब्दों में बताइए कि किसान के हाथ-मुँह पर छाई धूल हमारी सभ्यता से क्या कहती है?
उत्तर: किसान के हाथ-मुँह पर छाई धूल हमारी सभ्यता से यह कहती है कि देश की मिट्टी से प्यार करो। कम-से-कम इस पर पैर तो रखो। काँच के हीरे को प्यार करने के स्थान पर इस मिट्टी में पलने-बढ़ने वाले असली हीरों (धूल भरे बच्चों) को प्यार करना सीखो।
प्रश्न 3. निमंत्रण-पत्र में गोधूलि वेला में आने के आग्रह को लेखक ने कविता की विडंबना क्यों कहा है?
उत्तर: कविता में ‘गोधूलि’ का उल्लेख बड़े गर्व के साथ किया जाता है, पर उसके प्रयोग करने वाले यह भूल जाते हैं। कि इसका प्रयोग कहाँ किया जाना चाहिए और कहाँ नहीं। इसीलिए यह शब्द कविता की विडंबना (मज़ाक) बन गया है।
प्रश्न 4. गोधूलि गाँव की ही संपत्ति क्यों है?
उत्तर: गौएँ गाँवों में ही होती हैं, वहीं उनके पैरों की धूलि उड़ती है, अतः यह वहीं (गाँवों) की संपत्ति है। शहरों में तो धूल-धक्कड़ भले ही हो, गोधूलि नहीं होती।
प्रश्न 5. इस पाठ के आधार पर लेखक की भाषा-शैली की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
(निबंधात्मक प्रश्न)
उत्तर: रामविलास शर्मा चिंतक हैं, अतः निबंधों में चिंतन के अनुरूप विचारात्मक शैली का अनुसरण किया गया है। उनके निबंधों में विचार और भाषा के स्तर पर एक रचनाकार की जीवंतता और सहृदयता मिलती है। स्पष्ट कथन, विचार की गंभीरता और भाषा की सहजता उनकी निबंध-शैली की विशेषताएँ हैं।
इस निबंध में लेखक ने प्रतीकात्मकता और लाक्षणिकता का सहारा लिया है। ‘धूल’ जन संस्कृति की प्रतीक है। आभिजात्य वर्ग की मानसिकता पर करारे व्यंग्य किए गए हैं कविता की पंक्ति का सुंदर एवं सटीक प्रयोग किया गया है :
‘जिसके कारण धूलि भरे हीरे कहलाए’।
लेखक का शब्द भंडार अत्यंत व्यापक है। उसने सभी प्रकार के शब्दों का प्रयोग किया है। उदाहरणार्थ :
तत्सम शब्द : संसर्ग, व्यंजित, विडंबना, सूर्यास्त, पग-संचालन आदि।
देशज शब्द : बाटे पड़ना, मैले, सनने, सिझाना आदि । ग्रामीण उक्तियों का बड़ा ही सुंदर प्रयोग किया गया है-
‘धन्य धन्य वे हैं नर मैले करत गात,
कनिया लगाय धूरि ऐसे लरिकान की।’
प्रश्न 6. ‘धन्य-धन्य वे हैं नर मैले जो करत गात कनिया लगाय धूरि ऐसे लरिकान की’-लेखक की दृष्टि में इन पंक्तियों से धूल-भरे हीरों का महत्त्व कम क्यों हो जाता है?
(निबंधात्मक प्रश्न)
उत्तर: ऐसा कहने वाला व्यक्ति हीरों का प्रेमी होता है, धूलि भरे हीरों का नहीं। ऐसे व्यक्ति बड़े होते हैं, क्योंकि उनके लिए ‘धन्य-धन्य’ शब्द का प्रयोग हुआ।
‘धूलि भरे हीरे’ तो वे शिशु हैं जो धूल से सने हुए हैं। ऐसे शिशुओं को गोद में उठाने से इन तथाकथित बड़े लोगों का शरीर मैला हो जाता है। ‘मैले’ शब्द से हीन भावना व्यंजित होती है। ‘ऐसे लरिकान’ से भेद-बुद्धि का परिचय मिलता है। ऐसे लड़के तो धूल भरे हीरे हैं, पर उन्हें तो असली काँच के हीरे चाहिएँ, अतः हंस पंक्ति से धूल भरे हीरों का महत्त्व कम हो जाता है।
प्रश्न 7. लेखक ने धूल की महिमा का बखान करने के लिए कौन-कौन से रूपक बाँधे हैं?
