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NCERT Class 12 History Chapter 11 महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन
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महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन: सविनय अवज्ञा और उससे आगे
Chapter: 11
भारतीय इतिहास के कुछ विषय: भाग – 3
चर्चा कीजिए
1. 1915 से पूर्व भारत में हुए राष्ट्रीय आंदोलनों के बारे में और जानकारी इकट्ठा कीजिए व पता लगाइए कि क्या महात्मा गाँधी की टिप्पणियाँ न्यायसंगत हैं।
उत्तर: 1915 से पूर्व भारत में हुए राष्ट्रीय आंदोलनः
(i) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना (1885): राजनीतिक चेतना की शुरुआत हुई।
(ii) स्वदेशी आंदोलन (1905): बंगाल विभाजन के खिलाफ में विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार।
(iii) क्रांतिकारी गतिविधियों: जैसे चापेकर बंधु भगिनी निवेदिता आदि का योगदान।
गाँधीजी ने पूर्व आंदोलनों से प्रेरणा ली और उन्हें नई दिशा दी अहिंसा, सत्याग्रह, और जन भागीदारी के द्वारा। इसलिए गाँधीजी की टिप्पणियाँ न्यायसंगत हैं।
2. असहयोग क्या था? विभिन्न सामाजिक वर्गों ने आन्दोलन में किन विभिन्न तरीकों से भाग लिया, इसके बारे में पता लगाइये।
उतर: असहयोग आंदोलन 1920 में गाँधी के जी द्वारा शुरूवात किया गया अहिंसक आंदोलन था, जिसमें ब्रिटिश शासन के विरोध सहयोग न करने की अपील की गई, जैसे- विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार, सरकारी नौकरी-शिक्षा छोड़ना और अंग्रेज़ों की अदालतों का बहिष्कार। इस आंदोलन में समाज के विभिन्न वर्गों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। छात्रों ने सरकारी विद्यालय, महाविद्यालय छोड़कर राष्ट्रीय शिक्षण संस्थानों में प्रवेश कर लिया। किसान वर्ग ने कर न देने की मुहिम चलाई और जमींदारों के अत्याचारों का विरोध किया। मजदूरों ने मिलों और फैक्ट्रियों में हड़तालें कीं। स्त्री ये भी पहली बार विशाल संख्या में आंदोलन में शामिल हुई- उन्होंने चरखा चलाया, विदेशी कपड़ों का बहिष्कार किया और जुलूसों में भाग लिया। मध्य वर्ग के लोगों ने वकालत, सरकारी नौकरी और उपाधियाँ छोड़ दीं। कुछ उद्योगपतियों ने भी मिलकर स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा दिया और गाँधीजी का समर्थन किया।
3. स्रोत 5 एवं 6 को पढ़िए। दमित वर्गों के लिए पृथक निर्वाचिका के मुद्दे पर अम्बेडकर और महात्मा गाँधी के बीच काल्पनिक संवाद को लिखिए।
उत्तर: विधार्थी स्वयं करे।
उत्तर दीजिए (लगभग 100 से 150 शब्दों में)
1. महात्मा गाँधी ने खुद को आम लोगों जैसा दिखाने के लिए क्या किया?
उत्तर: महात्मा गाँधी ने खुद को आम लोगों जैसा दिखाने के लिए आम जनता से जुड़ने और उनकी भावना को समझने के लिए अपने जीवन में कई बदलाव लाएं। उन्होंने विदेशी वस्त्रों को छोड़ के खादी पहनना शुरू किया और स्वयं चरखा चलाया। वे महलों एवं बड़ी कोठियों में न रहकर साधारण आश्रमों में रहे और ग्रामीण जीवन को अपनाया। उन्होंने सादा और सरल भोजन खाया, बिना जूते-चप्पल के चले और अंग्रेज़ी के बजाय भारतीय भाषाओं का उपयोग किया। इन कार्यों से वे आम लोगों के बीच ‘महात्मा’ के रूप में प्रतिष्ठित हुए। उनके इस व्यवहार से लोग भावनात्मक रूप से उनसे जुड़ने लगे और उन्हें अपना नेता मानने लगे। गाँधीजी ने यह साबित कर दिया कि एक नेता जनता के बीच रहकर ही उनके दुख-दर्द और समस्याओं को समझना चाहिए।
2. किसान महात्मा गाँधी को किस तरह देखते थे?
