NCERT Class 12 Hindi Chapter 11 बाज़ार दर्शन

NCERT Class 12 Hindi Chapter 11 बाज़ार दर्शन Solutions to each chapter is provided in the list so that you can easily browse through different chapters NCERT Class 12 Hindi Chapter 11 बाज़ार दर्शन and select need one. NCERT Class 12 Hindi Chapter 11 बाज़ार दर्शन Question Answers Download PDF. NCERT Hindi Class 12 Solutions.

NCERT Class 12 Hindi Chapter 11 बाज़ार दर्शन

Join Telegram channel

Also, you can read the NCERT book online in these sections Solutions by Expert Teachers as per Central Board of Secondary Education (CBSE) Book guidelines. CBSE Class 12 Hindi Solutions are part of All Subject Solutions. Here we have given NCERT Class 12 Hindi Chapter 11 बाज़ार दर्शन Notes, NCERT Class 12 Hindi Textbook Solutions for All Chapters, You can practice these here.

Chapter: 11

HINDI

अभ्यास

पाठ के साथ

1. बाज़ार का जादू चढ़ने और उतरने पर मनुष्य पर क्या-क्या असर पड़ता है?

उत्तर: बाज़ार का जादू चढ़ने पर मनुष्य बाजार की आकर्षक वस्तुओं को खरीदने लगता है। जेब में रखा सारा पैसा उड़ जाता है।

बाज़ार का जादू उतरने पर मनुष्य को खरीदारी करने पर अपनी गलती का पता चलता है कि क्या अनावश्यक सामान खरीद लिया है। पैसों के अनावश्यक खर्च से आर्थिक संकट गहरा जाता है। नियंत्रण शक्ति पर काबू समाप्त हो जाता है।

2. बाज़ार में भगत जी के व्यक्तित्व का कौन-सा सशक्त पहलू उभरकर आता है? क्या आपकी नप्तर में उनका आचरण समाज में शांति स्थापित करने में मददगार हो सकता है?

उत्तर: भगत जी बाज़ार में जाकर विचलित नहीं होते हैं। उनका स्वयं में नियंत्रण है। उनके अंदर गज़ब का संतुलन देखा जा सकता है। वे बाज़ार में जाकर आश्चर्यचकित नहीं रहते। उनमें लालच की भावना नहीं होती। यही कारण है कि बाज़ार का आकर्षित करता जादू उनके सिर चढ़कर नहीं बोलता है। उन्हें भली प्रकार से पता है कि उन्हें क्यों और क्या लेना है? अतः इस आधार पर कह सकते हैं कि वे दृढ़-निश्चयी तथा संतोषी स्वभाव के व्यक्ति हैं। उनका स्वयं पर तथा अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण है। एक लालच ही ऐसा भाव है, जो असंतोष, क्रोध आदि दुर्भावनाओं को जन्म देता है। इसके कारण ही भ्रष्टाचार, चोरी-चकारी, हत्या जैसे अपराध समाज में बढ़ रहे हैं। मनुष्य दृढ़-निश्चयी है, तो वह नियंत्रणपूर्वक इस लालच को रोके रखता है। संसार में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है, जो ऐसी वस्तुओं से प्रभावित न हो। लेकिन जिसके अंदर दृढ़-निश्चय और संतोष है, वह कभी गलत मार्ग में नहीं बढ़ेगा और समाज में शांति-स्थापित करने में मददगार साबित होगा।

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Join Now

3. बाज़ारूपन’ से क्या तात्पर्य है? किस प्रकार के व्यक्ति बाजार को सार्थकता प्रदान करते हैं अथवा बाजार की सार्थकता किसमें है?

उत्तर: बाज़ारूपन से लेखक का यह तात्पर्य है कि बाजार की चकाचौंध में खो जाना। केवल बाजार पर ही निर्भर रहना। वे व्यक्ति ऐसे बाज़ार को सार्थकता प्रदान करते हैं जो हर वह सामान खरीद लेते हैं जिनकी उन्हें ज़रूरत भी नहीं होती। वे फिजूल में सामान खरीदते रहते हैं अर्थात् वे अपना धन और समय नष्ट करते हैं। बाज़ार का निर्माण ही इसलिए हुआ है कि हमारी आवश्यकताओं को हमें दे सके। अतः जो व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं को जानकर ही वस्तु खरीदते हैं और बाज़ार से उसे ही लेकर चले आते हैं सही मायने में वही बाज़ार को सार्थकता देते हैं।

4. बाज़ार किसी का लिंग, जाति, धर्म या क्षेत्र नहीं देखता; वह देखता है सिर्फ उसकी क्रय शक्ति को। इस रूप में वह एक प्रकार से सामाजिक समता की भी रचना कर रहा है। आप इससे कहाँ तक सहमत हैं?

