NCERT Class 12 Economics Chapter 10 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

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NCERT Class 12 Economics Chapter 10 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

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Chapter: 10

व्यष्टि अर्थशास्त्र एक परिचय

अभ्यास

1. एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार की क्या विशेषताएँ हैं?

उत्तर: एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार की विशेषताएँ निन्न हैं-

(i) पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में उत्पादित वस्तुएँ समान गुणवत्ता वाली या समरूप होती हैं।

(ii) बहुत बड़ी संख्या में क्रेता और विक्रेता होते हैं।

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(iii) सभी फर्में एकसमान (समरूप) उत्पाद का उत्पादन करती हैं।

2. एक फर्म की संप्राप्ति, बाज़ार कीमत तथा उसके द्वारा बेची गई मात्रा में क्या संबंध है?

उत्तर: एक फर्म की कुल संप्राप्ति उस कीमत और मात्रा के गुणनफल के बराबर होती है, जिस पर वह अपने उत्पाद को बाज़ार में बेचती है।

अथवा

TR = q × p

यहाँ TR = कुल संप्राप्ति, q = बिक्री की मात्रा तथा p = कीमत।

3. कीमत रेखा क्या है?

उत्तर: कीमत रेखा वह रेखा है जो दर्शाती है कि एक फर्म किसी भी मात्रा की वस्तु को एक ही तय कीमत पर बेच सकती है। पूर्ण प्रतिस्पर्धा में यह रेखा क्षैतिज होती है।

कीमत रेखा से अभिप्राय पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में एक फर्म के माँग वक्र से है जो x-अक्ष के समानांतर एक सीधी रेखा होती है। जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दिखाया गया है। रेखाचित्र में PD रेखा वस्तु की माँग रेखा है। रेखाचित्र से स्पष्ट है कि OP कीमत पर माँग की मात्रा OQ या OQ1 कुछ भी हो सकती है। अन्य शब्दों में, पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में फर्म Q Q1 की औसत व सीमांत संप्राप्ति वक्र OX-अक्ष के समानांतर होती है।

4. एक कीमत-स्वीकारक फर्म का कुल संप्राप्ति वक्र, ऊपर की ओर प्रवणता वाली सीधी रेखा क्यों होती है? यह वक्र उद्गम से होकर क्यों गुजरती है?

उत्तर: क्योंकि कुल संप्राप्ति = मूल्य (p) × मात्रा (q)। एक कीमत-स्वीकारक फर्म के लिए p स्थिर होता है, इसलिए कुल संप्राप्ति मात्रा के अनुपात में सीधा बढ़ता है। जब उत्पादन 0 है, तो कुल संप्राप्ति भी 0 होती है, इसलिए यह वक्र उद्गम से होकर गुजरता है।

5. एक कीमत-स्वीकारक फर्म का बाज़ार कीमत तथा औसत संप्राप्ति में क्या संबंध है?

उत्तर: एक कीमत-स्वीकारक फर्म की बाज़ार कीमत तथा सीमान्त संप्राप्ति बराबर होते हैं। क्योंकि बेची गई प्रत्येक इकाई के मूल्य में कोई परिवर्तन नहीं होता है, इसलिए एक फर्म कि सीमांत संप्राप्ति फर्म के निर्गत में प्रति इकाई वृद्धि के लिए कुल संप्राप्ति वृद्धि के रूप में परिभाषित की जाती है।

औसत संप्राप्ति (Average Revenue) = कुल संप्राप्ति (Total Revenue)/बेची गई इकाइयाँ (Quantity Sold)

= (बेची गई इकाइयाँ × बाज़ार मूल्य)/बेची गई इकाइयाँ।

= बाज़ार कीमत।

इस प्रकार, एक कीमत-स्वीकारक फर्म के लिए औसत संप्राप्ति, बाज़ार कीमत के बराबर होती है।

6. एक कीमत-स्वीकारक फर्म की बाज़ार कीमत तथा सीमांत संप्राप्ति में क्या संबंध है?

उत्तर: एक कीमत-स्वीकारक फर्म की बाज़ार कीमत और सीमांत संप्राप्ति एक-दूसरे के बराबर होते है क्योंकि बेचीं गई हर अतिरिक्त इकाई की कीमत एक-समान होती है।

अर्थात् सीमांत संप्राप्ति = औसत संप्राप्ति = कीमत

जब कोई एक फर्म उत्पादन एक इकाई बढ़ाती है, यह अतिरिक्त इकाई बाज़ार कीमत पर विक्रय की जाती है। अतः फर्म के द्वारा एक इकाई निर्गत के बढ़ाने से कुल संप्राप्ति में को वृद्धि होती है, जिसे सीमांत संप्राप्ति कहा जाता है, विशेष रूप से बाज़ार कीमत कहलाती है।

7. एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में लाभ अधिकतमीकरण फर्म की सकारात्मक उत्पादन करने की क्या शतें हैं?

