NCERT Class 11 Political Science Chapter 1 संविधान-क्यों और कैसे?

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NCERT Class 11 Political Science Chapter 1 संविधान-क्यों और कैसे?

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Chapter: 1

भारत का संविधान सिद्धांत और व्यवहार
INTEX QUESTION

1. राज्य के नीति-निर्देशक तत्व भी सरकार से लोगों की कुछ आकांक्षाएँ पूरी करने की अपेक्षा करते हैं। संविधान में अच्छी बातें लिखने में क्या जाता है? लेकिन ऐसी ऊँची आकांक्षाओं और लक्ष्यों को लिखने का मतलब क्या है यदि वे लोगों के जीवन को बदल न सकें?

उत्तर: राज्य के नीति-निर्देशक तत्व संविधान में सरकार को दिशा देने के लिए शामिल किए गए हैं, ताकि समाज में समानता, न्याय, और बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा कर सके। यह तत्व केवल दस्तावेजों तक सीमित रह जाएँ और उनका क्रियान्वयन न हो, तो उनका उद्देश्य अधूरा रह जाता है। इन तत्वों को लागू करना सरकार की जिम्मेदारी है, ताकि वे लोगों के जीवन में वास्तविक बदलाव ला सकें।

2. लोगों को जब यह पता चलता है कि उनका संविधान न्यायपूर्ण नहीं है तो वे क्या करते हैं? ऐसे लोगों का क्या होता है जिनका संविधान केवल कागज़ पर ही होता है?

उत्तर: लोगों को जब यह पता चलता है कि उनका संविधान न्यायपूर्ण नहीं है, तो वे विद्रोह करते हैं। और कोई कानून असंवैधानिक पाया जाता है, तो उसे उलट दिया जाना चाहिए या किताबों से हटा दिया जाना चाहिए।

3. यदि भारत की संविधान सभा देश के सभी लोगों के द्वारा निर्वाचित होती तो क्या होता? क्या वह उस संविधान सभा से भिन्न होती जो बनाई गई?

उत्तर: यदि भारत की संविधान सभा देश के सभी लोगों द्वारा निर्वाचित होती, तो यह वर्तमान संविधान सभा से भिन्न होती। संविधान सभा में आम जनता की सीधी भागीदारी होती है, जिससे समाज के सभी वर्गों, जातियों और समुदायों का प्रतिनिधित्व बेहतर तरीके से हो पाता है। यह लोकतांत्रिक और समावेशी होती हैं जिसमें दलितों, आदिवासियों और अन्य हाशिए पर पड़े समुदायों के हितों को अधिक प्राथमिकता मिलती। इसके अलावा, संविधान में भी शायद अधिक प्रगतिशील और लोकतांत्रिक दृष्टिकोण होते, जैसे समानता और समाजवाद के सिद्धांतों पर अधिक जोर। हालांकि, उस समय जन-निर्वाचन की प्रक्रिया पूरी तरह स्थापित नहीं थी।

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4. यदि हमें 1937 में स्वतंत्रता मिल जाती तो क्या होता? हमें 1957 तक इंतज़ार करना पड़ता तो क्या होता? क्या तब बनाया गया संविधान हमारे वर्तमान संविधान से भिन्न होता?

उत्तर: यदि हमें 1937 में स्वतंत्रता मिल जाती, तो यह संभव था कि भारत को द्वितीय विश्व युद्ध में किसी एक पक्ष को चुनने की बाध्यता होती, लेकिन चूंकि चीन मित्र राष्ट्रों का हिस्सा था और धुरी शक्तियों का नहीं था, इसलिए भारत को उन शक्तियों में से कोई चुनने की आवश्यकता नहीं होती। इससे हमारी वर्तमान गुटनिरपेक्ष स्थिति पर असर पड़ सकता था। इसके अलावा, यदि हम 1937 में स्वतंत्र हो जाते, तो हम अपने बहादुर नेताओं जैसे सुभाष चंद्र बोस को खोते नहीं, और इससे भारतीय राजनीतिक प्रतिनिधित्व को मजबूती मिलती।

