NCERT Class 12 History Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए

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NCERT Class 12 History Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए

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Chapter: 5

भारतीय इतिहास के कुछ विषय: भाग – 2

चर्चा कीजिए

1. यदि अल-बिरूनी इक्कीसवीं शताब्दी में रहता, तो वही भाषाएँ जानने पर भी उसे विश्व के किन क्षेत्रों में आसानी से समझा जा सकता था?

उत्तर: अल-बिरूनी अरबी, फारसी, संस्कृत और तुर्की आदि भाषाएँ जानते थे। इक्कीसवीं शताब्दी में अगर वह होता, तो उसे मध्य पूर्व, ईरान, अफगानिस्तान, तुर्की, भारत और कुछ मध्य एशियाई देशों में आसानी से समझ सकते थे क्योंकि इन सभी भाषाओं का आज के समय में भी इन क्षेत्रों में प्रयोग होता है। संस्कृत का उपयोग धार्मिक एवं शैक्षणिक संदर्भ में अब भी होता है, और अरबी व फारसी भाषा आज भी कई देशों की मुख्य भाषाएँ हैं।

2. आपके विचार में अल-बिरूनी और इब्न बतूता के उद्देश्य किन मायनों में समान/भिन्न थे?

उत्तर: अल-बिरूनी का उद्देश्य भारत की संस्कृति, धर्म,अर्थ और ज्ञान परंपराओं को समझना और उनका तुलनात्मक अध्ययन करना था, हालांकि इन्न बतूता का उद्देश्य प्रमुख रूप से यात्रा करना और अपने एहसास को लिखना था। अल-बिरूनी एक प्रसिद्ध विद्वान के रूप में अध्ययन हेतु भारत आए, वहीं इन्न बतूता एक पर्यटक, न्यायाधिकारी और मोरक्को के शासक के दूत के रूप में। इन दोनों ने भारत के सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन को देखा, लेकिन विचार अलग था- एक विश्लेषणात्मक, दूसरा वर्णनात्मक।

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3. भारतीय भाषाओं में बहुत प्रचुर यात्रा वृत्तांत साहित्य उपलब्ध है। आप अपने घर में बोली जाने वाली भाषा के यात्री-लेखकों के विषय में पता कीजिए। किसी एक ऐसे वृर्तत को पढ़िए और यात्री द्वारा देखे गए क्षेत्रों, उसने जो देखा। और उसके द्वारा वृत्तांत लिखे जाने के कारणों पर टिप्पणी लिखिए।

उत्तर: हमारे घर में हिंदी भाषा बोली जाती है। हिंदी के एक मशहूर यात्रा-वृत्तांत लेखक हैं “राहुल सांकृत्यायन”। उनके यात्रा-वृत्त “तिब्बत में मेरे जीवन के दिन” में उन्होंने तिब्बत की यात्रा का वर्णन विस्तार रूप से की है। उन्होंने वहाँ के भौगोलिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक जीवन का गंभीर अवलोकन किया। उन्होंने यात्रा केवल पर्यटन के उद्देश्य से नहीं की, बल्कि बौद्ध साहित्य और संस्कृति की खोज के लिए की थी। उनका वृत्तांत यह बात को व्यक्त करता है कि यात्राएँ भी ज्ञान अर्जन करने का एक माध्यम हैं।

4. एक अन्य क्षेत्र से आए यात्री के लिए स्थानीय क्षेत्र की भाषा का ज्ञान कितना आवश्यक है?

उत्तर: एक अन्य क्षेत्र से आए यात्री के लिए स्थानीय भाषा का ज्ञान अत्यंत आवश्यक होता है-क्योंकि इससे यात्री लोगों से वार्तालाप करने में आसानी होती है, स्थानीय संस्कृति और रीति-रिवाजों को सही ढंग से समझ सकता है और गलतफहमियों से बच सकता है। ये भाषा की दीवार को पार कर एक गंभीर स्तर पर समाज को देखने और समझने में मदद करता है, जैसा कि अल-बिरूनी ने संस्कृत भाषा सीखकर किया।

5. इब्न बतूता लोगों के लिए ऐसी वस्तुओं और स्थितियों के वर्णन की समस्या को कैसे हल करता था, जिनसे व अनभिज्ञ थे और जिन्हें उन्होंने अनुभव नहीं किया था?