उत्तर: एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म की सकारात्मक उत्पादन करने की शर्तें निचे उल्लेख किया गया है

(i) बाज़ार मूल्य (P) और सीमांत लागत (MC) x उत्पादन के स्तर पर समान होते हैं।

(ii) सीमांत लागत (MC) x पर ह्रासमान होती है।

(iii) अल्पकाल में x उत्पादन पर बाज़ार मूल्य (P) औसत परिवर्तनशील लागत (AVC) के बराबर अथवा अधिक होनी चाहिए।

8. क्या प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ अधिकतमीकरण फर्म जिसकी बाज़ार कीमत सीमांत लागत के बराबर नहीं है, उसका निर्गत का स्तर सकारात्मक हो सकता है। व्याख्या कीजिए।

उत्तर: प्रतिस्पर्धी बाज़ार में जब बाज़ार मूल्य सीमांत लागत के बराबर नहीं है, उसके निर्गत का स्तर सकारात्मक नहीं हो सकता है, यदि बाज़ार कीमत सीमांत लागत और औसत परिवर्ती लागत से कम है।

यदि बाज़ार कीमत सीमांत लागत से कम, लेकिन औसत परिवर्ती लागत से अधिक है, तो उसके निर्गत का स्तर सकारात्मक हो सकता है। इसका कारण यह है कि ऐसे स्थिति में फर्म का उद्देश्य पूर्ण हानि से बचते हुए हानि को न्यूनतम करना होता है। यदि बाज़ार कीमत सीमांत लागत और औसत परिवर्ती लागत से कम है तो उत्पादन व बिक्री से हानि अधिक होगी। इसलिए उत्पादन बंद करना अधिक लाभदायक होगा।

यदि बाज़ार कीमत सीमांत लागत से कम, लेकिन औसत परिवर्ती लागत से अधिक है तो उत्पादन जारी रखने पर फर्म को हानि कम होगी। एक फर्म का अधिकतम लाभ तभी होगा जब बाज़ार कीमत सीमांत लागत के बराबर होगी।

9. क्या एक प्रतिस्पर्धी बाज़ार में कोई लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक निर्गत स्तर पर उत्पादन कर सकती है, जब सीमांत लागत घट रही हो। व्याख्या कीजिए।

उत्तर: नहीं, अल्पकाल में प्रतिस्पर्धी बाज़ार में कोई लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक निर्गत स्तर पर उत्पादन कर नहीं सकती है। जब सीमात लागत घट रही हो। इसमें दो स्थितियाँ संभव हैं।

P(कीमत) = MC (सीमांत लागत)

P(कीमत) > MC (सीमांत लागत)

इस प्रकार, यदि फर्म सीमांत लागत को बाज़ार कीमत से कम रखते हुए उत्पादन करती है, तो उसे लाभ मिलेगा, परंतु वह अधिकतम लाभ प्राप्त नहीं कर पाएगी। क्योंकि अधिकतम लाभ के लिए आवश्यक है की बाज़ार कीमत और सीमांत लागत बराबर होनी चाहिए।

10. क्या अल्पकाल में प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन कर सकती है, यदि बाज़ार कीमत न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से कम है। व्याख्या कीजिए।

उत्तर: नहीं, अल्पकाल में प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन कर नहीं सकती है, यदि बाज़ार कीमत न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से कम है तो स्थिर लागत की प्राप्ति को दीर्घकाल के लिए स्थगित किया जा सकता है, जबकि परिवर्ती लागत का भुगतान अल्पकाल में करना आवश्यक होता है। अतः, जिस बिंदु पर बाज़ार मूल्य न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत (AVC) से कम होता है, उस बिंदु पर फर्म कोई उत्पादन नहीं करती। SMC वक्र का वह भाग जो न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत के ऊपर होता है उसे ही फर्म का पूर्ति वक्र कहा जाता है।

इस तथ्य को हम निम्नलिखित रेखाचित्र द्वारा भी स्पष्ट कर सकते हैं:

11. क्या दीर्घकाल में स्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन कर सकती है? यदि बाज़ार कीमत न्यूनतम औसत लागत से कम है, व्याख्या कीजिए।

उत्तर: दीर्घकाल में प्रतिस्पर्धी बाज़ार में यदि बाज़ार मूल्य न्यूनतम औसत लागत से कम तो फर्म उत्पादन बंद कर देगी। दीर्घकाल में सारी लागत परिवर्ती लागत होती है। अतः यदि औसत लागत तक भी एक उत्पादक को प्राप्त नहीं हो रही तो वह उत्पादन कदापि नहीं करेगा।

12. अल्पकाल में एक फर्म का पूर्ति वक्र क्या होती है?

