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NCERT Class 9 Hindi Chapter 2 दुख का अधिकार
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दुख का अधिकार
Chapter: 2
स्पर्श भाग – 1 (गघ-भाग)
गद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
(1) मनुष्य की पोशाकें उन्हें विभिन्न श्रेणियों में बाँट देती हैं। प्रायः पोशाक ही समाज में मनुष्य का अधिकार और उसका दर्जा निश्चित करती है। वह हमारे लिए बंद दरवाजे खोल देती है, परन्तु कभी ऐसी भी स्थिति आ जाती है कि हम जरा नीचे झुककर समाज की निचली श्रेणियों की अनुभूति को समझना चाहते हैं, उस समय यह पोशाक ही बंधन और अड़चन बन जाती है। जैसे वायु को लहरें कटी हुई पतंग को सहसा भूमि पर नहीं गिर जाने देतीं, इसी तरह खास परिस्थितियों में हमारी पोशाक हमें झुक जाने से रोके रहती है।
प्रश्न- (i) मनुष्यों की पोशाकें क्या करती हैं?
(क) उन्हें विभिन्न श्रेणियों में बाँटती है
(ख) उनका फैशन दर्शाती है
(ग) उन्हें अधिकार दिलाती है
(घ) कुछ नहीं
उत्तर: (क) उन्हें विभिन्न श्रेणियों में बाँटती है।
(ii) अच्छी पोशाक क्या कर दिखाती है?
(क) समाज में अधिकार
(ख) समाज में दर्जा
(ग) उन्नति के रास्ते
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर: (घ) उपर्युक्त सभी।
(iii) अच्छी पोशाक क्या नहीं करने देती?
(क) नीचे झुकने
(ख) नीची श्रेणी के लोगों की मदद
(ग) सहानुभूति
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर: (घ) उपर्युक्त सभी।
(iv) इस पाठ के रचयिता कौन हैं?
(क) यशपाल
(ख) जैनेंद्र
(ग) मणिपाल
(घ) वीरपाल
उत्तर: (क) यशपाल।
(v) यह गद्यांश किस पाठ से अवतरित है?
(क) दुख
(ख) दुख का अधिकार
(ग) पोशाक
(घ) विभिन्न श्रेणियाँ
उत्तर: (ख) दुख का अधिकार।
(2) लड़का परसों सुबह मुँह-अंधेरे बेलों में से पके खरबूजे चुन रहा था। गीली मेड़ की तरावट में विश्राम करते हुए एक साँप पर लड़के का पैर पड़ गया। साँप ने लड़के को डंस लिया। लड़के को बुड़िया माँ बावली होकर ओझा को बुला लाई, झाड़ना-फूँकनाहुआ। नागदेव की पूजा हुई। पूजा के लिए दान-दक्षिणा चाहिए। घर में जो कुछ आटा और अनाज था, दान दक्षिणा में उठ गया। माँ वह और बच्चे भगवाना से लिपट लिपटकर रोए, पर भगवाना जो एक दफे चुप हुआ फिर न बोला।
जिंदा आदमी नंगा भी रह सकता है, परंतु मुर्दे को नंगा कैसे विदा किया जाए ? उसके लिए तो बजाज की दुकान से नया कपड़ा लाना ही होगा, चाहे उसके लिए माँ के हाथों के छन्नी- ककना ही क्यों न बिक जाएँ।
प्रश्न- (i) लड़का मुँह-अंधेरे क्या कर रहा था?
(क) पके खरबूजे चुन रहा था
(ख) सैर कर रहा था
(ग) सिंचाई कर रहा था
(घ) साँप खोज रहा था
उत्तर: (क) पके खरबूजे चुन रहा था।
(ii) बुढ़िया ने सांप का जहर उतारने के लिए क्या उपाय किया?
(क) ओझा को बुला लाई
(ख) झाड़-फूँक करवाई
(ग) नागदेव की पूजा करवाई
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर: (घ) उपर्युक्त सभी।
(iii) भगवाना कौन था?
(क) बुढ़िया का बेटा
(ख) कृषक
(ग) फल-विक्रेता
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर: (क) बुढ़िया का बेटा।
(iv) मुर्दे के लिए क्या जरूरी है?
(क) दवा
(ख) नया कपड़ा
(ग) लकड़ी
(घ) छन्नी-ककना
उत्तर: (ख) नया कपड़ा।
(v) यह गद्यांश किस पाठ से अवतरित है?
(क) दुख का अधिकार
(ख) बुढ़िया का दुख
(ग) साँप का काटा
(घ) दुख की घड़ी
उत्तर: (क) दुख का अधिकार।
(3) बाजार में फुटपाथ पर कुछ खरबूजे डलिया में और कुछ जमीन पर बिक्री के लिए जान पड़ते थे खरबूजों के समीप एक अधेड़ उम्र की औरत बैठी रो रही थी खरबूजे बिक्री के लिए थे, परंतु उन्हें खरीदने के लिए कोई कैसे आगे बढ़ता? खरबूजों को बेचने वाली तो कपड़ों में मुँह छिपाए सिर को घुटनों पर रखे फफक-फफककर रो रही थी। पड़ोस की दुकानों के तख्तों पर बैठे या बाजार में खड़े लोग घृणा से उसी स्वी के संबंध में बातें कर रहे थे। उस स्वी का रोना देखकर मन में एक व्यथा-सी उठी, पर उसके रोने का कारण जानने का उपाय क्या था।
प्रश्न- (i) फुटपाथ पर क्या था?
(क) कुछ खरबूजे
(ख) बुढ़िया
(ग) डलिया
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर: (घ) उपर्युक्त सभी।
(ii) अधेड़ उम्र की औरत से क्यों रही थी?
(क) कोई उसके खरबूजे खरीद नहीं रहा था
(ख) उसका बेटा मर गया था
(ग) क-ख दोनों
(घ) लोग व्यंग्य कर रहे थे
उत्तर: (ग) क-ख दोनों।
(iii) उसके बारे में घृणा से बातें कौन कर रहा था?
(क) तख्तों पर बैठे लोग
(ख) बाजार में खड़े लोग
(ग) क-ख दोनों
(घ) सभी
उत्तर: (ग) क-ख दोनों।
(iv) बुढ़िया का रोना देखकर किसके मन में व्यथा-सी उठी?
(क) लेखक के मन में
(ख) लोगों के मन में
(ग) बुढ़िया के मन में
(घ) किसी के मन में नहीं
उत्तर: (क) लेखक के मन में।
(v) इस पाठ के लेखक कौन हैं?
(क) जैनेंद्र
(ख) यशपाल
(ग) मनमोहन
(घ) योगेंद्र
उत्तर: (ख) यशपाल।
(4) भगवाना परलोक चला गया। घर में जो कुछ चूनी-भूसी थी सो उसे विदा करने में चली गई। बाप नहीं रहा तो क्या, लड़के सुबह उठते ही भूख से बिलबिलाने लगे। दादी ने उन्हें खाने के लिए खरबूजे दे दिए, लेकिन बहू को क्या देती? बहू का बदन बुखार से तवे की तरह तप रहा था। अब बेटे के बिना बुढ़िया को दुअनी-चवनी भी कौन देता उधार।
प्रश्न- (i) भगवाना परलोक क्यों चला गया?
(क) उसे साँप ने काट लिया था
(ख) उसकी मृत्यु हो गई थी
(ग) दोनों (क) और (ख)
(घ) सामान्य रूप से
उत्तर: (ग) दोनों (क) और (ख)।
(ii) सुबह होते ही क्या हुआ?
(क) बच्चे भूख से बिलबिलाने लगे
(ख) पत्नी रोने लगी
(ग) माँ खरबूज बेचने चली गई
(घ) कुछ नहीं
उत्तर: (क) बच्चे भूख से बिलबिलाने लगे।
(iii) बहू की क्या हालत थी?
(क) वह बुखार में तप रही थी
(ख) वह रो रही थी
(ग) उसका बुरा हाल था
(घ) वह चुप बैठी थी
उत्तर: (क) वह बुखार में तप रही थी।
(iv) घर की जमा-पूँजी कहाँ चली गई?
(क) भगवाना के क्रिया कर्म में खर्च हो गई
(ख) इलाज में खर्च हो गई
(ग) बच्चों की भूख मिटाने में खर्च हो गई
(घ) कुछ थी ही नहीं
उत्तर: (क) भगवाना के क्रिया कर्म में खर्च हो गई।
(v) ‘चूनी भूसी’ शब्द कैसा है?
