NCERT Class 11 Biology Chapter 16 उत्सर्जी उत्पाद एवं उनका निष्कासन

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NCERT Class 11 Biology Chapter 16 उत्सर्जी उत्पाद एवं उनका निष्कासन

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Chapter: 16

अभ्यास

1. गुच्छीय निस्यंद दर (GFR) को पारिभाषित कीजिए।

उत्तर: गुच्छीय निस्पंद दर, दोनों किडनी के सभी नेफ्रॉन में प्रति मिनट बनने वाले गुच्छीय निस्यंद की मात्रा है। एक स्वस्थ व्यक्ति मैं यह लगभग 125 ml/ मिनट होती है। गुच्छीय निस्यंद में ग्लूकोज, अमीनो एसिड, सोडियम, पोटेशियम, यूरिया, यूरिक एसिड, कीटोन बॉडी और बड़ी मात्रा में पानी होता है।

2. गुच्छीय निस्यंद दर (GFR) की स्वनियमन क्रियाविधि को समझाइए।

उत्तर: गुच्छीय निस्यंद की दर के नियमन के लिए गुच्छीय आसन्न उपकरण द्वारा एक अति सूक्ष्म क्रियाविधि सम्पन्न की जाती है। यह विशेष संवेदी उपकरण अभिवाही तथा अपवाही धमनिकाओं के सम्पर्क स्थल पर दूरस्थ संकलित नलिका की कोशिकाओं में रूपान्तरण से बनता है। गुच्छ निस्यंदन दर में गिरावट इन आसन्न गुच्छ कोशिकाओं को रेनिन के स्रावण के लिए सक्रिय करती है जो वृक्कीय रक्त का प्रवाह बढ़ाकर गुच्छनियंद दर को पुनः सामान्य कर देती है।

3. निम्नलिखित कथनों को सही अथवा गलत में इंगित कीजिए।

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(अ) मूत्रण प्रतिवर्ती क्रिया द्वारा होता है।

उत्तर: सही।

(ब) एडीएच मूत्र को अल्पपरासरणी बनाते हुए जल के निष्कासन में सहायक होता है।

उत्तर: गलत।

(स) बोमेन-संपुट में रक्तप्लाज्मा से प्रोटीन रहित तरल निस्यंदित होता है।

उत्तर: सही।

(द) हेनले लूप मूत्र के सांद्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

उत्तर: सही।

(य) समीपस्थ संवलित नलिका (PCT) में ग्लूकोस सक्रिय रूप से पुनः अवशोषित होता है।

उत्तर: सही।

4. प्रतिधारा क्रियाविधि का संक्षेप में वर्णन कीजिए।

उत्तर: जब शरीर में जल की कमी हो जाती है, तो वृक्क (गुर्दे) सान्द्र मूत्र (concentrated urine) उत्सर्जित करने लगते हैं। इस मूत्र में जल की मात्रा बहुत कम तथा उत्सर्जी पदार्थों की मात्रा अधिक होती है। यह मूत्र रक्त की तुलना में 4 से 5 गुना अधिक सान्द्र हो सकता है, जिसकी परासरणीयता (osmolarity) 1200 से 1400 मिली ऑस्मोल/लीटर तक पहुँच सकती है।

मूत्र के सान्द्रण में जक्स्टा मेड्यूलरी नेफ्रॉनों की भूमिका प्रमुख होती है। इसमें हेनले लूप और वासा रेक्टा (केशिकाओं का जाल) शामिल होते हैं, जो पिरैमिड्स के माध्यम से पेल्विस तक फैले होते हैं। यह संपूर्ण प्रक्रिया ADH (एण्टी डाइयुरेटिक हार्मोन) के नियंत्रण में होती है और यह वृक्क के ऊतक द्रव्य (interstitial fluid) की परासरणीयता पर आधारित होती है।

