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NCERT Class 12 Economics Chapter 11 बाज़ार संतुलन
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बाज़ार संतुलन
Chapter: 11
व्यष्टि अर्थशास्त्र एक परिचय
अभ्यास
1. बाज़ार संतुलन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर: बाज़ार संतुलन का अर्थ यह है कि, जब किसी विशेष मूल्य पर माँगी गई मात्रा और पूर्ति की गई मात्रा समान होती हैं। इस स्थिति को बाज़ार संतुलन कहा जाता है।
माँग वक्र माँग के नियम के अनुसार बाईं से दाईं ओर नीचे की ओर ढलान वाला होता है, क्योंकि किसी वस्तु की कीमत और उसकी माँगी गई मात्रा के बीच ऋणात्मक संबंध होता है- अर्थात् कीमत बढ़ने पर माँग घटती है और कीमत घटने पर माँग बढ़ती है।
पूर्ति वक्र पूर्ति के नियम के अनुसार बाईं से दाईं ओर ऊपर की ओर ढलान वाला होता है, क्योंकि किसी वस्तु की कीमत और उसकी पूर्ति की गई मात्रा के बीच धनात्मक संबंध होता है— यानी कीमत बढ़ने पर पूर्ति बढ़ती है और कीमत घटने पर पूर्ति घटती है।
चित्र में माँग वक्र DD एक नीचे की ओर ढलान वाला वक्र है, जबकि पूर्ति वक्र SS ऊपर की ओर ढलान वाला है। जहाँ ये दोनों वक्र एक-दूसरे को काटते हैं, वहीं बाज़ार संतुलन बिंदु होता है। इस बिंदु पर माँग और पूर्ति बराबर होती है (Dn = Sn)। इस बिंदु के अनुरूप संतुलन मूल्य (OP) तथा संतुलन मात्रा तय होती है।
यदि बाज़ार मूल्य OP से कम होगा, तो अधिमाँग उत्पन्न होगी – अर्थात् माँग अधिक और पूर्ति कम होगी।
यदि बाज़ार मूल्य OP से अधिक होगा, तो अधिपूर्ति उत्पन्न होगी – अर्थात् पूर्ति अधिक और माँग कम होगी।
2. हम कब कहते हैं कि बाज़ार में किसी वस्तु के लिए अधिमाँग है?
उत्तर: यदि किसी कीमत पर बाज़ार माँग बाज़ार पूर्ति से अधिक है, तो उस कीमत पर बाज़ार में अधिमाँग कहलाती है।
3. हम कब कहते हैं कि बाज़ार में किसी वस्तु के लिए अधिपूर्ति है?
उत्तर: यदि किसी कीमत पर बाज़ार पूर्ति, बाज़ार माँग से अधिक है, तो उस कीमत पर बाज़ार में अधिपूर्ति कहलाती।
4. क्या होगा यदि बाज़ार में प्रचलित मूल्य है?
