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NCERT Class 7 Social Science Samajik Aur Rajniti Jeevan Chapter 4 लड़के और लड़कियों के रूप में बड़ा होना
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लड़के और लड़कियों के रूप में बड़ा होना
Chapter: 4
सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन-२
इकाई तीन: लिंग बोध-जेंडर |
1. आपके बड़े होने के अनुभव, सामोआ के बच्चों और किशोरों के अनुभव से किस प्रकार भिन्न हैं? इन अनुभवों में वर्णित क्या कोई ऐसी बात है, जिसे आप अपने बड़े होने के अनुभव में शामिल करना चाहेंगे?
उत्तर: जब हम छोटे थे, तो हमारी देखभाल हमारे माता-पिता करते थे, और यह सिलसिला किशोरावस्था तक चलता रहा। युवावस्था में जाकर हम धीरे-धीरे स्वतंत्र होने लगे। इसके विपरीत, सामोआ में बच्चों की देखभाल का तरीका बिल्कुल अलग था। वहां जैसे ही छोटे बच्चे चलना शुरू कर देते, उनकी माताएं या बड़े लोग उनकी देखभाल करना छोड़ देते थे। यह जिम्मेदारी बड़े बच्चों पर आ जाती थी, जो खुद भी लगभग पाँच साल के होते थे।
सामोआ में लड़के और लड़कियां दोनों ही अपने छोटे भाई-बहनों की देखभाल करते थे। जब कोई लड़का नौ साल का हो जाता, तो वह बड़े लड़कों के समूह में शामिल हो जाता और मछली पकड़ने या नारियल के पेड़ लगाने जैसे बाहर के काम सीखने लगता। लड़कियां तेरह-चौदह साल की उम्र तक छोटे बच्चों की देखभाल और बड़े लोगों के छोटे-मोटे काम करती रहती थीं। लेकिन तेरह-चौदह साल की उम्र के बाद वे अधिक स्वतंत्र हो जाती थीं। वे मछली पकड़ने, बागानों में काम करने, डलिया बुनने, और खाना बनाने जैसे कार्यों में भाग लेने लगती थीं।
भारत में बच्चों का अनुभव इससे अलग है। यहां बच्चे आमतौर पर 20 वर्ष की उम्र के बाद ही कमाना शुरू करते हैं। हालांकि, कुछ बच्चे मजबूरीवश कम उम्र में भी काम करना शुरू कर देते हैं। सामोआ की जीवनशैली और भारतीय समाज में बच्चों की परवरिश में यह अंतर साफ देखा जा सकता है।
2. अपने पड़ोस की किसी गली या पार्क का चित्र बनाइए। उसमें छोटे लड़के व लडकियों द्वारा की जा सकने वाली विभिन्न प्रकार की गतिविधियों को दर्शाइए। यह कार्य आप अकेले या समूह में भी कर सकते हैं।
उत्तर: विद्यार्थी स्वयं करें।
3. आपके द्वारा बनाए गए चित्र में क्या उतनी ही लड़कियाँ हैं जितने लड़के? संभव है कि आपने लड़कियों की संख्या कम बनाई होगी। क्या आप वे कारण बता सकते हैं जिनकी वजह से आपके पड़ोस में, सड़क पर, पार्कों और बाज़ारों में देर शाम या रात के समय स्त्रियाँ तथा लड़कियाँ कम दिखाई देती हैं?
उत्तर: विद्यार्थी स्वयं करें।
4. क्या लड़के और लड़कियाँ अलग-अलग कामों में लगे हैं? क्या आप विचार करके इसका कारण बता सकते हैं? यदि आप लड़के और लड़कियों का स्थान परस्पर बदल देंगे, अर्थात् लड़कियों के स्थान पर लड़कों और लड़कों के स्थान पर लड़कियों को रखेंगे, तो क्या होगा?
उत्तर: विद्यार्थी स्वयं करें।
5. क्या हरमीत और सोनाली का यह कहना सही था कि हरमीत की माँ काम नहीं करतीं?
उत्तर: नहीं, हरमीत और सोनाली का यह कहना सही नहीं था कि हरमीत की माँ काम नहीं करती क्योंकि उसकी माँ समस्त घर के कार्य करती है और घर को उचित ढंग से रखती है। हरमीत के परिवार को नहीं लगता था कि जसप्रीत घर का जो काम करती थी, वह वास्तव में काम था। उनके परिवार में ऐसी भावना का होना कोई निराली बात नहीं थी। सारी दुनिया में घर के काम की मुख्य ज़िम्मेदारी स्त्रियों की ही होती है, जैसे- देखभाल संबंधी कार्य, परिवार का ध्यान रखना, विशेषकर बच्चों, बुजुर्गों और बीमारों का। फिर भी, जैसा हमने देखा, घर के अंदर किए जाने वाले कार्यों को महत्त्वपूर्ण नहीं समझा जाता। जब हरमीत की माँ ने काम करना बंद कर दिया तो पूरा परिवार अस्त-व्यस्त हो गया। उसकी माँग स्वयं काम करके न केवल काफी धन खर्च होने से बचाती है, बल्कि घर को भी व्यवस्थित रखती है, साथ ही भोजन बनाने, कपड़े धोने, घर को साफ करने में होने वाले वेस्टेज़ को भी रोकती है।
6. आप क्या सोचते हैं, अगर आपकी माँ या वे लोग, जो घर के काम में लगे हैं, एक दिन के लिए हड़ताल पर चले जाएँ, तो क्या होगा?
