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NCERT Class 11 Hindi Antra Chapter 2 दोपहर का भोजन
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दोपहर का भोजन
Chapter: 2
अंतरा
गद्य-खंड
प्रश्न-अभ्यास
1. सिद्धेश्वरी ने अपने बड़े बेटे रामचंद्र से मँझले बेटे मोहन के बारे में झूठ क्यों बोला?
उत्तर: सिद्धेश्वरी ने रामचंद्र से झूठ इसलिए बोला क्योंकि वह घर में शांति बनाए रखना चाहती थी। रामचंद्र ही परिवार का सहारा था। मोहन पढ़ाई के बजाय आवारागर्दी कर रहा था, लेकिन सिद्धेश्वरी यह सच बताकर रामचंद्र को और परेशान नहीं करना चाहती थी। इसलिए उसने झूठ कहा कि किसी लड़के के यहाँ पढ़ने गया है, आता ही होगा, ताकि घर का माहौल बिगड़ने से बच सके।
2. कहानी के सबसे जीवंत पात्र के चरित्र की दृढ़ता का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर: सिद्धेश्वरी इस कहानी की सबसे जीवंत और दृढ़ पात्र हैं। वह परिवार की शांतिपूर्ण स्थिति बनाए रखने के लिए कठिन परिस्थितियों में भी अपने निर्णय पर अडिग रहती हैं। इसके बावजूद भी वह अपना धैर्य नहीं खोती और घर के सभी सदस्यों की आवश्यकताओं का ध्यान रखती हैं। उसका जीवन परिवार के लिए पूरी तरह समर्पित है। वह परिवार के सदस्यों की मनचाही बातें करके उन्हें खुश रखने के लिए झूठ भी बोलती है। वह अपनी भूख की परवाह किए बिना परिवार के सभी सदस्यों को भोजन कराती है और किसी के सामने अपना दुःख व्यक्त नहीं करती। कठिन परिस्थितियों में भी वह धैर्य और समर्पण का परिचय देती है।
3. कहानी के उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए जिनसे गरीबी की विवशता झाँक रही हो।
उत्तर: कहानी में कई ऐसे प्रसंग हैं जो गरीबी की विवशता को उजागर करते हैं।
उनमें से कुछ प्रमुख प्रसंग इस प्रकार हैं—
(i) सिद्धेश्वरी रामचंद्र को दो रोटियाँ देती है और बार-बार और लेने को कहती है, जबकि घर में भोजन की कमी है। रामचंद्र यह समझकर कि खाने की तंगी है, अतिरिक्त रोटी लेने से मना कर देता है।
(ii) मोहन शरारती होते हुए भी घर की तंगी समझता है और माँ का दिखावा भांपकर अतिरिक्त रोटी लेने से इंकार कर देता है।
(iii) पानी पीकर गुजारा करती है।
(iv) टूटी खाट पर लेटा उसका छोटा बेटा कुपोषण का शिकार है। उसकी टाँगों और वॉहों की हड्डियाँ निकल आई है और पेट हाँडी की तरह फूल गया है।
(v) सारा घर मक्खियों से भनभन कर रहा था। आँगन की अलगनी पर एक गंदी साड़ी टँगी थी, जिसमें कई पैबंद लगे हुए थे।
4. ‘सिद्धेश्वरी का एक से दूसरे सदस्य के विषय में झूठ बोलना परिवार को जोड़ने का अनथक प्रयास था’ – इस संबंध में आप अपने विचार लिखिए।
उत्तर: सिद्धेश्वरी का परिवार के एक सदस्य से दूसरे के बारे में झूठ बोलना दरअसल परिवार को जोड़ने और घर में शांति बनाए रखने का एक अनथक प्रयास था। वह जानती थी कि सच्चाई बताने से घर का माहौल बिगड़ सकता है और पहले से ही कठिन परिस्थितियों का सामना कर रहे परिवार के सदस्यों पर मानसिक दबाव बढ़ सकता है। इसलिए, उसने मोहन के बारे में रामचंद्र से और भोजन की उपलब्धता के बारे में परिवार के अन्य सदस्यों से झूठ बोला, ताकि कोई तनाव न पैदा हो। यह झूठ उसकी मजबूरी थी, जो उसके त्याग, एक ममता और परिवार को एकजुट रखने की कोशिश है।
5. ‘अमरकांत आम बोलचाल की ऐसी भाषा का प्रयोग करते हैं जिससे कहानी की संवेदना पूरी तरह उभरकर आ जाती है।’ कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: अमरकांत अपनी कहानियों में आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग करते हैं, जिससे उनके पात्र और स्थितियाँ वास्तविक लगती हैं तथा कहानी की संवेदना पूरी तरह उभरकर सामने आती है। उनकी भाषा सरल, सहज और भावनाओं से भरी होती है, जो पाठकों को सीधे जोड़ती है।
