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NCERT Class 11 Geography Bhutiq Bhugol ke Mul Sidhant Chapter 14 जैव-विविधता एवं संरक्षण
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जैव-विविधता एवं संरक्षण
Chapter – 14
भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत
इकाई VI: पृथ्वी पर जीवन
अभ्यास
1. बहुवैकल्पिक प्रश्न:
(i) जैव-विविधता का संरक्षण निम्न में किसके लिए महत्वपूर्ण है।
(क) जंतु।
(ख) पौधे।
(ग) पौधे और प्राणी।
(घ) सभी जीवधारी।
उत्तर: (घ) सभी जीवधारी।
(ii) निम्नलिखित में से असुरक्षित प्रजातियाँ कौन सी हैं।
(क) जो दूसरों को असुरक्षा दें।
(ख) बाघ व शेर।
(ग) जिनकी संख्या अत्यधिक हों।
(घ) जिन प्रजातियों के लुप्त होने का खतरा है।
उत्तर: (घ) जिन प्रजातियों के लुप्त होने का खतरा है।
(iii) नेशनल पार्क (National parks) और पशुविहार (Sanctuaries) निम्न में से किस उद्देश्य के लिए बनाए गए हैं:
(क) मनोरंजन।
(ख) पालतू जीवों के लिए।
(ग) शिकार के लिए।
(घ) संरक्षण के लिए।
उत्तर: (घ) संरक्षण के लिए।
(iv) जैव-विविधता समृद्ध क्षेत्र हैं।
(क) उष्णकटिबंधीय क्षेत्र।
(ख) शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र।
(ग) ध्रुवीय क्षेत्र।
(घ) महासागरीय क्षेत्र।
उत्तर: (क) उष्णकटिबंधीय क्षेत्र।
(v) निम्न में से किस देश में पृथ्वी सम्मेलन (Earth summit) हुआ था।
(क) यू.के. (U.K.)।
(ख) ब्राजील।
(ग) मैक्सिको।
(घ) चीन।
उत्तर: (ख) ब्राजील।
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए :
(i) जैव – विविधता क्या हैं?
उत्तर: जैव विविधता दो शब्दों के मेल से बना है, (Bio) ‘बायो’ का अर्थ है- जीव तथा डाइवर्सिटी (Diversity) का अर्थ है- विविधता। साधारण शब्दों में किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में पाए जाने वाले जीवों की संख्या और उनकी विविधता को जैव-विविधता कहते हैं। इसका संबंध पौधों के प्रकार, प्राणियों तथा सूक्ष्म जीवाणुओं से है। उनकी आनुवंशिकी और उनके द्वारा निर्मित पारितंत्र से है। यह पृथ्वी पर पाए जाने वाले जीवधारियों की परिवर्तनशीलता, एक ही प्रजाति तथा विभिन्न प्रजातियों में परिवर्तनशीलता तथा विभिन्न पारितंत्रों में विविधता से संबंधित है। जैव-विविधता सजीव संपदा है। यह विकास के लाखों वर्षों के इतिहास का परिणाम है।
(ii) जैव-विविधता के विभिन्न स्तर क्या है?
