NCERT Class 11 Geography Bhutiq Bhugol ke Mul Sidhant Chapter 5 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

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NCERT Class 11 Geography Bhutiq Bhugol ke Mul Sidhant Chapter 5 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ

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Chapter – 5

भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत

इकाई III: भू-आकृतियाँ

अभ्यास

1. बहुवैकल्पिक प्रश्न:

(i) निम्नलिखित में से कौन सी एक अनुक्रमिक प्रक्रिया है?

(क) निक्षेप।

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(ख) ज्वालामुखीयता।

(ग) पटल-विरूपण।

(घ) अपरदन।

उत्तर: (घ) अपरदन।

(ii) जलयोजन प्रक्रिया निम्नलिखित पदार्थों में से किसे प्रभावित करती है?

(क) ग्रेनाइट।

(ख) क्वार्ट्ज़।

(ग) चीका (क्ले) मिट्टी।

(घ) लवण।

उत्तर: (घ) लवण।

(iii) मलवा अवधाव को किस श्रेणी में सम्मिलित किया जा सकता है?

(क) भूस्खलन।

(ख) तीव्र प्रवाही बृहत् संचलन।

(ग) मंद प्रवाही बृहत् संचलन।

(घ) अवतलन/धसकन।

उत्तर: (ख) तीव्र प्रवाही बृहत् संचलन।

2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए :

(i) अपक्षय पृथ्वी पर जैव विविधता के लिए उतरदायी है। कैसे?

उत्तर: अपक्षय प्रक्रियाएँ शैलों को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ने तथा न केवल आवरण प्रस्तर एवं मृदा निर्माण के लिए मार्ग प्रशस्त करते हैं अपितु अपरदन एवं वृहत संचलन (Mass movement) के लिए भी उत्तरदायी होते हैं। जैव मात्रा एवं जैव-विविधता प्रमुखतः वनों (वनस्पति) की देन है तथा वन, अपक्षयी प्रावार (Weathering mantle) की गहराई पर निर्भर करता है। यदि शैलों का अपक्षय न हो तो अपरदन का कोई महत्त्व नहीं होता। इसका अर्थ है कि अपक्षय वृहत क्षरण, अपरदन, उच्चावच के लघुकरण में सहायक होता है एवं स्थलाकृतियाँ अपरदन का परिणाम हैं। शैलों का अपक्षय एवं निक्षेपण राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए अतिमहत्त्वपूर्ण है, क्योंकि मूल्यवान खनिजों जैसे- लोहा, मैंगनीज, एल्यूमिनियम, ताँबा के अयस्कों के समृद्धीकरण (Enrichment) एवं संकेंद्रण (Concentration) में यह सहायक होता है। अपक्षय मृदा निर्माण की एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है।

(ii) बृहत् संचलन जो वास्तविक, तीव्र एवं गोचर/अवगम्य (Perceptible) हैं, वे क्या हैं? सूचीबद्ध कीजिए।

उत्तर: बृहत् संचलन के अंतर्गत वे सभी संचलन आते हैं, जिनमें शैलों का बृहत् मलवा (Debris) गुरुत्वाकर्षण के सीधे प्रभाव के कारण ढाल के अनुरूप स्थानांतरित होता है। भूस्खलन अपेक्षाकृत तीव्र एवं अवगम्य संचलन हैं। भूस्खलन मुख्यतः पर्वतीय भाग में अधिक होता है। पर्वतीय भागों में शिखरों की ढाल काफी तीव्र होती है। तीव्र ढाल के कारण शिखरों से पत्थर, मलबा, मिट्टी आदि घाटी की ओर गिरने लगते हैं। बृहत् संचलन में गुरुत्वाकर्षण शक्ति सहायक होती है तथा कोई भी भू-आकृतिक कारक जैसे- प्रवाहित जल, हिमानी, वायु, लहरें एवं धाराएँ बृहत् संचलन की प्रक्रिया में सीधे रूप से सम्मिलित नहीं होते इसका अर्थ है कि बृहत् संचलन अपरदन के अंदर नहीं आता है यद्यपि पदार्थों का संचलन (गुरुत्वाकर्षण की सहायता से) एक स्थान से दूसरे स्थान को होता रहता है।

(iii) विभिन्न गतिशील एवं शक्तिशाली बहिर्जनिक भू-आकृतिक कारक क्या हैं तथा वे क्या प्रधान कार्य संपन्न करते हैं?