इस कहानी में सभी सदस्य घर की तंगहाली से परिचित हैं। वे दोपहर के भोजन में एक या दो रोटी खाकर ही भूखे पेट उठ जाते हैं, लेकिन फिर भी अपने दुःख को जाहिर नहीं करते। कहानी में सहज और बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया गया है, जिससे पात्रों की संवेदनाएँ स्वाभाविक रूप से उभरकर आती हैं। उदाहरणस्वरूप, “वह मतवाले की तरह उठी और गगरे से लोटा-भर पानी लेकर गट-गट कर गई” या “मोहन कटोरे को मुँह में लगाकर सुड़-सुड़ पी रहा था”—ये पंक्तियाँ रोज़मर्रा के जीवन का यथार्थ चित्रण करती हैं। अमरकांत की कथा शैली की सबसे बड़ी विशेषता उनका चित्रात्मक वर्णन है, जिससे दृश्य सजीव हो उठते हैं। जैसे, “सारा घर मक्खियों से भनभना रहा था” और “आँगन की अलगनी पर एक गाढ़ी साड़ी टंगी थी, जिसमें कई पैबंद लगे हुए थे।” इसी तरह, मुंशी जी का औंधे मुँह सोना और उनके बेरोजगार होने की चिंता, कहानी की यथार्थवादी पृष्ठभूमि को और गहरा बना देती है। इस प्रकार, अमरकांत की सरल भाषा और चित्रात्मक शैली पाठकों को कहानी से भावनात्मक रूप से जोड़ देती है।
6. रामचंद्र, मोहन और मुंशी जी खाते समय रोटी न लेने के लिए बहाने करते हैं, उसमें कैसी विवशता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: रामचंद्र, मोहन और मुंशी जी के रोटी न लेने के बहाने उनकी गरीबी और विवशता को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं। घर में भोजन की कमी थी, और वे जानते थे कि अगर उन्होंने अधिक खाया तो किसी और को भूखा रहना पड़ेगा। रामचंद्र माँ के बार-बार पूछने पर भी अतिरिक्त रोटी लेने से मना कर देता है, क्योंकि वह घर की तंगहाली को समझता है। मोहन, जो आमतौर पर शरारती रहता है, माँ का दिखावा भांपकर खुद भी रोटी नहीं लेता। वहीं, मुंशी जी अपनी असहायता छिपाते हुए सिर्फ गुड़ का शरबत पीकर ही पेट भर लेते हैं। यह सभी प्रसंग दर्शाते हैं कि गरीबी ने उन्हें इतना मजबूर कर दिया है कि वे अपनी भूख से ज्यादा परिवार की जरूरतों को प्राथमिकता देने लगे हैं।
7. सिद्धेश्वरी की जगह आप होते तो क्या करते?
उत्तर: यदि मैं सिद्धेश्वरी की जगह होता, तो परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए कोई छोटा काम करने की कोशिश करता, जिससे घर में भोजन की तंगी न रहे। मैं मोहन को समझाकर उसकी पढ़ाई पर ध्यान देने के लिए प्रेरित करता, ताकि वह आवारागर्दी छोड़कर अपने भविष्य को संवार सके। साथ ही, मैं परिवार के सभी सदस्यों को स्थिति से अवगत कराकर मिलकर समाधान निकालने का प्रयास करता, जिससे घर का माहौल तनावपूर्ण न हो और सभी का सहयोग बना रहे। कठिन परिस्थितियों में भी मैं सच का सामना करने और धैर्य के साथ समस्याओं से निपटने की कोशिश करता।
8. रसोई संभालना बहुत जिम्मेदारी का काम है- सिद्ध कीजिए।
उत्तर: रसोई संभालना एक बड़ी जिम्मेदारी का काम है, क्योंकि यह सिर्फ खाना बनाने तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे परिवार के पोषण, स्वास्थ्य और बजट प्रबंधन से जुड़ा होता है। संतुलित भोजन तैयार करना, समय पर खाना परोसना, स्वच्छता बनाए रखना और संसाधनों का सही उपयोग करना जरूरी होता है। रसोई संभालने वाला व्यक्ति संयम और त्याग के साथ पूरे परिवार की सेहत और सुख-शांति का ध्यान रखता है, जिससे इसका महत्व और बढ़ जाता है।
9. आपके अनुसार सिद्धेश्वरी के झूठ सौ सत्यों से भारी कैसे हैं? अपने शब्दों में उत्तर दीजिए।
उत्तर: सिद्धेश्वरी के झूठ सौ सत्यों से भारी इसलिए हैं क्योंकि उसके झूठ के पीछे उसका परिवार के प्रति प्रेम, त्याग और समर्पण छिपा है। उसने जो भी झूठ बोले, वे किसी स्वार्थ या छल के लिए नहीं, बल्कि घर की शांति बनाए रखने और अपने परिवार को टूटने से बचाने के लिए थे।