उत्तर: इस मत से देखा जाये तो लेखक का कथन सत्य है कि बाजार का यह व्यवहार सामाजिक समता की रचना करता है। लेकिन इसमें भी क्रेता की सम दृष्टि साबित होती है, विक्रेता की नहीं। क्योंकि क्रय-शक्ति से हीन व्यक्ति स्वयं को औरों के समक्ष कमजोर व दुर्बल समझता है।

हम इससे बिलकुल सहमत नहीं है। बाज़ार सामाजिक समता को नहीं बल्कि बटुवे के भार को देखता है। जिसके बटुवे में नोट हैं और वे नोट खर्च कर सकता है केवल वही इसका लाभ उठा सकते हैं। तब बाज़ार आदमी-औरत, छोटा-बड़ा, ऊँच-नीच, हिन्दु-मुस्लिम तथा गाँव-शहर का भेद नहीं देखता है। वह बस नोट देखता है। तो यह सामाजिक समता का सूचक नहीं बल्कि समाज को बाँटने में अधिक विनाशक शक्ति के रूप में कार्य करता है।

5. आप अपने तथा समाज से कुछ ऐसे प्रसंग का उल्लेख करें–

(क) जब पैसा शक्ति के परिचायक के रूप में प्रतीत हुआ।

उत्तर: जिनके पास काफी पैसा है, उनके बच्चे कीमती मोटर-कारों में स्कूल जाते हैं, अधिकाधिक फीस देकर प्रसिद्ध पब्लिक स्कूलों में पढ़ते हैं और डोनेशन के बल पर डाक्टर-इंजीनियर बन जाते हैं। लेकिन गरीबों के बच्चे फटेहाल, पैदल ही चलकर टाट-पट्टी से मोहताज साधारण स्कूलों में मुश्किल से पढ़ पाते हैं। इससे पैसे की शक्ति का परिचय सहज में मिल जाता है। असमानता का स्तर इस तरह बढ़ते ही जाता है। पैसा व्यक्ति को आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त करने में मदद करता है। पैसे के प्राप्त होने से व्यक्ति का समाज में स्थान भी मजबूत होता है और उसे अधिक सम्मान और प्रतिष्ठा मिलती है।

(ख) जब पैसे की शक्ति काम नहीं आई।

उत्तर: तेजपुर शहर के एक प्रसिद्ध व्यवसायी एवं किशोर के जवान बेटे को मलेरिया हो गया। उसके उपचार में पानी की तरह पैसा खर्च किया गया और बड़े-बड़े डाक्टरों से महँगा इलाज करवाया गया, परन्तु उसे बचाया नहीं जा सका। इस तरह उसकी जीवन-रक्षा में पैसे की शक्ति काम नहीं आयी। 

पाठ के आसपास

1. बाज़ार दर्शन पाठ में बाज़ार जाने या न जाने के संदर्भ में मन की कई स्थितियों का जिक्र आया है। आप इन स्थितियों से जुड़े अपने अनुभवों का वर्णन कीजिए।

(क) मन खाली हो।

उत्तर: जब मेरा मन खाली होता है, तो मैं बाज़ार देखने के लिए उत्सुक होती हूँ। यह स्थिति उस समय में होती है जब मेरे पास समय और रुचि दोनों होती है। मैं बाज़ार में अलग-अलग दुकानों और वस्तुओं की खोज करने में लगी रहती हूँ और नई चीजों को देखने का आनंद लेती हूँ। खाली मन स्थिति में, मुझे बाज़ार के सूरमा में बसे हर छोटे-बड़े नुक्कड़ों का पता लगाने में मज़ा आता है।

(ख) मन खाली न हो।

उत्तर: जब मेरा मन खाली नहीं होता, तब मैं लक्ष्य के साथ बाज़ार जाता हूं। इस स्थिति में, मैं अक्सर जाने से पहले तैयारियाँ करता हूँ और सूची बनाता हूँ कि क्या चाहिए और क्या खरीदना है। मेरा ध्यान अधिक रुचिवाले विषयों और दुकानों पर होता है, जिन्हें मैं पहले से ही जानता हूँ और उन्हें विशेष रूप से ध्यान में रखता हूँ। मैं सीधे उस दुकान पर जाता हूं जहां मुझे वह चीज मिलनी चाहिए और जल्दी से खरीदारी करके वापस आ जाता हूं।