(a) संतुलन कीमत से अधिक।
उत्तर: जब बाज़ार मूल्य संतुलन मूल्य से अधिक होता है-
(a) यह अधिपूर्ति विक्रेताओं के बीच प्रतिस्पर्धा को बढ़ा देती है।
(b) बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण विक्रेता अपनी वस्तुओं को बेचने के लिए कम कीमत लेने को तैयार हो जाते हैं।
(c) जैसे-जैसे कीमत घटती है, माँग बढ़ने लगती है जबकि पूर्ति घटने लगती है। यह प्रक्रिया तब तक चलती है जब तक कीमत पुनः संतुलन स्तर तक नहीं पहुँच जाती।
(b) संतुलन कीमत से कम।
उत्तर: जब बाज़ार मूल्य संतुलन मूल्य से कम होता है-
(a) यह अधिमाँग खरीदारों के बीच प्रतिस्पर्धा को बढ़ा देती है।
(b) इस प्रतिस्पर्धा के कारण ग्राहक अधिक मूल्य चुकाने को तैयार हो जाते हैं।
(c) जैसे-जैसे कीमत बढ़ती है, माँग घटने लगती है और पूर्ति बढ़ने लगती है। यह तब तक होता है जब तक बाजार में पुनः संतुलन स्थापित नहीं हो जाता।
5. फर्मों की एक स्थिर संख्या के होने पर पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में कीमत का निर्धारण किस प्रकार होता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर: फर्मों की एक स्थिर संख्या के होने पर पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में कीमत का निर्धारण निचे उल्लेख किया गया है-
जब फर्मों की संख्या स्थिर होती है, तब बाज़ार में वस्तु की आपूर्ति सीमित रहती है। ऐसी स्थिति में बाज़ार में वस्तु की कीमत का निर्धारण मांग और आपूर्ति के परस्पर संतुलन के आधार पर होता है।
कीमत निर्धारण की प्रक्रिया:
(i) बाज़ार मांग वक्र (DD) दर्शाता है कि विभिन्न कीमतों पर उपभोक्ता कितनी मात्रा में वस्तु की मांग करते हैं।
(ii) बाज़ार आपूर्ति वक्र (SS) दर्शाता है कि विभिन्न कीमतों पर फर्में कितनी मात्रा में वस्तु की आपूर्ति करती हैं।
जब इन दोनों वक्रों का प्रतिछेद (intersection) होता है, वहीं पर संतुलन कीमत (Equilibrium Price p’) और संतुलन मात्रा (q’) तय होती है। पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में, जब फर्मों की संख्या स्थिर रहती है, तब कीमत का निर्धारण माँग और आपूर्ति के संतुलन द्वारा होता है। संतुलन कीमत वह होती है जहाँ माँग और आपूर्ति बराबर होती हैं, और न तो अधिक माँग होती है न ही अधिक आपूर्ति।
अगर चाहें तो मैं इसका एक सरल संक्षेप या पॉइंट-फॉर्म में भी दे सकता हूँ।
6. मान लीजिए कि अभ्यास 5 में संतुलन कीमत बाज़ार में फर्मों की न्यूनतम औसत लागत से अधिक है। अब यदि हम फर्मों के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति दे दें, तो बाज़ार कीमत इसके साथ किस प्रकार समायोजन करेगी?
उत्तर: (i) यदि फर्मों को बाज़ार में स्वतंत्र रूप से प्रवेश और निकास की अनुमति दी जाए, तो कुल पूर्ति में वृद्धि होगी।
(ii) पूर्ति बढ़ने से बाज़ार में संतुलन मूल्य घटेगा और संतुलन मात्रा बढ़ जाएगी।
(iii) संतुलन मूल्य घटने के कारण फर्मों को प्राप्त असामान्य लाभ समाप्त हो जाएंगे। इसे एक चित्र द्वारा समझाया जा सकता है। प्रारंभ में बाज़ार मूल्य OP था, जहाँ माँग (DD) और पूर्ति (SS) बराबर थे। इस स्तर पर औसत प्राप्ति (AR) औसत लागत (AC) से अधिक थी, इसलिए फर्में असामान्य लाभ कमा रही थीं। जैसे ही फर्मों को स्वतंत्र प्रवेश और बहिर्गमन की अनुमति दी गई, नई फर्में बाज़ार में प्रवेश करने लगीं, जिससे पूर्ति बढ़ गई। पूर्ति तब तक बढ़ती रही जब तक बाज़ार मूल्य इतना कम नहीं हो गया कि AR = न्यूनतम AC हो गया, यानी अब कोई असामान्य लाभ नहीं बचा।
7. जब बाज़ार में निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति है, तो फर्मे पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में कीमत के किस स्तर पर पूर्ति करती हैं? ऐसे बाज़ार में संतुलन मात्रा किस प्रकार निर्धारित होती है?