उत्तर: इन्न बतूता लोगों के लिए ऐसी वस्तुओं और स्थितियों को समझाने के लिए तुलनात्मक उदाहरणों का प्रयोग किया, जिससे उसके पाठक ज्ञात थे। वह अरबी एवं अफ्रीकी संदर्भों से तुलना करता है अपरिचित अर्थात अज्ञात बातों को स्पष्ट किया जा सके। इसके अलावा, वह विस्तृत और जीवंत वर्णन करके पाठक को उस स्थान की विचार करने में सहायक होता था।

6. आपके विचार में बर्नियर जैसे विद्वानों ने भारत की यूरोप से तुलना क्यों की?

उत्तर: बर्नियर जैसे विद्वान भारत की तुलना यूरोप से इसलिए करते थे ताकि वे भारत की विशिष्टताओं और कमियों को अपने पाठकों को समझा सकें। वे अपने पाठकों को यह कहना चाहते थे कि भारत यूरोप से किस तरह से भिन्न है चाहे वह सामाजिक संरचना हो, शासन पद्धति हो या आर्थिक दशा। इस तुलना में अक्सर यूरोपीय श्रेष्ठता की भावधारा भी छिपी रहती थी।

7. आपके विचार में सामान्य महिला श्रमिकों के जीवन ने इब्न बतूता और बर्नियर जैसे यात्रियों का ध्यान अपनी ओर क्यों नहीं खींचा?

उत्तर: इन सभी यात्रियों का ध्यान आमतौर पर सत्ता, दरबार, धर्म और मुख्य घटनाओं पर एकाग्र था। सामान्य स्त्री श्रमिकों का जीवन उन्हें साधारण और महत्वहीन प्रतीत होता था। साथ ही, महिला जीवन पर चर्चा सामाजिक एवं सांस्कृतिक वर्जनाओं के कारण सीमित थी। इसिलिए उन्होंने उनके प्रकार के कार्य, संघर्षों की ओर कम ध्यान दिया।

उत्तर दीजिए (लगभग 100 से 150 शब्दों में)

1. किताब-उल-हिन्द पर एक लेख लिखिए।

उत्तर: ‘किताब-उल-हिन्द’ मशहूर विद्वान अल-बिरूनी द्वारा अरबी भाषा से लिखी गई एक महत्वपूर्ण पुस्तक है। यह पुस्तक भारत की संस्कृति, धर्म, दर्शन, खगोल विज्ञान, गणित, भूगोल और सामाजिक व्यवस्था पर निर्भर है। अल-बिरूनी ने यह ग्रंथ भारतीयों से संवाद कर, संस्कृत ग्रंथों का अध्ययन कर और स्वयं अनुभूति कर लिखा। उन्होंने हिन्दू धर्म, जाति व्यवस्था, विवाह प्रथा, संस्कारों और तीर्थ स्थानों का वर्णन विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण से किया। यह पुस्तक भारत को एक बाहरी दृष्टिकोण (अर्थात देखना) से देखने का महत्वपूर्ण स्रोत बन गई और आज भी इतिहासकारों के लिए अधिक उपयोगी है।

2. इब्न बतूता और वर्नियर ने जिन दृष्टिकोणों से भारत में अपनी यात्राओं के वृत्तांत लिखे थे, उनकी तुलना कीजिए तथा अंतर बताइए।

उत्तर: इब्न बतूता एक मुस्लिम यात्री थे जिन्होंने भारत को एक न्यायाधीश और मुसाफिर के रूप में देखा। उन्होंने भारत के सामाजिक जीवन, बाजारों, महलों और संचालन का वर्णन किया था। वहीं, वर्नियर एक फ्रांसीसी चिकित्सक थे जिन्होंने भारत की तुलना यूरोप से की और आलोचनात्मक दृष्टिकोण अपनाया। इन्न बतूता ने भारत की विभिन्नता का वर्णन जीवंत तरीके से किया, हालांकि वर्नियर ने सामाजिक असमानताओं और शासकीय व्यवस्था पर समीक्षा की। दोनों का दृष्टिकोण अलग था- एक प्रशंसा-प्रधान, दूसरा आलोचनात्मक। 