वह जानती थी कि मोहन आवारागर्दी कर रहा है, लेकिन उसने रामचंद्र से झूठ कहा कि वह पढ़ने गया है, ताकि घर का माहौल बिगड़ने से बच सके। इसी तरह, वह बार-बार रोटी खाने के लिए कहती रही, जबकि उसे पता था कि भोजन कम है, ताकि परिवार के अन्य सदस्य भूखे न रहें। उसके ये झूठ परिस्थितियों को संभालने और परिवार को जोड़कर रखने के प्रयास थे, जो सत्य से अधिक मूल्यवान साबित हुए। इसलिए, सिद्धेश्वरी के झूठ सौ सत्यों से भारी हैं।
10. आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) वह मतवाले की तरह उठी और गगरे से लोटा भर पानी लेकर गट-गट चढ़ा गई।
उत्तर: सिद्धेश्वरी सुबह से परिवार वालों के लिए खाना बनाने में जुटी हुई थी। दोपहर तक बह खाना बनाकर उनकी प्रतीक्षा कर रही थी। वह स्वयं भी भूखी थी। इसी सोच में वह डूबी हुई थी कि अचानक उसे प्यास लगी। भूख के मारे वह लड़खड़ाती-सी उठकर गगरे से लोटा भरकर पानी पी लेती है।
(ख) यह कहकर उसने अपने मॅंझले लड़के की ओर इस तरह देखा, जैसे उसने कोई चोरी की हो।
उत्तर: सिद्धेश्वरी ने मोहन को यह झूठ बोला कि बड़ा भाई उसकी तारीफ़ कर रहा था। मोहन जानता था कि उसका बड़ा भाई उसकी तारीफ नहीं कर सकता है। अतः सिद्धेश्वरी ने झूठ बोलकर मोहन की ओर देखा। वह यह जानना चाहती थी कि कहीं मोहन ने उसका झूठ पकड़ तो नहीं लिया है।
योग्यता-विस्तार |
1. अपने आस-पास मौजूद समान परिस्थितियों वाले किसी विवश व्यक्ति अथवा विवशतापूर्ण घटना का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर: मेरे आस-पास भी कई ऐसे लोग हैं जो अभावग्रस्त परिस्थितियों में जी रहे हैं। एक घटना मुझे विशेष रूप से याद है, जो हमारे पड़ोस की एक वृद्धा, निर्मला देवी, से जुड़ी है। उनके बेटे नौकरी की तलाश में शहर चले गए, लेकिन वे माँ की देखभाल नहीं कर पाए। आर्थिक तंगी के कारण निर्मला देवी को दिनभर दूसरों के घरों में काम करना पड़ता था, ताकि वे दो वक्त की रोटी जुटा सकें।
एक दिन मैंने देखा कि वे बहुत थकी हुई थीं, लेकिन फिर भी अपने पोते-पोती के लिए रसोई में जुटी थीं। जब बच्चे खाना खा चुके, तब उन्होंने बची हुई थोड़ी-सी रोटी और पानी से अपना पेट भरा। उनकी आँखों में संतोष था कि उनके बच्चे भूखे नहीं सोएंगे, लेकिन उनके चेहरे की थकान और संघर्ष साफ झलक रहा था।
यह घटना सिद्धेश्वरी की तरह एक माँ के त्याग और विवशता को दर्शाती है, जहाँ खुद की भूख से ज्यादा परिवार की भलाई महत्वपूर्ण हो जाती है।
2. ‘भूख और गरीबी में प्रायः धैर्य और संयम नहीं टिक पाते हैं।’ इसके आलोक में सिद्धेश्वरी के चरित्र पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर: ‘भूख और गरीबी में प्रायः धैर्य और संयम नहीं टिक पाते हैं।’ इस कथन के संदर्भ में सिद्धेश्वरी का चरित्र चर्चा के योग्य है। आमतौर पर जब कोई व्यक्ति भूख और गरीबी से जूझता है, तो वह अधीर हो जाता है और कभी-कभी गलत निर्णय भी ले लेता है। लेकिन सिद्धेश्वरी विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्य और संयम का परिचय देती है।
वह घर की आर्थिक तंगी से अच्छी तरह परिचित होते हुए भी खुद को कमजोर नहीं पड़ने देती। पूरे परिवार के लिए भोजन तैयार करती है, लेकिन स्वयं भूखी रहकर भी किसी से अपनी तकलीफ नहीं कहती। वह अपने बड़े बेटे रामचंद्र से मोहन के बारे में झूठ बोलती है, ताकि घर का माहौल न बिगड़े। इसी तरह, जब सभी खाने के लिए रोटी लेने से इनकार कर देते हैं, तब भी वह शांत रहती है और सबको संभालने का प्रयास करती है।
सिद्धेश्वरी का चरित्र यह दिखाता है कि सच्चा संयम और धैर्य वही होता है, जो कठिन परिस्थितियों में भी बना रहे। उसकी ममता, त्याग और सहनशीलता उसे एक आदर्श माँ और गृहिणी के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जो गरीबी की सबसे कठिन मार झेलते हुए भी अपने परिवार को जोड़कर रखती है।

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