उत्तर: फर्में न्यूनतम औसत लागत अथवा संतुलन कीमत स्तर पर पूर्ति करती हैं। ऐसे बाज़ार में संतुलन मात्रा उस बिंदु पर निर्धारित होती है, जहाँ कीमत रेखा (Price Line) अर्थात न्यूनतम औसत लागत रेखा, बाज़ार माँग वक्र (Demand Curve) को प्रतिछेदित करती है।
रेखाचित्र में OP सन्तुलन कीमत, DD माँग वक्र, E सन्तुलन बिन्दु तथा Oq सन्तुलन मात्रा को प्रदर्शित करता है। चित्र से स्पष्ट होता है कि कीमत रेखा P, माँग वक्र DD को E बिन्दु पर प्रतिच्छेदित कर रही है। अतः Oq सन्तुलन मात्रा होगी।
8. एक बाज़ार में फर्मों की संतुलन संख्या किस प्रकार निर्धारित होती है, जब उन्हें निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति हो?
उत्तर: एक बाज़ार में फर्मों की संतुलन संख्या निचे दिए गए हैं-
(i) यदि फर्मों को अधिक लाभ हो रहा है, तो नई फर्में प्रवेश करेंगी।
(ii) इससे आपूर्ति बढ़ेगी और कीमत घटेगी, जिससे प्रत्येक फर्म का लाभ कम होगा।
(iii) जब तक सभी फर्मों को केवल सामान्य लाभ (zero economic profit) नहीं मिलने लगता, तब तक फर्मों का प्रवेश जारी रहेगा।
(iv) इसी तरह, यदि फर्मों को घाटा हो रहा है, तो कुछ फर्में बाहर निकल जाएंगी।
(v) इससे आपूर्ति घटेगी, कीमत बढ़ेगी और बचे हुए फर्मों का घाटा कम होगा।
9. संतुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार प्रभावित होती है, जब उपभोक्ताओं की आय में:-
(a) वृद्धि होती है।
उत्तर:
(b) कमी होती है।
उत्तर:
10. पूर्ति तथा माँग वक्रों का उपयोग करते हुए दर्शाइए कि जूतों की कीमतों में वृद्धि, ख़रीदी व बेची जानी वाली मोजों की जोड़ी की कीमतों को तथा संख्या को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर: जूतों की जोड़ी और मोजों की जोड़ी पूरक वस्तुएँ होती हैं। पूरक वस्तुओं के बीच कीमत और माँग का संबंध ऋणात्मक होता है, अर्थात् जब किसी एक वस्तु (जैसे जूतों) की कीमत बढ़ती है, तो उसकी पूरक वस्तु X की माँग घट जाती है। X की कीमत बढ़ने पर Y की माँग कम हो जाती है। इस परिवर्तन के परिणामस्वरूप मोजों की माँग वक्र बाईं ओर खिसक जाएगा, जिससे मोजों की कीमत तथा उनकी खरीद-बिक्री की मात्रा दोनों घट जाएँगे।
11. कॉफ़ी की कीमत में परिवर्तन, चाय की संतुलन कीमत को किस प्रकार प्रभावित करेगा। एक आरेख द्वारा संतुलन मात्रा पर प्रभाव को भी समझाइए।
उत्तर: वे वस्तुएँ जिनका उपयोग एक-दूसरे के स्थान पर किया जा सकता है, उन्हें स्थानापन्न वस्तुएँ (Substitute Goods) कहा जाता है। चाय और कॉफी एक-दूसरे के स्थान पर प्रयुक्त हो सकती हैं, अतः ये दोनों स्थानापन्न वस्तुएँ हैं। यदि कॉफी की कीमत बढ़ती है, तो उसकी माँग घट जाएगी, जिससे उपभोक्ता चाय की ओर रुख करेंगे। इससे चाय की माँग और उसकी कीमत दोनों में वृद्धि होगी।
वहीं, यदि कॉफी की कीमत घटती है, तो चाय की माँग घट सकती है और कीमत में भी कमी आ सकती है।
रेखाचित्र के अनुसार, जब कॉफी की कीमत बढ़कर P1 हो जाती है, तो चाय की माँग बढ़कर q1 तक पहुँच जाती है।
विपरीत स्थिति में, जब कॉफी की कीमत घटकर P2 हो जाती है, तो चाय की माँग घटकर q2 हो जाती है।
12. जब उत्पादन में प्रयुक्त आगतों की कीमतों में परिवर्तन होता है तो किसी वस्तु की संतुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार परिवर्तित होती है?