3. बर्नियर के वृत्तांत से उभरने वाले शहरी केंद्रों के चित्र पर चर्चा कीजिए।

उत्तर: बर्नियर के वृत्तांत में दिल्ली, आगरा, लाहौर और काशी जैसे शहरी केंद्रों का उल्लेख मिलता है। उन्होंने इन नगरों की विशाल जनसंख्या, बाजारों की चहल-पहल, स्थापत्य कला और व्यापारिक क्रियाकलाप का वर्णन किया। उन्होंने मुख्य रूप से मुगल दरबार की भव्यता और शाही आयोजनों का वर्णन किया। लेकिन उन्होंने ये भी लिखा था कि भारतीय शहरों की योजना यूरोपीय नगरों जैसी संगठित नहीं है। उनके वृत्तांत से हमें तत्कालीन भारत के शहरी जीवन की भव्यता और सामाजिक कठिनता की जानकारी भी मिलती है।

4. इब्न बतूता द्वारा दास प्रथा के संबंध में दिए गए साक्ष्यों का विवेचन कीजिए।

उत्तर: इन बतूता द्वारा भारत में दास प्रथा का विस्तृतरूप से वर्णन किया है। उसने लिखा है कि अमीर लोग विशाल संख्या में दास और दासिया रखते थे। दासों का प्रयोग घरेलू कार्य, सैनिक सेवा और व्यापार में किया जाता था। लेकिन कई बार उपहार स्वरूप दासों का अदला-बदली भी होता था। इन्न बतूता ने इस प्रथा को साधारण और योग्य माना, जिससे ये पता होता है कि दास प्रथा उस समय में सामाजिक जीवन का ही एक हिस्सा था।

5. सती प्रथा के कौन से तत्वों ने वर्नियर का ध्यान अपनी ओर खींचा?

उत्तर: बर्नियर को सती प्रथा ने अपनी ओर खींचा क्योंकि यह सती प्रथा की क्रूरता और सामाजिक स्वीकृति ने आकर्षित किया। उसने देखा कि स्त्रीया अपने पति की चिंता में खुद को जीवित जला देती थीं, जिससे समाज ने धार्मिक दायित्व मान लिया था। उसने यह भी बताया था कि कभी-कभी सामाजिक दबाव में स्त्रीयों को सती माता होने के लिए बाध्य किया जाता था। इस प्रथा की भय ने उसे गहराई से स्पर्श किया।

निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए (लगभग 250-300 शब्दों में)

6. जाति व्यवस्था के संबंध में अल-बिरूनी की व्याख्या पर चर्चा कीजिए।

उत्तर: अल-बिरूनी ने जाति व्यवस्था व प्रथा को गंभीरसे समझने का प्रयास किया। उन्होंने यह पाया है कि भारतीय समाज चार वर्णों पर आधारित है जैसे – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। उन्होंने यह भी बताया कि जातियाँ जन्म पर आधारित होती हैं और सामाजिक गतिशीलता बहुत सीमित होती है। अल-बिरूनी ने इस व्यवस्था को इस्लामी समानता सिद्धांत के विपरीत पाई। उन्होंने लिखा है कि ब्राह्मण समाज में सर्वोच्च स्थान रखते हैं और शूद्रों को सबसे नीचे समझा जाता है। उन्होंने यह भी कहा है कि हिन्दू समाज में छुआछूत जैसी प्रथाएँ भी जातिगत भेदभाव को और बढ़ाती हैं। यद्यपि उन्होंने इसकी आलोचना नहीं की, लेकिन तुलनात्मक दृष्टिकोण से उन्होंने इसे अनुचित पाया। उन्होंने जाति व्यवस्था के धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पक्षों को निस्पक्ष भाव से लिखा, जिससे आधुनिक इतिहासकारों को तत्कालीन भारतीय समाज की संरचना को समझने में सहायता मिलती है। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि उन्हें हिन्दू धर्म और संस्कृति की गहरी समझ प्राप्त करने के लिए संस्कृत सीखनी पड़ी। अतः अल-बिरूनी की जाति व्यवस्था की व्याख्या तुलनात्मक, विश्लेषणात्मक और वस्तुनिष्ठ है।

7. क्या आपको लगता है कि समकालीन शहरी केंद्रों में जीवन-शैली की सही जानकारी प्राप्त करने में इब्न बतूता का वृत्तांत सहायक है? अपने उत्तर के कारण दीजिए।