(ग) मन बंद हो।

उत्तर: जब मेरा मन बंद होता है, तो मैं बाज़ार जाने के लिए बिल्कुल उत्साहित नहीं होता। यह स्थिति उस समय होती है जब मैं थका हुआ या तनावग्रस्त महसूस करता हूँ। मैं बाज़ार के लिए विशेष रूप से समय निकालने में संकोच करता हूँ और यह बहाने ढूंढता हूँ कि कोई और काम या उत्तरजीविता की जरूरत है। मेरा मन बंद होता है, तो मैं बाज़ार जाना पसंद नहीं करता। मुझे भीड़भाड़ और शोरगुल पसंद नहीं आता है। ऐसे में मैं घर पर ही रहना पसंद करता हूं।

(घ) मन में नकार हो।

उत्तर: जब मेरा मन में नकार हो तब मुझे लगता है कि सभी दुकानदार मुझे ठगने की कोशिश कर रहे हैं, या फिर कोई भी चीज़ मेरे बजट में नहीं है। ऐसी स्थिति में, मैं निराश हो जाता हूं और जल्दी से बाज़ार से वापस आ जाता हूँ।

2. बाज़ार दर्शन पाठ में किस प्रकार के ग्राहकों की बात हुई है? आप स्वयं को किस श्रेणी का ग्राहक मानते/मानती हैं?

उत्तर: बाज़ार दर्शन में दो चार प्रकार के ग्राहकों के बारे में बात हुई है। पहले ऐसे ग्राहक हैं, जो ग्राहक बाज़ार में जाकर अपनी आर्थिक स्थिति का प्रदर्शन करते हैं। दूसरे ऐसे ग्राहक हैं, जो बाज़ार में जाकर संयमी होते हैं और समझदारी से सामान खरीदते हैं। तीसरे ऐसे ग्राहक हैं, जो मात्र बाज़ारूपन को बढ़ावा देते हैं और चौथे ऐसे किस्म के ग्राहक होते हैं जो मात्र आवश्यकता के अनुरूप सामान खरीदते हैं।

मैं स्वयं को संयमी तथा बुद्धिमता पूर्वक सामान खरीदने वाला ग्राहक मानता हूँ। मैं बाज़ार में जाकर आकर्षित नहीं होता हूँ। सोच-समझकर ही सामान खरीदता हूँ।

3. आप बाज़ार की भिन्न-भिन्न प्रकार की संस्कृति से अवश्य परिचित होंगे। मॉल की संस्कृति और सामान्य बाज़ार और हाट की संस्कृति में आप क्या अंतर पाते हैं? पर्चेजिंग पावर आपको किस तरह के बाजार में नज़र आती है?

उत्तर: मॉल, सामान्य बाज़ार और हाट ये तीनों ही खरीदारी के लोकप्रिय स्थान हैं, लेकिन इनकी संस्कृति और खरीदारी का अनुभव एक दूसरे से भिन्न होता है।

मॉलों में व्यापार की विशाल स्थलीयता होती है जहाँ विभिन्न ब्रांड्स और दुकानें एक साथ स्थित होती हैं। यहाँ पर खुदरा उत्पादों की विशाल विकल्पता होती है और ग्राहकों को एक समय पर कई विकल्पों के बीच चयन करने की सुविधा मिलती है। मॉलों में ग्राहकों को विशेष रूप से आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए व्यापारिक सेवाएं प्रदान की जाती हैं, जैसे कि पार्किंग, खाद्य कोर्ट्स, और अन्य मनोरंजनीय गतिविधियाँ।

सामान्य बाज़ार एक स्थान होता है जहाँ स्थानीय विक्रेताओं और ग्राहकों का संगठन होता है। ये बाज़ार आमतौर पर खुले में या छत के नीचे स्थित होते हैं और इनमें विभिन्न प्रकार के उत्पादों की खरीदारी होती है। ये बाज़ार आमतौर पर सड़कों के किनारे, नगर या गाँव के केंद्रीय इलाकों में स्थित होते हैं और ग्राहकों को स्थानीय उत्पादों तक पहुँचने की सुविधा प्रदान करते हैं। यहाँ पर स्थानीय फल-सब्जी, गांव के हाथ से बुने वस्त्र, स्थानीय शिल्प उत्पादों की विविधता उपलब्ध होती है।

हाट की संस्कृति एक प्राचीन और प्राकृतिक बाज़ार की परंपरा है जो भारतीय सभ्यता का महत्वपूर्ण हिस्सा है। हाट एक स्थान होता है जहाँ स्थानीय समुदाय के लोग नियमित रूप से आते जाते हैं। यहाँ पर विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियाँ होती हैं। जैसे कि व्यापार, संवाद, और विभिन्न त्योहारों का आयोजन। हाट में विक्रेताओं और ग्राहकों के बीच विशेष सम्बंध और सम्मान की भावना होती है। हाट व्यापार के लिए महत्वपूर्ण स्थान होता है, विशेषतः ग्रामीण क्षेत्रों में।