उत्तर: बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ अपनी ऊर्जा ‘सूर्य द्वारा निर्धारित वायुमंडलीय ऊर्जा एवं अंतर्जनित शक्तियों से नियंत्रित विवर्तनिक (Tectonic) कारकों से उत्पन्न प्रवणता से प्राप्त करती हैं। सभी बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाओं को एक सामान्य शब्दावली अनाच्छादन (Denudation) के अंतर्गत रखा जा सकता है। अनाच्छादन शब्द का अर्थ है निरावृत्त (Strip off) करना या आवरण हटाना। अपक्षय, वृहत् क्षरण (विस्तृत अपक्षय), संचलन, अपरदन, परिवहन आदि सभी इसमें सम्मिलित किये जाते हैं। तापमान एवं वर्षण जलवायु के दो महत्त्वपूर्ण घटक हैं जोकि विभिन्न भू-आकृतिक प्रक्रियाओं को नियंत्रित करते हैं।

(iv) क्या मृदा निर्माण में अपक्षय एक आवश्यक अनिवार्यता है?

उत्तर: मृदा निर्माण में अपक्षय एक आवश्यक अनिवार्यता है क्योंकि अपक्षय प्रक्रियाएँ शैलों को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ने तथा न केवल आवरण प्रस्तर एवं मृदा निर्माण के लिए मार्ग प्रशस्त करते हैं अपितु अपरदन एवं वृहत संचलन – (Mass movement) के लिए भी उत्तरदायी होते हैं। अपक्षय जलवायु, चट्टान निर्माणकारी पदार्थों की विशेषताओं एवं जीवों सहित कई अन्य कारकों के समुच्चय पर निर्भर करता है। मृदा निर्माण में मूल शैल एक निष्क्रिय नियंत्रक कारक है। मूल शेल को अपक्षय छोटे कण के रूप में परिवर्तित कर देता है और वही धीरे-धीरे मृदा का रूप ले लेता है।

3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए:

(i) “हमारी पृथ्वी भू-आकृतिक प्रक्रियाओं के दो विरोधात्मक (Opposing) वर्गों के खेल का मैदान है,” विवेचना कीजिए।

उत्तर: सर्वप्रथम भू-पर्पटी गत्यात्मक है। यह क्षैतिज तथा ऊर्ध्वाधर दिशाओं में संचलित होती रहती है। निश्चित तौर पर यह भूतकाल में वर्तमान गति की अपेक्षा थोड़ी तीव्रतर संचलित होती थी। भू-पर्पटी का निर्माण करने वाले पृथ्वी के भीतर सक्रिय आंतरिक बलों में पाया जाने वाला अंतर ही पृथ्वी के बाह्य सतह में अंतर के लिए उत्तरदायी है। मूलतः, धरातल सूर्य से प्राप्त ऊर्जा द्वारा प्रेरित बाह्य बलों से अनवरत प्रभावित होता रहता है। निश्चित रूप से आंतरिक बल अभी भी सक्रिय हैं, यद्यपि उनकी तीव्रता में अंतर है। इसका तात्पर्य है कि धरातल पृथ्वी मंडल के अंतर्गत उत्पन्न हुए बाह्य बलों एवं पृथ्वी के अंदर उद्भूत आंतरिक बलों से अनवरत प्रभावित होता है तथा यह सर्वदा परिवर्तनशील है। बाह्य बलों को बहिर्जनिक (Exogenic) तथा आंतरिक बलों को अंतर्जनित (Endogenic) बल कहते हैं। बहिर्जनिक बलों की क्रियाओं का परिणाम होता है- उभरी हुई भू-आकृतियों का विघर्षण (Wearing down) तथा बेसिन/निम्न क्षेत्रों/गर्तों का भराव (अधिवृद्धि/तल्लोचन)। धरातल पर अपरदन के माध्यम से उच्चावच के मध्य अंतर के कम होने को तल संतुलन (Gradation) कहते हैं। अंतर्जनित शक्तियाँ निरंतर धरातल के भागों को ऊपर उठाती हैं या उनका निर्माण करती हैं तथा इस प्रकार बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ उच्चावच में भिन्नता को सम (बराबर) करने में असफल रहती हैं। अतएव भिन्नता तब तक बनी रहती है जब तक बहिर्जनिक एवं अन्तर्जनित बलों के विरोधात्मक कार्य चलते रहते हैं। सामान्यतः अंतर्जनित बल मूल रूप से भू-आकृति निर्माण करने वाले बल हैं तथा बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ मुख्य रूप से भूमि विघर्षण बल होती हैं।