उत्तर: हाँ, इन बतूता का वृत्तांत समकालीन शहरी जीवन की झलक देता है। उन्होंने भारत के शहरों जैसे दिल्ली, मल्लीबाह, दौलताबाद आदि का वर्णन किया, जहाँ उन्होंने बाजारों, धार्मिक स्थलों, प्रशासनिक भवनों और नागरिक जीवन का वर्णन किया। उन्होंने यह भी बताया कि किस प्रकार विभिन्न जातियों और धर्मो के लोग एक साथ रहते थे। इन बतूता ने शाही समारोह, व्यापार व्यवस्था, सड़कों और वस्त्रों के विवरण देकर तत्कालीन नगर जीवन की सजीव तस्वीर प्रस्तुत की है। इसलिए, उनका वृत्तांत ऐतिहासिक दृष्टि से शहरी जीवन के अध्ययन में उपयोगी है।

8. चर्चा कीजिए कि बर्नियर का वृत्तांत किस सीमा तक इतिहासकारों को समकालीन ग्रामीण समाज को पुनर्निर्मित करने में सक्षम करता है?

उत्तर: बर्नियर के वृत्तांत में मुख्यतः शहरी जीवन और शासकों का वर्णन है, परंतु उन्होंने ग्रामीण जीवन की कुछ झलकियाँ भी दी हैं। उन्होंने लिखा कि ग्रामीण समाज कृषक प्रधान है, जो अधिक करों से पीड़ित है। उन्होंने यह भी कहा कि कृषक आत्मनिर्भर हैं, लेकिन राज्य की उदासीनता और अधिक शोषण उन्हें कमजोर बना देती है। भूमि पर मुग़ल साम्राज्य का नियंत्रण बहुत ही मजबूत था और ज़मींदारों की भूमिका महत्वपूर्ण था। इन्ही विवरणों से इतिहासकार तत्काल का ग्रामीण समाज की आर्थिक स्थिति, सामाजिक ढांचे और किषान वर्ग की संघर्ष को समझ सकते हैं।

9. यह बर्नियर से लिया गया एक उद्धरण है:

ऐसे लोगों द्वारा तैयार सुंदर शिल्पकारीगरी के बहुत उदाहरण हैं, जिनके पास औजारों का अभाव है, और जिनके विषय में यह भी नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने किसी निपुण कारीगर से कार्य सीखा है। कभी-कभी वे यूरोप में तैयार वस्तुओं की इत्तनी निपुणता से नकल करते हैं कि असली और नकली के बीच अंतर कर पाना मुश्किल हो जाता है। अन्य वस्तुओं में, भारतीय लोग बेहतरीन बंदूकें, और ऐसे सुंदर स्वर्णाभूषण बनाते हैं कि संदेह होता है कि कोई यूरोपीय स्वर्णकार कारीगरी के इन उत्कृष्ट नमूनों से बेहतर बना सकता है। मैं अकसर इनके चित्रों की सुंदरता, मृदुलता तथा सूक्ष्मता से आकर्षित हुआ हूँ।

उसके द्वारा अलिखित शिल्प कार्यों को सूचीबद्ध कीजिए तथा इसकी तुलना अध्याय में वर्णित शिल्प गतिविधियों से कीजिए।

उत्तर: बर्नियर के उद्धरण से हमें निम्नलिखित शिल्प कार्यों की जानकारी मिलती है-

सुंदर चित्रकारी, मृदुल मूर्तिकला, नकली वस्तुओं की कुशल नकल, बंदूक निर्माण, स्वर्णाभूषण निर्माण।  इनका सबंधपर पठन करें तो अध्याय में अंकित शिल्प गतिविधिया भी इन्हीं पर एकाग्र हैं। उदाहरण के लिए, मूर्तिकला, हथियार निर्माण, आभूषण निर्माण और वस्त बुनाई में भारत की कारीगरी विश्व में मशहूर थी। भारतीय कारीगरों की प्रतिभा, सीमित संसाधनों के बावजूद उनकी योग्यता और सृजनात्मकता बर्नियर को अधिक आकर्षित करती थी। यह साक्ष्य दशति हैं कि भारत में शिल्प कार्य न केवल स्थानीय बाजारों के लिए इश्के वजाय विदेशी व्यवसाय के लिए भी महत्वपूर्ण अर्थात बहुत ही आवश्यक थे।

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