NCERT Class 11 Biology Chapter 15 शरीर द्रव तथा परिसंचरण

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NCERT Class 11 Biology Chapter 15 शरीर द्रव तथा परिसंचरण

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Chapter: 15

अभ्यास

1. रक्त के संगठित पदार्थों के अवयवों का वर्णन करें तथा प्रत्येक अवयव में लिखें। के एक प्रमुख कार्य के बारे मैं लिखें।

उत्तर: रक्त के घटक तत्व:

(i) एरिथ्रोसाइट्स (लाल रक्त कोशिकाएं/ RBCs): ये रक्त की सबसे अधिक मात्रा में पाई जाने वाली कोशिकाएं हैं, जिनमें हीमोग्लोबिन नामक लाल वर्णक होता है। इनका मुख्य कार्य शरीर के सभी अंगों तक ऑक्सीजन पहुंचाना है। इनका निर्माण अस्थि मज्जा (लंबी हड्डियां, पसलियां आदि) में होता है। प्रति घन मिलीमीटर रक्त में लगभग 4 से 6 मिलियन RBCs होते हैं।

(ii) ल्यूकोसाइट्स (श्वेत रक्त कोशिकाएं/ WBCs): ये रंगहीन, बिना हीमोग्लोबिन वाली और शरीर की सबसे बड़ी रक्त कोशिकाएं होती हैं। इनका कार्य शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को सशक्त बनाना है। ये दो प्रमुख श्रेणियों में विभाजित हैं:

(क) ग्रैन्यूलोसाइट्स (कणिकाण): इनमें साइटोप्लाज्म में दाने होते हैं और इनमें न्यूट्रोफिल, इओसिनोफिल और बेसोफिल शामिल हैं।

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न्यूट्रोफिल: संक्रामक एजेंटों को नष्ट करने वाले फागोसाइटिक कण हैं।

इओसिनोफिल: एलर्जी प्रतिक्रियाओं से जुड़े होते हैं।

बेसोफिल: सूजन और अन्य प्रतिक्रियाओं में भूमिका निभाते हैं।

(ख) एग्रानुलोसाइट्स: इनमें लिम्फोसाइट्स और मोनोसाइट्स आते हैं।

लिम्फोसाइट्स: यह प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न करते हैं।

मोनोसाइट्स: ये भी फागोसाइटिक होते हैं और संक्रमण से लड़ने में सहायक होते हैं।

(iii) प्लेटलेट्स (पट्टिकाण): ये रक्त में उपस्थित छोटे और अनियमित आकार के कण होते हैं, जिनमें रक्त का थक्का बनाने के लिए आवश्यक रसायन होते हैं। इनका प्रमुख कार्य रक्तस्राव को रोकने हेतु क्लॉटिंग को बढ़ावा देना होता है।

2. प्लाज्मा (प्लैज्मा) प्रोटीन का क्या महत्व है?

उत्तर: प्लाज्मा रक्त का एक रंगहीन तरल घटक है जो रक्त का लगभग 55% भाग बनाता है। यह शरीर में भोजन, कार्बन डाइऑक्साइड, अपशिष्ट पदार्थों और लवणों के परिवहन में सहायक होता है। प्लाज्मा का लगभग 6.8% भाग प्रोटीन से बना होता है, जिनमें प्रमुख रूप से फाइब्रिनोजेन, ग्लोब्युलिन और एल्ब्यूमिन शामिल हैं। फाइब्रिनोजेन एक ग्लाइकोप्रोटीन है जो यकृत द्वारा निर्मित होता है और यह रक्त के थक्के जमाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ग्लोब्युलिन शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है और संक्रमण से रक्षा करता है। एल्ब्यूमिन प्लाज्मा का एक अन्य महत्वपूर्ण प्रोटीन है जो रक्तवाहिनियों में द्रव की मात्रा और दाब को संतुलित रखने में मदद करता है। इस प्रकार, प्लाज्मा न केवल पोषक तत्वों के परिवहन में सहायक है, बल्कि शरीर की सुरक्षा और द्रव संतुलन बनाए रखने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

3. स्तंभ 1 का स्तंभ II से मिलान करें।

स्तंभ Iस्तंभ II
(i) इयोसिनोफिल्स(क) रक्त जमाव ( स्कंदन)
(ii) लाल रुधिर कणिकाएं(ख) सर्व आदाता
(iii) AB रक्त समूह(ग) संक्रमण प्रतिरोधन
(iv) पट्टिकाणु प्लेट्लेट्स(घ) हृदय सकुंचन
(v) प्रकुंचन (सिस्टोल)(च) गैस परिवहन (अभिगमन)