उत्तर: लेखक ने धूल की महिमा का बखान करने के लिए निम्नलिखित रूपक बाँधे हैं।
1. अमराइयों के पीछे छिपे हुए सूर्य की किरणों में जो धूलि सोने को मिट्टी कर देती है।
2. सूर्यास्त के उपरांत लीक पर गाड़ी के निकल जाने के बाद जो रुई के बादल की तरह या ऐरावत हाथी के नक्षत्र पथ की भाँति जहाँ-तहाँ स्थिर रह जाती है।
3. शिशु के मुँह पर, फूल की पंखुड़ियों पर साकार सौंदर्य बनकर छाती है।
प्रश्न 8. जीवन के सार तत्त्वों का मिट्टी से क्या संबंध है?
उत्तर: जीवन के लिए जितने सार-तत्त्व अनिवार्य हैं, वे सभी मिट्टी से ही मिलते हैं। यह शरीर ही मिट्टी का बना हुआ है। अतः इन सार-तत्त्वों का मिट्टी से अभिन्न और गहरा संबंध है।
प्रश्न 9. आशय स्पष्ट कीजिए :
(क) हमारी देशभक्ति धूल को माथे से न लगाए, तो कम से कम उस पर पैर तो रखे।
उत्तर: इस कथन से आभिजात्य वर्ग पर व्यंग्य किया गया है। यदि वे सामान्य जन की देशभक्ति की प्रतीक धूल को माथे से लगाकर सम्मान देना नहीं चाहते तो भी उन्हें इतना तो अवश्य करना ही चाहिए कि धरती पर अपने पैर टिकाएँ। केवल कल्पना लोक में विचरण करने से काम चलने वाला नहीं, उन्हें जमीन की वास्तविकता को समझना चाहिए।
(ख) वे उलटकर चोट भी करेंगे और तब काँच और हीरे का भेद जानना बाकी न रहेगा।
उत्तर: इस कथन का आशय यह है कि किसान-मजदूर (शोषित वर्ग) अभी तो चुप है और पूँजीपतियों का अन्याय सह रहा है, पर वह समय आने ही वाला है जब वे इसका उत्तर देंगे। वे शोषकों पर पलटकर वार भी करेंगे। तभी यह स्पष्ट हो जाएगा कि काँच (चमकदार पदार्थ) और वास्तविक हीरे में क्या अंतर है। रहस्य से परदा उठ जाएगा।
प्रश्न 10. अपने शब्दों में बताइए कि किसान के हाथ-मुँह पर छाई धूल हमारी सभ्यता से क्या कहती है?
उत्तर: किसान के हाथ-मुँह पर छाई धूल हमारी सभ्यता से यह कहती है कि देश की मिट्टी से प्यार करो। कम से कम इस पर पैर तो रखो। काँच के हीरे को प्यार करने के स्थान पर इस मिट्टी में पलने-बढ़ने वाले असली हीरों (धूल भरे बच्चों) को प्यार करना सीखो।
प्रश्न 11. इस पाठ में लेखक ने नगरीय सभ्यता पर क्या-क्या व्यंग्य किए हैं?
उत्तर: इस पाठ में नगरीय सभ्यता पर व्यंग्य किए गए हैं:
1. नगरीय सभ्यता में पले-बढ़े लोग धूल से दूर रहना चाहते हैं ताकि उनका शरीर मैला न हो जाए।
2. इस सभ्यता के लोगों को काँच के हीरे प्यारे लगते हैं।
3. वे बनावटी जिंदगी जीते हैं।
प्रश्न 12. शहर में धूल-धक्कड़ के होते हुए भी गोधूलि कहाँ? -तात्पर्य समझाइए।
उत्तर: इसका तात्पर्य यह है कि शहर के वातावरण में धूल-धक्कड़ तो होता है, पर वहाँ गोधूलि होने का प्रश्न ही नहीं उठता। ‘गोधूलि’ तो गायों और ग्वालों के पैरों से उड़ने वाली धूल होती है। शहरों में न गाएँ मिलती हैं न ग्वाले, फिर उनके चरणों से धूल उड़ने की स्थिति ही नहीं आती।
प्रश्न 13. अखाड़े की मिट्टी से सनी हुई देह से शहरियों को उबकाई क्यों आने लगती है?
