NCERT Class 11 Hindi Aroh Chapter 14 हे भूख! मत मचल, हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर

NCERT Class 11 Hindi Aroh Chapter 14 हे भूख! मत मचल, हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर Solutions to each chapter is provided in the list so that you can easily browse through different chapters NCERT Class 11 Hindi Aroh Chapter 14 हे भूख! मत मचल, हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर Notes and select need one. NCERT Class 11 Hindi Aroh Chapter 14 हे भूख! मत मचल, हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर Question Answers Download PDF. NCERT Class 11 Solutions for Hindi Aroh Bhag – 1.

NCERT Class 11 Hindi Aroh Chapter 14 हे भूख! मत मचल, हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर

Join Telegram channel

Also, you can read the NCERT book online in these sections Solutions by Expert Teachers as per Central Board of Secondary Education (CBSE) Book guidelines. NCERT Class 11 Hindi Aroh Bhag – 1 Textual Solutions are part of All Subject Solutions. Here we have given NCERT Class 11 Hindi Aroh Bhag – 1 Notes. CBSE Class 11 Hindi Aroh Bhag – 1 Textbook Solutions for All Chapters, You can practice these here.

Chapter: 14

आरोह

काव्य-खंड

अभ्यास

कविता के साथ

1. लक्ष्य प्राप्ति में इंद्रियाँ बाधक होती हैं- इसके संदर्भ में अपने तर्क दीजिए।

उत्तर: लक्ष्य की प्राप्ति में इंद्रियाँ बाधक होती हैं-यह कथन बिल्कुल सत्य है। इंद्रियाँ व्यक्ति को विषय-वासनाओं के जाल में उलझाकर भ्रमित करती हैं। इंद्रियों का सुख उसे मोह में डाल देता है, जिससे वह इनमें आनंद लेने लगता है और ईश्वर-प्राप्ति के अपने लक्ष्य से दूर होता चला जाता है। जब तक इंद्रियों पर नियंत्रण नहीं होता, तब तक कोई भी लक्ष्य प्राप्त करना कठिन होता है। यही कारण है कि हमारे ऋषि-मुनि गृहस्थ जीवन का त्याग कर तपस्या के मार्ग पर चलते रहे हैं। यदि व्यक्ति में प्रबल कामना हो तो वह घर में रहकर भी इंद्रियों पर काबू पा सकता है और लक्ष्य प्राप्ति की ओर अग्रसर हो सकता है।

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Join Now

2. ओ चराचर! मत चूक अवसर – इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: यह पंक्ति अक्कमहादेवी जी ने अपने प्रथम वचन में उस समय कही हैं जब वे अपने समस्त विकारों को शांत हो जाने के लिए। कह चुकी हैं। इसका आशय है कि इंद्रियों के सुख के लिए भाग-दौड बंद करने के पश्चात् ईश्वर प्राप्ति का मार्ग सरल हो जाता है। विकारों की शांति के पश्चात् ईश्वर प्राप्ति का अवसर तुम्हारे हाथ में है, इसका सदुपयोग करो। इस पंक्ति में अक्कमहादेवी का कहना है कि प्राणियों ने जो जीवन प्राप्त किया है, उसे यदि वे शिव की भक्ति में लगाएँ तो उनका कल्याण हो जाएगा। समय बीत जाने के बाद कुछ भी प्राप्त नहीं होता। जीव इंद्रियों के वश में होकर सांसारिक मोह-माया में उलझा रहता है। यदि वह इन्हीं चक्करों में फंसा रहा, तो ईश्वर-प्राप्ति का अवसर गवा देगा। इसलिए, मानव को समय रहते इस अवसर का सदुपयोग कर लेना चाहिए।

3. ईश्वर के लिए किस दृष्टांत का प्रयोग किया गया है। ईश्वर और उसके साम्य का आधार बताइए।

उत्तर: कविता में कवयित्री ईश्वर को अपने आराध्य मानती है और उनसे प्रार्थना करती है कि वे उससे सब कुछ छीन लें, ताकि उसका आंतरिक अहंकार नष्ट हो सके। कवयित्री ने ईश्वर के लिए जूही के फूल का दृष्टांत दिया गया है। जूही का फूल कोमल, सात्विक, सुगंधित व श्वेत होता है। यह लोगों का मन मोह लेता है। ईश्वर भी अत्यंत सूक्ष्म, कोमल और मधुर गुण वाले होते है। जूही के फूल की तरह ईश्वर की सुगंध भी चारों ओर फैली।

4. अपना घर से क्या तात्पर्य है? इसे भूलने की बात क्यों कही गई है?

उत्तर: अपना घर से यहाँ तात्पर्य व्यक्तिगत मोह माया में लिप्त जीवन से है। व्यक्ति इस घर के आकर्षण जाल में उलझकर ईश्वर प्राप्ति के लक्ष्य में पीछे रह जाता है। कवयित्री ऐसे मोह माया में लिपटे जीवन को छोड़ने की बात करती है क्योंकि यदि ईश्वर को पाना है तो व्यक्ति को इस जीवन का त्याग करना होगा। ईश्वर भक्ति में सबसे बड़ी बाधा यही होती है। अपने घर को छोड़कर ही ईश्वर के घर में कदम रखा जा सकता है और उसकी उपासना करके उसे पाया जा सकता है।

5. दूसरे वचन में ईश्वर से क्या कामना की गईं है और क्यों?

उत्तर: दूसरे वचन में कवयित्री ईश्वर से यह प्रार्थना करती हैं कि वह उनसे सभी भौतिक सुख-साधन और संबंध छीन ले। वह यह कामना करती हैं कि ईश्वर उन्हें हर प्रकार की सांसारिक संपत्ति से वंचित कर दे। वह ऐसी परिस्थितियाॅं उत्पन्न करे कि वह भीख माँगने के लिए मजबूर हो जाए। इससे उसका अहंभाव नष्ट हो जाएगा। दूसरे, भूख मिटाने के लिए जब वह झोली फैलाए तो उसे भीख न मिले। अगर कोई देने के लिए आगे आए तो वह भीख नीचे गिर जाएं। जमीन पर गिरी भीख को भी कुत्ता तुरंत झपटकर ले जाए। वस्तुतः, कवयित्री ईश्वर से प्रार्थना करती हैं कि उनका सांसारिक मोह पूरी तरह समाप्त हो जाए, ताकि वे एकाग्रचित्त होकर ईश्वर का ध्यान कर सकें।

कविता के आस-पास

1. क्या अक्क महादेवी को कन्नड़ की मीरा कहा जा सकता है? चर्चा करें।

उत्तर: जी हाँ अक्कमहादेवी को कन्नड़ की मीरा कहा जा सकता है क्योंकि दोनों ने वैवाहिक जीवन को तोड़ा। दोनों ने सामाजिक बंधनों को महत्व नहीं दिया। मीरा कृष्ण की अनन्य भक्त थीं और उन्होंने अपने जीवन में कृष्ण को ही सर्वस्व मान लिया था। इसी तरह अक्कमहादेवी शिव की भक्त थी। उसी प्रकार मीरा ने भी अपने सांसारिक जीवन को छोड़कर सिर्फ़ भगवान को चुना था।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This will close in 0 seconds

Scroll to Top