वृक्क की बाहरी परत (वल्कुट भाग) में ऊतक द्रव्य की परासरणीयता लगभग 300 मिली ऑस्मोल/लीटर होती है, जबकि भीतरी भाग (पिरैमिड्स) में यह क्रमशः बढ़ती हुई पेल्विस के पास 1200–1400 मिली ऑस्मोल/लीटर तक पहुँच जाती है। यह प्रवणता (gradient) मुख्यतः Na+ (सोडियम), Cl⁻ (क्लोराइड) और यूरिया के कारण बनी रहती है।

हेनले लूप की आरोही भुजा Na+ और Cl⁻ आयनों को ऊतक द्रव्य में स्थानांतरित करती है, जबकि इसकी अवरोही भुजा में जल का पुनः अवशोषण होता है। वासा रेक्टा इन आयनों को पुनः ऊतक द्रव्य में लौटाकर संतुलन बनाए रखती है। यूरिया का भी आंशिक विसरण संग्रह नलिका से होकर ऊतक द्रव्य में होता है।

हेनले लूप और वासा रेक्टा के इस परस्पर समन्वित क्रियाकलाप को प्रतिधारा क्रियाविधि कहा जाता है। यह विधि मध्यांश में ऊतक द्रव्य की उच्च परासरणीयता बनाए रखती है, जिससे संग्रह नलिका द्वारा जल का पुनः अवशोषण संभव हो पाता है। इस प्रकार यह प्रक्रिया शरीर से जल की हानि को रोकने की एक महत्वपूर्ण युक्ति है।

5. उत्सर्जन में यकृत, फुप्फुस तथा त्वचा का महत्व बताइए।

उत्तर: उत्सर्जन में यकृत महत्व:

(i) यकृत अमोनिया को यूरिया में बदलता है। यूरिया अमोनिया की तुलना में कम हानिकारक होता है। यकृत कोशिकाएँ हीमोग्लोबिन के विखण्डन से पित्त वर्णक बिलिरुबिन, बिलिवर्डिन बनाती हैं।

(ii) इसके अतिरिक्त पित्त में उत्सर्जी पदार्थ कोलेस्टेरॉल, कुछ निम्नीकृत स्टीरॉयड हॉर्मोन्स, औषधियाँ आदि होती हैं।

(iii) ये उत्सर्जी पदार्थ यकृत के पित्त द्वारा ग्रहणी में पहुँच जाते हैं और मल के साथ शरीर से त्याग दिए जाते हैं।

उत्सर्जन में फुप्फुस का महत्व:

(i) श्वसन क्रिया के फलस्वरूप मुक्त CO₂ (18 L/day) एवं जलवाष्प फेफड़ों (फुफ्फुस) द्वारा शरीर से निष्कासित होती है।

(ii) फुफ्फुस शरीर से कार्बन डाइऑक्साइड जैसे अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करते हैं।

उत्सर्जन में त्वचा का महत्व:

(i) त्वचा में कई ग्रंथियां होती हैं, जो छिद्रों के माध्यम से अपशिष्ट उत्पादों को बाहर निकालने में मदद करती हैं। इसमें दो प्रकार की ग्रंथियाँ होती हैं: पसीना और वसामय ग्रंथियाँ।

(ii) जलीय प्राणियों में अमोर्निया का उत्सर्जन त्वचा द्वारा होता है। स्थलीय जन्तुओं, में त्वचा की स्वेद ग्रन्थियों द्वारा जल, खनिज तथा सूक्ष्म मात्रा में यूरिया, लैक्टिक अम्ल आदि पसीने के रूप में उत्सर्जित होता है।

(iii) वसामय ग्रंथियाँ शाखित ग्रंथियाँ होती हैं जो सीबम नामक एक तैलीय स्राव का स्राव करती हैं।

(iv) त्वचा की तेल ग्रन्थियाँ सीबम के साथ कुछ हाइड्रोकार्बन्स, मोम, स्टेरॉल, वसीय अम्ल आदि उत्सर्जित होते हैं।