उत्तर: जब आगतों (इनपुट्स) की कीमतों में वृद्धि होती है, तो उत्पादन की लागत बढ़ जाती है, जिससे उत्पादकों का लाभ घटने लगता है। इस कारण वे कम मात्रा में वस्तु की आपूर्ति करते हैं, परिणामस्वरूप कुल पूर्ति में कमी आ जाती है। इस स्थिति में संतुलन मूल्य बढ़ जाता है और संतुलन मात्रा घट जाती है।
जब आगतों की कीमतों में कमी आती है, तो उत्पादन लागत घट जाती है और उत्पादकों का लाभ बढ़ जाता है। इससे वे अधिक मात्रा में वस्तु की आपूर्ति करने के लिए प्रेरित होते हैं, जिससे कुल पूर्ति में वृद्धि हो जाती है। इस पूर्ति वृद्धि के परिणामस्वरूप संतुलन मूल्य घट जाता है और संतुलन मात्रा बढ़ जाती है।
13. यदि वस्तु x की स्थानापन्न वस्तु (y) की कीमत में वृद्धि होती है, तो वस्तु x की संतुलन कीमत तथा मात्रा पर इसका क्या प्रभाव होता है?
उत्तर: यदि वस्तु x की स्थानापन्न वस्तु y की कीमत में वृद्धि होती है, तो उपभोक्ता y के स्थान पर वस्तु x को अधिक मात्रा में खरीदना पसंद करेंगे। इससे y की माँग में कमी आएगी, जबकि x की माँग बढ़ जाएगी। फलस्वरूप, वस्तु x की संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा—दोनों में वृद्धि होगी।
यह परिवर्तन नीचे दिए गए रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
14. बाज़ार फर्मों की संख्या स्थिर होने पर तथा निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की स्थिति में, माँग वक्र के स्थानांतरण का संतुलन पर प्रभाव की तुलना कीजिए।
उत्तर: जब फर्मों की संख्या स्थिर रहती है, तो माँग वक्र के दाईं ओर खिसकने (अर्थात् माँग में वृद्धि) से संतुलन मात्रा और संतुलन कीमत—दोनों में वृद्धि होती है। इसके विपरीत, यदि माँग वक्र बाईं ओर खिसकता है (अर्थात् माँग में कमी होती है), तो संतुलन मात्रा और संतुलन कीमत—दोनों में कमी आती है।
यदि फर्मों को बाज़ार में स्वतंत्र रूप से प्रवेश और बहिर्गमन की अनुमति हो, तो दीर्घकाल में वस्तु की कीमत P, न्यूनतम औसत लागत (Minimum Average Cost) पर स्थिर रहती है। इस स्थिति में किसी भी फर्म द्वारा कितनी भी मात्रा की आपूर्ति की जा सकती है, परंतु वह बाज़ार कीमत को प्रभावित नहीं कर सकती।
अतः ऐसी स्थिति में यदि माँग बढ़ती है, तो केवल संतुलन मात्रा बढ़ेगी, जबकि संतुलन कीमत यथावत रहेगी। यदि माँग घटती है, तो संतुलन मात्रा घटेगी, परंतु कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होगा।
15. माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों के दायीं ओर शिफ्ट का, संतुलन कीमत तथा मात्रा पर प्रभाव को एक आरेख द्वारा समझाइए।
उत्तर: रेखाचित्र में SS मूल पूर्ति वक्र और DD मूल माँग वक्र को दर्शाते हैं। चित्र के अनुसार जब माँग वक्र और पूर्ति वक्र दोनों समान रूप से दाईं ओर खिसकते हैं, तो नया संतुलन बिंदु E1 पर स्थापित होता है और संतुलन मात्रा बढ़कर q1 हो जाती है, जबकि कीमत P में कोई परिवर्तन नहीं होता।
इससे यह स्पष्ट होता है कि यदि माँग और पूर्ति दोनों वक्र समान अनुपात में दाईं ओर खिसकते हैं, तो संतुलन कीमत अपरिवर्तित रहती है, लेकिन संतुलन मात्रा में वृद्धि होती है। हालाँकि, यदि माँग और पूर्ति वक्रों का विस्थापन असमान अनुपात में होता है, तो संतुलन कीमत और मात्रा—दोनों में परिवर्तन संभव है।
16. संतुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार प्रभावित होते हैं जब-
(a) माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों, समान दिशा में शिफ्ट होते हैं?