उत्तर: अल्पकाल में यदि किसी फर्म को मिलने वाली कीमत उसकी औसत परिवर्तनशील लागत (AVC) के बराबर या उससे अधिक होती है, तब एक फर्म हानि होते हुए भी उत्पादन जारी रखता है, लेकिन जब कीमत औसत परिवर्तनशील लागत से कम हो जाती है तो एक उत्पादक उत्पादन बंद कर देता है। इसलिए, अल्पकाल में औसत परिवर्तनशील लागत के न्यूनतम बिंदु से शुरू होकर सीमांत लागत (MC) वक्र का बढ़ता हुआ भाग फर्म का अल्पकालीन आपूर्ति वक्र कहलाता है।

13. दीर्घकाल में एक फर्म का पूर्ति वन क्या होती है?

उत्तर: दीर्घकाल में, एक फर्म का आपूर्ति वक्र उसके दीर्घकालीन सीमांत लागत (LMC) वक्र के उस भाग से बनता है, जो न्यूनतम दीर्घकालीन औसत लागत (LAC) के ऊपर उठता है। न्यूनतम दीर्घकालीन औसत लागत से कम सभी कीमतों पर फर्म का निर्गत स्तर शून्य रहता है।

दीर्घकाल में एक फर्म का पूर्ति वक्र की व्युत्पति करते है। अल्पकालीन स्थिति की भांति, हम इस व्युत्पति के दो भागों में विभाजित करते है।

14. प्रौद्योगिकीय प्रगति एक फर्म के पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करती है?

उत्तर: प्रौद्योगिकीय प्रगति से फर्म की उत्पादन क्षमता बढ़ती है ओर खिसका देती है। प्रौद्योगिकीय प्रगति से समान साधनों से अधिक उत्पादन किया जा सकता है। 

15. इकाई कर लगाने से एक फर्म के पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करता है?

उत्तर: जब किसी वस्तु पर इकाई कर लगाया जाता है, तो अल्पकाल में पूर्ति वक्र बाईं ओर खिसक जाता है। क्योंकि अल्पकाल का पूर्ति वक्र MC का न्यूनतम AVC वक्र के ऊपर का हिस्सा होता है। कर लगने पर MC तथा AVC वक्र बाँई ओर खिसकेंगे, अतः पूर्ति वक्र बाईं ओर खिसकेगा।

16. किसी आगत की कीमत में वृद्धि एक फर्म के पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करती है?

उत्तर: किसी आगत (Input) की कीमत में वृद्धि से उत्पादन लागत बढ़ जाती है, जिससे उत्पादक का लाभ घट जाता है। परिणामस्वरूप, वस्तु की पूर्ति में कमी आ जाती है। सामान्यतया वस्तु की पूर्ति और लागत में ऋणात्मक संबंध होता है। आगतों की कीमत में वृद्धि जैसे कच्चे मॉल की कीमत में वृद्धि, श्रमिकों की मजदूरी में वृद्धि से वस्तु की लागत में वृद्धि होने के फलस्वरूप वस्तु की पूर्ति कम हो जाएगी और पूर्ति वक्र बाई और खिसक जाता है।

रेखाचित्र में इसे स्पष्ट किया गया है:

यहाँ SS प्रारंभिक पूर्ति वक्र है। आगतों की कीमत बढ़ने के कारण पूर्ति घटती है और वक्र बाएँ खिसककर S₁S₁ हो जाता है।

17. बाज़ार में फमों की संख्या में वृद्धि, बाज़ार पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करती है?

उत्तर: बाज़ार में फर्मों की संख्या बढ़ने से बाज़ार की कुल पूर्ति भी बढ़ जाएगी,पूर्ति वक्र दाईं ओर खिसक जायेगा।

18. पूर्ति की कीमत लोच का क्या अर्थ है? हम इसे कैसे मापते हैं?

उत्तर: पूर्ति की कीमत लोच वस्तु की कीमतों में परिवर्तन के कारण वस्तु की पूर्ति है की मात्रा के अनुक्रियाशीलता को मापती है।

19. निम्न तालिका में कुल संप्राप्ति, सीमांत संप्राप्ति तथा औसत संप्राप्ति का परिकलन कीजिए। वस्तु की प्रति इकाई बाज़ार कीमत 10 रुपये है।

बेची गई मात्राकुल संप्राप्तिसीमांत संप्राप्तिऔसत संप्राप्ति
0
1
2
3
4
5
6

उत्तर:

(i) कुल संप्राप्ति = बेचीं गई मात्रा × प्रति इकाई कीमत।

बेचीं गई मात्राप्रति इकाई कीमत(रु)कुल संप्राप्तिसीमांत संप्राप्तिऔसत संप्राप्ति
010
110101010
210201010
310301010
410401010
510501010
610601010

