NCERT Class 11 Hindi Antra Chapter 3 टार्च बेचनेवाले

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NCERT Class 11 Hindi Antra Chapter 3 टार्च बेचनेवाले

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Chapter: 3

अंतरा

गद्य-खंड

प्रश्न-अभ्यास

1. लेखक ने टार्च बेचनेवाली कंपनी का नाम ‘सूरज छाप’ ही क्यों रखा?

उत्तर: लेखक ने टार्च बेचने वाली कंपनी का नाम ‘सूरज छाप’ इसलिए रखा क्योंकि सूरज प्रकाश का प्रतीक है, जो अंधकार को दूर करता है। यह नाम ग्राहकों को भरोसा दिलाता था कि टार्च तेज रोशनी देगी और अंधेरा मिटाएगी। इसके आकर्षक नाम और प्रभावी प्रचार के कारण लोग आसानी से इसे खरीद लेते थे।

2. पाँच साल बाद दोनों दोस्तों की मुलाकात किन परिस्थितियों में और कहाँ होती है?

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उत्तर: पाँच साल पहले दोनों दोस्त बेरोजगार थे। पाँच साल बाद दोनों दोस्तों की मुलाक़ात एक प्रवचनस्थल पर होती है लेकिन परिस्थिति पहले की तरह नहीं थी। उनमें से एक टार्च बेचने वाला तथा दूसरा उपदेश देने वाला बन गया है।

3. पहला दोस्त मंच पर किस रूप में था और वह किस अँधेरे को दूर करने के लिए टार्च बेच रहा था?

उत्तर: पहला दोस्त मंच पर संत के रूप में उपस्थित था, जो सुंदर रेशमी वस्त्रों से सजा हुआ था और गंभीर स्वर में प्रवचन दे रहा था। वह आध्यात्मिक और मानसिक अंधकार को दूर करने के लिए टार्च बेच रहा था। उसके अनुसार, यह युग अंधकारमय हो गया है, मनुष्य पथभ्रष्ट और भयग्रस्त हो गया है, तथा आत्मा पीड़ा से त्रस्त है। वह अपने प्रवचनों के माध्यम से लोगों को इस अंधकार से मुक्त करने और उन्हें सही मार्ग दिखाने का प्रयास कर रहा था, जिससे उनकी अंतरात्मा में ज्योति जग सके।

4. भव्य पुरुष ने कहा – ‘जहाँ अंधकार है वहीं प्रकाश है। इसका क्या तात्पर्य है?

उत्तर: भव्य पुरुष के कथन “जहाँ अंधकार है वहीं प्रकाश है” का तात्पर्य यह है कि अंधकार के बिना प्रकाश का अस्तित्व संभव नहीं है। जैसे प्रकाश में हल्की कालिमा होती है, वैसे ही अंधकार में भी प्रकाश की संभावना रहती है। उनका संदेश था कि बाहरी रोशनी की बजाय व्यक्ति को अपने भीतर की ज्योति को जगाने का प्रयास करना चाहिए। वे लोगों को यह समझा रहे थे कि सच्चा ज्ञान और शांति बाहरी दुनिया में नहीं, बल्कि आत्मा के भीतर है। इसी आंतरिक प्रकाश को जाग्रत करने के लिए उन्होंने अपने ‘साधना मंदिर’ में आने का आह्वान किया, जिससे लोग आत्मिक रूप से जागरूक हो सकें।

5. भीतर के अँधेरे की टार्च बेचने और ‘सूरज छाप’ टार्च बेचने के धंधे में क्या फ़र्क है? पाठ के आधार पर बताइए।

उत्तर: पहला भाग – आत्मा के अंधेरे को दूर करने वाली टॉर्च: पहला दोस्त अपनी वाणी और प्रवचनों के माध्यम से लोगों के भीतर छिपे अज्ञान के अंधकार को दूर करने का प्रयास करता है। उसका उद्देश्य है कि आत्मा में विद्यमान अंधकार को हटाकर ज्ञान का प्रकाश फैलाया जाए और लोगों के भीतर ज्ञान रूपी दीपक को जलाया जाए। इस प्रकार, वह एक तरह की आध्यात्मिक टॉर्च बेचता है जो मन को जागृत करती है।