4. लेखक ने पाठ में संकेत किया है कि कभी-कभी बाज़ार में आवश्यकता ही शोषण का रूप धारण कर लेती है। क्या आप इस विचार से सहमत हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।

उत्तर: हम इस विचार से सहमत हैं कि कभी-कभी बाजार की आवश्यकता ही शोषण का रूप धारण कर लेती है। यह विचार पूर्णता सही है क्योंकि जब बाजार में वस्तु कम और खरीदने वाले अधिक हो अर्थात वस्तु की मांग बढ़ने पर व पूर्ति कम होने पर दुकानदार वस्तु को अधिक कीमत पर ग्राहक को बेचता है। अतः इस प्रकार ग्राहकों का निरंतर शोषण होता रहता है।

5. स्त्री माया न जोड़े यहाँ माया शब्द किस ओर संकेत कर रहा है? स्त्रियों द्वारा माया जोड़ना प्रकृति प्रदत्त नहीं, बल्कि परिस्थितिवश है। वे कौन-सी परिस्थितियाँ हैं जो स्त्री को माया जोड़ने के लिए विवश कर देती हैं?

उत्तर: यहाँ पर ‘माया’ शब्द से धन की ओर संकेत किया गया है। स्त्रियाँ पर घर चलाने की ज़िम्मेदारी परिस्थितिवश होती है। उन्हें विवाह के बाद घर का खर्च चलाने तथा पूंजी जमा करने की ज़िम्मेदारी से दबा दिया जाता है। इन दबावों के चलते हुए वह माया जोड़ने पर विवश हो जाती है। महिलाएं जानती हैं कि अगर वे खुल्ला खर्च करेंगी, तो भविष्य में इसका नुकसान उन्हें और उनके परिवार को ही भुगतना पड़ेगा। इसलिए, घर के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को समझते हुए महिलाएं माया जोड़ने के लिए मजबूर हो जाती हैं।

आपसदारी

1. जरूरत-भर जीरा वहाँ से ले लिया कि फिर सारा चौक उनके लिए आसानी से नहीं के बराबर हो जाता है– भगत जी की इस संतुष्ट निस्पृहता की कबीर की इस सूक्ति से तुलना कीजिए–

चाह गई चिंता गई मनुओं बेपरवाह

जाके कछु न चाहिए सोइ सहसाह।

– कबीर

उत्तर: भगत जी के स्वभाव में कबीर जी की ये पंक्तियाँ बिलकुल सही बैठती हैं। यह सारा खेल संतोष रूपी भावना से है। संतोष सबसे बड़ा भाव है। जिस मनुष्य में संतोष है, वह हर प्रकार से धनी है। कोई वस्तु उसे आकर्षित नहीं कर सकती है न उसमें लालच पैदा कर सकती है। जब मन में किसी को पाने की चाह, आकर्षण तथा लालच विद्यमान नहीं है, तो वह सुखी है। उसमें इन भावनाओं के न रहने से वह चिंता मुक्त हो जाता है। चिंता उसे सबसे अलग बना देती है और वह सुखी हो जाता है। भगत जी भी ऐसे ही व्यक्ति हैं, जिनकी ज़रूरतें सीमित हैं और वे बाज़ार के आकर्षण से दूर रहते हैं। अपनी ज़रूरत पूरी होने पर वे संतुष्ट हो जाते हैं।

2. विजयदान देथा की कहानी ‘दुविधा’ (जिस पर ‘पहेली’ फ़िल्म बनी है) के अंश को पढ़ कर आप देखेंगे/देखेंगी कि भगत जी की संतुष्ट जीवन दृष्टि की तरह ही गड़रिए की जीवन-दृष्टि है, इससे आपके भीतर क्या भाव जगते हैं?