उत्तर: अगर मेरी माँ या घर का काम करने वाले एक दिन के लिए हड़ताल पर चले गए तो पूरा घर अस्त-व्यस्त हो जाएगा। इसके परिणाम में अशान्ति एवं समस्यायें आएँगी क्योंकि मैं व घर के अन्य लोग, व्यवस्थित रूप में प्रतिदिन के घरेलू कार्य करने के लिए अभ्यस्त नहीं हैं और न ही इन कार्यों के पूरी तरह जानकार हैं। पुरुषों के लिए इसे प्रबंधित करना संभव नहीं होगा। पुरुष और लड़के आमतौर पर घर का काम नहीं करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि यह काम महिलाओं और लड़कियों का डोमेन है।
7. आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि सामान्यतः पुरुष या लड़के घर का काम नहीं करते? आपके विचार में क्या उन्हें घर का काम करना चाहिए?
उत्तर: मेरे विचार में, सामान्यतः पुरुष या लड़के घर के काम नहीं करते हैं, क्योंकि हमारे समाज ने उनके लिए एक भिन्न प्रकार के कार्य निर्धारित किए हुए हैं। यह समाज में बनी पारंपरिक धारणाओं और भूमिकाओं के कारण है। कई संस्कृतियों में यह विचार किया जाता है कि घर का काम महिलाओं का दायित्व है, जबकि पुरुषों को बाहर काम करने और परिवार की आर्थिक जिम्मेदारियों को संभालने की भूमिका दी जाती है। मेरे विचार में पुरुषों या लड़कों को भी घर का काम करना चाहिए क्योंकि लिंग के आधार पर कार्यों के विभाजन विशेषीकरण नहीं किया गया है। समाज में समानता के दृष्टिकोण से यह जरूरी है।
8. हरियाणा और तमिलनाडु राज्यों में स्त्रियाँ प्रति सप्ताह कुल कितने घंटे काम करती हैं?
उत्तर:
राज्य | स्त्रियों के वेतन सहित कार्य के घंटे (प्रति सप्ताह) | स्त्रियों के अवैतनिक घरेलू काम के घंटे (प्रति सप्ताह) | स्त्रियों के कुल काम के घंटे | पुरुषों के वेतन सहित कार्य के घंटे (प्रति सप्ताह) | पुरुषों के अवैतनिक घरेलू काम के घंटे (प्रति सप्ताह) | पुरुषों के कुल काम के घंटे |
हरियाणा | 23 | 30 | 53 | 38 | 2 | 40 |
तमिलनाडु | 19 | 35 | 54 | 40 | 4 | 44 |
9. इस संबंध में स्त्रियों और पुरुषों में कितना फ़र्क दिखाई देता है?
उत्तर: हरियाणा और तमिलनाडु दोनों में स्त्रियाँ पुरुषों की तुलना में अधिक घंटे काम करती हैं, खासकर अवैतनिक घरेलू काम में। यह दर्शाता है कि स्त्रियाँ सामाजिक और पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ ज्यादा उठाती हैं, जबकि पुरुषों के लिए ये घंटे कम होते हैं।
अभ्यास |
1. साथ में दिए गए कुछ कथनों पर विचार कीजिए और बताइए कि वे सत्य हैं या असत्य? अपने उत्तर के समर्थन में एक उदाहरण भी दीजिए।
(क) सभी समुदाय और समाजों में लड़कों और लड़कियों की भूमिकाओं के बारे में एक जैसे विचार नहीं पाए जाते।
उत्तर: सत्य
उदाहरण: ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों पर घरेलू जिम्मेदारियों का जोर होता है, जबकि शहरी क्षेत्रों में उन्हें करियर बनाने का अवसर मिलता है।
(ख) हमारा समाज बढ़ते हुए लड़कों और लड़कियों में कोई भेद नहीं करता।
उत्तर: सत्य
उदाहरण: लड़कों को अधिक स्वतंत्रता मिलती है, जबकि लड़कियों पर कई पाबंदियां लगाई जाती हैं।
(ग) वे महिलाएँ जो घर पर रहती हैं, कोई काम नहीं करतीं।
उत्तर: असत्य
उदाहरण: महिलाएं खाना बनाना, सफाई और बच्चों की देखभाल जैसे कई महत्वपूर्ण कार्य करती हैं।
(घ) महिलाओं के काम, पुरुषों के काम की तुलना में कम मूल्यवान समझे जाते हैं।
उत्तर: सत्य
उदाहरण: घरेलू कामों को आर्थिक महत्व नहीं दिया जाता, जबकि पेशेवर शेफ को सम्मान मिलता है।