(ii) ‘बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ अपनी अंतिम ऊर्जा सूर्य की गर्मी से प्राप्त करती हैं।’ व्याख्या कीजिए।

उत्तर: बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ अपनी ऊर्जा ‘सूर्य द्वारा निर्धारित वायुमंडलीय ऊर्जा एवं अंतर्जनित शक्तियों से नियंत्रित विवर्तनिक (Tectonic) कारकों से उत्पन्न प्रवणता से प्राप्त करती हैं। सभी बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाओं को एक सामान्य शब्दावली अनाच्छादन (Denudation) के अंतर्गत रखा जा सकता है। अनाच्छादन शब्द का अर्थ है निरावृत्त (Strip off) करना या आवरण हटाना। अपक्षय, वृहत् क्षरण, संचलन, अपरदन, परिवहन आदि सभी इसमें सम्मिलित किये जाते हैं।

अपक्षय: अपक्षय के अंतर्गत वायुमंडलीय तत्त्वों की धरातल के पदार्थों पर की गई क्रिया सम्मिलित होती है। अपक्षय के अंदर ही अनेक प्रक्रियाएँ हैं जो पृथक या (प्रायः) सामूहिक रूप से धरातल के पदार्थों को प्रभावित करती हैं। मौसम और जलवायु के घटकों में तापमान, दबाव, हवाएं, आर्द्रता और वर्षा होती है। इन सभी घटकों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सूर्य से ऊर्जा प्राप्त होती है।

बृहत् संचलन: बृहत् संचलन के अंतर्गत वे सभी संचलन आते हैं, जिनमें शैलों का बृहत् मलवा (Debris) गुरुत्वाकर्षण के सीधे प्रभाव के कारण ढाल के अनुरूप स्थानांतरित होता है। इसका तात्पर्य है कि वायु, जल, हिम ही अपने साथ एक स्थान से दूसरे स्थान तक मलवा नहीं ढोते, अपितु मलवा भी अपने साथ वायु, जल या हिम ले जाते हैं। बृहत् मलबे की संचलन गति मंद से तीव्र हो सकती है जिसके फलस्वरूप पदार्थों के छिछले से गहरे स्तंभ प्रभावित होते हैं जिनके अंतर्गत विसर्पण, बहाव, स्खलन एवं पतन (Fall) सम्मिलित होते हैं।

अपरदन एवं निक्षेपण: अपरदन के अंतर्गत शैलों के मलवे की अवाप्ति (Acquisition) एवं उनके परिवहन को सम्मिलित किया जाता है। धरातल के पदार्थों का क्षरण और परिवहन प्रवाहित जल, हिमानी, वायु, लहरें एवं धाराओं के द्वारा होता है। इनमें से, पहले तीन कारक जलवायु परिस्थितियों द्वारा नियंत्रित होते हैं, जबकि जलवायु सूर्य की ऊर्जा से तय होती है। इस प्रकार, सभी बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ अपनी अंतिम ऊर्जा सूर्य की गर्मी से प्राप्त करती हैं। हालांकि, पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल सभी बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाओं में सहायता करता है क्योंकि गुरुत्वाकर्षण गतिशीलता संभव बनाता है।

(iii) क्या भौतिक एवं रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाएँ एक दूसरे से स्वतंत्र हैं? यदि नहीं तो क्यों? सोदाहरण व्याख्या कीजिए।

उत्तर: भौतिक एवं रासायनिक अपक्षय की प्रक्रियाएँ भले ही अलग-अलग हों, लेकिन वे एक-दूसरे से संबंधित भी हैं। भौतिक या यांत्रिक अपक्षय-प्रक्रियाएँ कुछ अनुप्रयुक्त बलों (Forces) पर निर्भर करती हैं। 

ये अनुप्रयुक्त बल निम्नलिखित हो सकते हैं:

(i) गुरूत्वाकर्षण बल, जैसे अत्यधिक ऊपर भार दबाव, एवं अपरूपण प्रतिबल।

(ii) तापक्रम में परिवर्तन, क्रिस्टल रवों में वृद्धि एवं पशुओं के क्रियाकलापों के कारण उत्पन्न विस्तारण बल।