यदि हमें 1957 तक स्वतंत्रता मिलती, तो यह सबसे ज्यादा मुहम्मद अली जिन्ना और महात्मा गांधी की मृत्यु से प्रभावित होता, क्योंकि दोनों महान नेता 1948 में निधन हो गए थे। उनके बिना, भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव आता, और यह स्वतंत्र देश-देशों की स्थिति पर प्रभाव डालता। पाकिस्तान का गठन प्रभावित हो सकता था, लेकिन बांग्लादेश का निर्माण 1971 में हुआ था, और 1957 में स्वतंत्रता मिलने से इसका कोई सीधा संबंध नहीं होता।

5. क्या यह संविधान उधार का था? हम ऐसा संविधान क्यों नहीं बना सके जिसमें कहीं से कुछ भी उधार न लिया गया हो?

उत्तर: भारतीय संविधान को “उधार का” कहना अनुचित है। यह विभिन्न देशों से प्रेरित प्रावधानों को भारतीय संदर्भ में ढालकर बनाया गया एक अनूठा दस्तावेज़ है। स्वतंत्रता के तुरंत बाद, भारत को एक मजबूत और प्रभावी संविधान की आवश्यकता थी। यदि पूरी तरह मौलिक संविधान बनाने की कोशिश की जाती, तो इसमें समय और संसाधन अधिक लगते, और तत्काल चुनौतियों का समाधान संभव नहीं होता। दूसरों से सीखना कमजोरी नहीं, बल्कि दूरदर्शिता का संकेत है। भारतीय संविधान हमारी विविधता और आवश्यकताओं का सटीक प्रतिबिंब है।

प्रश्नावली

1. इनमें कौन-सा संविधान का कार्य नहीं है?

(क) यह नागरिकों के अधिकार की गारंटी देता है।

(ख) यह शासन की विभिन्न शाखाओं की शक्तियों के अलग-अलग क्षेत्र का रेखांकन करता है।

(ग) यह सुनिश्चित करता है कि सत्ता में अच्छे लोग आयें।

(घ) यह कुछ साझे मूल्यों की अभिव्यक्ति करता है।

उत्तर: (ग) यह सुनिश्चित करता है कि सत्ता में अच्छे लोग आयें।

2. निम्नलिखित में कौन-सा कथन इस बात की एक बेहतर दलील है कि संविधान की प्रमाणिकता संसद से ज़्यादा है?

(क) संसद के अस्तित्व में आने से कहीं पहले संविधान बनाया जा चुका था।

(ख) संविधान के निर्माता संसद के सदस्यों से कहीं ज्यादा बड़े नेता थे।

(ग) संविधान ही यह बताता है कि संसद कैसे बनायी जाय और इसे कौन-कौन-सी शक्तियाँ प्राप्त होंगी।

(घ) संसद, संविधान का संशोधन नहीं कर सकती।

उत्तर: (ग) संविधान ही यह बताता है कि संसद कैसे बनायी जाय और इसे कौन-कौन-सी शक्तियाँ प्राप्त होंगी।

3. बतायें कि संविधान के बारे में निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत?

(क) सरकार के गठन और उसकी शक्तियों के बारे में संविधान एक लिखित दस्तावेज़ है।

(ख) संविधान सिर्फ लोकतांत्रिक देशों में होता है और उसकी जरूरत ऐसे ही देशों में होती है।

(ग) संविधान एक कानूनी दस्तावेज़ है और आदर्शों तथा मूल्यों से इसका कोई सरोकार नहीं।

(घ) संविधान एक नागरिक को नई पहचान देता है।

उत्तर: गलत।

4. बतायें कि भारतीय संविधान के निर्माण के बारे में निम्नलिखित अनुमान सही है या नहीं? अपने उत्तर का कारण बतायें।