दूसरा भाग – बाहरी अंधेरे को दूर करने वाली ‘सूरज छाप’ टॉर्च: दूसरा दोस्त लोगों में रात के अंधेरे का भय उत्पन्न करता है ताकि वे डर के मारे ‘सूरज छाप’ टॉर्च खरीदें। यह टॉर्च बाहरी अंधकार को दूर करती है और रात की परेशानियों से बचने में मदद करती है। यहाँ पर टॉर्च का उद्देश्य शारीरिक अंधकार को मिटाकर राह दिखाना है, जिससे लोग वास्तविक रोशनी का अनुभव कर सकें।

6. ‘सवाल के पाँव ज़मीन में गहरे गड़े हैं। यह उखड़ेगा नहीं।’ इस कथन में मुनष्य की किस प्रवृत्ति की ओर संकेत है और क्यों?

उत्तर: यह कथन मनुष्य की उस प्रवृत्ति की ओर संकेत करता है जिसमें वह जड़ें गहरी जम चुकी समस्याओं का सामना करने से बचता है। जब कोई प्रश्न—जैसे ‘पैसा कैसे पैदा करें?’—इतनी जटिलता से भरा होता है कि उसका समाधान असंभव प्रतीत होता है, तो मनुष्य थकावट, असहायता और भय के कारण उस प्रश्न को टाल देने का विकल्प चुनता है। दोस्त का यह कहना कि “सवाल के पाँव ज़मीन में गहरे गड़े हैं, यह उखड़ेगा नहीं,” इस बात का प्रतीक है कि इतने गहरे और जटिल मुद्दों का हल निकालना कठिन होता है, अतः उन्हें नजरअंदाज करना या टाल देना ही सुविधाजनक समझा जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि किसी अनसुलझे सवाल में दिमाग लगाकर समय गँवाना व्यर्थ होता है।

7. ‘व्यंग्य विधा में भाषा सबसे धारदार है।’ परसाई जी की इस रचना को आधार बनाकर इस कथन के पक्ष में अपने विचार प्रकट कीजिए।

उत्तर: हरिशंकर परसाई की रचना ‘टॉर्च बेचने वाले’ में व्यंग्य विधा के माध्यम से समाज में व्याप्त अंधविश्वास और पाखंडी साधु-संतों द्वारा रचित ढोंग का स्पष्ट चित्रण किया गया है। इस रचना में ऐसे ठगों का उल्लेख है, जो भोली भाली जनता को अंधेरे का डर दिखाकर, धर्म और अध्यात्म के नाम पर पैसे कमाते हैं। लेखक ने इस व्यंग्यात्मक प्रस्तुति के माध्यम से यह संदेश दिया है कि हमें ऐसे अंधविश्वास और पाखंडों से सावधान रहना चाहिए और उन ठगों के जाल में नहीं फंसना चाहिए। भाषा की तीक्ष्णता और प्रभावशीलता के द्वारा परसाई जी ने समाज के उन पहलुओं को उजागर किया है, जो लोगों के मन पर गहरा प्रभाव डालते हैं और उन्हें भ्रमित कर देते हैं। इस प्रकार, ‘व्यंग्य विधा’ के जरिए लेखक ने लोगों को जागरूक करने की कोशिश की है कि धर्म और अध्यात्म के नाम पर होने वाले ठगी के चंगुल से बचकर ही सच्ची ज्ञान की ओर बढ़ा जा सकता है।

8. आशय स्पष्ट कीजिए-

(क) क्या पैसा कमाने के लिए मनुष्य कुछ भी कर सकता है?

उत्तर: यह कथन स्पष्ट करता है कि पैसा कमाने की लालच में मनुष्य नैतिक सीमाओं को दरकिनार कर सकता है। जब धन की चाह इतनी प्रबल हो जाती है कि वह सबसे बड़ा उद्देश्य बन जाता है, तो व्यक्ति अपने सिद्धांतों और नैतिक मूल्यों को भूलकर किसी भी अनैतिक उपाय का सहारा ले सकता है। समाज में अंधविश्वास और पाखंड का सहारा लेकर कुछ लोग दूसरों को ठगते हैं, केवल अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए। इस प्रकार, यह आशय व्यक्त होता है कि पैसा कमाने की चाह में मनुष्य अपनी नैतिकता को छोड़कर हर हद तक जा सकता है।