गड़रिया बगैर कहे ही उस के दिल की बात समझ गया,

पर अँगूठी कबूल नहीं की। काली दाढ़ी के बीच पीले दाँतों

की हँसी हँसते हुए बोला– ‘मैं कोई राजा नहीं हूँ जो न्याय

की कीमत वसूल करूँ। मैंने तो अटका काम निकाल दिया। 

और यह अँगूठी मेरे किस काम की! न यह

अँगुलियों में आती है, न तड़े में। मेरी भेड़ें भी मेरी तरह

गँवार हैं। घास तो खाती हैं, पर सोना सूँघती तक नहीं।

बेकार की वस्तुएँ तुम अमीरों को ही शोभा देती हैं।’

–विजयदान देथा

उत्तर: विजयदान देथा की ‘दुविधा’ कहानी का अंश पढ़कर मुझमें भी संतोषी वृत्ति के भाव जगते हैं। गड़रिया चाहता तो वह अपने न्याय की कीमत वसूल सकता था। सामाजिक दृष्टि से यही ठीक भी था क्योंकि अमीर व्यक्ति जो कुछ गड़रिये को दे रहा था वह उसका हक था। लेकिन गड़रिये और भगत जी की संतोषी भावना को देखकर मेरे मन में भी इसी प्रकार के भाव उत्पन्न हो जाते हैं। इससे हमारे मन में यह भाव जागते हैं कि हमें संतुष्ट रहना चाहिए। हमें किसी भी चीज़ के लालच तथा मोह में नहीं फंसना चाहिए। हमारे अंदर जितना अधिक संतुष्टी का भाव रहेगा, हम उतने ही शांत और सुखी बने रहेंगे।

3. बाजार पर आधारित लेख नकली सामान पर नकेल जरूरी का अंश पढ़िए और नीचे दिए गए बिंदुओं पर कक्षा में चर्चा कीजिए।

नकली सामान पर नकेल ज़रूरी

अपना क्रेता वर्ग बढ़ाने की होड़ में एफएमसीजी यानी तेजी से बिकने वाले उपभोक्ता उत्पाद बनाने वाली कंपनियाँ गाँव के बाजारों में नकली सामान भी उतार रही हैं। कई उत्पाद ऐसे होते हैं जिन पर तो निर्माण तिथि होती है और न ही उस तारीख का जिक्र होता है जिससे पता चले कि अमुक सामान के इस्तेमाल की अवधि समाप्त हो चुकी है। आउटडेटेड या पुराना पड़ चुका सामान भी गाँव देहात के बाजारों में खप रहा है। ऐसा उपभोक्ता मामलों के जानकारों का मानना है। नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रिड्रेसल कमीशन के सदस्य की मानें तो जागरूकता अभियान में तेजी लाए बगैर इस गोरखधंधे पर लगाम कसना नामुमकिन है।

उपभोक्ता मामलों की जानकार पुष्पा गिरि माँ जी का कहना है, ‘इसमें दो राय नहीं कि गाँव देहात के बाजारों में नकली सामान बिक रहा है। महानगरीय उपभोक्ताओं को अपने शिकंजे में कसकर बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ, खासकर ज़्यादा उत्पाद बेचने वाली कंपनियाँ, गाँव का रुख कर चुकी हैं। वे गाँववालों के अज्ञान और उनके बीच जागरूकता के अभाव का पूरा फ़ायदा उठा रही हैं। उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए कानून जरूर हैं लेकिन कितने लोग इनका सहारा लेते हैं यह बताने की जरूरत नहीं। गुणवत्ता के मामले में जब शहरी उपभोक्ता ही उतने सचेत नहीं हो पाए हैं तो गाँव वालों से कितनी उम्मीद की जा सकती है।

इस बारे में नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रिड्रेसल कमीशन के सदस्य जस्टिस एस. एन. कपूर का कहना है, ‘टीवी ने दूर-दराज के गाँवों तक में बहुराष्ट्रीय कंपनियों को पहुँचा दिया है। बड़ी-बड़ी कंपनियाँ विज्ञापन पर तो बेतहाशा पैसा खर्च करती हैं लेकिन उपभोक्ताओं में जागरूकता को लेकर वे चवन्नी खर्च करने को तैयार नहीं हैं। नकली सामान के खिलाफ़ जागरूकता पैदा करने में स्कूल और कॉलेज के विद्यार्थी मिलकर ठोस काम कर सकते हैं। ऐसा कि कोई प्रशासक भी न कर पाए।’ बेशक, इस कड़वे सच को स्वीकार कर लेना चाहिए कि गुणवत्ता के प्रति जागरूकता के लिहाज से शहरी समाज भी कोई ज्यादा सचेत नहीं है। यह खुली हुई बात है कि किसी बड़े ब्रांड का लोकल संस्करण शहर या महानगर का मध्य या निम्नमध्य वर्गीय उपभोक्ता भी खुशी-खुशी खरीदता है। यहाँ जागरूकता का कोई प्रश्न ही नहीं उठता क्योंकि वह ऐसा सोच-समझकर और अपनी जेब की हैसियत को जानकर ही कर रहा है। फिर गाँववाला उपभोक्ता ऐसा क्योंकर न करे। पर फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि यदि समाज में कोई गलत काम हो रहा है तो उसे रोकने के जतन न किए जाएँ। यानी नकली सामान के इस गोरखधंधे पर विराम लगाने के लिए जो कदम या अभियान शुरू करने की जरूरत है वह तत्काल हो।

– हिंदुस्तान 6 अगस्त 2006, साभार

(क) नकली सामान के खिलाफ जागरूकता के लिए आप क्या कर सकते हैं?