6. मूत्रण की व्याख्या कीजिए।

उत्तर: पेशाब वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा मूत्राशय से मूत्र को बाहर निकाला जाता है। जैसे-जैसे मूत्र जमा होता है, मूत्राशय की मांसपेशियों की दीवारें फैलती जाती हैं। दीवारें मूत्राशय में संवेदी तंत्रिकाओं को उत्तेजित करती हैं, एक प्रतिवर्त क्रिया स्थापित करती हैं। यह प्रतिवर्त मूत्र त्यागने की इच्छा को उत्तेजित करता है। पेशाब निकालने के लिए, मूत्रमार्ग दबानेवाला यंत्र शिथिल होता है और मूत्राशय की चिकनी मांसपेशियां सिकुड़ जाती हैं। यह मूत्राशय से मूत्र को बलपूर्वक बाहर निकालता है।

7. स्तंभ 1 के बिंदुओं का खंड स्तंभ II से मिलान करें।

स्तंभ Iस्तंभ II
(i) अमोनियोत्सर्जन(अ) पक्षी
(ii) बोमेन-संपुट(ब) जल का पुनः अवशोषण
(iii) मूत्रण(स) अस्थिल मछलियाँ
(iv) यूरिकाअम्ल उत्सर्जन(द) मूत्राशय
(v) एडीएच(य) वृक्क नलिका

उत्तर: 

स्तंभ Iस्तंभ II
(i) अमोनियोत्सर्जन(स) अस्थिल मछलियाँ
(ii) बोमेन-संपुट(य) वृक्क नलिका
(iii) मूत्रण(द) मूत्राशय
(iv) यूरिकाअम्ल उत्सर्जन(अ) पक्षी
(v) एडीएच(ब) जल का पुनः अवशोषण

8. परासरण नियमन का अर्थ बताइए।

उत्तर: परासरण नियमन एक समस्थैतिक तंत्र है जो ऊतकों और शरीर के तरल पदार्थों में पानी और लवण के इष्टतम तापमान को नियंत्रित करता है। यह पानी और आयनिक सांद्रता द्वारा शरीर के आंतरिक वातावरण को बनाए रखता है।

9. स्थलीय प्राणी सामान्यतया यूरिया उत्सर्जी या यूरिक अम्ल उत्सर्जी होते हैं तथा अमोनिया उत्सर्जी नहीं होते हैं, क्यों?

उत्तर: स्थलीय जानवर या तो यूरिया उत्सर्जी या यूरिक अम्ल उत्सर्जी हैं, न कि अमोनिया उत्सर्जी। यह निम्नलिखित दो मुख्य कारणों से है:

(i) अमोनिया प्रकृति में अत्यधिक जहरीली है। इसलिए, इसे यूरिया या यूरिक एसिड जैसे कम विषैले रूप में बदलने की जरूरत है।

(ii) स्थलीय जानवरों को पानी बचाने की जरूरत है। चूंकि अमोनिया पानी में घुलनशील है, इसे पूर्णतया समाप्त नहीं किया जा सकता है। इसलिए, यह यूरिया या यूरिक एसिड में परिवर्तित हो जाता है। ये रूप कम विषेले होते हैं और पानी में अघुलनशील भी होते हैं। यह स्थलीय जानवरों को पानी के विषैलेपन से बचाने में मदद करता है।

10. वृक्क के कार्य में जक्सटागुच्छउपकरण (JGA) का क्या महत्व है?