(क) तत्सम
(ख) तद्भव
(ग) देशज
(घ) विदेशी
उत्तर: (ग) देशज।
(5) परचून की दुकान पर बैठे लालाजी ने कहा, “अरे भाई, उनके लिए मरे-जिए का कोई मतलब न हो, पर दूसरे के धर्म-ईमान का तो ख्याल करना चाहिए। जवान बेटे के मरने पर तेरह दिन का सूतक होता है और वह यहाँ सड़क पर बाजार में आकर खरबूजे बेचने बैठ गई। हजार आदमी आते-जाते हैं। कोई क्या जानता है कि इसके घर में सूतक है। कोई इसके खरबूजे खा ले तो उसका ईमान-धर्म कैसे रहेगा? क्या अँधेर है?
प्रश्न- (i) परचून की दुकान पर कौन बैठा था?
(क) लाला जी
(ख) बेटा
(ग) बुढ़िया
(घ) लेखक
उत्तर: (क) लाला जी।
(ii) लालाजी की भाषा कैसी थी?
(क) सहानुभूतिपूर्ण
(ख) व्यग्यपूर्ण
(ग) सहायता वालो
(घ) सामान्य
उत्तर: (ख) व्यग्यपूर्ण।
(iii) सूतक कितने दिन का होता है?
(क) दस
(ख) बारह
(ग) तेरह
(घ) चौदह
उत्तर: (ग) तेरह।
(iv) सूतक वाले घर के खरबूजे खाने पर क्या हो जाएगा?
(क) खाने वाले का ईमान-धर्म चला जाएगा
(ख) अँधेर हो जाएगा
(ग) पाप चढ़ जाएगा
(घ) कुछ नहीं होगा
उत्तर: (क) खाने वाले का ईमान-धर्म चला जाएगा।
(v) यह गद्यांश किस पाठ से लिया गया है?
(क) दुख
(ख) दुख का अधिकार
(ग) बुढ़िया का दुख
(घ) दोंगी समाज
उत्तर: (ख) दुख का अधिकार।
(6) पास-पड़ोस की दुकानों से पूछने पर पता लगा- उसका तेईस बरस का जवान लड़का था। पर में उसकी बहू और पोता-पोती हैं। लड़का शहर के पास डेढ़ बीघा भर समीन में कछियारी करके परिवार का निर्वाह करता था। खरबूजों की डलिया बाजार में पहुंचाकर कभी लड़का स्वयं सौदे के पास बैठ जाता, कभी माँ बैठ जाती। लड़का परसों सुबह मुँह अँधेरे बेलों में से पके खरबूजे चुन रहा था। गीली मेड़ की तरावट में विश्राम करते हुए एक साँप पर लड़के का पैर पड़ गया। साँप ने लड़के को डंस लिया। लड़के की बुढ़िया माँ बावली होकर ओझा को बुला लाई।
प्रश्न- (i) बुढ़िया के परिवार में कौन-कौन थे।
(क) बहू
(ख) पोता
(ग) पोती
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर: (घ) उपर्युक्त सभी।
(ii) लड़का मुँह-अँधेरे बेलों में से क्या चुन रहा था?
(क) खूरबजे
(ख) तरबूज
(ग) आम
(घ) केले
उत्तर: (क) खूबजे।
(iii) लड़के का पैर किस पर पड़ा?
(क) साँप पर
(ख) घास पर
(ग) पत्थर पर
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर: (क) साँप पर।
(iv) साँप के काटने पर बुढ़िया किसको बुला लाई?
(क) डॉक्टर को
(ख) पड़ोसी को
(ग) ओझा को
(घ) गाँव वालों को
उत्तर: (ग) ओझा को।
(v) बुढ़िया का बेटा कितने बेटा कितने वर्ष का था?
(क) बीस
(ख) तेईस
(ग) पच्चीस
(घ) तीस
उत्तर: (ख) तेईस।
(7) वह संभ्रांत महिला पुत्र की मृत्यु के अदाई मास बाद तक पलंग से उठ न सकी थी। उन्हें पन्द्रह-पदा मिनट बाद पुत्र वियोग से मूर्छा आ जाती थी और मूर्छा न आने की अवस्था में आँखों से आँसू न रुक सकते थे। दो-दो डॉक्टर हमेशा सिरहाने बैठे रहते थे। हरदम सिर पर बर्फ रखी जाती थी। शहर भर के लोगों के मन उस पुत्र शोक से द्रवित हो उठे थे।
प्रश्न- (i) संभ्रात महिला पलंग से ढाई महीने तक क्यों नहीं उठ पाई?
(क) पुत्र की मृत्यु के कारण
(ख) बीमारी के कारण
(ग) शोक के कारण
(घ) दिखावे के कारण
उत्तर: (क) पुत्र की मृत्यु के कारण।
(ii) महिला की क्या हालत थी?
(क) बार-बार बेहोश हो जाती थी
(ख) आँखों से आँसू नहीं रुकते थे
(ग) दोनों (क) और (ख)
(घ) सोई रहती थी
उत्तर: (ग) दोनों (क) और (ख)।
(iii) महिला की देखभाल कैसे हो रही थी?
(क) हमेशा डॉक्टर उसके सिराहने बैठा रहता था
(ख) सिर पर बर्फ रखी जा रही थी
(ग) दोनों (क) और (ख)
(घ) आराम दिया जाता था
उत्तर: (ग) दोनों (क) और (ख)।
(iv) शहर के लोगों के मन कैसे हो उठते थे?
(क) द्रवित
(ख) व्याकुल
(ग) हर्षित
(घ) दिखावे के
उत्तर: (क) द्रवित।
(v) गद्यांश में किस पर व्यंग्य है?
(क) गरीबी पर
(ख) अमीरों के दिखाने पर
(ग) पुत्र वियोग पर
(घ) दुख पर
उत्तर: (ख) अमीरों के दिखाने पर।
(8) पड़ोस की दुकानों के तख्तों पर बैठे या बाज़ार में खड़े लोग पुणा से उसी स्त्री के संबंध में बात कर रहे थे। उस स्वी का रोना देखकर मन में एक व्यथा-सी उठी, पर उसके रोने का कारण जानने का उपाय क्या था? फुटपाथ पर उसके समीप बैठ सकने में मेरी पोशाक ही व्यवधान बन खड़ी हो गई।
एक आदमी ने घृणा से एक तरफ थूकते हुए कहा, “क्या जमाना है। जवान लड़के को मरे पूरा दिन नहीं बीता और यह बेहया दुकान लगा के बैठी है।”
प्रश्न- (i) रोती हुई स्वी को देखकर लेखक को कैसा लगा?
(क) लेखक का मन व्यथित हो उठा
(ख) रोने का कारण जानने के लिए व्याकुल हो उठे।
(ग) दोनों (क) और (ख)
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर: (ग) दोनों (क) और (ख)।
(ii) मनुष्य के जीवन में पोशाक का क्या महत्त्व है?
(क) पोशाक मनुष्य के सामाजिक स्तर को दर्शाती हैं।
(ख) पोशाक के द्वारा ही मनुष्य अपने और अन्य मनुष्यों में भेंद करता हैं।
(ग) खास परिस्थितियों में पोशाक हमें नीचे झुकने से रोकती है।
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर: (घ) उपर्युक्त सभी।
(iii) बुढ़िया खरबूजे कहाँ रखकर बेचती थी?
(क) फुटपाथ पर
(ख) रेहड़ी पर
(ग) दुकान पर
(घ) उपर्युक्त सभौ
उत्तर: (क) फुटपाथ पर।
(iv) ‘दुख का अधिकार’ इस पाठ के लेखक कौन है?
(क) प्रेमचंद्र
(ख) यशपाल
(ग) शरद जोशी
(घ) मन्नू भंडारी
उत्तर: (ख) यशपाल।
(v) निम्न में से कौन-सा शब्द घृणा का पर्याय नहीं है?
(क) नफरत
(ख) अंसतोष
(ग) नाराजगी
(घ) रोना
उत्तर: (घ) रोना।
प्रश्न-अभ्यास
(पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर)
मौखिक
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-
प्रश्न 1. किसी व्यक्ति की पोशाक को देखकर हमें क्या पता चलता है?
उत्तर: किसी व्यक्ति की पोशाक देखकर हमें उसका समाज में अधिकार और दर्जे का पता चलता है।
प्रश्न 2. खरबूजे बेचनेवाली स्त्री से कोई खरबूजे क्यों नहीं खरीद रहा था?
उत्तर: खरबूजे बेचनेवाली स्त्री के घर में कल ही उसके जवान बेटे की मृत्यु हो गई थी। जवान बेटे के मरने पर तेरह दिन का सूतक होता है। यह समय अशुभ माना जाता है। अतः उससे कोई खरबूजे नहीं खरीद रहा था।
प्रश्न 3. उस स्त्री को देखकर लेखक को कैसा लगा?