उत्तर: (i) जब माँग और पूर्ति में समान रूप से वृद्धि होती है: इस स्थिति में माँग और पूर्ति की वृद्धि एक-दूसरे को संतुलित कर देती है। परिणामस्वरूप, संतुलन मूल्य में कोई परिवर्तन नहीं होता, परंतु संतुलन मात्रा में वृद्धि हो जाती है।
(ii) जब माँग में वृद्धि, पूर्ति की वृद्धि से अधिक होती है: इस स्थिति में माँग का प्रभाव पूर्ति से अधिक होता है, जिससे संतुलन मूल्य और संतुलन मात्रा दोनों में वृद्धि होती है।
(iii) जब माँग में वृद्धि, पूर्ति की वृद्धि से कम होती है: इस स्थिति में माँग में वृद्धि का प्रभाव पूर्ति में वृद्धि के प्रभाव से कम होता है अतः इस स्थिति में संतुलन कीमत तथा संतुलन मात्रा पहले की तुलना में बढ़ जाती है।
(b) माँग तथा पूर्ति वक्र विपरीत दिशा में शिफ्ट होते हैं?
उत्तर: (i) जब माँग में कमी और पूर्ति में कमी बराबर होती है: इस स्थिति में माँग और पूर्ति दोनों में समान कमी होने के कारण एक-दूसरे का प्रभाव संतुलित हो जाता है। परिणामस्वरूप, संतुलन कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होता, लेकिन संतुलन मात्रा घट जाती है।
(ii) जब माँग में कमी, पूर्ति में कमी से अधिक होती है: इस स्थिति में माँग में आई कमी का प्रभाव अधिक होता है। इसलिए, संतुलन कीमत और संतुलन मात्रा दोनों घट जाते हैं।
(iii) जब माँग में कमी पूर्ति में कमी से कम होती है: इस स्थिति में माँग में कमी का प्रभाव पूर्ति में कमी के प्रभाव से कम होता है। अतः इस स्थिति में संतुलन कीमत पहले से बढ़ जाती है, जबकि संतुलन मात्रा पहले से कम हो जाती है।
17. वस्तु बाज़ार में तथा श्रम बाज़ार में माँग तथा पूर्ति वक्र किस प्रकार भिन्न होते हैं?
उत्तर: वस्तु बाज़ार और श्रम बाज़ार दोनों में ही माँग और पूर्ति की शक्तियाँ ईष्टतम मात्रा का निर्धारण करती हैं। हालाँकि, इन दोनों बाज़ारों में माँग और पूर्ति करने वाले पक्ष अलग-अलग होते हैं।
श्रम बाज़ार में श्रमिकों की पूर्ति परिवारों (घरेलू क्षेत्र) द्वारा की जाती है, जबकि श्रम की माँग उत्पादक (फर्मों) से आती है। इसके विपरीत, वस्तु बाजार में वस्तुओं की माँग परिवार क्षेत्र द्वारा की जाती है और पूर्ति फर्मों द्वारा होती है।
श्रम बाज़ार में मजदूरी दर और श्रम की ईष्टतम मात्रा उस बिन्दु पर निर्धारित होती है जहाँ श्रम की माँग और पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते हैं— यानी संतुलन बिन्दु। इसी प्रकार, वस्तु बाज़ार में भी वस्तुओं की कीमतें और उनकी ईष्टतम मात्रा माँग और पूर्ति वक्रों के प्रतिच्छेदन बिन्दु पर तय होती हैं, जहाँ दोनों बराबर होती हैं।
18. एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में श्रम की इष्टतम मात्रा किस प्रकार निर्धारित होती है?
