NCERT Class 11 Geography Bhutiq Bhugol ke Mul Sidhant Chapter 6 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास

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Chapter – 6

भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत

इकाई III: भू-आकृतियाँ

अभ्यास

1. बहुवैकल्पिक प्रश्न:

(i) स्थलरूप विकास की किस अवस्था में अधोमुख कटाव प्रमुख होता है?

(क) तरुणावस्था।

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(ख) प्रथम प्रौढ़ावस्था।

(ग) अंतिम प्रौढ़ावस्था।

(घ) वृद्धावस्था।

उत्तर: (क) तरुणावस्था।

(ii) एक गहरी घाटी जिसकी विशेषता सीढ़ीनुमा खड़े ढाल होते हैं; किस नाम से जानी जाती है:

(क) U आकार घाटी।

(ख) अंधी घाटी।

(ग) गॉर्ज।

(घ) कैनियन।

उत्तर: (घ) कैनियन।

(iii) निम्न में से किन प्रदेशों में रासायनिक अपक्षय प्रक्रिया यांत्रिक अपक्षय प्रक्रिया की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली होती है:

(क) आर्द्र प्रदेश।

(ख) शुष्क प्रदेश।

(ग) चूना-पत्थर प्रदेश।

(घ) हिमनद प्रदेश।

उत्तर: (क) आर्द्र प्रदेश।

(iv) निम्न में से कौन सा वक्तव्य लेपीज (Lapies) शब्द को परिभाषित करता है:

(क) छोटे से मध्यम आकार के उथले गर्त।

(ख) ऐसे स्थलरूप जिनके ऊपरी मुख वृत्ताकार व नीचे से कीप के आकार के होते हैं।

(ग) ऐसे स्थलरूप जो धरातल से जल के टपकने से बनते हैं।

(घ) अनियमित धरातल जिनके तीखे कटक व खाँच हों।

उत्तर: (घ) अनियमित धरातल जिनके तीखे कटक व खाँच हों।

(v) गहरे, लंबे व विस्तृत गर्त या बेसिन जिनके शीर्ष दीवार खड़े ढाल वाले व किनारे खड़े व अवतल होते हैं, उन्हें क्या कहते हैं?

(क) सर्क।

(ख) पाश्विक हिमोढ़।

(ग) घाटी हिमनद।

(घ) एस्कर।

उत्तर: (क) सर्क।

2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए:

(i) चट्टानों में अधः कर्तित विसर्प और मैदानी भागों में जलोढ़ के सामान्य विसर्प क्या बताते हैं?

उत्तर: नदी विकास की प्रारंभिक अवस्था में प्रारंभिक मंद ढाल पर विसर्प लूप विकसित होते हैं और ये लूप चट्टानों में गहराई तक होते हैं जो प्रायः नदी अपरदन या भूतल के धीमे व लगातार उत्थान के कारण बनते हैं। कालांतर में ये गहरे तथा विस्तृत हो जाते हैं और कठोर चट्टानी भागों में गहरे गॉर्ज व कैनियन के रूप में पाए जाते हैं। ये उन प्राचीन धरातलों के परिचायक हैं जिन पर नदियाँ विकसित हुई हैं। बाढ़ व डेल्टाई मैदानों पर लूप जैसे चैनल प्रारूप विकसित होते हैं, जिन्हें विसर्प कहा जाता है। नदी विसर्प के निर्मित होने का एक कारण तटों पर जलोढ़ का अनियमित व असंगठित जमाव है, जिससे जल का दबाव नदी पाश्श्रवों की तरफ बढ़ता है। प्रायः बड़ी नदियों के विसर्प में उत्तल किनारों पर सक्रिय निक्षेपण होते हैं और अवतल किनारों पर अधोमुखी कटाव होते हैं।

(ii) घाटी रंध्र अथवा युवाला का विकास कैसे होता है?