उत्तर: उस स्त्री को देखकर लेखक को उसके प्रति सहानुभूति की भावना उत्पन्न हुई। वह नीचे झुककर उसकी अनुभूति को समझना चाहता था, तब उसकी पोशाक इसमें अड़चन बन गई।
प्रश्न 4. उस स्त्री के लड़के की मृत्यु का कारण क्या?
उत्तर: उस स्त्री का लड़का तेईस बरस का जवान था। लड़का शहर के पास डेढ़ बीघा जमीन पर कछियारी करके परिवार का निर्वाह करता था। एक दिन वह सुबह मुँह-अँधेरे खेत में बेलों से पके खरबूजे चुन रहा था कि गीली मेंड़ की तरावट में आराम करते साँप पर उसका पाँव पड़ गया और साँप ने उस लड़के को डँस लिया। ओझा के झाड़-फूँक, पूजा आदि का बेटे भगवाना पर कोई असर न पड़ा और उसकी मृत्यु हो गई।
प्रश्न 5. बुढ़िया को कोई भी क्यों उधार नहीं देता?
उत्तर: अब बुढ़िया का बेटा मर चुका था। लोगों को पता था कि बुढ़िया को दिए उधार के लौटाने की कोई संभावना नहीं है। अब बुढ़िया को कोई भी उधार देने को तैयार नहीं था।
लिखित
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों) में लिखिए-
प्रश्न 1. मनुष्य के जीवन में पोशाक का क्या महत्त्व है?
उत्तर: मनुष्य के जीवन में पोशाक का बड़ा महत्त्व है। पोशाक ही व्यक्ति का समाज में स्थान निर्धारित करती है। पोशाक ही मनुष्य को उसका अधिकार दिलाती है। अच्छी पोशाक हमारे लिए अनेक बंद दरवाजे खोल देती है। पोशाक व्यक्ति को सम्मान दिलाती है। पर कभी-कभी यह पोशाक हमारे लिए अड़चन भी बन जाती है।
प्रश्न 2. पोशाक हमारे लिए कब बंधन और अड़चन बन जाती है?
उत्तर: जब हम जरा नीचे होकर हृदय की संवेदना के आधार पर किसी गरीब की अनुभूति को, उसकी व्यथा को जानने और समझने की चेष्टा करते हैं, उस समय पोशाक हमारे लिए बंधन और अड़चन बन जाती है। कारण, अपनी आधुनिक ढंग की स्वच्छ पोशाक के कारण गरीबों के पास बैठकर उनसे बात करने में हम अपने को अपमानित-सा अनुभव करते हैं। लगता है जैसे हम हीन बन गए हैं
प्रश्न 3. लेखक उस स्त्री के रोने का कारण क्यों नहीं जान पाया?
उत्तर: लेखक उस स्त्री के रोने का कारण इसलिए नहीं जान पाया, क्योंकि उस समय वह अच्छी भद्रजन वाली पोशाक पहने हुए था और ऐसी पोशाक उसे नीचे झुककर उस साधारण स्त्री के दुख को जानने नहीं देती। यद्यपि लेखक मन से उस स्त्री के दुख के कारण को जानना चाहता था, पर फुटपाथ पर उस स्त्री के समीप बैठने में उसकी पोशाक बाधक बन गई।
प्रश्न 4. भगवाना अपने परिवार का निर्वाह कैसे करता था?
उत्तर: भगवाना शहर के पास डेढ़ बीघा भर जमीन में कछियारी करके परिवार का निर्वाह करता था। वह वहाँ से खरबूजे तोड़कर डलिया में भरकर बाजार में पहुँचा देता था। वह कभी स्वयं सौदे के पास बैठ जाता था, कभी उसकी माँ बैठ जाती थी। इसी की आय से परिवार का गुजारा चलता था।
प्रश्न 5. लड़के की मृत्यु के दूसरे दिन ही बुढ़िया खरबूजे बेचने क्यों चल पड़ी?
उत्तर: लड़के की मृत्यु के दूसरे दिन ही बुढ़िया खरबूजे बेचने इसलिए चल पड़ी, क्योंकि घर में खाने को कुछ न था। बहू का बदन बुखार से तवे की तरह तप रहा था। बुढ़िया के पास न उसकी दवा-दारू के लिए पैसे थे और न उसे खिलाने को कोई चीज थी। खरबूजे बेचना उसकी मजबूरी थी। यहाँ कुछ बिक्री की उम्मीद लेकर आई थी।
प्रश्न 6. बुढ़िया के दुख को देखकर लेखक को अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला की याद क्यों आई?
उत्तर: बुढ़िया के दुख को देखकर लेखक को अपने पड़ोस की संभ्रात महिला के दुख की याद हो आई थी। उसका पुत्र असमय मर गया था। तब उसके दुख में वह महिला ढाई महीने तक पलंग से न उठ सकी थी और यह बुढ़िया पुत्र की मृत्यु के अगले दिन ही खरबूजे बेचने चली आई। सच है, शोक मनाने के लिए भी सहूलियत चाहिए।
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-
प्रश्न 1. बाजार के लोग खरबूजे बेचने वाली स्त्री के बारे में क्या-क्या कह रहे थे? अपने शब्दों में लिखिए।
(निबंधात्मक प्रश्न)
उत्तर: बाजार के लोग खरबूजे बेचने वाली स्त्री के बारे में बातें कर रहे थे-
एक आदमी : अरे, इन लोगों का क्या है ? ये आदमी तो कमीन हैं, रोटी के टुकड़े पर जान देते हैं। इनके लिए रोटी ही सब कुछ है, किसी रिश्ते का महत्त्व नहीं है ।
लालाजी : इन लोगों को ईमान-धर्म का कोई ख्याल नहीं होता । यह स्त्री सूतक के दिनों में भी खरबूजा बेचने आ गई । यह लोगों का ईमान-धर्म बिगाड़ेगी।
एक अन्य व्यक्ति : क्या जमाना आ गया है, जवान लड़के को मरे पूरा एक दिन भी नहीं बीता और यह बेहया दुकान लगाकर बैठी है।
अन्य व्यक्ति : जैसी नीयत होती है, वैसी ही बरकत होती है।
प्रश्न 2. पास-पड़ोस की दुकानों से पूछने पर लेखक को क्या पता चला?
उत्तर: पास-पड़ोस की दुकानों से पूछने पर लेखक को पता लगा कि उसका तेईस बरस का जवान लड़का था। घर में उसकी बहू और पोता-पोती हैं। लड़का शहर पास डेढ़ बीघा भर जमीन में कछियारी करके परवार का निर्वाह करता था। खरबूजों की डलिया बाजार में पहुँचाकर लड़का स्वयं सौदे के पास बैठ जाता, कभी माँ बैठ जाती। लड़का परसों सुबह मुँह-अँधेरे बेलों में से पके खरबूजे चुन रहा था। गोली मेंड़ की तरावट में विश्राम करते हुए एक साँप पर लड़के का पैर पड़ गया। साँप ने लड़के को डँस लिया। झाड़-फूँक, पूजा कराने का कोई फायदा नहीं हुआ और वह मर गया।
प्रश्न 3. लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया माँ ने क्या-क्या उपाय किए?
अथवा
खरबूजे बेचने वाली स्त्री के लड़के की मृत्यु का कारण क्या था? उसने उसे बचाने के लिए क्या-क्या उपाय किए?
उत्तर: लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया माँ बावली होकर ओझा को बुला लाई। झाड़ना-फूँकना हुआ। नागदेव की पूजा हुई। पूजा के लिए दान-दक्षिणा चाहिए। घर में जो कुछ आटा और अनाज था, दान-दक्षिणा में उठ गया। माँ, बहू और बच्चे ‘भगवाना’ से लिपट लिपट कर रोए, पर भगवाना जो एक दफे चुप हुआ तो फिर न बोला। सर्प के विष से उसका सब बदन काला पड़ गया था और लड़का मर गया।
प्रश्न 4. लेखक ने बुढ़िया के दुख का अंदाजा कैसे लगाया?
