NCERT Class 12 History Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें

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NCERT Class 12 History Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें

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Chapter: 4

भारतीय इतिहास के कुछ विषय: भाग – 1

चर्चा कीजिए

1. शाहजहाँ बेगम द्वारा किए गए वर्णन की तुलना चित्र 3 से कीजिए। इनमें आप क्या समानताएँ और असमानताएँ पाते हैं?

उत्तर: शाहजहाँ बेगम द्वारा साँची के स्तूप का जो वर्णन किया गया है, वह उसकी धार्मिक महत्ता और सभ्यता पर आधारित है। चित्र 3 (स्तूप का दृश्य) भी इसके विस्तृत,आकृति, सुंदर स्थापत्य और उत्कीर्णन को दर्शाता है। समानता यह है कि दोनों ही स्तूप की धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता को दिखाते हैं। असमानता यह है कि लेख में शब्दों से अनुभव कराया गया है जबकि चित्र दृश्य रूप में विवरण देता है।

2. जब लिखित सामग्री उपलब्ध न हो अथवा किन्हीं वजहों से बच न पाई हो तो ऐसी स्थिति में विचारों और मान्यताओं के इतिहास का पुनर्निर्माण करने में क्या समस्याएँ सामने आती है?

उत्तर: जब लिखित सामग्री नहीं मिलती, तो इतिहासकारों को केवल मौखिक परंपराओं, पदार्थ, आवासों और चित्रों पर निर्भर रहना पड़ता है। इससे सही जानकारी मिलना कठिन हो जाता है और पुनर्गठन में अनुमान और व्याख्या पर अधिक निर्भरता हो जाती है।

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3. क्या बीसवीं सदी में अहिंसा की कोई प्रासंगिकता है?

उत्तर: हाँ, बीसवीं सदी में भी अहिंसा की गंभीर सम्बन्ध रही है। महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता आंदोलन में अहिंसा को एक सशक्त अस्त्र के रूप में अपनाया और दुनियाभर में भी नागरिक अधिकारों के आंदोलनों में अहिंसा को महत्व दिया गया।

4. यदि आप बुद्ध के जीवन के बारे में नहीं जानते तो क्या आप मूर्ति को देखकर समझ पाते कि उसमें क्या दिखाया गया है?

उत्तर: यदि बुद्ध के जीवन के बारे में जानकारी नहीं होति तो केवल मूर्ति को देखकर उनके जीवन की घटनाएँ समझना कठिन हो सकता है। मूर्ति का आसन, मुद्रा और विचार कुछ संकेत जरूर देते हैं, पर पूरा अर्थ नहीं खुलता।

5. बुद्ध द्वारा सिगल को दी गई सलाह की तुलना असोक द्वारा उसकी प्रजा (अध्याय 2) को दी गई सलाह से कीजिए। क्या आपको कुछ समानताएँ और असमानताएँ नज़र आती हैं?

उत्तर: दोनों सलाहों में सही जीवन जीने, दूसरों का सम्मान करने और दायित्वों के पालन पर ज़ोर दिया गया है। लेकिन बुद्ध की सलाह अधिक व्यक्तिगत व्यवहार पर एकाग्र थी, जबकि अशोक की सलाह एक समूचे राज्य की भलाई पर ही केंद्रित थी।

6. पुन्ना जैसी दासी संघ में क्यों जाना चाहती थी?

उत्तर: पुन्ना जैसी दासी संघ में इसलिए जाना चाहती थी कि वह सामाजिक बंधनों से बंधनमुक्त होकर आध्यात्मिक जीवन जी सके और मोक्ष प्राप्त कर सके।

7. साँची के महास्तूप के मापचित्र (चित्र 4.10 क) और छायाचित्र चित्र 4.3) में क्या समानताएँ और फर्क हैं? 