(iii) शुष्कन एवं आर्द्रन चक्रों से नियंत्रित जल का दबाव।

इनमें से कई बल धरातल एवं विभिन्न धरातल पदार्थों के अंदर अनुप्रयुक्त होती हैं जिसका परिणाम शैलों का विभंग (Fracture) होता है। भौतिक अपक्षय प्रक्रियाओं में अधिकांश तापीय विस्तारण एवं दबाव के निर्मुक्त होने (Release) के कारण होता है। ये प्रक्रियाएँ लघु एवं मंद होती हैं परंतु कई बार संकुचन एवं विस्तारण के कारण शैलों के सतत् श्रांति (Fatigue) के फलस्वरूप ये शैलों को बड़ी हानि पहुँचा सकती हैं।

रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाओं का एक समूह जैसे कि विलयन, कार्बोनेटीकरण, जलयोजन, ऑक्सीकरण तथा न्यूनीकरण शैलों के अपघटन, विलयन अथवा न्यूनीकरण का कार्य करते हैं, जो कि रासायनिक क्रिया द्वारा सूक्ष्म (Clastic) अवस्था में परिवर्तित हो जाती हैं। ऑक्सीजन, धरातलीय जल, मृदा जल एवं अन्य अम्लों की प्रक्रिया द्वारा चट्टानों का न्यूनीकरण होता है। इसमें ऊष्मा के साथ जल एवं वायु (ऑक्सीजन तथा कार्बन डाईऑक्साइड) की विद्यमानता सभी रासायनिक प्रतिक्रियाओं को तीव्र गति देने के लिए आवश्यक है। वायु में विद्यमान कार्बन डाईऑक्साइड के अतिरिक्त पौधों एवं पशुओं का अपघटन भूमिगत कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा को बढ़ा देता है। विभिन्न खनिजों पर रासायनिक प्रतिक्रियाएँ किसी अनुसंधानशाला में प्रतिक्रियाओं के समान ही होती हैं।

रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाएँ भौतिक अपक्षय प्रक्रियाओं के कार्य पर निर्भर होती हैं। भौतिक अपक्षय के घटक जैसे कि तापमान में परिवर्तन तथा जमे हुए शैलों को तोड़ना जैसे कार्य रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाओं के लिए मार्ग प्रशस्त करते हैं। रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाएँ शैलों को विघटित करती हैं जिसके कारण भौतिक अपक्षय प्रक्रियाओं द्वारा ये आसानी से टूट सकते हैं।

(iv) आप किस प्रकार मृदा निर्माण प्रक्रियाओं तथा मृदा निर्माण कारकों के बीच अंतर ज्ञात करते हैं? जलवायु एवं जैविक क्रियाओं की मृदा निर्माण में दो महत्त्वपूर्ण कारकों के रूप में क्या भूमिका है?

उत्तर: मृदा निर्माण या मृदाजनन (Pedogenesis) सर्वप्रथम अपक्षय पर निर्भर करती है। यह अपक्षयी प्रावार (अपक्षयी पदार्थ की गहराई) ही मृदा निर्माण का मूल निवेश होता है। सर्वप्रथम अपक्षयित प्रावार या लाए गए पदार्थों के निक्षेप, बैक्टेरिया या अन्य निकृष्ट पौधे जैसे काई एवं लाइकेन द्वारा उपनिवेशित किए जाते हैं। प्रावार एवं निक्षेप के अंदर कई गौण जीव भी आश्रय प्राप्त कर लेते हैं। जीव एवं पौधों के मृत्त अवशेष ह्यूमस के एकत्रीकरण में सहायक होते हैं। प्रारंभ में गौण घास एवं फर्स की वृद्धि हो सकती है बाद में पक्षियों एवं वायु द्वारा लाए गए बीजों से वृक्ष एवं झाड़ियों में वृद्धि होने लगती है। पौधों की जड़ें नीचे तक घुस जाती हैं। बिल बनाने वालें, जानवर कणों (Particles) को ऊपर लाते हैं, जिससे पदार्थों का पुंज (अंबार) छिद्रमय एवं स्पंज की तरह हो जाता है। इस प्रकार जल-धारण करने की क्षमता, वायु के प्रवेश आदि के कारण अंततः परिपक्व, खनिज एवं जीव-उत्पाद युक्त मृदा का निर्माण होता है।

मृदा निर्माण पाँच मूल कारकों द्वारा नियंत्रित होता है।

ये कारक है:

(i) मूल पदार्थ (शैलें)।

(ii) स्थलाकृति।

(iii) जलवायु।

(iv) जैविक क्रियाएँ एवं।

(v) समय।

वस्तुतः मृदा निर्माण कारक संयुक्त रूप से कार्यरत रहते हैं एवं एक दूसरे के कार्य को प्रभावित करते हैं। इनका संक्षिप्त विवरण अधोलिखित है।

जलवायु एवं जैविक क्रियाएँ मृदा निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मृदा के विकास में संलग्न जलवायवी तत्त्वों में प्रमुख हैं: प्रवणता, वर्षा, एवं वाष्पीकरण की बारंबारता व अवधि तथा आर्दता और तापक्रम में मौसमी एवं दैनिक भिन्नता। वर्षा से मिट्टी की नमी बनी रहती है जो रासायनिक और जैविक गतिविधियों को संभव बनाता है। पानी की अधिकता मृदा के माध्यम से मृदा घटकों के नीचे की ओर परिवहन में मदद करती है। तापमान दो तरह से कार्य करता है- रासायनिक और जैविक गतिविधि को बढ़ाना या घटाना। उच्च तापमान में रासायनिक गतिविधि बढ़ जाती है। कूलर, तापमान में कमी (कार्बोनेनेटीकरण के अपवाद के साथ) और ठंड की स्थिति में बंद हो जाता है।

वनस्पति आवरण एवं जीव जो मूल पदार्थों पर प्रारंभ तथा बाद में भी विद्यमान रहते हैं मृदा में जैव पदार्थ, नमी धारण की क्षमता तथा नाइट्रोजन इत्यादि जोड़ने में सहायक होते हैं। मृत पौधे मृदा को सूक्ष्म विभाजित जैव पदार्थ-ह्यूमस प्रदान करते हैं। तापमान में वृद्धि के साथ जैविक क्रियाओं में वृद्धि होती है। आर्द्र, उष्ण एवं भूमध्य रेखीय जलवायु में बैक्टेरियल वृद्धि एवं क्रियाएँ सघन होती हैं।

परियोजना कार्य

अपने चतुर्दिक विद्यमान भूआकृति/उच्चावच एवं पदार्थों के आधार पर जलवायु, संभव अपक्षय प्रक्रियाओं एवं मृदा के तत्त्वों और विशेषताओं को परखिए एवं अंकित कीजिए।

उत्तर: भूआकृति, उच्चावच (Relief), एवं पदार्थों के आधार पर किसी क्षेत्र की जलवायु, अपक्षय प्रक्रियाएँ तथा मृदा के तत्त्व एवं उनकी विशेषताएँ परस्पर गहराई से जुड़ी होती हैं।

भूआकृति एवं उच्चावच से आशय भूमि के ऊँच-नीच स्वरूप से है, जो किसी क्षेत्र के तापमान, वायु प्रवाह एवं वर्षा पर प्रभाव डालता है। उदाहरणस्वरूप, पर्वतीय क्षेत्रों में तापमान प्रायः कम होता है, जिससे वहाँ भौतिक अपक्षय प्रमुख होता है। वहीं, मैदानी भागों में तापमान अधिक होने के कारण रासायनिक अपक्षय प्रभावी रहता है।

विभिन्न प्रकार के पदार्थ, जैसे – कठोर चट्टानें (ग्रेनाइट, बेसाल्ट) या नरम चट्टानें (बालू पत्थर, शेल), अपक्षय की प्रकृति को निर्धारित करते हैं। कठोर चट्टानें भौतिक अपक्षय का अधिक सामना करती हैं, जबकि नरम चट्टानें रासायनिक अपक्षय के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं।

मृदा निर्माण में जलवायु की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। आर्द्र जलवायु वाले क्षेत्रों में मृदा में जैविक पदार्थों की अधिकता होती है, जबकि शुष्क जलवायु में मृदा में खनिज लवण अधिक पाए जाते हैं। अपक्षय की प्रक्रिया से मृदा में विभिन्न तत्व, जैसे – नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम आदि का संचय होता है, जो मृदा की उर्वरता को प्रभावित करते हैं।

अतः किसी क्षेत्र की मृदा के गुण एवं उसकी उत्पादकता को समझने के लिए वहाँ की भूआकृति, जलवायु तथा अपक्षय प्रक्रियाओं का विश्लेषण आवश्यक होता है।

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