उत्तर: किसानों ने महात्मा गाँधी को एक ऐसे नेता के रूप में देखा जो उनके दुख-दर्द, समस्या आदि को समझते थे और उनके अधिकारों के लिए शांतिपूर्ण ढंग से कष्ट करते थे। ब्रिटिश शासन की कठोर नीतियों और जमींदारों के अत्याचारों से परेशान कृषक गाँधीजी की बातों से आशा की किरण देखते थे। उन्हें लगता था कि गाँधीजी उनके लिए न्याय और आज़ादी की लड़ाई लड़ रहे हैं। गाँधीजी की सादगी, सत्याग्रह और अहिंसा की नीति किसानों को बहुत आकर्षित करती थी। किसानों ने उन्हें “राजा के मुकाबले अपना आदमी समझा। चाहे वह चंपारण का नील आंदोलन हो अथवा खेड़ा का कर माफी आंदोलन किसानों ने गाँधीजी का भरपूर समर्थन किया और उन्हें अपना अच्छा तथा सच्चा नेता माना।
3. नमक कानून स्वतंत्रता संघर्ष का महत्त्वपूर्ण मुद्दा क्यों बन गया था?
उत्तर: नमक कानून स्वतंत्रता आंदोलन में एक प्रतीकात्मक और प्रभावशाली मुद्दा बन गया क्योंकि नमक हर भारतीय की रोज़मर्रा की आवश्यकता थी। ब्रिटिश सरकार ने नमक पर कर लगाकर आम लोगों पर अनुचित बोझ डाला था और लोगों को स्वयं अर्थात खुद से नमक बनाने से भी रोका गया था। महात्मा गाँधी ने इस अन्याय के विरुद्ध 1930 में दांडी यात्रा शुरू की, जिसमें उन्होंने नमक बनाकर कानून तोड़ा। इसने आम लोगों को आंदोलन से जोड़ कर रखा, क्योंकि गरीब और अमीर दोनों के जीवन में नमक आवश्यक था। नमक सत्याग्रह ने गाँधीजी की अहिंसा की नीति को जन-जन तक पहुँचाया और स्वतंत्रता आंदोलन को व्यापक जन समर्थन मिला। इसने ब्रिटिश शासन की अन्यायपूर्ण नीतियों को भी उजागर किया।
4. राष्ट्रीय आंदोलन के अध्ययन के लिए अख़बार महत्त्वपूर्ण स्रोत क्यों हैं?
उत्तर: राष्ट्रीय आंदोलन के अध्ययन के लिए अख़बार एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं क्योंकि वे उस समय की घटनाओं का प्रत्यक्ष चित्र प्रस्तुत करते हैं। अख़बारों में नेताओं के भाषण, आंदोलन की रणनीतियों, जनता की भागीदारी और सरकार की प्रतिक्रियाएँ विस्तारपूर्वक प्रकाशित होती थीं। वे जनता को जागरूक करने, देशभक्ति की भावना को फैलाने और ब्रिटिश शासन के विरोध में जनमत तैयार करने का सशक्त माध्यम थे। ‘केसरी’ ‘यंग इंडिया’ ‘हरिजन’, ‘अल हिलाल’ आदि जैसे पत्रों ने राष्ट्रवाद को दिशा दी। इन अख़बारों से इतिहासकारों को यह समझने में सहायता मिलती है कि किस प्रकार से आंदोलन आगे बढ़े और समाज में उनका क्या प्रभाव पड़ा। वे समय के सामाजिक और राजनीतिक परिवेश को समझने का सजीव दस्तावेज़ हैं।
5. चरखे को राष्ट्रवाद का प्रतीक क्यों चुना गया?