(क) संविधान-सभा में भारतीय जनता की नुमाइंदगी नहीं हुई। इसका निर्वाचन सभी नागरिकों द्वारा नहीं हुआ था।

उत्तर: यह कथन सही है।

संविधान-सभा का गठन 1946 में हुआ था, और इसके सदस्यों का चुनाव भारत के आम नागरिकों द्वारा नहीं बल्कि प्रांतीय विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा किया गया था। 

(ख) संविधान बनाने की प्रक्रिया में कोई बड़ा फ़ैसला नहीं लिया गया क्योंकि उस समय नेताओं के बीच संविधान की बुनियादी रूपरेखा के बारे में आम सहमति थी।

उत्तर: यह कथन गलत है।

संविधान बनाने की प्रक्रिया में कोई बड़ा फ़ैसला नहीं लिया गया क्योंकि यह प्रक्रिया बहुत ही जटिल और व्यापक थी। इसमें कई बड़े और कठिन फैसले लिए गए थे जैसे संघीय ढांचे का निर्धारण, मौलिक अधिकारों का समावेश, धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत, और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने वाली नीतियाँ। 

(ग) संविधान में कोई मौलिकता नहीं है क्योंकि इसका अधिकांश हिस्सा दूसरे देशों से लिया गया है।

उत्तर: यह कथन गलत है।

संविधान में कोई मौलिकता नहीं है क्योंकि इसका अधिकांश हिस्सा दूसरे देशों से लिया गया है। जैसे ब्रिटेन, अमेरिका, आयरलैंड, और कनाडा। लेकिन इसे भारतीय परिस्थितियों और आवश्यकताओं के अनुसार अनुकूलित किया गया। 

5. भारतीय संविधान के बारे में निम्नलिखित प्रत्येक निष्कर्ष की पुष्टि में दो उदाहरण दें।

(क) संविधान का निर्माण विश्वसनीय नेताओं द्वारा हुआ। उनके लिए जनता के मन में आदर था।

उत्तर: सही।

संविधान सभा का निर्माण 1946 में भारत के अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के माध्यम से हुआ था। इसके सदस्य भारतीय प्रांतीय विधान सभाओं में चुने गए प्रतिनिधियों के द्वारा निर्वाचित हुए थे।

(ख) संविधान ने शक्तियों का बँटवारा इस तरह किया कि इसमें उलट-फेर मुश्किल है।

उत्तर: गलत।

संविधान बनाने की प्रक्रिया में कई महत्वपूर्ण और बड़े फैसले लिए गए। इन पर गहन चर्चा और बहस हुई। जैसे धर्मनिरपेक्षता, संघीय ढांचे, मौलिक अधिकारों, आरक्षण, और समाजवादी नीतियों को लेकर विभिन्न दृष्टिकोण थे। 

(ग) संविधान जनता की आशा और आकांक्षाओं का केंद्र है।

उत्तर: गलत।

भारतीय संविधान ने विभिन्न देशों से प्रावधानों को प्रेरणा के रूप में लिया, लेकिन उन्हें भारतीय संदर्भ के अनुसार ढाला गया। यह अपने आप में एक मौलिकता का प्रमाण है। 

6. किसी देश के लिए संविधान में शक्तियों और जिम्मेदारियों का साफ-साफ निर्धारण क्यों जरूरी है? इस तरह का निर्धारण न हो, तो क्या होगा?

उत्तर: किसी देश के लिए संविधान में शक्तियों और जिम्मेदारियों निर्धारण इसलिए जरूरी है क्योंकि इन शक्तियों का दुरुपयोग न हो सके। यदि ऐसा निर्धारण नहीं किया जाता, तो संविधान का उल्लंघन होने की संभावना बढ़ जाती है और राज्य में अस्थिरता तथा अराजकता उत्पन्न हो सकती है। संविधान में ऐसी संस्थाओं का प्रावधान होता है, जो सरकार के कार्यों को सुचारू रूप से संचालित करने में मदद करती हैं और लोकतांत्रिक संतुलन बनाए रखती हैं।