उत्तर: अखाड़े की मिट्टी में तेल व मट्ठा मिला होता है। इससे वह चिकनी व मट्ठे के गंध वाली होती है। यह गंध ग्रामीण लोगों को तो अच्छी लगती है, पर शहरी लोगों को इस मिट्टी से सनी देह से उबकाई आती है। उन्हें इस मिट्टी की गंध अच्छी नहीं लगती। वे इस प्रकार की मिट्टी के महत्त्व को नहीं समझते।
प्रश्न 14. गोधूलि को गाँव की संपत्ति मानने के पीछे क्या तर्क है?
उत्तर: गोधूलि को गाँव की सम्पत्ति मानने के पीछे यह तर्क है कि गोधूलि गाँव में ही होती है, शहरों में नहीं। गाँव वाले ही धूल का महत्त्व समझते हैं, शहरी लोग तो धूल से बचते हैं। गाँव वाले धूल को अपनी संपत्ति मानते हैं।
प्रश्न 15. हम हीरे से लिपटी हुई धूल को माथे से लगाना कब सीखेंगे?
उत्तर: हम हीरे की तो कद्र करते हैं, पर धूल की नहीं। हमें यह समझना होगा कि हीरे के ऊपर जो धूल चढ़ी होती है वह भी माथे से लगाने की वस्तु है। हमें हीरे से लिपटी धूल को माथे से लगाना सीखना होगा।
प्रश्न 16. मिट्टी का फूलों पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर: मिट्टी का स्पर्श पाकर फूल खिल जाते हैं। फूलों को हम अपनी सुंदर वस्तुओं का उपमान बनाते हैं। वे फूल मिट्टी में ही उपजते और विकसित होते हैं। फूल के ऊपरी भाग का सौंदर्य धूल के कारण ही होता है। धूल फूल की पंखुड़ियों पर साकार सौंदर्य बनकर छा जाती है।
प्रश्न 17. ‘नीच को धूरि समान’ वेद वाक्य नहीं है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: नीच को धूरि समान बताना सही नहीं है। इस कथन को वेद-वाक्य नहीं मान लेना चाहिए। धूल तो बड़ी पवित्र वस्तु है, उसे नीच के समान नहीं बताया जा सकता। धूल तुच्छ वस्तु नहीं है। वैसे इस वाक्यांश का अर्थ है-धूल के समान तुच्छ कौन है।
प्रश्न 18. धूल और मिट्टी का अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: धूल और मिट्टी में अंतर है। धूल मिट्टी से अधिक महत्त्वपूर्ण है। मिट्टी के रंग-रूप की पहचान धूल से ही होती है। मिट्टी की आभा का नाम धूल है। धूल बारीक वस्तु है जबकि मिट्टी स्थूल वस्तु है।
प्रश्न 19. मनुष्य का सबसे बड़ा दुर्भाग्य किसे बताया गया है और क्यों? ‘धूल’ पाठ के आधार पर बताइए।
उत्तर: मनुष्य का सबसे बड़ा दुर्भाग्य इस बात को कहा है कि उसका बचपन तो धूल के संसर्ग में बीते, पर जवानी गया में वह मिट्टी से अलग हो जाए। यदि वह जवानी में अखाड़े की मिट्टी में सनने से वंचित रह जाए तो यह उसका दुर्भाग्य ही है।
प्रश्न 20. ‘धूल’ पाठ का उद्देश्य क्या है? बालक धूलि भरे ही क्यों अच्छे लगते हैं?
उत्तर: ‘धूल’ पाठ का उद्देश्य है धूल की महिमा और माहात्म्य, उपलब्धता और उपयोगिता का बखान करना। लेखक जीवन में धूल को प्रतिपादित करना चाहता है।
प्रश्न 21. धूल के प्राकृतिक सौंदर्य का चित्रण कीजिए।
उत्तर: अमराइयों के पीछे छिपे हुए सूर्य की किरणों में जो धूलि सोने को मिट्टी कर देती है, सूर्यास्त के उपरांत लीक पर गाड़ी के निकल जाने के बाद जो रुई के बादल की तरह या ऐरावत हाथी के नक्षत्र पथ की भाँति जहाँ की तहाँ स्थिर रह जाती है, चाँदनी रात में मेले जाने वाली गाड़ियों के पीछे जो कवि कल्पना की भाँति उड़ती चलती है, जो शिशु के मुँह पर, फूल की पंखुड़ियों पर साकार सौंदर्य बनकर छा जाती है- धूल उसका नाम है।
प्रश्न 22. शहरी सभ्यता बालक से क्या चाहती है? हीरे से लिपटी हुई धूल को हम माथे से लगाना कब सीख पाएँगे?