(ख) प्रकाश बाहर नहीं है, उसे अंतर में खोजो। अंतर में बुझी उस ज्योति को जगाओ।

उत्तर: सिद्ध पुरुष का आशय यह है कि असली प्रकाश बाहरी दुनिया में नहीं, बल्कि हमारे भीतर निहित है। हमें अपने अंदर छुपी उस ज्योति की खोज करनी चाहिए और उसे जगाना चाहिए, ताकि आत्मा में बसे अंधकार को दूर किया जा सके। यही आंतरिक प्रकाश हमें सच्ची समझ और शांति प्रदान करता है, जिससे जीवन में स्थायी उजाला फैल सके।

(ग) धंधा वही करूँगा, यानी टार्च बेचूँगा। बस कंपनी बदल रहा हूँ।

उत्तर: पहला दोस्त टॉर्च बेचने का काम करता है, जिसमें अधिक परिश्रम की आवश्यकता होती है। अपने दोस्त को आत्मा के अँधेरे को दूर करने का काम यानी साधु बनकर पैसे कमाते देख, वह भी उसी काम को अपनाने का निश्चय करता है। उसे लगता है कि बिना मेहनत के भी बैठे-ठाले पैसे कमाए जा सकते हैं। इसलिए वह मेहनत यानी टॉर्च बेचने का काम छोड़कर साधु बनने का फैसला करता है।

9. लेखक ने ‘सूरज छाप’ टार्च की पेटी को नदी में क्यों फेंक दिया? क्या आप भी वही करते?

उत्तर: हाँ, अगर मैं उस टार्च बेचने वाले की जगह होता, तो मैं भी टार्च की पेटी नदी में फेंक देता। इतनी मेहनत करने के बावजूद जब अपेक्षित आमदनी नहीं होती, तो यह अत्यंत अन्यायपूर्ण प्रतीत होता है कि कुछ लोग भगवान के डर या अँधेरे का बहाना बनाकर भोली जनता को मूर्ख बना कर खूब पैसे कमा रहे हैं। ऐसे में, ईमानदारी और कड़ी मेहनत की तुलना में ठगी पर आधारित इस धंधे का कोई दीर्घकालिक मूल्य नहीं होता, और मैं भी उसी सिद्धांत के आधार पर ऐसा ही कदम उठाता।

10. टार्च बेचने वाले किस प्रकार की स्किल का प्रयोग करते हैं? क्या इसका ‘स्किल इंडिया’ प्रोग्राम से कोई संबंध है?

उत्तर: टार्च बेचने वाले कई तरह की व्यावसायिक और संचार कौशल (Skills) का उपयोग करते हैं, जैसे:

1. सेल्स और मार्केटिंग स्किल्स – ग्राहकों को टार्च की विशेषताओं और लाभों को समझाने की क्षमता।

2. कम्युनिकेशन स्किल्स – प्रभावी ढंग से बातचीत कर ग्राहक को उत्पाद खरीदने के लिए प्रेरित करना।

3. नेगोसिएशन स्किल्स – सही कीमत तय करने और बिक्री को बढ़ाने की योग्यता।

4. प्रोडक्ट नॉलेज – टार्च की बैटरी, ब्राइटनेस, टिकाऊपन आदि की जानकारी होना।

5. बेसिक बिजनेस स्किल्स – स्टॉक मैनेजमेंट, फाइनेंस मैनेजमेंट और रिकॉर्ड-कीपिंग का ज्ञान।

6. कस्टमर सर्विस स्किल्स – ग्राहकों की जरूरतों को समझना और उन्हें संतुष्ट करना।

7. डिजिटल स्किल्स – यदि ऑनलाइन बिक्री कर रहे हैं तो डिजिटल मार्केटिंग, ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स (जैसे Amazon, Flipkart) का उपयोग।

हाँ, ‘स्किल इंडिया’ प्रोग्राम के तहत कई ऐसे कोर्स उपलब्ध हैं जो टार्च बेचने वालों के लिए फायदेमंद हो सकते हैं। जैसे:

(i) रिटेल और सेल्स ट्रेनिंग – ग्राहकों से बात करने, बिक्री बढ़ाने और व्यवसाय संचालित करने की ट्रेनिंग।