उत्तर: जैव-विविधता के तीन स्तरों पर समझा जा सकता है-
(क) आनुवांशिक जैव-विविधता (Genetic diversity) – जीवन निर्माण के लिए जीन (Gene) एक मूलभूत इकाई है। किसी प्रजाति में जीन की विविधता ही आनुवंशिक जैव-विविधता है।
(ख) प्रजातीय जैव-विविधता (Species diversity) – यह प्रजातियों की अनेकरूपता को बताती है। यह किसी निर्धारित क्षेत्र में प्रजातियों की संख्या से संबंधित है। प्रजातियों की विविधता, उनकी समृद्धि, प्रकार तथा बहुलता से आँकी जा सकती है।
(ग) पारितंत्रीय जैव-विविधता (Ecosystem diversity) – आपने पिछले अध्याय में पारितंत्रों के प्रकारों में व्यापक भिन्नता और प्रत्येक प्रकार के पारितंत्रों में होने वाले पारितंत्रीय प्रक्रियाएँ तथा आवास स्थानों की भिन्नता ही पारितंत्रीय विविधता बनाते हैं। पारितंत्रीय विविधता का परिसीमन करना मुश्किल और जटिल है, क्योंकि समुदायों (प्रजातियों का समूह) और पारितंत्र की सीमाएँ निश्चित नहीं हैं।
(iii) हॉट-स्पॉट (Hot spots) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: जिन क्षेत्रों में प्रजातीय विविधता अधिक होती है, उन्हें विविधता के हॉट- स्पॉट कहते हैं। ऐसे क्षेत्र, जो अधिक संकट में हैं, उनमें संसाधनों को उपलब्ध कराने के लिए अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण संघ (IUCN) ने जैव-विविधता हॉट स्पॉट (Hot spots) क्षेत्र के रूप में निर्धारित किया है। हॉट-स्पॉट उनकी वनस्पति के आधार पर परिभाषित किये गए हैं। पादप महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये ही किसी पारितंत्र की प्राथमिक उत्पादकता को निर्धारित करते हैं। यह भी देखा गया है कि ज्यादातर हॉट-स्पॉट में रहने वाले प्रजाति भोजन, जलाने के लिए लकड़ी, कृषि भूमि और इमारती लकड़ी आदि के लिए वहाँ पाई जाने वाली समृद्ध पारितंत्रों पर ही निर्भर है।
(iv) मानव जाति के लिए जंतुओं के महत्व का वर्णन संक्षेप में करें।
उत्तर: जैव विविधता ने मानव जाति के विकास में बहुत बड़ा योगदान दिया है। सभी मनुष्यों के लिए दैनिक जीवन में जैव-विविधता एक महत्वपूर्ण संसाधन है। जैव-विविधता का एक महत्वपूर्ण भाग ‘फसलों की विविधता’ (Crop diversity) है, जिसे कृषि जैव-विविधता भी कहा जाता है। जैव-विविधता को संसाधनों के उन भंडारों के रूप में भी समझा जा सकता है, जिनकी उपयोगिता भोज्य पदार्थ, औषधियाँ और सौंदर्य प्रसाधन आदि बनाने में है। जैव संसाधनों की ये परिकल्पना जैव-विविधता के विनाश के लिए भी उत्तरदायी है। साथ ही यह संसाधनों के विभाजन और बँटवारे को लेकर उत्पन्न नये विवादों का भी जनक है। खाद्य फसलें, पशु, वन संसाधन, मत्स्य और दवा संसाधन आदि कुछ ऐसे प्रमुख आर्थिक महत्त्व के उत्पाद हैं, जो मानव को जैव-विविधता के फलस्वरूप उपलब्ध होते हैं।
(v) विदेशज प्रजातियों (Exotic species) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: वे प्रजातियाँ, जो स्थानीय आवास की मूल जैव प्रजाति नहीं हैं, लेकिन उस तंत्र में स्थापित की गई हैं, उन्हें ‘विदेशज प्रजातियाँ’ (Exotic species) कहा जाता है। ऐसे कई उदाहरण हैं, जब विदेशज प्रजातियों के आगमन से पारितंत्र में प्राकृतिक या मूल जैव समुदाय को व्यापक नुकसान हुआ। पिछले कुछ दशकों के दौरान, कुछ जंतुओं, जैसे- बाघ, चीता, हाथी, गैंडा, मगरमच्छ, मिंक और पक्षियों का, उनके सींग, सूँड़ व खालों के लिए निर्यतापूर्वक अवैध शिकार किया जा रहा है। इसके फलस्वरूप कुछ प्रजातियाँ लुप्त होने के कगार पर आ गई हैं।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए :
(i) प्रकृति को बनाए रखने में जैव-विविधता की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर: प्रकृति को बनाए रखने में जैव विविधता की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण है। पारितंत्र में विभिन्न प्रजातियाँ कोई न कोई क्रिया करती हैं। पारितंत्र में कोई भी प्रजाति बिना कारण न तो विकसित हो सकती है और न ही बनी रह सकती है। अर्थात्, प्रत्येक जीव अपनी ज़रूरत पूरा करने के साथ-साथ दूसरे जीवों के पनपने में भी सहायक होता है। जीव व प्रजातियाँ ऊर्जा ग्रहण कर उसका संग्रहण करती हैं, कार्बनिक पदार्थ उत्पन्न एवं विघटित करती हैं और पारितंत्र में जल व पोषक तत्त्वों के चक्र को बनाए रखने में सहायक होती हैं।
इसके अतिरिक्त प्रजातियाँ वायुमंडलीय गैस को स्थिर करती हैं और जलवायु को नियंत्रित करने में सहायक होती हैं। ये पारितंत्री क्रियाएँ मानव जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण क्रियाएँ हैं। पारितंत्र में जितनी अधिक विविधता होगी प्रजातियों के प्रतिकूल स्थितियों में भी रहने की संभावना और उनकी उत्पादकता भी उतनी ही अधिक होगी। प्रजातियों की क्षति से तंत्र के बने रहने की क्षमता भी कम हो जाएगी। अधिक आनुवंशिक विविधता वाली प्रजातियों की तरह अधिक जैव-विविधता वाले पारितंत्र में पर्यावरण के बदलावों को सहन करने की अधिक सक्षमता होती है। दूसरे शब्दों में, जिस पारितंत्र में जितनी प्रकार की प्रजातियाँ होंगी, वह पारितंत्र उतना ही अधिक स्थायी होगा।
(ii) जैव-विविधता के ह्रास के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारकों का वर्णन करें। इसे रोकने के उपाय भी बताएँ।
उत्तर: जैव-विविधता के ह्रास के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं:
(i) जनसंख्या वृद्धि के कारण, प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग अधिक होने लगा है, इससे संसार के विभिन्न भागों में प्रजातियों तथा उनके आवास स्थानों में तेज़ी से कमी हुई है।
(ii) संसाधनों का दोहन और वनोन्मूलन अत्यधिक हुआ है और प्राकृतिक आवासों का विनाश।
(iii) प्राकृतिक आपदाएँ- जैसे- भूकंप, बाढ़, ज्वालामुखी, उद्गार, दावानल, सूखा आदि।
(iv) कीटनाशक और अन्य प्रदूषक- हाइड्रोकार्बन और विषैली भारी धातु , संवेदनशील और कमजोर प्रजातियों को नष्ट कर देते हैं।
जैव-विविधता ह्रास को रोकने के निम्नलिखित उपाय हैं:
(i) संकटापन्न प्रजातियों के संरक्षण के लिए प्रयास करने चाहिए।
(ii) प्रजातियों को लुप्त होने से बचाने के लिए उचित योजनाएँ व प्रबंधन अपेक्षित हैं।
(iii) खाद्यान्नों की किस्में, चारे संबंधी पौधों की किस्में, इमारती लकड़ी के पेड़, पशुधन, जंतु व उनकी वन्य प्रजातियों की किस्मों को संरक्षित करना चाहिए।
(iv) प्रत्येक देश को वन्य जीवों के आवास को चिह्नित कर उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित करना चाहिए।
(v) प्रजातियों के पलने-बढ़ने तथा विकसित होने के स्थान सुरक्षित व संरक्षित हों।
(vi) वन्य जीवों व पौधों का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, नियमों के अनुरूप होना चाहिए।
परियोजना कार्य |
जिस राज्य में आपका स्कूल है, वहाँ के नेशनल पार्क (National parks) पशुविहार (Sanctuaries) और जीवमंडल आरक्षित क्षेत्र (Biosphere reserves) के नाम लिखें और उन्हें भारत के मानचित्र पर रेखांकित करें।
उत्तर: विद्यार्थी स्वयं करें।

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