उत्तर: नकली सामान एक गंभीर समस्या है जो न केवल उपभोक्ताओं को आर्थिक नुकसान पंहुचाती है, बल्कि स्वास्थ्य और सुरक्षा को भी खतरा हो सकता है। नकली सामान की जागरुकता के लिए हम आवाज़ उठा सकते हैं। यदि हमें कहीं पर नकली सामान बिकता हुआ दिखाई देता है, तो हम उसकी शिकायत सरकार से कर सकते हैं। लोगों को नकली सामान के खतरों और अनेक बचाव के तरीकों के बारे में शिक्षित करने के लिए जागरूकता अभियान चला सकते है। प्रायः हम ही नकली सामान की खरीद-फरोक्त में शामिल होते हैं। लापरवाही से सामान खरीदना हमारी गलती है। अतः हमें चाहिए कि इस विषय में स्वयं जागरूक रहें और अन्य को भी जागरूक करें।

(ख) उपभोक्ताओं के हित को मद्देनजर रखते हुए सामान बनाने वाली कंपनियों का क्या नैतिक दायित्व हैं?

उत्तर: उपभोक्ताओं को हित को मद्देनजर रखते हुए सामान बनाने वाली कंपनियों का यह नैतिक दायित्व है कि वे बाजार में केवल असली माल उतारें। पुराने पड़े माल को बाजार में न बेचे। अपने उत्पाद पर निर्माण की तिथि तथा प्रयोग किए जाने की अवधि का उल्लेख अवश्य करें। वे उपभोक्ताओं को जागरूक बनाने पर भी कुछ धन खर्च करें।

(ग) ब्रांडेड वस्तु को खरीदने के पीछे छिपी मानसिकता को उजागर कीजिए?

उत्तर: ब्रांडेड वस्तु को खरीदने के पीछे यह मानसिकता छिपी रहती है कि यह वस्तु गुणवत्ता की दृष्टि से अच्छी होगी। आज के समय में ब्रांडेड सामान खरीदकर मनुष्य अपनी सुदृढ़ आर्थिक स्थिति को दर्शाना चाहता है। कई लोग ब्रांडेड वस्तुओं को सामाजिक स्वीकृति और उच्च सामाजिक स्थिति का प्रतीक मानते हैं। वे सोचते हैं कि प्रसिद्ध ब्रांडों के कपड़े और अन्य सामान पहनने से उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ेगी और उन्हें दूसरों से बेहतर दिखाया जाएगा।

4. प्रेमचंद की कहानी ईदगाह के हामिद और उसके दोस्तों का बाजार से क्या संबंध बनता है? विचार करें।

उत्तर: प्रेमचंद की कहानी ईदगाह से हामिद और उसके दोस्तों का बाज़ार से ग्राहक और दुकानदार का रिश्ता बनता है। हामिद और उसके दोस्त गरीब परिवार से सम्बंधित थे और उनके लिए बाजार सिर्फ एक व्यापारिक स्थान ही नहीं था, बल्कि वहाँ जाना उनके लिए एक सामाजिक, सांस्कृतिक और रोजगार का माध्यम भी था। वे बाजार में अपनी माता के लिए आवश्यक चीजों की खरीदारी करने जाते थे, जो कि उनके दिनचर्या का महत्वपूर्ण हिस्सा थी। वे बाज़ार से अपनी इच्छा तथा आवश्यकतानुसार खरीदारी करते हैं। सब अपनी हैसियत के अनुसार खरीदते हैं और बाज़ार संस्कृति को बढ़ावा देते हैं। 

विज्ञापन की दुनिया

1. आपने समाचारपत्रों, टी.वी. आदि पर अनेक प्रकार के विज्ञापन देखे होंगे जिनमें ग्राहकों को हर तरीके से लुभाने का प्रयास किया जाता है। नीचे लिखे बिंदुओं के संदर्भ में किसी एक विज्ञापन की समीक्षा कीजिए और यह भी लिखिए कि आपको विज्ञापन की किस बात ने सामान खरीदने के लिए प्रेरित किया।