(ii) डिजिटल मार्केटिंग कोर्स – सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स के जरिए बिक्री बढ़ाने की ट्रेनिंग।

(iii) एंटरप्रेन्योरशिप कोर्स – अपना खुद का व्यवसाय बढ़ाने और उसे सफलतापूर्वक चलाने के लिए मार्गदर्शन।

(iv) फाइनेंशियल लिटरेसी ट्रेनिंग – निवेश, लाभ-हानि का विश्लेषण और पैसे का सही प्रबंधन करने की जानकारी।

योग्यता-विस्तार

1. ‘पैसा कमाने की लिप्सा ने आध्यात्मिकता को भी एक व्यापार बना दिया है।’ इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा कीजिए।

उत्तर: परिचर्चा विषय: “पैसा कमाने की लिप्सा ने आध्यात्मिकता को भी एक व्यापार बना दिया है।”

भूमिका: आध्यात्मिकता आत्मिक शांति और नैतिकता का मार्ग है, लेकिन आज यह एक व्यवसाय बन चुकी है। कई धार्मिक और आध्यात्मिक संस्थाएँ प्रवचन, योग शिविर और ध्यान साधना के नाम पर पैसा कमा रही हैं।

मुख्य बिंदु:

1. आध्यात्मिकता का बाजारीकरण – योग शिविर, पूजा-पाठ, प्रवचन और VIP दर्शन के नाम पर धन अर्जित किया जा रहा है।

2. धर्म और व्यापार का मेल – धर्मस्थल और आश्रम भी व्यावसायिक केंद्र बन गए हैं, जहाँ विशेष पूजा और दर्शन के लिए शुल्क लिया जाता है।

3. जनता का आर्थिक दोहन – मानसिक शांति की तलाश में लोग गुरुओं से जुड़ते हैं, लेकिन कई बार वे गुमराह होकर अंधविश्वास में फँस जाते हैं।

4. सभी आध्यात्मिक गुरु व्यवसायी नहीं – कुछ सच्चे संत निस्वार्थ सेवा करते हैं, लेकिन बढ़ते व्यावसायीकरण से आध्यात्मिकता का मूल उद्देश्य प्रभावित हो रहा है।

निष्कर्ष: आध्यात्मिकता का मकसद आत्म-साक्षात्कार और नैतिकता को बढ़ावा देना है, न कि व्यापार बनना। हमें सच्ची आध्यात्मिकता को पहचानना चाहिए और इसे बाजार से अलग रखना चाहिए।

2. समाज में फैले अंधविश्वासों का उल्लेख करते हुए एक लेख लिखिए।

उत्तर: समाज में फैले अंधविश्वास:

भूमिका: अंधविश्वास बिना तर्क या वैज्ञानिक प्रमाण के किसी बात को सच मानने की प्रवृत्ति है। यह समाज में पीढ़ियों से चला आ रहा है और आज भी कई लोग इससे प्रभावित हैं।

प्रमुख अंधविश्वास:

(i) बिल्ली का रास्ता काटना अशुभ – लोग इसे दुर्भाग्य से जोड़ते हैं।

(ii) रात में नाखून न काटना – पहले रोशनी की कमी के कारण यह कहा जाता था, लेकिन अब अंधविश्वास बन गया है।

(iii) झाड़-फूंक और तंत्र-मंत्र – बीमारियों का इलाज डॉक्टर की बजाय तांत्रिकों से करवाना।

(iv) नींबू-मिर्च टांगना – बुरी नजर से बचाव के लिए इसे दुकानों और वाहनों में लटकाना।

(v) ग्रहण के दौरान खाना न खाना – इसे अशुभ माना जाता है, जबकि इसका वैज्ञानिक आधार नहीं है।

दुष्प्रभाव और समाधान: 

अंधविश्वास समाज को अज्ञानता में रखता है और प्रगति में बाधा डालता है। इससे बचने के लिए वैज्ञानिक सोच और शिक्षा को बढ़ावा देना जरूरी है। जागरूकता ही समाज को अंधविश्वास से मुक्त कर सकती है।

3. एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा हरिशंकर परसाई पर बनाई गई फ़िल्म देखिए।

उत्तर: विद्यार्थी स्वयं करें।

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