उत्तर: दोनों में साँची के महास्तूप को दिखाया गया है। मापचित्र में स्थापत्य योजना और प्रणाली का तकनीकी विवरण दिया गया है जबकि छायाचित्र प्रामाणिक दृश्य दिखाता है जिसमें की उत्कीर्णन और वैभव अधिक स्पष्ट है।

8. खंड एक को दुबारा पढ़िए। कारण बताइए कि साँची क्यों बच गया।

उत्तर: साँची मुख्यतः इसलिए बच गया है क्योंकि वह व्यापारीक मार्गों से दूर था और उसे कम छीना गया। स्थानीय हिफाजत और बाद में भोपाल की बेगमों द्वारा संरक्षण कार्य एवं काम भी एक बड़ा कारण रहा।

9. मूर्तिकला के लिए हड्डियो, मिट्टी और धातुओं का भी इस्तेमाल होता है। इनके विषय में पता कीजिए।

उत्तर: प्राचीन काल में मूर्तिकला के लिए हड्डियों से छोटे साधन और आभूषण भी बनाए जाते थे, मिट्टी से मृदा शिल्प मूर्तियां बनती थी, और धातुओं से वैभवशाली मूर्तियाँ ढाली जाती थी, जैसे कि हरप्पा और महात्मा बुद्ध की मिश्र धातु प्रतिमाएँ।

10. आपने कोई भी धार्मिक अनुष्ठान देखा हो तो उसका वर्णन कीजिए। क्या इसे किसी रूप में हमेशा के लिए दर्ज किया जाता है?

उत्तर: धार्मिक अनुष्ठानों जैसे पूजा, यज्ञ, इफ्तार आदि में विशेष क्रियाएँ होती हैं। कई बार इन्हें तस्वीर,मूर्तियों, लोकगाथाए या लेखन के माध्यम से दर्ज किया जाता है जिससे भविष्य की पीढ़ियों जान सकें।

उत्तर दीजिए (लगभग 100-150 शब्दों में)

1. क्या उपनिषदों के दार्शनिकों के विचार नियतिवादियों और भौतिकवादियों से भिन्न थे? अपने जवाब के पक्ष में तर्क दीजिए।

उत्तर: जी हाँ, उपनिषदों के दार्शनिकों के विचार नियतिवादियों और भौतिकवादियों से भिन्न थे। नियतिवादी मानते थे कि जीवन और मृत्यु पूर्वनिर्धारित हैं और कोई उसे बदल नहीं सकता। भौतिकवादी केवल भौतिक सुखों को ही प्रामाणिक मानते थे। इसके विपरीत उपनिषदों के दार्शनिक आत्मा और ब्रह्म के ज्ञान पर बल देते थे। उन्हें विश्वास था कि मोक्ष अर्थात मुक्ति ज्ञान और साधना द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। वे जीवन के आखरी लक्ष्य को भौतिक नहीं बल्कि आध्यात्मिक मानते थे। इसलिए उनके विचार गहरे दार्शनिक और आध्यात्मिक थे।

2. जैन धर्म की महत्वपूर्ण शिक्षाओं को संक्षेप में लिखिए।

उत्तर: जैन धर्म की मुख्य शिक्षाएँ हैं- अहिंसा (किसी भी जीव को हानि न पहुँचाना), सत्य (सत्य बोलना), अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य (संयमित जीवन) और अपरिग्रह (संपत्ति का त्याग)। महावीर ने कर्म आधार और आत्मा के परिशोधन पर बल दिया। जैन धर्म का अंतिम लक्ष्य मोक्ष एवं मुक्ति हैं, जिसे तप, संयम, और ध्यान द्वारा प्राप्त किया जाता है। सभी जीवों में आत्मा होती है, इसलिए करुणा और सह-अस्तित्व का संदेश जैन धर्म का मूल है।

3. साँची के स्तूप के संरक्षण में भोपाल की बेगमों की भूमिका की चर्चा कीजिए।

उत्तर: 19वीं शताब्दी में साँची के स्तूप जर्जर अवस्था में थे। भोपाल की बेगमों- खासकर शाहजहाँ बेगम और सुल्तान जहाँ बेगम  ने इनके संरक्षण में प्रमुख भूमिका निभाई है। उन्होंने खुदाई कार्यों को प्रयोजित किया गया और संरचनाओं की सुधार करवाई। उन्होंने भारतीय पुरातत्वविदों को प्रोत्साहित किया और स्तूप को धार्मिक व सांस्कृतिक धरोहर के रूप में संरक्षित किया। उनके प्रयासों के कारण ही साँची आज विश्व धरोहर स्थल बना है।

4. निम्नलिखित संक्षिप्त अभिलेख को पढ़िए और जवाब दीजिए:

महाराजा हुविष्क (एक कुषाण शासक) के तैतीसवें साल में गर्म मौसम के पहले महीने के आठवें दिन त्रिपिटक जानने वाले भिक्खु बल की शिष्या, त्रिपिटक जानने वाली बुद्धमिता के बहन की बेटी भिक्खुनी धनवती ने अपने माता-पिता के साथ मधुवनक में बोधिसत्त की मूर्ति स्थापित की।

(क) धनवती ने अपने अभिलेख की तारीख कैसे निश्चित की?