उत्तर: लेखक ने बुढ़िया को आँखें पोंछते देखा तो उसके दुख का अंदाजा लगाने के लिए उस संभ्रांत महिला की दशा को सोचने लगा, जिसका बेटा पिछले साल मर गया था और वह उसके शोक में ढाई मास तक पलंग से नहीं उठ पाई थी। उसे बार-बार मूर्छा आ जाती थी, डॉक्टर उसके सिरहाने बैठे रहते थे। शहर भर के लोग उसके दुख में दुखी थे।
और दूसरी ओर यह बुढ़िया है, जिसे पुत्रशोक मनाने की सहूलियत भी नहीं है। वह सारे दुख को मन में ही समेटे हुए है।
प्रश्न 5. इस पाठ का शीर्षक ‘दुख का अधिकार’ कहाँ तक सार्थक है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: इस पाठ का शीर्षक ‘दुख का अधिकार’ सर्वथा उचित है। दुख मनाने का अधिकार सभी को नहीं है, विशेषकर निर्धन वर्ग को दुख मनाने का अधिकार नहीं है। दुख मना का अधिकार भी केवल संपन्न वर्ग का ही है। दुख तो सभी को होता है, पर संपन्न वर्ग इस दुख का दिखावा करता है, गरीब को कमाने-खाने की चिंता ही दम नहीं लेने देती। अतः शीर्षक उपयुक्त ही है।
(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
1. जैसे वायु की लहरें कटी हुई पतंग को सहसा भूमि पर नहीं गिर जाने देतीं, उसी तरह खास परिस्थितियों में हमारी पोशाक हमें झुक सकने से रोके रहती है।
उत्तर: हवा की लहरें पतंग को आसमान में ही उड़ाए रहती हैं, वे उसे जमीन पर गिरने नहीं देतीं। यही स्थिति हमारी अच्छी पोशाक के कारण उत्पन्न होती है। वह भी हमें किन्हीं खास परिस्थितियों में स्तर से नीचे नहीं उतरने देती। हमें विशिष्ट बनाए रखती है।
2. इनके लिए बेटा-बेटी, खसम-लुगाई, धर्म-ईमान सब रोटी का टुकड़ा है।
उत्तर: यह व्यंग्य है गरीबों पर। कहने वाले के अनुसार गरीबों के लिए रिश्ते कोई मायने नहीं रखते। उनके लिए तो रोटी का टुकड़ा ही सब कुछ है। वे इसके लिए ईमान-धर्म तक की परवाह नहीं करते।
3. शोक करने, गम मनाने के लिए भी सहूलियत चाहिए और दुःखी होने का भी एक अधिकार होता है।
उत्तर: इस कथन में यह व्यंग्य निहित है कि शोक मनाने का अधिकार सभी को नहीं है। गरीब व्यक्ति के पास न तो इसे मनाने की सुविधा है न समय है, वह तो रोटी-रोजी के चक्कर में ही उलझा रहता है। हाँ, सम्पन्न वर्ग शोक का दिखावा अवश्य करता है। वह इसे मना सकता है। वह इसे एक अधिकार की तरह लेता है।
भाषा-अध्ययन
1. निम्नांकित शब्द-समूहों को पढ़ो और समझो-
1 कङ्घा, पतङ्ग, चञ्चल, ठण्डा, सम्बन्ध।
2. कंघा, पतंग, चंचल, ठंडा, संबंध।
3. अक्षुण्ण, सम्मिलित, दुअन्नी, चवन्नी, अन्न।
4. संशय, संसद, संरचना, संवाद, संहार।
5. अँधेरा, बाँट, मुँह, ईंट, महिला, में, मैं।
ध्यान दो कि ङ्, ञ्, ण्, न् और म् ये पाँचों पंचमाक्षर कहलाते हैं। इनके लिखने की विधियाँ तुमने ऊपर देखीं- इसी रूप में या अनुस्वार के रूप में। इन्हें दोनों में से किसी भी तरह से लिखा जा सकता है और दोनों ही शुद्ध हैं। हाँ, एक पंचमाक्षर जब दो बार आए तो अनुस्वार का प्रयोग नहीं होगा, जैसे-अम्मा, अन्न आदि। इसी प्रकार इनके बाद यदि अंतस्थ य, र, ल, व और ऊष्म श, ष, स, ह आदि हों तो अनुस्वार का प्रयोग होगा, परंतु उसका उच्चरण पंचम वर्णों में से किसी भी एक वर्ण की भाँति हो सकता है, जैसे- संशय, संरचना में ‘न्’ संवाद में ‘म्’ और संहार में ‘ङ’ आदि।
(‘) यह चिह्न है अनुस्वार का और (ँ) यह चिह्न है अनुनासिक का। इन्हें क्रमशः बिन्दु और चंद्र-बिन्दु भी कहते हैं। दोनों के प्रयोग और उच्चारण में अंतर है। अनुस्वार का प्रयोग व्यंजन के साथ होता है, अनुनासिक का स्वर के साथ।
उत्तर: छात्र-छात्री स्वयं करें।
2. निम्नलिखित शब्दों के पर्याय लिखिए-
पर्याय
ईमान – सच्चाई
अंदाजा – अनुमान
गम – दुख
जमीन – भूमि
बरकत – वृद्धि
बदन – शरीर
बेचैनी – व्याकुलता
दर्जा – स्तर
जमाना – संसार
3. निम्नलिखित उदाहरण के अनुसार पाठ में आए शब्द-युग्मों को छाँटकर लिखिए-
उदाहरण : बेटा-बेटी
उत्तर: फफक – फफककर
ईमान – धर्म
छन्नी – ककना
दुअन्नी – चवन्नी
आते – जाते
4. पाठ के संदर्भ के अनुसार निम्नलिखित वाक्यांशों की व्याख्या कीजिए-
बंद दरवाजे खोल देना, निर्वाह करना, भूख से बिलबिलाना, कोई चारा न होना, शोक से द्रवित हो जाना।
उत्तर:
बंद दरवाजे खोल देना : उन्नति का बंद रास्ता खुल जाता ।
निर्वाह करना : परिवार का भरण-पोषण करना
भूख से बिलबिलाना : भूख से व्याकुल होकर रोना
कोई चारा न होना : कोई अन्य उपाय न बच रहना
शोक से द्रवित हो जाना : दूसरों का दुख देख भावाकुल हो उठना।
5. निम्नलिखित शब्द-युग्मों और शब्द-समूहों का अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
1. छन्नी- ककना, अढ़ाई-मास, पड़ोस-पास, दुअन्नी-चवन्नी, मुँह-अँधेर, झाड़ना-फूँकना।
उत्तर: छन्नी ककना : इलाज में उस गरीब स्त्री का छन्नी- ककना तक बिक गया।
दुअन्नी-चवन्नी : भिखारी को भीख में दुअन्नी- चवन्नी ही मिल पाती है।
अढ़ाई-मास : वह स्त्री अढ़ाई मास तक बीमार रही।
पास-पड़ोस : पास-पड़ोस में रहने वालों की मदद करो।
झाड़ना-फूँकना : गाँवों में इलाज के नाम पर झाड़ना-फूँकना चलता है।
2. फफक-फफककर, बिलख-बिलखकर, तड़प-तड़पकर, लिपट-लिपटकर।
उत्तर: फफक-फफककर : पुत्र के मरते ही वह फफक-फफककर रोने लगी।
बिलख-बिलखकर : मुझसे उसका बिलख-बिलखकर रोना सहन नहीं होता।
तड़प-तड़पकर : गोलियों से लोग तड़प-तड़पकर मरे।
लिपट लिपटकर : वह मुझसे लिपट लिपटकर गले मिली।
6. निम्नलिखित वाक्य संरचनाओं को ध्यान पढ़िए और इस प्रकार के कुछ और वाक्य बनाइए-
(अ) 1. लड़के सुबह उठते ही भूख से बिलबिलाने लगे।
उत्तर: बच्चे सुबह उठते ही जोर से चिल्लाने लगे।
2. उसके लिए तो बजाज की दुकान से कपड़ा लाना ही होगा।
उत्तर: मेरे लिए हलवाई की दुकान से मिठाई लानी ही होगी।
3. चाहे उसके लिए माँ के हाथों के छन्नी-ककना ही क्यों न बिक जाएँ।
उत्तर: चाहे तुम्हारे लिए मेरे हाथ की अंगूठी ही क्यों न बिक जाए।
(ब) 1. अरे जैसी नीयत होती है, अल्ला भी वैसी ही बरकत देता है।
उत्तर: अरे, जैसा मन होता है तन भी वैसा ही हो जाता है।
2. भगवाना जो एक दफे चुप हुआ तो फिर न बोला।
उत्तर: मरीज जो एक दफा सोया तो फिर उठ न सका।
योग्यता विस्तार
1. ‘व्यक्ति की पहचान उसकी पोशाक से होती है।’ इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा कीजिए।
उत्तर: छात्र-छात्री स्वयं करें।
2. यदि आपने भगवाना की माँ जैसी किसी दुखिया को देखा है तो उसकी कहानी लिखिए।
उत्तर: छात्र-छात्री स्वयं करें।
3. पता कीजिए कि कौन-से साँप विषैले होते हैं। उनके चित्र एकत्र कीजिए और भित्ति पत्रिका में लगाइए।
उत्तर: छात्र-छात्री स्वयं करें।
परीक्षा उपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
(क) लघुत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. परचून की दुकान पर बैठे लाला ने बूढ़ी स्त्री के बारे में क्या कहा?