उत्तर: शहरी सभ्यता बालक से यह चाहती है कि वह धूल से बचकर रहे। धूल उसके कपड़ों की चमक को फीका कर सकती है। शहरी सभ्यता बालक को धूल में खेलने से रोकती है।
हीरा भी धूल में लिपटा होता है। हम हीरे की तो कद्र करते हैं पर हीरे से लिपटी धूल को हेय दृष्टि से देखते हैं। हमें हीरे से लिपटी धूल को भी अपने माथे से लगाकर सम्मान देना सीखना होगा।
प्रश्न 23. धूल के संसर्ग से बचने वाली नगरीय सभ्यता का क्या दुर्भाग्य है?
उत्तर: नगरीय सभ्यता धूल के संसर्ग से बचना चाहती है। इस सभ्यता का यह दुर्भाग्य है कि इसका बचपन तो धूल के बीच बीतता है, पर जवानी में यह मिट्टी के स्पर्श से दूर रहती है। यही इसका दुर्भाग्य है।
प्रश्न 24. क्या आप इस बात से सहमत हैं कि धूल की उपेक्षा करके शहरी सभ्यता अपने अस्तित्व की उपेक्षा भी कर रही है? तर्क युक्त उत्तर दीजिए।
उत्तर: हाँ, हम इस बात से सहमत हैं कि धूल की उपेक्षा करके शहरी सभ्यता अपने अस्तित्व की उपेक्षा भी कर रही है।
शहर में रहने का यह तात्पर्य कदापि नहीं है कि हम धूल की उपेक्षा करें। हमें यह समझना होगा कि हमारा अपना अस्तित्व धूल पर ही टिका है। धूल का ही एक रूप मिट्टी है। हमें मिट्टी से ही जीवन के आवश्यकता तत्त्व मिलते हैं। यदि हम धूल की उपेक्षा करेंगे तो हमारा अपना अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।
प्रश्न 25. काँच और हीरे का अर्थ स्पष्ट करते हुए बताइए कि कब इनके बीच का भेद जानना बाकी न रहेगा?
उत्तर: काँच ऊपर से चमकदार होता है, पर उसमें उतनी मजबूती नहीं होती जितनी हीरे में होती है। हम काँच को प्यार करते हैं, पर धूल भरे हीरे में हमें धूल ही धूल दिखाई देती है। इसके भीतर की कांति आँखों से ओझल रहती है लेकिन हीरे अमर हैं। हीरे इसका प्रमाण भी देते हैं। जब हीरे उलटकर चोट भी करेंगे और काँच और हीरे का भेद जानना बाकी न रहेगा।
प्रश्न 26. धूल भावनाओं की अभिव्यक्ति का सर्वोत्तम साधन है। कैसे? अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर: धूल भावनाओं की अभिव्यक्ति का सबसे अच्छा साधन है। धूल जीवन का यथार्थवादी गद्य है और धूलि उसकी कविता है। धूल के साथ तरह-तरह का व्यवहार करके हम अपने मन की भावनाओं को अभिव्यक्त करते हैं कभी हम धूल को माथे से लगाते हैं तो कभी भूल को आँखों से लगाते हैं। अपने मन की श्रद्धा, भक्ति, स्नेह आदि भावनाओं की व्यंजना के लिए धूल से बढ़कर अन्य कोई साधन नहीं है।
प्रश्न 27. लेखक ‘धूल’ शब्द के विविध रूप में अर्थ स्पष्ट करता है। आपकी दृष्टि से धूल का सर्वश्रेष्ठ रूप कौन-सा है और क्यों? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: लेखक ‘धूल’ शब्द के विविध रूपों में अर्थ स्पष्ट करता है-‘धूल’ जीवन का यथार्थवादी गद्य है, धूलि जीवन के यथार्थ की कविता है, ‘धूलि’ जीवन के छायावादी दर्शन के समान है; ‘धूरि’ शब्द से भारतीय लोक संस्कृति की झलक मिलती है। ‘गोधूलि’ गाँव की अपनी सम्पत्ति है।