उत्तर: सामान्यतः धरातलीय प्रवाहित जल घोल में रंध्रों व विलयन रंध्रों से गुजरता हुआ अन्तभौमि नदी के नो रूप में विलीन हो जाता है और फिर कुछ दूरी के पश्चात् किसी कंदरा से भूमिगत नदी के रूप में फिर बर निकल आता है। जब घोलरंध्र व डोलाइन इन कंदराओं से की छत के गिरने से या पदार्थों के स्खलन द्वारा आपस ले में मिल जाते हैं, तो लंबी, तंग तथा विस्तृत खाइयाँ बनती ले हैं जिन्हें घाटी रंध्र (Valley sinks) या युवाला (Uvalas) कहते हैं।

(iii) चूनायुक्त चट्टानी प्रदेशों में धरातलीय जल प्रवाह की अपेक्षा भौम जल प्रवाह अधिक पाया जाता है, क्यों?

उत्तर: भौम जल का कार्य सभी प्रकार की चट्टानों में नहीं देखा जा सकता हैं। लेकिन ऐसी चट्टानें जैसे- चूना पत्थर या डोलोमाइट, जिनमें कैल्शियम कार्बोनेट की प्रधानता होती है, उनमें धरातलीय व भौम जल, रासायनिक प्रक्रिया द्वारा (घोलीकरण व अवक्षेपण) अनेक स्थल रूपों को विकसित करते हैं। ये दो प्रक्रियाएँ घोलीकरण व अवक्षेपण- या तो चूना पत्थर व डोलामाइट चट्टानों में अलग से या अन्य चट्टानों के साथ अंतरासंस्तरित पाई जाती हैं। किसी भी चूनापत्थर (Limestone) या डोलोमाइट चट्टानों के क्षेत्र में भौम जल द्वारा घुलनप्रक्रिया और उसके निक्षेपण प्रक्रिया से बने ऐसे स्थलरूपों को कार्स्ट (Karst topography) स्थलाकृति का नाम दिया गया है। यह नाम एड्रियाटिक सागर के साथ बालकन कार्स्ट क्षेत्र में उपस्थित लाइमस्टोन चट्टानों पर विकसित स्थलाकृतियों पर आधारित है।

(iv) हिमनद घाटियों में कई रैखिक निक्षेपण स्थलरूप मिलते हैं। इनकी अवस्थिति व नाम बताएँ।

उत्तर: हिमनदियों के जमाव व निक्षेपण से अनेक स्थलाकृतियों का निर्माण होता है-

1. हिमोढ़: हिमोढ़, हिमनद टिल या गोलाश्मी मृत्तिका के जमाव की लंबी कटकें हैं। हिमनद द्वारा कई तरह के हिमोढ़ों का निर्माण होता है, जैसे-

(क) अंतस्थ हिमोढ़।

(ख) पार्श्विक हिमोढ़।

(ग) मध्यस्थ हिमोढ़।

2. एस्कर: हिमनद के पिघलने के कारण बनी नदियाँ नदी घाटी के ऊपर बर्फ के किनारों वाले तल में प्रवाहित होती हैं। यह जलधारा अपने साथ बड़े गोलाश्म, चट्टानी टुकडे और छोटे चट्नी मलवे को बहाकर लाती है। जो हिमनद के नीचे इस बर्फ की घाटी में जमा हो जाते हैं। ये बर्फ पिघलने के बाद एक वक्राकार कटक के रूप में मिलते हैं, जिन्हें एस्कर कहते हैं।

3. हिमानी धौत मैदान: हिमानी गिरिपद के मैदानों में अथवा महाद्वीपीय हिमनदों से दूर हिमानी-जलोढ़ निक्षेपों से (जिसमें बजरी, रेत, चीका मिट्टी व मृत्तिका के विस्तृत समतल जलोढ़-पंख भी शामिल हैं), हिमानी धौत मैदान निर्मित होते हैं।

4. ड्रमलिन: ड्रमलिन हिमनद मृत्तिका के अंडाकार समतल कटकनुमा स्थलरूप हैं जिसमें रेत व बजरी के ढेर होते हैं। ड्रमलिन के लंबे भाग हिमनद के प्रवाह की दिशा के समानांतर होते हैं। ये एक किलोमीटर लंबे व 30 मीटर तक ऊँचे होते हैं। ड्रमलिन का हिमनद सम्मुख भाग स्टॉस (Stoss) कहलाता है, जो पृच्छ (Tail) भागों की अपेक्षा तीखा तीव्र ढाल लिए होता है।