उत्तर: धनवती ने महाराजा हुविष्क के शासनकाल के तैंतीसवें वर्ष और मौसम का उल्लेख करके तारीख निश्चित की। 

(ख) आपके अनुसार उन्होंने बोधिसत्त की मूर्ति क्यों स्थापित की?

उत्तर:संभवतः उन्होंने धार्मिक श्रद्धा, पुण्य लाभ और बौद्ध धर्म के प्रसार के उद्देश्य से मूर्ति स्थापित की।

(ग) वे अपने किन रिश्तेदारों का नाम लेती है?

उत्तर: वे अपने माता-पिता और अपनी मौसी (बहन की बेटी) का उल्लेख करती हैं।

(घ) वे कौन-से बौद्ध ग्रंथों को जानती थीं?

उत्तर: वे त्रिपिटक (सुत्त, विनय और अभिधम्म) को जानती थीं।

(ड.) उन्होंने ये पाठ किससे सीखे थे?

उत्तर: उन्होंने ये ज्ञान त्रिपिटक जानने वाले भिक्षु बल से सीखा था।

5. आपके अनुसार स्त्री-पुरुष संघ में क्यों जाते थे?

उत्तर: स्त्री और पुरुष संघ में आत्मिक उन्नति और मोक्ष प्राप्ति के लिए जाते थे। संघ में जाकर वे सांसारिक बंधनों से मुक्ति पाते थे और धर्म, ध्यान तथा संयमित जीवन का पालन करते थे। संघ एक समानता आधारित समुदाय था, जहाँ सभी को आध्यात्मिक अभ्यास का अवसर मिलता था। संघ शिक्षा, तप और साधना का केंद्र था, जो उन्हें निर्वाण के पथ पर अग्रसर करता था।

निम्नलिखित पर एक संक्षिप्त निबंध लिखिए (लगभग 500 शब्दों में)

6. साँची की मूर्तिकला को समझने में बौद्ध साहित्य के ज्ञान से कहाँ तक सहायता मिलती है?

उत्तर: साँची की मूर्ति-कला को समझने में बौद्ध साहित्य के ज्ञान से बहुत सहायता मिलती है। समकालीन बौद्ध ग्रंथों में हमें 64 संप्रदायों या चिंतन परंपराओं का उल्लेख मिलता है। शिक्षाओं के प्रसार के लिए शिक्षकों ने एक स्थान से दूसरे स्थान की यात्रा की। मूर्तियों में चित्रों के रूप में कहानियाँ होती हैं जिनका इतिहासकारों द्वारा अध्ययन किया जाता है ताकि इसका अर्थ पाठ्य साक्ष्यों के साथ तुलना करके समझा जा सके। इतिहासकारों ने बुद्ध के जीवन के बारे में बुद्ध के चरित लेखन से जानकारी प्राप्त की। आत्मकथाओं के अनुसार, बुद्ध ने एक वृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए आत्मज्ञान प्राप्त किया था। कई प्रारंभिक मूर्ति-कारों ने बुद्ध को मानव रूप में नहीं दिखाया बल्की उन्होंने प्रतीकों के माध्यम से बुद्ध की उपस्थिति को दर्शाया है। रिक्त स्थान बुद्ध के ध्यान को इंगित करने के लिए था जबकि स्तूप महापरिनिर्वाण का प्रतिनिधित्व करते है। अक्सर प्रयोग किया जाने वाला एक प्रतीक पहिया था, यह सारनाथ में बुद्ध द्वारा दिए गए प्रथम धर्मोपदेश को दर्शाता है। साँची में उत्कीर्णित बहुत सी अन्य मूर्तियां शायद बौद्ध मत से सीधी जुड़ी नहीं थीं। इनमें कुछ सुंदर स्त्रियाँ भी मूर्तियों में उत्कीर्णित हैं जो तोरणद्वार के किनारे एक पेड़ पकड़ कर झूलती हुई दिखती हैं। जानवरों को अक्सर मानवीय विशेषताओं के प्रतीक के रूप में उपयोग किया जाता था, उदाहरण के लिए, हाथियों को शक्ति और ज्ञान को दर्शाने के लिए चित्रित किया गया था। अतः हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि साँची की मूर्तिकला को समझने में बौद्ध साहित्य का ज्ञान बहुत प्रकाश डालता है।

7. चित्र 4.32 और 4.33 में साँची से लिए गए दो परिदृश्य दिए गए हैं। आपको इनमें क्या नजर आता है? वास्तुकला, पेड़-पौधे, और जानवरों को ध्यान से देखकर तथा लोगों के काम-धंधों को पहचान कर यह बताइए कि इनमें से कौन से ग्रामीण और कौन से शहरी परिदृश्य है?