उत्तर: परचून की दुकान पर बैठे लाला जी ने कहा, “अरे भाई, उनके लिए मरे-जिए का कोई मतलब न हो, पर दूसरे के धर्म-ईमान का तो ख्याल करना चाहिए। जवान बेटे के मरने पर तेरह दिन का सूतक होता है और वह यहाँ सड़क पर बाजार में आकर खरबूजे बेचने बैठ गई है। हजार आदमी आते-जाते हैं। कोई क्या जानता है कि इसके घर में सूतक है। कोई इसके खरबूजे खा ले तो उसका ईमान-धर्म कैसे रहेगा? क्या अँधेर है।”
प्रश्न 2. आपके विचार में बाजार के लोगों का खरबूजे बेचने वाली को घृणा की दृष्टि से देखना कहाँ तक उचित था?
उत्तर: हमारी दृष्टि से बाजार के लोगों का खरबूजे बेचने वाली को घृणा की नजर से देखना अनुचित था। यह उनकी हृदयहीनता और निर्लज्जता का ही रूप था। एक निर्धन माँ का बेटे की मृत्यु के दूसरे ही दिन बाजार में बैठना उसकी विवशता का सूचक है। उससे सहानुभूति रखने के स्थान पर घृणा करना पहले दरजे की हृदयहीनता है।
प्रश्न 3. ‘जिन्दा आदमी नंगा भी रह सकता है, परन्तु मुर्दे को नंगा कैसे विदा किया जाए?’ इस कथन में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: यह समाज की उस दशा पर व्यंग्य है, जहाँ गरीब का कफन भी बड़ी मुश्किल से नसीब होता है। घर की स्त्रियों के हाथ के कड़े तक इसके लिए बेचने पड़ते हैं।
प्रश्न 4. व्याख्या कीजिए :
शोक करने, गम मनाने के लिए भी सहूलियत चाहिए।
उत्तर: व्याख्या: अपने किसी प्रियजन के मरने पर परिवार के लोग माता, पिता, भाई आदि शोक प्रकट करते हैं; पर शोक के कारण पर्याप्त समय तक केवल वे ही निष्क्रिय बैठ सकते हैं, जिनको उसकी सहूलियत हो, जिनके पास उतने समय तक के लिए आर्थिक साधन हों; किन्तु जिसके पास सुबह के लिए भी भोजन नहीं, वह दुख कहाँ मना सकता है? कैसे मना सकता है? उसे तो बच्चों के पेट की ज्वाला को शान्त करने के लिए कुछ करना ही पड़ता है। धनी बुढ़िया के समान दुख मनाने का अधिकार गरीब को नहीं।
प्रश्न 5. आशय स्पष्ट कीजिए :
जब मन को सूझ का रास्ता नहीं मिलता तो बेचैनी से कदम तेज हो जाते हैं।
उत्तर: आशय यह है कि जब व्यक्ति का मन कुछ सोचने-समझने में असमर्थ हो जाता है तो वह अशान्त होकर तेजी से कदम रखता हुआ आगे बढ़ जाता है। लेखक भी जब भगवाना की माँ के दुख को जानकर उससे बात करने में असमर्थ हुआ तो उसका मन बेचैन हो गया और वह तेज कदमों से अपने घर की ओर चल पड़ा।
प्रश्न 6. ‘दुख का अधिकार’ कहानी का उद्देश्य क्या है?
उत्तर: इस कहानी का उद्देश्य समाज के इस कटु यथार्थ को व्यक्त करना है कि गरीबों को दुख मनाने का भी अधिकार नहीं है।
दूसरे, कहानी के कथ्य के द्वारा लेखक पाठक को यह सोचने के लिए विवश कर देता है कि एक निर्धन और पुत्र वियोगिनी के प्रति घृणा भाव रखना क्या समाज की हीनता और पतन की पराकाष्ठा नहीं।
प्रश्न 7. भाव स्पष्ट कीजिए :
कल जिसका बेटा चल बसा, आज वह बाजार में सौदा बेचने चली है। हाय रे पत्थर दिल!
उत्तर: भाव यह है कि पुत्र की मृत्यु के दूसरे दिन वृद्धा को अत्यन्त गरीबी के कारण सौदा बेचने के लिए दिल को कड़ा करके विवशता से बैठना पड़ा, अन्यथा वह कभी न बैठती।
प्रश्न 8. बुढ़िया के परिवार में कौन-कौन थे और उनका गुजारा कैसे चलता था?
उत्तर: बुढ़िया के परिवार में उसका बेटा भगवाना, उसकी बहू और पोता-पोती थे। लड़का शहर के पास डेढ़ बीघा जमीन में कछियारी करके परिवार का गुजारा चलाता था । वह कभी खरबूजों की डलिया बाजार में पहुँचा देता था और स्वयं सौदे के पास बैठ जाता। कभी उसकी माँ बैठ जाती। इसी प्रकार परिवार का गुजारा चलता था।
प्रश्न 9. बुढ़िया के रोने का कारण क्या था?
उत्तर: बुढ़िया के रोने का कारण यह था कि उसका अकेला बेटा साँप के काटने से मर गया था। घर में खाने को कुछ भी नहीं था। बच्चे भूख से बिलबिला रहे थे, बहू का बदन बुखार से तवे की तरह तप रहा था। घर में पैसे नहीं थे, कोई उधार देने को तैयार न था।
प्रश्न 10. बुढ़िया का दुख और संभ्रांत महिला का दुख, दोनों में से किसके दुख ने लेखक को अधिक द्रवित किया और क्यों?
उत्तर: बुढ़िया और संभ्रात महिला दोनों को बेटे के मरने का दुख था। लेखक ने दोनों के दुख को देखा था। लेखक को बुढ़िया के दुख ने अधिक द्रवित किया। इसका कारण यह था कि बुढ़िया का दुख वास्तविक था, जबकि संभ्रांत महिला दुख का दिखावा कर रही थी।
प्रश्न 11. खास परिस्थितियों में हमारी पोशाक हमें झुकने से रोकती है। क्यों?
अथवा
पोशाक हमारे लिए कब बंधन और अड़चन बन जाती है?
उत्तर: खास परिस्थितियों में हमारी पोशाक हमें नीचे झुकने से इसलिए रोकती है, क्योंकि हम झूठे अहं के वशीभूत हो जाते हैं। हमें यह लगने लगता है कि इससे लोग हमारा मजाक उड़ाएँगे। अच्छी पोशाक पहनकर हम चाहकर भी नीचे झुक नहीं पाते। अब यह पोशाक हमारे लिए बंधन और अड़चन बन जाती है।
प्रश्न 12. भगवाना को साँप के डँस लेने पर बुढ़िया के घर की क्या दशा हो गई?
उत्तर: भगवाना को खेत की मेंड़ पर पड़े साँप ने काट लिया और काफी उपाय करने के बावजूद भगवाना चल बसा।
भगवाना ही परिवार का एकमात्र कमाऊ सदस्य था। घर में जो कुछ था वह झाड़-फूँक के इलाज में तथा उसके अंतिम संस्कार में खर्च हो गया। अब घर की हालत खराब हो गई । घर में खाने तक को कुछ न था। बच्चे भूख से बिलबिलाने लगे।
प्रश्न 13. सूतक क्या होता है? उसका दूसरों पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर: ‘सूतक’ को अशुद्धि का काल माना जाता है। परिवार में किसी बच्चे के जन्म होने या किसी के मरने पर कुछ निश्चित समय तक परिवार के लोगों को न छूना, सूतक का प्रभाव माना जाता है। इसका दूसरों पर गलत प्रभाव पड़ना माना जाता है। लोग इस काल में बचकर रहते हैं।
प्रश्न 14. ‘दुख मनाने का भी एक अधिकार होता है।’ – टिप्पणी कीजिए।
उत्तर: हर दुखी व्यक्ति दुख मनाना तो चाहता है, पर दुख मनाने का भी एक अधिकार होता है। हर व्यक्ति को दुख प्रकट करने का न तो अवसर मिलता है, न उसे इसका अधिकार दिया जाता है। वर्तमान समाज धनी-सम्पन्न व्यक्ति ही दुख प्रकट करते हैं या दुख प्रकट करने का ड्रामा करते हैं। गरीब व्यक्ति अपने मन के दुख को मन में ही रखकर रह जाता है। वह उसे प्रकट तक नहीं कर पाता है।
प्रश्न 15. बाजार में बैठी बुढ़िया खरबूजे बेचकर दूसरों के धर्म-ईमान को हानि कैसे पहुँचा रही थी?