उत्तर: 

स्तंभ Iस्तंभ II
(i) इयोसिनोफिल्स(ग) संक्रमण प्रतिरोधन
(ii) लाल रुधिर कणिकाएं(च) गैस परिवहन (अभिगमन)
(iii) AB रक्त समूह(ख) सर्व आदाता
(iv) पट्टिकाणु प्लेट्लेट्स(क) रक्त जमाव ( स्कंदन)
(v) प्रकुंचन (सिस्टोल)(घ) हृदय सकुंचन

4. रक्त को एक संयोजी ऊतक क्यों मानते हैं?

उत्तर: (i) रुधिर संयोजी ऊतक है क्योंकि इसका तरल माध्यम मैट्रिक्स को प्रदर्शित करता है जिसमें जीवित कोशिकाएँ (रुधिराणु) उपस्थित रहते हैं।

(ii) अन्य संयोजी ऊतकों की तरह, रक्त भी मूल रूप से मेसोडर्मल होता है।

(iii) यह शरीर प्रणालियों को जोड़ता है, शरीर के सभी भागों में ऑक्सीजन और पोषक तत्वों को पहुंचाता है, और अपशिष्ट उत्पादों को हटाता है। रक्त में प्लाज्मा नामक एक बाह्य कोशिकीय मैट्रिक्स होता है, जिसमें लाल रक्त कोशिकाएं, श्वेत रक्त कोशिकाएं और प्लेटलेट्स तैरते हैं।

5. लसीका एवं रुधिर में अंतर बताएं?

उत्तर: 

लसीकारुधिर
(i) यह एक रंगहीन तरल पदार्थ है जिसमें आरबीसी नहीं होता हैं ।(i) यह एक लाल रंग का द्रव होता है जिसमें RBC होते हैं।
(ii) अविलेय प्लाज्मा प्रोटीन अधिक होती है। लिंफोसाइट्स की संख्या अधिक होती है।(ii) विलेय प्लाजमा प्रोटीन अधिक होती है।
(iii) यह शरीर की रक्षा में मदद करता है और प्रतिरक्षा प्रणाली का एक हिस्सा है।(iii) यह ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड के संचालन से जुड़ा है।
(iv) इसके प्लाज्मा में प्रोटीन की कमी होती है।(iv) इसके प्लाज्मा में प्रोटीन, कैल्शियम, और फास्फोरस होते हैं।
(v) लसीका का प्रवाह धीमा होता है।(v) रक्तवाहिकाओं में रक्त का प्रवाह तेज होता है।
(vi) यह पोषक तत्वों को लसीका वाहिकाओं के माध्यम से ऊतक कोशिकाओं से रक्त तक पहुंचाता है।(vi) यह पोषक तत्वों और ऑक्सीजन को एक अंग से दूसरे अंग तक पहुंचाता है।

6. दोहरे परिसंचरण से क्या तात्पर्य है? इसकी क्या महत्ता है?

उत्तर: दोहरा परिसंचरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें रक्त एक पूर्ण चक्र के दौरान हृदय से दो बार गुजरता है। इस प्रकार का परिसंचरण उभयचरों, सरीसृपों, पक्षियों और स्तनधारियों में पाया जाता है। हालाँकि, यह पक्षियों और स्तनधारियों में अधिक प्रमुख है क्योंकि उनमें हृदय पूरी तरह से चार कक्षों में विभाजित होता है- दायाँ अलिंद, दायाँ निलय, बायाँ अलिंद और बायाँ निलय।

दोहरे परिसंचरण का महत्ता: 

ऑक्सीजन युक्त और ऑक्सीजन रहित रक्त को अलग करने से शरीर की कोशिकाओं को ऑक्सीजन की अधिक कुशल आपूर्ति की अनुमति मिलती है। रक्त शरीर के ऊतकों में प्रणालीगत परिसंचरण के माध्यम से और फेफड़ों में फुफ्फुसीय परिसंचरण के माध्यम से परिचालित होता है।

7. भेद स्पष्ट करें-

(क) रक्त एवं लसीका।

उत्तर: 