(i) विज्ञापन में सम्मिलित चित्र और विषय-वस्तु।

(ii) विज्ञापन में आए पात्र व उनका औचित्य।

(iii) विज्ञापन की भाषा।

उत्तर: विद्यार्थी स्वयं करें।

2. अपने सामान की बिक्री को बढ़ाने के लिए आज किन-किन तरीकों का जा रहा है? उदाहरण सहित उनका संक्षिप्त परिचय दीजिए। आप स्वयं किस तकनीक या तौर-तरीके का प्रयोग करना चाहेंगे जिससे विक्री भी अच्छी हो और उपभोक्ता गुमराह भी न हो।

उत्तर: आज कल अपने सामान की बिक्री के लिए मज़ेदार विज्ञापनों, फ्री सेंप्लिंग, होर्डिंग बोर्ड, प्रतियोगिता, मुफ्त उपहार, मूल्य गिराकर, एक के साथ एक मुफ्त देकर, ई-कमर्स, सोशल मीडिया प्रचार आदि तरीकों का प्रयोग किया जा रहा है। इससे सामान की बिक्री में तेज़ी आती है। ये तरीके बहुत ही कारगर हैं।

मैं व्यक्तिगत रूप से सोशल मीडिया प्रचार और ई-कमर्स के माध्यम से अपने उत्पादों को बेचने का प्रयास करना चाहुँगा। इन तकनीकों का उपयोग करने से मुझे उत्पादों के लाभों को संदेशित करने में मदद मिलेगी और उपभोक्ता को सही तरीके से प्रेरित करने में सहायता मिलेगी, बिना उन्हें गुमराह किए।

भाषा की बात

1. विभिन्न परिस्थितियों में भाषा का प्रयोग भी अपना रूप बदलता रहता है कभी औपचारिक रूप में आती है तो कभी अनौपचारिक रूप में। पाठ में से दोनों प्रकार के तीन-तीन उदाहरण छाँटकर लिखिए।

उत्तर: औपचारिक भाषा–

(क) मूल में एक और तत्त्व की महिमा सविशेष है।

(ख) इस सिलसिले में एक और भी महत्त्व का तत्त्व है।

(ग) मेरे यहाँ कितना परिमित है और यहाँ कितना अतुलित है।

अनौपचारिक भाषा–

(क) पैसा पावर है।

(ख) ऐसा सजा-सजाकर माल रखते हैं कि बेहया ही हो जो न फँसे।

(ग) नहीं कुछ चाहते हो, तो भी देखने में क्या हरज़ है।

2. पाठ में अनेक वाक्य ऐसे हैं, जहाँ लेखक अपनी बात कहता है कुछ वाक्य ऐसे है जहाँ वह पाठक वर्ग को संबोधित करता है। सीधे तौर पर पाठक को संबोधित करने वाले पाँच वाक्यों को छाँटिए और सोचिए कि ऐसे संबोधन पाठक से रचना पढ़‌वा लेने में मददगार होते हैं?

उत्तर: (i) एक बार की बात कहता हूँ, मित्र बाजार गए थे, कोई मामूली चीज लेने पर लौटे तो एकदम बहुत से बंडल उनके पास थे।

(ii) कहीं आप भूल न कर बैठिएगा।

(iii) पड़ोस में एक महानुभाव रहते हैं जिनको लोग भगतजी कहते हैं।

(iv) यह समझिएगा कि लेख के किसी भी मान्य पाठक से उस चूरन वाले को श्रेष्ठ बताने की मैं हिम्मत कर सकता हूँ।

(v) यह मुझे अपनी ऐसी विडंबना मालूम होती है कि बस पूछिए नहीं।

ऐसे संबोधन पाठकों में रोचकता बनाए रखते हैं। पाठकों को लगता है कि लेखक प्रत्यक्ष रूप में न होते हुए भी उनके साथ जुड़ा हुआ है। उन्हें लेख रोचक लगता है और वे आगे पढ़ने के लिए विवश हो जाते हैं।

3. नीचे दिए गए वाक्यों को पढ़िए।

(क) पैसा पावर है।

(ख) पैसे की उस पर्चेजिंग पावर के प्रयोग में ही पावर का रस है।

(ग) मित्र ने सामने मनीबैग फैला दिया।

(घ) पेशगी ऑर्डर कोई नहीं लेते।

ऊपर दिए गए इन वाक्यों की संरचना तो हिंदी भाषा की है लेकिन वाक्यों में एकाध शब्द अंग्रेजी भाषा के आए हैं। इस तरह के प्रयोग को कोड मिक्सिंग कहते हैं। एक भाषा के शब्दों के साथ दूसरी भाषा के शब्दों का मेलजोल! अब तक आपने जो पाठ पढ़े उसमें से ऐसे कोई पाँच उदाहरण चुनकर लिखिए। यह भी बताइए कि आगत शब्दों की जगह उनके हिंदी पर्यायों का ही प्रयोग किया जाए तो संप्रेषणीयता पर क्या प्रभाव पड़ता है।