उत्तर: बाजार में बैठी बुढ़िया के घर में बेटे की मौत हो गई थी। उसके यहाँ सूतक था। इस काल को अशुद्ध माना जाता है। इस काल में कोई भी काम करना मना है। बुढ़िया सूतक के काल में खरबूजे बेचने बाजार में आ गई। यदि किसी को पता न चले और वह उससे खरबूजे खरीदकर खा ले, तो उसका धर्म-ईमान समाप्त होने की संभावना थी। इस प्रकार वह उनके धर्म-ईमान को हानि पहुँचा रही थी।
प्रश्न 16. लड़के की मृत्यु के दूसरे ही दिन बुढ़िया का खरबूजे बेचना कहाँ तक उचित था? तर्क सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: हमारी दृष्टि मैं दूसरे दिन ही बुढ़िया का खरबूजे बेचना उचित ही था। जब उसके घर में बच्चों को खिलाने के लिए कुछ नहीं था, तब आमदनी का कोई उपाय करने को अनुचित नहीं कहा जा सकता। किसी ने उसकी मदद नहीं की, तब वह और क्या करती। हमें तो उसकी हिम्मत की दाद देनी चाहिए।
प्रश्न 17. खरबूजे बेचने वाली स्त्री से कोई खरबूजे क्यों नहीं खरीद रहा था?
उत्तर: खरबूजे बेचने वाली स्त्री से कोई खरबूजे इसलिए नहीं खरीद रहा था, क्योंकि उसके घर में सूतक था। इस काल को अपवित्र माना जाता है। सूतक वाले व्यक्ति के हाथ की छुई हुई चीज को भी अपवित्र माना जाता है। यही कारण था कि कोई उससे खरबूजे नहीं खरीद रहा था।
प्रश्न 18. बुढ़िया और संभ्रांत महिला के पुत्र-शोक में लेखक क्या अंतर बताना चाहता है?
उत्तर: बुढ़िया का पुत्र-शोक वास्तविक था। पुत्र की मृत्यु ने उसे बुरी तरह से तोड़ दिया था, पर वह अपने दुख को सबके सामने प्रकट नहीं कर सकती थी। यह उसकी विवशता थी।
संभ्रांत महिला का पुत्र शोक दिखावटी अधिक था। वह शोक का प्रदर्शन कर रही थी। इससे उसे दूसरों की सहानुभूति अधिक मिल रही थी। लेखक इसके द्वारा गरीब और अमीर के दुख का अंतर दर्शाना चाहता है।
प्रश्न 19. संभ्रांत महिला और खरबूजे बेचने वाली स्त्री का दुख समान होते हुए भी असमान क्यों है?
उत्तर: संभ्रांत महिला और खरबूजे बेचने वाली स्त्री दोनों को पुत्र-वियोग का दुख था। इस समान दुख के बावजूद दोनों के दुख का प्रकटीकरण का ढंग असमान था। संभ्रांत महिला अपने दुख का अतिशयोक्तिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन कर रही थी जबकि खरबूजे बेचने वाली स्त्री बच्चों की भूख की समस्या से भी दो-चार हो रही थी। उसे दुख का दिखावा करना न आता था। वह परिवार की तात्कालिक जरूरतों को पूरा करने के प्रयास में जुटी थी।
प्रश्न 20. ‘दुख का अधिकार’ की सार्थकता स्पष्ट करते हुए निचले वर्ग की विषम परिस्थितियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर: ‘दुख का अधिकार’ शीर्षक पूर्णतः सार्थक है, क्योंकि दुख मनाने का अधिकार भी सभी को नहीं है। इसके लिए सहूलियत चाहिए, जो निर्धन वर्ग के पास नहीं है। समाज का निचला वर्ग विषम परिस्थितियों में जीवनयापन करता है। उसे पेट की आग बुझाने के लिए मन की भावनाओं तक को मारना पड़ता है। निचला वर्ग दैनिक जीवन की आवश्यकता को पूरा करने में जुटा रहता है। उसे अन्य बातों के लिए अवकाश ही नहीं मिलता।
प्रश्न 21. परचून की दुकान पर बैठे लाला ने बूढ़ी स्त्री के बारे में क्या कहा?
उत्तर: परचून की दुकान पर बैठे लाला ने बूढ़ी स्त्री के बारे में कहा- “अरे भाई, उनके लिए मरे-जिए का कोई मतलब न हो, पर दूसरे के धर्म-ईमान का तो ख्याल रखना चाहिए। जवान बेटे के मरने पर तेरह दिन का सूतक होता है और वह वहाँ सड़क पर बाजार में आकर खरबूजे बेचने बैठ गई है। हजार आदमी आते-जाते हैं। कोई क्या जानता है कि इसके घर में सूतक है। कोई इसके खरबूजे खा ले तो उसका ईमान-धर्म कैसे रहेगा? क्या अंधेर है?”
प्रश्न 22. बुढ़िया को बाजार में खरबूजे बेचने की क्या विवशता थी? तब वह किस अवस्था में थी?
उत्तर: बुढ़िया का जवान बेटा एक दिन पहले ही मर गया था। घर में जो कुछ जमा-पूँजी थी, वह उसके क्रिया-कर्म में समाप्त हो गई थी। घर में खाने को कुछ नहीं था। लड़के भूख से बिलबिला रहे थे। बहू बुखार से तप रही थी। अतः वह कुछ कमाने की दृष्टि से विवश होकर बाजार में खरबूजे बेचने चली आई।
बुढ़िया सिर पर चादर लपेटे, सिर को घुटनों में टिकाए हुए, फफक-फफक कर रो रही थी।
प्रश्न 23. मनुष्य की पोशाकें क्या काम करती हैं?
उत्तर: मनुष्य की पोशाकें उन्हें विभिन्न श्रेणियों में बाँट देती है। पोशाक से ही व्यक्ति का दर्जा निश्चित होता है। प्रायः पोशाक ही समाज में मनुष्य का अधिकार और दर्जा निश्चित करती है। अच्छी पोशाक हमारे लिए अनेक बंद दरवाजे खोल देती है। यह पोशाक कई बार अड़चन भी बन जाती है।
प्रश्न 24. लेखक को पास-पड़ोस की दुकानों से पूछने पर क्या पता चला?
उत्तर: जब लेखक ने पास-पड़ोस की दुकानों से पूछताछ की तब उसे पता चला कि खरबूजा बेचने वाली बुढ़िया का तेईस बरस का जवान लड़का मर गया है। घर में उसकी बहू और पोता-पोती भी हैं। लड़का शहर के पास डेढ़ बीघा भर जमीन पर कछियारी (खेतों में सब्जी-तरकारी बोना) करके परिवार का भरण-पोषण करता था। वही लड़का परसो सुबह मुँह-अँधेरे बेलों में से पके खरबूजे चुन रहा था। गीली मेंड की तरावट में आराम करते एक साँप पर उसका पैर पड़ गया और साँप ने लड़के को डस लिया, जिससे वह मर गया।
(ख) निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. इस कहानी में लेखक ने हमारी किन कुरीतियों और कुसंस्कारों की ओर संकेत किया है? (निबंधात्मक प्रश्न)
उत्तर: लेखक ने इस कहानी में समाज को कुछ कुरीतियों की ओर संकेत किया है। जैसे यदि किसी के यहाँ मृत्यु का सूतक (पातक) हो तो उसे काम नहीं करना चाहिए और उसके हाथ से कोई चीज भी खरीदनी नहीं चाहिए क्योंकि उसके स्पर्श से वस्तु दूषित हो जाती है और खाने वाले का ईमान-धर्म नष्ट हो जाता है।
लेखक ने समाज के इस कुसंस्कार का भी संकेत किया है. कि झाड़-फूँक करने वाले ओझा को पूजा के नाम पर बहुत दान-दक्षिणा दे दी जाती है, भले ही घर में कुछ भी शेष न रहे।
इसी प्रकार हाथ के गहने तक बेचकर मुर्दे के लिए कफन खरीदने को भी लेखक ऐसी ही कुरीति मानता है।
वैसे गरीब-विवश लोगों के प्रति घृणा की भावना और उन्हें नीच या कमीन कहना स्वयं में एक बहुत बड़ा कुसंस्कार है। इसका संकेत भी लेखक ने दिया है।
प्रश्न 2. भगवाना की माँ को दुःख का अन्दाजा लगाने के लिए लेखक ने अपने पड़ोस की पुत्र वियोगिनी का उल्लेख किसलिए किया है?