(v) मरुस्थली क्षेत्रों में पवन कैसे अपना कार्य करती है? क्या मरुस्थलों में यही एक कारक अपरदित स्थलरूपों का निर्माण करता है।

उत्तर: उष्ण मरूस्थलीय क्षेत्रों में पवन के कारण आस-पास की चट्टानों का कटाव करतें हैं, जिससे कई स्थलाकृतियों का निर्माण होता है। मरूस्थलीय धरातल शीघ्र गर्म और ठंडे हो जाते हैं। ठंडी और गर्मी से चट्टानों में दरारें पड़ जाती हैं। जो बाद में खंडित होकर पवनों द्वारा अपरदित होती रहती हैं। पवन अपवाहन, घर्षण आदि द्वारा अपरदन करते हैं। मरूस्थलों में अपक्षय जनित मलबा होकर केवल पवन द्वारा ही नहीं, बल्कि वर्षा धोवन से भी प्रभावित होता है। पवन केवल महीन मलबे का ही अपवाहन कर सकते हैं और बृहत अपरदन मुख्यतः परत बाढ़ या वृष्टि धोवन से ही संपन्न होता है। मरूस्थलों में नदियाँ चौड़ी, अनियमित तथा वर्षा के बाद अल्प समय तक ही प्रवाहित होती हैं।

3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए:

(i) आर्द्र व शुष्क जलवायु प्रदेशों में प्रवाहित जल ही सबसे महत्त्वपूर्ण भू-आकृतिक कारक है। विस्तार से वर्णन करें।

उत्तर: आर्द्र प्रदेशों में, जहाँ अत्यधिक वर्षा होती है, प्रवाहित जल सबसे महत्त्वपूर्ण भू-आकृतिक कारक है जो धरातल का निम्नीकरण के लिए उत्तरदायी है। प्रवाहित जल के दो तत्त्व हैं। एक, धरातल पर परत के रूप में फैला हुआ प्रवाह है। दूसरा, रैखिक प्रवाह है जो घाटियों में नदियों, सरिताओं के रूप में बहता है। प्रवाहित जल द्वारा निर्मित अधिकतर अपरदित स्थलरूप ढाल प्रवणता के अनुरूप बहती हुई नदियों की आक्रामक युवावस्था से संबंधित हैं। कालांतर में, तेज ढाल लगातार अपरदन के कारण मंद ढाल में परिवर्तित हो जाते हैं और परिणामस्वरूप नदियों का वेग कम हो जाता है, जिससे निक्षेपण आरंभ होता है।

तेज ढाल से बहती हुई सरिताएँ भी कुछ निक्षेपित भू-आकृतियाँ बनाती हैं, लेकिन ये नदियों के मध्यम तथा धीमे ढाल पर बने आकारों की अपेक्षा बहुत कम होते हैं। प्रवाहित जल का ढाल जितना मंद होगा, उतना ही अधिक निक्षेपण होगा। 

जब लगातार अपरदन के कारण नदी तल समतल हो जाए, तो अधोमुखी कटाव कम हो जाता है और तटों का पावं अपरदन बढ़ जाता है और इसके फलस्वरूप पहाड़ियाँ और घाटियाँ समतल मैदानों में परिवर्तित हो जाते है।

यद्यपि मरुस्थलों में वर्षा बहुत कम होती है, लेकिन यह अल्प समय में मूसलाधार वर्षा के रूप में होती है। मरुस्थलीय चट्टानें अत्यधिक वनस्पतिविहीन होने के कारण तथा दैनिक तापांतर के कारण यांत्रिक एवं रासायनिक अपक्षय से अधिक प्रवाहित होती हैं। मरुस्थलीय भागों में भू-आकृतिकयों का निर्माण सिर्फ पवनों से नहीं बल्कि प्रवाहित जल से भी होता है।

(ii) चूना चट्टानें आर्द्र व शुष्क जलवायु में भिन्न व्यवहार करती हैं क्यों? चूना प्रदेशों में प्रमुख व मुख्य भू-आकृतिक प्रक्रिया कौन सी हैं और इसके क्या परिणाम हैं?