रक्तलसीका
(i) रुधिर का रंग लाल होता है।(i) लसीका का रंग सफेद होता है।
(ii) इसमें प्लाज्मा, आरबीसी, डब्ल्यूबीसी और प्लेटलेट्स होते हैं। इसमें प्रोटीन भी होता है।(ii) इसमें प्लाज्मा और कम संख्या में डब्ल्यूबीसी और प्लेटलेट्स होते हैं। इसमें प्रोटीन की कमी होती है।
(iii) रक्तवाहिकाओं में रक्त का प्रवाह तेज होता है।(iii) लसीका का प्रवाह धीमा होता है।
(iv) ऑक्सीजन तथा पोषक पदार्थ अधिक मात्रा में पाए जाते हैं।(iv) उत्सर्जित पदार्थों की मात्रा अपेक्षाकृत अधिक होती है।
(v) रक्त पोषक तत्वों और ऑक्सीजन को एक अंग से दूसरे अंग तक पहुंचाता है।(v) लसीका शरीर की रक्षात्मक प्रणाली में एक भूमिका निभाता है। यह प्रतिरक्षा प्रणाली का एक हिस्सा है।

(ख) खुला व बंद परिसंचरण तंत्र।

उत्तर: 

खुला परिसंचरण तंत्रबंद परिसंचरण तंत्र
(i) रक्त खुले ऊतक स्थानों, साइनस से होकर बहता है।(i) रक्त बंद नलियों, रक्त वाहिकाओं, में बहता है, जिनकी दीवारें निश्चित होती हैं।
(ii) रक्त ऊतक कोशिकाओं के सीधे संपर्क में होता है।(ii) रक्त ऊतक कोशिकाओं के सीधे संपर्क में नहीं आता है।
(iii) रक्त कम दबाव में बहता है। इसलिए, यह परिसंचरण की धीमी और कम कुशल प्रणाली है।(iii) रक्त उच्च दाब पर बहता है। इसलिए, यह परिसंचरण की एक तेज़ और अधिक कुशल प्रणाली है।
(iv) रक्त के प्रवाह को ऊतकों और अंगों के माध्यम से नियंत्रित नहीं किया जाता है।(iv) रक्त के प्रवाह को वाल्वों द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है।
(v) यह प्रणाली आर्थोपोडा (जैसे कि कीट, मोलस्क आदि) में पाई जाती है।(v) यह प्रणाली एनेलिड्स, इचिनोडर्म्स और वर्टेब्रेट्स में मौजूद है।

(ग) प्रकुंचन तथा अनुशिथिलन।

उत्तर: 

प्रकुंचनअनुशिथिलन
(i) यह महाधमनी और फुफ्फुसीय धमनी में रक्त को चलाने के लिए हृदय कक्षों का संकुचन है(i) यह दो संकुचनों के बीच हृदय कक्षों की शिथिलता है। डायस्टोल के दौरान, कक्ष रक्त से भर जाते हैं।
(ii) लसिका एक रंगहीन द्रव्य है जिसमें विशेष लिम्फोसाइट मिलती है यह महत्वपूर्ण पोषक तत्वों, हार्मोन आदि का संवाहक भी है वसा का अवशोषण क्षुद्रांत्र के रसांकुर में उपस्थित लसिका वाहिनियों में होता है।(ii) रुधिर द्रवीय माध्यम प्लाज्मा से निर्मित है इसमे तीन प्रकार की रुधिर कणिकाएँ मिलती है जैसे लाल रुधिर कणिकाएँ सफ़ेद रुधिर कणिकाएं तथा प्लेटलेट्स रुधिर कणिकाएं अस्थि मज्जा में निर्मित होती हैं।
(iii) सिस्टोल हृदय कक्षों का आयतन कम कर देता है और उनमें से रक्त को बाहर निकाल देता है।(iii) डायस्टोल अधिक रक्त प्राप्त करने के लिए हृदय कक्षों को उनके मूल आकार में वापस लाता है।

(घ) P तरंग तथा T तरंग।

उत्तर: 

P तरंगT तरंग
(i) एक इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (ईसीजी) में, P- तरंग SA नोड के सक्रियण को इंगित करता है।(i) एक इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (ईसीजी) में, T- तरंग वेंट्रिकुलर शिथिलता को दर्शाती है
(ii) इस चरण के दौरान, संकुचन का आवेग SA नोड द्वारा उत्पन्न होता है, जिससे आलिंद विध्रुवण होता है।(ii) इस चरण के दौरान, निलय आराम करते हैं और अपनी सामान्य स्थिति में लौट आते हैं।
(iii) यह आलिंद से उत्पन्न होती है।(iii) यह निलय उत्पन्न होती है।

8. कशेरुकी के हृदयों में विकासीय परिवर्तनों का वर्णन करें?