(निबंधात्मक प्रश्न)
उत्तर: भगवाना के मरने पर उसकी गरीब माँ को अपनी बीमार पुत्र वधू तथा पोता-पोती के भोजन के लिए पुत्र की मृत्यु के दूसरे दिन ही विवशता के कारण खरबूजे लेकर बैठना पड़ता। वह पुत्र शोक भी मना न सकी। मानो गरीब को दुख मनाने का भी अधिकार नहीं। इसी कटु यथार्थ को व्यक्त करने के लिए ही लेखक ने अपने पड़ोस की पुत्र वियोगिनी का उल्लेख किया है। क्योंकि वह पुत्र के वियोग में ढाई महीने तक बिस्तर से उठ न सकी थी और डॉक्टर दिन-रात उसकी सेवा में उपस्थित रहते थे।
गरीब पुत्र वियोग का दुख तो झेल सकता है, किन्तु पेट की आग की पीड़ा को झेलना उसके लिए कठिन होता है। इसी से भगवाना की माँ के दुहरे दुख का अंदाजा लगाया जा सकता है।
प्रश्न 3. इस कहानी के किन स्थलों से भगवाना के परिवार की निर्धनता का बोध होता है?
(निबंधात्मक प्रश्न)
उत्तर: भगवाना के परिवार की निर्धनता का बोध कराने के लिए ये स्थल द्रष्टव्य हैं-
(क) घर में जो कुछ आटा और अनाज था, दान-दक्षिणा में उठ गया।
(ख) …….चाहे उसके लिए माँ के हाथों के छन्नी- ककना ही क्यों न बिक जाएँ।
(ग) घर में जो कुछ चूनी भूसी थी, उसे विदा करने में चली गई।
(घ) लड़के सुबह उठते ही भूख से बिलबिलाने लगे।
(ङ) बेटे के बिना बुढ़िया को दुअन्नी चवन्नी भी कौन उधार देता।
प्रश्न 4. ‘दुख का अधिकार’ शीर्षक के औचित्य पर प्रकाश डालिए। इस शीर्षक के अतिरिक्त दो अन्य उपयुक्त शीर्षक सुझाइए।
(निबंधात्मक प्रश्न)
उत्तर: प्रस्तुत कहानी का शीर्षक है-‘दुख का अधिकार’। यह एक संवेदनात्मक कहानी है, जिसमें लेखक ने दिखाया है कि एक निर्धन परिवार का एकमात्र कमाने वाला बेटा (भगवाना) साँप के काटने से मर जाता है। घर में गरीबी इतनी है कि भगवाना की माँ को पोते-पोती और बहू के पेट की ज्वाला को शान्त करने के लिए पुत्र की मृत्यु के दूसरे ही दिन बाजार में खरबूजे बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है। वह फफक-फफक कर रोती भी है और ग्राहक की प्रतीक्षा भी करती है। बाजार के धनी-मानी उससे घृणा करते हैं, उसे निर्लज्ज और कमीन तक कह देते हैं। जब लेखक उसकी तुलना अपने पड़ोस की पुत्र वियोगिनी धनी महिला से करता है, जो मृत पुत्र के वियोग से ढाई महीने तक चारपाई से नहीं उठी थी और डॉक्टर दिन-रात जिसकी सेवा में रहते थे।
दोनों की तुलना करते हुए लेखक सोच रहा था-शोक करने, गम मनाने के लिए भी सहूलियत चाहिए और दुखी होने का भी एक अधिकार होता है। इससे निष्कर्ष निकला कि गरीब बेचारों को दुःख मनाने का भी अधिकार नहीं।
इस दृष्टि से कहानी का शीर्षक ‘दुख का अधिकार’ सर्वथा उचित और सार्थक है।
इसके अन्य शीर्षक हो सकते हैं- (1) भगवाना की माँ, (2) गरीब का दर्द।
प्रश्न 5. ‘इस कहानी में धनी और निर्धन वर्गों का अन्तर बड़े मार्मिक रूप से उभारा है।’ इस कथन पर प्रकाश डालिए।
(निबंधात्मक प्रश्न)
उत्तर: धनी और निर्धन वर्ग की जीवन-शैली में अन्तर होता है। यह कहानी में भगवाना की माँ के पुत्र-शोक और धनी महिला के पुत्र-शोक की स्थिति में अन्तर के द्वारा दिखाया है।
धनी परिवार में यदि कभी शोक की स्थिति आती है, माँ को पुत्र वियोग सहना पड़ता है तो वह ढाई-ढाई मास तक चारपाई से उठ नहीं पाती। रह-रहकर उसे मूर्छा आती है। आँसू उसके थमते नहीं। डॉक्टर हरदम सिरहाने बैठे रहते हैं। सिर पर बर्फ की पट्टी रखी जाती हैं।
दूसरी ओर निर्धन वृद्धा (भगवाना की माँ) है। पुत्र की मृत्यु के अनन्तर उसके सामने परिवारजनों के पेट की ज्वाला शान्त करने का प्रश्न है। फलतः वह शोक को मन में दबाये दूसरे ही दिन खरबूजे की टोकरी लेकर उन्हें बेचने बाजार में बैठ जाती है। पुत्र की याद आने पर घुटनों के बीच मुँह रखकर फफक-फफक कर रोती है। रुदन का शब्द बाहर नहीं आता। घर में बहू ज्वर से तप रही हैं, पर उसके लिए कोई हकीम या वैद्य भी उपलब्ध नहीं।
इन बातों के अतिरिक्त दोनों की जीवन-शैली में यह भी अन्तर बताया गया है कि धनी आधुनिक ढंग के स्वच्छ वस्त्र पहनते हैं, किन्तु निर्धन मैले-फटे वस्त्रों में जीवन बिताते हैं । कभी-कभी तो उन्हें नंगा भी रहना पड़ता है।
इस प्रकार धनी निर्धन की जीवन-शैली का अन्तर यहाँ मार्मिक रूप से उभरा है।
प्रश्न 6. ‘फुटपाथ पर उसके समीप बैठ सकने में मेरी पोशाक ही व्यवधान बन खड़ी हो गई। लेखक ने यह किसके संबंध में कहा है? वह उसके पास क्यों बैठना चाहता था? पोशाक उसके पास बैठने में व्यवधान क्यों बन गई थी?
(निबंधात्मक प्रश्न)
उत्तर: लेखक ने राह चलते हुए देखा कि एक वृद्धा बिक्री के लिए कुछ खरबूजे डलिया में और कुछ जमीन पर डाले कपड़े मुँह छिपाये सिर को घुटनों पर रखकर फफक-फफक कर रो रही थी। उसी वृद्धा के रोने को देखकर लेखक के मन में एक करुण वेदना जगी, वह उसके रोने का कारण जानना चाहता था, इसके लिए वह उसके पास बैठना चाहता था, पर लेखक की पोशाक ही उस वृद्ध के पास बैठने में व्यवधान बन गई।
पोशाक के वृद्धा के पास बैठने में व्यवधान बनने का कारण यह था कि लेखक आधुनिक ढंग से स्वच्छ वस्त्र पहने था, वह कुलीन था और रोने वाली वृद्धा गरीब थी। वह मैले कपड़े पहनें थी। जब कुलीन और सुन्दर पहनावा पहने लोग किसी गरीब से सहानुभूति प्रकट करना चाहते हैं तो उनका पहनावा उनमें बड़प्पन का अभिमान जगा देता और वे छोटे लोगों से बात करने में अपमान और लज्जा का अनुभव करने लगते हैं। लेखक के साथ भी यही हुआ।
प्रश्न 7. पुत्र की मृत्यु के दूसरे दिन खरबूजे बेचने के लिए बैठी वृद्धा (भगवाना की माँ) के सम्बन्ध में लोग किस प्रकार का आक्षेप कर रहे थे? इससे उनकी किस मनोवृत्ति का पता चलता है?