उत्तर: चूना-पत्थर एक घुलनशील पदार्थ है, जो आर्द्र जलवायु में अनेक स्थलाकृतियों का निर्माण करता है, जबकि शुष्क क्षेत्रों में इसका प्रभाव अपेक्षाकृत कम होता है। चूना-पत्थर की घुलनशीलता के कारण आर्द्र प्रदेशों में इस पर रासायनिक अपक्षय का प्रभाव अधिक पड़ता है। हालांकि, शुष्क जलवायु में यह प्रक्रिया सीमित होती है क्योंकि चूना-पत्थर की संरचना में समानता के कारण उसमें फैलाव और संकुचन कम होता है, जिससे चट्टान का बड़े टुकड़ों में विघटन नहीं हो पाता। चूना-पत्थर या डोलोमाइट चट्टानों के क्षेत्रों में भौमजल की घुलन क्रिया और उसकी निक्षेपण प्रक्रिया से कई स्थलरूप निर्मित होते हैं। इन अपरदित स्थलरूपों में घोलरंध्र, कुंड, लेपीज़ और चूना-पत्थर चबूतरे प्रमुख हैं। निक्षेपित स्थलरूप आमतौर पर कंदराओं के भीतर बनते हैं। चूना-पत्थर के क्षेत्र में अक्सर गर्ते और खाइयों के बीच नुकीले, अनियमित और पतले कटक निर्मित होते हैं, जिन्हें लेपीज़ कहा जाता है। इनका निर्माण चट्टानों की संधियों में भिन्न घुलन क्रियाओं के कारण होता है, जो कभी-कभी समतल चूना-पत्थर चबूतरों में परिवर्तित हो जाते हैं।

(iii) हिमनद ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों को निम्न पहाड़ियों व मैदानों में कैसे परिवर्तित करते हैं या किस प्रक्रिया से यह कार्य सम्पन्न होता है बताएँ?

उत्तर: प्रवाहित जल की अपेक्षा हिमनद प्रवाह बहुत धीमा होता है। हिमनद प्रतिदिन कुछ सेंटीमीटर या इससे कम से लेकर कुछ मीटर तक प्रवाहित हो सकते हैं। हिमनद मुख्यतः गुरुत्वबल के कारण गतिमान होते हैं। हिमनदों से प्रबल अपरदन होता है, जिसका कारण इसके अपने भार से उत्पन्न घर्षण है।

हिमनद द्वारा घर्षित चट्टानी पदार्थ इसके तल में ही इसके साथ घसीटे जाते हैं या घाटी के किनारों पर अपघर्षण व घर्षण द्वारा अत्यधिक अपरदन करते हैं।

हिमनद, अपक्षयरहित चट्टानों का भी प्रभावशाली अपरदन करते हैं, जिससे ऊँचे पर्वत छोटी पहाड़ियों व मैदानों में परिवर्तित हो जाते हैं। हिमनद के लगातार संचालित होने से हिमनद का मलबा हटता रहता है, जिससे विभाजक नीचे हो जाता है और कालांतर में ढाल इतने निम्न हो जाते हैं कि हिमनद की संचलन शक्ति समाप्त हो जाती है तथा निम्न पहाड़ियों व अन्य निक्षेपित स्थलरूपों वाला एक हिमानी धौत रह जाता है।

परियोजना कार्य

अपने क्षेत्र के आसपास के स्थलरूप, उनके पदार्थ तथा वह जिन प्रक्रियाओं से निर्मित है, पहचानें।

उत्तर: स्थलरूप अथवा स्थलाकृतियाँ भूगोल और पृथ्वी विज्ञानों में प्रयुक्त एक महत्वपूर्ण शब्द है, जिसका आशय ऐसी भू-आकृतिक इकाई से है जिसे उसकी धरातलीय बनावट या आकृति के आधार पर पहचाना जाता है। सामान्य भाषा में, धरातल पर ऊँचाई और निचाई के अंतर से बनने वाली आकृतियों को ही स्थलरूप कहा जाता है।

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