7. शासकों की सीमा का निर्धारण करना संविधान के लिए क्यों ज़रूरी है? क्या कोई ऐसा भी संविधान हो सकता है जो नागरिकों को कोई अधिकार न दे।

उत्तर: संविधान सरकार और शासकों की शक्तियों पर सीमाएँ लगाकर नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करता है। यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी सरकार अपनी शक्तियों का दुरुपयोग न करे और जनता के हितों को नुकसान न पहुँचाए। नागरिकों को मौलिक अधिकार, जैसे अभिव्यक्ति, स्वतंत्रता और शोषण से मुक्ति प्रदान कर, संविधान उन्हें सुरक्षित और स्वतंत्र जीवन जीने की गारंटी देता है। न्यायपालिका, संसद और कार्यपालिका के बीच संतुलन बनाए रखकर संविधान लोकतंत्र को सुचारू रूप से संचालित करता है।

8. जब जापान का संविधान बना तब दूसरे विश्वयुद्ध में पराजित होने के बाद जापान अमेरिकी सेना के कब्जे में था। जापान के संविधान में ऐसा कोई प्रावधान होना असंभव था, जो अमेरिकी सेना को पसंद न हो। क्या आपको लगता है कि संविधान को इस तरह बनाने में कोई कठिनाई है? भारत में संविधान बनाने का अनुभव किस तरह इससे अलग है?

उत्तर: जापान का संविधान अमेरिकी सेना के निर्देश पर बनाया गया था, क्योंकि जापान पर अमेरिकी कब्ज़े के दौरान यह प्रक्रिया पूरी हुई। इस कारण संविधान में ऐसे प्रावधान शामिल किए गए जो अमेरिकी सेना को स्वीकार्य हों।

जापान के संविधान की कुछ प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं:

इसमें शस्त्रधारी सेनाओं के स्थान पर “आत्मरक्षा बल” का प्रावधान है।

संविधान के अनुच्छेद 9 के अनुसार, जापान कभी किसी पर हमला नहीं करेगा और युद्ध को अपने संप्रभु अधिकार के रूप में मान्यता नहीं देगा।

इसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता और जीवन के अधिकार को विशेष महत्व दिया गया है।

भारतीय संविधान में “कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया” की अवधारणा जापानी संविधान से प्रेरित है।

जापान का संविधान अपने समय की परिस्थितियों के अनुसार तैयार किया गया था, जिसमें शांति और स्थायित्व को प्राथमिकता दी गई।

9. रजत ने अपने शिक्षक से पूछा- ‘संविधान एक पचास साल पुराना दस्तावेज़ है और इस कारण पुराना पड़ चुका है। किसी ने इसको लागू करते समय मुझसे राय नहीं माँगी। यह इतनी कठिन भाषा में लिखा हुआ है कि मैं इसे समझ नहीं सकता। आप मुझे बतायें कि मैं इस दस्तावेज़ की बातों का पालन क्यों करूँ?’ अगर आप शिक्षक होते तो रजत को क्या उत्तर देते?

उत्तर: यदि मैं रजत का शिक्षक होता तो उसके प्रश्न का संक्षेप में निम्नलिखित उत्तर देता भारत का संविधान एक गतिशील जीवन्त दस्तावेज है। भारत ने जो संविधान अपनाया है, वह 57 वर्षों से भी अधिक समय से अस्तित्व में है। इस अवधि में हम भारत के लोग अनेक दबावों और तनावों से गुजरे हैं। जून, 1975 में आपात्काल की घोषणा एक दुःखद घटना थी। ऐसी घटना एक लोकतान्त्रिक देश में कभी नहीं घटनी चाहिए थी। संसद सर्वोच्च है या न्यायपालिका-इस विषय पर एक तीखा विवाद उठाा था। किन्तु समय के साथ-साथ कठिन परिस्थितियाँ अपने आप सुलझती चली गईं। संविधान आज भी सजीव और सशक्त है।

भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया था। तब से लेकर सन् 2007 तक इसमें 93 संशोधन किए जा चुके हैं। इतनी बड़ी संख्या में संशोधनों के बाद भी यह संविधान 57 वर्षों से अधिक समय से अस्तित्व में है। अतः इस संविधान को 50 साल से भी अधिक पुरानी दस्तावेज़ कहना गलत है।

इस संविधान को बीते दिनों की पुस्तक इसलिए भीसाथ पर्याप्त रूप से लचीला भी है। देश में सामाजिक- आर्थिक बदलाव लाने के लिए इसमें परिवर्तन भी किया जा सकता है। संविधान में प्रस्तुत किए गए अधिकांश प्रावधानों की प्रकृति इस प्रकार की है कि उन्हें कभी पुराना नहीं कहा जा सकता।

इस संविधान की रचना उस संविधान सभा द्वारा की गई है जिसमें 82 प्रतिशत सदस्य कांग्रेस के प्रतिनिधि थे और कांग्रेस देश के सभी वर्गों, धर्मों, विचारधाराओं और जातियों का प्रतिनिधित्व करती थी। ये सभी व्यक्ति अत्यधिक योग्य और अनुभवी थे। अतः यह कथन भी तर्कसंगत नहीं है कि संविधान निर्माताओं द्वारा आपसे राय नहीं ली गई। जो संविधान सभा संविधान निर्माण का कार्य कर रही थी-वह सम्पूर्ण देश का प्रतिनिधित्व कर रही थी-अर्थात् वह आपका भी प्रतिनिधित्व कर रही थी। भारतीय संविधान का प्रारूप देश की बदलती परिस्थितियों के कारण पैदा होने वाली चुनौतियों का मुकाबला करने में पूरी तरह से सक्षम है।

10. संविधान के क्रिया-कलाप से जुड़े अनुभवों को लेकर एक चर्चा में तीन वक्ताओं ने तीन अलग-अलग पक्ष लिए-

(क) हरबंस – भारतीय संविधान एक लोकतांत्रिक ढाँचा प्रदान करने में सफल रहा है।

उत्तर: हरबंस का पक्ष: हरबंस की बात सही है कि संविधान ने लोकतांत्रिक ढांचा प्रदान किया है। लेकिन यह भी ध्यान रखना होगा कि केवल ढांचा प्रदान करना पर्याप्त नहीं है; उसे बनाए रखना और सुदृढ़ करना हमारी जिम्मेदारी है।

(ख) नेहा – संविधान में स्वतंत्रता, समता और भाईचारा सुनिश्चित करने का विधिवत् वादा है। चूंकि ऐसा नहीं हुआ इसलिए संविधान असफल है।

उत्तर: नेहा का पक्ष: नेहा का यह कहना कि संविधान असफल है, सही नहीं है। संविधान ने स्वतंत्रता, समता, और भाईचारे का वादा विधिवत रूप से किया है और उसे लागू करने के लिए कई संस्थागत ढांचे भी प्रदान किए हैं। अगर ये आदर्श पूरी तरह से हासिल नहीं हुए, तो यह संविधान की विफलता नहीं बल्कि उसके अपूर्ण क्रियान्वयन का संकेत है।

(ग) नाजिमा – संविधान असफल नहीं हुआ, हमने उसे असफल बनाया। क्या आप इनमें से किसी पक्ष से सहमत हैं, यदि हाँ, तो क्यों? यदि नहीं, तो आप अपना पक्ष बतायें।

उत्तर: नाजिमा का पक्ष: संविधान को विफल मानना उचित नहीं है, क्योंकि यह अपनी क्षमता और उद्देश्य में पूरी तरह सक्षम है। समस्या संविधान में नहीं, बल्कि उसके क्रियान्वयन में है। अगर स्वतंत्रता, समता, और भाईचारे के आदर्श पूरी तरह लागू नहीं हो पाए हैं, तो इसका कारण हमारा सामूहिक व्यवहार, प्रशासनिक विफलताएँ, और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है।

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