उत्तर: चित्र 4.32 में हम देख सकते हैं कि छत और झोपड़ी हैं, कई जानवर, पेड़ और पौधे हैं। यह शायद एक ग्रामीण दृश्य है। जबकि, चित्र 4.33 एक महल के दृश्य का प्रतिनिधित्व करता है जहां एक व्यक्ति की सेवा में कई दास लगे हैं। यह शायद एक शहरी दृश्य है। यह एक राजा या शाही महल की कहानी का प्रतिनिधित्व करता है।

8. वैष्णववाद और शैववाद के उदय से जुड़ी वास्तुकला और मूर्तिकला के विकास की चर्चा कीजिए।

उत्तर: वैष्णववाद हिंदू धर्म का एक रूप है जिसके अंतर्गत विष्णु को प्रमुख देवता के रूप में पूजा जाता है और शैव धर्म के भीतर शिव को प्रमुख देवता माना जाता है। वैष्णववाद और शैववाद के उदय के साथ इनसे संबंधित मूर्तिकला और वास्तुकला का भी विकास हुआ। वैष्णववाद में कई अवतारों के इर्द-गिर्द पूजा पद्धितियाँ विकसित हुईं। इस परंपरा के अंदर दस अवतारों की कल्पना है। यह माना जाता था कि पापियों के बढ़ते प्रभाव के चलते जब दुनिया में अव्यवस्था और नाश की स्थिति आ जाती थी तब विश्व की रक्षा के लिए भगवान अलग-अलग रूपों में अवतार लेते थे। संभवतः अलग-अलग अवतार देश के भिन्न-भिन्न हिस्सों में लोकप्रिय थे। कई अवतारों को मूर्तियों के रूप में दिखाया गया है। दूसरे देवताओं की भी मूर्तियां बनीं। शिव को उनके प्रतीक लिंग के रूप में बनाया जाता था। लेकिन उन्हें कई बार मनुष्य के रूप में भी दिखाया गया है। जिस समय साँची जैसी जगहों में स्तूप अपने विकसित रूप में आ गए थे उसी समय देवी- देवताओं की मूर्तियों को रखने के लिए सबसे पहले मंदिर भी बनाए गए। शुरू के मंदिर एक चैकोर कमरे के रूप में थे जिन्हें गर्भ-गृह कहा जाता था। इनमें एक दरवाज़ा होता था जिससे उपासक मूर्ति की पूजा करने के लिए भीतर प्रविष्ट हो सकता था। धीरे- धीरे गर्भ गृह के ऊपर एक ऊँचा ढाँचा बनाया जाने लगा जिसे शिखर कहा जाता था। मंदिर की दीवारों पर अक्सर भित्ति चित्र उत्कीर्ण किए जाते थे। बाद के युगों में मंदिरों के स्थापत्य का काफी विकास हुआ।

9. स्तूप क्यों और कैसे बनाए जाते थे? चर्चा कीजिए।

उत्तर: स्तूप बौद्ध धर्म में पूजनीय स्मारक के रूप में बनाए जाते थे। इन्हें बुद्ध और अन्य महापुरुषों के अवशेषों या महत्वपूर्ण घटनाओं से संबंधित स्थानों पर बनाया जाता था। स्तूप ध्यान और श्रद्धा के केंद्र बनते थे।

स्तूप निर्माण मिट्टी या पत्थर के ढेर से शुरू होता था, जिसे बाद में चिनाई कर गोल गुंबदाकार आकार दिया जाता था। चारों दिशाओं में द्वार तोरण बनते थे, जिन पर बुद्ध के जीवन से जुड़े दृश्य खुदे होते थे। स्तूपों के चारों ओर परिक्रमा पथ होता था, जहाँ श्रद्धालु घूमकर पूजा करते थे। इस प्रकार, स्तूप धार्मिक, सांस्कृतिक और कलात्मक धरोहर बन गए।

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