2. घर का काम अदृश्य होता है और इसका कोई मूल्य नहीं चुकाया जाता।
घर के काम शारीरिक रूप से थकाने वाले होते हैं।
घर के कामों में बहुत समय खप जाता है।
अपने शब्दों में लिखिए कि ‘अदृश्य होने ‘शारीरिक रूप से थकाने’ और ‘समय खप जाने’ जैसे वाक्यांशों से आप क्या समझते हैं? अपने घर की महिलाओं के काम के आधार पर हर बात को एक उदाहरण से समझाइए।
उत्तर: अदृश्य होना: अदृश्य होने का आशय है कि महिलाओं के द्वारा घर पर किया जाने वाला बहुत सा काम कार्य के रूप में दिखाई नहीं देता, जैसे— बिस्तर उठाना, पानी पिलाना, पानी भरना आदि। इसलिए इन्हें अदृश्य कहा गया है।
शारीरिक रूप से थका देने वाला: इस वाक्यांश का आशय यह है कि महिलाओं द्वारा किये जाने वाले घरेलू काम काज में बहुत मेहनत लगती है। खाना पकाते समय तपते चूल्हे के आगे घंटों खड़े रहना पड़ता है। बरतन धोने में कमर में दर्द होने लगता है। कपड़े खंगालते और निचोड़ते समय बार बार झुकना पड़ता है।
समय खप जाना: इस वाक्यांश का आशय यह है कि घर में छोटे-छोटे इतने काम होते हैं जिनको पूरा करते-करते उनका पूरे दिन का समय व्यतीत हो जाता है। प्रायः औरतें खाली समय में भी कार्य करती हैं, जैसे- कपड़ों के काज-बटन ठीक करना, उधड़े हुए कपड़ों की सिलाई करना, स्वेटर बुनना आदि।
3. ऐसे विशेष खिलौनों की सूची बनाइए, जिनसे लड़के खेलते हैं और ऐसे विशेष खिलौनों की भी सूची बनाइए, जिनसे केवल लड़कियाँ खेलती हैं। यदि दोनों सूचियों में कुछ अंतर है, तो सोचिए और बताइए कि ऐसा क्यों है? सोचिए कि क्या इसका कुछ संबंध इस बात से है कि आगे चलकर वयस्क के रूप में बच्चों को क्या भूमिका निभानी होगी?
उत्तर:
लड़कों के खिलौने | लड़कियों के खिलौने |
वीडियोगेम | गुड़िया |
बैट-बॉल | घर-घर |
मोटर-कार | पत्थर खेल |
बंदूक | छुपन-छुपाई |
रेलगाड़ी | लुडो |
इन दोनों सूचियों में अन्तर होने का मुख्य कारण यह है कि लड़कियों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे चारदीवारी के अन्दर रहें। वे संयमी, सहनशील, मृदुभाषी हों जिससे वे ससुराल में भलीभांति रह सकें। दूसरी तरफ लड़कों से यह अपेक्षा की जाती है कि वह घर की चारदीवारी के बाहर कार्य करे, बहादुर बने तथा बड़े होकर समाज में अपनी भूमिका भलीभांति निभाए।
समाज में लड़के जब युवावस्था में पहुँचते हैं तो वे उन्हीं कामों को ज्यादा पसंद करते हैं जिसे वे बचपन में खिलौने के रूप में खेल करते थे; जैसे-सेना में भर्ती होना, पुलिस या पुलिस ऑफिसर बनना, गाड़ी चलाना आदि कार्यों को करना पसंद करते हैं। इसके विपरीत लड़कियाँ युवावस्था में किसी भी कार्य करने के साथ-साथ घरेलू जिम्मेदारी अवश्य निभाती हैं। यद्यपि वर्तमान में शहरी क्षेत्र में यह विभेद काफी हद तक कम हुआ है। अब लड़कियों को भी लड़कों के समान खिलौने मिलने लगे हैं और उनसे यह अपेक्षा की जाने लगी है कि वे पुरुषों की भाँति घर की चारदीवारी के बाहर सम्मानपूर्वक जीवन व्यतीत करें।
4. अगर आपके घर में या आस-पास, घर के कामों में मदद करने वाली कोई महिला है तो उनसे बात कीजिए और उनके बारे में थोड़ा और जानने की कोशिश कीजिए कि उनके घर में और कौन-कौन हैं? वे क्या करते हैं? उनका घर कहाँ है? वे रोज़ कितने घंटे तक काम करती हैं? वे कितना कमा लेती हैं? इन सारे विवरणों को शामिल कर, एक छोटी-सी कहानी लिखिए।
उत्तर: विद्यार्थी स्वयं करें।