20. निम्न तालिका में एक प्रतिस्पर्धी फर्म की कुल संप्राप्ति तथा कुल लागत सारणियों को दर्शाया गया है। प्रत्येक उत्पादन स्तर के लाभ की गणना कीजिए। वस्तु की बाज़ार कीमत भी निर्धारित कीजिए।

बेची गई मात्रा(कुल संप्राप्ति) रु०(कुल लागत) रु०लाभ
005
157
21010
31512
42015
52523
63033
73540

उत्तर:

बेची गई मात्रा(कुल संप्राप्ति) रु०(कुल लागत) रु०लाभ
005-5
157-2
210100
315123
420155
525232
63033-3
73540-5

21. निम्न तालिका में एक प्रतिस्पर्धी फर्म की कुल लागत सारणी को दर्शाया गया है। वस्तु की कीमत 10 रु० दी हुई है। प्रत्येक उत्पादन स्तर पर लाभ की गणना कीजिए। लाभ-अधिकतमीकरण निर्गत स्तर ज्ञात कीजिए।

उत्पादनकुल लागत (इकाई) रु०
05
115
222
327
431
538
649
763
881
9101
10123

उत्तर:

मात्राकुल लागत (रु०)कुल संप्राप्तिसीमांत लागतसंप्राप्ति सीमान्तऔसत संप्राप्ति (TR-TC)
0500105
1151010105
222207108
327305103
431404109
5385071012
64960111011
7637014107
881801810-1
9101902010-11
101231002210-23

II. Q3 = TR – TC

लाभ 5 इकाइयों पर अधिकतम है अतः उत्पादक 5 इकाइयों पर उत्पादन करेगा।

22. दो फर्मों वाले एक बाज़ार को लीजिए। निम्न तालिका दोनों फर्मों के पूर्ति सारणियों को दर्शाती है: SS1 कालम में फर्म-1 की पूर्ति सारणी, कालम SS2 में फर्म-2 की पूर्ति सारणी है। बाज़ार पूर्ति सारणी का परिकलन कीजिए।

कीमतSS1 इकाइयाँSS2 इकाइयाँ
000
100
200
311
422
533
644

उत्तर:

कीमत (रु०)SS1 (किलो)SS2 (किलो)बाज़ार पूर्ति
0000
1000
2000
3101
420.52.5
5314
641.55.5
7527
862.58.5

23. एक दो फर्मों वाले बाज़ार को लीजिए। निम्न तालिका में कालम SS1 तथा कालम SS₂, क्रमशः फर्म-1 तथा फर्म-2 के पूर्ति सारणियों को दर्शात हैं। बाज़ार पूर्ति सारणी का परिकलन कीजिए।

कीमत (रु०)SS1 (किलो)SS2 (किलो)
000
100
200
310
420.5
531
641.5
752
862.5

उत्तर:

कीमत (रु०)SS1 (किलो)SS2 (किलो)बाज़ार पूर्ति
0000
1000
2000
3101
420.52.5
5314
641.55.5
7527
862.58.5

24. एक बाज़ार में 3 समरूपी फर्म हैं। निम्न तालिका फर्म-1 की पूर्ति सारणी दर्शाती है। बाज़ार पूर्ति सारणी का परिकलन कीजिए।

कीमत (रु०)SS1 (इकाई)
00
10
22
34
46
58
610
712

उत्तर:

कीमत (रु०)SS1 (इकाई)बाज़ार पूर्ति
000
100
226
3412
4618
5824
61030
71236
81442

25. 10 रु० प्रति इकाई बाजार कीमत पर एक फर्म की संप्राप्ति 50 रुपये है। बाज़ार कीमत बढ़कर 15 रु० हो जाती है और अब फर्म को 150 रु० की संप्राप्ति होती है। पूर्ति वक्र की कीमत लोच क्या है?

उत्तर: 

कीमतसंप्राप्ति मात्रा
10505
1515010

26. एक वस्तु की बाज़ार कीमत 5 रु० से बदलकर 20 रु० हो जाती है। फलस्वरूप फर्म पूर्ति की मात्रा 15 इकाई बढ़ जाती है। फर्म के पूर्ति वक्र की कीमत लोच 0.5 है। फर्म का आरंभिक तथा अंतिम निर्गत स्तर ज्ञात करें।

उत्तर:

27.10 रु० बाज़ार कीमत पर एक फर्म निर्गत की 4 इकाइयों की पूर्ति करती है। बाज़ार कीमत बढ़कर 30 रु० हो जाती है। फर्म की पूर्ति की कीमत लोच 1.25 है। नई कीमत पर फर्म कितनी मात्रा की पूर्ति करेगी?

उत्तर:

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