उत्तर: (क) परंतु इस उदारता के डाइनामाइट ने क्षण भर में उसे उड़ा दिया।

(ख) भक्ति इंस्पेक्टर के समान क्लास में घूम-घूमकर।

(ग) फ़िजूल सामान को फ़िजूल समझते हैं।

(घ) इससे अभिमान की गिल्टी की और खुराक ही मिलती है।

(ङ) माल-असबाब मकान-कोठी तो अनेदेखे भी दिखते हैं।

ऊपर दिए गए शब्दों में रेखांकित शब्द आगत शब्द हैं। इनके स्थान पर यदि हिंदी पर्यायों का प्रयोग किया जाए तो संप्रेषणीयता पर दूसरा ही प्रभाव पड़ता है। वाक्य अधूरा-सा लगता है। बात स्पष्ट नहीं हो पाती है तथा लेखक का उद्देश्य पूर्ण नहीं हो पाता है। यही कारण है कि कोड मिक्सिंग ने भाषा में अपनी जगह बना ली है। उदाहरण के लिए देखिए–

(क) परंतु इस उदारता के विस्फोटक ने क्षण भर में उसे उड़ा दिया।

(ख) भक्ति पर्यवेक्षक के समान कक्षा में घूम-घूमकर।

(ग) व्यर्थ सामान व्यर्थ समझते हैं।

(घ) इससे अभिमान की दोषी की और अंश ही मिलती है।

(ङ) माल-सामान मकान-कोठी तो अनेदेखे भी दीखते हैं।

4. नीचे दिए गए वाक्यों के रेखांकित अंश पर ध्यान देते हुए उन्हें पढ़िए–

(क) निर्बल ही धन की ओर झुकता है।

(ख) लोग संयमी भी होते हैं।

(ग) सभी कुछ तो लेने को जी होता था।

ऊपर दिए गए वाक्यों के रेखांकित अंश ‘ही’, ‘भी” तो’ निपात हैं जो अर्थ पर बल देने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। वाक्य में इनके होने-न-होने और स्थान क्रम बदल देने से वाक्य के अर्थ पर प्रभाव पड़ता है, जैसे– मुझे भी किताब चाहिए। (मुझे महत्त्वपूर्ण है।) मुझे किताब भी चाहिए। (किताब महत्त्वपूर्ण है।) आप निपात (ही, भी, तो) का प्रयोग करते हुए तीन-तीन वाक्य बनाइए। साथ ही ऐसे दो वाक्यों का भी निर्माण कीजिए जिसमें ये तीनों निपात एक साथ आते हों।

उत्तर: (क) रहीम ने मुझसे मदद मांगी थी, पर उसने उषा से ही मदद ले ली।

(ख) मुझे राम की सलाह भी माननी चाहिए थी।

(ग) मेरी इस विचार से तो सुनीता खुश हो गई।

ही, भी, तो तीनों से बनने वाले वाक्य–

(क) बाजार जा रहे हो तो वही से ही थोड़ी सब्जी और तेल भी ले आना।

चर्चा करें

1. पर्चेजिंग पावर से क्या अभिप्राय है? बाजार की चकाचौंध से दूर पर्चेजिंग पावर का सकारात्मक उपयोग किस प्रकार किया जा सकता है? आपकी मदद के लिए संकेत दिया जा रहा है–

(क) सामाजिक विकास के कार्यों में।

(ख) ग्रामीण आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने में…।

उत्तर: पर्चेज़िंग पावर का अभिप्राय हैः पैसे खर्च करने की क्षमता होना। हम सामाजिक विकास के कार्यों में अपनी इस क्षमता का प्रयोग कर सकते हैं। जैसे की हम ऐसे सामान खरीद सकते हैं, जो कुटीर उद्योग, हस्तशिल्प तथा लघु उद्योगों को बढ़ावा दें। बाज़ार में दुकानदार अपनी चीज़ों को आकर्षक तरीके से रखते हैं और विज्ञापन भी करते हैं, ताकि ग्राहक उन्हें खरीद लें। ऐसे में, जिन लोगों के पास पर्चेज़िंग पावर होती है, वे बाज़ार की चकाचौंध में फंसकर बेकार और ज़रूरत की चीज़ें भी खरीद लेते हैं।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top