(निबंधात्मक प्रश्न)
उत्तर: वृद्धा को खरबूजे बेचने के लिए बैठी देख एक व्यक्ति ने आक्षेप किया- “क्या जमाना है? जवान लड़के को मरे हुए पूरा दिन भी नहीं हुआ और यह बेहया दुकान लगाए बैठी है।’ दूसरे ने आक्षेप किया-‘अरे! जैसी जिसकी नियत होती है, अल्ला वैसी ही बरकत देता है।’ तीसरा बोला-‘ये कमीने रोटी के टुकड़े पर जान देते हैं। इनके लिए बेटा-बेटी, खसम-लुगाई, धर्म-ईमान सब रोटी का टुकड़ा है।’ एक लाला ने कहा- ‘जवान बेटे के मरने पर तेरह दिन का सूतक होता है। कोई इसके खरबूजे खा लेगा तो उसका ईमान-धर्म कैसे रहेगा।’
पुत्र शोक से संतृप्त और गरीबी की मजबूरी में फँसी उस वृद्धा के सम्बन्ध में कहे गए उक्त कथनों से कहने वालों की दूषित मनोवृत्ति का पता चलता है। वे पुरानी रूढ़ियों और कुसंस्कारों से ऐसे ग्रस्त थे कि उनसे उनमें हृदयहीनता और क्रूरता का भाव समाया हुआ है। दूसरों की पीड़ा का दुख-दर्द का अनुभव करने की शक्ति उनमें रह ही नहीं गई थी। पराई पीड़ा का उपहास करना उनके मन की सड़ाँध को प्रकट कर रहा था।
प्रश्न 8. ‘दुख का अधिकार’ कहानी के आधार पर यशपाल की भाषा-शैली पर विचार प्रकट करो।
(निबंधात्मक प्रश्न)
उत्तर: यशपाल हिन्दी के प्रगतिशील यथार्थवादी लेखक हैं। उनकी भाषा बोलचाल की व्यावहारिक भाषा है। प्रस्तुत कहानी की भाषा सहज, सरल, सरस और रोचक है। उसमें तत्सम शब्दों का, उर्दू के सरल शब्दों का प्रयोग अधिक है।
जहाँ एक ओर अधिकार, अनुभूति, व्यवधान, घृणा, निर्वाह दक्षिण आदि तत्सम शब्द हैं, वहीं दूसरी ओर पोशाक, दर्जा, तख्त, जमाना, प्रयोग बेहया, कमीने, खसम, ईमान आदि उर्दू शब्दों का भरपूर हुआ है। हाँ, अंग्रेजी का एक ही शब्द है- फुटपाथ। इनसे भाषा जन-जीवन के अधिक समीप आ गई है।
शैली में रोचकता के साथ ही व्यंग्यात्मकता भी है। जैसे-पोशाक ही व्यवधान बनकर खड़ी रह गई। ‘जिन्दा आदमी तो नंगा भी रह सकता है, परन्तु मुर्दे को नंगा कैसे विदा किया जाए।’
फफक-फफककर रोना, अँधेरा होना, उठ जाना, विदा करना, पत्थर दिल होना जैसे मुहावरों के प्रयोग से भाषा सुन्दर और पुष्ट बन गई है।
प्रश्न 9. ‘दुख का अधिकार’ पाठ के आधार पर बुढ़िया के रोने पर लोगों ने क्या बातें की?
उत्तर: बुढ़िया का जवान बेटा मर गया था। वह दुखी थी अतः रो रही थी। उसे घर की बुरी आर्थिक दशा को देखकर बाजार में खरबूजे बेचने के लिए आना पड़ा था। बुढ़िया कपड़े से मुँह छिपाए सिर को घुटनों पर रखे फफक-फफक कर रो रही थी। बाजार में लोग उससे सहानुभूति दिखाने की बजाय उसके रोने पर तरह-तरह की व्यंग्यपूर्ण बातें कर रहे थे।
एक आदमी घृणापूर्वक कह रहा था – “क्या जमाना है। जवान लड़के को मरे पूरा दिन नहीं बीता और यह बेहया दुकान लगा के बैठी है।”
दूसरे साहब ने अपनी दाढ़ी खुजाते हुए कहा, “अरे, जैसी नीयत होती है, अल्ला भी वैसी ही बरकत देता है। “
एक अन्य व्यक्ति बोला-“अरे, इन लोगों का क्या है? ये कमीने लोग रोटी के टुकड़े पर जान देते हैं। इनके लिए बेटा-बेटी, खसम-लुगाई, धर्म-ईमान सब रोटी का टुकड़ा है।” परचून की दुकान पर बैठे लालाजी ने कहा, “अरे भाई, उनके लिए मरे-जिए का कोई मतलब न हो, पर दूसरे के धर्म-ईमान का तो ख्याल करना चाहिए। जवान बेटे के मरने पर तेरह दिन का सूतक होता है और वह यहाँ सड़क बाजार में आकर खरबूजे बेचने बैठ गई है। कोई क्या जानता है कि इसके घर में सूतक है। कोई इसके खरबूजे खा ले तो उसका ईमान-धर्म कैसे रहेगा? क्या अँधेर है!”
प्रश्न 10. पुत्र वियोगिनी के दुःख का अंदाजा लगाने के लिए लेखक ने क्या घंटना बताई?
उत्तर: पुत्र-वियोगिनी के दुःख का अंदाजा लगाने के लिए लेखक ने पिछले साल की एक घटना का उल्लेख किया। पिछले साल एक संभ्रांत महिला का पुत्र मर गया था। तब वह महिला शोकावस्था में ढाई महीने तक पलंग से उठ नहीं पाई थी (जबकि बुढ़िया अगले दिन ही खरबूजे बेचने बाजार चली आई थी। उस महिला को 15-15 मिनट बाद पुत्र-वियोग के कारण बेहोशी हो जाती थी। बेहोशी की अवस्था में उसकी आँखों से आँसू बहते रहते थे, रुकते न थे। उसके सिराहने दो-दो डॉक्टर बैठे रहते थे। हरदम उसके सिर पर बर्फ रखी जाती थी। पूरे शहर के लोगों के मन उसके दुःख से द्रवित हो उठते थे।
लेखक के अनुसार धनी लोगों का शोक मनाने का ढंग भी गरीबों से सर्वथा भिन्न होता है।
प्रश्न 11. ‘दुःख का अधिकार’ कहानी क्या बताती है?
उत्तर: ‘दुःख का अधिकार’ कहानी देश में फैले अंधविश्वासों, ऊँच-नीचे के भेदभाव, वर्ग-वैषम्य की प्रवृत्ति को बेनकाब करती है। यह कहानी बताती है कि दुःख की अनुभूति सभी को समान रूप से होती है। हमें गरीबों के दुःख को भी पूरी शिद्दत के साथ अनुभव करना चाहिए, उनको उपेक्षा की दृष्टि से नहीं देखना चाहिए।
यह कहानी धनी – सम्पन्न लोगों की अमानवीयता और गरीबों की विवशता को पूरी गहराई से उजागर करती है। यह सही है कि दुःख सभी को तोड़ता है, दुःख में शोक मनाना हर कोई चाहता है और यह उसका अधिकार भी है। पर हम दुःख के क्षण से सामना होने पर अवश हो जाते हैं। इस देश की विडंबना यह है कि यहाँ ऐसे अभागे लोग भी हैं जिन्हें दुःख को मनाने तक का अधिकार नहीं है। धनी-सम्पन्न वर्ग उनके दुःख का मजाक उड़ाता है और इसमें सुख की अनुभूति करता है।
प्रश्न 12. जब बुढ़िया बाजार में खरबूजे बेचने आई तब वहाँ की दुकानों के तख्तों पर बैठे लोग उस पर क्या व्यंग्यात्मक टिप्पणी कर रहे थे?
उत्तर: विवशतावश दुःखी बुढ़िया बाजार में खरबूजे बेचने आई। उसे देखकर दुकानों के तख्तों पर बैठे लोग घृणा से उस बूढ़ी स्त्री पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी करने लगे।
• एक आदमी ने घृणा से थूकते हुए कहा-“क्या जमाना है ! जवान लड़के को मरे पूरा दिन नहीं बीता और यह बेहया दुकान लगा के बैठी है।”
• दूसरा व्यक्ति अपनी दाढ़ी खुजाते हुए बोला- “अरे जैसी नीयत होती है, अल्ला भी वैसी ही बरकत देता है।”
• तीसरे आदमी ने दियासलाई की तीली से कान खुजाते हुए कहा – “अरे, इन लोगों का क्या है? ये कमीने लोग रोटी के लिए जान देते हैं। इनके लिए बेटा-बेटी, खसम-लुगाई, धर्म-ईमान सब रोटी का टुकड़ा है।”
• परचून की दुकान पर बैठे लाला ने कहा-“अरे भाई, इनके लिए मरे-जिए का कोई मतलब न हो, पर दूसरे के ध र्म-ईमान का तो ख्याल करना चाहिए। जवान बेटे के मरने पर तेरह दिन का सूतक होता है और यह यहाँ सड़क पर खरबूजे बेचने बैठ गई है। हजारों आदमी आते-जाते हैं। कोई क्या जानता है कि इसके घर में सूतक है। कोई इसके खरबूजे खा ले तो उसका ईमान-धर्म कैसे रहेगा? क्या अँधेर है?”