उत्तर: चरखा महात्मा गाँधी द्वारा राष्ट्रवाद और स्वदेशी आंदोलन का प्रतीक बना, यह आत्मनिर्भरता, श्रम और भारतीय परंपरा का प्रतीक था। ब्रिटिश शासन के तहत भारत को विदेशी वस्तों पर निर्भर बना दिया गया था। गाँधीजी ने चरखा चलाकर लोगों को यह संदेश दिया कि वे विदेशी कपड़ों का व्यवहार करना छोड़ दे और खादी पहनें। चरखा चलाना केवल एक वस्त उत्पादन का कार्य नहीं था बल्कि यह स्वतंत्रता, आत्मगौरव और आर्थिक स्वावलंबन का प्रतीक बन गया। इससे गांव-गांव में रोजगार बढ़ा और जनता भी आंदोलन से जुड़ी। चरखा एक सशक्त प्रतीक था, जिसने की भारतवासियों में यह विश्वास दिलाया कि वे स्वयं अपने भविष्य का निर्माण कर सकते हैं।
निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए (लगभग 250 से 300 शब्दों में)
6. असहयोग आंदोलन एक तरह का प्रतिरोध कैसे था?
उत्तर: असहयोग आंदोलन निम्नलिखित रूप से प्रतिरोध का एक रूप था:
(i) रौलट सत्याग्रह की कामयाबी से सन्निहित, गाँधीजी ने ब्रिटिश शासन के साथ “असहयोग” के अभियान के लिए कहा।
(ii) औपनिवेशिक शासन खत्म करना चाहने वाले भारतीयों से आग्रह किया गया कि वे स्कूलों, कॉलेजों और अदालतों का बहिष्कार करें और करों का भुगतान न करें। अगर जनता ऐसा करते, तो इससे ब्रिटिश सरकार का शासन तंत्र बाधित हो जाता।
(iii) छात्रों ने सरकार के माध्यम से संचालित स्कूलों और कॉलेजों में जाना बंद कर दिया। वकीलों ने अदालतों में जाने से बहिष्कार कर दिया। मजदूर वर्ग कई शहरों में हड़ताल पर चले गए।
(iv) कुमाऊं में कृषकों ने औपनिवेशिक अधिकारियों के लिए भार उठाने से मना कर दिया।
(v) असहयोग आंदोलन के परिणामस्वरूप, 1857 के विद्रोह के बाद प्रथम बार ब्रिटिश शासन की नींव हिलती हुई नजर आई थी।
7. गोल मेज सम्मेलन में हुई वार्ता से कोई नतीजा क्यों नहीं निकल पाया?
उत्तर: गोलमेज सम्मेलन का आयोजन ब्रिटिश सरकार ने लंदन में किया था। पहली बैठक नवंबर 1930 में हुई, परंतु भारत के मुख्य राजनीतिक नेताओं की अनुपस्थिति के कारण यह निष्फल सिद्ध हुई।
वायसराय के साथ कई लंबी बैठकों के बाद “गाँधी-इरविन समझौता” हुआ, जिसके तहत सविनय अवज्ञा आंदोलन समाप्त किया गया, सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा किया गया और समुद्र तट पर नमक बनाने की अनुमति भी प्रदान कि गई। इस समझौते की कट्टरपंथी राष्ट्रवादियों ने आलोचना की थी।
गाँधीजी वायसराय से भारतीयों के लिए राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्धता प्राप्त करने में विवश थे; वह उस संभावित अंत की ओर केवल बातचीत का आश्वासन प्राप्त कर सकता था। 1931 के उत्तरार्ध में लंदन में एक दूसरा गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया गया और यहाँ, गाँधीजी ने कांग्रेस का प्रतिनिधित्व किया। फिर भी गाँधीजी और कांग्रेस का दावा था कि वे पूरे भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं, परतों उनके इस दावे को मुस्लिम लीग, रियासतों के शासक और डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने चुनौती दी, जिन्होंने तर्क दिया कि कांग्रेस वास्तव में छोटे वर्गों का प्रतिनिधित्व नहीं करती। परिणामस्वरूप, गोलमेज सम्मेलन निष्फल रहे, और गाँधीजी भारत लौटकर सविनय अवज्ञा आंदोलन को पुनर शुरू करने का विचार लिया।
8. महात्मा गाँधी ने राष्ट्रीय आंदोलन के स्वरूप को किस तरह बदल डाला?