उत्तर: कशेरुकी प्राणियों में हृदय का निर्माण भ्रूण के मध्य स्तर (mesoderm) से होता है। भ्रूण अवस्था में आद्यांत्र (archenteron) के नीचे आधारीय आन्त्र योजनी (mesentery) में दो अनुदैर्ध्य अन्तःस्तरी नलिकाएँ (endothelial canals) परस्पर मिलकर हृदय का निर्माण करती हैं। हृदय एक पेशीय थैलीनुमा रचना होती है। यह शरीर से रक्त एकत्र करके धमनियों द्वारा शरीर के विभिन्न भागों में पंप करता है। 

कशेरुकी प्राणियों में हृदय निम्नलिखित प्रकार के होते हैं:

(क) एक कोष्ठीय हृदय (Single-chambered Heart) : सरलतम हृदय सिफेलो कॉर्डेटा (cephalochordates) जंतुओं में पाया जाता है। ग्रसनी के नीचे स्थित अधरीय एओर्टा पेशीय होकर रक्त को पंप करने का कार्य करता है। इसे एक कोष्ठीय हृदय मानते हैं। कार्य

(ख) द्विकोई य हृदय (Two-chambered Heart) : मछलियों में द्विकोष्ठीय हृदय होता है।

यह अनॉक्सी जनित रक्त को गिल्स (gills) में पंप कर देता है। गिल्स से यह रक्त ऑक्सीजनित होकर शरीर में वितरित हो जाता है। इसमें धमनीकोटर एवं शिरा कोटर सहायक कोष्ठ तथा आलिंद और निलय वास्तविक कोष्ठ होते हैं, इस प्रकार के हृदय को शिरीय हृदय (venous heart) कहते हैं।

(ग) तीन कोष्ठीय हृदय (Three-chambered Heart) : उभयचर (amphibians) में तीन कोष्ठीय हृदय पाया जाता है। इसमें दो अलिंद तथा एक निलय होता है। शिरा कोटर (sinus venosus) दाहिने अलिंद के पृष्ठ तल जर खुलता है। बाएं आलिंद में शुद्ध तथा दाहिने आलिंद में अशुद्ध रक्त रहता है। निलय पेशीय होता है। वान्डरवाल तथा फंक्शन के अनुसार उभयचरों में मिश्रित रक्त वितरित होता है। इसमें रुधिर संचरण एक परिपथ (single circuit) वाला होता है।

(घ) चार कोष्ठीय हृदय (Four-chambered Heart) : अधिकांश सरीसृपों में दो अलिंद

तथा दो अपूर्ण रूप से विभाजित निलय पाए जाते हैं। मगरमच्छ के हृदय में दो अलिंद तथा दो निलय होते हैं। पक्षी तथा स्तनी जन्तुओं में दो अलिंद तथा दो निलय होते हैं। बाएं अलिंद तथा बाएँ निलय में शुद्ध रक्त भरा होता है। इसे दैहिक चाप द्वारा शरीर में पंप कर दिया जाता है। दाएँ। अलिन्द में शरीर के विभिन्न भागों से अशुद्ध रक्त एकत्र होता है। यह दाएँ निलय से शुद्ध होने के लिए फेफड़ों में भेज दिया जाता है। इस प्रकार हृदय का बायां भाग पल्मोनरी हृदय (pulmonary heart) तथा दायां भाग सिस्टेमिक हृदय (systemic heart) कहलाता है। इन प्राणियों में दोहरा परिसंचरण होता है। इसमें रक्त के मिश्रित होने की संभावना

9. हम अपने हृदय को पेशीजनक (मायोजेनिक) क्यों कहते हैं?