उत्तर: मजदूरी दर और ईष्टतम मात्रा का निर्धारण वक्रों के प्रतिच्छेदन बिंदु पर मजदूरी दर तथा श्रम की संतुलित मात्रा का निर्धारण होता है।
19. एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी श्रम बाज़ार में मज़दूरी दर किस प्रकार निधर्धारित होती है?
उत्तर: एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में श्रम की इष्टतम मात्रा निचे उल्लेख किया गया तरिके पर निर्धारित होती है-
एक लाभ अधिकतम करने वाली फर्म का श्रम उपयोग निर्णय एक लाभ अधिकतम करने वाली फर्म श्रम का उपयोग तब तक करती है, जब तक श्रम की अंतिम इकाई से प्राप्त अतिरिक्त लाभ, उस इकाई के उपयोग की अतिरिक्त लागत के बराबर होता है। श्रम की एक अतिरिक्त इकाई की लागत मजदूरी दर (w) होती है।
श्रम की एक अतिरिक्त इकाई से जो अतिरिक्त उत्पादन होता है, उसे सीमांत उत्पाद (MP) कहा जाता है। इस अतिरिक्त उत्पादन की बिक्री से जो अतिरिक्त आय मिलती है, वह सीमांत संप्राप्ति (MR) कहलाती है।
इस प्रकार, किसी श्रमिक से प्राप्त होने वाला अतिरिक्त लाभ = MR × MP, जिसे सीमांत संप्राप्ति उत्पाद (MRP) कहा जाता है।
इसलिए, फर्म तब तक श्रम का उपयोग करती है जब तक:
w = MRP = MR × MP
जब MRP > w, तो फर्म को अतिरिक्त श्रमिक रखकर अधिक लाभ होगा।
जब MRP < w, तो फर्म को लाभ बढ़ाने के लिए श्रमिकों की संख्या कम करनी चाहिए।
20. क्या आप किसी ऐसी वस्तु के विषय में सोच सकते हैं, जिस पर भारत में कीमत की उच्चतम निर्धारित कीमत लागू है? निर्धारित उच्चतम कीमत सीमा के क्या परिणाम हो सकते हैं?
उत्तर: भारत में ऐसी कई वस्तुएँ हैं जहाँ सरकार कुछ वस्तुओं की अधिकतम स्वीकार्य कीमत निर्धारित करती है। जैसे— गेहूं, चावल, मिट्टी का तेल और पेट्रोल। नीचे दिए गए चित्र में पेट्रोल के लिए बाज़ार की माँग वक्र (DD) और पूर्ति वक्र (SS) दर्शाए गए हैं। इन वक्रों के अनुसार पेट्रोल की संतुलन कीमत OP और संतुलन मात्रा OQ है।
हालाँकि, यदि सरकार पेट्रोल की कीमत OP0 पर निर्धारित कर देती है (जो संतुलन कीमत से कम है), तो इस कीमत पर माँग OQ₁ हो जाती है, जो कि उपलब्ध पूर्ति OQ₁ से अधिक होती है। इससे बाज़ार में अधिमाँग (excess demand) की स्थिति उत्पन्न होती है और वस्तु की कमी हो जाती है।
इस स्थिति के संभावित परिणाम:
(i) कालाबाजारी (Black Marketing): वस्तु की कमी के कारण कुछ लोग इसे अधिक कीमत पर चोरी-छिपे बेच सकते हैं।
(ii) लम्बी कतारें और राशनिंग (Queues and Rationing): सरकार द्वारा राशन कूपनों के माध्यम से सीमित मात्रा में वस्तु वितरण किया जा सकता है, जिससे उपभोक्ताओं को लम्बी कतारों में लगना पड़ता है।
21. माँग वक्र में शिफ्ट का कीमत पर अधिक तथा मात्रा पर कम प्रभाव होता है, जबकि फर्मों की संख्या स्थिर रहती है। स्थितियों की तुलना करें जब निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति हो। व्याख्या करें।