उत्तर: जक्सटाग्लोमेरुलर उपकरण (Juxtaglomerular Apparatus – JGA) एक जटिल संरचना है जो नेफ्रॉन के एक विशेष भाग में स्थित होती है। यह अभिवाही धमनिका (Afferent arteriole), दूरस्थ संवलित नलिका (Distal convoluted tubule) और केशिकागुच्छ (Glomerulus) की कुछ विशिष्ट कोशिकाओं से मिलकर बनती है। इस स्थान पर अभिवाही धमनिका और दूरस्थ नलिका का प्रत्यक्ष संपर्क होता है।

इस उपकरण की प्रमुख कोशिकाएँ होती हैं जक्सटाग्लोमेरुलर कोशिकाएँ, जो अभिवाही धमनिका की दीवार में पाई जाती हैं। ये कोशिकाएँ रेनिन नामक एंजाइम का स्राव करती हैं, जो रक्तचाप और रक्त प्रवाह में कमी के प्रति संवेदनशील होती हैं।

जब केशिकागुच्छीय रक्तचाप या निस्यंदन दर (GFR) कम हो जाती है, तो ये कोशिकाएँ रेनिन का स्राव करती हैं। रेनिन रक्त में मौजूद एंजियोटेंसिनोजेन को सक्रिय करके पहले एंजियोटेंसिन I, और फिर एंजियोटेंसिन II में बदल देता है। एंजियोटेंसिन II एक शक्तिशाली वाहिकासंकीर्णक (vasoconstrictor) होता है, जो रक्तचाप और निस्यंदन दर को बढ़ाता है।

साथ ही, एंजियोटेंसिन II अधिवृक्क ग्रंथि की प्रांतस्था को एल्डोस्टेरोन हार्मोन स्रावित करने के लिए उत्तेजित करता है। एल्डोस्टेरोन दूरस्थ नलिका और एकत्रीकरण वाहिनी से सोडियम और जल के पुनः अवशोषण को बढ़ाता है, जिससे रक्त की आयतन और दबाव में वृद्धि होती है।

यह संपूर्ण प्रक्रिया रेनिन-एंजियोटेंसिन-एल्डोस्टेरोन तंत्र (RAAS) कहलाती है, जो शरीर में रक्तचाप को नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

11. नाम का उल्लेख कीजिए:

(अ) एक कशेरुकी जिसमें ज्वाला कोशिकाओं द्वारा उत्सर्जन होता है।

उत्तर: एम्फैक्सस एक कॉर्डेट का एक उदाहरण है जिसमें उत्सर्जन संरचनाओं के रूप में ज्वाला कोशिकाएं होती हैं। फ्लेम सेल एक प्रकार का उत्सर्जन और परासरणनियमन सिस्टम है।

(ब) मनुष्य के वृक्क के वल्कुट के भाग जो मध्यांश के पिरामिड के बीच धँसे रहते हैं।

उत्तर: मानव वृक्क में मज्जा पिरामिड के बीच प्रक्षेपित वल्कुट भाग बर्टिनी के स्तंभ हैं। वे मज्जा के भीतर मौजूद वल्कुट ऊतकों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

(स) हेनले-लूप के समानांतर उपस्थित केशिका का लूप।

उत्तर: हेनले लूप के समानांतर चलने वाले केशिका का एक लूप वासा रेक्टा के रूप में जाना जाता है। वासा रेक्टा, हेनले लूप के साथ, मेडुलरी इंटरस्टिटियम में एक सांद्रता प्रवणता बनाए रखने में मदद करता है।

12. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें :

(अ) हेनले-लूप की आरोही भुजा जल के लिए ________ जबकि अवरोही भुजा इसके लिए ___________ है।

उत्तर:  अपारगम्य, पारगम्य ।

(ब) वृक्क नलिका के दूरस्थ भाग द्वारा जल का पुनरावशोषण  ______ हार्मोन द्वारा होता है।

उत्तर: एडीएच।

(स) अपोहन द्रव में ______ पदार्थ के अलावा रक्त प्लाज्मा के अन्य सभी पदार्थ उपस्थित होते हैं।

उत्तर: नाइट्रोजनी अपशिष्ट।

(द) एक स्वस्थ व्यस्क मनुष्य द्वारा औसतन _______  ग्राम यूरिया का प्रतिदिन उत्सर्जन होता है।

उत्तर: 25 – 30 ग्राम ।

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