उत्तर: जनवरी 1915 में एम. के. गाँधी भारत लौटे। जब महात्मा गाँधी ने 1893 में भारत छोड़ा था, तब की स्थिति 1915 तक काफी बदल चुकी थी — देश के लोग अब पहले की तुलना में राजनीतिक रूप से कहीं अत्यधिक जागरूक और सक्रिय हो गए थे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अधिकांश मुख्य शहरों और कस्बों में शाखाएँ स्थापित हो चुकी थीं। 1917 में गाँधीजी बिहार के चंपारण गए, जहाँ उन्होंने कृषकों को अपनी मनपसंद की फसले उगाने की स्वतंत्रता और ज़मींदारी व्यवस्था में सुरक्षा दिलाने के लिए संघर्ष किया। 1918 में उन्होंने अहमदाबाद की कपड़ा मिलों में मज़दूरों के अधिकारों और खेड़ा में अकालग्रस्त किसानों के लिए कर माफी की माँग को लेकर दो महत्वपूर्ण अभियानों का नेतृत्व किया। इसके बाद गाँधीजी ने खिलाफ़त आंदोलन के साथ असहयोग आंदोलन की शुरुआत की। इन सभी आंदोलनों ने जनता की भागीदारी को अभूतपूर्व रूप से बढ़ाया और औपनिवेशिक भारत में जन आंदोलन की नई लहर पैदा की। 1922 तक, गाँधीजी ने भारतीय राष्ट्रवाद को बदल दिया, जिससे उन्होंने फरवरी 1916 के अपने बीएचयू भाषण में किए गए वादे को भुनाया। अगला नमक सत्याग्रह था जो फिर से एक सफल कदम था। फिर अगस्त 1942 में भारत छोड़ो अभियान आया जो वास्तव में एक जन आंदोलन था। जब महात्मा गाँधी राजनीति में शामिल हुए, तो यह केवल एक संघर्ष था। वास्तव में कांग्रेस की बैठकें भी केवल भारतीयों तक ही सीमित थीं। उन्होंने अपने प्रयासों के द्वारा गरीब किसानों, कारीगरों, स्त्रीयों और अन्य लोगों को विभिन्न प्रकार की पृष्ठभूमि और स्वतंत्रता संग्राम में एक साथ लाया।
9. निजी पत्रों और आत्मकथाओं से किसी व्यक्ति के बारे में क्या पता चलता है? ये स्रोत सरकारी ब्योरों से किस तरह भिन्न होते हैं?
उत्तर: निजी पत्र और आत्मकथाएँ महत्वपूर्ण सूचना स्रोत हैं, जो हमें विभिन्न मुद्दों पर किसी व्यक्ति की सोच और दृष्टिकोण की गंभीर झलक प्रदान करते हैं।
(i) निजी पत्र हमें मनुष्योंको व्यक्तिगत विचारों की झलक देते हैं। इन पत्रों में हम उन्हें अपना क्रोध, पीड़ा, निराशा, चिंता, समस्याएं, आशाएँ और अपेक्षाएँ व्यक्त करते हुए देख सकते हैं।
(ii) आत्मकथाएँ हमें उस अतीत का लेखा-जोखा देती हैं जो अक्सर मानवीय विस्तार से समृद्ध होता है।
(iii) कई बार पत्र किसी व्यक्ति को संबोधित होते हैं और इसलिए निजी होते हैं, परन्तु अक्सर उनका उद्देश्य व्यापक जनता तक पहुँचना भी होता है। ऐसे पत्रों की भाषा में यह भावना झलकती है कि संभवतः वे एक दिन प्रकाशित किए जा सकते हैं।
(iv) निजी पत्र और आत्मकथाएं सरकारी खातों से कई मायनों में भिन्न होती हैं, जैसे सरकारी अधिकारियों के द्वारा आमतौर पर आधिकारिक खातों को बनाए रखा जाता है।
(v) ये खाते कुछ मानदंडों अथवा तरीकों के अनुसार लिखे जाते हैं, जिन्हें सरकार स्वीकार करती है।
(vi) सरकारी रिकॉर्ड में उन विवरणों पर जोर दिया जाता है या फिर आमतौर पर व्यक्त किया जाता है जो सरकार के विचारों के विपरीत हैं।

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