उत्तर: माँग वक्र में शिफ्ट का कीमत पर अधिक तथा मात्रा पर कम प्रभाव होता है, जबकि फर्मों की संख्या स्थिर रहती है।
स्थितियों की तुलना निचे उल्लेख किया गया है-
जब फर्मों की संख्या स्थिर रहती है, तो माँग वक्र में किसी भी प्रकार के शिफ्ट का प्रभाव कीमत पर अधिक तथा मात्रा पर कम पड़ता है। इस स्थिति में माँग वक्र दाईं ओर नीचे की ओर ढलान वाला होता है, जबकि पूर्ति वक्र ऊपर की ओर ढलान वाला होता है। इसलिए माँग में वृद्धि होने पर कीमत में उल्लेखनीय वृद्धि होती है, परंतु संतुलन मात्रा में अपेक्षाकृत कम परिवर्तन होता है।
वहीं दूसरी स्थिति में, जब फर्मों को उद्योग में निर्बाध प्रवेश और निकास की स्वतंत्रता होती है (जैसे कि पूर्ण प्रतियोगिता के दीर्घकालीन अवस्था में), तो पूर्ति वक्र पूर्णतः लचीला (perfectly elastic) होता है। इस स्थिति में माँग में वृद्धि होने पर संतुलन कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होता, लेकिन संतुलन मात्रा में वृद्धि होती है।
इस प्रकार, यह कहा जा सकता है कि जब फर्मों की संख्या स्थिर रहती है, तब माँग वक्र में शिफ्ट का प्रभाव कीमत पर अधिक और मात्रा पर कम होता है, जबकि फर्मों को स्वतंत्र रूप से उद्योग में प्रवेश और निकास की अनुमति होने पर माँग में परिवर्तन का प्रभाव मात्रा पर अधिक और कीमत पर कम होता है।
22. मान लीजिए, एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में वस्तु x की माँग तथा पूर्ति वक्र निम्न प्रकार दिए गए हैं:
qD = 700 – p
qS = 500 + 3p क्योंकि p>15
= 0 क्योंकि = 0 < p < 15
मान लीजिए कि बाज़ार में समरूपी फर्म हैं। 15 रुपये से कम, किसी भी कीमत पर वस्तु x की बाज़ार पूर्ति के शून्य होने के कारण की पहचान कीजिए। इस वस्तु के लिए संतुलन कीमत क्या होगी? संतुलन की स्थिति में x की कितनी मात्रा का उत्पादन होगा?
उत्तर: (i) यदि वस्तु X की कीमत ₹15 से कम होती है, तो उसकी आपूर्ति शून्य (Qˢ = 0) होगी, क्योंकि ₹15 उस फर्म की न्यूनतम औसत लागत (Minimum Average Cost) है। यदि किसी फर्म को न्यूनतम औसत लागत से कम मूल्य प्राप्त होता है, तो उसे हानि होती है और वह उत्पादन नहीं करती। अतः, ₹15 से कम कीमत पर वस्तु X की आपूर्ति नहीं होगी।
(ii) संतुलन कीमत का निर्धारण होगा जहां
qD = qs हो,
700 – P = 500 + 3P 4P = 200 P = 50 P = 250
(iii) संतुलन कीमत पर संतुलन मात्रा ज्ञात करने के लिए
qD = 700 + P, qD = 700 – 50 = 650
qS = 500 + 3P, qS = 500 + 3(50) = 650
23. अभ्यास 22 में दिये गये समान माँग वक्र को लेते हुए, आइए, फर्मों को वस्तु x का उत्पादन करने के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति देते हैं। यह भी मान लीजिए कि बाज़ार समानरूपी फर्मों से बना है जो वस्तु x का उत्पादन करती है। एक अकेली फर्म का पूर्ति वक्र निम्न प्रकार है:
qSf = 8 + 3p क्योंकि p > 20
= 0 क्योंकि 0 < p < 20
(a) p = 20 का क्या महत्त्व है?