हमारी दृष्टि से धूल का सर्वश्रेष्ठ रूप है- गोधूलि। इसमें ग्रामीण संस्कृति की झलक तो मिलती ही है, साथ ही ब्रज का चित्रण भी साकार हो जाता है। ‘गोधूलि बेला’ का अपना विशेष महत्त्व है।
प्रश्न 28. धूल के संदर्भ में नागरिकों की क्या धारणा है? ‘धूल’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: धूल के संदर्भ में नागरिकों की यह धारणा है कि धूल व्यर्थ की चीज है। वे धूल को घटिया वस्तु मानकर उससे बचने का प्रयास करते हैं। वे अपने बच्चों को भी धूल से बचाने का प्रयास करते हैं। उनके अनुसार धूल हमारी चमक को फीका करती है।
प्रश्न 29. गोधूलि से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: गोधूलि से हम यह समझते हैं कि सायंकाल के समय जंगल से लौट रही गायों और ग्वालों के पदों से उड़ने वाली धूल। इस समय को गोधूलि वेला कहा जाता है। गोधूलि की कल्पना ग्रामीण परिवेश में ही संभव है, शहरी वातावरण में नहीं।
प्रश्न 30. ‘धूल’ शब्द किसका नाम है?
उत्तर: अमराइयों के पीछे छिपे हुए सूर्य की किरणों में जो धूलि सोने को मिट्टी कर देती है, सूर्यास्त के उपरांत लीक पर गाड़ी निकल जाने के बाद जो रुई के बादल की तरह या ऐरावत हाथी के नक्षत्र-पथ की भाँति जहाँ की तहाँ स्थिर रह जाती है, चाँदनी रात में मेले जाने वाली गाड़ियों के पीछे जो कवि-कल्पना की भाँति उड़ती चलती है, जो शिशु के मुँह पर, फूल की पंखुड़ियों पर साकार सौंदर्य बनकर छा जाती है, धूल उसी का नाम है।
प्रश्न 31. धूल के नन्हें कणों के वर्णन से देश प्रेम का कौन-सा पाठ पढ़ाने का प्रयत्न किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: धूल के नन्हें कणों के वर्णन से देश-प्रेम का पाठ पढ़ा जा सकता है। जब हम देश की धरती के धूल-कणों को अपने मस्तक से लगाते हैं तब हमारे अंदर देश-प्रेम की भावना जाग उठती है। धूल के कण हमें अपनी मातृभूमि की रक्षा का पाठ पढ़ाते हैं। इन्हें माथे से लगाना चाहिए।
प्रश्न 32. लेखक ने ‘धूरि’ को लोक संस्कृति का नवीन जागरण क्यों कहा है?
उत्तर: ‘धूरि’ लोक-संस्कृति का नवीन जागरण है। ‘धूरि’ में ग्रामीण परिवेश छिपा रहता है। धूल और धूरि में बारीक सा अंतर है। धूरि के साथ लोक-संस्कृति जुड़ी है। इसे नए रूप में जागरण भी कह सकते हैं।
प्रश्न 33. लेखक ने धूल के किस महात्म्य और उपलब्धता को दिखाया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: लेखक ने धूल का बहुत महात्म्य दर्शाया है। धूल में हीरा छिपा रहता है। मिट्टी की आभा का नाम धूल है और मिट्टी के रंग-रूप की पहचान उसकी धूल से ही होती है। धूल को ‘गोधूलि’ में अमर कर दिया गया है।
जहाँ तक धूल की उपलब्धता का प्रश्न है यह उन अमराइयों के पीछे सूर्यास्त के उपरांत लीक पर गाड़ी के निकल जाने के बाद रुई के बादल की तरह जहाँ-तहाँ स्थिर रह जाती है। यह चाँदनी रात में मेले की गाड़ियों के पीछे उड़ती जाती है। यह धूल शिशु के मुँह पर फूल की पंखुड़ियों का सौंदर्य बनकर छा जाती है। इसी का नाम धूल है।