उत्तर: हृदय की भित्ति हृदय पेशियों (cardiac muscles) से बनी होती है। ये पेशियाँ रचना में रेखित (striated) होती हैं, लेकिन कार्यात्मक रूप से अरेखित (non-striated) पेशियों की तरह अनैच्छिक होती हैं, यानी इन पर हमारी इच्छा का नियंत्रण नहीं होता। ये पेशियाँ जीवन भर बिना थके, बिना रुके, नियमित दर (मनुष्यों में लगभग 72 बार प्रति मिनट) और लय (rhythm) से लगातार संकुचित और शिथिल होती रहती हैं। प्रत्येक हृदय स्पंदन की संकुचन प्रेरणा हृदय की स्वयं की प्रेरणा-संवहनीय पेशी तंतु प्रणाली के ‘S-A नोड’ (Sinoatrial Node) से शुरू होती है। यहाँ से यह प्रेरणा A-V नोड, फिर हिस का समूह (Bundle of His) तथा पुरकिन्जे तंतु (Purkinje fibers) के माध्यम से पूरे अलिंदों और निलयों में फैलती है। हृदय की पेशियाँ पेशीजनक (myogenic) होती हैं, अर्थात् इनका संकुचन स्वयं पेशियों द्वारा उत्पन्न होता है, न कि तंत्रिकीय संकेतों द्वारा। यदि हृदय से जुड़ी तंत्रिकाओं को काट भी दिया जाए, तो भी यह अपनी निर्धारित गति से धड़कता रहता है। हालांकि, तंत्रिकाएं हृदय की गति की दर को कम या अधिक कर सकती हैं। हृदय पेशियों में ऊर्जा की अधिक आवश्यकता होने के कारण इनमें माइटोकॉन्ड्रिया की संख्या बहुत अधिक होती है, जो आवश्यक ऊर्जा प्रदान करते हैं।

10. शिरा अलिंद पर्व (कोटरालिंद गाँठ SAN) को हृदय का गति प्रेरक (पेशमेकर) क्यों कहा जाता है?

उत्तर: शिरा अलिन्द पर्व (कोटरालिन्द गाँठ SAN) : दाएँ अलिन्द की भित्ति के अग्र महाशिरा छिद्र के समीप शिरा अलिन्द घुण्डी (Sinoatrial Node, SAN) स्थित होती है। इसे गति प्रेरक (pacemaker) भी कहते हैं। इससे स्पन्दन संकुचन प्रेरणा स्वतःः उत्पन्न होती है। इसके तन्तुओं में 55 से 60 मिलीवोल्ट का विश्राम विभव (resting potential) होता है, जबकि हृदय पेशियों में यह-85 से 95 मिली वोल्ट और हृदय में फैले विशिष्ट चालक तन्तुओं में 90 से 100 मिलीवोल्ट होता है। शिरा अलिन्द पर्व (SAN) से सोडियम आयनों के लीक होने से हृदय स्पन्दन प्रारम्भ होता है। शिरा अलिन्द पर्व की लयबद्ध उत्तेजना प्रति मिनट 72 स्पन्दनों की एक सामान्य विराम दर पर जीवन पर्यन्त चलती रहती है।

11. अलिंद निलय गाँठ (AVN) तथा आलिंद निलय बंडल (AVB) का हृदय के कार्य में क्या महत्व है।

उत्तर: अलिंद-निलय पर्व (AV Node) हृदय के दाएँ अलिंद में, अंतरनिलय पट्ट (interventricular septum) के आधार के पास स्थित होता है, जो दाएँ अलिंद को निलय से अलग करता है। यह हिस के बंडल (Bundle of His) को जन्म देता है, जो हृदय की विद्युत आवेगों को अलिंद से निलय तक पहुंचाता है। जैसे ही हिस का बंडल अंतरनिलय पट्ट से होकर गुजरता है, यह दो शाखाओं में विभाजित हो जाता है एक दाएँ निलय और दूसरी बाएँ निलय के लिए। इन शाखाओं की अंतिम विभाजित रचनाएँ पुरकिन्जे रेशों (Purkinje fibers) का एक नेटवर्क बनाती हैं, जो मायोकार्डियम (हृदय पेशी) में प्रवेश कर निलयों के संकुचन को नियंत्रित करती हैं। हृदय का संकुचन प्रक्रिया साइनो-एट्रियल नोड (SA Node) से शुरू होती है, जहाँ से उद्दीपन की लहर अलिंदों को संकुचित करती है और AV नोड तक पहुँचकर उसे उत्तेजित करती है। इसके बाद यह आवेग हिस बंडल और पुरकिन्जे तंतुओं के माध्यम से निलयों तक पहुँचता है, जिससे उनका संकुचन होता है। इस प्रकार, AV नोड और हिस बंडल हृदय के निलयों के समन्वित संकुचन में मुख्य भूमिका निभाते हैं।

12. हद चक्र तथा हृदनिकास को पारिभाषित करें?