उत्तर: p = 20 का महत्त्व यह है कि यह फर्मों की न्यूनतम औसत लागत है। इस कीमत स्तर से नीचे एक फर्म वस्तु की पूर्ति के लिए इच्छुक नहीं होगी।
(b) बाज़ार में x के लिए किस कीमत पर संतुलन होगा? अपने उत्तर का कारण बताइए।
उत्तर: वस्तु X के लिए बाज़ार संतुलन ₹20 की कीमत पर ही संभव है। जब बाज़ार में फर्मों का प्रवेश और निकास स्वतंत्र रूप से होता है, तो दीर्घकालिक संतुलन उस कीमत पर होता है जो फर्मों की न्यूनतम औसत लागत के बराबर हो। इसी कीमत पर बाज़ार की माँग और कुल पूर्ति समान होती है, जिससे संतुलन बनता है।
(c) संतुलन मात्रा तथा फर्मों की संख्या का परिकलन कीजिए।
उत्तर:
24. मान लीजिए कि नमक की माँग तथा पूर्ति वक्र को इस प्रकार दिया गया है:
qD = 1000 – p
qS = 700 + 2p
(a) संतुलन कीमत तथा मात्रा ज्ञात कीजिए।
उत्तर: संतुलन पर नमक की माँग और नमक की पूर्ति बराबर होंगे-
qd = qs
1000 – p = 700 + 2p
-3p = 700 – 1000
-3p = – 300
3p = 300
p = 100
संतुलन कीमत = 100
संतुलन मात्रा = 1000 – p
= 1000 – 100
= 900
(b) अब मान लीजिए कि नमक के उत्पादन के लिए प्रयुक्त एक आगत की कीमत में वृद्धि हो जाती है और नया पूर्ति वक्र है:
qS = 400 + 2p
संतुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार परिवर्तित होती है? क्या परिवर्तन आपकी अपेक्षा के अनुकूल है?
उत्तर:
संतुलन मूल्य में वृद्धि = 200 – 100 = 100 रुपये
यह परिवर्तन हमारी अपेक्षाओं के अनुरूप है। जब नमक के उत्पादन में प्रयुक्त किसी आगत की कीमत में वृद्धि होती है, तो इससे उत्पादन लागत बढ़ जाती है। परिणामस्वरूप, नमक की आपूर्ति घट जाती है, जिससे संतुलन मूल्य में वृद्धि तथा संतुलन मात्रा में कमी होना स्वाभाविक है।
(c) मान लीजिए, सरकार नमक की बिक्री पर 3 रुपये प्रति इकाई कर लगा देती है। यह संतुलन कीमत तथा मात्रा को किस प्रकार प्रभावित करेगा?
उत्तर:
25. मान लीजिए कि एपार्टमेंटों के लिए बाज़ार-निर्धारित किराया इतना अधिक है कि सामान्य लोगों द्वारा वहन नहीं किया जा सकता, यदि सरकार किराए पर एपार्टमेंट लेने वालों की मदद करने के लिए किराया नियंत्रण लागू करती है, तो इसका एपार्टमेटों के बाज़ार पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर: ऐसे में बाज़ार में अधिमांग उत्पन्न होगी। अपार्टमेंट की माँग बढ़ जाएगी, जबकि सरकार द्वारा निर्धारित किराये पर उनकी उपलब्धता कम रह जाएगी। इस स्थिति में या तो सरकार को स्वयं अपार्टमेंट उपलब्ध कराकर इस अधिमांग को पूरा करना होगा, या फिर यह अधिमांग कालाबाज़ारी को बढ़ावा देगी। इसमें अपार्टमेंट मालिक सरकार द्वारा तय किराये से अधिक किराया वसूलेंगे, और उस अधिक किराये पर भी उन्हें आसानी से किरायेदार मिल जाएंगे।

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