उतर: (i) हृद चक्र (Cardiac Cycle) : एक हृदय स्पन्दन के आरम्भ से दूसरे स्पन्दन के आरम्भ होने के बीच के घटनाक्रम को हृद चक्र (cardiac cycle) कहते हैं। इस क्रिया में दोनों अलिन्दों तथा दोनों निलयों का प्रकुंचन एवं अनुशिथिलन सम्मिलित होता है। हृदय स्पन्दन एक मिनट में 72 बार होता है। अतः एक हृदय चक्र का, समय 0.8 सेकण्ड होता है।

(ii) हृद निकास (Cardiac Output) : हृदय प्रत्येक हृद चक्र में लगभग 70 मिली रक्त पम्प करता है, इसे प्रवाह आयतन (stroke volume) कहते हैं। प्रवाह आयतन को हृदय दर से गुणा करने पर जो मात्रा आती है, उसे हृद निकास (cardiac output) कहते हैं।

हृद निकास = हृदय दर x प्रवाह आयतन

अतः हृद निकास प्रत्येक निलय द्वारा रक्त की मात्रा को प्रति मिनट बाहर निकालने की क्षमता है जो स्वस्थ मनुष्य में लगभग 5 लीटर होती है। खिलाड़ियों का हृद निकास सामान्य मनुष्य से अधिक होता है।

13. हृदय ध्वनियों की व्याख्या करें।

उत्तर: दिल की ध्वनियाँ हृदय के वाल्वों के खुलने और बंद होने के कारण उत्पन्न होती हैं। एक स्वस्थ व्यक्ति में दो प्रमुख हृदय ध्वनियाँ सुनाई देती हैं, जिन्हें “लब” और “डब” कहा जाता है। “लब” पहली हृदय ध्वनि होती है, जो हृदय के संकुचन (प्रकुंचन) की शुरुआत में त्रिक कपाट (त्रिवलनी) और द्विक कपाट (द्विवलनी) के बंद होने पर उत्पन्न होती है। दूसरी ध्वनि, “डब”, हृदय के शिथिलन (अनुशिथिलन) की शुरुआत में अर्धचंद्र कपाटों के बंद होने से उत्पन्न होती है। ये ध्वनियाँ हृदय की संरचना और उसकी कार्यप्रणाली की स्थिति का संकेत देती हैं, और इनके माध्यम से हृदय संबंधी कई रोगों का अनुमान लगाया जा सकता है।

14. एक मानक ईसीजी को दर्शाए तथा उसके विभिन्न खंडों का वर्णन करें।

उत्तर: हृदय स्पंदन में तंत्रिका एवं पेशियों द्वारा उत्पादित वैद्युत संकेतों को बताता है तथा लिपिबद्ध करता है। इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम हृदय के आवेगों को एक कागज के ऊपर ग्राफ के रूप में व्यक्त करता है, जो कि इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफ कहलाता है। प्राय: E.C.G. में एक P – तरंग (लहर), एक QRS सम्मिश्रण तथा एक T-तरंग होता है।

एक सामान्य मानव इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम में पांच तरंगें होती हैं – P, Q, R, S, और TP, R, और T-तरंगें आधार रेखा से ऊपर होती हैं और सकारात्मक तरंगों के रूप में जानी जाती हैं। Q और s-तरंगें आधार रेखा से नीचे होती हैं और नकारात्मक तरंगों के रूप में जानी जाती हैं। P-तरंग अलिंद मूल की है, जबकि Q, R, S और I-तरंगें निलय मूल की हैं।

(i) P तरंगें अलिंद विध्रुवण को इंगित करता है। इस तरंगें के दौरान संकुचन का आवेग SA नोड द्वारा उत्पन्न होता है। PQ-तरंग आलिंद संकुचन का प्रतिनिधित्व करती है।

(ii) QR-तरंगें निलय संकुचन से पहले होती है। यह AV नोड से निलय की दीवार तक संकुचन के आवेग के प्रसार का प्रतिनिधित्व करता है। यह अलिंद निलय पर्व विध्रुवण की ओर ले जाता है।

(iii) RS – तरंगें लगभग 0.3 सेकंड के निलय संकुचन का प्रतिनिधित्व करती है।

(iv) ST- तरंगें लगभग 0.4 सेकंड की आलिंद निलय छूट का प्रतिनिधित्व करती है। इस चरण के दौरान, निलय शिथिल हो जाते हैं और अपनी सामान्य स्थिति में लट आते हैं।

(v) T- तरंगें निलय विश्राम का प्रतिनिधित्व करती है।

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